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                  02 Aug 2019
                  
                    
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भारत में स्वयं सहायता समूह महिलाओं की मदद करते हैं ताकि वे अन्य महिलाओं को सशक्त कर सकें, विशेषतः ग्रामीण भारत में। समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये । (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण :
• स्वयं सहायता समूहों के बारे में संक्षेप में बताइए।
• महिलाओं को सशक्त बनाने में स्वयं सहायता समूह (SHG) की भूमिका का विस्तृत वर्णन कीजिये।
• संबंधित मुद्दों की चर्चा कीजिये।
• निष्कर्ष लिखिये।
परिचय
स्वयं -सहायता समूह (एस.एच.जी.) समान आर्थिक स्थिति वाले पुरुषों या महिलाओं का एक स्वैच्छिक समूह है। इसके सदस्य समूह द्वारा ऋण प्रदान करने की प्रक्रिया को प्रारंभ करने हेतु आवश्यक पूंजी के लिये एक निश्चित समय तक धन की बचत करते हैं। फिर इस धनराशि/बचत का उपयोग ऋण देने के उद्देश्यों (सदस्यों या अन्य लोगों के लिये) के लिये किया जाता है। भारत में एस.एच.जी. आंदोलन को 1992 के बाद गति मिली, जब नाबार्ड ने इसकी क्षमता का एहसास करते हुए इसे बढ़ावा देना शुरू किया।
ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने में एस.एच.जी. की भूमिका
- ग्रामीण महिलाओं को उनके मूल अधिकारों के बारे में जागरूक करना: अधिकांशतः ग्रामीण महिलाओं का उनके पति, बच्चों और परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा शोषण किया जाता है...और जब तक वे अशिक्षित और अपने बुनियादी अधिकारों की रक्षा करने के तरीकों से अनजान रहेंगी, तब तक उनका शोषण जारी रहेगा। महिला एस.एच.जी. ऐसी महिलाओं के लिये पथ प्रदर्शक का कार्य करते हैं और उन्हें शिक्षित करने तथा उनके बुनियादी मौलिक अधिकारों और कानूनों के बारे में जानकारी प्रदान करने में मदद करते हैं।
 - ग्रामीण महिलाओं को रोज़गार प्राप्त करने में सहायता : महिला एस.एच.जी. ग्रामीण महिलाओं के लिये बेहतर कृषि प्रथाओं, पशुधन विकास, सिलाई, बही-खाता और सामान्य प्रबंधन से संबंधित विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रमों की व्यवस्था करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये प्रशिक्षण कार्यक्रम ग्रामीण महिलाओं के लिये रोज़गार के विभिन्न अवसर प्रदान करते हैं।
 - आत्मविश्वास और सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि : अपने पारिवार की मौद्रिक आवश्यकताओं की पूर्ति में योगदान देने से स्वतः ही ग्रामीण महिलाओं में आत्मविश्वास उत्पन्न होता है। आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने के कारण महिला के परिवार की सामाजिक स्थिति में भी सुधार होता है और इस प्रकार उनके सामने आने वाली कई समस्याओं का समाधान भी होता है।
 - ग्रामीण महिलाओं की सामुदायिक सहभागिता को बढ़ाना : महिला एस.एच.जी. ग्रामीण महिलाओं को केवल शिक्षित ही नहीं करते बल्कि उनकी सामुदायिक भागीदारी को भी बढ़ाते हैं। वे ग्रामीण महिलाओं को उनके मतदान के अधिकार को जानने में मदद करते हैं और यहाँ तक कि उन्हें स्थानीय शासन और ग्राम विकास प्रक्रिया में भाग लेने के लिये भी प्रेरित करते हैं। यह ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने में एक दीर्घकालिक उपाय साबित हो सकता है।
 - सामाजिक मुद्दों के बारे में जागरूकता फैलाना : ग्रामीण भारत अभी भी सामाजिक कुरीतियों, जैसे- दहेज प्रथा, बाल विवाह, जाति व्यवस्था, घरेलू हिंसा, शराबखोरी आदि से त्रस्त है। एस.एच.जी. बालिका शिक्षा को बढ़ावा देकर इन बुराइयों को समाप्त करने का कार्य करते हैं क्योंकि शिक्षित महिलाएँ समाज में एक सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं। एस.एच.जी. ग्रामीण महिलाओं के परिवारों के साथ बैठकें आयोजित करके तथा विभिन्न अभियानों के माध्यम से पुरुषों की सोच में बदलाव लाने का प्रयास करते हैं।
 - एस.एच.जी. सदस्यों के बीच बैंकिंग सुविधाओं के उपयोग को बढ़ावा देने और बचत की आदत को विकसित करने में मदद करते हैं। इस प्रकार की बचत आदतें मोल-भाव करने की महिलाओं की क्षमता को मज़बूत करती हैं और वे उत्पादक उद्देश्यों के लिये ऋण प्राप्त करने हेतु बेहतर स्थिति में होती हैं। इसके माध्यम से महिलाएँ अपने वित्त का प्रबंधन करने और आपस में लाभ वितरित करने के लिये सामूहिक जानकारी प्राप्त करती हैं।
 - एस.एच.जी. परिवार के भीतर और अंततः पूरे समाज में सत्ता-संबंधी लैंगिक विभेद को परिवर्तित करने में सहायता प्रदान करते हैं। वे पारिवारिक मामलों के प्रबंधन और समुदाय को आगे ले जाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वित्तीय स्वतंत्रता ने अंततः महिलाओं के सामाजिक उत्थान को बढ़ाने और उनकी आवाज़ उठाने का मार्ग प्रशस्त किया है।
 
भारत में महिला सशक्तीकरण में सहायता प्रदान करने वाले एस.एच.जी. के उदाहरण
SEWA इंटरनेशनल द्वारा उत्तराखंड में संचालित सेवा कौशल विकास केंद्र (SKVK) परियोजना कौशल विकास और कृषि में सुधार के माध्यम से पूरे क्षेत्र में परिवर्तन के लिये एस.एच.जी. को सक्षम बनाती है। यह परियोजना इस बात का एक अनूठा उदाहरण है कि कैसे महिलाएँ आपस में एक-दूसरे को आगे बढ़ाने में समर्थन प्रदान करती हैं।
गुजरात के गिर क्षेत्र में लगभग 500 स्वयं सहायता समूहों को जोड़ने वाले एक वृहद् संगठन सोरठ महिला विकास मंडली के सदस्य विधवाओं को बेहतर जीवन जीने में सहायता करने हेतु सामाजिक रूढ़ियों के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं।
भारत में स्वयं सहायता समूहों से संबंधित मुद्दे
- सदस्यों की अज्ञानता : यद्यपि प्राधिकारियों द्वारा समूह के सदस्यों के बीच उनके लिये लाभकारी योजनाओं के बारे में जागरूकता पैदा करने हेतु उपाय किये जाते हैं, फिर भी समूह के अधिकांश लोग उन्हें दी जाने वाली सहायता योजनाओं से अनभिज्ञ रहते हैं।
 - अपर्याप्त प्रशिक्षण सुविधाएँ : उत्पाद चयन, उत्पादों की गुणवत्ता, उत्पादन तकनीक, प्रबंधकीय क्षमता, पैकिंग, अन्य तकनीकी ज्ञान आदि जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों को दी जाने वाली प्रशिक्षण सुविधाएँ उस क्षेत्र विशेष की मजबूत इकाइयों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
 - महिला स्वयं सहायता समूहों में स्थिरता की कमी: महिलाओं की प्रधानता वाले एस.एच.जी. के मामले में स्थिरता की कमी रहती है क्योंकि कई विवाहित महिलाएँ अपने निवास में परिवर्तन हो जाने के बाद समूह के साथ जुड़ने की स्थिति में नहीं रह पातीं।
 - कमजोर वित्तीय प्रबंधन: यह भी देखने को मिलता है कि कुछ इकाइयों में व्यवसाय से प्राप्त लाभ को दोबारा इकाई/समूह में निवेश न करके अन्य व्यक्तिगत और घरेलू उद्देश्यों जैसे- विवाह, घर का निर्माण आदि के लिये खर्च किया जाता है।
 
निष्कर्ष
स्वयं सहायता समूह योजना उन महत्त्वपूर्ण योजनाओं में से एक है जो महिलाओं को बेहतर नेतृत्व, निर्णय लेने, मूलभूत सुविधाओं की प्राप्ति और कौशल उन्नयन के मामले में सशक्त बनाती है। गंभीर भेदभाव और वंचित महिलाओं की बड़ी संख्या को देखते हुए महिलाओं को अपने बल पर उद्यमी बनने के लिये प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। महिला एस.एच.जी. को अपने सदस्यों के सशक्तीकरण की दिशा में काम करना चाहिए और साथ ही समाज की अन्य कमज़ोर व् गरीब महिलाओं के उत्थान के लिये भी प्रयास करना चाहिये।