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नीतिशास्त्र

कॉर्पोरेट गवर्नेंस

  • 29 Dec 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

कॉरपोरेट गवर्नेंस, केंद्रीय जाँच ब्यूरो, बैंकिंग विनियमन अधिनियम

मेन्स के लिये:

कॉर्पोरेट गवर्नेंस और संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों? 

चंदा कोचर (ICICI बैंक की पूर्व CEO) कॉर्पोरेट जगत में धोखाधड़ी संबंधी खतरे के सचेतक के रूप में शामिल हैं।

  • केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) ने आरोप लगाया है कि ICICI बैंक ने बैंकिंग विनियमन अधिनियम, RBI के दिशा-निर्देशों और बैंक की क्रेडिट नीति का उल्लंघन करते हुए वेणुगोपाल धूत द्वारा प्रवर्तित वीडियोकॉन समूह की कंपनियों को 3,250 करोड़ रुपए का क्रेडिट स्वीकृत किया था।

कॉर्पोरेट गवर्नेंस: 

  • परिचय: 
    • कॉर्पोरेट गवर्नेंस नियमों, प्रथाओं और प्रक्रियाओं की प्रणाली को संदर्भित करता है, इसके द्वारा एक कंपनी को निर्देशित और नियंत्रित किया जाता है, जो यह सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है कि व्यवसाय नैतिक रूप से तथा उनके हितधारकों के सर्वोत्तम हित में चलाए जाते हैं।
    • कॉर्पोरेट गवर्नेंस की प्रमुख ज़िम्मेदारियों में से एक कॉर्पोरेट लालच को रोकना तथा यह सुनिश्चित करना है कि व्यवसायों को उत्तरदायी और पारदर्शी तरीके से संचालित किया जाए।
    • मज़बूत नैतिक मानकों को लागू करके तथा व्यक्तियों को उनके कार्यों के लिये उत्तरदायी बनाकर, कॉर्पोरेट गवर्नेंस लालच को रोकने और शेयरधारकों, ग्राहकों एवं व्यापक समुदाय के हितों की रक्षा करने में मदद कर सकता है।
  • कॉर्पोरेट गवर्नेंस के सिद्धांत:
    • निष्पक्षता:
      • निदेशक मंडल को शेयरधारकों, कर्मचारियों, विक्रेताओं और समुदायों के साथ उचित एवं समान विचार से व्यवहार करना चाहिये।
    • पारदर्शिता: 
      • बोर्ड को वित्तीय प्रदर्शन, हित संबंधी मतभेद और शेयरधारकों एवं अन्य हितधारकों को ज़ोखिम जैसी स्थिति के बारे में समय पर सटीक तथा स्पष्ट जानकारी प्रदान करनी चाहिये।
    • ज़ोखिम प्रबंधन: 
      • बोर्ड और प्रबंधन को सभी प्रकार के ज़ोखिमों का निर्धारण तथा उन्हें नियंत्रित करना चाहिये। उन्हें प्रबंधित करने के लिये संबद्ध सिफारिशों पर कार्रवाई करनी चाहिये। उन्हें सभी संबंधित पक्षों को ज़ोखिमों की मौजूदगी तथा स्थिति के बारे में सूचित करना चाहिये।
    • ज़िम्मेदारी: 
      • बोर्ड कॉर्पोरेट मामलों और प्रबंधन गतिविधियों की निगरानी के लिये ज़िम्मेदार है।
      • इसे कंपनी की प्रगति और प्रदर्शन के बारे में पता होना चाहिये, साथ ही उसका समर्थन करना चाहिये। इसकी ज़िम्मेदारी में CEO की भर्ती और नियुक्ति करना भी शामिल है। इसे किसी कंपनी एवं उसके निवेशकों के सर्वोत्तम हित में कार्य करना चाहिये।
    • जवाबदेही: 
      • बोर्ड को कंपनी की गतिविधियों के उद्देश्य और उसके आचरण के परिणामों की व्याख्या करनी चाहिये। बोर्ड एवं कंपनी का नेतृत्त्व कंपनी की क्षमता एवं प्रदर्शन के आकलन के लिये जवाबदेह है। इसे शेयरधारकों के महत्त्व के मुद्दों को संप्रेषित करना चाहिये। 

भारत में कॉर्पोरेट प्रशासन के संदर्भ में नैतिक मुद्दे: 

  • व्यक्तिगत रुचि के बीच मतभेद:  
    • शेयरधारकों की कीमत पर संभावित रूप से व्यक्तिगत रुचि को समृद्ध करने वाले प्रबंधकों की चुनौती एक बड़ी समस्या है, हाल ही की एक घटना में ICICI बैंक की पूर्व कार्यकारी चंदा कोचर ने अपने पति के लिये एक व्यापार के हिस्से के रूप में वीडियोकॉन कंपनी को ऋण स्वीकृति किया।
  • कमज़ोर बोर्ड:  
    • अनुभव और पृष्ठभूमि की विविधता का अभाव इन बोर्डों की  कमज़ोरी का एक प्रमुख विषय रहा है। शेयरधारकों के व्यापक हितों के मामले में बोर्ड के प्रदर्शन पर सवाल उठते रहे हैं। 
  • स्वामित्त्व और प्रबंधन का पृथक्करण:  
    • परिवार द्वारा संचालित कंपनियों के मामले में भारत की कुछ शीर्ष कंपनियों सहित अधिकांश कंपनियों में स्वामित्त्व और प्रबंधन को अलग करना एक प्रमुख चुनौती बनी हुई है। 
  • स्वतंत्र निदेशक:  
    • स्वतंत्र निदेशक पक्षपातपूर्ण होते हैं और प्रमोटरों की अनैतिक प्रथाओं की जाँच करने में सक्षम नहीं होते हैं। 

संबंधित पहलें

  • भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस पहल की ज़िम्मेदारी कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (Ministry of Corporate Affairs- MCA) एवं भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India- SEBI) पर है। उदारीकरण के बाद वर्ष 1990 के दशक में भारत के कॉर्पोरेट क्षेत्र को बड़े बदलावों का सामना करना पड़ा है।
  • सेबी खंड 49 के माध्यम से भारत में सूचीबद्ध कंपनियों के कॉर्पोरेट गवर्नेंस की निगरानी और नियमन करता है।
  • कंपनी अधिनियम, 2013 बढ़े हुए और नए अनुपालन मानदंडों के माध्यम से प्रकटीकरण, रिपोर्टिंग एवं पारदर्शिता को बढ़ाकर कॉर्पोरेट गवर्नेंस के लिये औपचारिक संरचना प्रदान करता है।

भारत में कॉरपोरेट गवर्नेंस में सुधार: 

  • विविध बोर्ड बेहतर बोर्ड:  
    • इस संदर्भ में व्यापक 'विविधता' है, जिसमें लिंग, जातीयता, कौशल और अनुभव शामिल हैं। 
  • मज़बूत जोखिम प्रबंधन नीतियाँ:  
    • बेहतर निर्णय लेने के लिये प्रभावी और मज़बूत जोखिम प्रबंधन नीतियों को अपनाना क्योंकि यह सभी निगमों के सामने आने वाले रिस्क-रिवॉर्ड ट्रेड-ऑफ के मामले में गहरी अंतर्दृष्टि विकसित करता है। 
  • प्रभावी शासन अवसंरचना: 
    • चूँकि अंततः बोर्ड किसी संगठन के सभी कार्यों और निर्णयों के लिये ज़िम्मेदार होता है, इसलिये संगठनात्मक व्यवहार को निर्देशित करने के लिये विशिष्ट नीतियों की आवश्यकता होगी। 
    • यह सुनिश्चित करने के लिये बोर्ड और प्रबंधन के बीच उत्तरदायित्त्वों को स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया है, बोर्ड के लिये प्रतिनिधिमंडलों के संबंध में नीतियाँ विकसित करना विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है।
  • बोर्ड के प्रदर्शन का मूल्यांकन: 
    • बोर्डों को मूल्यांकन में सामने आई कमज़ोरियों को दूर करके अपनी शासन प्रक्रियाओं में सुधार करना चाहिये। 
  • संवाद:
    • बोर्ड के साथ शेयरधारकों के संवाद को सुगम बनाना महत्त्वपूर्ण है। एक ऐसा व्यक्ति होना चाहिये जिसके साथ शेयरधारक किसी भी मुद्दे पर चर्चा कर सकें।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. सत्यम कांड (2009) के परिपेक्ष्य में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये कॉर्पोरेट प्रशासन में लाए गए परिवर्तनों पर चर्चा कीजिये। (2015)

प्रश्न. 'शासन', 'सुशासन' और 'नैतिक शासन' शब्दों से आप क्या समझते हैं?(2016) 

स्रोत: लाइव मिंट

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