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पीएमएफएमई योजना

  • 06 May 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये: पीएमएफएमई, नेफेड, एफपीओ, एक ज़िला एक उत्पाद, खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र से संबंधित पहलें

मेन्स के लिये: कृषि विपणन में सुधार हेतु पीएमएफएमई योजना का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय और नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड ( NAFED) ने प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम (PMFME) योजना के औपचारिकरण के अंतर्गत तीन एक ज़िला एक उत्पाद (ODOP) ब्रांड लॉन्च किये हैं।

  • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय ने पीएमएफएमई योजना के ब्रांडिंग और विपणन घटक के अंतर्गत चयनित 20 ‘एक ज़िला एक उत्पाद’ के 10 ब्रांड विकसित करने हेतु नेफेड के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।

प्रमुख बिंदु

पीएमएफएमई योजना के बारे में:

  • परिचय
  • यह योजना इनपुट की खरीद, सामान्य सेवाओं और उत्पादों के विपणन के संबंध में पैमाने का लाभ उठाने के लिये एक ज़िला एक उत्पाद (ODOP) दृष्टिकोण अपनाती है।
  • इसे पाँच वर्ष (2020-21 से 2024-25) की अवधि के लिये लागू किया जाएगा।

विशेषताएंँ:

  • एक ज़िला एक उत्पाद (ODOP) दृष्टिकोण:
    • योजना के लिये ODOP मूल्य शृंखला विकास और समर्थन बुनियादी ढांँचे के संरेखण के लिये रुपरेखा प्रदान करेगा। एक ज़िले में ODOP उत्पादों के एक से अधिक समूह हो सकते हैं।
    • एक राज्य में एक से अधिक निकटवर्ती ज़िलों को मिलाकर ODOP उत्पादों का एक समूह हो सकता है।
    • राज्य मौजूदा समूहों और कच्चे माल की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए ज़िलों के लिये खाद्य उत्पादों की पहचान करेंगे।
    • ODOP में एक क्षेत्र में व्यापक रूप से उत्पादित तथा खराब होने वाली उपज या अनाज या खाद्य पदार्थ हो सकता है जैसे- आम, आलू, अचार, बाजरा आधारित उत्पाद, मत्स्य पालन, मुर्गी पालन आदि।
  • अन्य केंद्रित क्षेत्र:
    • वेस्ट टू वेल्थ उत्पाद, लघु वन उत्पाद और आकांक्षी ज़िले
    • क्षमता निर्माण और अनुसंधान: राज्य स्तरीय तकनीकी संस्थानों के साथ-साथ MoFPI के तहत शैक्षणिक और अनुसंधान संस्थानों को सूक्ष्म इकाइयों हेतु प्रशिक्षण, उत्पाद विकास, उपयुक्त पैकेजिंग एवं मशीनरी के लिये सहायता प्रदान की जाएगी।
      • वित्तीय सहायता:
        • मौजूदा व्यक्तिगत सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण इकाइयांँ जो अपग्रेड करने की इच्छुक हैं, वे पात्र परियोजना लागत के 35% पर अधिकतम 10 लाख रुपए प्रति यूनिट के साथ क्रेडिट-लिंक्ड कैपिटल सब्सिडी का लाभ उठा सकती हैं।
        • सामान्य बुनियादी ढांँचे, सामान्य प्रसंस्करण सुविधा, प्रयोगशाला, गोदाम आदि के विकास के लिये FPO/SHG/सहकारिता या राज्य के स्वामित्व वाली एजेंसियों या निजी उद्यम के माध्यम से 35% क्रेडिट लिंक्ड अनुदान द्वारा सहायता प्रदान की जाएगी।
        • प्रारंभिक वित्तपोषण के तहत कार्यशील पूंजी और छोटे उपकरणों की खरीद के लिये 40,000 रुपये प्रति स्वयं सहायता समूह (SHG) सदस्य प्रदान किया जाएगा।
      • वित्तपोषण:
        • यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसमें 10,000 करोड़ रुपए का परिव्यय शामिल है।
        • इस योजना के तहत परिव्यय को केंद्र और राज्य सरकारों के बीच 60:40 के अनुपात में साझा किया जाएगा। उत्तर-पूर्वी और हिमालयी राज्यों के साथ 90:10 के अनुपात में, विधायिका वाले केंद्रशासित प्रदेशों के साथ 60:40 के अनुपात और अन्य केंद्रशासित प्रदेशों के लिये केंद्र द्वारा शतप्रतिशत व्यय किया जाएगा।

योजना की आवश्यकता:

  • लगभग 25 लाख इकाइयों वाले असंगठित खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के रोजगार में 74 प्रतिशत योगदान है।
  • इनमें से लगभग 66% इकाइयाँ ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हैं और लगभग 80% परिवार आधारित उद्यम हैं जो ग्रामीण परिवारों की आजीविका का समर्थन करते हैं और शहरी क्षेत्रों में उनके प्रवास को कम करते हैं।
    • ये इकाईयाँ बड़े पैमाने पर सूक्ष्म उद्यमों की श्रेणी में आती हैं।
  • असंगठित खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो उनके प्रदर्शन और विकास को सीमित करता है। इन चुनौतियों में आधुनिक तकनीक व उपकरणों तक पहुँच की कमी, प्रशिक्षण, संस्थागत ऋण तक पहुँच, उत्पादों के गुणवत्ता नियंत्रण पर बुनियादी जागरूकता की कमी, ब्रांडिंग तथा विपणन कौशल की कमी आदि शामिल हैं।

भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED):

  • परिचय:
    • यह भारत में कृषि उपज के लिये विपणन सहकारी समितियों का एक शीर्ष संगठन है।
    • इसकी स्थापना 2 अक्टूबर, 1958 को हुई थी और यह बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम, 2002 के तहत पंजीकृत है।
    • नाफेड भारत में कृषि उत्पादों के लिये सबसे बड़ी खरीद और विपणन एजेंसियों में से एक है।
  • उद्देश्य:
    • कृषि, बागवानी और वन उपज के विपणन, प्रसंस्करण व भंडारण को व्यवस्थित करना , बढ़ावा देना तथा विकसित करना।
    • कृषि मशीनरी, उपकरण और अन्य आदानों को वितरित करना एवं अंतर-राज्यीय आयात एवं निर्यात, व्यापार, थोक या खुदरा व्यापार, जैसे मुद्दों की देखभाल करना।
    • भारत में इसके सदस्यों, भागीदारों, सहयोगियों और सहकारी विपणन, प्रसंस्करण एवं आपूर्ति समितियों के प्रचार व कामकाज के लिये कृषि उत्पादन में तकनीकी सलाह हेतु कार्य करना और सहायता करना।

स्रोत: पी.आई.बी.

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