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एडिटोरियल

  • 04 Nov, 2020
  • 16 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

COVID-19 महामारी और आर्थिक सुधार की संभावनाएँ

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में लॉकडाउन की समाप्ति के बाद देश की अर्थव्यवस्था में देखे गए सुधार के संकेत व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ:

COVID-19 महामारी के कारण विश्व भर की अर्थव्यवस्थाओं में तीव्र गिरावट देखी गई, इस महामारी ने औद्योगिक क्षेत्र के विभिन्न घटकों (आपूर्ति शृंखला, मानव संसाधन आदि) को गंभीर रूप से प्रभावित किया और इसके साथ ही दैनिक खपत में भी भारी गिरावट देखने को मिली। इन चुनौतियों के कारण अर्थव्यवस्था में सुधार और इसे पुनः  गति प्रदान करने को लेकर चिंताएँ बनी हुई थीं। हालाँकि देश में COVID-19 महामारी के नियंत्रण हेतु लागू लॉकडाउन के हटने के बाद देश की अर्थव्यवस्था में तीव्र सुधार के संकेत और अधिक स्पष्ट होते जा रहे हैं। आर्थिक क्षेत्र में यह सुधार विनिर्माण, कोल, स्टील आदि प्रमुख क्षेत्रों में भी देखने को मिला है। हालाँकि सेवा क्षेत्र के साथ कुछ अन्य क्षेत्रों में यह सुधार उतना प्रभावी नहीं रहा है, ऐसे में अर्थव्यवस्था को पुनः गति प्रदान करने के लिये कुछ बड़े सुधारों की आवश्यकता होगी।

पृष्ठभूमि:

  • COVID-19 महामारी के प्रसार को नियंत्रित करने के लिये भारत में 25 मार्च, 2020 से देशव्यापी लॉकडाउन लागू करने की घोषणा की गई थी।
  • लॉकडाउन के कारण लोगों की आवाजाही और औद्योगिक गतिविधियों के प्रभावित होने से आने वाले महीनों में विश्व के अन्य देशों के साथ भारत की अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट देखने की मिली।
  • राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के आँकड़ों के अनुसार, अप्रैल-जून की तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था में 23.9% की गिरावट दर्ज की गई।
  • इसी प्रकार वर्ष 2020 की पहली तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र में 39.3% और खनन क्षेत्र में 23.3% की गिरावट तथा व्यापार, होटल, परिवहन एवं संचार के क्षेत्र में 47% की भारी गिरावट देखी गई।

कारण: 

  • औद्योगिक गतिविधियों में गिरावट: COVID-19 महामारी के नियंत्रण हेतु लागू लॉकडाउन के कारण देश में औद्योगिक गतिविधियों पर गंभीर प्रभाव देखने को मिला। कृषि को छोड़कर लगभग सभी क्षेत्रों में नकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई।    
  • औद्योगिक गतिविधियों में गिरावट के साथ ही विद्युत की खपत में भारी कमी देखने को मिली, गौरतलब है कि मार्च (-8.7%),  अप्रैल (-23.2%), मई (-14.9%) और जून (-10.9%) में विद्युत खपत में आई कमी देश में औद्योगिक गतिविधियों में गिरावट का स्पष्ट आँकड़ा प्रस्तुत करती है।   
  • बेरोज़गारी में वृद्धि: लॉकडाउन के कारण औद्योगिक गतिविधियों के प्रभावित होने से शहरी रोज़गार में भारी गिरावट देखने को मिली, जिसके परिणामस्वरूप बेरोज़गारी की दर अप्रैल माह में 23.52% और मई माह में 21.73% दर्ज की गई।
  • राजस्व में गिरावट: मार्च माह में लॉकडाउन की घोषणा के बाद सरकार के राजस्व में भारी गिरावट देखी गई। ध्यातव्य है कि मार्च माह में सरकार को जीएसटी के रूप में प्राप्त कुल कर राजस्व 97,597 करोड़ रुपए रहा, जबकि यह अप्रैल और मई माह में घटकर क्रमशः 32,000 करोड़ रुपए तथा 62,000 करोड़ रुपए (लगभग) तक पहुँच गया। 
  • राजस्व में हुई गिरावट के कारण सरकार के लिये औद्योगिक उत्पादन और खपत में हो रही गिरावट को कम करने के लिये बाहरी समर्थन प्रदान करना एक बड़ी चुनौती बन गया। 

सरकार के प्रयास:  

  •  केंद्र सरकार द्वारा COVID-19 महामारी से प्रभावित अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने के लिये आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत आर्थिक पैकेज की घोषणा की गई, इसके तहत सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों के लिये लगभग 20 लाख करोड़ रुपए जारी करने की रूपरेखा प्रस्तुत की गई।  
  • COVID-19 के करण उत्पन्न हुई आर्थिक चुनौतियों को देखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा 27 मार्च को बैंक ऋण के भुगतान पर 90 दिनों (1 मार्च से 31 मई तक) के अस्थायी स्थगन की घोषणा की थी, इस अवधि को बाद में 31 अगस्त तक बढ़ा दिया।
  • केंद्र सरकार द्वारा COVID-19 के दौरान ग्रामीण अर्थव्यवस्था में तरलता को बनाए रखने के लिये मनरेगा (‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम’) के बजट परिव्यय में 65% की वृद्धि की गई, इसके साथ ही सरकार द्वारा ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि या पीएम किसान (PM KISAN) योजना’  और ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना’ आदि के माध्यम से अतिरिक्त सहायता उपलब्ध कराई गई।     
  • इसके साथ औद्योगिक क्षेत्र की वित्तीय चुनौतियों को देखते हुए सरकार ने ‘दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC), 2016’ में संशोधन करते हुए IBC की प्रक्रिया शुरू करने हेतु डिफाल्ट की सीमा को 1 लाख रुपए से बढ़ाकर 1 करोड़ रुपए कर दिया गया था।    

आर्थिक सुधार के संकेत:    

  • आईएचएस मार्किट इंडिया (IHS Markit India) द्वारा जारी मासिक सर्वेक्षण के अनुसार, अक्तूबर 2020 में विनिर्माण क्षेत्र के ‘क्रय प्रबंधक सूचकांक’ (Purchasing Manager's Index- PMI) में पिछले एक दशक में सबसे बड़ी वृद्धि दर्ज की गई है।   
  • फरवरी माह के बाद पहली बार ऑटोमोबाइल कंपनियों ने वाहनों की बिक्री में वृद्धि दर्ज की है और कोर उद्योगों के उत्पादन में भी सुधार देखने को मिला है।
  • सितंबर माह में कोर उद्योगों के उत्पादन में मात्र 0.8% की गिरावट देखने को मिली, जो कि अगस्त माह की 7.3% और अप्रैल की 40% गिरावट से काफी कम है।
  • सितंबर माह में कोयला, विद्युत और इस्पात के उत्पादन में सकारात्मक वृद्धि देखने को मिली है।
  • केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, अक्तूबर 2020 में ‘वस्तु एवं सेवा कर’ (GST) संग्रहण 1.05 लाख करोड़ रुपए से अधिक रहा , जो कि फरवरी 2020 के  इस वर्ष में संगृहीत किया गया सबसे अधिक कर राजस्व है।
    • गौरतलब है कि अक्तूबर 2020 में जीएसटी के रूप में एकत्र किया गया कुल कर राजस्व अक्तूबर 2019 में एकत्र किये गए कुल राजस्व से 10% अधिक है।
  • इसी प्रकार अक्तूबर माह में घरेलू मांग में वृद्धि हुई है, जो अर्थव्यवस्था के लिये एक सकारात्मक संकेत है उदाहरण के लिये अक्तूबर माह में माइक्रोवेव (+70%) , वाशिंग मशीन (+15%) और रेफ्रिजरेटर (+10%) जैसे घरेलू उपकरणों की बिक्री में वृद्धि देखने को मिली है।
  • विद्युत खपत के मामले में  सितंबर (+1.8%) माह से ही सकारात्मक वृद्धि देखने को मिली जो अक्तूबर में +13.38% तक पहुँच गई और अगस्त माह के बाद ई-वे बिल (जो अंतर्राज्‍यीय व्यापार की स्थिति को दर्शाता है) में भी सुधार देखने को मिला है 

चुनौतियाँ:

  • हाल के दिनों में कई क्षेत्रों से आर्थिक सुधार के संकेत मिलने के बावज़ूद भी देश की अर्थव्यवस्था में निरंतर आर्थिक सुधार आने वाले दिनों में खपत, निवेश और निर्यात में वृद्धि पर ही निर्भर करेगा। 
  • अक्तूबर माह में देश के निर्यात में 5.4% की गिरावट देखी गई, जबकि अप्रैल-अक्तूबर के दौरान इस क्षेत्र में 19% की गिरावट और इसी अवधि के दौरान देश के आयात में 11.6% की गिरावट दर्ज की गई । 
  • देश के निर्यात में ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम’ (MSME) क्षेत्र की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण (वित्तीय वर्ष 2018-19 में लगभग 48.10%) है परंतु पिछले कुछ समय से इस क्षेत्र में वित्तीय तरलता और मानव संसाधन की कमी के साथ मांग में हुई गिरावट से स्थितियाँ और अधिक चिंताजनक हो गई हैं।  
    • गौरतलब है कि हाल के कुछ वर्षों में निर्यात क्षेत्र में भारत के प्रदर्शन में गिरावट देखी गई है, जबकि बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देश इस क्षेत्र में तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं।
  • इसके अतिरिक्त निजी क्षेत्र के निवेश में गिरावट भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है, जून 2020 में सकल स्थायी पूंजी निर्माण और  जीडीपी का अनुपात 19.5% रहा जबकि जून 2018 में यह 29% था। ऐसे में इस चुनौती से निपटने में निजी क्षेत्र की भूमिका बहुत ही सीमित रहेगी।  
  • पिछले कुछ वर्षों से देश का बैंकिंग क्षेत्र भी कई प्रकार की चुनौतियों का सामना कर रहा था परंतु COVID-19 महामारी से उत्पन्न हुई वित्तीय चुनौतियों के कारण NPA के मामलों में वृद्धि से यह समस्या और भी जटिल हो गई है।  
  • सरकार द्वारा लागू मौद्रिक नीतियों से वित्तीय तरलता की चुनौतियों को कम करने और बैंक ऋण में सुधार लाने में भले ही सफलता प्राप्त हुई हो परंतु बैंकिंग क्षेत्र में व्याप्त जोखिम को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है।  

समाधान: 

  • देश की अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने में खपत और सार्वजनिक निवेश में वृद्धि की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण होगी। 
  • इस महामारी से सीख लेते हुए सरकार को स्वास्थ्य, सूचना प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों में आयात पर निर्भरता को कम करते हुए स्थानीय आपूर्ति शृंखला को मज़बूत करने पर विशेष ध्यान देना होगा। 
  • COVID-19 महामारी के दौरान कृषि क्षेत्र में सबसे कम गिरावट देखने को मिली हालाँकि इस क्षेत्र में रोज़गार और आय में वृद्धि के लिये विशेष प्रयास किये जाने चाहिये जिससे इसका पूरा लाभ उठाया जा सके, सरकार द्वारा कृषि अवसंरचना कोष (Agriculture Infrastructure Fund) की स्थापना इस दिशा में एक सकारात्मक कदम है।   
  • COVID-19 महामारी के कारण अर्थव्यवस्था की क्षति को कम करने के लिये खपत-निवेश चक्र को जल्द-जल्द से जल गति प्रदान करना बहुत ही आवश्यक होगा। 
  • साथ ही सार्वजनिक खपत और विवेकाधीन खर्च में वृद्धि से निजी क्षेत्र के निवेश को भी बढ़ाया जा सकता है।
  • सरकार को असंगठित क्षेत्र और MSME (विशेषकर सूक्ष्म श्रेणी) से जुड़े उद्योगों की वित्तीय चुनौतियों को दूर करने के लिये विशेष तथा लक्षित योजनाओं की शुरुआत पर विचार करना चाहिये।
  • वर्तमान में अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेतों के बीच विश्व के विभिन्न हिस्सों में COVID-19 के मामलों में वृद्धि के आँकड़े एक बड़ी चिंता का कारण है परंतु सरकार को इस ‘नई सामान्य स्थिति’ (New Normal) में विकास के नए अवसर उत्पन्न करने होंगे।

निष्कर्ष: 

COVID-19 महामारी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। इस महामारी के दौरान आपूर्ति शृंखलाओ के बाधित होने, श्रमिकों के पलायन और वित्तीय तरलता की चुनौतियों के साथ इसके किसी प्रमाणिक उपचार के अभाव में उत्पन्न हुई अनिश्चितता से अन्य सभी क्षेत्रों के साथ आर्थिक क्षेत्र को अभूतपूर्व क्षति हुई है।देश के अधिकांश हिस्सों से लॉकडाउन के हटने के बाद पिछले कुछ महीनों में स्थितियों में कुछ सुधार हुआ है। हालाँकि देश की अर्थव्यवस्था को पुनः गति प्रदान करने के लिये सरकार को सर्वाजनिक निवेश के साथ स्थानीय आपूर्ति शृंखला को मज़बूत करने, वित्तीय तरलता को बनाए रखने तथा सार्वजनिक खपत को प्रोत्साहित करने पर विशेष ध्यान देना होगा। 

अभ्यास प्रश्न: COVID-19 महामारी के कारण देश की अर्थव्यवस्था पर पड़े प्रभावों का संक्षिप्त विवरण देते हुए वर्तमान समय में अर्थव्यवस्था में सुधार की संभावनाओं और इसकी चुनौतियों की समीक्षा कीजिये।


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