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एडिटोरियल

  • 15 Apr, 2021
  • 11 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत और बिम्सटेक

यह लेख 14/04/2021 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित एडिटोरियल “BIMSTEC needs to reinvent itself” पर आधारित है। इसमें BIMSTEC (बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल) की क्षमता को सीमित करने वाली बाधाओं पर चर्चा की गई है।

हाल ही में BIMSTEC (बहुक्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल- बिम्सटेक) के विदेश मंत्रियों ने एक आभासी सम्मेलन में वार्ता की। विश्व के कोविड -19 महामारी की चपेट में आने के बाद इस सम्मेलन की यह पहली मंत्रिमंडलीय वार्ता है।

क्षेत्रीय संगठन के रूप में बिम्सटेक ने मानवीय सहायता, आपदा राहत और सुरक्षा के क्षेत्र में बहुत कुछ प्राप्त किया है, जिसमें आतंकवाद, साइबर सुरक्षा और तटीय सुरक्षा सहयोग शामिल हैं।

हालाँकि ऐसी कई बाधाएँ हैं जो इस क्षेत्रीय निकाय को उसकी पूर्ण क्षमता का दोहन करने से सीमित करती हैं।

बैठक की मुख्य विशेषताएँ:

  • विदेश मंत्रियों ने बिम्सटेक चार्टर के मसौदे को मंज़ूरी दे दी तथा इसको जल्द से जल्द अपनाए जाने की सिफारिश की।
  • बैठक के दौरान श्रीलंका में आयोजित होने वाले आगामी बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में बिम्सटेक परिवहन कनेक्टिविटी मास्टर प्लान का समर्थन किया गया।
  • भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य, इस मास्टर प्लान का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं, क्योंकि कई सड़कें और नदी इस क्षेत्र से गुज़रते हैं।
  • बैठक में आपराधिक मामलों में आपसी कानूनी सहायता पर कन्वेंशन, राजनयिकों तथा प्रशिक्षण अकादमियों के बीच सहयोग और कोलंबो (श्रीलंका) में बिम्सटेक प्रौद्योगिकी हस्तांतरण सुविधा की स्थापना से संबंधित तीन समझौता ज्ञापनों का समर्थन किया गया।
  • इस ओर भी ध्यान आकर्षित किया गया कि भारत में स्थापित ‘बिम्सटेक सेंटर फॉर वेदर एंड क्लाइमेट’ आपदा संबंधी प्रारंभिक चेतावनी प्रदान करने के लिये अत्याधुनिक सुविधाओं के साथ पूर्णतः कार्यात्मक है।

बिम्सटेक का विकास:

  • एक उप-क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग समूह के रूप में बिम्सटेक का गठन जून 1997 में बैंकॉक में किया गया था।
  • प्रारंभ में इस संगठन में बांग्लादेश, भारत, श्रीलंका और थाईलैंड शामिल थे और इसका नाम BIST-EC यानि बांग्लादेश, भारत, श्रीलंका और थाईलैंड इकॉनोमिक को-ऑपरेशन था।
  • दिसंबर 1997 में म्याँमार भी इस समूह से जुड़ गया और इसका नाम BIMST-EC हो गया।
  • इसके बाद फरवरी 2004 में भूटान और नेपाल भी इस समूह में शामिल हो गए।
  • जुलाई 2004 में बैंकाक में आयोजित इसके प्रथम सम्मेलन में बिम्सटेक (बांग्लादेश, भारत, म्याँमार, श्रीलंका और थाईलैंड तकनीकी और आर्थिक सहयोग) का नाम बदलकर बिम्सटेक (बहुक्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल) रखा गया।
  • प्रारंभ में बिम्सटेक ने अधिक भू-राजनीतिक महत्त्व प्रदर्शित नहीं किया। यह इसके गठन के पहले 20 वर्षों में सम्पन्न केवल तीन शिखर वार्ताओं से परिलक्षित होता है।
  • हालाँकि बिम्सटेक ने अचानक विशेष ध्यान आकर्षित किया, क्योंकि सार्क के निष्क्रिय होने के पश्चात भारत ने इसे क्षेत्रीय सहयोग के लिये अधिक व्यावहारिक साधन के रूप में चुना।
  • अक्तूबर 2016 में गोवा में ब्रिक्स नेताओं के साथ बिम्सटेक नेताओं की आउटरीच समिट के बाद इसने लो-प्रोफाइल रीजनल ग्रुपिंग से आगे आकर अंतर्राष्ट्रीय आकर्षण प्राप्त किया।
  • मई 2019 में भारतीय प्रधान मंत्री के दूसरे शपथ ग्रहण समारोह में BIMSTEC के नेताओं को सम्मानित अतिथियों के रूप में आमंत्रित किया गया था न कि SAARC को।
  • इसके तुरंत बाद विदेश मंत्री ने कहा कि भारत ने बिम्सटेक में "ऊर्जा, मानसिकता और संभावना" का मिश्रण देखा है।

संबद्ध चुनौतियाँ:

  • अधूरा आर्थिक एजेंडा: मुक्त व्यापार समझौते का अभाव: बिम्सटेक में मुक्त व्यापार समझौते पर वर्ष 2004 में चर्चा की गई थी, लेकिन अभी तक उसका कोई निष्कर्ष नहीं निकाला गया है।
  • आंतरिक विवाद: एक मज़बूत बिम्सटेक अपने सभी सदस्य-राज्यों के बीच सौहार्दपूर्ण और तनाव मुक्त द्विपक्षीय संबंधों की पूर्व अवधारणा रखता है।
  • किंतु हाल के वर्षों में भारत-नेपाल, भारत-श्रीलंका और बांग्लादेश-म्याँमार के संबंधों को देखते यह पूर्व अवधारणा गलत सिद्ध होती है।
  • इसके अलावा, नेपाल और श्रीलंका दोनों सार्क सम्मेलन को पुनर्जीवित करना चाहते हैं।  परंतु भारत का कहना है कि आतंक और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते।
  • चीन की घुसपैठ: दक्षिण-दक्षिणपूर्व एशियाई अंतरिक्ष में चीन की निर्णायक घुसपैठ भारत के प्रभाव क्षेत्र को सीमित करती है।
  • इसके अलावा एक प्रसिद्ध बांग्लादेशी विद्वान ने हाल ही में एक सम्मेलन में तर्क दिया कि बिम्सटेक प्रगति करेगा यदि चीन को उसके प्रमुख वार्ताकार और भागीदार के रूप में स्वीकार किया जाता है।
  • म्याँमार में तख्तापलट: म्याँमार में सैन्य तख्तापलट, प्रदर्शनकारियों की क्रूर कार्रवाई और प्रतिरोध जारी रखने के कारण भारत के लिये सीमा प्रबंधन संबंधी चुनौतियाँ पैदा हुईं हैं।
  • बैठकों में निरंतरता का अभाव: बिम्सटेक ने प्रति दो वर्षों में शिखर सम्मेलन, प्रतिवर्ष मंत्रिस्तरीय बैठक आयोजित करने की योजना बनाई थी, लेकिन वर्ष 2018 तक 20 वर्षों में केवल चार शिखर सम्मेलन हुए हैं।
  • सदस्य राष्ट्रों द्वारा बिम्सटेक की उपेक्षा: ऐसा प्रतीत होता है कि भारत ने बिम्सटेक का उपयोग सिर्फ तब किया है जब वह क्षेत्रीय व्यवस्था बनाने में सार्क के माध्यम से सफल नहीं हुआ है, वहीं अन्य प्रमुख सदस्य जैसे- थाईलैंड तथा म्याँमार बिम्सटेक की तुलना में आसियान पर अधिक केंद्रित हैं।
  • विस्तृत कार्य क्षेत्र: बिम्सटेक का कार्य क्षेत्र बहुत व्यापक है- इसमें पर्यटन, सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि आदि जैसे 14 क्षेत्र शामिल हैं। बिम्सटेक को कम क्षेत्रों हेतु प्रतिबद्ध होना चाहिये तथा उन्हीं में गुणवत्ता लाँए का प्रयास करना चाहिये।
  • सदस्य राष्ट्रों के बीच द्विपक्षीय मुद्दे: बांग्लादेश सबसे विकट शरणार्थी संकट का सामना कर रहा है, म्याँमार के रखाइन प्रांत से रोहिंग्या लगातार पलायन करते रहे हैं। म्याँमार एवं थाईलैंड के मध्य सीमा विवाद चल रहा है।
  • बीसीआईएम: एक अन्य उप-क्षेत्रीय फोरम बांग्लादेश-चीन-भारत-म्याँमार (BCIM) के गठन (जिसमें चीन एक सक्रिय सदस्य है) ने बिम्सटेक की क्षमता पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।

आगे की राह:

  • बिम्सटेक एफटीए: वर्ष 2018 में फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के एक अध्ययन ने सुझाव दिया था कि बिम्सटेक को वास्तविक  प्रभाव स्थापित करने के लिये तत्काल एक व्यापक व्यापारिक समझौते की आवश्यकता है।
  • इसमें वस्तु, सेवाओं और निवेश में व्यापार को कवर करना;  विनियामक सामंजस्य को बढ़ावा देना;  ऐसी नीतियाँ अपनाना जो क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाएँ विकसित करें और गैर-टैरिफ बाधाओं को खत्म करना, आदि शामिल होना चाहिये।
  • आर्थिक सहयोग के लिये सुरक्षा को बनाए रखने और ठोस व्यवस्था सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
  • गुजराल सिद्धांत: चूँकि BIMSTEC एक भारत-प्रधान ब्लॉक है, इस संदर्भ में भारत गुजराल सिद्धांत का पालन कर सकता है, जो द्विपक्षीय संबंधों में संव्यवहार हेतु मार्गदर्शन प्रदान करता है।

 निष्कर्ष

चूँकि बिम्सटेक अगले वर्ष अपने गठन की रजत जयंती मनाने वाला है, इसलिये सदस्यों को क्षेत्रीय तालमेल बनाने और उपलब्ध संसाधनों का अ￸धिकतम उपयोग करने की दिशा में काम करने की आवश्यकता है। यह बिम्सटेक को मज़बूत और अधिक ग￸तशील बनाने में सहायक होगा। 

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न: बिम्सटेक को सहयोग और क्षेत्रीय एकीकरण के स्तर को बढ़ाने के लिये एक बदलाव की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये।


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