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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी

  • 21 Feb 2022
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

स्वामित्व योजना, भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी

मेन्स के लिये:

स्वामित्व योजना का ग्रामीण भारत के विकास में योगदान 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भू-स्थानिक डेटा (Geospatial Data) जारी करने की पहली वर्षगांँठ के अवसर पर सरकार द्वारा सूचित किया गया है कि स्वामित्व योजना (SVAMITVA Scheme) के तहत ड्रोन के साथ भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी (Geospatial Technology) के प्रयोग से सभी 6 लाख से अधिक भारतीय गांँवों का सर्वेक्षण किया जाएगा। साथ ही 100 भारतीय शहरों के लिये अखिल भारतीय त्रि-आयामी (3डी) मानचित्र तैयार किया जाएगा 

  • भू-स्थानिक नीति की घोषणा जल्द ही की जाएगी क्योंकि दिशा-निर्देशों के उदारीकरण के परिणामस्वरूप एक वर्ष के भीतर बहुत ही सकारात्मक परिणाम प्राप्त हुए हैं।
  • स्वामित्व योजना ग्रामीण आबादी वाले क्षेत्रों में संपत्ति का स्पष्ट स्वामित्व सुनिश्चित करने  की दिशा में एक सुधारात्मक कदम है।

प्रमुख बिंदु 

भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी:

  • भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी में भौगोलिक मानचित्रण और विश्लेषण हेतु भौगोलिक सूचना प्रणाली (Geographic Information System-GPS), ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम (Global Positioning System- GPS) और रिमोट सेंसिंग जैसे उपकरणों का उपयोग किया जाता है।
  • ये उपकरण वस्तुओं, घटनाओं और परिघटनाओं (पृथ्वी पर उनकी भौगोलिक स्थिति के अनुसार अनुक्रमित, जियोटैग) के बारे में स्थानिक जानकारी प्रदान करते हैं। किसी स्थान का डेटा स्थिर (Static) या गतिशील (Dynamic) हो सकता है।
  • किसी स्थान के स्थिर डेटा/स्टेटिक लोकेशन डेटा (Static Location Data) में सड़क की स्थिति, भूकंप की घटना या किसी विशेष क्षेत्र में बच्चों में कुपोषण की स्थिति के बारे में जानकारी शामिल होती है, जबकि किसी स्थान के गतिशील डेटा /डायनेमिक लोकेशन डेटा (Dynamic Location Data) में संचालित वाहन या पैदल यात्री, संक्रामक बीमारी के प्रसार आदि से संबंधित डेटा शामिल होता है।
  • बड़ी मात्रा में डेटा में स्थानिक पैटर्न की पहचान के लिये इंटेलिजेंस मैप्स  (Intelligent Maps) निर्मित करने के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा सकता है।
  • यह प्रौद्योगिकी दुर्लभ संसाधनों के महत्त्व और उनकी प्राथमिकता के आधार पर निर्णय लेने में मददगार हो सकती है।

भारत का भू-स्थानिक क्षेत्र:

  • भारत में भू-स्थानिक क्षेत्र में एक सुदृढ़ पारितंत्र मौजूद है जहाँ विशेष रूप से भारतीय सर्वेक्षण विभाग (Survey Of India- SoI), भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO), रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर (RSACs) एवं राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) और सभी मंत्रालयों एवं विभाग सामान्य रूप से भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हैं।
  • वर्ष 2021 में भू-स्थानिक बाज़ार में रक्षा और खुफिया (14.05%) क्षेत्र, शहरी विकास (12.93%) एवं यूटिलिटीज़ सेगमेंट,(11%) का वर्चस्व रहा जिसका कुल भू-स्थानिक बाज़ार में 37.98% का योगदान था।
  • वर्ष 2021 में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने भारत में भू-स्थानिक क्षेत्र हेतु नए दिशा-निर्देश जारी किये थे, जो मौजूदा प्रोटोकॉल को नियंत्रित करते हैं और इस क्षेत्र को अधिक प्रतिस्पर्द्धी व उदार बनाते हैं।

Geospatial-Technology

भारत के लिये भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का महत्त्व:

  • एक संभावित क्षेत्र: 'भारत भू-स्थानिक अर्थ रिपोर्ट-2021’ के अनुसार, इस क्षेत्र में वर्ष 2025 के अंत तक 12.8% की दर से 63,100 करोड़ रुपए की बढ़ोतरी होने की क्षमता है।
  • रोज़गार: अमेज़न, ज़ोमेटो जैसी निजी कंपनियाँ अपने वितरण कार्यों को सुचारू रूप से संचालित करने हेतु इस तकनीक का उपयोग करती हैं, जिससे आजीविका सृजन में मदद मिलती है।
  • योजनाओं का क्रियान्वयन: गति शक्ति कार्यक्रम जैसी योजनाओं को भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करके सुचारू रूप से लागू किया जा सकता है।
  • मेक इन इंडिया: इस क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने से भारतीय कंपनियाँ  गूगल मैप्स के भारतीय संस्करण की तरह स्वदेशी एप विकसित कर सकती हैं।
  • भूमि अभिलेखों का प्रबंधन: प्रौद्योगिकी का उपयोग कर बड़ी संख्या में जोत से संबंधित डेटा को उचित रूप से टैग और डिजिटाइज़ किया जा सकता है।
    • यह न केवल बेहतर लक्ष्यीकरण में मदद करेगा बल्कि न्यायालयों में भूमि विवादों की संख्या को भी कम करेगा।
  • संकट प्रबंधन: कोविड-19 टीकाकरण अभियान के दौरान भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का काफी बेहतरीन प्रयोग किया गया था।
  • इंटेलीजेंट मैप और मॉडल: भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का उपयोग इंटेलीजेंट मैप और मॉडल बनाने हेतु किया जा सकता है, जिसे STEM (विज्ञान प्रौद्योगिकी इंजीनियरिंग और गणित) अनुप्रयोग में वांछित परिणाम प्राप्त करने हेतु अंतःक्रियात्मक रूप से या सामाजिक जाँच एवं नीति-आधारित अनुसंधान की वकालत करने हेतु उपयोग किया जा सकता है। .

संबंधित चुनौतियाँ:

  • भारत की क्षमता और आकार से संबद्ध पैमाने पर भू-स्थानिक सेवाओं एवं उत्पादों की कोई मांग नहीं है।
    • यह मुख्य रूप से सरकारी एवं निजी क्षेत्र में संभावित उपयोगकर्त्ताओं के बीच जागरूकता की कमी के कारण है।
  • दूसरी बाधा कुशल जनशक्ति की कमी है।
  • उच्च-रिज़ॉल्यूशन पर आधारभूत डेटा की अनुपलब्धता भी एक बड़ी बाधा है।
    • अनिवार्य रूप से आधारभूत डेटा को सामान्य डेटा तालिकाओं के रूप में देखा जा सकता है जिसे  कई अनुप्रयोगों या प्रक्रियाओं के बीच साझा किया जाता है, इन्हें उचित सेवा और प्रबंधन हेतु एक मज़बूत आधार निर्माण के लिये जाना जाता है।
  • डेटा साझाकरण और सहयोग पर स्पष्टता की कमी सह-निर्माण एवं संपत्ति को अधिकतम करने से रोकती है।
  • भारत की समस्याओं को हल करने के लिये विशेष रूप से विकसित उपायों में रेडी-टू-यूज़ समाधान (Ready-To-Use Solutions) अभी उपलब्ध नहीं है।

आगे की राह

  • जियो-पोर्टल और डेटा क्लाउड की स्थापना: सभी सार्वजनिक-वित्तपोषित डेटा को सेवा मॉडल के रूप में बिना किसी शुल्क या नाममात्र शुल्क के सुलभ बनाने हेतु एक जियो-पोर्टल स्थापित करने की आवश्यकता है।
    • सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि डेटा साझाकरण, सहयोग और सह-निर्माण की संस्कृति को विकसित किया जाए।
  • आधारभूत डेटा का निर्माण: इसमें भारतीय राष्ट्रीय डिजिटल उन्नयन मॉडल (Indian National Digital Elevation Model- InDEM), शहरों के लिये डेटा स्तर और प्राकृतिक संसाधनों का डेटा शामिल होना चाहिये।
  • भू-स्थानिक में स्नातक कार्यक्रम: भारत को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (IITs) और राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (NITs) में भू-स्थानिक विषय में भी स्नातक कार्यक्रम शुरू करना चाहिये। इनके अलावा एक समर्पित भू-स्थानिक विश्वविद्यालय भी स्थापित किया जाना चाहिये।
    • ऐसे कार्यक्रम अनुसंधान एवं विकास प्रयासों को बढ़ावा देंगे जो स्थानीय स्तर पर प्रौद्योगिकियों के विकास एवं समाधान हेतु उपाय खोजने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • विनियमन: भारतीय सर्वेक्षण विभाग एवं इसरो जैसे राष्ट्रीय संस्थानों को विनियमन और राष्ट्र की सुरक्षा एवं वैज्ञानिक महत्त्व से संबंधित परियोजनाओं की ज़िम्मेदारी सौंपी जानी चाहिये।
    • इन संगठनों को उद्यमियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा नहीं करनी चाहिये क्योंकि इनके लिये यह  नुकसानदेह हो सकता हैं।
  • नीतियों को अंतिम रूप देना: राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति (NGP) और भारतीय उपग्रह नेविगेशन नीति (SATNAV Policy) के मसौदे को क्षेत्र के विकास एवं विस्तार के लिये विधिवत अंतिम रूप दिया जाना चाहिये।

स्रोत: पी.आई.बी.

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