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हेट स्पीच की परिभाषा

  • 27 May 2021
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

चूँकि भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) में "हेट स्पीच" (Hate Speech) की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है, इसलिये पहली बार इस तरह की भाषा को परिभाषित करने के लिये ब्रिटिश समय की इस संहिता में सुधारों का सुझाव देने हेतु केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा गठित आपराधिक कानूनों पर सुधार समिति (Committee for Reforms in Criminal Law) प्रयास कर रही है।

प्रमुख बिंदु

हेट स्पीच:

  • सामान्य तौर पर यह उन शब्दों को संदर्भित करता है जिनका इरादा किसी विशेष समूह के प्रति घृणा पैदा करना है, यह समूह एक समुदाय, धर्म या जाति हो सकता है। इस भाषा का अर्थ हो भी सकता है या नहीं भी हो सकता है, लेकिन इसके परिणामस्वरूप हिंसा होने की संभावना होती है।
  • पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो ने हाल ही में साइबर उत्पीड़न के मामलों पर जाँच एजेंसियों के लिये एक मैनुअल प्रकाशित किया है, जिसमें हेट स्पीच को एक ऐसी भाषा के रूप में परिभाषित किया गया है जो किसी व्यक्ति की पहचान और अन्य लक्षणों जैसे- यौन, विकलांगता, धर्म आदि के आधार पर उसे बदनाम, अपमान, धमकी या लक्षित करती है।
  • भारत के विधि आयोग (Law Commission) की 267वीं रिपोर्ट में हेट स्पीच को मुख्य रूप से नस्ल, जातीयता, लिंग, यौन, धार्मिक विश्वास आदि के खिलाफ घृणा को उकसाने के रूप में देखा गया है।
  • यह निर्धारित करने के लिये कि भाषा अभद्र है या नहीं, भाषा का संदर्भ एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

हेट स्पीच के प्रमुख कारण:

  • लोग उन रूढ़ियों में विश्वास करते हैं जो उनके दिमाग में बसी हुई हैं और ये रूढ़ियाँ उन्हें यह विश्वास दिलाने के लिये प्रेरित करती हैं कि एक वर्ग या व्यक्तियों का समूह उनसे हीन है तथा इसलिये सभी के एक समान अधिकार नहीं हो सकते।
  • शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के अधिकार की परवाह किये बिना किसी विशेष विचारधारा को मानते रहने की जिद हेट स्पीच को और बढ़ाती है।

हेट स्पीच से संबंधित भारतीय दंड प्रावधान:

  • भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत:
    • धारा 153A और 153B: दो समूहों के बीच दुश्मनी तथा नफरत पैदा करने वाले कृत्यों को दंडनीय बनाता है।
    • धारा 295A: यह धारा जान-बूझकर या दुर्भावनापूर्ण इरादे से लोगों के एक वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले कृत्यों को दंडित करने से संबंधित है।
    • धारा 505(1) और 505(2): यह धारा ऐसी सामग्री के प्रकाशन तथा प्रसार को अपराध बनाती जिससे विभिन्न समूहों के बीच द्वेष या घृणा उत्पन्न हो सकती है।
  • जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के अंतर्गत:
    • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of People’s Act), 1951 की धारा 8 अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दुरुपयोग के दोषी व्यक्ति को चुनाव लड़ने से रोकती है।
    • आरपीए की धारा 123(3A) और 125: चुनावों के संदर्भ में जाति, धर्म, समुदाय, जाति या भाषा के आधार पर दुश्मनी को बढ़ावा देने पर रोक लगाती है और इसे भ्रष्ट चुनावी कृत्य के अंतर्गत शामिल करती है।

आईपीसी में बदलाव के लिये सुझाव:

  • विश्वनाथन समिति, 2019:
    • इसने धर्म, नस्ल, जाति या समुदाय, लिंग, लैंगिक पहचान, यौन, जन्म स्थान, निवास, भाषा, विकलांगता या जनजाति के आधार पर अपराध करने के लिये उकसाने हेतु आईपीसी में धारा 153 सी (बी) और धारा 505 ए का प्रस्ताव रखा।
    • इसने 5,000 रुपए के जुर्माने के साथ दो वर्ष तक की सज़ा का प्रस्ताव रखा।
  • बेज़बरुआ समिति, 2014:
    • इसने आईपीसी की धारा 153 सी (मानव गरिमा के लिये हानिकारक कृत्यों को बढ़ावा देने या बढ़ावा देने का प्रयास) में संशोधन कर पाँच वर्ष की सजा और जुर्माना या दोनों तथा धारा 509 ए (शब्द, इशारा या कार्य किसी विशेष जाति के सदस्य का अपमान करने का इरादा) में संशोधन कर तीन वर्ष की सज़ा या जुर्माना या दोनों का प्रस्ताव दिया।

आगे की राह

  • विविध पृष्ठभूमि और संस्कृति की विशाल आबादी वाले भारत जैसे देश के लिये हेट स्पीच जैसे विषयों से निपटना एक जटिल मुद्दा बन जाता है क्योंकि स्वतंत्र स्पीच तथा हेट स्पीच के बीच अंतर करना मुश्किल है।
  • भाषा को प्रतिबंधित करते समय कई कारकों जैसे- लोगों की राय और इसका लोगों की गरिमा, स्वतंत्रता तथा समानता के मूल्यों पर पड़ने वाले प्रभाव आदि पर विचार किया जाना चाहिये। निश्चित रूप से भारत में इस तरह के कृत्यों के लिये कानून हैं लेकिन पूरी तरह से इनका क्रियान्वयन होना अभी भी बाकी है।
  • इसलिये हेट स्पीच की एक उचित परिभाषा देना खतरे से निपटने के लिये पहला कदम होगा, इसके साथ ही इस विषय पर जनता के बीच जागरूकता फैलाना समय की ज़रूरत है।

स्रोत: द हिंदू

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