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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अनाधिकृत वी.आई.पी. निवासियों का निष्कासन

  • 04 Aug 2017
  • 6 min read

संदर्भ
गौरतलब है कि अभी तक भारत में सरकारी आवासों में रहने वाले शक्तिशाली परन्तु अनाधिकृत निवासियों द्वारा सेवानिवृत्ति के पश्चात् सरकारी निवास खाली करने संबंधी आज्ञा की अवहेलना करने के संबंध में कोई विशेष व्यवस्था विद्यमान नहीं है| संभवतः इसी बात को ध्यान में रखते हुए सरकर द्वारा इस दिशा में कुछ आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं, ताकि भविष्य में ऐसी किसी भी स्थिति का सामना करने के लिये सटीक व्यवस्था मौजूद हो|

प्रमुख बिंदु

  • वस्तुत: इसी संदर्भ में विचार करते हुए एस.डी. बंडी बनाम विभागीय ट्रैफिक अधिकारी (S.D. Bandi versus Divisional Traffic Officer ) मामले में न्यायाधीश पी. सथासिवम की अध्यक्षता में सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ ने यह पाया कि सरकारी आवासों में रहने वाले अनाधिकृत लोगों को स्वयं यह महसूस होना चाहिये कि एक निश्चित समयावधि से अधिक समय के लिये सरकारी आवास में रहना प्रत्यक्षतः दूसरे लोगों के अधिकारों का उल्लंघन करना होता है|
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 1971 के सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत निवासियों का निष्कासन) अधिनियम [Public Premises (Eviction of Unauthorised Occupants) Act] में सार्वजनिक परिसरों में अनाधिकृत तौर पर रहने वाले निवासियों के निष्कासन के विषय में उल्लेख किया गया है, परंतु यह अधिनियम प्रायः सरकारी आवासों में रहने वाले वी.आई.पी. निवासियों को सरकारी आवासों से बाहर करने के संबंध में अप्रभावी रहा है|
  • सरकारी आवासों में अनाधिकृत तौर पर रहने वाले लोगों के निष्कासन हेतु न्यायालय में कई वर्षों से याचिकाएँ दायर की जाती रही हैं| हालाँकि, निष्कासन संबंधी आदेश का पालन करने के स्थान पर इन निवासियों के द्वारा प्रायः इस मामले में न्यायालय के हस्तक्षेप को ही वरीयता दी गई है|
  • संभवतः इसी बात को ध्यान में रखते हुए इस समस्या का समाधान करने हेतु सार्वजनिक परिसर (अनाधिकृत निवासियों का निष्कासन) संशोधन विधेयक को लोकसभा में पेश किया गया|
  • इस विधेयक में 1971 के अधिनियम की धारा 7 में एक नई उप-धारा (3A) को शामिल किया गया है| वस्तुतः यह धारा केवल तभी प्रभावी होगी, जब सरकारी आवासों में रहने वाला कोई भी अनाधिकृत निवासी निष्कासन संबंधी आदेश के विरोध में न्यायालय का रुख करेगा|
  • इसके तहत यदि कोई निवासी ऐसा करता है अथवा करती है तो उसे सरकारी आवास में अनाधिकृत रूप से रहने की समयावधि का बाज़ार मूल्य के आधार पर आगामी दो माह के अंदर किराये का भुगतान करना होगा| 
  • मौजूदा सरकारी आवास वितरण नियमों के अनुसार, किसी भी निवासी को सरकारी आवास में रहने के लाइसेंस के निरस्त होने पर आवास को शीघ्रातिशीघ्र खाली करना अनिवार्य है|
  • वर्ष 1971 के कानून में अनाधिकृत निवासियों के शीघ्र और समयबद्ध निष्कासन का प्रावधान किया गया है| 
  • इस नियम के अंतर्गत यह कहा गया है कि यदि कोई भी अनाधिकृत निवासी आवास को खाली करने से इनकार करता है तो न्यायालय द्वारा उक्त निष्कासन प्रक्रिया में मात्र पाँच से सात सप्ताह का समय लगना चाहिये|
  • परंतु, वास्तविकता यह है कि उक्त कानून के अंतर्गत लिखित सिद्धांत व्यावहारिक रूप में इसके बिलकुल विपरीत हैं| 
  • वर्ष 1971 के इस अधिनियम में संक्षित रूप में निष्कासन प्रक्रियाओं का उल्लेख किया गया है, जिसके अंतर्गत संपत्ति अधिकारी को नोटिस देने के लिये किसी प्रक्रिया से होकर नहीं गुजरना पड़ता है, साथ ही निष्कासन आदेश पारित करने के लिये उसका कारण, कार्यवाही और सुनवाई भी नहीं होती है|
  • परंतु, समस्या यह है कि यह समस्त प्रक्रिया सरकारी आवासों पर लागू नहीं होती है| संभवतः यही वह मूल कमी है, जिसका इस्तेमाल अनाधिकृत निवासियों द्वारा उठाया जाता है और यही कारण है कि वे निष्कासन आदेश के स्थगन के लिये उच्च न्यायालयों का रुख करते हैं|
  • स्पष्ट रूप से इसी कारणवश इस अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव रखा गया है, ताकि इसमें एक नई धारा 3बी का समावेश किया जा सके| उल्लेखनीय है कि इस धारा में सरकारी आवासों के लिये भी संक्षिप्त निष्कासन प्रकिया को लागू करने का प्रावधान किया गया है| हालाँकि, इसके लिये पहले अनाधिकृत निवासी को तीन दिन का कारण बताओ नोटिस जारी किया जाना आवश्यक है|
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