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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

LAC के संदर्भ में चीन के दावे में अंतर

  • 22 Jul 2020
  • 8 min read

प्रीलिम्स के लिये:

पैंगोंग त्सो (Pangong Tso) झील, गलवान घाटी, LAC

मेन्स के लिये:

भारत-चीन सीमा विवाद

चर्चा में क्यों?

वर्ष 1960 की भारत-चीन सीमा वार्ता के आधिकारिक दस्तावेज़ के अनुसार, वर्तमान में चीनी सैनिक पैंगोंग त्सो (Pangong Tso) और गलवान घाटी (Galwan Valley) में वर्ष 1960 के अपने दावे वाले क्षेत्र से बहुत आगे आ गए हैं। 

प्रमुख बिंदु:

  • 15 जून, 2020 को गलवान नदी के घुमाव के पास चीनी सैनिकों द्वारा टेंट लगाने के कारण दोनों पक्षों में हुई हिंसक झड़पों में 20 भारतीय और कई (संख्या अज्ञात) चीनी सैनिकों की मृत्यु हो गई। 
  • आधिकारिक दस्तावेज़ के अनुसार, यह स्थान वर्ष 1960 में क्षेत्र में चीन के दावे से बहुत बाहर है।
  • आधिकारिक दस्तावेज़ ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ (Line of Actual Control- LAC) की स्थिति के संदर्भ में चीन के दावे का खंडन करते हैं। 
  • साथ ही यह हाल ही में कुछ शीर्ष भारतीय अधिकारियों द्वरा दिए गए बयान पर भी प्रश्न उठाते हैं, जिसमें कहा गया कि चीनी सेना भारतीय क्षेत्र में नहीं मौजूद है।

वर्तमान सीमा समस्या:

  • पैंगोंग त्सो (Pangong Tso)  क्षेत्र में LAC के संदर्भ में चीन की वर्तमान दावे और आधिकारिक दस्तावेज़ों में दर्ज इसकी अवस्थिति की तुलना करने पर स्पष्ट होता है कि वर्ष 1960 के बाद से चीन LAC से 8 किमी पश्चिम के क्षेत्र में दाखिल हो चुका है।
  • चीन के हालिया दावे के अनुसार, फिंगर 4 (Finger 4) तक का हिस्सा चीनी अधिकार क्षेत्र में आता है जबकि भारत फिंगर 8 को LAC की वास्तविक भौतिक स्थिति बताता है। 
    •  पैंगोंग झील के तट पर स्थित पर्वत स्कंदों (Mountain Spurs) को ‘फिंगर’ के नाम से संबोधित किया जाता है। इस क्षेत्र में ऐसे 8 पर्वत स्कंद हैं जो 1-8 तक पश्चिम से लेकर पूर्व की तरफ फैले हैं।
  • इससे पहले भी चीन ने वर्ष 1999 में फिंगर-4 तक एक सड़क का निर्माण कर क्षेत्र पर अपने प्रभुत्त्व को स्थापित किया था, परंतु हाल ही में चीन फिंगर-8 पर स्थित LAC तक भारत के संपर्क को पूरी तरह रोकते हुए प्रभावी रूप से 8 किमी पश्चिम की तरफ आ गया है। 

Pangong-Lake      

  • चार दौर की कोर कमांडर-स्तरीय वार्ता के बाद चीन की सेना फिंगर 4 से फिंगर 5 पर पीछे हट गई है, जबकि भारतीय सेना पश्चिम की तरफ आते हुए फिंगर 2 पर आ गई।    

सीमा वार्ता:

  • केंद्रीय विदेश मंत्रालय द्वारा प्रकाशित दस्तावेज़ों के अनुसार, वर्ष 1960 की सीमा वार्ता के समय चीन ने क्षेत्र में अपने अधिकार क्षेत्र के दावे को रेखांकित/स्पष्ट किया था।
  • वर्ष 1960 में दिल्ली में भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और चीन के शीर्ष नेता ‘झोउ एनलाई’ (Zhou Enlai) के बीच हुई सीमा वार्ता के दौरान इस गतिरोध को रोकने में असफल होने के बाद यह निर्णय लिया गया कि दोनों पक्षों के अधिकारी दोनों पक्षों के दावों के समर्थन के लिये एक दूसरे के तथ्यात्मक दस्तावेज़ों की जाँच के लिये पुनः मिलेंगे।
  • इसके पश्चात दोनों पक्षों के बीच 3 दौर की बैठकों का आयोजन किया गया। 
  • इसके तहत 15 जून, 1960 से 25 जुलाई, 1960 के बीच बीजिंग में पहले दौर की बैठक , 19 अगस्त, 1960 से 5 अक्तूबर, 1960 तक दिल्ली में दूसरे दौर की बैठक का आयोजन किया गया। 
  • 12 दिसंबर, 1960 को रंगून (वर्तमान यांगून ) में आयोजित तीसरे दौर की बैठक में एक आधिकारिक रिपोर्ट पर हस्ताक्षर किये गए ।
  • इस रिपोर्ट में चीन द्वारा LAC की अवस्थिति के संदर्भ में स्वीकार किये गए निर्देशांक (देशांतर 78 डिग्री 49 मिनट पूर्व, अक्षांश 33 डिग्री 44 मिनट उत्तर) फिंगर 8 के क्षेत्र के आस-पास के हैं।
  • इसी प्रकार वर्तमान में चीन वर्ष 1960 की रिपोर्ट में गलवान घाटी में LAC की अवस्थिति के संदर्भ में गए निर्देशांक वाले क्षेत्र से काफी आगे आ चुका है।  
  • वर्ष 1960 के दस्तावेजों के अनुसार, गलवान घाटी में LAC गलवान नदी के मोड़ जिसे Y-नाला (Y-Nallah) भी कहते हैं, के पूर्वी भाग से होकर गुजरती थी।
    • भारत और चीन के सैनिकों के बीच हालिया झड़प Y-नाला क्षेत्र में ही हुई थी।   

Galwan-Valley           

चीन की बढती आक्रामकता का कारण:

  • भारत और अमेरिका के बीच परस्पर सहयोग में वृद्धि को सीमा पर चीन की बढ़ती आक्रामकता का एक कारण माना जा सकता है।
  • पिछले वर्ष भारत सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को हटाए जाने और अप्रैल 2020 में भारत की थल सीमा से सटे देशों से आने वाले ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ (Foreign Direct Investment- FDI) पर नियम सख्त करने के भारत सरकार के निर्णय से भारत-चीन तनाव में वृद्धि हुई थी। 
  • भारत द्वारा सीमा से सटे क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे को सुदृढ़ करने (जैसे-दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी' सड़क का निर्माण) और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के बढ़ते वर्चस्व से भी चीन संतुष्ट नहीं रहा है।  

आगे की राह:

  • हाल के वर्षों में LAC के आस-पास रणनीतिक बुनियादी ढाँचे के विकास में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है, जिससे सीमा पर स्थिति सुदूर और दुर्गम गश्ती इलाकों में सेना का वर्चस्व बड़ा है।
  • भारत को इलेक्ट्रानिक उत्पादों और ‘सक्रिय दवा सामग्री’ (Active Pharmaceutical Ingredient-API)  जैसे अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में चीनी आयात पर निर्भरता को शीघ्र ही कम करने का प्रयास करना चाहिये।
  • सीमा पर हिंसक झड़पों को रोकने के लिये द्विपक्षीय बैठकों के अतिरिक्त हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामकता को नियंत्रित करने के लिये ‘क्वाड’ (QUAD) जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों के माध्यम से अपनी सैन्य क्षमता और सक्रियता को बढ़ाया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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