इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत का पहला बायोटेक स्टार्टअप एक्सपो 2022

  • 10 Jun 2022
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का पहला बायोटेक स्टार्टअप एक्सपो 2022, बायोटेक्नोलॉजी। 

मेन्स के लिये:

बायोटेक क्षेत्र और इससे संबद्ध चुनौतियाँ। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में प्रधानमंत्री ने ‘बायोटेक स्टार्टअप एक्सपो 2022’ का उद्घाटन किया। 

  • यह देश में बायोटेक क्षेत्र के व्यापक विकास का प्रतिबिंब है। 

प्रमुख बिंदु: 

  • परिचय: 
    • बायोटेक स्टार्टअप एक्सपो 2022 निवेशकों, उद्यमियों, वैज्ञानिकों, शोधकर्त्ताओं, उद्योग जगत के नेतृत्त्वकर्त्ताओं, निर्माताओं, जैव-इनक्यूबेटरों, नियामकों और सरकारी अधिकारियों को जोड़ने के लिये एक साझा मंच प्रदान करेगा। 
    • एक्सपो का आयोजन जैव प्रौद्योगिकी विभाग और जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (BIRAC) द्वारा BIRAC की स्थापना के 10 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में किया जा रहा है 
    • यह स्वास्थ्य, कृषि, जीनोमिक्स, स्वच्छ ऊर्जा, बायोफार्मा, औद्योगिक जैव प्रौद्योगिकी और अपशिष्ट-से-मूल्य (Waste-to-Wealth) सहित विभिन्न क्षेत्रों में जैव प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोगों को प्रदर्शित करेगा। 
  • थीम: 'बायोटेक स्टार्टअप इनोवेशन: टुवर्ड्स आत्मनिर्भर भारत'। 

जैव प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग: 

  • जैव प्रौद्योगिकी वह तकनीक है जो विभिन्न उत्पादों को विकसित करने या बनाने के लिये जैविक प्रणालियों, जीवित जीवों या इसके कुछ हिस्सों का उपयोग करती है। 
  • ब्रूइंग और बेकिंग ब्रेड उन प्रक्रियाओं के उदाहरण हैं जो जैव प्रौद्योगिकी (वांछित उत्पाद का उत्पादन करने के लिये खमीर (जीवित जीव) का उपयोग) की अवधारणा के अंतर्गत आते हैं। 
    • इस तरह की पारंपरिक प्रक्रियाएँ आमतौर पर जीवित जीवों को उनके प्राकृतिक रूप (या प्रजनन द्वारा विकसित) में उपयोग करती हैं, जबकि जैव प्रौद्योगिकी के अधिक आधुनिक रूप में आमतौर पर जैविक प्रणाली या जीव का अधिक उन्नत संशोधन शामिल होगा। 
  • जैव प्रौद्योगिकी आनुवंशिक रूप से संशोधित रोगाणुओं, कवक, पौधों और जानवरों का उपयोग करके बायोफार्मास्यूटिकल और जैविक औद्योगिक पैमाने पर उत्पादन से संबंधित है। 
  • जैव प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोगों में चिकित्सा विज्ञान, निदान, कृषि के लिये आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें, प्रसंस्कृत भोजन, जैव उपचार, अपशिष्ट उपचार और ऊर्जा उत्पादन शामिल हैं। 

जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र की स्थिति: 

  • परिचय: 
    • भारत विश्व स्तर पर जैव प्रौद्योगिकी के शीर्ष 12 गंतव्यों में से एक है और एशिया प्रशांत क्षेत्र में तीसरा सबसे बड़ा जैव प्रौद्योगिकी गंतव्य है। 
    • भारत पुनः संयोजक हेपेटाइटिस बी वैक्सीन का दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और बीटी कपास (आनुवंशिक रूप से संशोधित कीट प्रतिरोधी पौधा कपास) का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। 
      • भारत के बायोटेक क्षेत्र को जैव-चिकित्सा जैव-औद्योगिक, जैव कृषि, जैव सूचना प्रौद्योगिकी और जैव सेवाओं में वर्गीकृत किया गया है। 
    • जैव-सेवाओं के भीतर भारत अनुबंध निर्माण, अनुसंधान और नैदानिक परीक्षणों में एक मज़बूत क्षमता प्रदान करता है तथा अमेरिका के बाहर विश्व स्तर पर अमेरिका के खाद्य एवं औषधि प्रशासन द्वारा अनुमोदित अधिकांश संयंत्रों का घर है। 
  • आँकड़े: 
    • भारतीय जैव अर्थव्यवस्था वर्ष 2019 में 62.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2020 में 70.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई, जो 12.3% की वृद्धि दर को दर्शाती है। 
    • भारतीय जैव प्रौद्योगिकी उद्योग, जो वर्ष 2019 में 63 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, के वर्ष 2025 तक 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है, यह 16.4% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) को दर्शाता है। 
      • वर्ष 2025 तक वैश्विक जैव प्रौद्योगिकी बाज़ार में भारतीय जैव प्रौद्योगिकी उद्योग का योगदान 19% तक बढ़ने की उम्मीद है। 
    • वर्ष 2021 तक भारत का जैव प्रौद्योगिकी उद्योग का वार्षिक राजस्व में लगभग 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान था। 
  • जैव प्रौद्योगिकी की क्षमता: 
    • बहुआयामी डोमेन: जैव प्रौद्योगिकी कृषि, चिकित्सा उद्योग, वैज्ञानिक खोजों आदि में अनुप्रयोगों को शामिल करने वाला एक बहुआयामी डोमेन है। जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र को मोटे तौर पर पाँच प्रमुख खंडों में विभाजित किया जा सकता है: 
      • जैव-चिकित्सा  
      • जैव कृषि 
      • जैव सेवाएँ  
      • जैव-औद्योगिक अनुप्रयोग 
      • जैव सूचना प्रौद्योगिकी 
    • जैव प्रौद्योगिकी स्टार्टअप में वृद्धि: जैव प्रौद्योगिकी में भारत की अग्रणी उपलब्धियों में से एक के रूप में यह बौद्धिक वर्ग को रोज़गार प्रदान करता है और जेनेरिक एवं सस्ती दवाओं के विकास में योगदान देता है। 
      • वर्तमान में 2,700 से अधिक बायोटेक स्टार्टअप हैं और वर्ष 2024 तक 10,000 का आँकड़ा छूने की उम्मीद है। 
    • BIRAC की भूमिका: वर्ष 2012 में जैव प्रौद्योगिकी विभाग के तहत स्थापित जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (BIRAC), भारत में जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। 
      • BIRAC इनोवेटर और निवेशक को एक मंच पर लाता है तथा उनके विचारों को वास्तविकता प्रदान करने में उन्हें सक्षम बनाता है एवं तकनीकी प्रगति की सुविधा प्रदान कर मानव की प्रगति को संभव बनाता है। 
    • अन्य कारक: 
      • जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र द्वारा भारत को अवसर की संभावित भूमि के रूप में देखा जाता है 
      • इन कारकों में एक विविध आबादी, विविध जलवायु, एक प्रतिभाशाली कार्यबल, कॉर्पोरेट नियमों में ढील देने की पहल और जैव वस्तुओं की बढ़ती मांग शामिल है। 
  • संबद्ध चुनौतियांँ: 
    • संरचनात्मक मुद्दे: यह देखते हुए कि जैव चिकित्सा क्षेत्र विनिर्माण पूंजी गहन है, पूंजी तक सीमित पहुंँच, अपर्याप्त बुनियादी ढांँचे और जटिल तथा निरंतर विकसित होने वाले नियामक ढांँचे के कारण भारत में इस तरह के निवेश आवश्यकता से कम रहा है। 
      • जैव प्रौद्योगिकी उत्पादों और समाधानों के रूप में अक्सर नैतिक एवं नियामक मंज़ूरी की आवश्यकता होती है, जिससे प्रक्रिया लंबी, महंँगी और बोझिल हो जाती है। 
      • इसके अलावा वैज्ञानिकों के कम पारिश्रमिक (विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में) तथा कुछ संस्थागत अनुसंधान केंद्रों ने जैव प्रौद्योगिकी में अधिक रोज़गार पैदा करने में मदद नहीं की है। 
    • भारी सार्वजनिक क्षेत्र का प्रभुत्व: विकसित अर्थव्यवस्थाओं (संयुक्त राज्य अमेरिका) की तुलना में भारत में जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान मुख्य रूप से सरकारी खजाने द्वारा वित्तपोषित है। 
      • जब तक निजी क्षेत्र अनुप्रयुक्त अनुसंधान का समर्थन करना शुरू नहीं करता और शैक्षणिक संस्थानों के साथ संलग्न नहीं होता, तब तक अनुसंधान एवं अंतरित जैव प्रौद्योगिकी में नवाचार न्यूनतम रहेगा। 
    • नवाचार की कमी: नवाचार, उद्यमिता और प्रौद्योगिकी निर्माण के मामले में जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र को वर्षों के अनुभव, परिष्कृत उपकरणों के साथ प्रयोगशालाओं तक पहुंँच, नवाचार करने के लिये निरंतर और दीर्घकालिक वित्तपोषण की आवश्यकता होती है। 
      • हालांँकि भारत ने नवोन्मेष संस्कृति में सुधार के लिये पर्याप्त रूप से अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है। 

संबंधित पहल : 

आगे की राह 

  • भारत में रोगों के लंबे इतिहास को देखते हुए देश ने उनकी रोकथाम और उपचार के लिये वर्षों का अनुभव एवं वैज्ञानिक ज्ञान संचित किया है। भारत 'मेक इन इंडिया' और 'स्टार्टअप इंडिया' जैसे विभिन्न प्रमुख कार्यक्रमों के तहत जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र को बढ़ावा देने का काम कर रहा है। 
  • बायोटेक इन्क्यूबेटरों की संख्या में वृद्धि से अनुसंधान और स्टार्टअप के विकास को बढ़ावा मिलेगा, जो भारतीय बायोटेक उद्योग की सफलता के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
  • बायोटेक हब का अनुकूल स्थान अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास क्षमता, बाज़ार, उद्योग नीतियों, बुनियादी ढांँचे, निवेश जैसे महत्त्वपूर्ण कारकों पर निर्भर करेगा। 
    • एकीकृत बायोटेक हब स्थापित करने से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) बढ़ेगा, निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा, गुणवत्ता वाले उत्पादों के लिये भारतीय निर्यात क्षमता में वृद्धि होगी, आयात प्रतिस्थापन की दिशा में आंतरिक क्षमता को बढ़ावा मिलेगा, साथ ही भारत के लिये अधिक आईपी उत्पन्न करने हेतु नवाचारों का पोषण और समर्थन प्राप्त होगा। 

विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. कवकमूलीय (माइकोराइज़ल) जैव प्रौद्योगिकी को निम्नीकृत स्थलों के पुनर्वासन में उपयोग में लाया गया है, क्योंकि कवकमूल के द्वारा पौधों में- (2013)  

  1. सूखे का प्रतिरोध करने एवं अवशोषण क्षेत्र बढ़ाने की क्षमता आ जाती है।
  2. pH की अतिसीमाओं को सहन करने की क्षमता आ जाती है।
  3. रोगग्रस्तता से प्रतिरोध की क्षमता आ जाती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (d)  

  • माइकोराइज़ा: यह कवक और पौधे के बीच एक सहजीवी संबंध है। शब्द 'माइकोराइज़ा' पौधे के राइजोस्फीयर अर्थात् जड़ प्रणाली में कवक की भूमिका को दर्शाता है। माइकोराइज़ा पौधों के पोषण, मृदा जीव विज्ञान और मृदा रसायन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 
  • माइकोराइज़ल जैव प्रौद्योगिकी भारी धातुओं से दूषित मृदा में पौधे के विकास और अस्तित्व में सुधार करती है। यह पौधों में पोषक तत्त्वों एवं जल के उत्थान की दक्षता बढ़ाने में सक्षम बनाता है। 
  • PH की चरम सीमाओं को सहन करने के लिये पौधे की क्षमता को बढ़ाना। अतः कथन 2 सही है। 
  • रोगजनकों के प्रतिरोध को बढ़ाना। अत: कथन 3 सही है। 
  • कई पर्यावरणीय समस्याओं और सूखा प्रतिरोध के खिलाफ पौधों की प्रजातियों को सुरक्षित करना। अत: कथन 1 सही है।  

अतः विकल्प (D) सही है। 

स्रोत: द हिंदू 

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow