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एडिटोरियल

  • 20 Jun, 2025
  • 31 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

भारत में एक विश्वसनीय कार्बन बाज़ार का निर्माण

यह एडिटोरियल 18/06/2025 को बिज़नेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित “India needs to build a credible carbon market, minus an offset mechanism” पर आधारित है। इस लेख के तहत भारत की कार्बन क्रेडिट व्यापार योजना (जो वर्ष 2026 में शुरू होने वाली है) के समक्ष मौजूद चुनौतियों को रेखांकित किया गया है। इसमें स्वैच्छिक ऑफसेट्स से उत्पन्न जोखिमों की ओर संकेत करते हुए यह आवश्यक बताया गया है कि इस योजना की विश्वसनीयता बनाये रखने के लिये अनिवार्य भागीदारी और सुदृढ़ निगरानी व्यवस्था सुनिश्चित की जाये।

प्रिलिम्स के लिये:

भारत की कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना, स्वच्छ विकास तंत्र, पेरिस समझौता, यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा समायोजन तंत्र, ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम 2022, अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम, उत्सर्जन व्यापार प्रणाली 

मेन्स के लिये:

भारत में कार्बन बाज़ार के विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक, भारत में कार्बन बाज़ार के विकास से जुड़े प्रमुख मुद्दे। 

भारत की कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम (CCTS), जिसका कारोबार वर्ष 2026 में शुरू होने वाला है, देश की जलवायु प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है, लेकिन इसकी सफलता मौलिक अभिकल्पना में निहित दोषों को दूर करने पर निर्भर करती है। स्वैच्छिक ऑफसेट तंत्र को शामिल करने से डेटा इंटिग्रिटी और योजना की विश्वसनीयता से समझौता होने का जोखिम है, जो स्वच्छ विकास तंत्र जैसे कार्यक्रमों की पिछली विफलताओं को दर्शाता है। भारत को वास्तव में विश्वसनीय कार्बन बाज़ार विकसित करने के लिये, उसे सभी उच्च-उत्सर्जन क्षेत्रों में अनिवार्य भागीदारी का विस्तार करना चाहिये और आरंभ से ही सुदृढ़ निगरानी और प्रवर्तन तंत्र स्थापित करना चाहिये।

भारत में कार्बन बाज़ार के विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक क्या हैं?

  • वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्धता: भारत का कार्बन बाज़ार का विकास मुख्य रूप से पेरिस समझौते के तहत वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के प्रति उसकी प्रतिबद्धता से प्रेरित है।
    • देश का लक्ष्य वर्ष 2005 के स्तर से वर्ष 2030 तक अपने ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन की तीव्रता को 45% तक कम करना है, जिसके लिये कार्बन बाज़ार जैसे मज़बूत तंत्र की आवश्यकता है। 
      • यह लक्ष्य वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के भारत के लक्ष्य के अनुरूप है, जिसके लिये सभी क्षेत्रों में उत्सर्जन में महत्त्वपूर्ण कमी की आवश्यकता होगी।
    • वर्ष 2023 में कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम (CCTS) की शुरूआत (जिसके वर्ष 2026 तक आरंभ होने की उम्मीद है) इन महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है, जो उत्सर्जन को सीमित करने और हरित प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने के लिये बाज़ार आधारित तंत्र का निर्माण करेगा।
  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) का प्रभाव: यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) के आसन्न कार्यान्वयन ने भारत को राष्ट्रीय कार्बन बाज़ार के विकास में तेज़ी लाने के लिये प्रेरित किया है। 
    • यह CBAM तंत्र कार्बन-गहन आयातों पर टैरिफ लगाएगा, जिससे भारतीय निर्यात कम प्रतिस्पर्द्धी हो जाएंगे (यदि वे अंतर्राष्ट्रीय कार्बन मानकों को पूरा नहीं करते हैं)।
    • भारतीय उद्योग, विशेषकर इस्पात और सीमेंट जैसे उच्च उत्सर्जन वाले क्षेत्रों में, निम्न कार्बन प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण के लिये प्रेरित हो रहे हैं।
      • भारत के कुल CO2 उत्सर्जन में 12% के लिये जिम्मेदार इस्पात क्षेत्र को इन चुनौतियों का प्रत्यक्ष रूप से सामना करना पड़ रहा है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय कार्बन कार्यढाँचे के अनुपालन के लिये कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग की आवश्यकता बढ़ गई है।
  • स्वच्छ प्रौद्योगिकियों और हरित निवेश को बढ़ावा देना: भारत के कार्बन बाज़ार के लिये एक महत्त्वपूर्ण चालक स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना और हरित निवेश को प्रोत्साहित करना है। 
    • प्रमुख क्षेत्रों के लिये उत्सर्जन तीव्रता लक्ष्य निर्धारित करके, सरकार उद्योगों को ऊर्जा-कुशल और निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण के लिये प्रोत्साहित करती है।
    • ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम 2022 ने CCTS के लिये विधायी आधार तैयार किया, जिससे उत्सर्जन में कटौती के लिये कार्बन क्रेडिट जारी करना संभव हो गया। 
      • रिलायंस इंडस्ट्रीज़ जैसी कंपनियाँ हरित हाइड्रोजन और नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश कर इस बदलाव का उदाहरण प्रस्तुत कर रही हैं, जिससे भारत संधारणीय औद्योगिक प्रथाओं में अग्रणी बन रहा है तथा वैश्विक हरित निवेश आकर्षित हो रहा है।
  • उद्योग के लिये आर्थिक अवसर और वित्तीय प्रोत्साहन: कार्बन बाज़ार, कार्बन क्रेडिट अर्जित करने और बेचने की क्षमता प्रदान करके, उत्सर्जन को न्यूनतम करने की दिशा में उद्योगों के लिये वित्तीय प्रोत्साहन उत्पन्न करता है।
    • यह बाज़ार-आधारित दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करता है कि व्यवसाय अपने उत्सर्जन में कमी का मुद्रीकरण करके डीकार्बोनाइज़ेशन की लागतों की भरपाई कर सकते हैं।
    • यह मानते हुए कि वैश्विक औसत मूल्य 4 डॉलर प्रति क्रेडिट है, भारत का कार्बन बाज़ार 1.2 बिलियन डॉलर का है, जो नवीकरणीय ऊर्जा और संधारणीय परियोजनाओं में वित्तीय विकास के लिये रास्ते खोलता है। 
  • क्षेत्र-विशिष्ट उत्सर्जन और औद्योगिक उत्तरदायित्व: भारत का कार्बन बाज़ार विकास क्षेत्र-विशिष्ट उत्सर्जन, विशेष रूप से सीमेंट, इस्पात और रसायन जैसे ऊर्जा-गहन उद्योगों से होने वाले उत्सर्जन में कटौती करने की आवश्यकता से प्रेरित है।
    • अलग-अलग क्षेत्रों के लिये उत्सर्जन तीव्रता मानदंड तय करने के लिये सरकार का लक्षित दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करता है कि उत्सर्जन में कटौती प्रत्येक उद्योग के सामने आने वाली चुनौतियों के अनुरूप हो।
    • उदाहरण के लिये, सीमेंट, जो औद्योगिक CO2 उत्सर्जन में 6% का योगदान देता है, को CCTS के तहत दो वर्षों में 3.4% की मामूली कमी का लक्ष्य दिया गया है, जो इस क्षेत्र के महत्त्वपूर्ण लेकिन प्रबंधनीय प्रभाव को दर्शाता है। 
      • इस प्रकार का क्षेत्रीय फोकस यह सुनिश्चित करता है कि कार्बन बाज़ार सबसे अधिक दबाव वाले उत्सर्जन की कटौती करेगा, साथ ही उद्योगों में वृद्धिशील सुधारों को भी प्रोत्साहित करेगा।
  • घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय हितधारकों की बढ़ती भागीदारी: कार्बन बाज़ार के लिये प्रयास घरेलू उद्योगों और अंतर्राष्ट्रीय निकायों की ओर से हितधारकों की बढ़ती भागीदारी से भी प्रेरित है। 
    • अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC) और प्रमुख भारतीय निगम जैसे हितधारक एक पारदर्शी, कुशल कार्बन बाज़ार की स्थापना के लिये दबाव डाल रहे हैं जो वैश्विक व्यापार में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाएगा।
    • वर्ष 2023 तक, 1,400 से अधिक कार्बन क्रेडिट परियोजनाएँ वेरा जैसे वैश्विक प्रमाणन कार्यक्रमों के तहत पंजीकृत की गईं, जिनमें से एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा भारत का है, जो भारत के उभरते कार्बन बाज़ार में मज़बूत घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय रुचि का संकेत देता है।

भारत में कार्बन बाज़ार के विकास से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • प्रमुख उत्सर्जकों का सीमित दायरा और अपवर्जन: जबकि CCTS ने सीमेंट, एल्यूमीनियम और वस्त्र जैसे ऊर्जा-गहन क्षेत्रों को लक्षित किया है, इस्पात एवं ताप विद्युत क्षेत्र इसके दायरे से बाहर हैं।
    • इस्पात, जो भारत के कुल CO2 उत्सर्जन में लगभग 12% का योगदान देता है, को शीर्ष उत्सर्जक होने के बावजूद CCTS से बाहर रखा गया है। 
      • इसी प्रकार, TERI के अनुसार, भारत में विद्युत क्षेत्र ईंधन-संबंधी उत्सर्जन में लगभग 50% का योगदान देता है तथा कार्बन बाज़ार कार्यढाँचे से भी गायब है, जिससे उत्सर्जन में कमी लाने के लिये आवश्यक कदम कमज़ोर पड़ रहे हैं।
  • कमजोर उत्सर्जन कटौती लक्ष्य: आलोचकों का तर्क है कि CCTS के तहत कुछ क्षेत्रों के लिये निर्धारित उत्सर्जन कटौती लक्ष्य कमज़ोर प्रतीत होते हैं तथा दीर्घकालिक जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिये पर्याप्त महत्त्वाकांक्षा का अभाव है। 
    • उदाहरण के लिये, सीमेंट क्षेत्र के लिये दो वर्षों में 3.4% की कटौती का अपेक्षाकृत मामूली लक्ष्य रखा गया है, जो भारत के औद्योगिक आधार को कार्बन मुक्त करने की तात्कालिक आवश्यकता को देखते हुए अपर्याप्त प्रतीत होता है। 
      • यद्यपि ये लक्ष्य राजनीतिक रूप से व्यवहार्य हो सकते हैं, लेकिन इनसे भारत की शुद्ध-शून्य प्रतिबद्धता के लिये आवश्यक पर्याप्त उत्सर्जन कटौती में विलंब होने का खतरा है।
  • MSME पर अपर्याप्त वित्तीय सहायता और अनुपालन बोझ: लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) को उच्च अनुपालन लागत, अपर्याप्त वित्तीय सहायता और तकनीकी क्षमता की कमी के कारण कार्बन बाज़ार में भाग लेने में महत्त्वपूर्ण बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
    • ये क्षेत्र, जो भारत की अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, प्रायः कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग की कठोर नियामक मांगों को पूरा करने के लिये संघर्ष करते हैं। 
    • भारतीय कार्बन बाज़ार (ICM) द्वारा किये गए शोध से पता चलता है कि MSME को 5-20% तक की अनुपालन लागत का सामना करना पड़ सकता है, जिससे कार्बन बाज़ारों से जुड़ना अत्यधिक महंगा हो जाएगा। 
      • लक्षित समर्थन के बिना, MSME को बाज़ार से बाहर रखा जा सकता है, जिससे इसकी समावेशिता कम हो सकती है तथा देश के समग्र डीकार्बोनाइज़ेशन प्रयासों में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
  • मापन, रिपोर्टिंग और सत्यापन (MRV) प्रणालियों की जटिलता: कार्बन क्रेडिट की विश्वसनीयता सख्त निगरानी, रिपोर्टिंग और सत्यापन (MRV) प्रणालियों पर निर्भर करती है, जो भारत के कार्बन बाज़ार में एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है। 
    • देश का मौजूदा MRV बुनियादी अवसंरचना, जो काफी हद तक पुराने नियामक कार्यढाँचे पर आधारित है, में सटीक और पारदर्शी उत्सर्जन ट्रैकिंग के लिये आवश्यक परिष्कार का अभाव है। 
      • इससे निवेशकों का विश्वास कम हो सकता है तथा गैर-अनुपालन के लिये रास्ते खुल सकते हैं।
    • जैसा कि पिछली ऊर्जा दक्षता योजनाओं में देखा गया है, सुसंगत और सत्यापन योग्य रिपोर्टिंग मानकों का अभाव कार्बन क्रेडिट आवंटन में विसंगतियों को जन्म दे सकता है तथा बाज़ार की विश्वसनीयता में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
  • PAT जैसी मौजूदा योजनाओं के साथ विखंडन: भारत के कार्बन बाज़ार विकास को प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (PAT) कार्यक्रम जैसी मौजूदा योजनाओं के साथ ओवरलैप के कारण विखंडन के मुद्दे का सामना करना पड़ रहा है।
    • PAT योजना, जो पहले से ही उच्च उत्सर्जन वाले क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता में सुधार को अनिवार्य बनाती है, से प्रयासों के दोहराव का खतरा है तथा अनुपालन आवश्यकताओं के बारे में उद्योगों में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। 
    • इन कार्यढाँचों के बीच एकीकरण की कमी से अकुशलताएँ उत्पन्न हो सकती हैं तथा डीकार्बोनाइज़ेशन के लिये एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने के अवसर चूक सकते हैं।
  • स्वैच्छिक भागीदारी और ऑफसेट तंत्र जोखिम: CCTS के ऑफसेट तंत्र में स्वैच्छिक भागीदारी को शामिल करने से बाज़ार की अखंडता के लिये महत्त्वपूर्ण जोखिम उत्पन्न होता है। 
    • गैर-बाध्यकारी संस्थाओं को कार्बन क्रेडिट का व्यापार करने की अनुमति देने से क्रेडिट आपूर्ति में वृद्धि हो सकती है तथा डेटा में हेरफेर हो सकता है, जिससे योजना की समग्र विश्वसनीयता पर असर पड़ सकता है। 
    • स्वच्छ विकास तंत्र (CDM) जैसे स्वैच्छिक कार्बन बाज़ारों के साथ पिछले अनुभव, दोहरी गणना और त्रुटीपूर्ण सत्यापन जैसे मुद्दों को उजागर करते हैं।
  • असंगत मूल्य संकेत और बाज़ार में अस्थिरता: स्पष्ट मूल्य संकेतों का अभाव और बाज़ार में अस्थिरता भारत के कार्बन बाज़ार के लिये एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है।
    • एक प्रभावी कार्बन बाज़ार के लिये उत्सर्जन न्यूनीकरण प्रौद्योगिकियों में दीर्घकालिक निवेश को प्रोत्साहित करने हेतु कार्बन क्रेडिट के लिये स्थिर मूल्य की आवश्यकता होती है। 
      • हालाँकि, भारत में कार्बन क्रेडिट की कीमत अनिश्चित बनी हुई है तथा उत्सर्जन लक्ष्यों में विसंगति एवं बाज़ार में वित्तीय भागीदारों के आने के कारण इसमें उतार-चढ़ाव की संभावना है।
    • अंतर्राष्ट्रीय अनुभव, जैसे कि यूरोपीय संघ उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (EU ETS) में देखी गई अस्थिरता, एक चेतावनी के रूप में कार्य करती है। 
  • हरित प्रौद्योगिकी अंगीकरण के लिये क्षेत्र-विशिष्ट प्रोत्साहनों का अभाव: हालाँकि कार्बन बाज़ार का लक्ष्य उत्सर्जन में कमी लाना है, लेकिन हरित प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण के लिये क्षेत्र-विशिष्ट प्रोत्साहनों का अभाव एक बड़ी चुनौती है। 
    • सीमेंट और इस्पात जैसे औद्योगिक क्षेत्रों को स्वच्छ प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण के लिये उच्च प्रारंभिक लागतों का सामना करना पड़ता है, लेकिन कार्बन बाज़ार इन निवेशों के लिये प्रत्यक्ष सब्सिडी या प्रोत्साहन प्रदान नहीं करता है।
      • ऐसे प्रोत्साहनों के बिना, उद्योग महंगी डीकार्बोनाइज़ेशन प्रौद्योगिकियों में निवेश करने में संकोच कर सकते हैं।
    • इसके अतिरिक्त, CCTS कार्यढाँचा स्वच्छ प्रौद्योगिकी के अंगीकरण के लिये वित्तपोषण अंतराल को पर्याप्त रूप से कम नहीं करता है, जो बाज़ार की दीर्घकालिक स्थिरता को कमज़ोर कर सकता है।

भारत अपने कार्बन बाज़ार के प्रोत्साहन और इसके सुदृढ़ीकरण के लिये क्या उपाय अपना सकता है? 

  • निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकियों में हरित वित्तपोषण और निवेश को बढ़ावा देना: निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकियों और बुनियादी अवसंरचना में निवेश को बढ़ावा देने के लिये एक समर्पित हरित वित्तपोषण तंत्र बनाया जाना चाहिये। 
    • इसमें ग्रीन बॉण्ड जारी करना, हरित स्टार्टअप के लिये कर प्रोत्साहन तथा प्रदूषण-मुक्त ऊर्जा परियोजनाओं हेतु पूंजीगत बोझ को कम करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय जलवायु कोषों के साथ साझेदारी शामिल हो सकती है। 
      • वित्तीय बाधाओं को कम करके, भारत निजी क्षेत्र को नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता और संवहनीय प्रथाओं में नवाचारों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है।
  • क्षेत्रीय रोडमैप के साथ स्पष्ट दीर्घकालिक कार्बन लक्ष्य स्थापित करना: भारत को विशिष्ट क्षेत्रीय रोडमैप द्वारा समर्थित स्पष्ट, बाध्यकारी दीर्घकालिक कार्बन उत्सर्जन न्यूनीकरण लक्ष्य स्थापित करने की आवश्यकता है।
    • ये रोडमैप अगले दो से तीन दशकों में उद्योगों को अपने उत्सर्जन लक्ष्यों को पूरा करने के लिये आवश्यक प्रौद्योगिकियों, निवेशों और पहलों की रूपरेखा तैयार करेंगे।
    • इससे व्यवसायों को आगामी योजना बनाने और डीकार्बोनाइज़ेशन में निवेश करने की निश्चितता मिलेगी, साथ ही भारत की जलवायु प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करने के लिये एक मापनीय एवं संरचित मार्ग तैयार होगा।
  • निगरानी, रिपोर्टिंग और सत्यापन (MRV) प्रणालियों को मज़बूत करना: कार्बन क्रेडिट की विश्वसनीयता बढ़ाने के लिये, भारत को एक मज़बूत, डिजिटल MRV प्रणाली लागू करनी चाहिये जो उच्च परिशुद्धता के साथ उत्सर्जन पर नज़र रखती हो। 
    • एक पारदर्शी, मानकीकृत रिपोर्टिंग प्रक्रिया तथा स्वतंत्र सत्यापनकर्त्ताओं का नेटवर्क कार्बन क्रेडिट की अखंडता सुनिश्चित करेगा। 
    • इस प्रणाली को अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों, जैसे कि AI और ब्लॉकचेन द्वारा समर्थित किया जाना चाहिये, ताकि कार्बन ऑफसेट की पुष्टि करने तथा अनुपालन सुनिश्चित करने में पारदर्शिता, पता लगाने की क्षमता एवं दक्षता की गारंटी हो सके।
  • कार्बन बाज़ार शिक्षा और क्षमता निर्माण कार्यक्रम: कार्बन बाज़ार के सफल कार्यान्वयन के लिये व्यवसायों, नियामकों और जनता सहित हितधारकों के बीच व्यापक जागरूकता एवं विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है। 
    • भारत को व्यवसायों, विशेषकर MSME को कार्बन बाज़ारों के साथ प्रभावी ढंग से जुड़ने के बारे में शिक्षित और प्रशिक्षित करने के लिये समर्पित कार्यक्रम स्थापित करने चाहिये।
    • इसमें कार्यशालाएँ, प्रमाणन कार्यक्रम और तकनीकी परामर्श सेवाओं का विकास शामिल होगा, ताकि सुचारू बाज़ार भागीदारी सुनिश्चित की जा सके तथा कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग की क्षमता को अधिकतम किया जा सके।
  • बाज़ार स्थिरता तंत्र लागू करना: कार्बन बाज़ार की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये, भारत को मूल्य न्यूनतम, कार्बन क्रेडिट बैंकिंग में लचीलापन एवं स्थिरीकरण भंडार जैसे बाज़ार स्थिरता तंत्र लागू करने चाहिये।
    • इन उपायों से अस्थिर कार्बन कीमतों के जोखिम को कम किया जा सकेगा, जो निवेश और भागीदारी को हतोत्साहित कर सकता है। 
    • इस तरह के तंत्र बाज़ार में उतार-चढ़ाव को संतुलित करेंगे, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि कार्बन की कीमतें पूर्वानुमान योग्य बनी रहेंगी और उद्योग जगत के भागीदार आत्मविश्वास के साथ निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकियों में दीर्घकालिक निवेश कर सकेंगे।
  • कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग के दायरे का विस्तार: भारत सभी प्रमुख उत्सर्जक क्षेत्रों को शामिल करके अपने कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग के दायरे का विस्तार कर सकता है, विशेष रूप से वर्तमान में अपवर्जित क्षेत्रों जैसे इस्पात और ताप विद्युत को। 
    • इन क्षेत्रों को शामिल करने से कार्बन बाज़ार में प्रतिभागियों का आधार बहुत बड़ा हो जाएगा, जिससे इसकी तरलता बढ़ेगी और राष्ट्रीय उत्सर्जन को कम करने में प्रभावशीलता बढ़ेगी। 
      • इससे यह सुनिश्चित होगा कि कार्बन बाज़ार में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में सबसे महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ताओं को प्रभावित करने की क्षमता है।
  • सीमा-पार कार्बन व्यापार तंत्र को सुगम बनाना: भारत इस क्षेत्र और उससे आगे के देशों के साथ सीमा-पार कार्बन व्यापार में संलग्न हो सकता है, जिससे एक अधिक परस्पर संबद्ध एवं तरल वैश्विक कार्बन बाज़ार का निर्माण हो सकेगा। 
    • यूरोपीय संघ ETS जैसे अंतर्राष्ट्रीय कार्बन बाज़ारों के साथ जुड़कर, भारत विदेशी निवेश को आकर्षित कर सकता है तथा यह सुनिश्चित कर सकता है कि घरेलू व्यवसाय अधिक लागत प्रभावी डीकार्बोनाइज़ेशन मार्गों वाले देशों से सस्ते ऋण खरीदकर उत्सर्जन की भरपाई कर सकें। 
      • इससे भारतीय उद्योगों को सख्त जलवायु नियमों वाले वैश्विक बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धी बने रहने में भी सहायता मिलेगी।
  • कार्बन कैप्चर और उपयोग (CCU) नवाचारों को प्रोत्साहित करना: भारत को अपनी कार्बन बाज़ार रणनीति के हिस्से के रूप में कार्बन कैप्चर और उपयोग (CCU) में नवाचारों को सक्रिय रूप से बढ़ावा देना चाहिये। 
    • CCU प्रौद्योगिकियाँ, प्रग्रहण किये गए CO2 को रसायनों या निर्माण सामग्री जैसे उपयोगी उत्पादों में परिवर्तित कर सकती हैं, जिससे उत्सर्जन में कमी लाने के साथ-साथ नए आर्थिक अवसर भी उत्पन्न होंगे। 
      • पायलट परियोजनाओं के साथ-साथ अनुसंधान और विकास के लिये प्रोत्साहन, इन प्रौद्योगिकियों को आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं, जो शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
  • एक व्यापक कार्बन ऑफसेट कार्यढाँचा विकसित करना: भारत को कार्बन ऑफसेट के लिये एक व्यापक कार्यढाँचा विकसित करना चाहिये जो स्वैच्छिक कार्यों, जैसे कि वनरोपण, संधारणीय कृषि एवं नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं से उच्च गुणवत्ता वाले कार्बन क्रेडिट उत्पादन की गारंटी देता है।
    • स्पष्ट मानक निर्धारित करके और सख्त प्रमाणन प्रक्रिया सुनिश्चित करके, देश एक समृद्ध स्वैच्छिक कार्बन बाज़ार बना सकता है। 
    • इससे हरित परियोजनाओं में निवेश आकर्षित होगा, जिससे अतिरिक्त कार्बन क्रेडिट उत्पन्न होगा, जिसका घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों बाज़ारों में कारोबार किया जा सकेगा।

निष्कर्ष:

भारत की 'कार्बन क्रेडिट व्यापार योजना' (CCTS) देश के जलवायु लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में एक केंद्रीय भूमिका निभाती है और संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों, विशेषतः SDG 13 (जलवायु-परिवर्तन कार्रवाई) तथा SDG9 (उद्योग, नवाचार एवं बुनियादी सुविधाएँ) के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई है। इस बाज़ार को सशक्त बनाने के लिये भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी उच्च-उत्सर्जन क्षेत्रों की व्यापक भागीदारी हो, एक सुदृढ़ निगरानी एवं सत्यापन प्रणाली स्थापित की जाये तथा बाज़ार में स्थिरता बनाये रखने के उपाय विकसित किये जायें।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: 

प्रश्न. देश के जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में भारत की कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना (CCTS) की क्षमता का परीक्षण कीजिये। इसकी अभिकल्पना और कार्यान्वयन में प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिये, तथा इसकी प्रभावशीलता बढ़ाने के उपायों का सुझाव दीजिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स 

प्रश्न 1. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)

कथन I :जलवायु परिवर्तन विषयक पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 की चर्चा, सतत् विकास और जलवायु परिवर्तन विषयक वैश्विक चर्चाओं में बारंबार आती है।
कथन II : जलवायु परिवर्तन विषयक पेरिस समझौते का अनुच्छेद 6, कार्बन बाज़ारों के सिद्धांतों को निर्दिष्ट करता है।
कथन III : जलवायु परिवर्तन विषयक पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 का आशय देशों को अपने जलवायु लक्ष्य प्राप्त करने हेतु उनके बीच गैर-बाज़ारी रणनीतियों का संवर्धन करना है।

उपर्युक्त कथनों के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही है

(a) कथन II और कथन III दोनों सही हैं तथा वे दोनों कथन I की व्याख्या करते हैं
(b) कथन II और कथन III दोनों सही हैं किन्तु उनमें से केवल एक, कथन I की व्याख्या करता है
(c) कथन II और कथन III में से केवल एक सही है तथा वह कथन I की व्याख्या करता है
(d) न तो कथन II और न ही कथन III सही है 

उत्तर: (a) 


प्रश्न 2. कार्बन क्रेडिट की अवधारणा निम्नलिखित में से किससे उत्पन्न हुई? (2009)

(a) पृथ्वी शिखर सम्मेलन, रियो डी जनेरियो 
(b) क्योटो प्रोटोकॉल 
(c) मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल 
(d) G8 शिखर सम्मेलन, हेइलिगेंडम

उत्तर: (b)


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