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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत में फार्म फायर डेटा का संग्रह

  • 28 Nov 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अंतरिक्ष से एग्रोइकोसिस्टम मॉनीटरिंग और मॉडलिंग पर रिसर्च हेतु कंसोर्टियम, सुओमी NPP सैटेलाइट, मॉडरेट रिज़ॉल्यूशन इमेजिंग स्पेक्ट्रोरेडियोमीटर (MODIS), विज़िबल इन्फ्रारेड इमेजिंग रेडियोमीटर सूट, बेलर मशीन, हैप्पी सीडर, बायो-एंज़ाइम PUSA

मेन्स के लिये:

खेतों में आगजनी के डेटा संग्रह से संबंधित पहलू, फसल-अवशेष प्रबंधन हेतु नवीन तकनीकें

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

जैसे-जैसे खेतों में आगजनी का मौसम करीब आ रहा है, सितंबर से नवंबर 2023 तक छह उत्तर भारतीय राज्यों में ऐसी आग की कुल 55,725 घटनाएँ दर्ज की गई हैं।

  • ये आँकड़े स्थापित और मानकीकृत निगरानी प्रोटोकॉल का पालन करते हुए उपग्रह निगरानी के माध्यम से प्राप्त किये गए हैं।

खेत की आग क्या है? 

  • खेत की आग (Farm Fires) आमतौर पर कृषि क्षेत्रों में मुख्य रूप से फसल के मौसम के बाद फसल के अवशेषों को साफ करने के लिये जान-बूझकर लगाई गई आग को संदर्भित करती है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ पराली जलाई जाती है।
    • इन आग को घटनाओं में प्रायः आगामी रोपण मौसम हेतु खेतों को जल्दी से तैयार करने के लिये बचे हुए पुआल, ठूँठ या फसल के अवशेषों का  दहन शामिल होता है।
    • हालाँकि मशीनरी की खराबी या अन्य अनपेक्षित कारणों से भी खेत में आग लग सकती है। 
  • हालाँकि यह किसानों के लिये लागत प्रभावी और समय बचाने वाला तरीका हो सकता है, लेकिन इससे  वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति उत्पन्न होती है, जिससे वायुमंडल में बड़ी मात्रा में धुआँ, कणिका पदार्थ और ग्रीनहाउस गैसें उत्सर्जित होती हैं।

खेतों में लगी आग के डेटा संग्रहण से संबंधित प्रमुख पहलू क्या हैं?

  • डेटा संग्रहण निकाय:
    • भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) कंसोर्टियम फॉर रिसर्च ऑन एग्रोइकोसिस्टम मॉनीटरिंग एंड मॉडलिंग फ्रॉम स्पेस (CREAMS) प्रयोगशाला द्वारा धान के अवशेषों की आग पर एक दैनिक रिपोर्ट जारी की गई है।
      • इसकी स्थापना वर्ष 2013 में की गई थी, जिसका प्राथमिक उद्देश्य चरम जलवायु घटनाओं के खिलाफ फसल की स्थिति की निगरानी करना था।
    • इस व्यापक बुलेटिन में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली में खेतों में आग लगने की घटनाओं का विवरण दिया गया है।
      • इसमें वर्ष 2020 के बाद से दर्ज की गई घटनाओं का ज़िला-वार विवरण शामिल है, जिसमें आग का स्थान, उपयोग किये गए उपग्रह, टाइमस्टैम्प और तीव्रता को निर्दिष्ट किया गया है।
      • रिपोर्ट को केंद्रीय एवं राज्य-स्तरीय एजेंसियों के साथ साझा किया जाता है, ताकि कार्यों का मार्गदर्शन किया जा सके और केंद्रित हस्तक्षेप की आवश्यकता वाले हॉटस्पॉट की पहचान की जा सके।
  • उपग्रहों के माध्यम से डेटा संग्रह:
    • नासा के तीन अलग-अलग उपग्रहों पर लगे तीन सेंसर: एक जिसे सुओमी NPP सैटेलाइट पर विज़िबल इन्फ्रारेड इमेजिंग रेडियोमीटर सूट (VIIRS) कहा जाता है और दो मॉडरेट रेज़ोल्यूशन इमेजिंग स्पेक्ट्रोरेडियोमीटर (MODIS) हैं, जो टेरा और एक्वा उपग्रहों पर हैं, भूमि सतह तापमान रिकॉर्ड करके इस डेटा को एकत्र करता है।
      • प्रत्येक उपग्रह प्रत्येक 24 घंटे में दो बार अलग-अलग समय पर भारतीय उपमहाद्वीप के ऊपर से गुज़रता है।
    • पिछले पाँच वर्षों में प्रयोगशाला ने जले हुए क्षेत्रों का मानचित्रण करने के लिये  एक अलग उपग्रह सेट का उपयोग किया है। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी का हिस्सा सेंटिनल-2 उपग्रह इस उद्देश्य को पूरा करता है।
  • निगरानी प्रोटोकॉल:
    • IARI अपने ग्राउंड स्टेशन और नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर से सैटेलाइट डेटा प्राप्त करता है, जिससे पूरे देश में खेतों में लगने वाली आग की साल भर निगरानी सुनिश्चित होती है।
    • वर्ष 2021 से पहले विभिन्न कार्यप्रणालियों के चलते विभिन्न निगरानी केंद्रों में दर्ज की गई खेत में आग की घटनाओं में विसंगतियाँ पाई गईं।
    • हालाँकि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने वर्ष 2021 में एक मानकीकृत प्रोटोकॉल लागू किया।
      • IARI ने इस प्रोटोकॉल का उपयोग करके वर्ष 2020 में डेटा को पुन: संसाधित किया, जिससे वर्ष 2020 से तुलनात्मक विश्लेषण करना संभव हो पाया।
  • धान के खेत में लगी आग की पहचान:
    • धान के खेत में लगी आग की पहचान करने में उसे वनाग्नि या उद्योगों से उत्पन्न होने वाली आग से अलग करना शामिल है। पहचान के लिये धान की आग को वनाग्नि और औद्योगिक क्षेत्र में लगने वाली आग से अलग करना होगा।
      • यह प्रक्रिया धान की खेती के क्षेत्रों की पहचान करने और उसके अनुसार खेत की आग का मानचित्रण करने से शुरू होती है।
      • गन्ना या मक्का जैसी अन्य फसलों के विपरीत धान की खेती जल की अपनी विशिष्ट पृष्ठभूमि के कारण समय के साथ एक विशिष्ट परावर्तन संकेत प्रदर्शित करती है। इस संकेत को आग की घटनाओं के साथ जोड़ने से धान के खेत में लगी आग को पहचानने में मदद मिलती है।
    • उपग्रह विशिष्ट सीमा से ऊपर भूमि की सतह के ताप में वृद्धि का पता लगाकर धान के खेतों में सक्रिय आग का निर्धारण किया जाता है तथा उसे आसपास के क्षेत्रों से अलग कर सकते हैं।

नोट: आग का पता लगाना प्रभावित क्षेत्र की तुलना में जले हुए अवशेषों की मात्रा पर अधिक निर्भर करता है। अधिक मात्रा में अवशेष जलाने से आसपास के ताप की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि होती है, जो आग की अधिक तीव्रता तथा पता लगाने की संभावना को दर्शाता है

  • जलाए गए अवशेषों की मात्रा का अनुमान आग की तीव्रता से लगाया जा सकता है, जिसे प्रति इकाई क्षेत्र और अवधि के मामले में उत्सर्जित ऊर्जा की मात्रा के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • सीमाएँ और चुनौतियाँ:
    • मौसम का प्रभाव: जलवायु परिस्थितियाँ, विशेष रूप से मेघ आवरण तथा जल वाष्प, उपग्रह सेंसर को बाधित कर सकते हैं, सटीक रीडिंग एवं डेटा अधिग्रहण में बाधा डाल सकते हैं।
    • मौसम तथा दिन के समय में परिवर्तनशीलता: मौसम में बदलाव तथा दिन एवं रात की स्थितियों के बीच विसंगतियाँ आग का पता लगाने की सीमा की प्रभावशीलता को प्रभावित करती हैं, जिससे लगातार निगरानी में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।

फसल-अवशेष प्रबंधन के लिये नवीन तकनीकें क्या हैं?

निष्कर्ष:

  • खेत की आग को रोकने तथा पर्यावरण व सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं पर उसके प्रभाव को कम करने के लिये प्रभावी रणनीति तैयार करने में डेटा संग्रह की जटिलताओं एवं सीमाओं को समझना महत्त्वपूर्ण है। प्रौद्योगिकी एवं कार्यप्रणाली में निरंतर प्रगति बेहतर अंतर्दृष्टि व सक्रिय हस्तक्षेप के लिये निगरानी दृष्टिकोण को परिष्कृत करने का अभिन्न अंग बनी हुई है।
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