भारतीय राजव्यवस्था
सिविल सेवकों के लिये नए पेंशन नियम
- 04 Jun 2021
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प्रिलिम्स के लियेकेंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964; सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005; केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) संशोधन नियम, 2020; केंद्रीय सिविल सेवा पेंशन नियम, 1972 मेन्स के लियेसेवानिवृत्त अधिकारियों के लिये नए पेंशन नियम के निहितार्थ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने सेवानिवृत्ति के बाद खुफिया और सुरक्षा संगठनों के अधिकारियों पर नए प्रतिबंध लगाते हुए अपने पेंशन नियमों में संशोधन किया है।
- सरकार ने केंद्रीय सिविल सेवा पेंशन नियम, 1972 के नियम-8(3)(ए) में संशोधन किया है।
- केंद्र ने केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) संशोधन नियम, 2020 को अधिसूचित किया है।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि:
- उक्त नियमों को पहली बार वर्ष 1972 में तैयार किया गया था, जिसमें अब तक 47 बार संशोधन किया जा चुका है।
- वर्ष 2008 में "भविष्य के अच्छे आचरण के अधीन पेंशन" (Pension Subject to Future Good Conduct) से संबंधित नियम 8 में पहली बार इस शर्त को शामिल करते हुए संशोधन किया गया था कि सेवानिवृत्त खुफिया और सुरक्षा अधिकारी ऐसी कोई भी सामग्री प्रकाशित नहीं करेंगे जो भारत की संप्रभुता तथा अखंडता, सुरक्षा, रणनीतिक, वैज्ञानिक या राज्य के आर्थिक हित, किसी विदेशी राज्य के साथ संबंध एवं जो किसी अपराध को भड़काने की ओर ले जाए।
संशोधित नियम-8(3)(ए):
- कुछ खुफिया या सुरक्षा प्रतिष्ठानों (आरटीआई अधिनियम की दूसरी अनुसूची के तहत शामिल) के सेवानिवृत्त अधिकारियों को बिना अनुमति के अपने संगठन के बारे में कुछ भी लिखने की अनुमति नहीं होगी।
- सूचना का अधिकार (Right to Information) अधिनियम, 2005 की दूसरी अनुसूची में इंटेलिजेंस ब्यूरो, रॉ, राजस्व खुफिया निदेशालय, सीबीआई, एनसीबी, बीएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी और सीआईएसएफ सहित 26 संगठन शामिल हैं।
- सेवानिवृत्त अधिकारियों को एक वचनबद्ध फॉर्म 26 पर हस्ताक्षर करने और यह घोषित करने की आवश्यकता होती है कि सक्षम प्राधिकारी के पूर्व अनुमोदन के बिना वे "संगठन के अधिकार क्षेत्र और उक्त संगठन में काम करने से संबंधित कोई भी जानकारी प्रकाशित नहीं करेंगे।
- यह संशोधन "संगठन के अधिकार क्षेत्र, किसी भी कर्मचारी और उसके पदनाम के बारे में कोई संदर्भ या जानकारी तथा उस संगठन में काम करने के आधार पर प्राप्त विशेषज्ञता या ज्ञान" से संबंधित किसी भी जानकारी को शामिल करने के दायरे का विस्तार करता है।
संशोधन का उद्देश्य:
- यह संशोधन सचिवों की समिति (Committee of Secretaries) द्वारा इसकी सिफारिश किये जाने के बाद लगभग चार वर्षों से प्रक्रिया में था।
- यह कदम इस तथ्य से उत्पन्न चिंताओं से प्रेरित था कि कुछ हाई-प्रोफाइल सेवानिवृत्त अधिकारियों ने अपने कार्यकाल पर किताबें लिखी थीं और इनमें से कुछ ने गुप्त जानकारियों का खुलासा किया था।
निहितार्थ:
- नियम 8 में संशोधन का मतलब है कि अगर पेंशनभोगी नियमों की अवहेलना करता है तो पेंशन रोकी या काटी जा सकती है।
- नियमों में इस बदलाव से सुरक्षा और खुफिया संगठनों के उन सेवानिवृत्त अधिकारियों के प्रभावित होने की संभावना है जो अपने पूर्व संगठनों तथा अनुभवों पर समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं या पुस्तकों में लिखते रहे हैं।
सिविल सेवकों से संबंधित नियम
सीसीएस पेंशन नियम-1972 का नियम 9 (सेवानिवृत्ति के बाद विभागीय कार्यवाही):
- इसमें कहा गया है कि यदि किसी सरकारी अधिकारी ने कोई कदाचार किया है और सेवानिवृत्त होता है, तो उसे उस कदाचार की तारीख के चार वर्ष बाद तक ही विभागीय कार्यवाही का सामना करना पड़ सकता है।
केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964:
- यह सेवा में रहते हुए सरकारी कर्मचारियों पर कुछ प्रतिबंध लगाता है।
- नियम 7: यह सरकारी कर्मचारियों को किसी भी प्रकार की हड़ताल, दबाव आदि का सहारा लेने से प्रतिबंधित करता है।
- नियम 8: यह इन्हें सरकारी मंज़ूरी के अलावा किसी समाचार पत्र, अन्य आवधिक प्रकाशन, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के संपादन, प्रबंधन में स्वामित्व आदि से प्रतिबंधित करता है।
- नियम 9: यह एक सरकारी कर्मचारी को ऐसी राय या तथ्य लिखित, टेलीकास्ट या प्रसारण रूप में देने से प्रतिबंधित करता है जिसका केंद्र सरकार या राज्य सरकार की किसी भी मौजूदा या हालिया नीति या कार्रवाई पर आलोचनात्मक प्रभाव पड़ता हो।
- सरकारी सेवा में रहते हुए राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध:
- आचरण नियम सरकारी कर्मचारियों को किसी भी राजनीतिक दल या संगठन से जुड़े होने और किसी भी राजनीतिक गतिविधि में भाग लेने या सहायता करने से रोकता है।
- वर्ष 2014 में एक संशोधन द्वारा प्रावधान किया गया है कि "प्रत्येक सरकारी कर्मचारी हर समय राजनीतिक तटस्थता बनाए रखेगा" और "संविधान तथा लोकतांत्रिक मूल्यों की सर्वोच्चता के लिये खुद को प्रतिबद्ध बनाए रखेगा"।
नियम 26, अखिल भारतीय सेवाएँ (मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति लाभ नियम), 1958 (सेवानिवृत्ति के बाद रोज़गार):
- यह केंद्र सरकार की पिछली मंज़ूरी को छोड़कर, सेवानिवृत्ति के बाद एक वर्ष के लिये किसी भी व्यावसायिक रोज़गार करने से पेंशनभोगी को प्रतिबंधित करता है।
- इस नियम के उल्लंघन की स्थिति में केंद्र सरकार यह घोषित कर सकती है कि कर्मचारी "पेंशन के पूरे या एक निर्दिष्ट हिस्से का हकदार नहीं है"।
सेवानिवृत्ति के बाद राजनीति में शामिल होना:
- सरकारी कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद राजनीति में आने से रोकने का कोई नियम नहीं है।
- चुनाव आयोग (Election Commission) ने वर्ष 2013 में कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (Department of Personnel and Training- DoPT) तथा कानून मंत्रालय को पत्र लिखकर नौकरशाहों के लिये सेवानिवृत्ति के बाद राजनीति में शामिल होने हेतु कूलिंग-ऑफ पीरियड (Cooling-Off Period) का सुझाव दिया था, लेकिन इसे खारिज़ कर दिया गया था।
- कानून मंत्रालय के विधायी विभाग ने सलाह दी कि "इस तरह का कोई भी प्रतिबंध (राजनीति में शामिल होने या चुनाव लड़ने वाले अधिकारियों के खिलाफ) भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) के अंतर्गत वैध नहीं है"। इसके साथ ही डीओपीटी ने चुनाव आयोग से यह भी कहा कि उसके सुझाव "उचित और व्यवहार्य नहीं हो सकते हैं"।