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कृषि सब्सिडी में सुधार

  • 03 Jun 2025
  • 17 min read

प्रिलिम्स के लिये:

कृषि सब्सिडी, PM-KISAN, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, पोषक तत्त्व-आधारित सब्सिडी (NBS), प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, MSP, भारतीय खाद्य निगम, कृषि विपणन अवसंरचना निधि (AMIF), प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना, प्रति बूँद अधिक फसल (PDMC), शांता कुमार समिति (2015), विश्व व्यापार संगठन (WTO), शून्य बजट प्राकृतिक कृषि (ZBNF)

मेन्स के लिये:

कृषि सब्सिडी से संबंधित आवश्यकता और चुनौतियाँ, कृषि सब्सिडी के प्रकार, कृषि सब्सिडी में सुधार के तरीके।

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों?

उपराष्ट्रपति ने कहा कि कृषि सब्सिडी का प्रत्यक्ष हस्तांतरण किसानों की आय में महत्त्वपूर्ण वृद्धि कर सकता है तथा अनुमान है कि यदि सारी सहायता सीधे किसानों तक पहुँचे (अप्रत्यक्ष सब्सिडी के बजाय) तो प्रत्येक किसान को कम-से-कम 35,000 रुपए प्रतिवर्ष प्राप्त हो सकते हैं।

भारत में कृषि सब्सिडी के विभिन्न प्रकार क्या हैं?

  • प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT): यह किसानों को नकद हस्तांतरण के रूप में प्रत्यक्ष आय सहायता प्रदान करता है। उदाहरण के लिये, PM-KISAN, रयथू बंधु (तेलंगाना), कालिया (ओडिशा)।
  • इनपुट सब्सिडी:
    • उर्वरक सब्सिडी: यह उत्पादन लागत और बिक्री मूल्य के बीच के अंतर का भुगतान करके यूरिया जैसे उर्वरकों को किफायती बनाता है। उदाहरण के लिये, डाई-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) उर्वरक, गैर-यूरिया उर्वरकों के लिये पोषक तत्त्व-आधारित सब्सिडी (NBS) योजना।
    • बीज सब्सिडी: यह सब्सिडी दरों पर उच्च उपज वाले, रोग प्रतिरोधी बीज प्रदान करती है, उदाहरण के लिये, बीज ग्राम कार्यक्रम, बीज बैंक, राजस्थान में मुख्यमंत्री बीज स्वावलंबन योजना।
    • सिंचाई सब्सिडी:  प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) के तहत सिंचाई सब्सिडी, जल संरक्षण को बढ़ावा देने हेतु ड्रिप और स्प्रिंकलर प्रणालियों के लिये 55% तक सहायता प्रदान करती है।
    • विदयुत सब्सिडी: यह कृषि पंपों के लिये मुफ्त या रियायती विदयुत प्रदान करता है, पंजाब जैसे राज्य ट्यूबवेल सिंचाई के लिये निशुल्क विदयुत प्रदान करते हैं, हालाँकि इससे भूजल की कमी के विषय में चिंताएँ बढ़ गई हैं।
  • ऋण एवं बीमा सब्सिडी:
    • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY): PMFBY किसानों को फसल विफलता से बचाती है, इसके लिये उन्हें 1.5-5% प्रीमियम का भुगतान करना होता है तथा शेष लागत सरकार वहन करती है।
    • ब्याज अनुदान योजना: संशोधित ब्याज अनुदान योजना के तहत, किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से 3 लाख रुपए तक के अल्पावधि ऋण 7% रियायती ब्याज दर पर मिलते हैं, जिसमें पात्र ऋण देने वाली संस्थाओं को 1.5% की छूट भी दी जाती है ।
  • मूल्य समर्थन (आउटपुट सब्सिडी):
    • न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP): MSP गेहूँ, चावल, दालों और तिलहन जैसी 22 फसलों के लिये न्यूनतम मूल्यों की गारंटी प्रदान करती है तथा गन्ने के लिये उचित एवं लाभकारी मूल्य (FRP) की गारंटी देती है, जिसे भारतीय खाद्य निगम (FCI) और NEFED जैसी एजेंसियों द्वारा खरीदा जाता है।
      • इसके अलावा, भावांतर भुगतान योजना (मध्य प्रदेश) जैसी राज्य स्तरीय योजनाएँ बाज़ार की कीमतें MSP से कम होने पर किसानों को मुआवज़ा प्रदान करती हैं।
  • बुनियादी ढाँचा एवं फसलोत्तर सब्सिडी:
    • वेयरहाउस और कोल्ड स्टोरेज सब्सिडी: राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (NHB) एक पूंजी निवेश सब्सिडी योजना प्रदान करता है, जो 5,000 से 10,000 मिलियन टन क्षमता वाले कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं के निर्माण या आधुनिकीकरण के लिये सामान्य क्षेत्रों में 35% और उत्तर पूर्व, पहाड़ी तथा अनुसूचित क्षेत्रों में 50% की ऋण-लिंक्ड बैक-एंडेड सब्सिडी प्रदान करता है।

कृषि सब्सिडी और विश्व व्यापार संगठन:

भारत में कृषि सब्सिडी के परिणाम क्या हैं?

  • सरकार पर राजकोषीय भार: केंद्रीय बजट 2025-26 में खाद्य और उर्वरक सब्सिडी के लिये 3.71 लाख करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं तथा जनवरी 2025 तक 11 करोड़ से अधिक पीएम-किसान लाभार्थी किसानों को 3.46 लाख करोड़ रुपए से अधिक वितरित किये जा चुके हैं।
    • इससे सार्वजनिक वित्त पर दबाव पड़ता है तथा पंजाब जैसे वित्तीय रूप से संकटग्रस्त राज्यों के लिये ऋण संकट और भी बढ़ जाता है।
  • मृदा क्षरण: भारत में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम (NPK) का उपभोग अनुपात 6.7:2.4:1 (आदर्श 4:2:1) है, जिसके कारण मृदा विषाक्तता तथा पैदावार में गिरावट आ रही है।
    • पंजाब और हरियाणा में यूरिया की खपत सबसे अधिक है, जिससे भूजल प्रदूषण तथा कैंसर जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
  • भूजल ह्रास: मुफ्त बिजली से ट्यूबवेल के अत्यधिक उपयोग को बढ़ावा मिलता है, जिससे भूजल स्तर में कमी आती है।
    • भारत में 87% भूजल का उपयोग कृषि क्षेत्र द्वारा किया जाता है, जबकि 2024 में पंजाब, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली जैसे राज्यों में भूजल का दोहन 100% से अधिक हो चुका है।
  • बाज़ार में विकृतियाँ: शांता कुमार समिति (2015) के अनुसार केवल 6% किसान- मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और आंध्र प्रदेश में  वास्तव में MSP से लाभान्वित होते हैं। इस असंतुलित खरीद नीति के कारण चावल और गेहूँ का अत्यधिक उत्पादन हुआ है, जबकि दालों तथा  तिलहनों का उत्पादन अपेक्षाकृत कम हुआ है।
    • वर्ष 2024 में FCI को 18 मिलियन टन सड़े हुए अनाज का निपटान करना पड़ा, जिससे करदाताओं के पैसों की भारी बर्बादी हुई।
  • निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता पर प्रतिकूल प्रभाव: विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियम भारत की कृषि निर्यात सब्सिडी पर सीमा निर्धारित करते हैं, जिससे व्यापार पर प्रभाव पड़ता है।
    • विकसित देश, विशेषकर अमेरिका के नेतृत्व में, भारत पर यह आरोप लगाते हैं कि उसने वर्ष 2020–21 में चावल की खेती करने वाले किसानों को 93.9% तक की सब्सिडी प्रदान की, जो विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के तहत निर्धारित 10% की सीमा का उल्लंघन है।

कृषि सब्सिडी को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण से बदलने के क्या लाभ और सीमाएँ हैं?

लाभ

सीमाएँ

बेहतर लक्षित वितरण: यह सुनिश्चित करता है कि सब्सिडी केवल पात्र किसानों तक पहुँचे, जिससे धन की बर्बादी और कार्यक्षमता में कमी आती है।

बहिष्कार का जोखिम: सही दस्तावेज़ न रखने वाले छोटे या सीमांत किसान बाहर रह सकते हैं।

पारदर्शिता में वृद्धि: प्रत्यक्ष भुगतान मध्यस्थों की भूमिका को कम करता है, जिससे भ्रष्टाचार और गलत आवंटन घटता है।

डिजिटल विभाजन: बैंकिंग और डिजिटल अवसंरचना पर निर्भरता दूर-दराज़ के या बिना बैंक खाता वाले किसानों के लिये नुकसानदेह हो सकती है।

किसानों की स्वायत्तता को बढ़ावा: किसानों के पास धन का उपयोग कैसे करें, यह तय करने की स्वतंत्रता होती है, जिससे विविधीकृत निवेश को प्रोत्साहन मिलता है।

धन का दुरुपयोग: हस्तांतरण राशि को गैर-कृषि आवश्यकताओं पर खर्च किया जा सकता है, जिससे उत्पादनशीलता पर लक्षित प्रभाव कम हो जाता है।

बाज़ार विकृति में कमी: सब्सिडी को भौतिक इनपुट से अलग करके उर्वरक और बिजली जैसे इनपुट्स के अधिक उपयोग या दुरुपयोग से बचाव होता है।

मूल्य अस्थिरता का जोखिम: इनपुट सब्सिडी के बिना, किसानों को मूल्य वृद्धि के दौरान उच्च लागत का सामना करना पड़ सकता है, जिससे उनकी भेद्यता बढ़ जाती है।

प्रशासनिक दक्षता: बड़े इनपुट सब्सिडी कार्यक्रमों के प्रबंधन की लागत और जटिलता को कम करती है।

कार्यान्वयन की चुनौतियाँ: प्रभावी लाभार्थी पहचान, शिकायत निवारण और निगरानी प्रणालियों की आवश्यकता होती है।

भारत अपनी कृषि सब्सिडी प्रणाली में सुधार कैसे कर सकता है?

  • जियो-टैगिंग के साथ लक्षित प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT): सब्सिडी आवंटन को चरणबद्ध तरीके से परियोजना मोड और पैमाने में जियो-टैगिंग और किसान पहचान प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके सटीक-लक्षित DBT के साथ इनपुट सब्सिडी को संतुलित करना चाहिये
    • इससे धन की बर्बादी में कमी आएगी, छोटे किसानों को सहायता मिलेगी, वित्तीय समावेशन बढ़ेगा और संसाधनों का कुशल उपयोग होगा, साथ ही यह शांता कुमार समिति (2014) की सिफारिशों को आगे बढ़ाएगा, जिसमें अनाज-आधारित वितरण से नकद हस्तांतरण (कैश ट्रांसफर) की ओर बढ़ने पर ज़ोर दिया गया था।
  • बाज़ार-उत्तरदायी MSP सुधार: इनपुट लागत, मांग-आपूर्ति और क्षेत्रीय कीमतों पर वास्तविक समय के डेटा का उपयोग करके MSP को एक गतिशील, बाज़ार-उत्तरदायी प्रणाली में सुधार किया जाना चाहिये। वर्ष 2020 के कृषि विरोध जैसे मुद्दों को रोकने के लिये मूल्य निर्धारण पद्धति को प्रकाशित करके तथा किसानों एवं विशेषज्ञों को शामिल करके पारदर्शिता सुनिश्चित की जानी चाहिये।
  • हरित सब्सिडी परिवर्तन: सतत् कृषि को बढ़ावा देने के लिये, विदयुत और उर्वरक सब्सिडी को पानी की बचत करने वाली प्रौद्योगिकियों (जैसे- ड्रिप और माइक्रो-सिंचाई प्रणालियों) को  अपनाने से सीधे जोड़ा जाए। इसे 'पर ड्रॉप मोर क्रॉप' (PDMC) जैसी योजनाओं के तहत लागू किया जाना चाहिये।
    • जल-गहन फसलों के लिये दी जाने वाली सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना और विविधीकरण को प्रोत्साहित करना, जिससे कृषि जैवविविधता बढ़े, भूजल संरक्षण हो तथा क्षेत्रीय कृषि जलवायु के अनुकूल समर्थन मिले।
  • फसल कटाई के बाद की अवसंरचना: फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने और किसानों की आय बढ़ाने के लिये कृषि यंत्रीकरण तथा अवसंरचना कोष (AMIF) की सब्सिडी बढ़ाई जाए, साथ ही खेतों के निकट कृषि प्रसंस्करण इकाइयों को प्रोत्साहित किया जाए ताकि मूल्य संवर्द्धन को बढ़ावा मिल सके।
    • स्थानीयकृत बुनियादी ढाँचा उच्च बाज़ार मूल्य प्राप्त करके, दूरस्थ बाज़ारों पर निर्भरता कम करके और कृषि आपूर्ति शृंखलाओं को सुदृढ़ करके किसानों की आय को बढ़ाता है।
  • विश्व व्यापार संगठन के अनुरूप सब्सिडी सुधार: कृषि अनुसंधान एवं विकास, विस्तार सेवाओं, ग्रामीण बुनियादी ढाँचे और क्षमता निर्माण जैसे गैर-व्यापार-विकृतिकारी क्षेत्रों में विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुरूप सब्सिडी को स्थानांतरित करना, जबकि छोटे किसानों की रक्षा एवं निर्यात को बढ़ावा देने हेतु विकासशील देशों के लिये उच्च सब्सिडी सीमा का समर्थन करना।
    • इसके अतिरिक्त, ईंधन, खाद्य और उर्वरकों पर सब्सिडी कम करने को लेकर समिति (वर्ष 2012) के सुझाव को अपनाना अत्यधिक सार्वजनिक व्यय पर अंकुश लगाने के लिये आवश्यक है

निष्कर्ष

भारत की कृषि सब्सिडी हालाँकि लाभकारी है, लेकिन किसानों के कल्याण और वित्तीय तथा पर्यावरणीय स्थिरता के बीच संतुलन बनाने के लिये तत्काल सुधार की आवश्यकता हैप्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण, MSP को तर्कसंगत बनाना, स्थायी कृषि को बढ़ावा देना और फसल कटाई के बाद के बुनियादी ढाँचे में निवेश करने से दक्षता में वृद्धि हो सकती है तथा विकृतियों में कमी आ सकती है। विश्व व्यापार संगठन के अनुरूप नीतियाँ और फसल विविधीकरण दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा , किसानों की समृद्धि पारिस्थितिक संतुलन सुनिश्चित करेगा

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न: भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में कृषि सब्सिडी की भूमिका का परीक्षण कीजिये। क्या सब्सिडी को उनके वर्तमान स्वरूप में जारी रखा जाना चाहिये?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में रासायनिक उर्वरकों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये-

  1. वर्तमान में रासायनिक उर्वरकों का खुदरा मूल्य बाज़ार-संचालित है और यह सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं है।
  2.   अमोनिया जो यूरिया बनाने में काम आता है, वह प्राकृतिक गैस से उत्पन्न होता है।
  3.   सल्फर, जो फॉस्फोरिक अम्ल उर्वरक के लिये कच्चा माल है, वह तेल शोधन कारखानों का उपोत्पाद है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 2
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न 1. सहायिकियाँ सस्यन प्रतिरूप, सस्य विविधता और कृषकों की आर्थिक स्थिति को किस प्रकार प्रभावित करती हैं? लघु और सीमांत कृषकों के लिये, फसल बीमा, न्यूनतम समर्थन मूल्य तथा खाद्य प्रसंस्करण का क्या महत्त्व है? (2017)

प्रश्न 2. प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डी.बी.टी.) के द्वारा कीमत सहायिकी का प्रतिस्थापन भारत में सहायिकियों के परिदृश्य का किस प्रकार परिवर्तन कर सकता है? चर्चा कीजिये। (2015)

प्रश्न 3. राष्ट्रीय व राजकीय स्तर पर कृषकों को दी जाने वाली विभिन्न प्रकार की आर्थिक सहायताएँ कौन-कौन सी हैं? कृषि आर्थिक सहायता व्यवस्था का उसके द्वारा उत्पन्न विकृतियों के संदर्भ में आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (2013)

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