जैव विविधता और पर्यावरण
भारत के जलवायु लक्ष्यों पर प्रगति
- 26 Jul 2025
- 78 min read
प्रिलिम्स के लिये: पेरिस समझौता 2015, कार्बन सिंक, मोनोकल्चर, जलवायु वित्त, लिथियम-आयन, सोडियम-आयन, हरित हाइड्रोजन, कृषि वानिकी, मियावाकी वन। मेन्स के लिये: जलवायु लक्ष्यों पर भारत की प्रगति और उससे जुड़ी चुनौतियाँ। जलवायु लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिये आवश्यक कदम। |
चर्चा में क्यों?
- भारत ने पेरिस समझौता 2015 के तहत अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं पर उल्लेखनीय प्रगति की है। देश ने अपने प्रमुख लक्ष्यों में से एक को पाँच वर्ष पहले ही हासिल कर लिया है, और अन्य दो लक्ष्यों की प्राप्ति के भी बहुत करीब पहुँच चुका है।
नोट: पेरिस समझौता (2015), जिसे COP21 में अपनाया गया था, का उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को 2°C से काफी नीचे और संभावित रूप से 1.5°C तक सीमित करना है। COP26 (ग्लासगो, 2021) इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ, जहाँ राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) की समीक्षा तथा उन्हें और अधिक सशक्त बनाने पर ज़ोर दिया गया, जिससे पेरिस समझौते के प्रभावी क्रियान्वयन को मज़बूती मिली। |
भारत की जलवायु प्रतिबद्धताओं की स्थिति क्या है?
- गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता: भारत ने अपने गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता से संबंधित लक्ष्य को पाँच वर्ष पहले, यानी वर्ष 2024 में ही प्राप्त कर लिया था, जबकि यह लक्ष्य वर्ष 2030 तक निर्धारित किया गया था। वर्ष 2024 तक भारत की कुल स्थापित विद्युत क्षमता 484.82 गीगावाट (GW) थी, जिसमें से लगभग 242.78 GW (लगभग 50%) क्षमता गैर-जीवाश्म स्रोतों (सौर, पवन, जलविद्युत और परमाणु ऊर्जा) से प्राप्त हो रही है।
- कार्बन सिंक: भारत ने वन और वृक्ष आच्छादन (Tree Cover) के माध्यम से अतिरिक्त 2.5 से 3 अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड के समतुल्य कार्बन सिंक (Carbon Sink) बनाने का संकल्प लिया है।
- वर्ष 2021 तक भारत 2.29 अरब टन कार्बन सिंक पहले ही प्राप्त कर चुका था। वर्ष 2017 से 2021 के बीच लगभग 15 करोड़ (150 मिलियन) टन प्रति वर्ष की दर से बढ़ोतरी दर्ज की गई। इस प्रवृत्ति को देखते हुए वर्ष 2023 तक भारत का कुल कार्बन सिंक संभावित रूप से 2.5 अरब टन को पार कर गया होगा।
- उत्सर्जन की तीव्रता: भारत ने 2030 तक 2005 के स्तर की तुलना में अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की उत्सर्जन तीव्रता को 45% तक कम करने का संकल्प लिया है। इस लक्ष्य की दिशा में भारत ने उल्लेखनीय प्रगति की है और वर्ष 2020 तक 36% की कमी हासिल कर ली गई थी।
- हाल के सीमित आँकड़ों के बावजूद, वर्तमान रुझान बताते हैं कि भारत इस लक्ष्य को आसानी से प्राप्त करने या उससे अधिक प्राप्त करने की राह पर है।
जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु भारत की पहल |
भारत के जलवायु लक्ष्यों से जुड़ी चिंताएँ क्या हैं?
- क्षमता बनाम उत्पादन अंतर: भारत ने वर्ष 2024 में 50% गैर-जीवाश्म स्थापित क्षमता हासिल कर ली है, लेकिन कुल विद्युत उत्पादन का केवल 28% ही गैर-जीवाश्म स्रोतों से आता है।
- साथ ही, भारत की कुल ऊर्जा खपत में स्वच्छ ऊर्जा की हिस्सेदारी केवल लगभग 6% है, क्योंकि उद्योग, परिवहन और घरेलू क्षेत्रों में अभी भी मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधनों का उपयोग हो रहा है।
- सौर ऊर्जा पर भारी निर्भरता: वर्ष 2024 में भारत ने 30 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा स्थापित कर एक रिकॉर्ड बनाया, जिसमें लगभग 24 गीगावाट केवल सौर ऊर्जा से आया।
- हालाँकि, पवन, जल और परमाणु ऊर्जा क्षेत्रों की वृद्धि अभी भी धीमी है, जिसका मुख्य कारण भूमि अधिग्रहण की समस्याएँ, नीतिगत देरी एवं वित्तीय बाधाएँ हैं, जबकि चीन पिछले दो वर्षों में नवीकरणीय ऊर्जा को भारत की तुलना में दस गुना तेज़ी से बढ़ा रहा है।
- भारत की परमाणु क्षमता के वर्ष 2047 तक 100 गीगावाट के लक्ष्य के मुकाबले वर्ष 2030 तक केवल 17 गीगावाट तक पहुँचने की संभावना है (केंद्रीय बजट 2025–26 के अनुसार)।
- कार्बन सिंक पर स्थिरता से जुड़ी चिंताएँ: प्राकृतिक वनों बनाम एकल कृषि वृक्षारोपण (मोनोकल्चर प्लांटेशन) की भागीदारी, उनके पारिस्थितिक प्रभाव और शहरीकरण व भूमि उपयोग के दबावों के बीच प्राप्त उपलब्धियों को बनाए रखने को लेकर चिंताएँ बनी हुई हैं।
- उत्सर्जन तीव्रता में कमी: वर्ष 2020 के बाद विश्वसनीय उत्सर्जन डेटा की कमी के कारण प्रगति की निगरानी करना और नीतियों को समय पर समायोजित करना कठिन हो गया है।
- हालाँकि भारत उत्सर्जन तीव्रता लक्ष्य हासिल करने की दिशा में अग्रसर है, लेकिन प्रमुख क्षेत्रों में जीवाश्म ईंधनों पर जारी निर्भरता के चलते कुल उत्सर्जन में वृद्धि हो सकती है, विशेषकर तब जब स्टील, सीमेंट जैसे हार्ड-टू-अबैट उद्योगों के लिये कोई स्पष्ट रोडमैप उपलब्ध नहीं है।
- जलवायु वित्त में कमी: भारत ने बार-बार विकसित देशों द्वारा पेरिस समझौते की प्रतिबद्धताओं के बावजूद जलवायु वित्त और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में कमी की ओर ध्यान दिलाया है।
- कई समृद्ध देश न तो उत्सर्जन में कटौती के अपने लक्ष्यों को पूरा कर पाए हैं और न ही प्रतिवर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर की जलवायु वित्त सहायता देने के अपने वादे को पूरा किया है।
भारत के जलवायु लक्ष्य को आगे बढ़ाने के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
- क्षमता-उत्पादन अंतर को कम करना: भारत को सौर और पवन ऊर्जा की अनियमितता को संभालने के लिये लिथियम-आयन तथा सोडियम-आयन जैसी बैटरी भंडारण तकनीकों को बड़े पैमाने पर अपनाना होगा।
- इसके साथ ही, पारेषण नेटवर्क को आधुनिक बनाना और डिमांड-रिस्पॉन्स सिस्टम के साथ स्मार्ट ग्रिड की स्थापना करना आवश्यक है ताकि नवीकरणीय ऊर्जा का कुशल एकीकरण तथा आपूर्ति-मांग संतुलन सुनिश्चित किया जा सके।
- सौर ऊर्जा में विविधता लाना: भारत को भूमि अधिग्रहण एवं पर्यावरणीय स्वीकृति से संबंधित बाधाओं को कम करके पवन और जल विद्युत परियोजनाओं को तेज़ी से आगे बढ़ाना चाहिये तथा बेहतर वित्तपोषण व सामुदायिक समर्थन के माध्यम से रुकी हुई जल विद्युत परियोजनाओं को पुनर्जीवित करना चाहिये।
- इसके अलावा भारत को परमाणु ऊर्जा को बढ़ावा देना चाहिये और लक्षित सब्सिडी के तहत ऑफशोर विंड तथा ग्रीन हाइड्रोजन क्षेत्रों को प्रोत्साहित करना चाहिये।
- सतत् कार्बन सिंक वृद्धि: निर्वनीकरण और वनीकरण की निगरानी के लिये भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) और रिमोट सेंसिंग जैसी सैटेलाइट तकनीकों का उपयोग करना तथा बेहतर कार्बन पृथक्करण के लिये एकल प्रजातियों की बजाय मिश्रित देशी प्रजातियों को बढ़ावा देना।
- कृषि वानिकी और शहरी हरित आवरण (जैसे मियावाकी वन) का विस्तार करना और अवैध खनन तथा वन अतिक्रमण पर कड़ी सज़ा लागू करना।
- जलवायु वित्त की सुनिश्चितता: भारत को विकसित देशों से यह आग्रह करना चाहिये कि वे UNFCCC COP29- बाकू में हुए समझौते के अनुसार 2035 तक प्रति वर्ष 300 अरब अमेरिकी डॉलर की जलवायु वित्तीय सहायता विकासशील देशों को प्रदान करने की अपनी प्रतिबद्धता पूरी करें। साथ ही भारत को यह भी जोर देना चाहिये कि स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं के लिये ऋण की तुलना में अनुदान (ग्रांट) को प्राथमिकता दी जाए।
- भारत को प्रोत्साहनों के माध्यम से निजी और विदेशी निवेश को आकर्षित करना चाहिये साथ ही स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास (R&D) और अंतरराष्ट्रीय तकनीकी सहयोग को भी बढ़ावा देना चाहिए ताकि स्वच्छ तकनीकों का विकास तेज़ी से हो सके।
निष्कर्ष
भारत ने अपने जलवायु लक्ष्यों के प्रति महत्त्वपूर्ण प्रगति की है और कई महत्त्वपूर्ण मील के पत्थर निर्धारित समय से पहले ही प्राप्त कर लिये हैं। फिर भी ऊर्जा उत्पादन में संरचनात्मक समस्याएँ, विभिन्न क्षेत्रों से उत्सर्जन, वित्तीय बाधाएँ तथा वन स्थिरता से जुड़ी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। इन समस्याओं से निपटने के लिये प्रभावी नीतिगत कार्रवाई, पर्याप्त वित्तीय सहायता एवं तकनीकी नवाचार आवश्यक होंगे, ताकि दीर्घकालिक जलवायु समुत्थानशीलता व समान ऊर्जा संक्रमण सुनिश्चित किया जा सके।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: भारत ने अपने गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता लक्ष्य को समय से पहले प्राप्त कर लिया है। लेकिन पूर्ण ऊर्जा संक्रमण (Energy Transition) की दिशा में अब भी कई महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ बनी हुई हैं। इनका समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रिलिम्सप्रश्न. जलवायु-अनुकूल कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये :
उपर्युक्त में से कौन-से कथन सही हैं? (a) केवल 1 और 2 (b) केवल 2 और 3 (c) केवल 1 और 3 (d) 1, 2 और 3 उत्तर: (d) प्रश्न. 'भूमंडलीय जलवायु परिवर्तन संधि (ग्लोबल क्लाइमेट चेंज एलायंस)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये : (a) केवल 1 और 2 (b) केवल 3 (c) केवल 2 और 3 (d) 1, 2 और 3 उत्तर: (a) मेन्सप्रश्न 1. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (यू.एन.एफ.सी.सी.सी.) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं ? (2021) प्रश्न.2 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। भारत जलवायु परिवर्तन से किस प्रकार प्रभावित होगा? जलवायु परिवर्तन के द्वारा भारत के हिमालयी और समुद्रतटीय राज्य किस प्रकार प्रभावित होंगे ? (2017) |