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भारतीय अर्थव्यवस्था

व्यावसायिक/कार्पोरेट देनदारों को राहत

  • 04 Jan 2020
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये:

दिवालिया और शोधन अक्षमता कोड

मेन्स के लिये:

दिवालियापन समाधान प्रक्रिया

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय मंत्री मंडल ने 31 दिसंबर, 2019 को दिवाला और शोधन अक्षमता कोड-2016 में नए संशोधन करने के लिये विधेयक को मंज़ूरी दी।

मुख्य बिंदु:

  • प्रस्तुत संशोधनों के अनुसार, कॉर्पोरेट देनदार को पूर्ववर्ती प्रबंधन द्वारा किये गए किसी भी अपराध के लिये दिवालियापन समाधान प्रक्रिया (Corporate Insolvency Resolution Process-CIRP) के शुरू होने से पहले उत्तरदायी नहीं ठहराया जाएगा।

दिवालियापन समाधान प्रक्रिया (Corporate Insolvency Resolution Process-CIRP): यदि करदाताओं को कोई संस्था/ कंपनी निश्चित समय पर तय किस्तें देने में असमर्थ रहती है तो भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता कोड के तहत उसे दिवालिया घोषित कर CIRP की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। यह प्रकिया कंपनी अथवा देनदार द्वारा शुरु कराई जा सकती है, CIRP के तहत नोटिस देने के 180 दिनों के भीतर यदि दोनों पक्षों कोई समझौता नहीं होता है तो कंपनी की नीलामी की प्रक्रिया प्रारंभ की जा सकती है। 75% से अधिक देनदारों की सहमति से 180 दिनों की समय सीमा को एक बार पुनः 90 दिनों के लिये बढ़ाया जा सकता है।

  • व्यवसायियों को इस तरह की सुरक्षा देने का उद्देश्य प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) या आर्थिक अपराध शाखा (Economic Offences Wing) जैसी विभिन्न जाँच एजेंसियों द्वारा कंपनी पर दायर जाँच के आपराधिक मामलों की जाँच में राहत देना है।
  • इस संशोधन विधेयक को संसद के गत शीतकालीन सत्र में प्रस्तुत किया गया था, जिसके बाद इसे विचार के लिये स्थायी समिति के पास भेज दिया गया है।
  • यह समिति विधेयक की जाँच कर तीन महीनों में विधेयक पर अपने विचार के साथ विधेयक को संसद में पुनः प्रस्तुत करेगी।
  • कुछ दिवालिया कंपनियों की सफल बोली लगाने वाले व्यवसायियों द्वारा इस संबंध में चिंता व्यक्त की गई थी, जिसके बाद इस विधेयक में कुछ संशोधनों का सुझाव दिया गया।
  • इसी से संबंधित एक मामले में JSW स्टील ने ‘राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण’ (National Company Law Appellate Tribunal-NCLAT) में की गई अपील में भूषण एनर्जी एंड स्टील (Bhushan Power and Steel) पर चल रहे वित्तीय गड़बड़ी के मामलों की जांच छूट की मांग की थी। वर्तमान में भूषण पावर एंड स्टील पर विभिन्न सरकारी एजेंसियों, जैसे-केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो और ईडी की जाँच चल रही है। कई बैंकों ने पिछले साल कंपनी के पूर्व प्रवर्तकों पर लगभग 5,500 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी करनें का आरोप लगाया था।

राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण

(National Company Law Appellate Tribunal-NCLAT):

  • राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय है जो कंपनियों के विवादों का निर्णय करती है।
  • इसकी स्थापना कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 410 के तहत किया गया थी यह राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण के आदेशों के विरुद्ध अपीलों की सुनवाई का काम करता है।
  • NCLAT के किसी भी आदेश से असहमत व्यक्ति/संस्था द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की सकती है।

NCLAT में अपील की प्रक्रिया:

  • राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण के आदेश से असंतुष्ट कोई भी व्यक्ति निर्णय सुनाए जाने से 45 दिनों के अंदर NCLAT में अपील कर सकता है।
  • NCLAT अपने विवेक से याचिकाकर्त्ता को विशेष परिस्थियों में 45 दिनों की सीमा से अतिरिक्त समय भी प्रदान कर सकता है।
  • NCLAT के आदेशों को 60 दिनों के अंदर सर्वोच्च न्यायलय में चुनौती दी जा सकती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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