अंतर्राष्ट्रीय संबंध
शंघाई सहयोग संगठन में भारत के सामरिक हित
यह एडिटोरियल 02/09/2025 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित “PM Modi’s address to SCO 2025: Security, Connectivity, Opportunity” पर आधारित है। यह लेख 25वें शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में भारत के सुरक्षा, संपर्क और अवसर के त्रि-स्तंभीय दृष्टिकोण, जिसमें आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता पर दृढ़ रुख अपनाया गया है, को रेखांकित करता है। साथ ही लेख में सभ्यतागत संवाद मंच और संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता के सिद्धांतों के अनुरूप संपर्क परियोजनाओं के लिये भारत के आह्वान पर भी प्रकाश डाला गया है।
प्रिलिम्स के लिये: 25वाँ शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन, चाबहार बंदरगाह, चीन की बेल्ट एंड रोड पहल, SCO-क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना, तियानजिन घोषणा, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा
मेन्स के लिये: SCO के साथ अपनी भागीदारी से भारत को मिलने वाले अवसर, SCO के साथ अपनी भागीदारी में भारत के समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियाँ।
25वें शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में, भारत ने सुरक्षा, संपर्क और अवसर के अपने त्रि-स्तंभ दृष्टिकोण को पुनः रेखांकित करते हुए आतंकवाद के प्रति शून्य-सहिष्णुता की नीति पर ज़ोर दिया तथा लोगों के बीच संबंधों को मज़बूत करने के लिये एक सभ्यतागत संवाद मंच (Civilizational Dialogue Forum) का प्रस्ताव रखा। भारतीय प्रधानमंत्री ने उग्रवाद से निपटने में भारत की रचनात्मक भूमिका को रेखांकित करते हुए संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने वाली संपर्क परियोजनाओं की अनुशंसा की। हालाँकि, पाकिस्तान और चीन के अड़ियल रुख, बेल्ट एंड रोड पहल में चीन के प्रभुत्व और आतंकवाद विरोधी सहमति में कमी के कारण भारत को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में आगे बढ़ने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इसके साथ ही, अमेरिका के साथ बढ़ती साझेदारी तथा चीन-रूस के प्रभाव के बीच ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ को संतुलित रखना भारत के लिये सबसे बड़ी परीक्षा है।
SCO के साथ अपनी भागीदारी से भारत को क्या अवसर प्राप्त होते हैं?
- मध्य एशिया में भू-रणनीतिक प्रभाव का सुदृढ़ीकरण: शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के साथ भारत की भागीदारी मध्य एशिया में एक रणनीतिक आधार प्रदान करती है, जो क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक विस्तार के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- मध्य एशियाई देशों के साथ संबंधों को गहरा करके, भारत इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करता है।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2020 में बुनियादी अवसंरचना के विकास के लिये मध्य एशिया को भारत द्वारा दी गई 1 बिलियन डॉलर की ऋण सहायता, क्षेत्र के आर्थिक एकीकरण में एक प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में उसकी स्थिति को मज़बूत करती है।
- इसके अतिरिक्त, चाबहार बंदरगाह और इंटरनेशनल नॉर्थ–साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) में सहयोग, ऐसे वैकल्पिक व्यापारिक मार्ग को बढ़ावा देता है जो चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) को दरकिनार करते हैं।
- हालिया शिखर सम्मेलन में भारत ने दोहराया कि “संप्रभुता को नज़रअंदाज़ करने वाले संपर्क तंत्र स्वीकार्य नहीं हैं।” इसका संकेत यह है कि भारत अपनी भौगोलिक अखंडता के प्रश्न पर स्पष्ट और दृढ़ रुख रखता है।
- आतंकवाद विरोधी नेतृत्व और क्षेत्रीय सुरक्षा: भारत ने आतंकवाद विरोधी प्रयासों, विशेष रूप से सीमा-पार आतंकवाद से निपटने में, अपने नेतृत्व का दावा करने के लिये SCO मंच की सहायता ली है।
- भारत ने SCO में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का मुद्दा सफलतापूर्वक उठाया और आतंकवाद के वित्तपोषण पर एक एकीकृत रुख अपनाने पर ज़ोर दिया।
- हाल ही में संपन्न शिखर सम्मेलन में यह स्पष्ट रूप से उभरकर सामने आया कि भारतीय प्रधानमंत्री ने आतंकवाद के संदर्भ में ‘दोहरे मापदंडों (Double Standards)’ को नकारने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया तथा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की उपस्थिति में एक सामूहिक, सुसंगत दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया।
- साथ ही, 'तिआनजिन घोषणा-पत्र' में पहलगाम हमले की कड़े शब्दों में निंदा की गई।
- SCO की आतंकवाद विरोधी पहलों, जैसे SCO-क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना, में भारत की भागीदारी क्षेत्रीय सुरक्षा पर बढ़ते सहयोग को दर्शाती है।
- उल्लेखनीय रूप से, संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय (CCIT) के लिये भारत की अनुशंसा को SCO के भीतर समर्थन मिला है, जो आतंकवाद से लड़ने के लिये सामूहिक प्रतिबद्धता का संकेत देता है।
- भारत ने SCO में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का मुद्दा सफलतापूर्वक उठाया और आतंकवाद के वित्तपोषण पर एक एकीकृत रुख अपनाने पर ज़ोर दिया।
- समावेशी और सतत् विकास को आगे बढ़ाना: SCO में भारत की भागीदारी ने इसे समावेशी और सतत् विकास के एक प्रमुख समर्थक के रूप में स्थापित किया है।
- नवाचार, हरित प्रौद्योगिकियों और डिजिटल समावेशन पर ध्यान केंद्रित करके, भारत ने क्षेत्र के विकास पथ को प्रभावित करने का प्रयास किया है।
- SCO स्टार्टअप फोरम (वर्ष 2024 में भारत में आयोजित चतुर्थ संस्करण) जैसी पहलों तथा पारंपरिक चिकित्सा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में सहयोगात्मक प्रयासों ने भारत को सतत् विकास पर क्षेत्रीय संवाद को आकार देने में सहायता की है।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2023 के SCO शिखर सम्मेलन में भारत की विकासात्मक प्राथमिकताओं के अनुरूप डिजिटल इन्क्लूज़न और युवा सशक्तीकरण पर चर्चा शामिल थी।
- हाल ही में हुए शिखर सम्मेलन में, भारतीय प्रधानमंत्री ने भारत के 'सुधार, प्रदर्शन, परिवर्तन' के मंत्र को रेखांकित किया तथा सदस्य देशों को भारत के विकास में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया।
- साथ ही, SCO ने क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिये एक विकास बैंक स्थापित करने का निर्णय लिया है।
- सांस्कृतिक कूटनीति के माध्यम से लोगों के बीच संबंधों को बढ़ाना: SCO के भीतर भारत की सॉफ्ट पावर, विशेष रूप से सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से, लोगों के बीच संबंधों को मज़बूत करने पर केंद्रित है।
- SCO के अंतर्गत प्रस्तावित सभ्यतागत संवाद मंच का उद्देश्य सांस्कृतिक समझ को गहरा करना और यूरेशिया में घनिष्ठ संबंधों को बढ़ावा देना है।
- साझा बौद्ध विरासत पर ज़ोर देकर और युवा सशक्तीकरण कार्यक्रमों को बढ़ावा देकर, भारत स्वयं को इस क्षेत्र की विविध संस्कृतियों के बीच एक सेतु के रूप में भूमिका निभाता है।
- वर्ष 2023 में साझा बौद्ध विरासत पर SCO अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की भारत द्वारा सफल मेज़बानी इसकी सॉफ्ट पावर रणनीति को उजागर करती है।
- ये पहल SCO के भीतर एक सांस्कृतिक और शैक्षणिक केंद्र के रूप में भारत के बढ़ते प्रभाव को रेखांकित करती हैं, जिससे आपसी विश्वास एवं सहयोग को बढ़ावा मिलता है।
- बहुपक्षवाद और वैश्विक शासन पर प्रभाव: SCO में भारत की सक्रिय भूमिका उसे वैश्विक शासन संस्थानों, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र में सुधारों अनुशंसा करने के लिये एक मंच प्रदान करती है।
- भारत ने SCO फ्रेमवर्क के भीतर एक समावेशी, बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का लगातार आह्वान किया है, तथा ग्लोबल साउथ की आकांक्षाओं को अभिव्यक्त करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में सुधार की अनुशंसा की है।
- इसी क्रम में, तियानजिन घोषणा-पत्र का भारत द्वारा समर्थन यह दर्शाता है कि भारत एक ऐसे संयुक्त राष्ट्र (UN) सुधार का पक्षधर है जो समकालीन वैश्विक चुनौतियों का समाधान कर सके।
- साथ ही, शंघाई सहयोग संगठन द्वारा तियानजिन घोषणापत्र में भारत के सभ्यतागत संदेश “One Earth, One Family, One Future (एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य)” को अंगीकृत किया गया, जिससे इसकी भविष्य की प्राथमिकताओं की दिशा तय हुई।
SCO के साथ अपनी भागीदारी में भारत के समक्ष कौन-सी प्रमुख चुनौतियाँ हैं?
- SCO के भीतर आतंकवाद विरोधी दृष्टिकोणों में भिन्नता: सदस्य देशों, विशेष रूप से चीन और पाकिस्तान के बीच भिन्न विचारों के कारण, भारत को SCO के आतंकवाद विरोधी रुख को एकरूप करने में एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
- जहाँ भारत राज्य-प्रायोजित आतंकवाद का मुकाबला करने के लिये एक एकीकृत दृष्टिकोण की पुरज़ोर अनुशंसा करता है, वहीं कुछ सदस्य देश, विशेष रूप से चीन, पाकिस्तान की गतिविधियों का बचाव करते रहते हैं।
- यह मतभेद आतंकवाद के विरुद्ध प्रभावी क्षेत्रीय सहयोग में बाधा डालता है। उदाहरण के लिये, भारत द्वारा सामूहिक कार्रवाई के लिये दबाव डालने के बावजूद, पाकिस्तान-आधारित आतंकवादी समूह स्वतंत्र रूप से सक्रिय रहते हैं, जिससे SCO के आतंकवाद विरोधी प्रयास विफल हो जाते हैं।
- SCO के बार-बार प्रस्तावों के बावजूद आतंकवादी पनाहगाहों पर निरंतर निष्क्रियता में यह भिन्नता स्पष्ट है।
- सीमित संपर्क और सीमा तनाव: SCO के भीतर बेहतर संपर्क स्थापित करने की चीन और पाकिस्तान दोनों के साथ अनसुलझे सीमा मुद्दों के कारण भारत के प्रयास जटिल हैं, जिससे सीमा पार परियोजनाओं में बाधा आ रही है।
- चीन की वृहत बेल्ट एंड रोड पहल (BRI), जिसका एक हिस्सा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) भी है, भारत की संप्रभुता का सीधा उल्लंघन करती है तथा नई दिल्ली लगातार इस पहल पर आपत्ति जताती रही है। यही भारत-चीन संबंधों में एक प्रमुख तनाव का कारण बनता है।
- उल्लेखनीय है कि अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) जैसी परियोजनाओं के लिये भारत के प्रयासों के बावजूद, ये भू-राजनीतिक मतभेदों के कारण रुकी हुई हैं।
- यह भारत के अपनी संप्रभुता से समझौता किये बिना क्षेत्रीय संपर्क सुनिश्चित करने के संघर्ष को रेखांकित करता है।
- अफगानिस्तान पर बहुपक्षीय सहयोग में चुनौतियाँ: अफगानिस्तान में, विशेष रूप से तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद से, बदलते हालात SCO के भीतर भारत के लिये एक बड़ी चुनौती पेश करते हैं।
- ‘अफगान-नेतृत्व वाली, अफगान-स्वामित्व वाली और अफगान-नियंत्रित’ शांति प्रक्रिया की भारत की अनुशंसा के बावजूद, अफगानिस्तान के भविष्य पर SCO में आम सहमति का अभाव सामूहिक कार्रवाई को कमज़ोर करता है।
- इसके अलावा, अफगानिस्तान के कारण उत्पन्न मानवीय संकट और आतंकवाद संबंधी गतिविधियों से निपटने में SCO की असमर्थता संगठन के भीतर तनाव का एक स्रोत है।
- SCO चर्चाओं में अफगानिस्तान के मुद्दों को केंद्र में रखने के भारत के प्रयास सदस्य देशों के बीच प्राथमिकताओं में भिन्नता के कारण सीमित रहे हैं।
- SCO के आर्थिक एजेंडे पर सीमित प्रभाव: चीन के साथ प्रतिस्पर्द्धा के कारण, जो समूह की आर्थिक पहलों पर हावी है, SCO के आर्थिक कार्यढाँचे के भीतर भारत का प्रभाव सीमित बना हुआ है।
- भारत के बढ़ते वैश्विक व्यापार प्रोफाइल के बावजूद, मध्य एशिया के साथ उसका जुड़ाव सीमित बना हुआ है।
- वर्ष 2021 तक, मध्य एशिया के साथ भारत का व्यापार भारत के कुल व्यापार का 0.5% से भी कम है, जो लगभग 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, जबकि चीन का इस क्षेत्र के साथ व्यापार लगभग 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
- भारत के बढ़ते वैश्विक व्यापार प्रोफाइल के बावजूद, मध्य एशिया के साथ उसका जुड़ाव सीमित बना हुआ है।
- चीन और रूस के साथ संबंधों को संतुलित करने में तनाव: SCO के भीतर चीन और रूस के बीच भारत का कूटनीतिक संतुलन एक चुनौती है, विशेषकर जब दोनों शक्तियाँ कुछ क्षेत्रीय मुद्दों पर तेज़ी से एकमत हो रही हैं।
- हालाँकि रूस भारत के लिये एक रणनीतिक साझेदार बना हुआ है, लेकिन चीन के साथ उसका बढ़ता मेल-मिलाप भारत की स्थिति को जटिल बनाता है।
- उदाहरण के लिये, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के लिये रूस का समर्थन और बीजिंग के साथ घनिष्ठ संबंधों को बढ़ावा देने में उसकी भूमिका, भारत के लिये SCO में अपनी प्राथमिकताओं को स्थापित करना मुश्किल बना देती है।
- SCO के भीतर यह बढ़ती चीन-रूस धुरी इस मंच पर भारत के प्रभाव को सीमित करती है।
- पूर्व और पश्चिम के बीच सामरिक स्वायत्तता का संतुलन: भारत के लिये एक प्रमुख चुनौती SCO द्वारा समर्थित बहुध्रुवीय विश्व के प्रति अपनी प्रतिबद्धता तथा पश्चिमी देशों के साथ अपनी गहरी होती रणनीतिक साझेदारी के बीच सामंजस्य बिठाना है।
- क्वाड जैसे पश्चिमी नेतृत्व वाले समूहों में भारत की भागीदारी और अमेरिका व फ्राँस के साथ उसका बढ़ता रक्षा सहयोग प्रायः उसे SCO की पश्चिम-विरोधी बयानबाजी के साथ मतभेद में डाल देता है।
- अमेरिकी प्रशासन द्वारा हाल ही में भारतीय निर्यात पर भारी शुल्क लगाने तथा इसके परिणामस्वरूप भारत-अमेरिका संबंधों पर तनाव ने इस संतुलनकारी कार्य को और भी अनिश्चित बना दिया है, जिससे भारत SCO जैसे मंचों के भीतर घनिष्ठ संबंधों की तलाश कर रहा है।
भारत अपने सामरिक हितों को आगे बढ़ाने के लिये SCO के साथ अपने संबंधों को किस प्रकार गहरा कर सकता है?
- पारस्परिक जवाबदेही के साथ आतंकवाद विरोधी संरचना को बढ़ावा देना: भारत को ‘ज़ीरो टॉलरेंस एंड नो डबल स्टैंडर्ड्स’ के सिद्धांत पर आधारित एक मज़बूत, समन्वित और आँकड़ों पर आधारित आतंकवाद विरोधी संरचना के निर्माण का नेतृत्व करना चाहिये तथा चरमपंथ के लिये सीमा-पार समर्थन की पुष्टि, जाँच व प्रतिबंध लगाने हेतु संस्थागत तंत्रों पर ज़ोर देना चाहिये।
- यह उपाय SCO मानदंडों को आकार देने में भारत के नेतृत्व को बढ़ाएगा तथा आतंकवाद से निपटने में साझा ज़िम्मेदारी सुनिश्चित करेगा, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा संरचना विश्वसनीय व अनुकूल बनेगी।
- एक सभ्यतागत संवाद मंच की स्थापना: अपनी G20 अध्यक्षता और ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ के सिद्धांत के आधार पर, भारत को SCO के भीतर एक ‘सभ्यतागत संवाद मंच’ (जैसा कि हालिया शिखर सम्मेलन में प्रस्तावित है) के निर्माण का नेतृत्व करना चाहिये।
- यह मंच सांस्कृतिक और लोगों के बीच आदान-प्रदान को संस्थागत रूप देगा, साझा विरासत को बढ़ावा देगा तथा आपसी समझ को बढ़ावा देगा।
- यह भारत की सॉफ्ट पावर को प्रदर्शित करने, SCO के सुरक्षा-केंद्रित आख्यान को संतुलित करने और राजनीतिक मतभेदों से परे स्थाई संबंध बनाने हेतु एक शक्तिशाली कूटनीतिक उपागम के रूप में कार्य करेगा।
- SCO स्टार्ट-अप और इनोवेशन कॉरिडोर की स्थापना: अपनी आर्थिक गतिशीलता और एक तकनीकी महाशक्ति के रूप में अपनी स्थिति का लाभ उठाने के लिये, भारत को ‘SCO स्टार्ट-अप और इनोवेशन कॉरिडोर’ का समर्थन करना चाहिये।
- इस उपाय में संयुक्त उद्यमों को समर्थन देने के लिये एक समर्पित निधि का निर्माण, इनक्यूबेटरों को बढ़ावा देना और सदस्य देशों में वार्षिक तकनीकी शिखर सम्मेलनों का आयोजन शामिल होगा।
- इस तरह की पहल SCO के आर्थिक एजेंडे को पारंपरिक ऊर्जा और व्यापार से परे विविधता प्रदान करेगी, भारत को आधुनिक, ज्ञान-आधारित आर्थिक एकीकरण के एक प्रमुख चालक के रूप में स्थापित करेगी तथा युवा सशक्तीकरण व सहयोग के नए अवसरों के द्वार खोलेगी।
- SCO के भीतर रणनीतिक साझेदारियों में विविधता लाना: केवल रूस और चीन के साथ प्रमुख शक्ति गतिशीलता पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, भारत को SCO के भीतर अपनी रणनीतिक साझेदारियों में विविधता लाने की रणनीति अपनानी चाहिये।
- इसमें मध्य एशियाई गणराज्यों और ईरान के साथ घनिष्ठ सुरक्षा तथा आर्थिक संबंध बनाना शामिल है।
- ऊर्जा सुरक्षा, मादक पदार्थों की रोकथाम और क्षेत्रीय स्थिरता जैसे साझा हितों के मुद्दों पर द्विपक्षीय व लघु-पक्षीय ढाँचों में शामिल होकर, भारत एक व्यापक समर्थन गठबंधन बना सकता है जो उसके कूटनीतिक प्रभाव को बढ़ाएगा तथा यह सुनिश्चित करेगा कि उसकी चिंताओं को नज़रअंदाज़ न किया जाए।
- संप्रभुता-केंद्रित संपर्कता को बढ़ावा: भारत SCO के भीतर क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने और पारदर्शिता को बढ़ावा देने वाली संपर्कता पर वार्ता को आगे बढ़ाकर अपने रणनीतिक हितों को आगे बढ़ा सकता है।
- भारत को INSTC जैसी परियोजनाओं को शीघ्र पूरा करने को प्राथमिकता देनी चाहिये, ताकि यह सभी सदस्य देशों के लिये समावेशी और लाभकारी बन सके।
- क्षेत्रीय संपर्कता में भारत का नेतृत्व, बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं में उसकी सक्रिय भागीदारी के साथ, SCO सदस्यों के बीच विश्वास और आर्थिक परस्पर निर्भरता को बढ़ावा देगा।
- साझा सभ्यतागत संबंधों पर आधारित संपर्कता को बढ़ावा देने और राष्ट्रीय संप्रभुता का सम्मान करने से भारत क्षेत्रीय सहयोग को आगे बढ़ाते हुए अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रख सकेगा।
- चरमपंथ-विरोधी पहल का क्रियान्वयन: आतंकवाद विरोधी प्रयासों के साथ-साथ, भारत को SCO के क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (RATS) के भीतर एक समर्पित क्रियाशील कार्यढाँचे का प्रस्ताव करना चाहिये ताकि कट्टरपंथ और चरमपंथी विचारधाराओं का विशेष रूप से मुकाबला किया जा सके।
- इसमें चरमपंथ-विरोधी कार्य समूह का गठन शामिल होगा, जो सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने, उभरते खतरों पर संयुक्त अनुसंधान करने और एक एकीकृत डिजिटल सूचना युद्ध रणनीति बनाने पर केंद्रित होगा।
- यह सक्रिय दृष्टिकोण आतंकवाद के मूल कारणों का प्रत्यक्ष समाधान करेगा और सदस्य देशों को सुरक्षा सहयोग के उच्चतर मानकों के प्रति जवाबदेह बनाएगा।
- पर्यावरणीय स्थिरता पर SCO की एकीकृत अभिव्यक्ति को बढ़ावा देना: भारत पर्यावरणीय संधारणीयता को सुनिश्चित करने के लिये SCO के भीतर दृढ़ प्रतिबद्धताओं पर ज़ोर देकर जलवायु-परिवर्तन पर क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा दे सकता है।
- जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न साझा चुनौतियों को देखते हुए, भारत को संयुक्त अनुसंधान, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और हरित प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण के माध्यम से इसके प्रभावों को कम करने के लिये SCO-व्यापी पहलों का समर्थन करना चाहिये।
- नवीकरणीय ऊर्जा में भारत की विशेषज्ञता का उपयोग इस क्षेत्र के ऊर्जा परिवर्तन के लिये समाधान प्रदान करने हेतु किया जा सकता है, विशेष रूप से मध्य एशिया के लिये, जो जीवाश्म ईंधन पर अत्यधिक निर्भर है।
- जलवायु कूटनीति में अग्रणी के रूप में अपनी स्थिति स्थापित करके, भारत SCO के भीतर अपना प्रभाव बढ़ा सकता है तथा साथ ही पर्यावरणीय संकटों के वैश्विक समाधान में योगदान दे सकता है।
निष्कर्ष:
SCO के साथ भारत की भागीदारी अवसर और जटिलता, दोनों को दर्शाती है, जो भू-राजनीतिक मतभेदों से निपटते हुए क्षेत्रीय सुरक्षा, संपर्क और सतत् विकास को आकार देने के अवसर प्रदान करती है। संप्रभुता-केंद्रित, समावेशी एजेंडे को आगे बढ़ाकर, भारत स्वयं को एक ज़िम्मेदार हितधारक तथा पूर्व और पश्चिम के बीच सेतु के रूप में स्थापित करता है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न. शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में भारत की भागीदारी क्षेत्रीय जुड़ाव के अवसरों और भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण उत्पन्न बाधाओं, दोनों को दर्शाती है। SCO फ्रेमवर्क में भारत के समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिये तथा अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने के लिये इस मंच का लाभ उठाने हेतु रणनीतियाँ प्रस्तावित कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
मेन्स
प्रश्न 1. एस० सी० ओ० के लक्ष्यों और उद्देश्यों का विश्लेषणात्मक परीक्षण कीजिये। भारत के लिये इसका क्या महत्त्व है? (2021)