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भारतीय अर्थव्यवस्था

रुपए की कीमत में गिरावट

  • 23 Aug 2019
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

वैश्विक व घरेलू कारकों के परिणामस्वरूप रुपया 72 के स्तर को पार करते हुए विगत आठ महीनों के सबसे निचले स्तर पर पहुँच गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • ज्ञातव्य है कि बीते वर्ष 2018 में भी रुपया 74 को पार कर अपने सबसे ऊँचे स्तर पर पहुँच गया था।
  • हालाँकि, 2019 की शुरुआत में रुपए के मज़बूत होने के संकेत मिले थे, लेकिन रुपए की वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह अनुमान लगाया जा रहा है कि एक बार फिर रुपया अपने रिकॉर्ड स्तर तक पहुँच सकता है।
  • रुपए के अलावा भारत के लिये एक बुरी खबर यह भी है कि भारतीय शेयर बाज़ार भी काफी गिरावट का सामना कर रहा है।

रुपए में गिरावट के कारण

  • रुपए में गिरावट का सबसे प्रमुख कारण चीन की मुद्रा युआन (Yuan) में हुए अचानक मूल्यह्रास को माना जा रहा है। गौरतलब है कि चीनी मुद्रा युआन अमेरिका और चीन के मध्य चल रहे व्यापार युद्ध के कारण विगत 11 वर्षों में सबसे निचले स्तर पर आ गई है।
    • चीन की मुद्रा में मूल्यह्रास के कारण वैश्विक स्तर पर डॉलर की मांग बढ़ गई है और परिणामस्वरूप डॉलर अधिक मज़बूत हो गया है।
  • बीते दो महीनों में भारतीय बाज़ार से भारी मात्रा में निवेश का बहिर्गमन (Outflow) हुआ है, जिसका प्रभाव भारतीय रुपए पर स्पष्ट देखा जा सकता है।
    • बजट 2019 में सरकार द्वारा सुपर रिच (Super-Rich) पर अधिक कर लगाने के बाद बीते 2 महीनों में विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाज़ार से लगभग 3 बिलियन डॉलर वापस निकाल लिये हैं। लगातार बढ़ रहा बहिर्गमन भारतीय बाज़ार के लिये चिंता का बड़ा विषय बन गया है। विदेशी निवेश से संबंधी इस चिंता से निपटने हेतु हाल ही में SEBI ने कुछ नए मापदंड व नियम भी जारी किये हैं।
  • तेल की ऊँची कीमतों का असर भी रुपए पर देखने को मिल रहा है। वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतें 60 डॉलर प्रति बैरल से भी ऊपर पहुँच गई हैं। ज्ञातव्य है कि पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन OPEC के नेतृत्व वाली आपूर्ति कटौती के कारण ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतें काफी ऊपर पहुँच गई हैं।

रुपया कमज़ोर या मज़बूत क्यों होता है?

  • विदेशी मुद्रा भंडार के घटने या बढ़ने का असर किसी भी देश की मुद्रा पर पड़ता है। चूँकि अमेरिकी डॉलर को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा माना गया है जिसका अर्थ यह है कि निर्यात की जाने वाली सभी वस्तुओं की कीमत डॉलर में अदा की जाती है। अतः भारत की विदेशी मुद्रा में कमी का तात्पर्य यह है कि भारत द्वारा आयात की जाने वाली वस्तुओं के आयात-मूल्य में वृद्धि तथा निर्यात की जाने वाली वस्तुओं के निर्यात-मूल्य में कमी।
  • उदाहरण के लिये भारत को कच्चा तेल आदि खरीदने हेतु मूल्य डॉलर के रूप में चुकाना होता है, इस प्रकार भारत ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार से जितने डॉलर खर्च कर तेल का आयात किया उतना उसका विदेशी मुद्रा भंडार कम हुआ, इसके लिये भारत उतने ही डॉलर मूल्य की वस्तुओं का निर्यात करे तो उसके विदेशी मुद्रा भंडार में हुई कमी को पूरा किया जा सकता है। लेकिन यदि भारत से किये जाने वाले निर्यात के मूल्य में कमी हो तथा आयात कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही हो तो ऐसी स्थिति में डॉलर खरीदने की ज़रूरत होती है तथा एक डॉलर खरीदने के लिये जितना अधिक रुपया खर्च होगा वह उतना ही कमज़ोर होगा।

विदेशी मुद्रा भंडार क्या है?

प्रत्येक देश के पास दूसरे देशों की मुद्रा का भंडार होता है, जिसका प्रयोग वस्तुओं के आयात-निर्यात में किया जाता है, इसे ही विदेशी मुद्रा भंडार कहते हैं। भारत में समय-समय पर इसके आँकड़े भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किये जाते हैं।

स्रोत: द हिंदू

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