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डेली न्यूज़

  • 25 Feb, 2021
  • 39 min read
शासन व्यवस्था

उजाला और SLNP के 6 वर्ष

चर्चा में क्यों?

उजाला (Unnat Jyoti by Affordable LEDs for All) योजना और SLNP (स्ट्रीट लाइटिंग नेशनल प्रोग्राम) ने अपने सफल कार्यान्वयन के छह वर्ष पूरे कर लिये हैं। इन दोनों कार्यक्रमों ने देश भर में घरेलू और सार्वजनिक प्रकाश व्यवस्था को पुनर्जीवित किया है।

  • दोनों योजनाओं का क्रियान्वयन ऊर्जा दक्षता सेवा लिमिटेड (Energy Efficiency Services Limited- EESL) द्वारा किया जा रहा है, जो विद्युत मंत्रालय के तहत सार्वजनिक उपक्रमों का एक संयुक्त उद्यम है।
  • इन योजनाओं को एलईडी क्षेत्र में परिवर्तनकारी योगदान के लिये ‘साउथ एशिया प्रोक्योरमेंट इनोवेशन अवार्ड’ (SAPIA) 2017, ‘ग्लोबल सॉलिड स्टेट लाइटिंग ’ (SSL) अवार्ड ऑफ एक्सीलेंस जैसे वैश्विक पुरस्कार दिये गए हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • उजाला योजना (Unnat Jyoti by Affordable LEDs for All)

    • उजाला, सरकार द्वारा वर्ष 2015 में शुरू की गई एक ‘ज़ीरो-सब्सिडी योजना’ है।
    • इसे विश्व की सबसे बड़ी घरेलू प्रकाश परियोजना के रूप में जाना जाता है।
    • इसे एलईडी-आधारित घरेलू कुशल प्रकाश कार्यक्रम (DELP) के रूप में भी जाना जाता है, इसका उद्देश्य सभी के लिये ऊर्जा के कुशल उपयोग (अर्थात् इसकी खपत, बचत और प्रकाश व्यवस्था) को बढ़ावा देना है।
    • प्रत्येक परिवार जो संबंधित विद्युत वितरण कंपनी का घरेलू कनेक्शन रखता है, योजना के तहत LED बल्ब प्राप्त करने के लिये पात्र है।
  • उपलब्धियाँ:
    • उजाला योजना के तहत EESL ने पूरे भारत में 36.69 करोड़ एलईडी बल्ब वितरित किये हैं। इसके परिणामस्वरूप प्रतिवर्ष 47.65 बिलियन किलोवाट घंटा की अनुमानित ऊर्जा बचत के साथ विद्युत की मांग में 9,540 मेगावाट की कमी और प्रतिवर्ष अनुमानतः 38.59 मिलियन टन CO2 उत्सर्जन में कमी के साथ ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में भी कमी आई है।
    • इसने घरेलू एलईडी बल्ब बाज़ारों की वृद्धि में सहायता की है।
    • इसने औसत घरेलू बिजली बिलों को 15% तक कम करने में सहायता की है।
  • स्ट्रीट लाइटिंग नेशनल प्रोग्राम (SLNP):

    • SLNP को वर्ष 2015 में शुरू किया गया था , यह भारत में ऊर्जा-दक्षता को बढ़ावा देने हेतु एक सरकारी योजना है।
    • इस कार्यक्रम के तहत EESL नगरपालिकाओं द्वारा किसी भी प्रकार के निवेश के बिना अपनी लागत पर पारंपरिक स्ट्रीट लाइटों को एलईडी से बदल देता है, जिससे EESL द्वारा किया जा रहा यह परिवर्तन अधिक आकर्षक हो जाता है।
    • इस योजना से विद्युत मांग में 500 मेगावाट की कमी, 190 करोड़ किलोवाट की वार्षिक ऊर्जा बचत और CO2 उत्सर्जन में 15 लाख टन की कमी आने की संभावना है।
    • SLNP की योजना पूरे ग्रामीण भारत को कवर करने के लिये वर्ष 2024 तक 8,000 करोड़ रुपए का निवेश आकर्षित करने की है।।
  • उपलब्धियाँ:
    • अभी तक 1.14 करोड़ से अधिक स्मार्ट एलईडी स्ट्रीट लाइटें लगाई गई हैं, जिससे प्रतिवर्ष 7.67 बिलियन kWh की अनुमानित ऊर्जा बचत होती है तथा प्रतिवर्ष 1,161 मेगावाट की उच्च मांग और 5.29 मिलियन टन CO2 उत्सर्जन में कमी के साथ ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में भी कमी आती है।
    • इस योजना से नगरपालिकाएँ अपने बिजली बिलों में 5,210 करोड़ रुपए बचाने में सक्षम हुईं हैं।

स्रोत- पी.आई.बी


सामाजिक न्याय

सघन मिशन इन्द्रधनुष 3.0

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कोविड-19 महामारी के दौरान नियमित टीकाकरण में छूटे बच्चों और गर्भवती महिलाओं को कवर करने के उद्देश्य से सघन मिशन इन्द्रधनुष 3.0 (Intensified Mission Indradhanush- IMI 3.0) योजना शुरू की गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • सघन मिशन इन्द्रधनुष (IMI) 3.0 योजना के बारे में:
    • उद्देश्य:
      • सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (Universal Immunisation Programme- UIP) के तहत उपलब्ध सभी टीकों के साथ आबादी के उस हिस्से तक पहुँचना जहाँ टीकों के वितरण का अभाव है और जिससे सभी बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं में टीकाकरण किया जा सके, साथ ही टीकाकरण कवरेज कार्यक्रम में तीव्रता लाई जा सके ।
    • कवरेज:
      • यह टीकाकरण कार्य इस वर्ष दो चरणों में संपन्न होगा जिसे 29 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के 250 पूर्व-चिह्नित ज़िलों/शहरी क्षेत्रों में आयोजित किया जाएगा।
        • टीकाकरण हेतु 313 ज़िलों को कम जोखिम, 152 को मध्यम जोखिम और 250 को उच्च जोखिम वाले ज़िलों में वर्गीकृत किया गया है।
      • प्रव्रजन क्षेत्रों (Migration Areas) और दूरदराज़ के क्षेत्रों में उन लभार्तियों को लक्षित किया जाएगा जो महामारी के दौरान टीके की खुराक से वंचित रह गए हैं।
    • महत्त्व: यह सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals) को प्राप्त करने के उद्देश्य से भारत द्वारा किये जाने वाले प्रयासों में वृद्धि करेगा।
  • सर्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम:
    • प्रारंभ/शुरुआत:
      • भारत में टीकाकरण कार्यक्रम को वर्ष 1978 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा ‘विस्तृत टीकाकरण कार्यक्रम’ (Expanded Programme of Immunization- EPI) के रूप में शुरू किया गया था।
      • वर्ष 1985 में इसे सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम में परिवर्तित कर दिया गया।
    • कार्यक्रम का उद्देश्य:
      • टीकाकरण कवरेज को तेज़ी से बढ़ाना।
      • सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार।
      • स्वास्थ्य सुविधाओं के स्तर पर एक विश्वसनीय कोल्ड चेन सिस्टम (Reliable Cold Chain System) की स्थापना।
      • टीकाकरण कार्यक्रम के प्रदर्शन की निगरानी हेतु ज़िलेवार प्रणाली की स्थापना।
      • टीके उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना।
    • विश्लेषण:
      • UIP 12 वैक्सीन- रोकथाम योग्य बीमारियों के खिलाफ बच्चों और गर्भवती महिलाओं में मृत्यु दर एवं रुग्णता को रोकती है लेकिन अतीत में यह देखा गया कि टीकाकरण कवरेज में धीमी वृद्धि रही जो वर्ष 2009 से 2013 के मध्य प्रतिवर्ष 1% की दर से ही बढ़ी।
      • टीकाकरण कवरेज में तेज़ी लाने हेतु वर्ष 2015 से पूर्ण टीकाकरण कवरेज को 90% तक बढ़ाने के उद्देश्य से मिशन इन्द्रधनुष की परिकल्पना और उसका कार्यान्वयन किया गया था।
  • मिशन इन्द्रधनुष:
    • उद्देश्य:
      • इसके तहत 89 लाख से अधिक बच्चों को पूरी तरह से प्रतिरक्षित किया जाना है जिनका UIP के तहत आंशिक रूप से टीकाकरण हुआ है या जो टीकाकरण से छूट गए हैं।
      • इसमें 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों और गर्भवती महिलाओं के टीकाकरण का लक्ष्य रखा गया है।
    • टीकाकरण के तहत कवर की जाने वाली बीमारियाँ:
      • मिशन इन्द्रधनुष में 12 वैक्सीन-प्रिवेंटेबल डिज़ीज़ (Vaccine-Preventable Diseases- VPD) के खिलाफ टीकाकरण शामिल है जिनमें डिफ्थीरिया (Diphtheria), काली खांँसी (Whooping Cough), टेटनस (Tetanus), पोलियो (Polio), क्षय (Tuberculosis), हेपेटाइटिस-बी (Hepatitis B), मैनिन्जाइटिस (Meningitis), निमोनिया (Pneumonia), हेमोफिलस इन्फ्लुएंज़ा टाइप बी संक्रमण (Haemophilus Influenzae Type B Infections), जापानी एनसेफेलाइटिस(Japanese Encephalitis), रोटावायरस वैक्सीन (Rotavirus Vaccine), न्यूमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन (Pneumococcal Conjugate Vaccine) और खसरा-रूबेला (Measles-Rubella) शामिल हैं।
      • हालाँकि जापानी एनसेफेलाइटिस और हीमोफिलस इन्फ्लुएंज़ा टाइप बी के खिलाफ टीकाकरण कार्यक्रम देश के चुनिंदा ज़िलों में किया जा रहा है।
  • सघन मिशन इन्द्रधनुष 1.0:
    • प्रारंभ:
      • इस कार्यक्रम को वर्ष 2017 में प्रारंभ किया गया।
    • कवरेज:
      • MI के तहत उन शहरी क्षेत्रों पर अधिक ध्यान दिया गया जो मिशन इन्द्रधनुष के तहत छूट गए थे।
      • इसके तहत वर्ष 2020 के बजाय दिसंबर 2018 तक 90% से अधिक पूर्ण टीकाकरण सुनिश्चित करने हेतु चुनिंदा ज़िलों और शहरों में टीकाकरण कवरेज में सुधार करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • सघन मिशन इन्द्रधनुष 2.0:
    • प्रारंभ:
      • यह पल्स पोलियो कार्यक्रम (2019-20) के 25 वर्षों को चिह्नित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया एक राष्ट्रव्यापी टीकाकरण अभियान था।
    • कवरेज:
      • इसमें 27 राज्यों के कुल 272 ज़िलों में पूर्ण टीकाकरण कवरेज का लक्ष्य रखा गया।
      • इस कार्यक्रम का उद्देश्य वर्ष 2022 तक कम-से-कम 90% अखिल भारतीय टीकाकरण कवरेज के लक्ष्य को हासिल करना।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

चीन से स्टील के आयात पर डंपिंग रोधी शुल्क

चर्चा में क्यों?

हाल ही में व्यापार उपचार महानिदेशालय (Directorate General of Trade Remedies- DGTR) ने घरेलू उद्योगों की शिकायतों के बाद चीन से आयातित कुछ प्रकार के इस्पात उत्पादों पर एंटी-डंपिंग शुल्क जारी रखने की आवश्यकता की समीक्षा करने के लिये एक जाँच प्रारंभ की है।

  • कुछ स्टील उत्पादों पर यह शुल्क पहली बार फरवरी, 2017 में लगाया गया था जो कि 16 मई 2021 को समाप्त होने वाला है।

व्यापार उपचार महानिदेशालय:

  • यह सभी डंपिंग-रोधी, काउंटरवेलिंग शुल्क और अन्य व्यापार सुधारात्मक उपायों को लागू करने के लिये वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत सर्वोच्च राष्ट्रीय प्राधिकरण है।
  • यह घरेलू उद्योग और निर्यातकों को अन्य देशों द्वारा उनके खिलाफ लागू किये गए व्यापार उपायों की जाँच के बढ़ते मामलों से निपटने में सहायता प्रदान करता है।

प्रमुख बिंदु:

  • स्टील के कुछ प्रमुख निजी घरेलू उत्पादकों ने चीन से ‘सीमलेस ट्यूब’ (Seamless Tubes), लोहे के खोखले पाइप और मिश्र धातु या गैर-मिश्र धातु के खोखले पाइप्स के आयात पर लगाए गए डंपिंग-रोधी शुल्क के ‘सनसेट रिव्यू’ हेतु DGTR के समक्ष आवेदन किया है।
  • आवेदकों का आरोप है कि डंपिंग-रोधी शुल्क लगाने के बाद भी चीन से इन उत्पादों की डंपिंग जारी है और आयात की मात्रा में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
  • DGTR वर्तमान शुल्कों को जारी रखने की आवश्यकता की समीक्षा करेगा और जाँच करेगा कि मौजूदा शुल्क की समाप्ति से डंपिंग की निरंतरता या पुनरावृत्ति और घरेलू उद्योग के प्रभावित होने की संभावना है या नहीं।

एंटी-डंपिंग शुल्क:

  • डंपिंग:
    • जब किसी देश द्वारा दूसरे देश को उसकी कीमत से कम कीमत पर सामान निर्यात किया जाता है और जिसे सामान्य रूप से उसके घरेलू बाज़ार में वसूला जाता है तो उसे डंपिंग कहा जाता है।
    • यह एक अनुचित व्यापार क्रिया है, जिसका अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर विकृत प्रभाव पड़ सकता है।
  • उद्देश्य:
    • एंटी-डंपिंग ड्यूटी सामान की डंपिंग और उसके व्यापार के विकृत प्रभाव से उत्पन्न स्थिति को सुधारने के लिये एक उपाय है।
      • दीर्घावधिक रूप से डंपिंग-रोधी शुल्क के माध्यम से समान वस्तुओं का उत्पादन करने वाली घरेलू कंपनियों की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा कम की जा सकती है।
    • यह एक संरक्षणवादी टैरिफ (Tariff) है, जिसे एक घरेलू सरकार विदेशी आयात पर लगाती है तथा यह मानती है कि इसकी कीमत उचित बाज़ार मूल्य से कम है।
    • विश्व व्यापार संगठन द्वारा उचित प्रतिस्पर्द्धा के साधन के रूप में एंटी-डंपिंग उपायों के उपयोग की अनुमति दी गई है।
  • काउंटरवेलिंग ड्यूटी से भिन्न:
    • एंटी-डंपिंग शुल्क आयात पर आरोपित होने वाला एक सीमा शुल्क है जो उन सामानों की डंपिंग से सुरक्षा प्रदान करता है, जो कि सामान्य मूल्य से काफी कम कीमत के होते हैं, जबकि काउंटरवेलिंग ड्यूटी उन सामानों पर लगाया जाने वाला सीमा शुल्क है, जो मूल या निर्यातित देश में सरकारी सब्सिडी प्राप्त करते हैं ।
  • डंपिंग-रोधी शुल्क से संबंधित विश्व व्यापार संगठन के प्रावधान:
    • वैधता: एंटी-डंपिंग शुल्क लागू होने की तारीख से पाँच वर्ष की अवधि के लिये वैध होते हैं,जब तक कि इसे पहले रद्द नहीं किया गया हो।
    • सनसेट रिव्यू: इसे सनसेट रिव्यू या ‘समाप्ति समीक्षा जाँच’ के माध्यम से पाँच वर्ष की अवधि के लिये बढ़ाया जा सकता है।
      • एक सनसेट रिव्यू/समाप्ति समीक्षा एक कार्यक्रम या एजेंसी के निरंतर अस्तित्व की आवश्यकता का मूल्यांकन है। यह कार्यक्रम या एजेंसी की प्रभावशीलता और उसके प्रदर्शन का आकलन करने की अनुमति देता है।
      • इस तरह की समीक्षा घरेलू उद्योग की ओर से स्वतः संज्ञान द्वारा किये गए विधिवत अनुरोध के आधार पर की जा सकती है।

स्रोत- द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

चीन: भारत का शीर्ष व्यापार साझेदार

चर्चा में क्यों?

वाणिज्य मंत्रालय के अनंतिम आँकड़ों के मुताबिक, चीन ने सीमा पर मौजूद तनाव के बीच वर्ष 2020 में एक बार पुनः भारत के शीर्ष व्यापार भागीदार के रूप में स्थान प्राप्त कर लिया है।

प्रमुख बिंदु

  • शीर्ष व्यापार भागीदार के रूप में चीन
    • डेटा: भारत और चीन के बीच वर्ष 2020 में कुल 77.7 बिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था।
      • वहीं वर्ष 2019 में भारत और चीन के बीच कुल 85.5 बिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था।
    • अमेरिका का विस्थापन: हालिया आँकड़ों के मुताबिक, कोरोना वायरस महामारी के बीच वस्तुओं की मांग में कमी के बावजूद चीन ने भारत के प्रमुख व्यापार भागीदार के रूप में अमेरिका को विस्थापित कर दिया है।
      • वर्ष 2020 में भारत और अमेरिका के बीच कुल 75.9 बिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था।
    • चीन से आयात: 58.7 बिलियन डॉलर का चीन से होने वाला कुल आयात, भारत द्वारा अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात से संयुक्त तौर पर की गई कुल खरीद से भी अधिक था, जो कि भारत के क्रमशः दूसरे और तीसरे सबसे बड़े व्यापार भागीदार हैं।
    • चीन को निर्यात: भारत चीन के साथ अपने निर्यात को बीते वर्ष की तुलना में केवल 11 प्रतिशत बढ़ाने में सक्षम रहा है और चीन को होने वाला भारत का निर्यात 19 बिलियन डॉलर पर पहुँच गया है।
    • व्यापार घाटा: वर्ष 2020 में चीन के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार घाटा लगभग 40 बिलियन डॉलर रहा, जो किसी भी अन्य देश की तुलना में सबसे अधिक है।
      • किसी देश का व्यापार घाटा उस स्थिति को दर्शाता है, जिसमें किसी अन्य देश के साथ उस देश का आयात उसके निर्यात से अधिक होता है।
  • विश्लेषण
    • महामारी के बीच चीन के साथ चिकित्सा आपूर्ति के आयात में हो रही बढ़ोतरी को चीन के शीर्ष व्यापार साझेदार के रूप में उभरने के प्रमुखों कारणों में से एक माना जा रहा है।
    • ऐसा देखा गया है कि चीन विरोधी माहौल के बीच भी भारतीय ऑनलाइन क्रेता चीन के मोबाइल फोन और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स को पसंद कर रहे हैं।
      • अमेज़न के प्राइम डे 2020 डेटा के अनुसार, वनप्लस, ओप्पो, हुआवे और श्याओमी भारत में सबसे अधिक बिकने वाले स्मार्ट फोन ब्रांडों में शामिल थे।
    • इसके अलावा चीन में निर्मित भारी मशीनरी, दूरसंचार उपकरण और घरेलू उपकरणों पर भारत बहुत अधिक निर्भर है।
    • भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार में ऐसे समय में वृद्धि दर्ज की जा रही है, जब दोनों देशों के बीच सीमा पर विवाद चल रहा है और भारत सरकार द्वारा विनिर्माण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ‘आत्मनिर्भर भारत’ पर ज़ोर दिया जा रहा है, ऐसे में ये आँकड़े सरकार के प्रयासों पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं।
  • चीन पर आयात निर्भरता कम करने हेतु किये गए उपाय
    • एप्स पर प्रतिबंध: बीते दिनों सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए 100 से अधिक चीनी एप्स पर प्रतिबंध लगा दिया था।
    • जाँच एवं निगरानी में बढ़ोतरी: सरकार द्वारा कई क्षेत्रों में चीन से आने वाले निवेश की जाँच और निगरानी को बढ़ा दिया है, साथ ही चीन की कंपनियों को 5G परीक्षणों में हिस्सा न लेने देने पर भी विचार किया जा रहा है।
    • अवसरवादी अधिग्रहण पर अंकुश: सरकार ने हाल ही में घरेलू कंपनियों के ‘अवसरवादी अधिग्रहण’ पर अंकुश लगाने के लिये भारत के साथ भूमि सीमा साझा करने वाले देशों से विदेशी निवेश हेतु पूर्व मंज़ूरी प्राप्त करना अनिवार्य कर दिया है, इस कदम का प्राथमिक उद्देश्य चीन से आने वाले विदेशी प्रत्यक्ष निवेश पर प्रतिबंध लगाना है।
    • आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य: वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने 12 क्षेत्रों की पहचान की है, जिनमें भारत को वैश्विक आपूर्तिकर्त्ता बनाने और आयात बिल में कटौती करने का लक्ष्य रखा गया है, इसमें खाद्य प्रसंस्करण, जैविक कृषि, लोहा, एल्यूमीनियम और ताँबा, कृषि रसायन, इलेक्ट्रॉनिक्स, औद्योगिक मशीनरी, फर्नीचर, चमड़ा और जूते, ऑटो पार्ट्स, वस्त्र, मास्क, सैनिटाइज़र और वेंटिलेटर आदि शामिल हैं।
      • APIs (एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रीडिएंट्स) के लिये चीन पर आयात निर्भरता में कटौती करने हेतु सरकार ने मार्च 2020 में देश में ड्रग्स और चिकित्सा उपकरणों के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये 13,760 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ चार योजनाओं वाले पैकेज को मंज़ूरी दी थी।

आगे की राह

  • भारत विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ अपने सभी संबंधों, विशेष तौर पर आर्थिक संबंधों को खराब नहीं कर सकता है। चीन के निवेशकों द्वारा किया जाने वाला वित्तपोषण भारत की स्टार्टअप अर्थव्यवस्था को बनाए रखने के लिये काफी महत्त्वपूर्ण हो सकता है।
  • भारत को चीन के संबंध में किसी भी प्रकार का निर्णय लेने से पूर्व काफी सोच-विचार करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिये भारत, दूरसंचार क्षेत्र में चीनी कंपनियों की भागीदारी पर अंकुश लगा सकता है, विशेष रूप से 5G परीक्षण को लेकर, हालाँकि यह भी ध्यान दिया जाना आवश्यक है कि भारत के 4G नेटवर्क की मौजूदा बुनियादी अवसंरचना में एक बड़ा हिस्सा चीन का है, इसलिये भारत को अभी भी रखरखाव और सर्विसिंग के लिये चीन की कंपनियों की आवश्यकता होगी।
  • ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के माध्यम से भारत सरकार उन क्षेत्रों में चीन की कंपनियों को घरेलू उत्पादों के साथ प्रतिस्थापित कर सकती है, जहाँ ऐसा किया जाना संभव है। इसके अलावा, भारत को अन्य देशों के साथ भी अपने आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने की ज़रूरत है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय इतिहास

पगड़ी संभाल आंदोलन

चर्चा में क्यों?

वर्ष 1907 में पगड़ी संभाल आंदोलन शुरू करने वाले सरदार अजीत सिंह की स्मृति में संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने 23 फरवरी, 2021 को पगड़ी संभाल दिवस के रूप में मनाया।

  • उल्लेखनीय है दिल्ली में चल रहे विरोध प्रदर्शन के भाग के रूप में किसान संगठनों द्वारा यह दावा किया जा रहा है कि संसद द्वारा पारित कृषि कानून किसानों को अपनी ज़मीन कॉरपोरेट्स को बेचने के लिये मजबूर करेंगे। किसान संगठनों की यह शिकायत वर्ष 1907 में किसान संगठनों द्वारा की गई शिकायत के समान है जिसके परिणामस्वरूप पगड़ी संभाल आंदोलन की शुरुआत हुई थी।

प्रमुख बिंदु

  • पगड़ी संभाल आंदोलन:
    • आंदोलन के विषय में:
      • यह एक सफल किसान आंदोलन था जिसने वर्ष 1907 में ब्रिटिश सरकार को कृषि से संबंधित तीन कानूनों को रद्द करने के लिये विवश किया। ये तीन कानून थे-
      • पंजाब भूमि अलगाव अधिनियम (Punjab Land Alienation Act) 1900, पंजाब भूमि उपनिवेशीकरण अधिनियम (Punjab Land Colonisation Act) 1906 और दोआब बारी अधिनियम (Doab Bari Act) 1907।
      • इन अधिनियमों के चलते किसान भूमि के मालिक न रहकर भूमि के ठेकेदार/अनुबंधक बन जाते और यदि किसान अनुमति लिये बिना अपने खेत में एक पौधा भी छू लेता तो ब्रिटिश सरकार उस किसान को आवंटित भूमि वापस ले सकती थी
    • आंदोलन का नारा:
      • पगड़ी संभाल जट्टा’ का नारा तथा आंदोलन का नाम जंग स्याल (Jang Sayal) अखबार के संपादक बांके लाल के गीत से प्रेरित था।
    • विरोध:
      • यह विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया था और आंदोलन के दौरान प्रदर्शनकारियों ने सरकारी इमारतों, डाकघरों, बैंकों आदि में लूटपाट की तथा टेलीफोन के खंभों को गिरा दिया।
    • आंदोलन के नेतृत्वकर्त्ता:
      • इस आंदोलन के प्रमुख नेतृत्वकर्त्ता भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह थे जिन्होंने कृषि कानूनों से नाराज़ किसानों को संगठित करने का कार्य किया।
      • भगत सिंह के पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह ने अपने क्रांतिकारी मित्र घसीटा राम के साथ मिलकर भारत माता सोसाइटी (Bharat Mata Society) का गठन किया। इस सोसाइटी का उद्देश्य किसानों में व्याप्त नाराज़गी को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एक आंदोलन का रूप देना था।
        • सूफी अम्बा प्रसाद, जिया-उल-हक, लाल चंद फलक, दीन दयाल बांके, किशन सिंह और लाला राम शरण दास जैसे कई युवा क्रांतिकारी भारत माता सोसाइटी के सदस्य थे।

  • सरदार अजीत सिंह: 
    • जन्म:
      • इनका जन्म 23 फरवरी, 1881 को हुआ था। वह भारत में ब्रिटिश शासन के समय एक क्रांतिकारी और राष्ट्रवादी थे।
      • वह भारतीय क्रांतिकारियों और अपने भतीजे भगत सिंह के प्रेरणास्रोत थे।
    • कार्य:
      • वह पंजाब के शुरुआती प्रदर्शनकारियों में से थे, उन्होंने औपनिवेशिक सरकार की खुलेआम आलोचना की।
      • अपने भाई किशन सिंह के साथ उन्होंने बरार (मध्य प्रदेश) और अहमदाबाद जैसे अकाल प्रभावित क्षेत्रों तथा वर्ष 1905 में श्रीनगर एवं कंगला के बाढ़ और भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में लोगों के लिये काम किया।
      • उन्होंने भारत माता पुस्तक एजेंसी (भारत माता सोसाइटी का हिस्सा) की शुरुआत की जिसने स्पष्ट रूप से सरकार विरोधी प्रकाशनों के कारण ब्रिटिश सरकार का ध्यान आकर्षित किया।
      • उन्होंने उन लोगों के साथ एकजुटता हेतु एक नेटवर्क बनाया, जो यूरोप के विभिन्न हिस्सों में भारत की आज़ादी के लिये संघर्ष कर रहे थे। इस अवधि में उन्होंने भारतीय क्रांतिकारी संघ (Indian Revolutionary Association) की भी स्थापना की।
    • निर्वासन:
      • मई 1907 में लाला लाजपत राय के साथ सरदार अजीत सिंह को बर्मा के मांडले में निर्वासित कर दिया गया।
      • हालाँकि अत्यधिक सार्वजनिक दबाव और भारतीय सेना में अशांति बढ़ने के कारण के कारण अक्तूबर 1907 में दोनों को रिहा कर दिया गया था।
    • ईरान पलायन:
      • 1909 में सरदार अजीत सिंह सूफी अम्बा प्रसाद के साथ ईरान भाग गए और वहाँ 38 वर्षों तक आत्मरोपित निर्वासन में रहे।
    • मृत्यु:
      • मार्च 1947 में वह भारत वापस लौटे तथा 15 अगस्त, 1947 को डलहौज़ी, पंजाब में उनकी मृत्यु हो गई।

नोट:

  • मध्यकालीन युग के दौरान केवल कुलीन वर्ग के लोगों को पगड़ी पहनने की अनुमति थी परंतु 17वीं शताब्दी में सिख क्रांति के दौरान गुरु गोबिंद सिंह ने इसे अवज्ञा का प्रतीक घोषित किया।
  • उन्होंने पगड़ी से जुड़े भेदभाव को समाप्त करते हुए आम आदमी के लिये अपने आत्मसम्मान का दावा करने और उसे प्राप्त करने का मार्ग प्रसस्त किया।
  • पगड़ी आम आदमी की गरिमा का प्रतिनिधित्व करती है।
  • वर्ष 1907 में 'पगड़ी संभाल जट्टा' अपनी पगड़ी को न गिरने देने (वस्तुत: और लाक्षणिक रूप से) का आह्वान था।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

राष्ट्रीय प्रवासी श्रम नीति का मसौदा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नीति आयोग (NITI Aayog) द्वारा कार्यरत अधिकारियों और सिविल सोसाइटी के सदस्यों के एक उपसमूह के साथ मिलकर राष्ट्रीय प्रवासी श्रम नीति (National Migrant Labour Policy) का मसौदा तैयार किया गया है।

  • इससे पहले दिसंबर 2020 में भारत सरकार द्वारा अनौपचारिक अर्थव्यवस्था (Informal Economy) में श्रमिकों सहित प्रवासी श्रमिकों का एक डेटाबेस बनाने का निर्णय लिया गया।

प्रमुख बिंदु:

  • प्रवासन:
    • प्रवासन (Migration) का आशय अपने मूल या सामान्य निवास स्थान से आंतरिक (देश के भीतर) या अंतर्राष्ट्रीय (देशों के बाहर) सीमाओं के पार लोगों की आवाज़ाही से है।
    • प्रवासन से संबंधित नवीनतम सरकारी डेटा वर्ष 2011 की जनगणना से प्राप्त किये गए हैं। 2011 की जनगणना में भारत में प्रवासियों की कुल संख्या 45.6 करोड़ थी (जनसंख्या का 38%), जबकि वर्ष 2001 की जनगणना में प्रवासियों की कुल संख्या 31.5 करोड़ (जनसंख्या का 31%) थी।
  • प्रवासियों से संबंधित वर्तमान मुद्दे:
    • स्वतंत्र प्रवासी:
      • इंटर स्टेट माइग्रेंट वर्कर्स एक्ट, 1979 (Inter State Migrant Workers Act, 1979) केवल एक ठेकेदार के माध्यम से पलायन करने वाले मज़दूरों को प्रवासी के रूप में शामिल करता है तथा स्वतंत्र प्रवासियों को छोड़ देता है।
    • सामुदायिक संगठन का निर्माण (CBO):
      • प्रवासियों के उद्भव वाले राज्यों में CBO और प्रशासनिक कर्मचारियों की अनुपस्थिति या अभाव के चलते विकास कार्यक्रमों तक उनकी पहुँच बाधित हुई है जिस कारण मजबूरन आदिवासियों को प्रवास करना पड़ता है।
    • राज्य सरकारों की वचनबद्धता का अभाव:
      • राज्य के श्रम विभागों में प्रवासन से संबंधित मुद्दों और मानव तस्करी को रोकने के प्रति प्रतिबद्धता का अभाव देखने को मिलता है।
    • बिचौलिये:
      • आवश्यक मानवशक्ति के अभाव को देखते हुए स्थानीय प्रशासन निगरानी करने में सक्षम नहीं होता है, जिसके कारण प्रायः प्रवासी बिचौलियों/मध्यस्थों के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
  • नीति आयोग के मसौदे का दृष्टिकोण
    • मसौदा नीति का डिज़ाइन दो दृष्टिकोणों का वर्णन करता है:
      • नकद हस्तांतरण, विशेष कोटा और मज़दूरों हेतु आरक्षण पर केंद्रित।
      • समुदायिक संस्थानों और उनकी क्षमता को बढ़ाना तथा उन पहलुओं को समाप्त करना जो किसी व्यक्ति की स्वाभाविक क्षमता निर्माण में बाधा उत्पन्न करते हैं।
  • मसौदे की सिफारिशें:
    • प्रवासन की सुविधा:
      • प्रवासन को विकास के अभिन्न अंग के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिये तथा सरकार की नीतियाँ प्रवासन में बाधक न होकर आंतरिक प्रवास के अनुकूल होनी चाहिये।
    • मज़दूरी में वृद्धि:
      • मसौदे में प्रवासियों की अधिकता वाले राज्यों में आदिवासियों की स्थानीय आजीविका में प्रमुख बदलाव लाने हेतु न्यूनतम मज़दूरी बढ़ाने की बात की गई है जिसके परिणामस्वरूप कुछ हद तक पलायन कम हो सकता है।
    • केंद्रीय डेटाबेस:
      • नियोक्ताओं को ‘मांग और आपूर्ति के मध्य के अंतर को कम करने’ तथा सामाजिक कल्याण योजनाओं का अधिकतम लाभ सुनिश्चित करने हेतु एक केंद्रीय डेटाबेस होना चाहिये।
      • इसमें मंत्रालयों और जनगणना कार्यालय को प्रवासियों और संबंधित आबादी के अनुरूप प्रणाली स्थापित करने, मौसमी और चक्रीय प्रवासियों से संबंधित रिकॉर्ड रखने और मौजूदा सर्वेक्षणों में प्रवासी-विशिष्ट चरों को शामिल करने के लिये कहा गया है।
    • प्रवास संसाधन केंद्र:
      • पंचायती राज, ग्रामीण विकास और आवास और शहरी मामलों के मंत्रालयों को उच्च प्रवास क्षेत्रों में प्रवास संसाधन केंद्र बनाने में मदद करने हेतु जनजातीय मामलों के प्रवासन डेटा का उपयोग करना चाहिये।
      • कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय को इन केंद्रों में कौशल निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
    • शिक्षा:
      • शिक्षा मंत्रालय को शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के तहत मुख्यधारा के प्रवासी बच्चों की शिक्षा एवं उनका डेटा तैयार करना और प्रवासी स्थानों में स्थानीय भाषा के शिक्षकों की नियुक्ति हेतु प्रयास करना चाहिये।
    • आश्रय और आवास:
      • आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय को शहरों में प्रवासियों हेतु रैन बसेरों, अल्प-प्रवास वाले घरों तथा मौसमी आवास के मुद्दों को संबोधित करना चाहिये।
    • शिकायत हैंडलिंग सेल:
      • राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (National Legal Services authority- NALSA) और श्रम मंत्रालय को प्रवासी श्रमिकों की तस्करी, न्यूनतम मज़दूरी उल्लंघन, कार्यस्थल पर दुर्व्यवहार और दुर्घटनाओं हेतु शिकायत निवारण कक्ष एवं फास्ट ट्रैक कानूनी प्रतिक्रियाएंँ स्थापित करनी चाहिये।
  • पूर्व सिफारिशें:
    • जनवरी 2017 में आवास और शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय द्वारा जारी वर्किंग ग्रुप ऑन माइग्रेशन की रिपोर्ट ने इन श्रमिकों हेतु एक व्यापक कानून की सिफारिश की गई, जो सामाजिक सुरक्षा हेतु कानूनी आधार तैयार करता है।
      • यह सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय के तहत असंगठित क्षेत्र में राष्ट्रीय उद्यम आयोग द्वारा वर्ष 2007 की रिपोर्ट की सिफारिशों के अनुरूप था।

आगे की राह:

  • कल्याण एवं सामाजिक सुरक्षा के लिये अधिकार-आधारित दृष्टिकोण केवल तभी कार्य करेगा, जब श्रमिकों के पास एक विशिष्ट एजेंसी होगी। अतीत में यह देखा गया है कि श्रमिकों के संघीकरण और लामबंदी ने राजनीतिक दलों और सरकारों को कल्याण को औद्योगिक विकास के एक अनिवार्य पहलू के रूप में देखने के लिये मजबूर किया है।
  • सरकार ने कल्याणकारी योजनाओं की पोर्टेबिलिटी सुनिश्चित करने हेतु कई कदम उठाए हैं, खासकर राज्य की सीमाओं से परे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) तक पहुँच सुनिश्चित करने में, हालाँकि अभी इस क्षेत्र में बहुत कुछ किया जाना शेष है।
  • नीति आयोग द्वारा प्रस्तुत मसौदा औपचारिक कार्यबल के भीतर प्रवासी श्रमिकों को एकीकृत करते हुए श्रम-पूंजी संबंधों को फिर से स्थापित करने का संकेत देता है जो एक प्रतिस्पर्द्धी अर्थव्यवस्था के निर्माण के लिये आवश्यक है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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