जैव विविधता और पर्यावरण
वैश्विक प्लास्टिक संधि में न्यायोचित परिवर्तन
- 18 Jul 2025
- 17 min read
प्रिलिम्स के लिये:अंतर-सरकारी वार्ता समिति, इंडिया प्लास्टिक पैक्ट, प्रोजेक्ट रिप्लान, गोलिटर भागीदारी परियोजना मेन्स के लिये:न्यायोचित परिवर्तन, पर्यावरणीय शासन और बहुपक्षीय समझौते, समावेशी विकास और कमज़ोर वर्ग |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (UNEA) के प्रस्ताव 5/14 (मार्च 2022) के तहत शुरू हुई वैश्विक प्लास्टिक संधि के लिये वार्ताओं ने यह आवश्यकता उजागर की है कि प्लास्टिक प्रदूषण समाप्त करने के प्रयास न केवल पर्यावरणीय रूप से सतत् हों, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी न्यायोचित परिवर्तन (Just Transition) हों।
- बुसान (2024) में आयोजित प्लास्टिक प्रदूषण पर अंतर-सरकारी वार्ता समिति (INC-5.1) के 5वें सत्र के पहले भाग में अनौपचारिक अपशिष्ट श्रमिको और अन्य कमजोर समुदायों के लिये मज़बूत कानूनी मान्यता और सुरक्षा की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
नोट: संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (UNEA) प्रस्ताव 5/14 के तहत स्थापित INC का कार्य प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिये एक कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि तैयार करना है, जो प्लास्टिक के पूरे जीवन चक्र को कवर करे।
- INC-1 उरुग्वे (2022) में आयोजित किया गया, INC-2 पेरिस (2023) में, INC-3 नैरोबी (2023) में, INC-4 ओटावा (2024) में, और INC-5.1 बुसान (2024) में हुआ। INC-5.2 जिनेवा में अगस्त 2025 के लिये निर्धारित है।
वैश्विक प्लास्टिक संधि में 'न्यायोचित परिवर्तन' को शामिल करना क्यों महत्त्वपूर्ण है?
- निष्पक्षता और समावेशिता सुनिश्चित करना: न्यायोचित संक्रमण यह सुनिश्चित करता है कि निम्न-कार्बन, सतत् अर्थव्यवस्थाओं की ओर बदलाव में न्याय और समावेशन बना रहे, जिससे श्रमिकों और कमज़ोर समुदायों की सुरक्षा हो। यह न केवल मौजूदा अन्यायों को ठीक करने का प्रयास करता है, बल्कि नए अन्याय उत्पन्न होने से भी रोकता है।
- यह विशेष रूप से अनौपचारिक अपशिष्ट श्रमिकों के लिये हरित रोजगार, पुनःप्रशिक्षण और सामाजिक सुरक्षा को बढ़ावा देता है।
- प्लास्टिक-रहित अर्थव्यवस्था की ओर परिवर्तन में श्रमिकों की सुरक्षा: मूल्य शृंखला में कार्य करने वाले श्रमिक (उत्पादन से लेकर निपटान तक) ऐसे जोखिम में होते हैं कि प्लास्टिक प्रतिबंधित करने और सतत् विकल्पों को बढ़ावा देने के दौरान वे आर्थिक रूप से बेदखल या बहिष्कृत हो सकते हैं।
- अनौपचारिक कचरा बीनने वाले प्लास्टिक पुनर्चक्रण में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं (विकासशील देशों में शहरी अपशिष्ट की पुनर्प्राप्ति का अक्सर 50% से अधिक), फिर भी उन्हें मान्यता और कानूनी सुरक्षा नहीं मिलती है।
- न्यायोचित परिवर्तन पर मसौदा संधि में कमियाँ: वैश्विक प्लास्टिक संधि के मसौदे में कचरा बीनने वालों के योगदान को मान्यता दी गई है, लेकिन इसमें बाध्यकारी सुरक्षा का अभाव है।
- यह गैर-औपचारिक क्षेत्रों में उनके भूमिकाओं को परिभाषित करने में असफल रहता है, और संधि के अनुच्छेद 8 और 9 केवल समावेशन को प्रोत्साहित करते हैं लेकिन दायित्व निर्धारित नहीं करते, जिससे अनौपचारिक श्रमिकों को भागीदारी से बाहर रखा जाता है। अनुच्छेद 11 न्यायोचित परिवर्तन कार्यक्रमों के लिये वित्तीय समर्थन की कमी है।
- 'न्यायसंगत संक्रमण' यह सुनिश्चित करता है कि कचरा बीनने वालों को स्थिरता की दिशा में बदलाव में हाशिए पर न रखा जाए। बिना बाध्यकारी सुरक्षा के, वे आर्थिक रूप से विस्थापित होने का जोखिम उठाते हैं। उनकी समावेशन, सामाजिक सुरक्षा और हरित रोजगार के लिए पुनःप्रशिक्षण हेतु एक स्पष्ट ढाँचा आवश्यक है।
वैश्विक प्लास्टिक संधि में न्यायोचित परिवर्तन पर देशों का रुख क्या है?
- भारत: यह न्यायोचित परिवर्तन प्रावधानों से सहमत है, लेकिन इस बात पर बल देता है कि कार्यान्वयन राष्ट्रीय विनियमों और स्थानीय संदर्भों के अनुरूप होना चाहिये।
- बुसान में आयोजित INC-5.1 में, भारत ने वैश्विक प्लास्टिक संधि के लिये एक स्पष्ट दायरे का आह्वान किया। इसने बेसल, रॉटरडैम और स्टॉकहोम सम्मेलनों या विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे मौजूदा समझौतों के साथ ओवरलैप से बचने का आग्रह किया।
- भारत ने इस बात पर भी जोर दिया कि संधि को रियो घोषणा (1992) के सिद्धांतों, विशेष रूप से समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्त्वों, राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और विकासशील देशों के लिये विकास के अधिकार का पालन करना चाहिये।
- यूरोपीय संघ (EU): सुरक्षित कार्य स्थितियों और अनौपचारिक श्रमिकों की कानूनी मान्यता का समर्थन करता है, तथा प्लास्टिक जीवनचक्र में उचित स्थितियों पर जोर देता है।
- प्रशांत लघु द्वीप विकासशील राज्य (PSIDS): यह पर्यावरणीय क्षरण के प्रति उनकी संवेदनशीलता को स्वीकार करते हुए, न्यायोचित परिवर्तन प्रक्रिया में आदिवासी लोगों और स्थानीय समुदायों को शामिल करने का प्रस्ताव करता है।
- अमेरिकी और अफ्रीकी समूह: दोनों ही मौजूदा प्रावधानों का समर्थन करते हैं, विशेष रूप से बच्चों, युवाओं और कचरा बीनने वालों की भागीदारी पर ज़ोर देते हैं। अफ्रीकी समूह को अनौपचारिक श्रमिकों की कानूनी मान्यता को लेकर आपत्तियाँ हैं।
- ईरान: वित्तपोषण, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण एवं क्षमता निर्माण की मांग करता है, लेकिन 'सुभेद्य वर्गों' और 'श्रमिकों' जैसे शब्दों से असहमति जताता है तथा अपशिष्ट प्रबंधन सहकारी समितियों की कानूनी मान्यता का विरोध करता है।
वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण
- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature) के अनुसार, प्रतिवर्ष 460 मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन होता है, जिसमें से 20 मिलियन टन पर्यावरण में प्रवेश कर जाता है, जिससे पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता और जलवायु को खतरा होता है।
- वर्ष 2019 में, पर्यावरण में लीक होने वाले 20 मिलियन टन प्लास्टिक में से 88% हिस्सा मैक्रो-प्लास्टिक (बड़े आकार का प्लास्टिक) का था, जो मुख्य रूप से थैलों, बोतलों और कपों जैसे एकल-प्रयोग वाले उत्पादों से आया था।
भारत में प्लास्टिक प्रदूषण
- प्लास्टिक प्रदूषण: संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के अनुसार, भारत प्रतिवर्ष 9.46 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पन्न करता है, जिसमें से 40% एकत्र नहीं हो पाता और यह नदियों, सड़कों को प्रदूषित करता है तथा राष्ट्रीय उत्सर्जन में 4% योगदान देता है।
- तेज़ी से होता शहरीकरण और प्लास्टिक पैकेजिंग की बढ़ती मांग इस समस्या को और गंभीर बना रहे हैं। ई-कॉमर्स के विस्तार के कारण गैर-पुनर्चक्रणीय प्लास्टिक अपशिष्ट में वृद्धि हुई है।
- अपशिष्ट प्रबंधन अवसंरचना कमज़ोर है, जहाँ स्वच्छ लैंडफिल की तुलना में अनियंत्रित डंपिंग साइट्स अधिक हैं। खुले में अपशिष्ट दहन व्यापक रूप से प्रचलित है, जिससे विषैली गैसों का उत्सर्जन होता है और स्वास्थ्य को गंभीर खतरे होते हैं। विस्तारित उत्पादक ज़िम्मेदारी (EPR) प्रणाली को प्रभावी रूप से लागू नहीं किया गया है।
- FICCI के अनुसार, भारत को वर्ष 2030 तक प्लास्टिक पैकेजिंग अपशिष्ट से होने वाली सामग्रीगत मूल्य की हानि लगभग 33 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक हो सकती है।
- भारत की प्लास्टिक पर रोकथाम हेतु पहल:
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2024: स्थानीय निकायों द्वारा वार्षिक अपशिष्ट आकलन को अनिवार्य बनाकर, एक केंद्रीकृत पंजीकरण पोर्टल शुरू करके और बेहतर निगरानी के लिये ऑनलाइन रिपोर्टिंग की आवश्यकता के माध्यम से प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन को मज़बूत करना।
- इंडिया प्लास्टिक्स पैक्ट: यह समयबद्ध लक्ष्यों, नवाचार और जवाबदेही के माध्यम से प्लास्टिक उपयोग को कम करने हेतु हितधारकों को एकजुट करता है। यह वैश्विक परिपथीय (सर्कुलर) अर्थव्यवस्था सिद्धांतों के अनुरूप है।
- प्रोजेक्ट रिप्लान (REducing PLAstic from Nature): खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग द्वारा आरंभ की गई यह पहल प्लास्टिक अपशिष्ट को हस्तनिर्मित कागज़ निर्माण में समाहित करके प्लास्टिक अपशिष्ट को कम करने पर केंद्रित है।
- अन-प्लास्टिक कलेक्टिव (Un-Plastic Collective): UNEP-India, CII और WWF-India द्वारा शुरू की गई एक स्वैच्छिक पहल है, जिसके अंतर्गत कंपनियाँ प्लास्टिक को हटाने, पुनः उपयोग करने और प्रतिस्थापित करने हेतु समयबद्ध कार्यों के लिये प्रतिबद्ध होती हैं, जो सर्कुलर इकोनॉमी दृष्टिकोण पर आधारित है।
वैश्विक प्लास्टिक संधि में न्यायोचित परिवर्तन को लागू करने का रोडमैप क्या होना चाहिये?
- बाध्यकारी प्रावधान: न्यायोचित परिवर्तन से संबंधित प्रमुख प्रावधानों को स्वैच्छिक के बजाय कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाया जाना चाहिये, ताकि जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके।
- वैश्विक प्लास्टिक संधि के अंतर्गत श्रमिकों के अधिकारों का सुदृढ़ प्रवर्तन और संरक्षण सुनिश्चित करने के लिये न्यायोचित परिवर्तन (Just Transition) अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) सम्मेलनों, राष्ट्रीय श्रम कानूनों और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार ढाँचों का संदर्भ देता है।
- परिभाषात्मक स्पष्टता और समावेशन: परिभाषाओं में अनौपचारिक अपशिष्ट श्रमिकों, विशेष रूप से रैगपिकर्स (अपशिष्ट बीनने वाले) को स्पष्ट रूप से महत्त्वपूर्ण हितधारक के रूप में मान्यता दी जानी चाहिये, जो प्लास्टिक की पुनर्प्राप्ति और प्रबंधन में अहम भूमिका निभाते हैं।
- इन श्रमिकों की कानूनी मान्यता यह सुनिश्चित करेगी कि उन्हें राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय नीति ढाँचे में एकीकृत किया जाए और उन्हें उचित सुरक्षा प्रदान की जाए।
- संस्थागत तंत्र: न्यायसंगत परिवर्तन को लागू करने के लिये एक वैश्विक न्यायसंगत परिवर्तन कोष (Just Transition Fund) की स्थापना की जानी चाहिये, जो सुभेद्य श्रमिकों को समर्थन प्रदान करे और हरित बुनियादी ढाँचेको बढ़ावा दे।
- यह समर्पित कोष श्रमिकों को पुनः प्रशिक्षित करने, उन्हें औपचारिक अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली में एकीकृत करने, सर्कुलर इकोनॉमी के प्रयासों को सशक्त करने और प्लास्टिक के चरणबद्ध उन्मूलन (Phase-out) के दौरान बढ़ती असमानता या रोज़गार हानि को रोकने में प्रभावी भूमिका निभा सकता है।
- न्यायसंगत परिवर्तन को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और क्षमता निर्माण से जोड़ना: स्वच्छ प्लास्टिक प्रबंधन प्रौद्योगिकियों तक पहुँच के साथ-साथ प्रभावित श्रमिकों के लिये पर्याप्त सुरक्षा उपाय भी सुनिश्चित किये जाने चाहिये। इससे यह सुनिश्चित होता है कि हरित विकल्पों की ओर संक्रमण के दौरान ये श्रमिक हाशिये पर न जाएँ या बेरोज़गार न हो जाएँ।
- दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा देना चाहिये, विशेष रूप से कम लागत वाली, विकेंद्रीकृत रीसाइक्लिंग तकनीकों के विकास में। साथ ही, अनौपचारिक श्रमिकों को औपचारिक अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली में एकीकृत करने हेतु क्षमता निर्माण कार्यक्रमों को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. वैश्विक प्लास्टिक संधि में 'न्यायसंगत परिवर्तन' को शामिल करने के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। यह पर्यावरणीय और सामाजिक असमानताओं को कैसे दूर कर सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से युग्म सही सुमेलित है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से किसमें एक महत्त्वपूर्ण विशेषता के रूप में 'विस्तारित उत्पादक दायित्व' आरंभ किया गया था? (2019) (a) जैव चिकित्सा अपशिष्ट (प्रबंधन और हस्तन) नियम, 1998 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न: निरंतर उत्पन्न किये जा रहे फेंके गए ठोस कचरे की विशाल मात्राओं का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे ज़हरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं? (2018) |