प्रयागराज शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 10 जून से शुरू :   संपर्क करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

राज्यसभा चुनाव में ‘नोटा’ विकल्प पर रोक नहीं : सर्वोच्च न्यायालय

  • 04 Aug 2017
  • 7 min read

संदर्भ
सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ (न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, अमिताव रॉय और ए.एम. खानविलकर) ने 8 अगस्त 2017 को गुजरात की 3 सीटों पर राज्यसभा चुनाव में 'इनमें से कोई भी नहीं' (None Of The Above-NOTA) विकल्प पर रोक लगाने की गुजरात काँग्रेस की एक याचिका को अस्वीकार कर दिया है।

‘नोटा’ क्या है ?

  • यह मतदान के दौरान किसी भी उम्मीदवार को न चुनने का एक विकल्प है, जिसके प्रयोग के लिये मतदान मशीन में एक बटन लगा रहता है। 
  • इसका अर्थ है ‘इनमें से कोई नहीं’।

उद्देश्य

  • इसका उद्देश्य मतदाताओं को चुनाव में खड़े उम्मीदवारों में से किसी को भी अपना मत न देने के अधिकार के प्रति सजग करना है। 
  • नोटा का सबसे अधिक बार (2.49%) प्रयोग बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में किया गया था। 
  • यदि किसी चुनाव में नोटा मत ही सबसे अधिक हो तो इस पर निर्वाचन आयोग का कहना है कि ऐसी परिस्थिति में सर्वाधिक मत पाने वाले उम्मीदवार को विजयी घोषित किया जाएगा। 
  • नोटा चिह्न को एन.आई.डी., अहमदाबाद ने अभिकल्पित किया है।  

प्रमुख बिंदु 

  • सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने राज्यसभा चुनावों में नोटा लागू करने संबंधी निर्वाचन आयोग के जनवरी 2014 में जारी परिपत्र पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है । 
  • गौरतलब है कि गुजरात काँग्रेस ने 8 अगस्त, 2017 को गुजरात की 3 सीटों पर होने वाले राज्यसभा चुनाव में नोटा विकल्प पर रोक लगाने के लिये सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी।   
  • काँग्रेस के वकील कपिल सिब्बल ने न्यायालय के समक्ष अपना तर्क रखा कि यदि गुजरात चुनाव में नोटा का विकल्प बंद नहीं किया गया तो यह भ्रष्टाचार का सबब बन सकता है क्योंकि वहाँ प्रतिस्पर्द्धा अधिक है। ऐसा पहली बार हुआ है कि गुजरात में तीन राज्यसभा सीटों पर चार उम्मीदवार खड़े हैं।
  • काँग्रेस की अर्जी को खारिज़ करने के बाद अब राज्यसभा सीटों पर चुनाव नोटा के विकल्प के साथ ही होंगे। 
  • पार्टी के सचेतक के बावजूद विधायक अपनी पसंद का इस्तेमाल कर सकते हैं। 

 

निर्वाचन आयोग को नोटिस

  • हालाँकि, अदालत ने भारत निर्वाचन आयोग को भी नोटिस ज़ारी किया है।

  • न्यायालय का मानना है कि चुनाव निकाय के पक्ष को भी विस्तार से सुना जाना चाहिये  क्योंकि नोटा पर कोई  भी न्यायिक निर्णय 24 जनवरी, 2014 से वर्तमान समय तक हुए चुनावों को प्रभावित कर  सकता है।                                 

हस्तक्षेप नहीं

  • अदालत ने अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल के प्रस्तुतीकरण को विशेष रूप से दर्ज़ किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत सरकार निर्वाचन आयोग के फैसले में किसी भी प्रकार से हस्तक्षेप नहीं करती है और इसलिये इस मामले में उसकी कोई भूमिका नहीं है।

राज्यसभा चुनावों में नोटा का प्रयोग 

  • ऐसा नहीं है कि 8 अगस्त 2017 को होने वाले राज्यसभा चुनाव में पहली बार नोटा पेश किया जा रहा हो, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2013 के एक निर्देश के अनुसार, वर्ष 2014 से उच्च सदन के सभी चुनावों में इस विकल्प का प्रयोग किया जा रहा है।
  • 27 सितंबर, 2013 को सर्वोच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि अमेरिका, फ्रांस, ब्राज़ील, बांग्लादेश, स्वीडन और स्पेन सहित 13 देशों में नोटा प्रणाली प्रचलित है।
  • निर्वाचन आयोग ने अक्टूबर 2013 में चुनावों में नोटा विकल्प प्रदान करने का निर्देश जारी किया। परंतु, राज्यसभा चुनाव में इसके प्रयोज्यता के बारे में उस समय संदेह व्यक्त किया गया।
  • इस मुद्दे की जाँच के बाद निर्वाचन आयोग ने 24 जनवरी, 2014 को निर्देश दिया कि यह विकल्प राज्यसभा के चुनाव में भी लागू होगा। 
  • तत्पश्चात उसी वर्ष 7 फरवरी को 16 राज्यों में आयोजित ऊपरी सदन के द्विवार्षिक चुनावों के लिये नोटा का विकल्प मतदान मशीन में पेश किया गया था।
  • 27 फरवरी, 2014 को विधानपरिषद के चुनावों में नोटा विकल्प को बढ़ाते समय चुनाव निकाय ने इसके उपयोग पर और निर्देश जारी किया।
  • मौजूदा नियमों को ध्यान में रखते हुए निर्वाचक, पार्टी के सचेतक के बावजूद, अपनी पसंद का प्रयोग कर सकते हैं और ऐसा करने पर उन्हें विधायकों के रूप में अयोग्यता का सामना नहीं करना पड़ता है। इस मामले में कुलदीप नायर बनाम भारत संघ वाद में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला महत्त्वपूर्ण है।

कुलदीप नायर बनाम भारत संघ वाद 

  • इस मामले में खुली मतपत्र प्रणाली को शुरू करने वाले संशोधनों को चुनौती दी गई थी, लेकिन अदालत ने उन्हें खारिज़ कर दिया था।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि राज्यसभा के चुनाव में मतदाताओं की अभिव्यक्ति का अधिकार खुले मतपत्र से प्रभावित होता है, यह तर्क संगत नहीं है, क्योंकि एक निर्वाचित विधायक को एक विशेष तरीके से मतदान के लिये सदन की सदस्यता से किसी भी अयोग्यता का सामना नहीं करना होता है।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2