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डेली न्यूज़

  • 24 Jun, 2022
  • 44 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

आर्द्रभूमि संरक्षण

प्रिलिम्स के लिये:

आर्द्रभूमि संरक्षण, मैंग्रोव, पीटलैंड, पारिस्थितिकी तंत्र 

मेन्स के लिये:

आर्द्रभूमि और उसका महत्त्व, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट 

चर्चा में क्यों?  

एक नई रिपोर्ट के अनुसार, प्रभावी कार्बन पृथक्करण हेतु आगामी जैव विविधता और जलवायु परिवर्तन सम्मेलन वार्ता में आर्द्रभूमि संरक्षण को चर्चा के एक स्वतंत्र विषय के रूप में देखा जाना चाहिये। 

  • कार्बन पृथक्करण के तहत पौधों, मिट्टी, भूगर्भिक संरचनाओं और महासागर में कार्बन का दीर्घकालिक भंडारण होता है। 
  • वेटलैंड्स इंटरनेशनल, एक वैश्विक गैर-लाभकारी संस्था के विशेषज्ञों ने एक नए श्वेतपत्र में आर्द्रभूमि की रक्षा और पुनर्स्थापना के लिये पाँच वैश्विक, विज्ञान-आधारित संरक्षण प्रयासों का सुझाव दिया।. 
  • ये सुझाव मॉन्ट्रियल, कनाडा में आयोजित होने वाली जैविक विविधता पर कन्वेंशन हेतु COP-15 और बाद में मिस्र में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के COP-27 में दिये गए।  

वेटलैंड्स इंटरनेशनल द्वारा 2030 तक हासिल किये जाने वाले पाँच सुझाए गए लक्ष्य: 

  • शेष अप्रशिक्षित पीटलैंड कार्बन स्टोर को बरकरार रखा जाना चाहिये और 10 मिलियन हेक्टेयर सूखे पीटलैंड की ज़रूरत को बहाल किया जाना चाहिये। 
  • 20% वैश्विक मैंग्रोव कवर क्षेत्र। 
  • मुक्त बहने वाली नदियों और बाढ़ के मैदानों का संरक्षण, साथ ही क्षेत्र में बाढ़ के मैदान पारिस्थितिकी तंत्र और इसके कार्य को बहाल करने में वृद्धि। 
  • ज्वारीय समतल क्षेत्र में पश्चिम अफ्रीकी नदी वोल्टा के क्षेत्र में 10% वृद्धि। 
  • अनुकूल प्रबंधन के तहत आने वाले फ्लाईवे के साथ 7,000 गंभीर रूप से महत्त्वपूर्ण स्थलों में से 50 प्रतिशत की पहचान। 

आर्द्रभूमि: 

  • आर्द्रभूमि ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ जल पर्यावरण और संबंधित पौधे व पशु जीवन को नियंत्रित करने वाला प्राथमिक कारक है।  
  • आर्द्रभूमि को इस प्रकार परिभाषित किया गया है: "स्थलीय और जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के बीच संक्रमणकालीन भूमि जहाँ जल आमतौर पर सतह पर होता है या भूमि उथले पानी से ढकी होती है"।  

आर्द्रभूमि का महत्त्व: 

  • अत्यधिक उत्पादक पारिस्थितिक तंत्र: वेटलैंड्स अत्यधिक उत्पादक पारिस्थितिक तंत्र हैं जो दुनिया को मत्स्य उत्पादन का लगभग दो-तिहाई हिस्सा प्रदान करते हैं। 
  • वाटरशेड पारिस्थितिकी में एक अभिन्न भूमिका: वेटलैंड्स वाटरशेड की पारिस्थितिकी में एक अभिन्न भूमिका निभाते हैं। उथला पानी उच्च स्तर के पोषक तत्त्वों का संयोजन जीवों के विकास के लिये आदर्श है जो खाद्य वेब का आधार बनाते हैं और मछली, उभयचर, शंख व कीड़ों की कई प्रजातियों को भोजन प्रदान करते हैं। 
  • कार्बन पृथक्करण: आर्द्रभूमि के रोगाणु, पौधे और वन्यजीव पानी, नाइट्रोजन और सल्फर के वैश्विक चक्रों का हिस्सा हैं। आर्द्रभूमि कार्बन को कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में वातावरण में छोड़ने के बजाय अपने संयंत्र समुदायों और मिट्टी के भीतर संग्रहीत करती है। 
  • बाढ़ के स्तर और मिट्टी के कटाव को कम करना: आर्द्रभूमियाँ प्राकृतिक बाधाओं के रूप में कार्य करती हैं जो सतही जल, वर्षा, भूजल और बाढ़ के पानी को अवशोषित करती हैं और धीरे-धीरे इसे फिर से पारिस्थितिकी तंत्र में छोड़ती है। आर्द्रभूमि वनस्पति बाढ़ के पानी की गति को भी धीमा कर देती है जिससे मिट्टी के कटाव कमी आती है। 
  • मानव और ग्रह जीवन के लिये महत्त्वपूर्ण: आर्द्रभूमि मानव और पृथ्वी पर जीवन के लिये महत्त्वपूर्ण है। एक अरब से अधिक लोग जीवन यापन के लिये उन पर निर्भर हैं और दुनिया की 40% प्रजातियाँ आर्द्रभूमि में रहती हैं एवं प्रजनन करती हैं।
  • आर्द्रभूमि भोजन, कच्चे माल, औषधियों के आनुवंशिक संसाधनों और जल विद्युत के लिये महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। 
  • वे परिवहन, पर्यटन और लोगों की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक भलाई में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 
  • जानवरों और पौधों हेतु आवास: वे जानवरों एवं पौधों के लिये आवास प्रदान करते हैं साथ ही इनमें जीवन की विस्तृत विविधता होती है, पौधों और जानवरों का सहयोग करते हैं, इस तरह की विशेषता कहीं और देखने को नहीं मिलती है। 
  • प्राकृतिक सौंदर्य के क्षेत्र: कई आर्द्रभूमि प्राकृतिक सौंदर्य के क्षेत्र हैं और पर्यटन को बढ़ावा देते हैं साथ ही कई आदिवासी समुदायों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। 
  • औद्योगिक लाभ: आर्द्रभूमि उद्योग को महत्त्वपूर्ण लाभ भी प्रदान करती है। उदाहरण के लिये वे मछली और अन्य मीठे जल तथा समुद्री जीवन के लिये संवर्द्धन स्थान प्रदान करते हैं और यह वाणिज्यिक एवं मनोरंजक मछली पकड़ने के उद्योगों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। 

आर्द्रभूमि को खतरा: 

  • शहरीकरण: शहरी केंद्रों के पास आवासीय, औद्योगिक और वाणिज्यिक सुविधाओं के विकास के कारण आर्द्रभूमि पर दबाव बढ़ रहा है। सार्वजनिक जल आपूर्ति को संरक्षित करने के लिये शहरी आर्द्रभूमि आवश्यक हैं। 
  • कृषि: आर्द्रभूमि के विशाल हिस्सों को धान के खेतों में बदल दिया गया है। सिंचाई के लिये बड़ी संख्या में जलाशयों, नहरों और बांँधों के निर्माण ने संबंधित आर्द्रभूमि के जल स्वरुप को महत्त्वपूर्ण रूप से बदल दिया है। 
  • प्रदूषण: आर्द्रभूमि प्राकृतिक जल फिल्टर के रूप में कार्य करती है। हालांँकि वे केवल कृषि अपवाह से उर्वरकों और कीटनाशकों को साफ कर सकते हैं लेकिन औद्योगिक स्रोतों से निकले पारा और  अन्य प्रकार के प्रदूषण को नहीं। 
    • पेयजल आपूर्ति और आर्द्रभूमि की जैव विविधता पर औद्योगिक प्रदूषण के प्रभाव के बारे में चिंता बढ़ रही है। 
  • जलवायु परिवर्तन: वायु के तापमान में वृद्धि, वर्षा में बदलाव, तूफान, सूखा और बाढ़ की आवृत्ति में वृद्धि, वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड संचयन में वृद्धि और समुद्र के स्तर में वृद्धि भी आर्द्रभूमि को प्रभावित कर सकती है। 
  • तलकर्षण: आर्द्रभूमि या नदी तल से सामग्री को हटाना। जलधाराओं का तलकर्षण आसपास के जल स्तर को कम करता है और तथा आसन्न आर्द्रभूमियों को सुखाता है। 
  • ड्रेनिंग: वेटलैंड्स से पानी निकाला जाता है। इससे जल स्तर कम हो जाता है और आर्द्रभूमि सूख जाती है। 
  • नुकसानदेह प्रजातियाँ: भारतीय आर्द्रभूमियों को जलकुंभी और साल्विनिया जैसी नुकसानदेह पौधों की प्रजातियों से खतरा है। वे जलमार्गों को रोकते हैं और देशी वनस्पतियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करते हैं। 
  • लवणीकरण : भूजल के अत्यधिक दोहन से लवणीकरण की स्थिति उत्पन्न हुई है। 

आर्द्रभूमि संरक्षण की दिशा में क्या प्रयास किये गए हैं? 

आगे की राह 

  • अनियोजित शहरीकरण और बढ़ती आबादी का मुकाबला करने के लिये, आर्द्रभूमि प्रबंधन योजना, निष्पादन और निगरानी के संदर्भ में एक एकीकृत दृष्टिकोण होना चाहिये। 
  • आर्द्रभूमि के समग्र प्रबंधन के लिये पारिस्थितिकीविदों, वाटरशेड प्रबंधन विशेषज्ञों, योजनाकारों और निर्णय निर्माताओं सहित शिक्षाविदों और पेशेवरों के बीच प्रभावी सहयोग। 
  • वेटलैंड्स के महत्त्व के बारे में जागरूकता कार्यक्रम शुरू करके और उनके पानी की गुणवत्ता के लिये वेटलैंड्स की निरंतर निगरानी करके वेटलैंड्स को और खराब होने से बचाने के लिये महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलेगी। 

स्रोत : डाउन टू अर्थ 


भारतीय अर्थव्यवस्था

सहकारी बैंक

प्रिलिम्स के लिये:

शहरी सहकारी बैंक, हालिया विकास, शहरी सहकारी बैंकों और क्रेडिट सोसायटी के राष्ट्रीय संघ, बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम, 2002। 

मेन्स के लिये:

सहकारी बैंकों की विशेषताएंँ और चुनौतियांँ। 

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में गृह मामलों और सहकारिता मंत्री ने शहरी सहकारी बैंकों और ऋण समितियों के राष्ट्रीय संघ (NAFCUB) द्वारा आयोजित एक सम्मेलन को संबोधित किया है, जिसमें शहरी सहकारी बैंकों (UCB) के लिये आवश्यक सुधारों पर ज़ोर दिया गया है। 

  • NAFCUB देश में शहरी सहकारी बैंकों और क्रेडिट सोसायटी लिमिटेड का एक शीर्ष स्तर का निकाय है। इसका उद्देश्य शहरी सहकारी ऋण की गति को बढ़ावा देना और क्षेत्र के हितों की रक्षा करना है। 

सहकारी बैंक: 

  • परिचय: 
    • यह साधारण बैंकिंग व्यवसाय से निपटने के लिये सहकारी आधार पर स्थापित एक संस्था है। सहकारी बैंकों की स्थापना शेयरों के माध्यम से धन एकत्र करने, जमा स्वीकार करने और ऋण देने के द्वारा की जाती है। 
    • ये सहकारी ऋण समितियाँ हैं जहाँ एक समुदाय समूह के सदस्य एक-दूसरे को अनुकूल शर्तों पर ऋण प्रदान करते हैं। 
    • वे संबंधित राज्य के सहकारी समिति अधिनियम या बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम, 2002 के तहत पंजीकृत हैं। 
    • सहकारी बैंक निम्न द्वारा शासित होते हैं: 
    • वे प्रमुख रूप से शहरी और ग्रामीण सहकारी बैंकों में विभाजित हैं। 
  • विशेषताएँ: 
    • ग्राहक के स्वामित्व वाली संस्थाएंँ: सहकारी बैंक के सदस्य बैंक के ग्राहक और मालिक दोनों होते हैं। 
    • लोकतांत्रिक सदस्य नियंत्रण: इन बैंकों का स्वामित्व और नियंत्रण सदस्यों के पास होता है, जो लोकतांत्रिक तरीके से निदेशक मंडल का चुनाव करते हैं। सदस्यों के पास आमतौर पर "एक व्यक्ति, एक वोट" के सहकारी सिद्धांत के अनुसार समान मतदान अधिकार होते हैं। 
    • लाभ आवंटन: वार्षिक लाभ, लाभ या अधिशेष का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा आमतौर पर आरक्षित करने के लिये आवंटित किया जाता है और इस लाभ का एक हिस्सा सहकारी सदस्यों को भी कानूनी और वैधानिक सीमाओं के साथ वितरित किया जा सकता है। 
    • वित्तीय समावेशन: उन्होंने बैंक रहित ग्रामीण लोगों के वित्तीय समावेशन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वे ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को सस्ता ऋण प्रदान करते हैं। 
  • शहरी सहकारी बैंक (UCB): 
    • शहरी सहकारी बैंक (UCB) शब्द औपचारिक रूप से परिभाषित नहीं है, लेकिन शहरी और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में स्थित प्राथमिक सहकारी बैंकों को संदर्भित करता है। 
    • शहरी सहकारी बैंक (UCB), प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ (PACS), क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRB) और स्थानीय क्षेत्र बैंक (LAB) स्थानीय क्षेत्रों में काम करते हैं इसलिये इन्हें अलग-अलग बैंक माना जा सकता है। 
    • वर्ष 1996 तक इन बैंकों को केवल गैर-कृषि उद्देश्यों के लिये धन उधार देने की अनुमति थी।  
    • पारंपरिक रूप से UCBs का कार्य छोटे समुदायों, क्षेत्र के कार्य समूहों तक केंद्रित थे और इनका उद्देश्य छोटे व्यवसायियों को धन उपलब्ध कराना और स्थानीय लोगों को बैंकिंग प्रणाली से जोड़ना था। आज उनके संचालन का दायरा काफी व्यापक हो गया है। 

सहकारी बैंकों के सामने आने वाली चुनौतियाँ: 

  • वित्तीय क्षेत्र में बदलते रुझान: 
    • वित्तीय क्षेत्र में परिवर्तन और विकसित होते माइक्रोफाइनेंस, फिनटेक कंपनियाँं, पेमेंट गेटवे, सोशल प्लेटफॉर्म, ई-कॉमर्स कंपनिया और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँं (NBFC) UCB की निरंतर उपस्थिति को चुनौती देती हैं, जो ज्यादातर आकार में छोटे, पेशेवर प्रबंधन की कमी और भौगोलिक रूप से कम विविधीकृत हैं। 
  • दोहरा नियंत्रण: 
    • UCB स्टेट रजिस्ट्रार ऑफ सोसाइटी और RBI द्वारा दोहरे विनियमन के अंतर्गत आते थे। 
    • लेकिन वर्ष 2020 में सभी UCB और बहु-राज्य सहकारी समितियों को आरबीआई की सीधी निगरानी में लाया गया। 
  • मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार: 
    • सहकारी समितियाँ भी नियामक मध्यस्थता का जरिया बन गई हैं, 
    • उधार देने और मनी लॉन्ड्रिंग रोधी नियमों को दरकिनार करना। 
    • पंजाब और महाराष्ट्र सहकारी (PMC) बैंक घोटाले के मामले की जाँच से पता चला है कि इसने सकल वित्तीय कुप्रबंधन और आंतरिक नियंत्रण तंत्र पूरी तरह से भंग कर दिया है। 
  • कृषि ऋण में गिरावट: 
    • RBI की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस क्षेत्र द्वारा निभाई गई महत्त्वपूर्ण भूमिका के बावजूद कुल कृषि ऋण में इसकी हिस्सेदारी वर्ष 1992-93 में 64% से कम होकर वर्ष 2019-20 में सिर्फ 11.3% हो गई। 
  • अनुचित लेखा परीक्षा: 
    • यह सर्वविदित है कि लेखा परीक्षा पूरी तरह से विभाग के अधिकारियों द्वारा की जाती है और यह न तो नियमित होती है और न ही व्यापक होती है। ऑडिट के संचालन और रिपोर्ट प्रस्तुत करने में व्यापक देरी होती है। 
  • सरकारी हस्तक्षेप: 
    • सरकार ने शुरू से ही आंदोलन को संरक्षण देने का रवैया अपनाया है। सहकारी संस्थाओं के साथ ऐसा व्यवहार किया गया मानो ये सरकार के प्रशासनिक ढाँचें का हिस्सा हों। 
  • सीमित कवरेज: 
    • इन समितियों का आकार बहुत छोटा रहा है। इनमें से अधिकांश समितियाँ कुछ सदस्यों तक ही सीमित हैं और उनका संचालन केवल एक या दो गाँवों तक ही सीमित है। परिणामस्वरूप उनके संसाधन सीमित रहते हैं, जिससे उनके लिये अपने साधनों का विस्तार करना तथा अपने संचालन के क्षेत्र का विस्तार करना असंभव हो जाता है। 

हालिया घटनाक्रम: 

  • जनवरी 2020 में, RBI ने UCBs के लिये ‘विशेष पर्यवेक्षी और नियामक संवर्ग (Supervisory action Framework- SAF) को संशोधित किया। 
  • जून 2020 में केंद्र सरकार ने सभी शहरी और बहु-राज्य सहकारी बैंकों को RBI की सीधी निगरानी में लाने के लिये एक अध्यादेश को मंज़ूरी दी। 
  • वर्ष 2021 में RBI द्वारा एक समिति नियुक्त की गई जिसने UCBs के लिये 4 स्तरीय संरचना का सुझाव दिया। 
    • टियर 1: सभी यूनिट यूसीबी और वेतन पाने वाले यूसीबी (जमा आकार के बावजूद) तथा अन्य सभी यूसीबी जिनके पास 100 करोड़ रुपए तक जमा हैं। 
    • टियर 2: 100 करोड़ रुपए से 1,000 करोड़ रुपए के बीच जमा राशि वाले यूसीबी। 
    • टियर 3: 1,000 करोड़ रुपए से 10,000 करोड़ रुपए के बीच जमा राशि वाले यूसीबी। 
    • टियर 4: 10,000 करोड़ रुपए से अधिक की जमा राशि वाले यूसीबी। 

आगे की राह: 

  • देश के समर्पित सहकारिता मंत्रालय की स्थापना सहकारिता आंदोलन के इतिहास के लिये एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा। 
  • RBI को अधिनियम के प्रावधानों की व्याख्या करनी चाहिये ताकि वे UCBs को बाधित न करें और सहकारी बैंकिंग प्रणाली में लोगों का विश्वास बहाल हो। 
  • एक मज़बूत लेखा प्रणाली के भर्ती और कार्यान्वयन में पारदर्शिता जैसे संस्थागत सुधारों की आवश्यकता है, जो उनके विकास के लिये आवश्यक हैं। 
  • प्रबंधकीय भूमिकाओं में नए लोगों, युवाओं और पेशेवरों को लाने की ज़रूरत है, जो सहकारिता को आगे बढ़ाएंँगे। 
  • NAFCUB को शहरी ऋण सहकारी समितियों पर विशेष रूप से उनके लेखांकन सॉफ्टवेयर और उनके सामान्य उपनियमों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। 
  • हर शहर में एक अच्छा शहरी सहकारी बैंक होना समय और देश की ज़रूरत है। NAFCUB को सहकारी बैंकों की समस्याओं को न केवल उठाना चाहिये बल्कि उनका समाधान करना चाहिये साथ ही सममित विकास के लिये भी बेहतर काम करना चाहिये। 

विगत वर्षों के प्रश्न: 

प्रश्न: भारत में 'शहरी सहकारी बैंकों' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:  

  1. उनका पर्यवेक्षण और विनियमन राज्य सरकारों द्वारा स्थापित स्थानीय बोर्डों द्वारा किया जाता है।
  2. वे इक्विटी शेयर और वरीयता शेयर जारी कर सकते हैं।
  3. उन्हें 1966 में एक संशोधन के माध्यम से बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के दायरे में लाया गया था।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?  

(a) केवल 1  
(b) केवल 2 और 3  
(c) केवल 1 और 3   
(d) 1, 2 और 3  

उत्तर: (b)  

  • सहकारी बैंक वित्तीय संस्थाएँ हैं जो इसके सदस्यों से संबंधित हैं, जो एक ही समय में अपने बैंक के मालिक और ग्राहक हैं। वे राज्य के कानूनों द्वारा स्थापित हैं। 
  • भारत में सहकारी बैंक, सहकारी समिति अधिनियम के तहत पंजीकृत हैं। वे आरबीआई द्वारा भी विनियमित होते हैं और बैंकिंग विनियम अधिनियम, 1949 और बैंकिंग कानून (सहकारी समितियाँ) अधिनियम, 1955 द्वारा शासित होते हैं। अतः कथन 3 सही हैैं। 
  • सहकारी बैंक उधार देते हैं और जमा स्वीकार करते हैं। वे कृषि और संबद्ध गतिविधियों के वित्तपोषण और ग्राम और कुटीर उद्योगों के वित्तपोषण के उद्देश्य से स्थापित किये गए हैं। राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) भारत में सहकारी बैंकों का शीर्ष निकाय है। 
  • शहरी सहकारी बैंकों को एकल-राज्य सहकारी बैंकों के मामले में सहकारी समितियों के राज्य रजिस्ट्रार और बहु-राज्य के मामले में सहकारी समितियों के केंद्रीय रजिस्ट्रार (सीआरसीएस) द्वारा विनियमित और पर्यवेक्षण किया जाता है। अतः कथन 1 सही नहीं है 
  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने प्राथमिक शहरी सहकारी बैंकों को इक्विटी शेयर, अधिमानी शेयर और ऋण लिखत जारी करने के माध्यम से पूंजी बढ़ाने की अनुमति देते हुए मसौदा दिशानिर्देश जारी किये। 
  • शहरी सहकारी बैंक सदस्यों के रूप में नामांकित अपने परिचालन क्षेत्र के व्यक्तियों को इक्विटी जारी करके और मौजूदा सदस्यों को अतिरिक्त इक्विटी शेयरों के माध्यम से शेयर पूंजी जुटा सकते हैं। 
  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने प्राथमिक शहरी सहकारी बैंकों को इक्विटी शेयर, अधिमानी शेयर और ऋण लिखत जारी करने के माध्यम से पूंजी बढ़ाने की अनुमति देते हुए मसौदा दिशानिर्देश जारी किये।  
    • शहरी सहकारी बैंक सदस्यों के रूप में नामांकित अपने परिचालन क्षेत्र के व्यक्तियों को इक्विटी जारी करके और मौजूदा सदस्यों को अतिरिक्त इक्विटी शेयरों के माध्यम से शेयर पूंजी जुटा सकते हैं। अत: कथन 2 सही है। अतः विकल्प (B) सही उत्तर है। 

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस 


भूगोल

बेदती-वरदा नदी को आपस में जोड़ने की परियोजना

प्रिलिम्स के लिये:

बेदती-वरदा नदी को आपस में जोड़ने की परियोजना, तुंगभद्रा नदी,  

मेन्स के लिये:

नदियों को आपस में जोड़ने वाली परियोजनाओं के मुद्दे। 

चर्चा में क्यों? 

कर्नाटक में दो पर्यावरण समूहों ने बेदती और वरदा नदियों को जोड़ने की परियोजना की आलोचना करते हुए इसे अवैज्ञानिक और जनता के पैसे की बर्बादी बताया है। 

Bedti-Varada-Link

बेदती-वरदा परियोजना: 

  • बेदती-वरदा परियोजना की परिकल्पना वर्ष 1992 में पेयजल की आपूर्ति के लिये की गई थी । 
  • इस योजना का उद्देश्य अरब सागर की ओर पश्चिम में बहने वाली एक नदी बेदती को तुंगभद्रा नदी की एक सहायक नदी वरदा के साथ जोड़ना है, जो कृष्णा नदी में मिलकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। 
  • गदग ज़िले के हिरेवाडट्टी में एक विशाल बाँध बनाया जाएगा। 
  • उत्तर कन्नड़ ज़िले के सिरसी के मेनासागोडा में पट्टनहल्ला नदी पर एक दूसरा बाँध बनाया जाएगा। 
  • दोनों बाँध सुरंगों के माध्यम से वरदा तक पानी ले जाएंगे। 
  • पानी केंगरे तक पहुँच जाएगा और फिर हक्कालुमाने तक 6.88 किमी. की सुरंग से नीचे प्रवाहित होगा, जहाँ यह वरदा में शामिल हो जाएगा। 
  • इस प्रकार इस परियोजना में उत्तर कन्नड़ ज़िले के सिरसी-येलापुरा क्षेत्र के जल को रायचूर, गडग और कोप्पल ज़िलों के शुष्क क्षेत्रों में ले जाने की परिकल्पना की गई है। 
  • बेदती और वरदा नदियों की पट्टनहल्ला (Pattanahalla) और शाल्मलाहल्ला (Shalmalahalla) सहायक नदियों से कुल 302 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी, जबकि 222 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी बेदती नदी के विपरीत बने सुरेमाने बैराज से निकाला जाएगा। 
  • गडग तक पानी खींचने के लिये परियोजना को 61 मेगावाट बिजली की आवश्यकता होगी। इसके बाद भी यह पता नहीं चल पाया है कि पानी गडग तक पहुंँचेगा या नहीं। 

परियोजना से जुड़े मुद्दे: 

  • मार्ग के पुन:निर्धारण में मुश्किल : 
    • पश्चिम की ओर बहने वाली नदी को पूर्व की ओर बहने के लिये पुनर्निर्देशित करना कठिन कार्य है। 
  • वर्षा जल पर निर्भर नदियाँ: 
    • गर्मियों की शुरुआत में, बेदती और वरदा नदियाँ सूखने लगती हैं।.  
    • यह एक दुखद विडंबना है कि सरकार द्वारा नियुक्त वैज्ञानिक इन नदियों को पीने का पानी उपलब्ध कराने के बहाने आपस में जोड़ने की योजना बना रहे हैं, यह जानते हुए भी कि वे पूरे साल नहीं बहती हैं।  
  • उचित प्रोजेक्ट रिपोर्ट का अभाव: 
    • सिंचाई विभाग द्वारा तैयार की गई विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (Detailed Project Report- DPR) सटीक नहीं है क्योंकि यह पानी की उपलब्धता का आकलन किये बिना और बेदती-अघानाशिनी और वरदा नदियों के अंतर्संबंध पर राष्ट्रीय जल विकास एजेंस(National Water Development Agency- NWDA) की रिपोर्ट के अवलोकन को उद्धृत किये बिना तैयार की गई थी। 
  • पर्यावरणीय प्रभाव : 
    • 500 एकड़ से ज्यादा जंगल खत्म हो जाएँगे। अंततः परिणाम यह होगा कि पानी की भी काफी कमी हो जाएगी। 
    • इस परियोजना से वनस्पतियों और जीवों को भी नुकसान होगा। 
    • प्रकृति के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संघ द्वारा बेदती घाटी को एक सक्रिय जैव विविधता क्षेत्र के रूप में नामित किया गया है। 
    • यह क्षेत्र 1,741 प्रकार के फूलों के पौधों के साथ-साथ पक्षियों और जानवरों की 420 प्रजातियों का आवास है। 
    • नदी के साथ जो पोषक तत्त्व होते हैं, वे विशेष रूप से देदी में बेदती के मुहाने पर मछली के भंडार को बनाए रखने के लिये उत्तरदायी होते हैं। 
    • नदी घाटी लगभग 35 विभिन्न पशु प्रजातियों के लिये गलियारे (corridor) के रूप में कार्य करती है। मुहाना क्षेत्र में बेदती को गंगावली के नाम से जाना जाता है। 
  • हजारों लोगों के प्रभावित जीवन: 
    • बेदती और वरदा नदियाँ तट के किनारे मछली पकड़ने वाले समुदायों के अलावा, पश्चिमी घाट की तलहटी, मालेनाडु क्षेत्र में हज़ारों किसानों के लिये जीवन जीने का आधार है। 

आगे की राह: 

  • नदियों को आपस में जोड़ने के अपने लाभ और नुकसान हैं, लेकिन आर्थिक, राजनीतिक और पर्यावरणीय प्रभावों को देखते हुए इस परियोजना को केंद्रीकृत राष्ट्रीय स्तर पर लागू करना एक समझदारी भरा निर्णय नहीं हो सकता है। 
  • इसके बजाय नदियों को जोड़ने का विकेन्द्रीकृत तरीके से अनुसरण किया जा सकता है, और बाढ़ एवं सूखे को कम करने के लिये वर्षा जल संचयन जैसे अधिक टिकाऊ तरीकों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। 

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न: 

प्रश्न: हाल ही में निम्नलिखित में से किन नदियों को आपस में जोड़ने का कार्य शुरू किया गया है? (2016)  

(a)  कावेरी और तुंगभद्रा 
(b)  गोदावरी और कृष्णा 
(c)  महानदी और सोन 
(d)  नर्मदा और ताप्ती  

उत्तर: (b) 

व्याख्या: 

  • गोदावरी और कृष्णा नदियों को आंध्र प्रदेश के पश्चिमी गोदावरी ज़िले में पट्टीसीमा लिफ्ट सिंचाई परियोजना के तहत आपस में जोड़ा गया था। 

अतः विकल्प (b) सही है। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ 


भारतीय राजनीति

फ्लोर टेस्ट संबंधी राज्यपाल का अधिकार

प्रिलिम्स के लिये:

फ्लोर टेस्ट, संवैधानिक प्रावधान, राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियांँ 

मेन्स के लिये:

राज्यपाल की समन शक्तियों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान 

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में महाराष्ट्र में चल रहे  सियासी संकट में राज्यपाल का फ्लोर टेस्ट कराने का निर्णय एक बार फिर चर्चा में बना हुआ है 

प्रमुख बिंदु: 

फ्लोर टेस्ट से संबंधित राज्यपाल के संवैधानिक प्रावधान: 

परिचय: 

  • अनुच्छेद 174 -राज्यपाल को राज्य विधानसभा को बुलाने, भंग करने और सत्रावसान करने का अधिकार देता है। 
  • संविधान का अनुच्छेद 174 (2) (b) राज्यपाल को कैबिनेट की सहायता और सलाह पर विधानसभा को भंग करने की शक्ति प्रदान करता है  हालाँकि राज्यपाल अपने विवेक का तब प्रयोग  कर सकता है जब ऐसा मुख्यमंत्री सलाह प्रदान करता है, जिसका बहुमत संदेह में हो सकता है। 
    • अनुच्छेद 175 (2) के अनुसार, राज्यपाल सदन का सत्र आहूत कर  सकता है और यह साबित करने के लिये फ्लोर टेस्ट का आह्वान कर सकता है कि सरकार के पास विधायकों की पर्याप्त संख्या है या नहीं।  
  • हालाँकि, राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 163 के अनुसार ही उपरोक्त शक्ति का प्रयोग कर सकता है जिसके अनुसार राज्यपाल मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करता है। 
  • जब सदन सत्र में होता है, तो अध्यक्ष  फ्लोर टेस्ट के लिये बुला सकता है। लेकिन जब विधानसभा सत्र में नहीं होती है तो अनुच्छेद 163 के तहत राज्यपाल अपनी  अवशिष्ट शक्तियों का उपयोग करके  फ्लोर टेस्ट के लिये बुलाने की अनुमति दे सकता हैं। 

राज्यपाल की विवेकाधीन शक्ति: 

  • अनुच्छेद 163 (1) अनिवार्य रूप से राज्यपाल की किसी भी विवेकाधीन शक्ति को केवल उन मामलों तक सीमित करता है जहाँ संविधान स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट करता है कि राज्यपाल को अपने विवेक पर कार्य करना चाहिये और इसे स्वतंत्र रूप से लागू करना चाहिये। 
  • राज्यपाल अनुच्छेद 174 के तहत अपनी विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग तब कर सकता है जब मुख्यमंत्री ने सदन का समर्थन खो दिया हो तथा उसका समर्थन बहस योग्य हो। 
  • आमतौर पर तब मुख्यमंत्री पर संदेह किया जाता है जब उन्होंने बहुमत खो दिया है तो विपक्ष और राज्यपाल फ्लोर टेस्ट के लिये बुलाएंगे। 
  • कई मौकों पर अदालतों ने यह भी स्पष्ट किया है कि जब सत्तारूढ़ दल का बहुमत सवालों के घेरे में हो, तो जल्द-से-जल्द उपलब्ध अवसर पर एक फ्लोर टेस्ट आयोजित किया जाना चाहिये। 

फ्लोर टेस्ट बुलाने में राज्यपाल की शक्ति पर सर्वोच्च्च न्यायालय का विचार: 

  • वर्ष 2016 में नबाम रेबिया और बामांग फेलिक्स बनाम उपाध्यक्ष (अरुणाचल प्रदेश विधानसभा मामला) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सदन को बुलाने की शक्ति केवल राज्यपाल में निहित नहीं है और इसका उपयोग मंत्रिपरिषद की सहायता एवं सलाह के साथ किया जाना चाहिये, न कि अपने विवेक पर। 
  • न्यायालय ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि राज्यपाल एक निर्वाचित प्राधिकारी नहीं है, वह केवल राष्ट्रपति का नामांकित व्यक्ति है, ऐसे नामित व्यक्ति का राज्य विधानमंडल के सदन या सदनों का गठन करने वाले लोगों के प्रतिनिधियों पर अधिभावी अधिकार नहीं हो सकता है। 
  • राज्यपाल को राज्य विधानमंडल या राज्य कार्यपालिका को अधिशासित करने की अनुमति देना संविधान के प्रावधानों में निहित मज़बूत लोकतांत्रिक सिद्धांतों के साथ सामंजस्यपूर्ण रूप से संकेत नहीं देता। विशेष रूप से इसलिये क्योंकि संविधान की स्थापना मंत्री पद की ज़िम्मेदारी के सिद्धांत पर की गई है। 
  • वर्ष 2020 में शिवराज सिंह चौहान और अन्य बनाम स्पीकर, मध्य प्रदेश विधानसभा और अन्य में सर्वोच्च न्यायालय ने अध्यक्ष की शक्तियों को बरकरार रखा कि यदि प्रथम दृष्टया कोई विचार है कि सरकार ने अपना बहुमत खो दिया है, तो शक्ति परीक्षण हेतु बुलाने के लिये स्पीकर की शक्तियों को बरकरार रखा। 
  • वर्ष 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने शिवराज सिंह चौहान और अन्य बनाम अध्यक्ष, मध्य प्रदेश विधान सभा और अन्य में स्पीकर की शक्तियों में फ्लोर टेस्ट के लिये बुलाने की शक्ति को बरकरार रखा, यदि प्रथम दृष्टया यह माना जाता है कि सरकार अपना बहुमत खो चुकी है। 
    • “राज्यपाल को फ्लोर टेस्ट का आदेश देने की शक्ति से वंचित नहीं किया जाता है, जहांँ राज्यपाल के पास उपलब्ध जानकारी के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार सदन का विश्वास प्राप्त है या नहीं, इस मुद्दे का मूल्यांकन फ्लोर टेस्ट के आधार पर किया जाना चाहिये। 

फ्लोर टेस्ट: 

  • यह बहुमत के परीक्षण के लिये उपयोग किया जाने वाला शब्द है। यदि किसी राज्य के मुख्यमंत्री (CM) के खिलाफ संदेह है, तो उसे सदन में बहुमत साबित करने के लिये कहा जा सकता है 
    • गठबंधन सरकार के मामले में मुख्यमंत्री को विश्वास मत और बहुमत हासिल करने के लिये कहा जा सकता है। 
  • स्पष्ट बहुमत के अभाव में जब सरकार बनाने के लिये एक से अधिक व्यक्ति दावा कर रहे हों, राज्यपाल यह देखने के लिये एक विशेष सत्र बुला सकते हैं कि सरकार बनाने के लिये किसके पास बहुमत है। 
    • कुछ विधायक अनुपस्थित हो सकते हैं या मतदान नहीं करने का विकल्प चुन सकते हैं। ऐसी स्थिति में संख्याओं पर केवल उन विधायकों के आधार पर विचार किया जाता है जो मतदान करने के लिये उपस्थित थे। 

यूपीएससी सिविल सेवा विगत वर्षों के प्रश्न: 

प्रश्न. भारत के किसी राज्य की विधान सभा के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019) 

  1. राज्यपाल वर्ष के पहले सत्र के प्रारंभ में सदन के सदस्यों को प्रथागत अभिभाषण देता है।
  2. जब किसी राज्य विधानमंडल के पास किसी विशेष मामले पर कोई नियम नहीं होता है, तो वह उस मामले पर लोकसभा के नियम का पालन करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? 

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर:c 

व्याख्या:

  • भारतीय  संविधान के अनुच्छेद 176(1) में यह व्यवस्था है कि राज्यपाल प्रत्येक वर्ष के पहले सत्र के प्रारंभ में और पहले सत्र के प्रारंभ में एक साथ एकत्रित हुए दोनों सदनों को संबोधित करेगा और विधानमंडल को सूचित करेगा एवं विधायिका को उसके सम्मन के कारणों के बारे में सूचित करेगा। अत: कथन 1 सही है।  
  • अनुच्छेद 208 राज्य विधानमंडलों में प्रक्रिया के नियमों से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि:  
  • किसी राज्य के विधानमंडल का कोई सदन इस संविधान के प्रावधानों, इसकी प्रक्रिया और अपने कार्य के संचालन के अधीन विनियमन के लिये नियम बना सकता है। 
  • जब तक खंड (1) के तहत नियम नहीं बनाए जाते, तब तक प्रक्रिया के नियम और स्थायी आदेश इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले संबंधित प्रांत के विधानमंडल के संबंध में लागू होते हैं, ऐसे संशोधनों के अधीन राज्य के विधानमंडल के संबंध में प्रभावी होंगे और जैसा कि विधान सभा के अध्यक्ष या विधान परिषद के अध्यक्ष, जैसा भी मामला हो, द्वारा किया जा सकता है। 
  • इसलिये जब औपनिवेशिक काल से राज्य विधानमंडल में किसी विशेष विषय पर कोई नियम नहीं होता है, तो राज्य विधानसभाएँ लोकसभा के नियमों का पालन करती हैं। अत: कथन 2 सही है। 

अतः विकल्प (c) सही उत्तर है। 

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस 


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