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एडिटोरियल

  • 04 Aug, 2025
  • 32 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत की ऊर्जा सुरक्षा का सुदृढ़ीकरण

यह एडिटोरियल 04/08/2025 को इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित For Energy Security, A Redesign पर आधारित है। इस संपादकीय में यह रेखांकित किया गया है कि नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में सराहनीय प्रगति के बावजूद भारत की ऊर्जा सुरक्षा रणनीति में सतत् विकास और डीकार्बोनाइज़ेशन (कार्बन उत्सर्जन में कटौती) सुनिश्चित करने के लिये ऊर्जा क्षेत्र की विनियम प्रक्रिया को सरल बनाना, मौजूदा कोयला अवसंरचना को उन्नत करना और नवीकरणीय ऊर्जा की ओर तीव्र संक्रमण आवश्यक है।

प्रिलिम्स के लिये:

नवीकरणीय ऊर्जा, PM-KUSUM, इलेक्ट्रिक बस, हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों का तीव्र अंगीकरण एवं विनिर्माण, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA), COP29, UJALA योजना, उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना 

मेन्स के लिये:

भारत का ऊर्जा परिदृश्य: संबंधित चुनौतियाँ और आगे की राह

भारत में ऊर्जा सुरक्षा की धारणा पारंपरिक रूप से जीवाश्म ईंधनों (कोयला, तेल और गैस) की उपलब्धता, विश्वसनीयता एवं वहनीयता पर केंद्रित रही है।

 हालाँकि, ग्लोबल वार्मिंग और वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को देखते हुए यह दृष्टिकोण अब अपर्याप्त हो गया है। अतः भारत को दोहरी ऊर्जा नीति अपनानी होगी: एक जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल एवं गैस) की खपत कम करने पर केंद्रित और दूसरा नवीकरणीय ऊर्जा (सौर, पवन एवं जैव ऊर्जा) का विस्तार करने पर। इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु केवल जीवाश्म ईंधनों का संरक्षण पर्याप्त नहीं, बल्कि ऊर्जा क्षेत्र की विनियामक प्रणाली को अधिक सरल, समन्वित और दक्ष बनाना भी आवश्यक है।

भारत ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में किस प्रकार प्रगति कर रहा है?

  • स्थापित विद्युत क्षमता और ऊर्जा मिश्रण में वृद्धि: जून 2025 तक, भारत की कुल स्थापित विद्युत क्षमता 476 गीगावाट तक पहुँच गई है।
    • भारत की कुल स्थापित क्षमता में ताप विद्युत का योगदान 240 गीगावाट (50.52%) है, जो मुख्य रूप से कोयले पर निर्भर है।
    • नवीकरणीय और परमाणु ऊर्जा सहित गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोत, कुल स्थापित क्षमता का 49% (235.7 गीगावाट) बनाते हैं।
      • नवीकरणीय ऊर्जा कुल क्षमता का 226.9 गीगावाट (47.7%) है, जो भारत को वैश्विक स्तर पर चौथे स्थान पर रखता है।
      • IRENA RE सांख्यिकी- 2025 के अनुसार, भारत पवन ऊर्जा में चौथे और सौर ऊर्जा क्षमता में तीसरे स्थान पर है।
    • यह परिवर्तन विविध ऊर्जा मिश्रण को दर्शाता है जिसका उद्देश्य जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करते हुए ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना और भारत की डीकार्बोनाइज़ेशन (कार्बन उत्सर्जन में कटौती) और पेरिस समझौते की प्रतिबद्धताओं का समर्थन करना है। 
  • बिजली आपूर्ति में प्रगति: भारत ने अपनी बिजली आपूर्ति की विश्वसनीयता और निरंतरता बढ़ाने में उल्लेखनीय प्रगति की है।
    • बिजली की कमी सत्र 2013-14 में 4.2% से घटकर सत्र 2024-25 में 0.1% हो गई है, जो बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये एक विश्वसनीय और निरंतर बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने में पर्याप्त प्रगति को दर्शाती है।
    • दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (DDUGYA) के तहत, भारत ने अप्रैल 2018 तक 100% गाँवों का विद्युतीकरण कर लिया, जिससे देश भर के दूरदराज़ के इलाकों में बिजली सुलभ हो गई।
    • टाटा पावर के सौर माइक्रो-ग्रिड जैसी पहल, जिनका लक्ष्य 10,000 गाँवों का विद्युतीकरण करना है, दूरस्थ इलाकों में ऊर्जा सुलभता सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
    • ये विकेंद्रीकृत समाधान ऊर्जा को सभी के लिये सुलभ और किफायती बनाने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • परिवहन क्षेत्र का विद्युतीकरण: भारत अपने परिवहन क्षेत्र को कार्बन-मुक्त करने के लिये स्वच्छ ऊर्जा का लाभ उठा रहा है, जिसका लक्ष्य 2030 तक 30% इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) का अंगीकरण करना है।
  • रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार (SPR): ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने के लिये, भारत ने वैश्विक तेल आपूर्ति में व्यवधानों से बचाव के लिये SPR में निवेश किया है।
    • इंडियन स्‍ट्रेटेजिक पेट्रोलियम रिज़र्व्स लिमिटेड (ISPRL) द्वारा प्रबंधित भारत की SPR क्षमता का लक्ष्य 5.33 मिलियन मीट्रिक टन कच्चे तेल का भंडारण करना है।
    • यह भंडार आपूर्ति संबंधी संकटों से सुरक्षा प्रदान करता है तथा भू-राजनीतिक तनाव या प्राकृतिक आपदाओं जैसे वैश्विक संकटों के दौरान बाज़ार को स्थिर रखता है, जो तेल आपूर्ति को बाधित कर सकते हैं।
    • इन भंडारों का विस्तार और विविधीकरण भारत की ऊर्जा सुरक्षा को सुदृढ़ करेगा तथा बाह्य आपूर्ति व्यवधानों के प्रति संवेदनशीलता को कम करेगा।
  • भारत की ऊर्जा सुरक्षा के एक स्तंभ के रूप में वैश्विक ऊर्जा कूटनीति: अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में भारत का वैश्विक नेतृत्व अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) जैसी पहलों एवं बाकू में आयोजित COP29 में समान ऊर्जा वित्तपोषण के लिये इसके सक्रिय प्रयासों के माध्यम से प्रदर्शित होता है।
    • COP29 में, भारत ने विकसित देशों द्वारा एकतरफा कार्रवाई पर चिंता जताई और वैश्विक ऊर्जा एवं जलवायु-परिवर्तन चुनौतियों से निपटने के लिये साझा जिम्मेदारी तथा संसाधनों के समान वितरण की आवश्यकता पर बल दिया।
    • ISA की 'टुवर्ड्स 1000' रणनीति का लक्ष्य वर्ष 2030 तक सौर ऊर्जा में 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश प्राप्त करना है, जो वैश्विक अक्षय ऊर्जा प्रयासों में महत्त्वपूर्ण योगदान देगा।

भारत के ऊर्जा क्षेत्र के विकास में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • कोयले और अन्य जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता: नवीकरणीय ऊर्जा में प्रगति के बावजूद, भारत का ऊर्जा मिश्रण अभी भी कोयले पर बहुत अधिक निर्भर है, जो देश के बिजली उत्पादन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
    • कोयले पर यह निरंतर निर्भरता एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि यह न केवल ऊर्जा क्षेत्र को कार्बन-मुक्त करने के प्रयासों में बाधा डालती है, बल्कि उच्च उत्सर्जन का कारण भी बनती है, जो वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त करने सहित भारत की वैश्विक जलवायु प्रतिबद्धताओं को कमज़ोर करती है।
    • भारत सरकार द्वारा वर्ष 2031–32 तक न्यूनतम 80 गीगावॉट की कोयला-आधारित क्षमता जोड़ने का प्रस्ताव इस दिशा में बाधक है और यह नवीकरणीय ऊर्जा की ओर देश की पहल के प्रतिकूल है।
  • ऊर्जा विस्तार में बाधा डालने वाली नियामक बाधाएँ: हालाँकि भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में प्रभावशाली प्रगति की है, हाल के वर्षों में विकास की गति धीमी हो गई है।
    • यह मुख्य रूप से नियामक जटिलताओं के कारण है, विभिन्न सरकारी विभागों में कई अनुपालन आवश्यकताओं के कारण अनुमोदन प्रक्रियाओं में विलंब हो रहा है।
      • उदाहरण के लिये, 1 मेगावाट के सौर संयंत्र के लिये 100 से अधिक लाइसेंस और कई स्वीकृतियों की आवश्यकता हो सकती है, जिससे इस क्षेत्र की वृद्धि मंद हो जाती है।
    • भारत का ऊर्जा क्षेत्र संपूर्ण ऊर्जा प्रणाली के लिये नोडल ज़िम्मेदारी और जवाबदेही वाले एकल कार्यकारी प्राधिकरण के अभाव से ग्रस्त है।
      • नियामक अभिकरणों और विभागों की बहुलता समन्वय की समस्याएँ उत्पन्न करती है और परिणामस्वरूप निर्णय लेने में विखंडन होता है।
  • सीमित घरेलू सौर विनिर्माण क्षमता: सौर ऊर्जा क्षमता बढ़ाने के भारत के लक्ष्य को प्रमुख सौर घटकों, जैसे: सोलर वेफ़र्स और पॉलीसिलिकॉन (जो सौर मॉड्यूल के निर्माण के लिये महत्त्वपूर्ण हैं) में सीमित घरेलू उत्पादन क्षमताओं के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
    • देश वर्तमान में इन महत्त्वपूर्ण घटकों के लिये (विशेष रूप से चीन से) आयात पर निर्भर है। इससे भारत को आपूर्ति शृंखला की कमज़ोरियों और विदेशी बाज़ारों में लागत में उतार-चढ़ाव से जुड़े जोखिमों का सामना करना पड़ता है, जिससे ऊर्जा स्वतंत्रता प्राप्त करने के प्रयास कमज़ोर होते हैं।
    • चीन वैश्विक सौर PV आपूर्ति शृंखला के 75-95% हिस्से को नियंत्रित करता है, जिसमें 91% पॉलीसिलिकॉन और 97% से अधिक वेफर्स शामिल हैं, जो इसे विश्व भर में प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता बनाता है।
      • भारत अपने 50% से अधिक सोलर सेल और मॉड्यूल के लिये चीन पर निर्भर है, जिसका आयात वित्त वर्ष 2024 में लगभग 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का रहा।
  • नवीकरणीय ऊर्जा के लिये अपर्याप्त ग्रिड अवसंरचना: नवीकरणीय ऊर्जा के विस्तार में एक बड़ी बाधा सौर और पवन ऊर्जा की अस्थायी प्रकृति को समायोजित करने के लिये अवसंरचना का अभाव है।
    • यद्यपि भारत नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में वृद्धि के साथ प्रगति कर रहा है, फिर भी इसके ग्रिड अवसंरचना में महत्त्वपूर्ण सुधार की आवश्यकता है।
    • अपर्याप्त बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली (BESS) के कारण उच्च उत्पादन की अवधि के दौरान अतिरिक्त ऊर्जा का भंडारण करना मुश्किल हो जाता है, जो निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
      • दिसंबर 2024 तक, भारत की संचयी स्थापित बैटरी ऊर्जा भंडारण क्षमता लगभग 442 GWh थी।
      • हालाँकि, यह सत्र 2026-27 तक 82.37 GWh ऊर्जा भंडारण की अनुमानित आवश्यकता को पूरा करने के लिये अपर्याप्त है।
  • वित्तपोषण और निवेश के मुद्दे: नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं का वित्तपोषण एक चुनौती बना हुआ है, विशेषकर जब दीर्घकालिक निवेश आकर्षित करने की बात आती है।
  • ऊर्जा उपलब्धता में असमानता: यद्यपि सार्वभौमिक ग्रामीण विद्युतीकरण का लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया है, फिर भी ऊर्जा सुलभता में, विशेष रूप से दूरदराज और ग्रामीण क्षेत्रों में, अभी भी अंतराल हैं। भारत की ग्रामीण आबादी का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा ऊर्जा की गुणवत्ता और सामर्थ्य से जुड़ी समस्याओं का सामना कर रहा है।
    • इसके अतिरिक्त, ग्रामीण क्षेत्रों में ऊर्जा-कुशल प्रौद्योगिकियों का अभाव है, जिससे ऊर्जा की खपत बढ़ती है और लागत बढ़ती है।
      • ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (CEEW) के एक अध्ययन में पाया गया कि विशेषकर उत्तर प्रदेश, झारखंड, असम, बिहार और हरियाणा जैसे राज्यों में एक-तिहाई घरों में आपूर्ति की गुणवत्ता से जुड़ी कम से कम एक समस्या देखी गई, जो लंबे समय तक बिजली गुल रहना, कम वोल्टेज या वोल्टेज में उतार-चढ़ाव के कारण उपकरणों को नुकसान इत्यादि हैं।
    • भारत आवासीय ऊर्जा सर्वेक्षण (IRES)- 2020 के अनुसार, लगभग 2.4% भारतीय घरों में बिजली नहीं है, जिनमें से अधिकांश उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा एवं बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हैं। 
  • भूमि अधिग्रहण और पर्यावरणीय चिंताएँ: नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं, विशेष रूप से सोलर पार्कों और विंड फार्मों के लिये भारी मात्रा में भूमि की आवश्यकता होती है। इससे भूमि अधिग्रहण के मुद्दे और स्थानीय समुदायों के साथ संघर्ष उत्पन्न हुए हैं।
    • इसके अतिरिक्त, पर्यावरणीय सरोकार संबंधी चुनौतियों का समुचित प्रबंधन किया जाना आवश्यक है, विशेषकर जैव-विविधता पर प्रभाव और प्रवासी पक्षियों के आवागमन के पैटर्न में बदलाव, जो कि पवन ऊर्जा परियोजनाओं द्वारा पारिस्थितिक रूप से सुभेद्य क्षेत्रों (जैसे: पश्चिमी घाट) में देखे जाते हैं, के संदर्भ में।  
    • राजस्थान के बाड़मेर में लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, जहाँ ग्रामीणों ने सौर ऊर्जा कंपनियों द्वारा खेजड़ी मरुवृक्षों की अवैध कटाई और दहन का विरोध किया है।

भारत की ऊर्जा सुरक्षा और परिवर्तन को आगे बढ़ाने के लिये प्रमुख रणनीतियाँ क्या हैं?

  • नीतिगत सुधारों को प्रोत्साहित करना और बेहतर कार्यान्वयन: नवीकरणीय ऊर्जा निवेश को प्रोत्साहित करने और परियोजनाओं के सुचारू निष्पादन को सुनिश्चित करने के लिये वर्तमान नीतिगत कार्यढाँचों एवं प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता है।
    • भारत को नियामक प्रक्रियाओं को सरल बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, विशेष रूप से भूमि अधिग्रहण, अनुमोदन और अनुपालन से संबंधित प्रक्रियाओं को।
    • सुव्यवस्थित कानून और प्रशासनिक सुधारों के कार्यान्वयन से एक आकर्षक निवेश वातावरण का निर्माण होगा, जिससे देश के हरित ऊर्जा लक्ष्यों को समर्थन मिलेगा।
      • एक केंद्रीकृत परियोजना मंजूरी प्रकोष्ठ, समुद्र तल पट्टे नीति और व्यवहार्यता अंतर निधि तंत्र बनाकर अपतटीय पवन ऊर्जा परिनियोजन को तीव्र किया जाना चाहिये।
      • कार्बन कैप्चर प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में उन्नत नीतिगत उपायों के माध्यम से कोयला क्षेत्र में संवहनीयता को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • EPC (इंजीनियरिंग, खरीद और सन्निर्माण) क्षमताओं का उन्नयन: भारत में EPC क्षमता वर्तमान में इतनी सशक्त नहीं है कि यह सौर तथा पवन ऊर्जा परियोजनाओं का आवश्यक गति से विस्तार कर सके, जो देश के ऊर्जा लक्ष्यों की पूर्ति के लिये अपेक्षित है।
    • भारत को बड़े पैमाने पर नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के प्रबंधन के लिये सुदृढ़ EPC क्षमताओं का निर्माण करने की आवश्यकता है।
    • इसमें कुशल श्रमिकों को प्रशिक्षित करना, तकनीकी विशेषज्ञता में सुधार करना और नवीकरणीय परियोजनाओं के कार्यान्वयन में तेज़ी लाने के लिये बड़े पैमाने पर परियोजना प्रबंधन में निवेश करना शामिल है।
  • ग्रिड अवसंरचना का आधुनिकीकरण: नवीकरणीय ऊर्जा की परिवर्तनशील प्रकृति को नियंत्रित करने के लिये स्मार्ट ग्रिड में अपग्रेड करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
    • स्मार्ट मीटर, पूर्वानुमानित रखरखाव प्रणालियों और बेहतर ट्रांसमिशन नेटवर्क में निवेश, ग्रिड में नवीकरणीय ऊर्जा के विश्वसनीय एकीकरण को सुनिश्चित करने तथा आपूर्ति एवं मांग को प्रभावी ढंग से संतुलित करने में सहायता करेगा।
    • वाहन-से-ग्रिड (V2G) तकनीकों, प्रबंधित लोड शेड्यूलिंग और स्मार्ट चार्जिंग अवसंरचना के माध्यम से ग्रिड स्थिरीकरण के साथ EV चार्जिंग को एकीकृत किया जाना चाहिये।
      • EV मोबाइल ऊर्जा परिसंपत्तियों के रूप में कार्य कर सकते हैं, ग्रिड के लचीलेपन में सुधार कर सकते हैं और वितरित भंडारण को सक्षम बना सकते हैं।
  • भूमि अधिग्रहण सुधार: बड़े पैमाने पर नवीकरणीय परियोजनाओं के लिये भूमि अधिग्रहण प्रायः नियामक मुद्दों और भूमि उपयोग विवादों, विशेष रूप से कृषि भूमि के कारण धीमा हो जाता है।
    • भूमि अधिग्रहण कानूनों में सुधार प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के तीव्र कार्यान्वयन को सुगम बनाने के लिये आवश्यक हैं।
    • सरकार को ऐसी नीतियों पर विचार करना चाहिये जो खाद्य सुरक्षा को कम किये बिना ऊर्जा उत्पादन उद्देश्यों के लिये कृषि भूमि के रूपांतरण को आसान बनाएँ।
    • कृषि-पीवी प्रणालियों को बढ़ावा दिया जाना आवश्यक है जो एक ही भूमि पर, विशेष रूप से अर्द्ध-शुष्क और लघु जोत वाले क्षेत्रों में, एक साथ फसल उगाने तथा सौर ऊर्जा उत्पादन की अनुमति देती हैं। इससे भूमि-उपयोग संघर्ष कम होता है, कृषि आय में वृद्धि होती है और वितरित स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा मिलता है।
  • दीर्घकालिक निवेश आकर्षित करना: नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र को दीर्घकालिक पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है, जिसे वित्तीय चुनौतियों के कारण आकर्षित करना प्रायः कठिन होता है।
    • भारत को दीर्घकालिक निवेश के लिये अनुकूल वातावरण बनाने के प्रयासों को बढ़ाना चाहिये, विशेष रूप से विदेशी पूंजी को आकर्षित करने पर ध्यान केंद्रित करके।
    • नीतिगत स्थायित्व को मज़बूत करना, निवेश संरक्षण में सुधार करना और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना अत्यंत आवश्यक पूंजी संग्रहण में सहायता कर सकता है।
    • विदेशी निवेश, विशेष रूप से ‘धैर्यशील पूंजी (Patient Capital)’ को प्रोत्साहित करके, भारत बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिये आवश्यक संसाधन आकर्षित कर सकता है।
  • स्वच्छ ऊर्जा भविष्य के लिये हरित हाइड्रोजन को बढ़ावा देना: हरित हाइड्रोजन भारत के कार्बन-उत्सर्जन में कटौती के प्रयासों का एक महत्त्वपूर्ण घटक है, लेकिन यह नवीकरणीय ऊर्जा से प्राप्त प्रदूषण मुक्त बिजली पर बहुत अधिक निर्भर है।
    • भारत को अपने प्रचुर सौर ऊर्जा संसाधनों का लाभ उठाकर हरित हाइड्रोजन उत्पादन को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
    • हरित हाइड्रोजन अवसंरचना का समर्थन और इस्पात, उर्वरक तथा रिफाइनरियों जैसे उद्योगों को हाइड्रोजन को स्वच्छ ईंधन स्रोत के रूप में अपनाने के लिये प्रोत्साहन प्रदान करने से जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम हो सकती है तथा भारत अपने शुद्ध-शून्य लक्ष्य के करीब पहुँच सकता है।
  • स्वच्छ परमाणु ऊर्जा के लिये लघु मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMR) की स्थापना: स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) एक आशाजनक परमाणु तकनीक प्रदान करते हैं जो स्केलेबल और सुरक्षित स्वच्छ ऊर्जा समाधान प्रदान करते हैं। पारंपरिक परमाणु संयंत्रों की तुलना में कम प्रारंभिक निवेश आवश्यकताओं के साथ, SMR भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिये उपयुक्त हैं।
    • अमेरिका जैसे देशों के साथ सहयोग करके, जो SMR तकनीक में आगे बढ़ रहे हैं, भारत कम उत्सर्जन सुनिश्चित करते हुए अपने ऊर्जा मिश्रण में विविधता ला सकता है।
    • इसके अतिरिक्त, SMR में ऑफ-ग्रिड अनुप्रयोगों की क्षमता है, जो उन्हें दूरस्थ क्षेत्रों में बिजली आपूर्ति के लिये आदर्श बनाता है।
  • ऊर्जा संक्रमण-संबद्ध ग्रीन सॉवरेन बॉण्ड: भारत स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये ऊर्जा संक्रमण-संबद्ध ग्रीन सॉवरेन बॉण्ड जारी कर सकता है।
    • ये बॉण्ड, नवीकरणीय क्षमता वृद्धि और कोयले पर निर्भरता में कमी जैसे मापनीय ऊर्जा संक्रमण लक्ष्यों से जुड़े हैं तथा स्थायी निवेश आकर्षित करेंगे।
    • ये बॉण्ड नवीकरणीय ऊर्जा अवसंरचना और ग्रिड आधुनिकीकरण के लिये दीर्घकालिक, कम लागत वाला वित्तपोषण प्रदान करते हैं, जो भारत के वर्ष 2070 के शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य के अनुरूप है, साथ ही ऊर्जा सुरक्षा को भी बढ़ाता है।
  • अपशिष्ट-से-ऊर्जा (WTE) संयंत्रों का विस्तार: WTE संयंत्रों का विस्तार भारत में अपशिष्ट प्रबंधन और ऊर्जा उत्पादन दोनों के लिये एक आशाजनक समाधान है।
    • नगरपालिका और औद्योगिक अपशिष्ट की बढ़ती मात्रा के साथ, WTE संयंत्र लैंडफिल के उपयोग को कम करने तथा एक स्थायी ऊर्जा स्रोत प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
    • ऊर्जा सुरक्षा को और बढ़ाने के लिये, भारत को औद्योगिक समूहों में ऊर्जा चक्रीयता को अनिवार्य बनाने की आवश्यकता है।
    • इसमें उद्योगों को अपशिष्ट ऊष्मा का पुन: उपयोग करने, प्रक्रिया गैसों का पुनर्चक्रण करने और अपशिष्ट-से-ऊर्जा इकाइयों को एक साथ स्थापित करने के लिये प्रोत्साहित करना शामिल है, जिससे पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों पर उनकी निर्भरता काफी कम हो सकती है तथा एक अधिक स्थायी औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा मिलेगा, जिससे इसके डीकार्बोनाइज़ेशन लक्ष्यों में योगदान मिलेगा।
  • सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना: ट्रांसमिशन अपग्रेड, बैटरी स्टोरेज सिस्टम, अपतटीय पवन ऊर्जा और स्मार्ट ग्रिड विकास के लिये PPP मॉडल का लाभ उठाकर, व्यावसायिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करते हुए बुनियादी अवसंरचना के विस्तार को तीव्र किया जा सकता है।
    • संरचित जोखिम-साझाकरण कार्यढाँचे और दीर्घकालिक राजस्व निश्चितता निजी पूंजी को आकर्षित करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। संस्थागत क्षमता निर्माण और नियामक स्पष्टता ऊर्जा क्षेत्र में PPP को अधिक मापनीय एवं कुशल बनाएगी।
    • भारत के नवीकरणीय ऊर्जा की ओर संक्रमण के लिये बुनियादी अवसंरचना, प्रौद्योगिकी और कार्यबल कौशल में निवेश की आवश्यकता है।
      • दोनों क्षेत्रों को दीर्घकालिक रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, भारत की ऊर्जा सुरक्षा और कार्बन-उत्सर्जन में कटौती के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये मिलकर काम करना चाहिये।

निष्कर्ष

भारत की ऊर्जा सुरक्षा का मार्ग विनियमन को सरल बनाने, बुनियादी अवसंरचना के आधुनिकीकरण तथा नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश को बढ़ावा देने में निहित है। देश के विनिर्माण को सशक्त करने, ग्रीन हाइड्रोजन जैसी नवीन प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण तथा सार्वजनिक-निजी सहयोग को प्रोत्साहित करने के माध्यम से भारत जीवाश्म ईंधनों पर अपनी निर्भरता को न्यूनतम कर सकता है। ‘ऊर्जा आत्मनिर्भरता’ की दिशा में यह प्रयास देश के कार्बन-उत्सर्जन में कटौती के प्रयासों को गति प्रदान करेगा तथा एक स्थायी एवं आत्मनिर्भर ऊर्जा भविष्य को सुरक्षित करने में सहायता करेगा, जिससे सतत् विकास लक्ष्य SDG 7 (सभी के लिये सस्ती और प्रदूषण-मुक्त ऊर्जा की सुलभता सुनिश्चित करना) की प्राप्ति में योगदान मिलेगा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स   

प्रश्न 1. भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी लिमिटेड (IREDA) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?  (2015)

  1. यह एक पब्लिक लिमिटेड सरकारी कंपनी है।
  2. यह एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


मेन्स 

प्रश्न 1. "वहनीय (ऐफोर्डेबल), विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच संधारणीय (सस्टेनबल) विकास लक्ष्यों (एस.डी.जी.) को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य है।" भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये।  (2018)


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