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डेली न्यूज़

  • 26 Nov, 2020
  • 50 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

विलवणीकरण संयंत्र

प्रिलिम्स के लिये

विलवणीकरण प्रक्रिया

मेन्स के लिये

विलवणीकरण के लाभ एवं प्रभाव

चर्चा में क्यों

हाल ही में महाराष्ट्र ने मुंबई में एक विलवणीकरण संयंत्र (Desalination Plants) स्थापित करने की घोषणा की है।

प्रमुख बिंदु

  • विलवणीकरण संयंत्र प्रतिदिन 200 मिलियन लीटर पानी (MLD) को संसाधित करेगा और मई और जून के महीनों में मुंबई में होने वाली पानी की कमी को दूर करने में मदद करेगा।
  • विलवणीकरण संयंत्र के साथ प्रयोग करने वाला महाराष्ट्र चौथा राज्य होगा।

विलवणीकरण संयंत्र:

Reverse-Osmosis

  • विलवणीकरण संयंत्र खारे पानी को पीने योग्य पानी में परिवर्तित कर देता है।
    • पानी को लवणमुक्त करने की प्रक्रिया विलवणीकरण कहलाती है जो विभिन्न मानव उपयोगों की गुणवत्ता (लवणता) की आवश्यकताओं को पूरा करने वाले पानी का उत्पादन करता है। 
  • इस प्रक्रिया में सबसे अधिक उपयोग रिवर्स ऑस्मोसिस (Reverse Osmosis-RO) तकनीक का किया जाता है।
    • अर्द्ध-पारगम्य झिल्ली के माध्यम से उच्च-विलेय सांद्रता के क्षेत्र से कम-विलेय सांद्रता वाले क्षेत्र में परिवर्तित करने के लिये बाह्य दाब लगाया जाता है।
    • झिल्ली में मौजूद सूक्ष्म छिद्र जल के अणुओं को अंदर जाने की अनुमति देते हैं, लेकिन दूसरी तरफ से साफ जल छोड़ते हुए नमक और अधिकांश अन्य अशुद्धियों को पीछे छोड़ देते हैं।
  • ये संयंत्र अधिकतर उन क्षेत्रों में स्थापित किये जाते हैं जिनकी पहुँच समुद्र के पानी तक है।

विलवणीकरण संयंत्रों का लाभ:

  • यह जलविद्युत चक्र से उपलब्ध जल आपूर्ति का विस्तार कर सकता है, जो ‘असीमित’ जलवायु-स्वतंत्र और उच्च गुणवत्ता वाले पानी की स्थिर आपूर्ति प्रदान करता है।
  • यह उन क्षेत्रों में पीने का पानी उपलब्ध करा सकता है जहाँ पीने योग्य पानी की कोई प्राकृतिक आपूर्ति नहीं है।
  • चूँकि यह आमतौर पर जल गुणवत्ता के सभी मानकों को पूरा करता है या इसकी गुणवत्ता निर्धारित मानकों से अधिक होती है इसलिये विलवणीकरण संयंत्र अतिशोषित जल संसाधन वाले क्षेत्रों से प्राप्त किये जाने वाले मृदु जल की आपूर्ति पर पड़ने वाले दबाव को कम भी कर सकते हैं, जिनका संरक्षण आवश्यक है।

विलवणीकरण संयंत्रों का नुकसान:

  • विलवणीकरण संयंत्रों के निर्माण और संचालन पर काफी अधिक खर्च आता है क्योंकि संयंत्रों से समुद्री पानी को स्वच्छ बनाने की प्रक्रिया में ऊर्जा की अधिक खपत होती है।
    • विलवणीकरण में पानी के उत्पादन की कुल लागत का एक-तिहाई ऊर्जा खर्च होती है।
    • क्योंकि ऊर्जा कुल लागत का एक बड़ा हिस्सा है इसलिये ऊर्जा की कीमत में बदलाव से लागत भी बहुत प्रभावित होती है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव जल विलवणीकरण संयंत्रों के लिये एक और नुकसान है। पानी से हटाए गए नमक का निपटान एक प्रमुख मुद्दा है।
    • खारे पानी के रूप में जाना जाने वाला यह निर्वहन लवणता में परिवर्तन कर सकता है और निपटान स्थल पर पानी में ऑक्सीजन (हाइपोक्सिया) की मात्रा को कम कर सकता है।
    • इसके अलावा अलवणीकरण प्रक्रिया क्लोरीन, कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोक्लोरिक एसिड और एंटी-स्केलेंट्स सहित कई रसायनों का उपयोग या उत्पादन करती है जो उच्च सांद्रता में हानिकारक हो सकते हैं।
  • अवसर: पर्यावरणीय समस्या को आर्थिक अवसर में परिवर्तित किया जा सकता है:
    • खारे पानी में यूरेनियम, स्ट्रोंटियम के साथ-साथ सोडियम और मैग्नीशियम जैसे बहुमूल्य तत्त्व भी हो सकते हैं जिनका खनन किया जा सकता है।
    • मछली के बायोमास में 300% वृद्धि के साथ खारे पानी का उपयोग मत्स्य पालन (Aquaculture) के लिये किया गया है। इसका उपयोग आहार अनुपूरक स्पिरुलिना की खेती करने, झाड़ियों और फसलों की सिंचाई के लिये सफलतापूर्वक किया गया है।

भारत में विलवणीकरण संयंत्रों का उपयोग:

  • यह काफी हद तक मध्य पूर्व के देशों तक सीमित है और हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों में इसका उपयोग किया जाने लगा है।
  • भारत में तमिलनाडु इस तकनीक का उपयोग करने में अग्रणी रहा है, वर्ष 2010 में चेन्नई के मिंजूर और वर्ष 2013 में दक्षिण चेन्नई के निम्मेली में समुद्र किनारे दो विलवणीकरण संयंत्र लगाए गए।
  • गुजरात और आंध्र प्रदेश राज्य ने इन संयंत्रों का प्रस्ताव दिया है।

आगे की राह

  • विलवणीकरण तकनीकों को और अधिक किफायती बनाने की आवश्यकता है, अर्थात् सतत् विकास लक्ष्य-6 (सभी के लिये स्वच्छता और पानी के सतत् प्रबंधन की उपलब्धता सुनिश्चित करना) को संबोधित करने के लिये विलवणीकरण की व्यवहार्यता में वृद्धि करना।
  • विलवणीकरण योजनाओं की स्थिरता का समर्थन करने के लिये नवीन वित्तीय तंत्रों के साथ कम पर्यावरणीय प्रभावों और आर्थिक लागतों के लिये तकनीकी शोधन की आवश्यकता होगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

‘चांग ई-5’ मिशन: चीन

प्रिलिम्स के लिये

‘चांग ई-5’ मिशन, आर्टेमिस मिशन, चंद्रयान-3

मेन्स के लिये

अंतरिक्ष के क्षेत्र में चीन के विभिन्न मिशन

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में, चीन ने चंद्रमा की सतह से चट्टानों और मलबों के नमूने लाने के लिये रोबोटिक स्पेसक्राफ्ट ‘चांग ई-5’(Chang'e-5) को लॉन्च किया है। यह चीनी अंतरिक्ष यान करीब 4 दशक के बाद पहली बार चंद्रमा की सतह से नमूने लेकर वापस पृथ्वी पर आएगा। 

प्रमुख बिंदु

  • ऐसा आखिरी मिशन वर्ष 1976 में सोवियत संघ का लूना-24 था।

चांग ई-5

  • चीन ने दक्षिणी हैनान प्रांत (Hainan province) स्थित वेनचांग अंतरिक्ष यान प्रक्षेपण स्थल (Wenchang Space Launch Center) से स्पेसक्राफ्ट ‘चांग ई-5’ (Chang'e-5) को ‘लांग मार्च-5 रॉकेट’ (Long March- 5 rocket) की सहायता से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया है।
  • ‘चांग ई-5’ मिशन सफल होने पर चीन चंद्रमा से नमूने लाने वाला दुनिया का तीसरा देश बन जाएगा। इससे पहले अमेरिका और सोवियत संघ चंद्रमा से नमूने लाने के लिये अंतरिक्ष यात्री भेज चुके हैं।
  • ‘चांग ई-5’ मिशन के माध्यम से चंद्रमा की उत्पत्ति एवं निर्माण के बारे में समझने में और अधिक मदद मिलेगी।

चीन के चंद्र मिशन:

  • वर्ष 2013 में, चीन ने पहली बार अपना मिशन चंद्रमा की धरती पर उतारा।
  • जनवरी 2019 में, ‘चांग ई-4’ मिशन चंद्रमा की दूसरी ओर की सतह (डार्क साइड) पर लैंड कराने के लिये भेजा गया ताकि चंद्रमा के अज्ञात क्षेत्रों का भी पता लगाया जा सके ।
  • ‘चांग-ई’ चीन के राष्ट्रीय अंतरिक्ष प्रशासन द्वारा शुरू की गई चंद्र जाँच की एक श्रृंखला है।

चीन के अन्य अंतरिक्ष योजनाएँ:

  • वर्ष 2022 तक चीन स्थायी मानवयुक्त अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण करने वाला है।
  • आगामी दशक में चीन चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र में मानव रहित अन्वेषण करने के लिए एक रोबोट बेस स्टेशन स्थापित करने की योजना बनाई है।
    • इसे चांग ई-6, 7 और 8 मिशनों के माध्यम से विकसित किया जाना है।

चंद्रमा के लिये अन्य महत्त्वपूर्ण मिशन:

  • इसरो का चंद्रयान-3 मिशन।
  • नासा (Artemis Mission by National Aeronautics and Space Administration ) का आर्टेमिस मिशन (Artemis Mission)

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा

प्रिलिम्स के लिये 

राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम, दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा

मेन्स के लिये 

आर्थिक विकास में औद्योगिक गलियारों की भूमिका 

चर्चा में क्यों?

राजस्थान सरकार ने राज्य में विकास और रोज़गार के अवसरों को बढ़ावा देने के लिये दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारे (DMIC) के साथ दो विशेष क्षेत्रों को विकसित करने की योजना बनाई है। 

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि
    • भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम के हिस्से के रूप में अलग-अलग औद्योगिक गलियारे परियोजनाओं को विकसित किया जा रहा है।
    • सरकार के इस कार्यक्रम का उद्देश्य भारत में ऐसे औद्योगिक शहरों का विकास करना है, जो कि भविष्य में विश्व के सबसे अच्छे विनिर्माण और निवेश स्थलों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम होंगे, और ये देश की प्रगति में महत्त्वपूर्ण योगदान देंगे।
      • इन औद्योगिक गलियारों से रोज़गार के अवसरों और आर्थिक विकास में बढ़ोतरी होगी, जिससे अंततः भारत के समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास को बल मिलेगा।
    • इस कार्यक्रम के लिये कुल स्वीकृत राशि तकरीबन 20,084 करोड़ रुपए है। कार्यक्रम के तहत 11 औद्योगिक गलियारा परियोजनाओं को शुरू किया गया है, और इस कार्यक्रम के तहत वर्ष 2024-25 तक चार चरणों में कुल 30 परियोजनाओं को विकसित किया जाएगा।
    • विकास और कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में मौजूद सभी औद्योगिक गलियारों के समन्वित और एकीकृत विकास के लिये राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास और कार्यान्वयन ट्रस्ट (NICDIT) उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य कर रहा है।
  • दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा (DMIC)
    • दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा (DMIC) भारत सरकार द्वारा घोषित पहली औद्योगिक गलियारा विकास परियोजना है।
    • इस विकास परियोजना की कार्यान्वयन एजेंसी, दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा विकास निगम (DMICDC), को वर्ष 2008 में निगमित किया गया था।
      • हालाँकि वर्ष 2016 में भारत भर के अन्य औद्योगिक गलियारों को भी DMICDC के दायरे में शामिल कर दिया गया और DMICDC का नाम बदलकर राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास और कार्यान्वयन ट्रस्ट (NICDIT) कर दिया गया।
    • इस परियोजना का उद्देश्य तीव्र गति और कनेक्टिविटी का लाभ उठाते हुए स्मार्ट और सतत् औद्योगिक शहरों का निर्माण करना है, ताकि लॉजिस्टिक लागत को कम किया जा सके।
      • ये सभी औद्योगिक शहर उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र राज्यों जैसे राज्यों में होंगे।
    • यह पहली बार है जब भारत ने प्रमुख आर्थिक चालक के रूप में विनिर्माण के साथ नियोजित शहरीकरण की प्रक्रिया को अपनाया है।
      • दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारे (DMIC) का लक्ष्य स्थानीय वाणिज्य और विदेशी निवेश को बढ़ाने तथा सतत् विकास प्राप्त करने के लिये विश्व-स्तरीय प्रतिस्पर्द्धी औद्योगिक वातावरण और अत्याधुनिक बुनियादी ढाँचे के साथ एक मज़बूत आर्थिक आधार तैयार करना है।

क्या होता है औद्योगिक गलियारा?

  • एक अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्र एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं और औद्योगिक गलियारे, इस परस्पर-निर्भरता को पहचानते हुए उद्योग और बुनियादी ढाँचे के बीच प्रभावी एकीकरण प्रदान करते हैं, जिससे समग्र आर्थिक और सामाजिक विकास होता है।
  • औद्योगिक गलियारा मूल रूप से मल्टी-मॉडल परिवहन सेवाओं से युक्त गलियारा होता है, जो कि विभिन्न राज्यों से गुजरते हुए दो विशिष्ट स्थानों को जोड़ता है।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

राष्ट्रीय पोषण मिशन पर रिपोर्ट: नीति आयोग

प्रिलिम्स के लिये

राष्ट्रीय पोषण मिशन

मेन्स के लिये

राष्ट्रीय पोषण मिशन पर रिपोर्ट से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों 

हाल ही में नीति आयोग ने "भारत में पोषण पर त्वरित प्रगति: राष्ट्रीयता मिशन या पोषण अभियान" पर तीसरी प्रगति रिपोर्ट जारी की है।

प्रमुख बिंदु

राष्ट्रीय पोषण मिशन:

  • वर्ष 2018 में शुरू किया गया यह मिशन बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिये पोषण संबंधी परिणामों में सुधार करने के हेतु भारत सरकार का प्रमुख कार्यक्रम है।
    • राष्ट्रीय पोषण मिशन (National Nutrition Mission) नीति आयोग द्वारा तैयार की गई राष्ट्रीय पोषण रणनीति (National Nutrition Strategy) द्वारा समर्थित है। इस रणनीति का उद्देश्य वर्ष 2022 तक भारत को कुपोषण से मुक्त करना है।

लक्ष्य

  • इसका उद्देश्य स्टंटिंग, अल्पपोषण, एनीमिया (छोटे बच्चों, महिलाओं और किशोर लड़कियों के बीच) और जन्म के समय कम वजन को क्रमशः 2%, 2%, 3% और 2% प्रतिवर्ष कम करना है।
  • मिशन-मोड में कुपोषण की समस्या का समाधान करना है।
  • कुल लागत का 50% विश्व बैंक या अन्य बहुपक्षीय विकास बैंकों द्वारा दिया जा रहा है जबकि शेष 50% केंद्रीय बजटीय समर्थन के माध्यम से दिया जा रहा है।
  • बजटीय समर्थन को निम्न भागों में विभाजित किया गया है:
    • पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के लिये 90:10 जिसमें 90 प्रतिशत केंद्र द्वारा दिया जाएगा 10 प्रतिशत राज्यों द्वारा। 
    • बिना विधायिका के केंद्रशासित प्रदेशों की स्थिति में 100 प्रतिशत केंद्र द्वारा दिया जाएगा।
    • अन्य राज्यों की स्थिति में 60:40 जिसमें 60 प्रतिशत केंद्र द्वारा दिया जाएगा और 40 प्रतिशत राज्यों द्वारा।

प्रसार

  • 5 वर्ष से कम आयु वर्ग के एक तिहाई से अधिक बच्चे स्टंटिंग और वेस्टिंग की समस्या का सामना कर रहें हैं तथा 1 से 4 वर्ष के आयु वर्ग के 40% बच्चे एनीमिक हैं।
  • वर्ष 2016 में जारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के अनुसार, 50% से अधिक गर्भवती और गैर-गर्भवती महिलाओं में एनीमिया पाया गया है।

रिपोर्ट के संबंध में:

  • तीसरी प्रगति रिपोर्ट (अक्तूबर 2019-अप्रैल 2020) बड़े पैमाने पर डेटासेट के माध्यम से विभिन्न स्तरों पर ज़मीनी कार्यान्वयन की चुनौतियों पर रोल-आउट की स्थिति का जायजा लेती है।
    • ये डेटासेट NFHS-4 और व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (CNNS) हैं।
  • मार्च 2020 में समीक्षा रिपोर्ट का मसौदा तैयार किया गया था तब गरीबी और भुखमरी के स्तरीय कारक मौजूद नहीं थे जितना कोविड-19 के कारण और नीचे जाने की उम्मीद है।

चिंताएँ:

  • स्टंटिंग पर विश्व स्वास्थ्य सभा (WHA) द्वारा परिभाषित वैश्विक लक्ष्य की तुलना में भारत के लक्ष्य रूढ़िवादी हैं, जो कि स्टंटिंग के स्तर को वर्ष 2022 तक घटाकर 13.3% करने के भारत के लक्ष्य के विपरीत 5% स्टंटिंग की व्यापकता दर है।
  • गर्भवती महिलाओं में एनीमिया के प्रसार स्तर को कम करने का लक्ष्य वर्ष 2016 में 50.3% और वर्ष 2022 में 34.4% तथा किशोर लड़कियों में वर्ष 2016 में 52.9% से 39.66% तक कम करने का लक्ष्य है, क्योंकि प्रचलन के स्तर को कम करने के WHA के लक्ष्य की तुलना में यह रूढ़िवादी भी माना जाता है।
  • महामारी के मद्देनज़र विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि गरीबी और भूखमरी को प्रगाढ़ करना मिशन के तहत परिभाषित लक्ष्यों को प्राप्त करने में देरी हो सकती है।

सुझाव

  • स्टंटिंग पर:
    • एकीकृत बाल विकास योजना (ICDS) में व्यवहार परिवर्तन और पूरक भोजन की खुराक दोनों का उपयोग करके पूरक आहार में सुधार करना।
    • अन्य सामाजिक निर्धारकों के साथ लड़कियों और महिलाओं में निवेश की दिशा में काम करना (बचपन में शिक्षा, जल्दी शादी और गर्भावस्था को कम करना, गर्भावस्था के दौरान और बाद में देखभाल में सुधार करना)।
    • जल की गुणवत्ता में सुधार करने के लिये  स्वच्छता, साबुन से हाथ धोना और अन्य प्रभावी हस्तक्षेप के साथ बच्चों के मल का स्वच्छ निपटान करना।
  • वेस्टिंग पर:
    • गंभीर और तीव्र कुपोषण (Severe Acute Malnutrition- SAM) के उपचार से परे होने वाले ऐसे हस्तक्षेपों को शामिल करना और मध्यम वेस्टिंग को भी संबोधित करना जो वेस्टिंग में बड़ी गिरावट को प्राप्त करने की क्षमता रखते हैं।
    • उन सभी को रोगी की देखभाल में SAM की सुविधा आधारित उपचार तक पहुँच को बढ़ाना।
    • राष्ट्रीय स्तर पर वेस्टिंग की रोकथाम और एकीकृत प्रबंधन के लिये तत्काल एक पूरी रणनीति जारी करना।
  • एनीमिया पर:
    • ऐसा परिदृश्य जो केवल स्वास्थ्य क्षेत्र के हस्तक्षेपों पर ध्यान केंद्रित करता है जो प्रजनन आयु की महिलाओं में एनीमिया में मामूली सुधार प्राप्त करेगा।

आगे की राह

  • चूँकि राष्ट्रीय पोषण मिशन भारत में कुपोषण के खिलाफ एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, इसलिये भारत को अब कई मोर्चों पर कार्रवाई में तेज़ी लाने की आवश्यकता है। अनुमान आशावादी हैं और स्वास्थ्य और पोषण सेवाओं के लिये कोविड-19 अवरोधों के लिये फिर से समायोजित करने की आवश्यकता होगी।

स्रोत- द हिंदू


भूगोल

चक्रवात निवार

प्रिलिम्स के लिये

चक्रवात निवार

मेन्स के लिये

उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति एवं नामकरण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उष्णकटिबंधीय चक्रवात निवार (Nivar) ने तमिलनाडु-पुडुचेरी तट के साथ ‘लैंडफॉल’ (LandFall) बनाया है।

  • ‘लैंडफॉल’ (LandFall) से तात्पर्य एक चक्रवात की बाहरी दीवार के तटरेखा एवं उससे आगे बढ़ने की घटना से है।

प्रमुख बिंदु: 

उष्णकटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclone):  

  • उष्णकटिबंधीय चक्रवात एक तीव्र गोलाकार तूफान है जो गर्म उष्णकटिबंधीय महासागरों में उत्पन्न होता है और कम वायुमंडलीय दबाव, तेज़ हवाएँ और भारी बारिश की इसकी विशेषताएँ है।
  • उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की एक विशेषता चक्रवात की आँख (Eye), स्पष्ट स्कीइस (Skies),  गर्म तापमान और कम वायुमंडलीय दबाव का एक केंद्रीय क्षेत्र है।
    • स्कीइस (Skies) पृथ्वी से देखा गया वायुमंडल और बाहरी अंतरिक्ष का क्षेत्र होता है।
  • इस प्रकार के तूफान को उत्तरी अटलांटिक और पूर्वी प्रशांत में हरिकेन और दक्षिण पूर्व एशिया और चीन में टाइफून कहा जाता है। इन्हें दक्षिण-पश्चिम प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्र में उष्णकटिबंधीय चक्रवात और उत्तर-पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में विली-विली कहा जाता है।
  • ये तूफान उत्तरी गोलार्द्ध में वामावर्त (Anticlockwise) और दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणावर्त (Clockwise) चक्कर लगाते हैं।

चक्रवात निवार:

  • यह उत्तर हिंद महासागर क्षेत्र में उत्पन्न होने वाला इस वर्ष का चौथा चक्रवात है। इससे पहले आए तीन चक्रवात थे: 
  • वर्ष 2018 में आए चक्रवात गाजा (Gaja) के बाद दो वर्ष में तमिलनाडु के तट से टकराने वाला ‘निवार’ दूसरा चक्रवात होगा।
  • विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organisation- WMO) के दिशा-निर्देशों के आधार पर इस तूफान को ‘चक्रवात निवार’ नाम दिया गया है। यह ‘निवार’ नाम, ईरान द्वारा दिये गए नामों की सूची में से चुना गया है।
    • WMO के दिशानिर्देशों के अनुसार, प्रत्येक क्षेत्र के देशों को चक्रवातों का नाम देने के लिये अधिकृत किया गया है।
    • उत्तर हिंद महासागर क्षेत्र बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के ऊपर बने उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को कवर करता है।
    • इस क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले 13 सदस्य बांग्लादेश, भारत, मालदीव, म्याँमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका, थाईलैंड, ईरान, कतर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और यमन हैं।
    • इन देशों द्वारा इस वर्ष के लिये चक्रवात के कुल 169 नाम सुझाए गए थे, जिसमें प्रत्येक देश द्वारा सुझाए गए 13 नाम शामिल थे।
  • 100-110 किमी. प्रति घंटे की हवा की गति के साथ यह तूफान एक ‘अत्यंत गंभीर चक्रवाती तूफान’ (Very Severe Cyclonic Storm) से गंभीर चक्रवाती तूफान (Severe Cyclonic Storm) में परिवर्तित हो गया है।

Cyclone-list

सरकारी प्रयास:

  • तमिलनाडु सरकार ने चक्रवात निवार के प्रभाव को देखते हुए चेन्नई सहित 16 ज़िलों में निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) के तहत सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की है। 
  • मछली पकड़ने की गतिविधियों को प्रतिबंधित कर दिया गया है और चक्रवात की चपेट में आने वाले तटीय इलाकों के निवासियों को बाहर निकाला गया है। राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया बल (National Disaster Response Force- NDRF) ने प्रभावित क्षेत्रों में अपनी टीमों को तैनात किया है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


भूगोल

पूर्वोत्तर मानसून

प्रिलिम्स के लिये

उत्तर-पूर्वी मानसूनी वर्षा, मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन, अंत: उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र, ला नीना, अलनीनो

मेन्स के लिये

प्रायद्वीपीय क्षेत्रों में उत्तर-पूर्वी मानसूनी वर्षा में गिरावट के कारण और प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के दक्षिणी प्रायद्वीपीय क्षेत्रों में उत्तर-पूर्वी मानसूनी वर्षा में गिरावट देखी गई।

मुख्य बिंदु:

  • भारत में वर्षा का पैटर्न: भारत एक वर्ष में दो मौसमी वर्षा प्राप्त करता है।
    • देश की वार्षिक वर्षा का लगभग 75 प्रतिशत दक्षिण-पश्चिम मानसून (जून-सितंबर) से प्राप्त होता है।
    • दूसरी ओर, पूर्वोत्तर मानसून (अक्तूबर-दिसंबर) तुलनात्मक रूप से छोटे पैमाने का मानसून होता है जो दक्षिणी प्रायद्वीप तक ही सीमित है।
  • उत्तर-पूर्व मानसून से जुड़े क्षेत्र:
    • इसे शीतकालीन मानसून भी कहा जाता है, पूर्वोत्तर मानसून से जुड़ी बारिश तमिलनाडु, पुडुचेरी, कराइकल, यनम, तटीय आंध्र प्रदेश, केरल, उत्तर आंतरिक कर्नाटक, माहे और लक्षद्वीप के लिये महत्वपूर्ण है।
    • कुछ दक्षिण एशियाई देश जैसे मालदीव, श्रीलंका और म्यांमार में भी अक्तूबर से दिसंबर के दौरान रिकॉर्ड वर्षा दर्ज करते हैं।
    • तमिलनाडु इस दौरान अपनी वार्षिक वर्षा का लगभग 48 प्रतिशत (447.4 mm) प्राप्त करता है, यह वर्षा राज्य में कृषि गतिविधियों और जलाशय प्रबंधन के लिये महत्वपूर्ण कारक है।
  • देश से दक्षिण-पश्चिम मानसून के पूरी तरह से लौट जाने के बाद मध्यअक्तूबर तक हवा का पैटर्न तेज़ी से दक्षिण-पश्चिम से उत्तरी-पूर्वी दिशा में बदल जाता है।
    • दक्षिण-पश्चिम मानसून के मौसम के बाद की अवधि (अक्तूबर-दिसंबर) उत्तरी हिंद महासागरीय क्षेत्र (अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी) में चक्रवाती गतिविधि के लिये चरम समय है।
    • कम दबाव प्रणाली या चक्रवात के गठन से जुड़ी हवाएँ इस मानसून को प्रभावित करती हैं।
    • इसलिये चक्रवातों की समय पर जानकारी आकस्मिक योजना बनाने हेतु सरकार तथा आपदा प्रबंधन टीम के लिये महत्वपूर्ण हो जाता है।

इस पूर्वोत्तर मानसून में कमी के कारण:

प्रशांत महासागर में ला नीना की स्थितियाँ:

  • ला नीना (La Niña) की स्थिति दक्षिण पश्चिम मानसून से जुड़ी वर्षा को बढ़ाती है लेकिन पूर्वोत्तर मानसून से जुड़ी वर्षा पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
  • ला नीना मध्य और पूर्वी भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान के बड़े पैमाने पर शीतलन को संदर्भित करता है जो उष्णकटिबंधीय वायुमंडलीय परिसंचरण, जैसे-हवाओं, दबाव और वर्षा में परिवर्तन के साथ जुड़ा हुआ है।
  • इसका आमतौर पर मौसम और जलवायु पर विपरीत प्रभाव पड़ता है जैसे कि एल नीनो जो तथाकथित अल नीनो दक्षिणी दोलन (El Niño Southern Oscillation) का गर्म चरण है।
    • प्रशांत महासागर में पेरू के निकट समुद्री तट के गर्म होने की घटना को अल-नीनो कहा जाता है। 
    • अल-नीनो एवं ला-नीना पृथ्वी की सर्वाधिक शक्तिशाली घटनाएँ हैं जो पूरे ग्रह के आधे से अधिक भाग के मौसम को परिवर्तित करती हैं।
    • अल–नीनो एक वैश्विक प्रभाव वाली घटना है और इसका प्रभाव क्षेत्र अत्यंत व्यापक है। स्थानीय तौर पर प्रशांत क्षेत्र में मत्स्य उत्पादन से लेकर दुनिया भर के अधिकांश मध्य अक्षांशीय हिस्सों में बाढ़, सूखा, वनाग्नि, तूफान या वर्षा आदि के रूप में इसका असर सामने आता है।

अंत: उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (Inter Tropical Convective Zone):

  • ITCZ पृथ्वी पर भूमध्य रेखा के पास वृत्ताकार क्षेत्र है। यह पृथ्वी पर वह क्षेत्र है, जहाँ उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्धों की व्यापारिक हवाएँ, यानी पूर्वोत्तर व्यापारिक हवाएँ तथा दक्षिण-पूर्व व्यापारिक हवाएँ एक जगह मिलती हैं।
  • भूमध्य रेखा पर सूर्य का तीव्र तापमान और गर्म जल ITCZ में हवा को गर्म करते हुए इसकी आर्द्रता को बढ़ा देते हैं जिससे यह उत्प्लावक बन जाता है।
  • व्यापारिक हवाओं के अभिसरण (Convergence) के कारण यह ऊपर की तरफ उठने लगता है। ऊपर की तरफ उठने वाली यह हवा फैलती है और ठंडी हो जाती है, जिससे भयावह आँधी तथा भारी वर्षा शुरू हो जाती है।

अन्य महत्वपूर्ण वायुमंडलीय परिसंचरण:

  • मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन (Madden-Julian Oscillation): मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन को भूमध्य रेखा के पास पूर्व की ओर सक्रिय बादलों और वर्षा के प्रमुख घटक या निर्धारक (जैसे मानव शरीर में नाड़ी (Pulse) एक प्रमुख निर्धारक होती है) के  रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो आमतौर पर हर 30 से 60 दिनों में स्वयं की पुनरावृत्ति करती है।

स्रोत:  इंडियन एक्सप्रेस


आंतरिक सुरक्षा

अमेरिका का सी-गार्जियन ड्रोन

प्रिलिम्स के लिये

MQ-9B सी-गार्जियन अनमैंड ड्रोन, पी-8I पोसाइडन विमान 

मेन्स के लिये 

रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया-2020 और संबंधित विभिन्न पहलू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय नौसेना ने दो अमेरिकी MQ-9B सी-गार्जियन अनमैंड ड्रोन्स को अपने बेड़े में शामिल किया है। इन दोनों ड्रोन्स को भारतीय नौसेना द्वारा एक वर्ष के लिये लीज़ पर लिया गया है।

प्रमुख बिंदु

MQ-9B सी-गार्जियन

Drone

  • यह अमेरिका के प्रिडेटर MQ9 अनमैंड एरियल व्हीकल (UAV) का समुद्री संस्करण है।
  • यह लगभग 40 घंटे से अधिक समय तक 40000 फीट की अधिकतम ऊँचाई पर उड़ान भर सकता है।
  • इसमें 3600 मरीनटाइम सर्विलांस रडार और एक वैकल्पिक मल्टीमोड मरीनटाइम सरफेस सर्च रडार शामिल है, जिससे भारतीय नौसेना की सर्विलांस क्षमता में काफी वृद्धि होगी।
  • इसका उपयोग एंटी-सरफेस वारफेयर, एंटी-सबमरीन वारफेयर, आपदा राहत, खोज तथा बचाव और कानून प्रवर्तन (ड्रग तस्करी, अवैध आप्रवासन और समुद्री चोरी को रोकने) जैसे ऑपरेशन में किया जा सकता है।

अधिग्रहण 

  • यह पहली बार है जब चीन के साथ सीमा पर चल रहे गतिरोध के बीच भारतीय नौसेना ने केंद्र सरकार द्वारा सशस्त्र बलों को दी गई आपातकालीन शक्तियों का उपयोग करते हुए अमेरिका की एक कंपनी के साथ लीज़ अनुबंध के माध्यम से दो निगरानी ड्रोनों को अपने बेड़े में शामिल किया है।
    • आपातकालीन शक्तियों के तहत केंद्र सरकार ने चीन के साथ बढ़ते सीमा गतिरोध के मद्देनज़र युद्धोपकरण (Ammunition) और हथियारों की खरीद के लिये तीनों सशस्त्र बलों को प्रति परियोजना 500 करोड़ रुपए के आपातकालीन कोष की अनुमति दी है।
  • भारतीय नौसेना ने इन ड्रोन्स को रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP) 2020 में रक्षा उपकरणों के अधिग्रहण के लिये लीज़ के नए विकल्प का उपयोग करते हुए प्राप्त किया है।
    • रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP) 2020 में सस्ती दरों पर रक्षा उपकरण प्राप्त करने के उद्देश्य से ‘लीज़’ (Lease) को एक श्रेणी के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
    • यह श्रेणी उन सैन्य उपकरणों के लिये उपयोगी साबित होगी, जो वास्तविक युद्ध में उपयोग नहीं किये जाते हैं जैसे- परिवहन बेड़े, ट्रेनर, सिम्युलेटर आदि।

महत्त्व

  • यद्यपि भारतीय नौसेना द्वारा इन ड्रोन्स का उपयोग मुख्यतः हिंद महासागर में निगरानी के लिये किया जाएगा, किंतु आवश्यकता पड़ने पर इन्हें चीन की सीमा पर निगरानी के लिये भी तैनात की जा सकता है।
    • भारतीय नौसेना ने पहले से ही पी-8I पोसाइडन (P8I Poseidon) विमान को लद्दाख में तैनात कर दिया है।
    • पी-8I पोसाइडन विमान, अमेरिका की बोइंग कंपनी द्वारा विकसित P-8A पोसाइडन (P-8A Poseidon) विमान का ही एक प्रकार है।
    • बोइंग के P-8A पोसाइडन विमान को लंबी दूरी के एंटी-सबमरीन वारफेयर (ASW), एंटी-सरफेस वारफेयर (ASuW), और खुफिया तथा निगरानी मिशनों के लिये विकसित किया गया है।
  • बल के पुनर्गठन के हिस्से के रूप अब नौसेना अधिक-से -अधिक अनमैंड उपकरणों को तैनात करने पर विचार कर रही है, जिसकी वजह से MQ-9B सी-गार्जियन अनमैंड ड्रोन्स नौसेना के लिये काफी महत्त्वपूर्ण हो सकता है। 
  • जब तक कि नौसेना को अमेरिका से ड्रोन खरीदने की मंज़ूरी नहीं मिल जाती, जिसके लिये रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC) की मंज़ूरी की आवश्यकता होगी, तब तक ‘लीज़’ को एक बेहतर विकल्प के रूप में देखा जा सकता है।
    • रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC) तीनों सेनाओं (थल सेना, नौसेना और वायु सेना) तथा भारतीय तटरक्षक बल के लिये नई नीतियों और पूंजीगत अधिग्रहण पर निर्णय लेने हेतु रक्षा मंत्रालय के अधीन सर्वोच्च संस्था है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

ब्रू शरणार्थियों के पुनर्वास के विरुद्ध प्रदर्शन

प्रिलिम्स के लिये 

ब्रू जनजाति और उनकी अवस्थिति, विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTGs)

मेन्स के लिये

नृजातीय संघर्ष से उत्पन्न आंतरिक सुरक्षा की समस्या

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, उत्तरी त्रिपुरा के कुछ हिस्सों में ब्रू आदिवासियों के लिये प्रस्तावित पुनर्वास को लेकर हिंसक विरोध प्रदर्शन देखे गए।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि

  • ब्रू समुदाय भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र का एक जनजातीय समूह है, जो कि मुख्य तौर पर त्रिपुरा, मिज़ोरम और असम में निवास करते हैं। इस जनजातीय समूह को त्रिपुरा में, विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTGs) के रूप में मान्यता दी गई है।
    • ब्रू समुदाय स्वयं को म्याँमार के शान प्रांत का मूल निवासी मानता है, इस समुदाय के लोग सदियों पहले म्याँमार से आकर भारत में बस गए थे।
  • यद्यपि मिज़ोरम में इस जनजातीय समूह के लोगों को संख्या काफी अधिक है, किंतु वहाँ एक वर्ग विशेष इस जनजातीय समूह को राज्य के निवासी के रूप में स्वीकार नहीं करता है और अक्सर इस धारणा के कारण ब्रू समुदाय के लोगों को लक्षित किया जाता है।
  • वर्ष 1997 में हिंसक जातीय झड़पों के बाद ब्रू समुदाय के लगभग 37,000 लोग मिज़ोरम के मामित कोलासिब और लुंगलेई ज़िलों से भागकर त्रिपुरा आ गए थे और उन्हें त्रिपुरा के राहत शिविरों में रखा गया था।
  • तब से आठ चरणों में लगभग 5,000 लोग मिज़ोरम लौट गए हैं, जबकि तकरीबन 32,000 लोग अब भी उत्तरी त्रिपुरा के राहत शिविरों में निवास कर रहे हैं।
  • 16 जनवरी, 2020 को केंद्र सरकार, त्रिपुरा तथा मिज़ोरम की राज्य सरकारों व ब्रू समुदाय के प्रतिनिधियों के मध्य ब्रू शरणार्थियों से जुड़ा एक चतुर्पक्षीय समझौता हुआ था। 

 वर्ष 2020 का चतुर्पक्षीय समझौता

  • इस समझौते में लगभग 32 हज़ार ब्रू शरणार्थियों को त्रिपुरा में ही बसाए जाने की बात की गई थी, साथ ही इस समझौते में ब्रू शरणार्थियों को सीधे सरकारी तंत्र से जोड़कर राशन, यातायात, शिक्षा आदि की सुविधा प्रदान कर उनके पुनर्वास में सहायता करने का प्रावधान भी किया गया था।
  • जनवरी 2020 में हुए चतुर्पक्षीय समझौते के बाद त्रिपुरा में 300 परिवारों के साथ छह ज़िलों में 12 पुनर्वास स्थलों की योजना बनाई गई है।
  • केंद्र सरकार ने इस कार्य के लिये 600 करोड़ रूपए के वित्तपोषण के साथ एक विशेष विकास परियोजना की भी घोषणा की है।
  • समझौते के तहत विस्थापित परिवारों को 0.03 एकड़ का आवासीय प्लाॅट दिया जाएगा। साथ ही प्रत्येक विस्थापित परिवार को घर बनाने के लिये 1.5 लाख रुपए की नकद सहायता भी जाएगी। साथ ही ब्रू परिवारों को जीविका के लिये 4 लाख रूपए की एकमुश्त नकद राशि तथा दो वर्षों तक प्रतिमाह 5 हज़ार रुपए और निःशुल्क राशन भी प्रदान किया जाएगा।

विरोध का कारण

  • वर्ष 2020 में हुए चतुर्पक्षीय समझौते के कारण त्रिपुरा के बंगाली और मिज़ो समुदाय के लोगों के बीच असंतोष उत्पन्न हो गया, जिससे राज्य में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।
  • इस समझौते का विरोध करने वाले समूहों का दावा है कि उत्तरी त्रिपुरा ज़िले में स्थायी रूप से हज़ारों ब्रू शरणार्थियों को बसाने से इस क्षेत्र में जनसांख्यिकीय असंतुलन, स्थानीय संसाधनों पर अत्यधिक दबाव और कानून-व्यवस्था संबंधी समस्याएँ पैदा हो जाएंगी।
  • इस क्षेत्र में रहने वाले बंगाली और मिज़ो समुदाय के लोगों का आरोप है कि उत्तरी त्रिपुरा के कंचनपुर के आसपास के क्षेत्रों में 650 बंगाली परिवार और जम्पुई हिल (Jampui Hill) रेंज के आसपास के क्षेत्रों से लगभग 81 मिज़ो परिवार, ब्रू समुदाय के अत्याचारों के कारण किसी अन्य स्थान पर चले गए थे, उन्हें अभी तक दो दशक बाद भी बसाया नहीं गया है।

ब्रू जनजाति की स्थिति 

  • ब्रू जनजाति के पुनर्वास की योजना को लेकर हो रहे विरोध प्रदर्शनों के कारण समुदाय के लोगों में एक डर और अनिश्चितता है, क्योंकि इन विरोध प्रदर्शनों के कारण समुदाय के लोगों को सामाजिक-आर्थिक स्तर पर कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
  • इस माह ब्रू शरणार्थियों को राहत पैकेज के तहत निर्धारित खाद्यान्न भी प्राप्त नहीं हुआ है और यदि भविष्य में भी ये विरोध प्रदान जारी रहते हैं तो उन लोगों के लिये परिस्थितियाँ और भी चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस  


शासन व्यवस्था

कृषि-प्रसंस्करण क्लस्टर हेतु अवसंरचना निर्माण के लिये योजना

प्रिलिम्स के लिये:

प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना, कृषि प्रसंस्करण क्लस्टर

मेन्स के लिये:

कृषि-प्रसंस्करण क्लस्टर हेतु अवसंरचना निर्माण की आवश्यकता एवं महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री ने प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (PMKSY) के कृषि प्रसंस्करण क्लस्टरों की अवसंरचना की निर्माण योजना के तहत प्राप्त प्रस्तावों पर विचार के लिये एक अंतर-मंत्रालयी अनुमोदन समिति बैठक में हिस्सा लिया।

प्रमुख बिंदु:

  • अंतर-मंत्रालयी अनुमोदन समिति ने मेघालय, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र, राज्यों में 234.68 करोड़ रुपये की कुल परियोजना लागत के साथ 7 कृषि प्रसंस्करण क्लस्टरों को मंज़ूरी दी है, जिसमें 60.87 करोड़ रुपए की अनुदान सहायता भी शामिल है।
  • इन परियोजनाओं के माध्यम से 173.81 करोड़ रुपए के निजी निवेश को आकर्षित किया सकेगा तथा इससे 7750 व्यक्तियों के लिये रोज़गार उत्पन्न होने की संभावना है।
  • कृषि प्रसंस्करण क्लस्टरों की अवसंरचना की निर्माण योजना:
    • देशभर में कृषि प्रसंस्करण क्लस्टरों की स्थापना को प्रोत्साहन देने के लिये मई 2017 में   PMKSY के तहत इस योजना को मंज़ूरी दी गई थी।
    • उद्देश्य: उत्पादकों/किसानों के समूह को प्रसंस्करणकर्त्ताओं और बाज़ार  से जोड़कर क्लस्टर दृष्टिकोण के आधार पर खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना हेतु उद्यमियों के एक समूह को प्रोत्साहित करने के लिये आधुनिक बुनियादी ढाँचा और सामान्य सुविधाओं का विकास करना।
      • ये क्लस्टर अधिशेष उपज के अपव्यय को कम करने और बागवानी/कृषि उपज के मूल्य को जोड़ने में मदद करेंगे जिसके परिणामस्वरूप किसानों की आय में वृद्धि होगी तथा स्थानीय स्तर पर रोज़गार का सृजन होगा।
    • इस योजना के तहत, प्रत्येक APC के दो बुनियादी घटक हैं:
      • बुनियादी समर्थकारी अवसंरचना जैसे सड़क, जल की आपूर्ति, बिजली की आपूर्ति, जल निकासी, आदि।
      • कोर.प्रमुख अवसंरचना/सामान्य सुविधाएँ जैसे वेयरहाउस, कोल्ड स्टोरेज, टेट्रा पैक, सॉर्टिंग, ग्रेडिंग इत्यादि।
    • सेट-अप के लिये आवश्यकताएँ:
      • 25 करोड़ रुपए के न्यूनतम निवेश के साथ कम-से-कम 5 खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ तथा न्यूनतम 50 वर्षों के लिये 10 एकड़ भूमि की आवश्यकता होगी।

प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना

Pradhan Mantri Kisan Sampada Yojana (PMKSY)

  • वर्ष 2016 में, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय (Ministry of Food Processing Industries- MoFPI) ने कृषि-समुद्री प्रसंस्करण और कृषि-प्रसंस्करण क्लस्टर (SAMPADA) के विकास के लिये एक व्यापक योजना शुरू की, जिसे 6,000 करोड़ रुपए के आवंटन के साथ वर्ष 2016-20 की अवधि के लिये लागू किया जाना प्रस्तावित था। 
  • वर्ष 2017 में इसे प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना के रूप में पुनः नामित किया गया।
  • यह केंद्रीय क्षेत्र की एक योजना (Central Sector Scheme) है।

उद्देश्य

  • खाद्य प्रसंस्करण एवं संरक्षण क्षमताओं का निर्माण
  • मूल्य संवर्द्धन
  • खाद्यान अपव्यय में कमी के लिये प्रसंस्करण के स्तर को बढ़ाना
  • मौजूदा खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों का आधुनिकीकरण एवं विस्तार करना है।

योजना की सात घटक योजनाएँ

PMKSY के तहत, अनुदान की सहायता के रूप में पूंजीगत सब्सिडी, पात्र परियोजना लागत के 35% से 75% तक अधिकतम निर्दिष्ट सीमा के अधीन है, जो निवेशकों को बुनियादी ढाँचे, लॉजिस्टिक परियोजनाओं और देश में खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना के लिये विभिन्न योजनाओं के तहत प्रदान की जाती है।

स्रोत: पी.आई.बी.


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