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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

इज़रायल के विरुद्ध प्रस्ताव पर भारत की स्थिति

  • 04 Jun 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद

मेन्स के लिये

इज़रायल फिलिस्तीन विवाद, फिलिस्तीन के संबंध में भारत की रणनीति

चर्चा में क्यों?

हाल ही में फिलिस्तीन ने भारत को फिलिस्तीनी नागरिकों के मानवाधिकारों को दबाने हेतु दोषी ठहराया है, क्योंकि भारत ने फिलिस्तीनी मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम प्रस्ताव से स्वयं को अलग कर लिया है।

  • भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) में उस प्रस्ताव पर मतदान से स्वयं को अलग किया, जो कि फिलिस्तीनी क्षेत्रों के तटीय भाग, इज़रायल और गाजा पट्टी के बीच संघर्ष के नवीनतम घटनाक्रम से संबंधित था।
  • UNHRC संयुक्त राष्ट्र (UN) प्रणाली के भीतर एक अंतर-सरकारी निकाय है, जो दुनिया भर में मानवाधिकारों के प्रचार और संरक्षण को मज़बूत करने के लिये उत्तरदायी है।

Jerusalem

प्रमुख बिंदु

प्रस्ताव

  • इस प्रस्ताव के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से गाजा, वेस्ट बैंक और फिलिस्तीन में मानवाधिकारों के उल्लंघन की जाँच के लिये एक स्थायी आयोग गठित करने का आह्वान किया गया था।
  • इस प्रस्ताव को 24 सदस्यों के वोट के साथ अपनाया गया। 9 सदस्यों ने इसके विरुद्ध मतदान किया, जबकि भारत सहित 14 सदस्यों ने इसमें हिस्सा नहीं लिया।
    • मतदान में हिस्सा न लेने वाले देशों में भारत के साथ-साथ फ्रांँस, इटली, जापान, नेपाल, नीदरलैंड, पोलैंड और दक्षिण कोरिया शामिल थे।
    • इसके पक्ष में मतदान करने वाले देशों में चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश और रूस शामिल थे, वहीं जर्मनी, ब्रिटेन और ऑस्ट्रिया ने प्रस्ताव के विरुद्ध मतदान किया।
  • प्रस्ताव के पारित होने के साथ ही इज़रायल द्वारा अंतर्राष्ट्रीय कानून के उल्लंघन की जाँच के लिये एक स्वतंत्र जाँच आयोग का गठन किया गया है।

फिलिस्तीन का पक्ष

  • यह संकल्प मानवाधिकार परिषद के लिये एक ‘विपथन’ (Aberration) नहीं है। यह व्यापक बहुपक्षीय परामर्श का उपोत्पाद है।
  • यह राज्यों, संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों, मानवाधिकार संधि निकायों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा इज़रायल के गंभीर उल्लंघनों की वर्षों की गहन जाँच और रिपोर्टिंग है।
    • फिलिस्तीनी लोग अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून की प्रयोज्यता से वंचित थे।
    • फिलिस्तीनी लोगों के खिलाफ अन्याय का मूल कारण इज़रायल द्वारा बेदखली, विस्थापन, उपनिवेशीकरण था।
  • इसलिये भारत का स्वयं को इस प्रस्ताव से अलग करने का निर्णय फिलिस्तीनी लोगों सहित संपूर्ण विश्व के नागरिकों के मानवाधिकारों को आगे बढ़ाने में मानवाधिकार परिषद के महत्त्वपूर्ण कार्य में बाधा डालता है।
    • भारत ने जवाबदेही, न्याय और शांति के लंबित मार्ग पर इस महत्त्वपूर्ण समय में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ शामिल होने का अवसर गँवा दिया है।

इज़रायल-फिलिस्तीन मुद्दे पर भारत की अब तक की स्थिति

  • भारत ने वर्ष 1950 में इज़रायल को मान्यता दी थी, किंतु यह ‘फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइज़ेशन’ (PLO) को फिलिस्तीन के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब देश भी है।
    • भारत वर्ष 1988 में फिलिस्तीन को राज्य का दर्जा देने वाले पहले देशों में से एक है।
  • वर्ष 2014 में भारत ने गाजा में इज़रायल के मानवाधिकारों के उल्लंघन की जाँच के लिये संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के प्रस्ताव का समर्थन किया था। जाँच का समर्थन करने के बावजूद भारत ने वर्ष 2015 में ‘संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद’ में इज़रायल के खिलाफ मतदान से परहेज किया था।
  • ‘लिंक वेस्ट पॉलिसी’ के एक हिस्से के रूप में भारत ने वर्ष 2018 में दोनों देशों के साथ परस्पर स्वतंत्र और अनन्य व्यवहार करने के लिये इज़रायल और फिलिस्तीन के साथ अपने संबंधों को डीहाइफनेटेड यानी स्वयं को उससे अलग कर दिया है।
  • जून 2019 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद (ECOSOC) में इज़रायल द्वारा पेश किये गए एक निर्णय के पक्ष में मतदान किया था, जिसमें एक फिलिस्तीनी गैर-सरकारी संगठन को सलाहकार का दर्जा देने पर आपत्ति जताई गई थी।
  • मार्च 2021 में अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) ने इज़रायल (वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी) के कब्ज़े वाले फिलिस्तीनी क्षेत्रों में युद्ध अपराधों की जाँच शुरू की थी।
    • इज़रायल चाहता था कि भारत इसके खिलाफ स्टैंड ले, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
  • अब तक भारत ने फिलिस्तीनी आत्मनिर्णय के लिये अपने ऐतिहासिक नैतिक समर्थक की छवि को बनाए रखने की कोशिश की है और इज़रायल के साथ सैन्य, आर्थिक और अन्य रणनीतिक संबंधों में संलग्न होने का प्रयास किया है।

आगे की राह

  • दुनिया में सबसे लंबे समय तक चलने वाले संघर्ष पर भारत की नीति पहले चार दशकों के लिये स्पष्ट रूप से फिलिस्तीन समर्थक होने से लेकर अब इज़रायल के साथ अपने तीन दशक पुराने मैत्रीपूर्ण संबंधों के साथ तनावपूर्ण संतुलन स्थापित तक पहुँच गई है।
    •  मौजूदा बहुध्रुवीय विश्व में भारत को संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
  • व्यापक पैमाने पर विश्व को शांतिपूर्ण समाधान के लिये एक साथ आने की आवश्यकता है, लेकिन इज़रायल सरकार और अन्य शामिल दलों की अनिच्छा ने इस मुद्दे को और अधिक बढ़ा दिया है। इस प्रकार एक संतुलित दृष्टिकोण ही अरब देशों के साथ-साथ इज़रायल के साथ अनुकूल संबंध बनाए रखने में मदद करेगा। 
  • इज़रायल और संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, सूडान तथा मोरक्को के बीच हालिया सामान्यीकरण समझौते, जिन्हें अब्राहम समझौते के रूप में जाना जाता है, सही दिशा में उठाया गया एक महत्त्वपूर्ण कदम हैं। सभी क्षेत्रीय शक्तियों को अब्राहम समझौते की तर्ज पर दोनों देशों के बीच शांति की परिकल्पना करनी चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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