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राष्ट्रीय प्रवासी श्रम नीति का मसौदा

  • 25 Feb 2021
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नीति आयोग (NITI Aayog) द्वारा कार्यरत अधिकारियों और सिविल सोसाइटी के सदस्यों के एक उपसमूह के साथ मिलकर राष्ट्रीय प्रवासी श्रम नीति (National Migrant Labour Policy) का मसौदा तैयार किया गया है।

  • इससे पहले दिसंबर 2020 में भारत सरकार द्वारा अनौपचारिक अर्थव्यवस्था (Informal Economy) में श्रमिकों सहित प्रवासी श्रमिकों का एक डेटाबेस बनाने का निर्णय लिया गया।

प्रमुख बिंदु:

  • प्रवासन:
    • प्रवासन (Migration) का आशय अपने मूल या सामान्य निवास स्थान से आंतरिक (देश के भीतर) या अंतर्राष्ट्रीय (देशों के बाहर) सीमाओं के पार लोगों की आवाज़ाही से है।
    • प्रवासन से संबंधित नवीनतम सरकारी डेटा वर्ष 2011 की जनगणना से प्राप्त किये गए हैं। 2011 की जनगणना में भारत में प्रवासियों की कुल संख्या 45.6 करोड़ थी (जनसंख्या का 38%), जबकि वर्ष 2001 की जनगणना में प्रवासियों की कुल संख्या 31.5 करोड़ (जनसंख्या का 31%) थी।
  • प्रवासियों से संबंधित वर्तमान मुद्दे:
    • स्वतंत्र प्रवासी:
      • इंटर स्टेट माइग्रेंट वर्कर्स एक्ट, 1979 (Inter State Migrant Workers Act, 1979) केवल एक ठेकेदार के माध्यम से पलायन करने वाले मज़दूरों को प्रवासी के रूप में शामिल करता है तथा स्वतंत्र प्रवासियों को छोड़ देता है।
    • सामुदायिक संगठन का निर्माण (CBO):
      • प्रवासियों के उद्भव वाले राज्यों में CBO और प्रशासनिक कर्मचारियों की अनुपस्थिति या अभाव के चलते विकास कार्यक्रमों तक उनकी पहुँच बाधित हुई है जिस कारण मजबूरन आदिवासियों को प्रवास करना पड़ता है।
    • राज्य सरकारों की वचनबद्धता का अभाव:
      • राज्य के श्रम विभागों में प्रवासन से संबंधित मुद्दों और मानव तस्करी को रोकने के प्रति प्रतिबद्धता का अभाव देखने को मिलता है।
    • बिचौलिये:
      • आवश्यक मानवशक्ति के अभाव को देखते हुए स्थानीय प्रशासन निगरानी करने में सक्षम नहीं होता है, जिसके कारण प्रायः प्रवासी बिचौलियों/मध्यस्थों के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
  • नीति आयोग के मसौदे का दृष्टिकोण
    • मसौदा नीति का डिज़ाइन दो दृष्टिकोणों का वर्णन करता है:
      • नकद हस्तांतरण, विशेष कोटा और मज़दूरों हेतु आरक्षण पर केंद्रित।
      • समुदायिक संस्थानों और उनकी क्षमता को बढ़ाना तथा उन पहलुओं को समाप्त करना जो किसी व्यक्ति की स्वाभाविक क्षमता निर्माण में बाधा उत्पन्न करते हैं।
  • मसौदे की सिफारिशें:
    • प्रवासन की सुविधा:
      • प्रवासन को विकास के अभिन्न अंग के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिये तथा सरकार की नीतियाँ प्रवासन में बाधक न होकर आंतरिक प्रवास के अनुकूल होनी चाहिये।
    • मज़दूरी में वृद्धि:
      • मसौदे में प्रवासियों की अधिकता वाले राज्यों में आदिवासियों की स्थानीय आजीविका में प्रमुख बदलाव लाने हेतु न्यूनतम मज़दूरी बढ़ाने की बात की गई है जिसके परिणामस्वरूप कुछ हद तक पलायन कम हो सकता है।
    • केंद्रीय डेटाबेस:
      • नियोक्ताओं को ‘मांग और आपूर्ति के मध्य के अंतर को कम करने’ तथा सामाजिक कल्याण योजनाओं का अधिकतम लाभ सुनिश्चित करने हेतु एक केंद्रीय डेटाबेस होना चाहिये।
      • इसमें मंत्रालयों और जनगणना कार्यालय को प्रवासियों और संबंधित आबादी के अनुरूप प्रणाली स्थापित करने, मौसमी और चक्रीय प्रवासियों से संबंधित रिकॉर्ड रखने और मौजूदा सर्वेक्षणों में प्रवासी-विशिष्ट चरों को शामिल करने के लिये कहा गया है।
    • प्रवास संसाधन केंद्र:
      • पंचायती राज, ग्रामीण विकास और आवास और शहरी मामलों के मंत्रालयों को उच्च प्रवास क्षेत्रों में प्रवास संसाधन केंद्र बनाने में मदद करने हेतु जनजातीय मामलों के प्रवासन डेटा का उपयोग करना चाहिये।
      • कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय को इन केंद्रों में कौशल निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
    • शिक्षा:
      • शिक्षा मंत्रालय को शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के तहत मुख्यधारा के प्रवासी बच्चों की शिक्षा एवं उनका डेटा तैयार करना और प्रवासी स्थानों में स्थानीय भाषा के शिक्षकों की नियुक्ति हेतु प्रयास करना चाहिये।
    • आश्रय और आवास:
      • आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय को शहरों में प्रवासियों हेतु रैन बसेरों, अल्प-प्रवास वाले घरों तथा मौसमी आवास के मुद्दों को संबोधित करना चाहिये।
    • शिकायत हैंडलिंग सेल:
      • राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (National Legal Services authority- NALSA) और श्रम मंत्रालय को प्रवासी श्रमिकों की तस्करी, न्यूनतम मज़दूरी उल्लंघन, कार्यस्थल पर दुर्व्यवहार और दुर्घटनाओं हेतु शिकायत निवारण कक्ष एवं फास्ट ट्रैक कानूनी प्रतिक्रियाएंँ स्थापित करनी चाहिये।
  • पूर्व सिफारिशें:
    • जनवरी 2017 में आवास और शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय द्वारा जारी वर्किंग ग्रुप ऑन माइग्रेशन की रिपोर्ट ने इन श्रमिकों हेतु एक व्यापक कानून की सिफारिश की गई, जो सामाजिक सुरक्षा हेतु कानूनी आधार तैयार करता है।
      • यह सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय के तहत असंगठित क्षेत्र में राष्ट्रीय उद्यम आयोग द्वारा वर्ष 2007 की रिपोर्ट की सिफारिशों के अनुरूप था।

आगे की राह:

  • कल्याण एवं सामाजिक सुरक्षा के लिये अधिकार-आधारित दृष्टिकोण केवल तभी कार्य करेगा, जब श्रमिकों के पास एक विशिष्ट एजेंसी होगी। अतीत में यह देखा गया है कि श्रमिकों के संघीकरण और लामबंदी ने राजनीतिक दलों और सरकारों को कल्याण को औद्योगिक विकास के एक अनिवार्य पहलू के रूप में देखने के लिये मजबूर किया है।
  • सरकार ने कल्याणकारी योजनाओं की पोर्टेबिलिटी सुनिश्चित करने हेतु कई कदम उठाए हैं, खासकर राज्य की सीमाओं से परे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) तक पहुँच सुनिश्चित करने में, हालाँकि अभी इस क्षेत्र में बहुत कुछ किया जाना शेष है।
  • नीति आयोग द्वारा प्रस्तुत मसौदा औपचारिक कार्यबल के भीतर प्रवासी श्रमिकों को एकीकृत करते हुए श्रम-पूंजी संबंधों को फिर से स्थापित करने का संकेत देता है जो एक प्रतिस्पर्द्धी अर्थव्यवस्था के निर्माण के लिये आवश्यक है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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