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एडिटोरियल

  • 30 Mar, 2024
  • 23 min read
भारतीय राजनीति

चंडीगढ़ का मेयर चुनाव: नगर निगम सुधारों का उत्प्रेरक

यह एडिटोरियल 27/03/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “It is time for comprehensive reforms to municipal elections” लेख पर आधारित है। इसमें नगर निकाय के चुनावों के आयोजन से संबद्ध चुनौतियों के बारे में चर्चा की है और इन चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये राज्य चुनाव आयोग की भूमिका में विस्तार की आवश्यकता का सुझाव दिया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

शहरी स्थानीय शासन, पंचायतें, सर्वोच्च न्यायालय, राज्य निर्वाचन आयोग, 74वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1992, संविधान का अनुच्छेद 142।

मेन्स के लिये:

चंडीगढ़ मेयर चुनाव के बारे में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला, स्थानीय शहरी निकायों को सशक्त बनाने की चुनौतियाँ और समाधान।

चंडीगढ़ मेयर चुनाव के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के हाल के निर्णय ने नगर निकाय चुनावों पर व्यापक रूप से विचार करने की आवश्यकता को प्रेरित किया है। जबकि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव अपने समयबद्ध अभ्यास, संगठनात्मक दक्षता और सत्ता के निर्बाध हस्तांतरण के कारण सराहनीय लोकतांत्रिक अभ्यासों के रूप में सामने आते हैं, पंचायतों और नगर निकायों जैसे स्थानीय सरकारों के चुनावों पर हमेशा यही बात लागू होती नज़र नहीं आती।

न्यायालय के हस्तक्षेप ने एक शहर में एक विशिष्ट मुद्दे को तो संबोधित कर दिया, लेकिन यह पूरे भारत में स्थानीय सरकारों को सुदृढ़ करने के लिये पर्याप्त सुधारों की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

चंडीगढ़ मेयर चुनाव, 2024 से संबद्ध विवाद:

  • चुनाव का महत्त्व: चंडीगढ़ मेयर चुनाव का अत्यंत महत्त्व रहा था क्योंकि इसने प्रमुख विपक्षी दलों के बीच एक आरंभिक गठबंधन का संकेत दिया था, जो सत्तारूढ़ दल के लिये एक एकीकृत चुनौती पेश कर रहा था। आगामी लोकसभा चुनावों के लिये अन्य राज्यों में भी संभावित सहयोग के लिये चंडीगढ़ मेयर चुनाव एक आधार प्रदान कर रहा था।
  • आरंभिक स्थगन: सर्वप्रथम, मूल रूप से 18 जनवरी को निर्धारित मतदान तिथि को पीठासीन अधिकारी के बीमार होने के आधार पर स्थगित कर दिया गया। इसके बाद, UT प्रशासन ने 6 फ़रवरी को नई मतदान तिथि के रूप में पेश किया। हालाँकि, विपक्षी दलों ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय से हस्तक्षेप की मांग की, जिसके परिणामस्वरूप 30 जनवरी को चुनाव कराना तय किया गया।
  • चुनाव के दिन अवव्यवस्था: चुनाव के दिन सत्तारूढ़ दल की 16 वोटों के साथ जीत और विपक्षी दलों की 12 वोटों के साथ हार की घोषणा से विवाद छिड़ गया। पीठासीन पदाधिकारी द्वारा आठ मतों को अवैध घोषित कर दिया गया था। विपक्ष ने पीठासीन अधिकारी पर वोटों को गलत तरीके से अमान्य करने का आरोप लगाते हुए चुनाव परिणाम पर अपनी चिंता जताई।
  • कानूनी लड़ाई: न्याय की तलाश में विपक्षी दलों ने तुरंत उच्च न्यायालय का रुख किया। उसके निर्णय से असंतुष्ट होकर फिर वे सर्वोच्च न्यायालय के पास पहुँचे जिसने लोकतंत्र को अक्षुण्ण रखने के प्रति अपने समर्पण की पुष्टि करते हुए मामले में आलोचनात्मक टिप्पणियाँ जारी कीं।
  • मेयर का इस्तीफा: बढ़ते विवाद के बीच नवनिर्वाचित मेयर ने इस्तीफा देने का विकल्प चुना।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: 20 फ़रवरी 2024 को सर्वोच्च न्यायालय ने अपना निर्णय दिया, जहाँ इसने पूर्व के चुनाव परिणाम को पलट दिया और विपक्षी गठबंधन के उम्मीदवार को असल विजेता घोषित किया।
    • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव परिणामों को पलटने के लिये संविधान के अनुच्छेद 142 का उपयोग किया।

चंडीगढ़ मेयर चुनाव के बारे में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:

  • आठ मतपत्रों को अवैध करने का जानबूझकर किया गया प्रयास: चंडीगढ़ मेयर चुनाव के पीठासीन अधिकारी ने गलत तरीके से विजयी हुए दल के पक्ष में जानबूझकर आठ मतपत्रों को अवैध/अमान्य करने का प्रयास किया।
  • पीठासीन अधिकारी का गैर-कानूनी आचरण: न्यायालय ने कहा कि पीठासीन अधिकारी के आचरण की दो स्तरों पर निंदा की जानी चाहिये।
    • सबसे पहले, अपने आचरण से उसने गैर-कानूनी तरीके से मेयर चुनाव का परिणाम बदल दिया।
    • दूसरा, न्यायालय के समक्ष बयान दर्ज कराने में अधिकारी ने ‘स्पष्ट रूप से झूठ’ (patent falsehood) व्यक्त किया जिसके लिये उसे जवाबदेह ठहराया जाना चाहिये।
  • कारण पृच्छा नोटिस: न्यायिक रजिस्ट्रार को निर्देश दिया गया है कि वह पीठासीन अधिकारी को समान कर पूछे कि उसके विरुद्ध क्यों नहीं कार्रवाई की जानी चाहिये।
  • चुनावी लोकतंत्र की रक्षा करना: सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वह यह सुनिश्चित करने के लिये बाध्य है कि चुनावी लोकतंत्र की प्रक्रिया विफल न हो। लोकतंत्र की पूरी इमारत सिद्धांतों पर ही निर्भर करती है।
    • न्यायालय को यह सुनिश्चित करने के लिये कदम उठाना चाहिये कि चुनावी लोकतंत्र का मूल जनादेश संरक्षित रहे।

भारत में शहरी स्थानीय सरकार के लिये प्रमुख प्रावधान:

  • 74वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1992: भारत में ‘शहरी स्थानीय सरकार’ (Urban Local Government) शब्द लोगों द्वारा अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से शहरी क्षेत्र के शासन को दर्शाता है। शहरी सरकार की प्रणाली को वर्ष 74वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1992 के माध्यम से संवैधानिक बनाया गया था।
  • संवैधानिक अधिदेश:
    • 74वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम ने भारत के संविधान में एक नया भाग IX-A शामिल किया। इस भाग को ‘नगरपालिकाएँ’ (The Municipalities) कहा गया है और इसमें अनुच्छेद 243-P से 243-ZG तक के प्रावधान शामिल हैं।
    • इसके अलावा, इस अधिनियम ने संविधान में एक नई बारहवीं अनुसूची भी जोड़ी है। इस अनुसूची में नगर निकायों के अठारह कार्यात्मक मद शामिल हैं। यह अनुच्छेद 243-W से संबद्ध है।
    • इस अधिनियम ने नगर निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया। इसने उन्हें संविधान के न्याययोग्य (justiciable) हिस्से के दायरे में ला दिया है।
  • नगर निकायों के चुनाव: मतदाता सूची की तैयारी और नगर निकायों के सभी चुनावों के आयोजन का अधीक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण राज्य निर्वाचन आयोग में निहित है। राज्य विधायिका नगर निकायों के चुनाव से संबंधित सभी मामलों के संबंध में उपबंध कर सकती है।
  • भारत में शहरी स्थानीय सरकार की संरचना: शहरी स्थानीय शासन में आठ प्रकार के शहरी स्थानीय निकाय शामिल हैं:
    • नगर निगम (Municipal Corporation): नगर निगम आमतौर पर बड़े शहरों, जैसे बैंगलोर, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता आदि में पाए जाते हैं।
    • नगरपालिका (Municipality): छोटे शहरों/क़स्बों के लिये नगरपालिका का प्रावधान है। नगरपालिकाओं को प्रायः नगरपालिका परिषद, नगरपालिका समिति, नगरपालिका बोर्ड आदि अन्य नामों से भी पुकारा जाता है।
    • अधिसूचित क्षेत्र समिति (Notified Area Committee): अधिसूचित क्षेत्र समितियाँ तेज़ी से विकसित हो रहे क़स्बों और बुनियादी सुविधाओं की कमी रखने वाले क़स्बों के लिये स्थापित की जाती हैं।
    • शहर क्षेत्र समिति (Town Area Committee): यह छोटे क़स्बों में पाई जाती है। इसके पास स्ट्रीट लाइटिंग, जल निकासी सड़कें और साफ-सफाई-रखरखाव जैसे न्यूनतम कार्य होते हैं।
    • छावनी बोर्ड (Cantonment Board): यह आमतौर पर छावनी क्षेत्र में रहने वाली नागरिक आबादी के लिये स्थापित किया गया है।
    • टाउनशिप (Township): टाउनशिप किसी औद्योगिकी प्लांट के पास स्थापित कॉलोनियों में रहने वाले कर्मचारियों एवं कामगारों को बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करने के लिये शहरी सरकार का एक अन्य रूप है।
    • पोर्ट ट्रस्ट (Port Trust): पोर्ट ट्रस्ट मुंबई, चेन्नई, कोलकाता आदि बंदरगाह क्षेत्रों में स्थापित किये गए हैं। यह बंदरगाह का प्रबंधन और देखभाल करता है।
    • विशेष प्रयोजन एजेंसी (Special Purpose Agency): ये एजेंसियाँ नगर निगमों या नगरपालिकाओं से संबंधित निर्दिष्ट गतिविधियों या विशिष्ट कार्यों को पूरा करती हैं।

भारत में शहरी स्थानीय निकायों के समक्ष बाधाएँ:

  • विलंबित चुनाव:
    • नगर निकाय चुनावों के आयोजन में प्रायः देरी की जाती है जिससे संवैधानिक आदेशों का उल्लंघन होता है।
    • ‘जनाग्रह’ के ‘भारत की शहरी प्रणालियों का वार्षिक सर्वेक्षण’ (Annual Survey of India’s City-Systems), 2023 शीर्षक अध्ययन के अनुसार, सितंबर 2021 तक 1,400 से अधिक नगर निकायों में निर्वाचित परिषदें मौजूद नहीं थीं।
    • 74वें संविधान संशोधन अधिनियम के कार्यान्वयन पर 17 राज्यों की CAG ऑडिट रिपोर्ट में पाया गया कि वर्ष 2015-2021 की ऑडिट अवधि के दौरान इन राज्यों में 1,500 से अधिक नगर निकायों में निर्वाचित परिषदें मौजूद नहीं थीं।
  • परिषदों का अपूर्ण गठन:
    • कई बार चुनाव आयोजित होने के बाद भी परिषदों के गठन और प्रमुख अधिकारियों के निर्वाचन में देरी देखी जाती है।
      • उदाहरण के लिये, कर्नाटक में अधिकांश नगर निगमों में चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद निर्वाचित परिषदों के गठन में 12-24 माह की देरी देखी गई।
    • परिषदों के गठन और मेयर, डिप्टी-मेयर एवं स्थायी समितियों के चुनावों पर वर्णनात्मक आँकड़ा (Summary data) आसानी से उपलब्ध नहीं है।
  • संक्षिप्त कार्यकाल और बार-बार चुनाव:
    • कुछ शहरी स्थानीय सरकारों में मेयर का कार्यकाल पाँच वर्ष से कम अवधि का है, जिसके कारण बार-बार चुनाव की आवश्यकता होती है। इस परिदृश्य में पाँच वर्ष के मेयर कार्यकाल के मानकीकरण की आवश्यकता है
    • आठ सबसे बड़े शहरों में से पाँच सहित भारत के लगभग 17% शहरों में मेयर का कार्यकाल पाँच वर्ष से कम है।
  • विवेक और अनुचित प्रभाव:
    • चुनाव कार्यक्रम निर्धारित करने में सरकारी अधिकारियों को सौंपा गया ‘विवेक’ (Discretion) देरी की संभावना के बारे में चिंता पैदा करता है, जो संभवतः राज्य सरकार से प्रभावित होता है।
    • इसके अलावा, अधिकारियों द्वारा चुने गए पीठासीन अधिकारियों की निष्पक्षता को लेकर भी आशंका बनी रहती है, क्योंकि उनकी स्वतंत्रता से समझौता किया जा सकता है, जिससे हितों का टकराव हो सकता है। इससे चुनावी प्रक्रिया की स्वायत्तता एवं अखंडता कमज़ोर हो सकती है।
  • अवसंरचना और संसाधन संबंधी बाधाएँ:
    • कई शहरी स्थानीय निकाय शहरी आबादी की बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिये अपर्याप्त अवसंरचना और वित्तीय संसाधनों से जूझ रहे हैं।
    • शहरी स्थानीय सरकार राज्य की समेकित निधि से सहायता अनुदान प्राप्त करने के लिये राज्य सरकारों पर बहुत अधिक निर्भर करती है।
    • इससे जल आपूर्ति, स्वच्छता और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन जैसी आवश्यक सेवाएँ प्रभावी ढंग से प्रदान करने की उनकी क्षमता बाधित होती है।
  • राज्य चुनाव आयोगों (SECs) के लिये सशक्तीकरण और संसाधनों की कमी:
    • जबकि नगर निकाय चुनावों का दायित्व SECs को सौंपा गया है, उनके पास प्रायः पर्याप्त सशक्तीकरण और संसाधनों का अभाव होता है।
    • 35 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में से केवल 11 ने SECs को वार्ड परिसीमन करने का अधिकार दिया है, जिससे निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करने में उनकी प्रभावशीलता सीमित हो गई है।
  • लोगों की भागीदारी का निम्न स्तर:
    • साक्षरता और शैक्षिक मानक के अपेक्षाकृत उच्च स्तर के बावजूद, शहरवासी शहरी सरकारी निकायों के कार्यकरण में पर्याप्त रुचि नहीं लेते हैं।
      • विशेष प्रयोजन एजेंसियों और अन्य शहरी निकायों की बहुलता जनता को उनकी भूमिका सीमाओं के बारे में भ्रमित करती है।

भारत में शहरी स्थानीय सरकारों को सशक्त बनाने के लिये आगे की राह:

  • मानकीकृत चुनाव प्रक्रिया: एक मानकीकृत चुनाव प्रक्रिया और संरचना को परिभाषित किया जाना चाहिये, जो सभी पहलुओं को नियंत्रित करती हो, जैसे :
    • कार्यकाल समाप्ति से पहले चुनावों का आयोजन, जैसा कि राज्य और संघ चुनावों के लिये गंभीरता से किया जाता है
    • नगर निकाय सीमाओं के उन्नयन एवं विस्तार की प्रक्रिया
    • वार्डों के परिसीमन एवं आरक्षण की व्यवस्था 
    • निगमों की संरचना एवं उनकी नेतृत्व संरचना तय करना
  • राज्य चुनाव आयोगों (SECs) का सशक्तीकरण:
    • SECs अधिकारियों को पर्याप्त संसाधन, प्रशिक्षण और सहायता प्रदान करने के साथ शहरी स्थानीय निकायों के लिये स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं समयबद्ध चुनाव कराने के लिये राज्य चुनाव आयोगों की संस्थागत क्षमता को सुदृढ़ करना।
    • नगर निकाय चुनावों के आयोजन में SECs को अधिक स्वायत्तता एवं स्वतंत्रता देने पर विचार किया जाए, जिसमें मतदाता पंजीकरण से लेकर परिणाम घोषणा तक पूरी चुनावी प्रक्रिया की निगरानी करने का अधिकार भी शामिल है।
  • जवाबदेही तंत्र:
    • नगर निकाय चुनावों के आयोजन में किसी भी देरी या अनियमितता के लिये चुनाव अधिकारियों और प्राधिकारों को ज़िम्मेदार ठहराना। यह पारदर्शी जाँच प्रक्रियाओं और उचित अनुशासनात्मक कार्रवाई के माध्यम से किया जा सकता है।
    • सुरेश महाजन बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2022) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रत्येक पाँच वर्ष पर स्थानीय निकायों के लिये नए चुनाव कराने की संवैधानिक आवश्यकता पर बल दिया था। यह संवैधानिक दायित्व स्वयं में पूर्ण (absolute) है और इसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता।
  • वित्तीय सशक्तीकरण:

    • शहरी स्थानीय निकायों की वित्तीय स्वायत्तता बढ़ाने के लिये वित्त आयोग की सिफ़ारिशों को लागू किया जाए, जिसमें स्थानीय सरकारों के लिये केंद्र और राज्य के राजस्व का उच्च हिस्सा आवंटित करना शामिल है।
      • 13वें वित्त आयोग ने राज्यों की प्रदर्शन अनुदान पात्रता (performance grant eligibility) के लिये आवश्यक शर्तों में से एक के रूप में राज्य संपत्ति कर बोर्ड (State Property Tax Board) की स्थापना को निर्दिष्ट किया था।
    • अवसंरचना विकास और सेवा वितरण के लिये अतिरिक्त संसाधन जुटाने हेतु म्यूनिसिपल बॉण्ड, सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) और प्रभाव शुल्क (impact fees) जैसे नवीन वित्तपोषण तंत्र की शुरूआत की जाए।
  • क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण:
    • योग्य पेशेवरों की भर्ती, प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन प्रणालियों की स्थापना और पारदर्शी भर्ती प्रक्रियाओं के कार्यान्वयन के साथ शहरी स्थानीय निकायों की प्रशासनिक क्षमता को सुदृढ़ करने के लिये प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) की सिफ़ारिशों को स्वीकार किया जाए।
    • व्यापक शहरी विकास नीतियों के सूत्रीकरण, क्षेत्रीय पहलों का समन्वयन एवं शहरी कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की निगरानी करने के लिये राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर विशेष शहरी विकास समितियों की स्थापना की जाए।
  • नागरिक भागीदारी:
    • सहभागी बजटिंग, टाउन हॉल बैठकें और नागरिक सलाहकार बोर्ड जैसे तंत्रों के माध्यम से स्थानीय निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में वृहत नागरिक भागीदारी को बढ़ावा दिया जाए।
    • यह सुनिश्चित करने के लिये कि स्थानीय सरकारें नागरिकों की आवश्यकताओं एवं चिंताओं के प्रति उत्तरदायी हैं, पारदर्शिता, जवाबदेही और शिकायत निवारण के तंत्र को सुदृढ़ किया जाए।
  • सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) समाधान:
    • शहरी सेवाओं की दक्षता, पारदर्शिता और पहुँच में सुधार के लिये ई-गवर्नेंस प्लेटफॉर्म, डिजिटल सेवा वितरण चैनल और भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) जैसे ICT समाधानों का लाभ उठाया जाए।
    • वित्त आयोग ने संपत्ति कर प्रशासन में सुधार के लिये भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) और डिजिटलीकरण के उपयोग को प्रोत्साहित किया है।

निष्कर्ष:

शहरी स्थानीय सरकारों का सशक्तीकरण केवल प्रशासनिक सुधार का मामला नहीं है; यह समावेशी एवं सतत शहरी विकास के दृष्टिकोण को साकार करने के लिये एक बुनियादी अनिवार्यता है। सशक्त शहरी स्थानीय सरकारें अपने निवासियों की विविध आवश्यकताओं को प्रभावी ढंग से संबोधित करने की शक्ति, संसाधनों और क्षमता के साथ परिवर्तन को आगे बढ़ाने वाली इंजन सिद्ध होंगी।

अभ्यास प्रश्न: भारत में शहरी स्थानीय शासन चुनावों के दौरान सामने आने वाली बाधाओं का परीक्षण कीजिये। देश में नगर निकाय स्तर पर पारदर्शी एवं न्यायसंगत चुनावी प्रक्रिया की गारंटी देने के उद्देश्य से आवश्यक सुधारों के सुझाव दीजिये।

प्रिलिम्स:

प्रश्न: स्थानीय स्वशासन को एक अभ्यास के रूप में सर्वोत्तम रूप से समझाया जा सकता है। (2017)

(a) संघवाद
(b) लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण
(c) प्रशासनिक प्रतिनिधिमंडल
(d) प्रत्यक्ष लोकतंत्र

उत्तर: (b)


मुख्य परीक्षा

Q1. आपकी राय में, भारत में सत्ता के विकेंद्रीकरण ने ज़मीनी स्तर पर शासन के परिदृश्य को किस हद तक बदल दिया है? (2022)


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