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चिल्का झील में मछलियों का वाणिज्यीकरण संकट के दौर में

  • 04 Aug 2017
  • 8 min read

संदर्भ 
समुद्र के मार्ग से उड़ीसा की चिल्का झील में प्रवासन करने वाली मछलियों की कई प्रकार की प्रजातियों को पकड़ने हेतु प्रयोग किये जाने वाले छोटे और शून्य आकार के जालों का  बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है, जिसके कारण न केवल इस क्षेत्र विशेष में अत्यधिक मत्स्यन (जिससे मछलियों की प्रजनन दर में कमी आती है) की समस्या उत्पन्न हो गई है, बल्कि इस झील में रह रही वाणिज्यिक रूप से महत्त्वपूर्ण मछलियों की कम से कम पाँच प्रजातियाँ भी खतरे के दायरे में आ गई हैं|

  • इतना ही नहीं बल्कि वाणिज्यिक रूप से उपयोगी इन मछलियों की प्रजाति के विलुप्तिकरण के कारण परंपरागत रूप से मछलीपालन करने वाले बहुत से समुदायों (जो चिल्का झील के आस-पास रहते हैं) की आजीविका पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है|
  • ध्यातव्य है कि चिल्का लैगून में प्रचुर मात्रा में मछलियों की भिन्न-भिन्न प्रजातियाँ पाई जाती हैं|

प्रतिकूल पारिस्थितिक तंत्र

  • गौरतलब है कि केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान (Central Inland Fisheries Research Institute - CIFRI) बराकपुर (Barrackpore) द्वारा इस क्षेत्र में पाई जाने वाली मछलियों की प्रमुख पाँच प्रजातियों की पहचान की गई है, जिनके नाम क्रमशः खैंगा (Mugil cephalus), डांगला (Liza macrolepis), बोरगा (Dayscaena albida) सहाला (eleutheromema tetradactylum) और कुण्डला (Etroplus suratenis) हैं|
  • इन प्रजातियों को विकसित होने के लिये प्राय: प्रतिकूल पारिस्थितिक तंत्र की आवश्यकता होती है| 

केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान 

  • भारत में नदियों, ज्वारनदमुखों, जलाशयों, बाढ़ के मैदानों, झीलों, तटीय खाड़ियों और अप्रवाही जल के रूप में अंतर्देशीय मत्स्य संसाधन के विस्तृत और विभिन्न प्रकार मौजूद हैं जो देश के मत्स्य उत्पादन क्षेत्र में अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं| 
  • ये खाद्य और पोषण सुरक्षा, रोज़गार सृजन और लाखों लोगों की आजीविका का माध्यम भी हैं|
  • अंतर्देशीय मत्स्यन की भूमिका को मान्यता प्रदान करते हुए भारत सरकार ने खाद्य और कृषि मंत्रालय के अंतर्गत 19 मार्च 1947 को कलकत्ता में एक केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान स्टेशन की स्थापना की थी|
  • वर्ष 1959 में केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान स्टेशन को पूर्णतः एक अनुसंधान संस्थान में परिवर्तित करके इसका नाम केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान कर दिया गया|
  • वर्ष 1967 में इसे कृषि मंत्रालय (वर्तमान में इसे कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के नाम से जाना जाता है) के आई.सी.ए.आर. (Indian Council of Agricultural Research) विभाग के अधीन कर दिया गया| 
  • यह संस्थान सतत् मत्स्यन, जलीय जैव-विविधता के संरक्षण, पारिस्थितिक सेवाओं की अखंडता एवं इस जल से सामाजिक लाभ पहुँचाने वाली गतिविधियों के संबंध में ज्ञान आधारित प्रबंधन की व्यवस्था सुनिश्चित करता है| 
  • इस संस्थान का मुख्यालय बराकपुर, पश्चिम बंगाल में अवस्थित हैं,  जबकि इसके अनुसंधान केंद्र कोच्चि और कोलकाता में हैं| इसके क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र क्रमशः इलाहाबाद, गुवाहाटी, बंगलुरु और वड़ोदरा में अवस्थित हैं|
  • सी.आई.एफ.आर.आई. द्वारा चिल्का लैगून में मछलियों की लंबाई, आवृत्ति, अंडे देने के मौसम और मत्स्य संसाधन के संबंध में जानकारी प्राप्त करने के लिये जैविक और पारिस्थितिक सर्वेक्षण किया गया|
  • इस सर्वेक्षण में पाया गया कि इस झील में मछलियों की लंबाई, आकार और  अंडे देने संबंधी बायोमास (spawning stock biomass -SSB) में गिरावट आई है| 
  • एस.एस.बी. से तात्पर्य एक स्टॉक में उपस्थित मछलियों के ऐसे समूह से है, जो कि अंडे देने में सक्षम हैं| 
  • स्पष्ट है कि एस.एस.बी. में आई गिरावट चिंता का विषय है| खैंगा के मामले में एस.एस.बी. गिरावट का स्तर 82.64% पर है, जबकि सहाला, डांगला, बोरगा और कुण्डला के मामले में आई गिरावट क्रमशः 89.73%, 87.1%, 80.9% और 80% के स्तर पर है|
  • वस्तुत: मछलियों की संख्या में आई इस तीव्र गिरावट का अर्थ यह है कि मछलियों की पाँच किस्मों में एस.एस.बी. का स्तर 20% से भी कम हो गया है, जो कि मत्स्य पालन के संदर्भ में गंभीर चिंता का विषय है|

कारण

  • उल्लेखनीय है कि चिल्का झील में छोटे और शून्य आकार के जालों का प्रयोग मछलियों के समूहों और शैल मछली की प्रजातियों को पकड़ने के लिये किया जाता है| इसके कारण वाणिज्यिक रूप से उपयोगी प्रजातियों की कई मछलियों के लार्वा और भ्रूण नष्ट हो जाते हैं|
  • स्पष्ट रूप में कहा जाए तो इससे मछलियों के प्रजनन हेतु आवश्यक पारिस्थितिकी को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचता है| 
  • ध्यातव्य है कि किसी भी झील का मत्स्यन उद्योग मुख्यतः मछलियों की प्रजातियों के विस्तार पर निर्भर करता है, जो कि समुद्र के मुहाने से लैगून में प्रवेश करती हैं| विनाशकारी जालों के घने संजाल लार्वा, किशोर और वयस्क मछलियों के मुक्त आवागमन में अवरोध उत्पन्न करते हैं, जिसका परिणाम एस.एस.बी. में गिरावट के रूप में सामने आता है|

सबसे बड़ा अवरोध 

  • इस संबंध में सबसे बड़ी बाधा यह है कि इस क्षेत्र विशेष की वाणिज्यिक मछलियों के एस.एस.बी. में आई गिरावट का सबसे अधिक प्रभाव स्थानीय मछुआरों पर पड़ेगा|
  • मछली पकड़ने के लिये मछलियों के बाड़े (fish enclosure) का निर्माण करने से समुद्र और झील के मध्य मछलियों के प्रवासन में बाधा आती है|
  • इस संबंध में उपग्रहों द्वारा लिये गए चित्रों से प्राप्त जानकारी में यह पाया गया है कि मानव निर्मित इन बाड़ों के अंतर्गत चिल्का झील के तकरीबन 14,590 हेक्टेयर क्षेत्र का उपयोग झींगे की खेती (prawn cultivation), जो कि गैर-क़ानूनी है, के लिये किया जाता है|
  • यह और बात है कि वर्तमान में तकरीबन 2,000 हेक्टेयर से भी अधिक के क्षेत्र में फैले बाड़ों को हटा दिया गया है|
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