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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

एक अधूरा सुधार कार्य

  • 04 Aug 2017
  • 5 min read

संदर्भ
गौरतलब है कि हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा संसद को प्रदत्त जानकारी में इस बात का उल्लेख किया गया है कि बहुत जल्द सरकार रसोई गैस पर दी जाने वाली सब्सिडी को पूरी तरह से समाप्त करने वाली है| संभवतः वर्ष 2018 के मार्च तक पूरी तरह से सब्सिडी को समाप्त कर दिया जाएगा| विदित हो कि इस वर्ष 2017 के मई में जारी किये गए एक आदेश के अंतर्गत सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों को एल.पी.जी. सिलेंडरों के ‘प्रभावी मूल्य’ को संवर्धित करने संबंधी अधिकार प्रदान किया गया था|

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • विदित हो कि अभी कुछ समय पहले ही तेल कंपनियों द्वारा सब्सिडी युक्त सिलेंडरों की प्रभावी कीमत में 2 रुपए प्रति माह की वृद्धि की ओर संकेत प्रकट किया गया था| वहीं हाल ही में जारी एक आदेश के अंतर्गत इसकी प्रभावी कीमत में 4 रुपए की बढ़ोतरी की गई है| 
  • वस्तुतः ऐसा करने का कोई अन्यथा कारण नहीं है, बल्कि ऐसा इसलिये किया जा रहा है, ताकि ईंधन सब्सिडी को कम करके सरकारी राजकोष पर पड़ने वाले भार को कम किया जा सके|
  • जैसा कि हम सभी जानते हैं कि पिछले कुछ समय से वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में निरंतर कमी आ रही है, जिसके कारण स्थानीय बाज़ारों में सब्सिडी युक्त ईंधन एवं गैर-सब्सिडी युक्त ईंधन की कीमतों में कोई विशेष अंतर नहीं रह गया है| स्पष्ट रूप से इसका सबसे अधिक प्रभाव सरकार की जेब पर ही पड़ता है|
  • ध्यातव्य है कि चालू वित्त वर्ष के बजट में सरकार द्वारा तेल सब्सिडी के रूप में मात्र 25,000 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था, जो कि वर्ष 2013 के तेल सब्सिडी विधेयक (oil subsidy bill) में वर्णित सब्सिडी सीमा का चार गुना था| 
  • स्पष्ट है कि सब्सिडी में होने वाली कटौती का सीधा प्रभाव भारत की राजकोषीय स्थिति पर परिलक्षित होगा|

समाप्त किये जाने का कारण

  • वस्तुतः सब्सिडी को पूर्णतया समाप्त करने का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि पिछले कुछ वर्षों से प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के ज़रिये गरीबों के बैंक खातों में सब्सिडी का सफलतापूर्वक भुगतान किया जा रहा है|
  • अत: ऐसी किसी भी स्थिति में अन्य साधनों के ज़रिये सब्सिडी का भुगतान करना मात्र संसाधनों को व्यर्थ करना है|
  • संभवतः वर्तमान समय में कच्चे तेल की कीमतों में हो रही गिरावट के चलते सरकार ने ऐसा निर्णय किया है| 
  • एक अनुमान के अनुसार, वर्तमान में तकरीबन 18 करोड़ लोग (इनमें से अधिकतर गरीबी रेखा से ऊपर वाले हैं) रसोई गैस के लिये सब्सिडीयुक्त गैस सिलेंडरों पर आधारित हैं| 

निष्कर्ष 
ऐसे में यह कहना कि सब्सिडी समाप्ति का समाज पर कोई विशेष प्रभाव नहीं होगा, अप्रासंगिक प्रतीत होता है| हालाँकि इसमें कोई संदेह नहीं है कि जब वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि होगी तो सरकार इस कदम को बिलकुल भी वापिस नहीं लेगी| तब इस निर्णय के क्या प्रभाव होंगे, यह एक विचार का मुद्दा है| तथापि, सरकार का उद्देश्य रसोई गैस की कीमतों में सतत् कमी लाना होना चाहिये न कि पूर्ण रूप से सब्सिडी को समाप्त कर देना| ऐसा इसलिये किया जाना चाहिये, क्योंकि इससे न केवल दीर्घावधि के लिये उपभोक्ताओं पर पड़ने वाले बोझ को कम किया जा सकता है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय तेल कीमतों में आने वाले उतार-चढ़ाव के चलते सरकारी बजट पर पड़ने वाले प्रभावों को भी कम किया जा सकता है| इसके अतिरिक्त रसोई गैस के बाज़ार का विनियमन किये जाने से इसके प्रसार एवं प्रतिस्पर्द्धा में बढ़ोतरी होगी, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर परिलक्षित होगा|

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