भारतीय इतिहास
अजंता गुफा चित्रकला
प्रीलिम्स के लिये:
यूनेस्को (UNESCO), अजंता गुफा चित्रकला, सीएसआईआर-राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान
मेन्स के लिये:
अजंता गुफा चित्रकला की विशेषताएँ एवं इसे हानि पहुँचने के कारण
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सीएसआईआर-राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (CSIR-National Environmental Engineering Research Institute-NEERI) द्वारा
प्रकाशित एक रिसर्च के अनुसार, अजंता के गुफा-चित्र पिछले कुछ दशकों में कीड़ों और अन्य जलवायु तनावों के कारण विकृत हो रहे हैं।
मुख्य बिंदु:
- अजंता गुफा चित्रकला बौद्ध कला की उत्कृष्ट कृति एवं यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल हैं और भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India-ASI) का संरक्षित स्मारक हैं।
- राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (CSIR-NEERI) की एक शोध टीम ने अजंता की गुफाओं से संबंधित उपलब्ध साहित्य का अध्ययन किया और इनके चित्रों को हानि पहुँचाने वाले विभिन्न कारकों को रेखांकित किया तथा साथ ही इस समस्या के कुछ पर्यावरण अनुकूल समाधानों का भी उल्लेख किया है।
चित्रकला को प्रभावित करने वाले कारण:
- NEERI के अनुसार, अजंता चित्रों को हानि पहुँचाने वाले कीड़ों में सिल्वर फिश, झींगुर और सामान्य कीड़े थे।
- एक अन्य मुख्य कारण वर्षा जल तथा वाघुर नदी से पानी का प्रवेश था। यह गुफा के वातावरण में नमी पैदा करता है, जिससे शैवाल, कवक, कीड़े और सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि होती है। ये सभी एक साथ चित्रों के मूल रंग जैसे- सफेद रंग को पीले रंग में और नीले रंग को हरे रंग में बदल रहे थे।
सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति के कारण:
- अजंता की गुफाओं के पास स्थित एलोरा की गुफाओं में चित्रों एवं नक्काशी के संरक्षण के लिये जूट, चूना और मिटटी के प्रभावी मिश्रण का उपयोग किया गया था लेकिन अजंता की गुफाओं में इस पद्धति का उपयोग नहीं किया गया था।
- पिछले अध्ययनों से पता चला है कि भित्ति चित्रों की आधारभूत परत मिट्टी के प्लास्टर और कार्बनिक पदार्थ जैसे धान की भूसी, घास, वानस्पतिक रेशों से बनी थीं, इस प्रकार यह रोगाणुओं और कीड़ों के लिये एक अच्छा प्रजनन स्थल बना।
- हालाँकि ASI ने चमगादड़ों और कबूतरों के अजंता गुफाओं से बाहर निकलने के लिये कई पहलें शुरू की हैं परंतु ये सभी पहलें विफल हो गईं जिससे चमगादड़ तथा अन्य पक्षियों के मल-मूत्र से गुफा-चित्रों को नुकसान पहुँचता है।
निवारण हेतु सुझाव:
- शोधकर्त्ताओं ने कीड़ों की समस्या से निपटने के लिये कुछ प्रकाश और रंगों का उपयोग करने का सुझाव दिया है। उदाहरण के लिये उन्होंने रात्रिचर कीड़ों से बचाव के लिये पराबैंगनी प्रकाश का जाल बिछाने का सुझाव दिया है क्योंकि रात्रिचर कीड़े पराबैंगनी विकिरण की तरफ अधिक आकर्षित होते हैं।
- इसके साथ ही दिन में विचरण करने वाले कीड़े पीले रंग की तरफ अधिक आकर्षित होते हैं इसीलिये शोधार्थियों ने इस प्रकार के कीड़ों से छुटकारा पाने के लिये पीले प्रकाश का जाल बिछाने का सुझाव दिया है। यह सुझाव कीट-पतंगों के नियंत्रण के लिये भी उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
- कीड़ों के प्रकाशानुकूल व्यवहार को समझकर उपयुक्त तरंगदैर्ध्य के प्रकाश का प्रयोग कीड़ों को आकर्षित करने के लिये किया जा सकता है।
- अजंता के चित्रों को विकृत होने से बचाने के लिये ASI वर्तमान में कुछ निवारक उपचार कर रहा है जैसे कि कीटनाशकों और शाकनाशियों का छिड़काव, गुफा की दीवारों के ढीले प्लास्टर को ठीक करना, नियमित सफाई और दीवारों पर परिरक्षकों का लेप करना।
संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन
(United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization-UNESCO)
- UNESCO की स्थापना 16 नवंबर, 1945 को लंदन में हुई थी।
- इसका मुख्यालय पेरिस (फ्राँस) में है।
- UNESCO का उद्देश्य शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति और संचार के माध्यम से राष्ट्रों के बीच सहयोग बढ़ाकर शांति एवं सुरक्षा को बढ़ावा देना है ताकि संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में वर्णित न्याय, मानवाधिकार और मौलिक स्वतंत्रता सुनिश्चित की जा सके।
UNESCO की विश्व धरोहरों को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है-
- प्राकृतिक धरोहर स्थल
- सांस्कृतिक धरोहर स्थल
- मिश्रित धरोहर स्थल
सीएसआईआर-राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान
(CSIR-National Environmental Engineering Research Institute-NEERI):
- NEERI वर्ष 1958 में भारत सरकार द्वारा नागपुर में स्थापित और वित्तपोषित संस्थान है।
- इसकी स्थापना का उद्देश्य पर्यावरण विज्ञान और इंजीनियरिंग में नवाचार और अनुसंधान करना है।
- NEERI वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की एक घटक प्रयोगशाला है।
- इसकी पाँच क्षेत्रीय प्रयोगशालाएँ क्रमशः चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कलकत्ता और मुंबई में स्थित हैं।
स्रोत-द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-फिलीपींस
प्रीलिम्स के लिये:
भारत-फिलीपींस व्यापार सम्मेलन, 4th आसियान-भारत व्यापार सम्मेलन, एक्ट ईस्ट पॉलिसी
मेन्स के लिये:
भारत-फिलीपींस संबंध
चर्चा में क्यों?
भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद ने 19 अक्तूबर, 2019 को मनीला, फिलीपींस में भारत-फिलीपींस व्यापार सम्मेलन (India-Philippines Business Conclave) तथा 4th आसियान-भारत व्यापार सम्मेलन (4th ASEAN- India Business Summit) को संबोधित किया।
भारत-फिलीपींस व्यापार सम्मेलन
(India-Philippines Business Conclave):
- इसके तहत दोनों देशों का लक्ष्य फिलीपींस के ‘बिल्ड, बिल्ड, बिल्ड’ परियोजना (Build, Build, Build Project) तथा भारत के ‘मेक इन इंडिया’(Make In India) को एकीकृत करना है जिससे दोनों देशों की कंपनियों तथा निवेशकों के लिये बुनियादी ढाँचा पहल द्वारा काफी अधिक अवसर उपलब्ध हो सकें।
- सम्मेलन में कहा गया कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार में निरंतर प्रगति हुई है तथा समग्र व्यापार में सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
- सम्मेलन में यह भी कहा गया कि फिलीपींस में भारतीय कंपनियों के निवेश और उपस्थिति के रूप में भारत का द्विपक्षीय आर्थिक जुड़ाव बढ़ोतरी पर है। भारत-फिलीपींस व्यापार बढ़कर 2.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है।
- हाल के वर्षों में भारत-फिलीपींस ने बुनियादी ढाँचे और ऊर्जा क्षेत्रों में द्विपक्षीय निवेश में वृद्धि की है। साथ ही फिलीपींस में एलएनजी (Liquefied Natural Gas- LNG) पाइपलाइनों, अपशिष्ट प्रबंधन समाधान तथा हवाई अड्डे के टर्मिनलों जैसी ठोस परियोजनाओं में भारतीय निवेश बढ़ा है।
- सम्मेलन में दोनों देशों ने एक पर्यटन संवर्द्धन समझौते (Tourism Promotion Agreement) पर हस्ताक्षर करने के बारे में भी सहमति व्यक्त की।
4th आसियान-भारत व्यापार सम्मेलन
(4th ASEAN- India Business Summit):
- इस सम्मेलन का उद्देश्य प्रत्येक आसियान देश तथा भारत के बीच आर्थिक और व्यापारिक संबंधों को उन्नत करना है।
- आसियान-भारत संबंध अत्यंत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारत की ‘एक्ट ईस्ट नीति’ (Act East Policy) इस क्षेत्र को भारत-प्रशांत संबंधों के साथ केंद्र में रखती है।
- हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में आसियान-भारत व्यापार में काफी वृद्धि हुई है तथा दोनों पक्षों ने वर्ष 2022 तक 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर के लक्ष्य तक पहुँचने का लक्ष्य रखा है।
भारत- फिलीपींस संबंध:
- भारत वर्ष 2019 में फिलीपींस के साथ राजनयिक संबंधों की 70वीं वर्षगाँठ मना रहा है। इस अवसर पर भारत के राष्ट्रपति ने क्विज़ोन शहर के मरियम कॉलेज में महात्मा गांधी की प्रतिमा का अनावरण किया।
- भारत और फिलीपींस दोनों देशों ने स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद 1949 में औपचारिक रूप से राजनयिक संबंध स्थापित किये।
- ऐतिहासिक साझा मूल्यों और समानताओं के साथ दोनों देश अपने संबंधों को बेहतर करने की दिशा में निरंतर प्रयास कर रहे हैं।
- भारत ने 1992 में लुक ईस्ट पॉलिसी की शुरुआत करते हुए आसियान के साथ साझेदारी में वृद्धि की जिसके फलस्वरूप फिलीपींस के साथ द्विपक्षीय और क्षेत्रीय संबंधों में भी तेज़ी आई।
- एक्ट ईस्ट पॉलिसी (Act East Policy) के तहत भारत-फिलीपींस संबंधों में अधिक विविधता देखने को मिली है।
- भारत का फिलीपींस के साथ एक सकारात्मक व्यापार संतुलन है।
- वर्तमान में फिलीपींस भारतीय छात्रों के लिये एक गंतव्य के रूप में उभर रहा है।
स्रोत: पीआइबी
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
उल्का बौछार
प्रीलिम्स के लिये:
उल्का बौछार, उल्कापिंड
मेन्स के लिये:
उल्का बौछार, उल्कापिंड की संरचना
चर्चा में क्यों?
हाल में ओरियनॉइड उल्का बौछार (Orionids Meteor Shower) की परिघटना देखी जा रही है।
उल्का बौछार (Meteor Shower) क्या होती है?
- जब पृथ्वी धूमकेतु या क्षुद्रग्रह द्वारा छोड़े गए मलबे के पास से गुज़रती है, तो उल्का बौछार की परिघटना देखी जाती है।
- इसमें उल्कापिंडों की एक शृंखला पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करती है और चमकती हुई लकीर जैसे दिखाई देती है।
- यह उल्का बौछार अपनी चमक और गति के लिये जानी जाती है और यह पृथ्वी के वायुमंडल में लगभग 66 किमी./सेकंड की गति से प्रवेश करती है। नासा के अनुसार, प्रतिवर्ष ऐसी 30 से अधिक उल्का बौछार की परिघटनाएँ होती हैं।
- उल्लेखनीय है कि उल्का बौछारों की उत्पत्ति के बिंदु को दीप्तिमान (Radiant) कहा जाता है।
नामकरण:
- उल्का बौछारें जिस नक्षत्र या तारा समूह (Constellation) से आती हैं उनका नामकरण उसी के नाम पर होता है। वर्तमान में हो रही उल्का बौछार, ओरियनिड्स नक्षत्र से संबंधित है इसलिये इसका नाम ओरियनॉइड उल्का बौछार रखा गया है।
प्रकार:
- ओरियनॉइड उल्का बौछारों की परिघटना प्रत्येक वर्ष देखी जाती है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक वर्ष अगस्त में पर्सिड (Perseid), दिसंबर-जनवरी में क्वाड्रेंटिस (Quadrantis), अप्रैल में लिरिड्स (Lyrids), नवंबर में लियोनिड्स (Leonids) और दिसंबर में जेमिनिड्स (Geminids) जैसी उल्का बौछारों की परिघटनाएँ देखी जाती है।
उल्का बौछार वार्षिक आधार पर क्यों होती है?
- पृथ्वी की तरह ही धूमकेतु भी सूर्य की परिक्रमा करते हैं, हालाँकि वे पृथ्वी की तरह वृत्ताकार कक्षा में परिक्रमा नहीं करते हैं इसलिये वे अपनी कक्षा से इतर भटक जाते हैं और जलने लगते हैं।
- मध्य रात्रि के बाद उत्तरी और दक्षिणी दोनों गोलार्द्धों से ओरियनॉइड उल्का बौछारों को देखा जा सकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
मंगल ग्रह पर नमक की झीलें
प्रीलिम्स के लिये:
गेल क्रेटर, क्यूरियोसिटी रोवर
मेन्स के लिये:
अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के संबंध में जागरूकता
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नेचर जिओसाइंस जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में यह पता चला है कि मंगल ग्रह (लाल ग्रह) पर भी पृथ्वी की तरह नमक की झीलें मौजूद थीं।
प्रमुख बिंदु
- मंगल ग्रह (लाल ग्रह) की झीलें, धरती पर मौजूद झीलों की तरह ही बारिश और सूखे के दौर से भी गुज़री थीं।
- इससे यह संकेत मिलता है कि मंगल ग्रह (लाल ग्रह) पर शुष्क जलवायु की स्थिति लंबे अरसे से बनी हुई है।
- नमक की झीलों का निर्माण शुष्क काल के दौरान ही हुआ होगा।
- जलवायु के शुष्क होने का कारण वहाँ के वायुमंडल के पतला होने और सतह पर दबाव कम होने के चलते तरल पानी अस्थिर और वाष्पित हो सकता है।
- गेल क्रेटर के अध्ययन के अनुसार, मंगल ग्रह पर पानी तरल रूप में मौजूद था जिसे माइक्रोबियल जीवन के अहम घटक के रूप में माना जाता है
- शोधकर्त्ताओं के अनुसार, ये झीलें लगभग 3 अरब वर्ष पहले गेल क्रेटर (Gale Crater) में मौजूद थीं।
गेल क्रेटर (Gale Crater) का निर्माण एक उल्कापिंड के मंगल ग्रह पर गिरने के कारण लगभग 3.6 अरब वर्ष पहले हुआ था।
इस क्रेटर को नासा के क्यूरियोसिटी रोवर ने वर्ष 2012 में खोजा था।
- अध्ययन के अनुसार मंगल ग्रह पर नमक की ये झीलें, पृथ्वी पर बोलीविया और पेरू की सीमा के पास स्थित अल्टिप्लानो (Altiplano) नामक क्षेत्र में मौजूद झीलों जैसी ही हैं।
- अल्टिप्लानो एक ऊँचा पठार है जहाँ पर्वत शृंखलाओं से निकलने वाली नदियाँ और धाराएँ समुद्र में नहीं मिलती हैं बल्कि बंद घाटियों की ओर अग्रसर होती हैं
- यह भौगोलिक परिदृश्य ठीक वैसा ही है जैसा मंगल ग्रह पर गेल क्रेटर में कभी हुआ करता था।
- मंगल ग्रह की जलवायु आर्द्र और सूखे की अवधि के बीच के उतार-चढ़ाव वाली हो सकती है।
क्यूरियोसिटी रोवर
- क्यूरियोसिटी नामक रोवर नासा के मंगल अन्वेषण मिशन का एक भाग है। यह लाल ग्रह के रोबोटिक अन्वेषण का एक दीर्घावधिक प्रयास है।
- क्यूरियोसिटी को इस बात का आकलन करने के लिये डिज़ाइन किया गया कि क्या मंगल पर कभी ऐसा पर्यावरण था जो लघु जीवन रूपों को सहारा देने में सक्षम था, जिन्हें माइक्रोब्स कहा जाता है।
- इस मिशन का उद्देश्य ग्रह पर निवास की संभावनाओं की तलाश करना है।
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
अनूठी सुरक्षा स्याही
प्रीलिम्स के लिये:
राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला, प्रतिदीप्ति, स्फुरदीप्ति
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, दिल्ली स्थित राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला (National Physical Laboratory- NPL) के शोधकर्त्ताओं के दल ने एक नए प्रकार की सुरक्षा स्याही का संश्लेषण किया है।
प्रमुख विशेषताएँ:
- यह स्याही 254 नैनो मीटर तरंगदैर्ध्य के पराबैंगनी प्रकाश के स्रोत के संपर्क में आने पर तीव्र लाल रंग का जबकि पराबैंगनी प्रकाश स्रोत के बंद होने के तुरंत बाद हरे रंग का उत्सर्जन करती है।
- लाल रंग का उत्सर्जन प्रतिदीप्ति (Fluorescence) के कारण होता है, जबकि हरे रंग का उत्सर्जन स्फुरदीप्ति (Phosphorescence) की घटना के कारण होता है।
- इस स्याही के लाल और हरे दोनों रंगों को नग्न आँखों से सामान्य परिवेशी परिस्थितियों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
- लाल रंग 611 नैनो मीटर तरंगदैर्ध्य पर उत्सर्जित होता है जबकि हरा 532 नैनो मीटर पर उत्सर्जित होता है।
- इस स्याही का प्रयोग मुद्रा यानि नोटों और पासपोर्ट आदि पर सुरक्षा की दृष्टि से किया जा सकता है।
- इस शोध के परिणाम को जर्नल ऑफ मैटीरियल केमिस्ट्री सी (Journal of Materials Chemistry C) में प्रकाशित किया गया है।
- संभवतः यह अभी तक रिपोर्ट की गई पहली स्याही है जिसमें दो ऐसे वर्णक पाए गए हैं जो एक विशेष तरंगदैर्ध्य के पराबैंगनी प्रकाश के संपर्क में आने पर अलग-अलग तरंगदैर्ध्य पर विभिन्न रंगों का उत्सर्जन करते हैं।
- अन्य सामग्रियों के विपरीत यह स्याही पराबैंगनी प्रकाश की उपस्थिति में लाल एवं हरे वर्णक द्वारा एक-दूसरे को रोके या दबाए बिना स्फुरदीप्ति (Phosphorescence) प्रदर्शित करती है क्योंकि दोनों के उत्सर्जन तरंगदैर्ध्य बिल्कुल अलग-अलग हैं (लाल रंग के लिये 611 नैनो मीटर और हरे रंग के लिये 532 नैनो मीटर)। इसके अलावा, 254 नैनो मीटर तरंगदैर्ध्य वाले पराबैंगनी प्रकाश के संपर्क में आने पर भी एक वर्णक का उत्तेजना स्पेक्ट्रम (Excitation Spectrum) दूसरे को कवर नहीं करता है।
स्याही का संश्लेषण
- शोधकर्त्ताओं के दल द्वारा पहले लाल और हरे रंगों का उत्सर्जन करने वाले पिगमेंट को संश्लेषित किया गया। लाल वर्णक को संश्लेषित करने के लिये सोडियम येट्रियम फ्लोराइट (Sodium Yttrium Fluorite) को हाइड्रोथर्मल विधि के माध्यम से युरोपियम (Europium) के साथ डोप (Dope) किया गया, जबकि हरे रंग के वर्णक हेतु स्ट्रोंटियम एल्युमीनियम ऑक्साइड (Strontium Aluminium Oxide) को यूरोपियम (Europium) और डिस्प्रोसियम (Dysprosium) के साथ डोप किया गया।
- स्फुरदीप्ति (Phosphorescence) के लिये फोटॉनों की निरंतर उत्पादन की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए हरे वर्णक के लिये दो डोपेंट का उपयोग किया जाता है। इस संदर्भ में युरोपियम इलेक्ट्रॉन (Electrons), जबकि डिस्प्रोसियम छिद्र (Holes) प्रदान करते हैं, तत्पश्चात ये इलेक्ट्रॉन और छिद्र आपस में पुनर्संयोजन के माध्यम से फोटॉन का निर्माण करते हैं।
- अलग-अलग संश्लेषित लाल और हरे रंग के वर्णक को वज़न के आधार पर 3:1 के अनुपात में मिश्रित कर उसे तीन घंटे तक 400 डिग्री सेल्सियस तापमान पर गर्म किया जाता है। 400 डिग्री सेल्सियस पर एनिलिंग (Annealing- धातु को गर्म कर धीरे-धीरे ठंढा करने की प्रक्रिया) यह सुनिश्चित करती है सोडियम येट्रियम फ्लोराइट की छड़ (लाल वर्णक) स्ट्रोंटियम एल्युमीनियम ऑक्साइड के गोले (हरा वर्णक) के साथ अवस्थित है।
- यदि दोनों वर्णक को एनिलिंग के बिना मिलाया जाता है तो ये वर्णक स्याही के निर्माण के दौरान अलग हो जाते हैं, परिणामस्वरूप एकल उत्तेजना (Single Excitation) के साथ स्याही के दोनों रंगों के उत्सर्जन संबंधी वांछित गुण की प्राप्ति संभव नहीं हो पाती है।
- यह स्याही उच्च तापमान पर मिश्रित किये गए दोनों वर्णक को पॉलीविनाइल क्लोराइड (Polyvinyl Chloride- PVC) माध्यम (Medium) में डालकर एवं करीब एक घंटे तक उच्च आवृति के साथ हिलाकर तैयार की जाती है।
- छड़ (Rods) एवं गोले (Spheres) के जुड़ाव का फायदा यह है कि छड़ पूरी तरह से गोले को कवर नहीं कर पाते हैं फलतः दोनों वर्णक पराबैंगनी विकिरण के संपर्क में आ जाते हैं।
प्रतिदीप्ति (Fluorescence) |
स्फुरदीप्ति (Phosphorescence) |
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स्थायी स्फुरदीप्ति
- यह स्याही पराबैंगनी विकिरण के अल्पकालिक संपर्क में आने पर भी हरे रंग की स्फुरदीप्ति (Phosphorescence) प्रदर्शित करती है। पराबैंगनी विकिरण के साथ 15 मिनट तक संपर्क में लाने पर यह स्याही करीब चार घंटे तक स्फुरदीप्ति (Phosphorescence) प्रदर्शित करती रहती है।
- शोधकर्त्ताओं ने पाया कि स्याही का उपयोग करके साधारण कागज़ पर छपी छवियाँ उत्कृष्ट भौतिक स्थायित्व और रासायनिक स्थिरता प्रदर्शित करती हैं। इनके अनुसार इस स्याही के प्रयोग से बने चित्र करीब 20 वर्षों तक स्थायी रह सकते हैं।
- उच्च और निम्न (अधिकतम 42 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम 10 डिग्री सेल्सियस) तापमान तथा उच्च आर्द्रता के संपर्क में आने पर भी छह महीने के अंत तक चित्रों से होने वाले उत्सर्जन में कोई उल्लेखनीय परिवर्तन नहीं हुआ।
- इस स्याही से बने चित्रों को विभिन्न विरंजकों के संपर्क में लाने के बावजूद उत्सर्जन में कोई बदलाव नहीं देखने को मिला।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
एंथ्रेक्स
प्रीलिम्स के लिये:
एंथ्रेक्स रोग, एशियाई जंगली भैंस
मेन्स के लिये:
एंथ्रेक्स- कारण, लक्षण और रोकथाम
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एंथ्रेक्स (Anthrax) रोग के कारण असम के पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य में दो एशियाई जंगली भैसों की मौत हो गई।
एंथ्रेक्स
- एंथ्रेक्स एक जानलेवा संक्रामक रोग है जो बेसिलस एन्थ्रासिस (Bacillus Anthracis) जीवाणुओं के कारण होता है। यह मानव के साथ-साथ कई जानवरों जैसे- घोड़ों, गायों, बकरियों और भेड़ों आदि को भी प्रभावित कर सकता है।
- एंथ्रेक्स जीवाणुओं का प्रयोग कई देशों द्वारा जैव-आतंकवाद (Bio-Terrorism) के रूप में किया गया है।
- एंथ्रेक्स के जीवाणु मिट्टी में मौज़ूद होते हैं और कई वर्षों तक सुप्त (Latent) अवस्था में रहते हैं।
- यह रोग संक्रमित जानवरों के संपर्क में आने वाले मनुष्यों के लिये भी घातक हो सकता है।
- त्वचा पर छाले, सीने में दर्द, उल्टी, दस्त और बुखार आदि इस रोग के लक्षण हैं।
- रक्षा अनुसंधान और विकास प्रयोगशाला (Defence Research and Development Laboratory) और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (Jawaharlal Nehru University- JNU) के शोधकर्त्ताओं ने इस रोग को लेकर एक ऐसे टीके का निर्माण किया है जो विषाक्त पदार्थों तथा जीवाणुओं दोनों के विरुद्ध कुशलता से कार्य कर सके।
एशियाई जंगली भैंस
- एशियाई जगंली भैंस का वैज्ञानिक नाम बुबलस अर्नि (Bubalus Arnee) है।
- भारत में यह अधिकांशतः असम, अरुणाचल प्रदेश एवं मध्य प्रदेश राज्यों में मिलती है ।
- हाल ही में, यह महाराष्ट्र के जंगलों में पाई गई थी जिसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने कोलारमका वन क्षेत्र को एशियाई जंगली भैंस के संरक्षण के लिये आरक्षित घोषित किया है।
- जंगली भैंस मुख्य रूप से जलोढ़ घास के मैदान, दलदल और नदी घाटियों में पाई जाती है। ये आम तौर पर ऐसे क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ पानी बहुतायत में उपलब्ध होता है।
- अवैध शिकार और आवास स्थलों का विनाश आदि समस्याओं के कारण इनकी जनसंख्या कम होती जा रही है।
संरक्षण की स्थिति:
- यह अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature-IUCN) की रेडलिस्ट में संकटग्रस्त (Endangered) प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध है।
- यह वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची-1 में सूचीबद्ध है।
- यह CITES परिशिष्ट- III में शामिल है और कानूनी रूप से भूटान, भारत, नेपाल एवं थाईलैंड में संरक्षित है।
- ऐसा माना जा रहा है कि जंगली भैंस बांग्लादेश, मलेशिया प्रायद्वीप, सुमात्रा, जावा और बोर्नियो द्वीपों पर लुप्त होने की कगार पर है।
पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य
- पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य (Pobitora Wildlife Sanctuary) गुवाहाटी से लगभग 45 किमी. दूर मोरीगाँव ज़िले में ब्रह्मपुत्र नदी के बाढ़ के मैदान में स्थित है।
- पोबितोरा को वर्ष 1971 में आरक्षित वन और वर्ष 1987 में एक वन्यजीव अभयारण्य के रूप में घोषित किया गया था।
- यह अभयारण्य मुख्य रूप से एक सींग वाले भारतीय गैंडों के लिये प्रसिद्ध है।
- गैंडों की संख्या का अधिक होना इस अभयारण्य को विश्व के उच्चतम जनसंख्या घनत्व वाला अभयारण्य बनाता है।
- गैंडे के अलावा तेंदुआ, फिशिंग कैट, जंगली बिल्ली, जंगली भैंस, जंगली सुअर, चीनी पैंगोलिन आदि अन्य स्तनधारी भी यहाँ पाए जाते हैं।
असम में निम्नलिखित 5 राष्ट्रीय उद्यान हैं-
- डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान
- काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान
- मानस राष्ट्रीय उद्यान
- नमेरी राष्ट्रीय उद्यान
- राजीव गांधी ओरंग राष्ट्रीय उद्यान
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षण (RCT)
प्रीलिम्स के लिये
अर्थशास्त्र का नोबेल, नोबेल पुरस्कारों के बारे में
मेन्स के लिये
RCT का महत्त्व, अर्थशास्त्र तथा योजनाओं के मूल्यांकन में इसका प्रयोग
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2019 के अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार हेतु अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी, एस्तेर डुफ्लो और माइकल क्रेमर को चुना गया है।
- उल्लेखनीय है कि उन्हें यह पुरस्कार अर्थशास्त्र में यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षण (Randomised Controlled Trials-RCT) प्रणाली के सफल प्रयोग हेतु दिया जा रहा है।
- उपरोक्त तीनों अर्थशास्त्रियों ने वैश्विक गरीबी से निपटने के लिये एक नई प्रणाली RCT को विकसित किया है जिसके माध्यम से गरीबी उन्मूलन के लिये लागू की जाने वाली योजनाओं की प्रभावी जाँच करने में मदद मिलेगी।
RCT क्या है?
- प्रायः यह प्रयोग पहले चिकित्सा विज्ञान में किया जाता था परंतु अर्थशास्त्र में RCT का प्रयोग पहली बार वर्ष 1990 में किया गया।
- यह एक प्रकार का वैज्ञानिक प्रयोग है जिसके अंतर्गत किसी विषय को यादृच्छिक (Randomly) आधार पर दो समूहों में बाँटा जाता है। इसमें से एक समूह में प्रयोग के तौर पर कुछ हस्तक्षेप किये जाते हैं तथा दूसरे समूह का उपचार पारंपरिक तरीके से ही किया जाता है। उसके बाद दोनों प्रयोगों से प्राप्त परिणामों की तुलना की जाती है। इस प्रयोग के परिणाम का उपयोग हस्तक्षेप की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिये किया जाता है।
- उदाहरण के लिये यदि किसी ग्रामीण समुदाय के लोगों को हमें मोबाइल वैक्सीनेशन की सुविधा देनी है तथा अनाज बाँटने हैं तो RCT प्रयोग के तहत गाँव के लोगों को चार समूहों A, B, C तथा D में विभाजित किया जाएगा। समूह A को केवल मोबाइल वैक्सीनेशन की सुविधा दी जाएगी, समूह B को केवल अनाज दिया जाएगा, समूह C को दोनों सुविधाएँ दी जाएँगी तथा समूह D को कोई सुविधा नहीं दी जाएगी। इसमें समूह D को ‘नियंत्रित समूह’ कहा जाएगा जबकि अन्य सभी को ‘उपचार समूह’ कहा जाएगा। इस परीक्षण से प्राप्त परिणामों से यह पता चलेगा कि किसी विशेष हस्तक्षेप से किसी योजना के क्रियान्वयन में अलग-अलग समूहों पर क्या प्रभाव पड़ता है।
- माइकल क्रेमर ने इस प्रयोग को सर्वप्रथम केन्या के स्कूलों में लागू किया था एवं इस बात की जाँच की थी कि मुफ्त खाना तथा किताब बाँटने से बच्चों की शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
RCT का महत्त्व:
- RCT, अर्थशास्त्रियों व सामाजिक विज्ञान के शोधार्थियों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है। जिसमें अध्ययन के दौरान किसी समग्र घटना पर किसी एक विशेष कारक के प्रभाव को अलग कर उसे नियंत्रित किया जा सकेगा।
- उदाहरण के तौर पर किसी विद्यालय में अधिक शिक्षकों की नियुक्ति से बच्चों की शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इसका अध्ययन करते समय अन्य कारकों जैसे बच्चों की बुद्धिमत्ता, उनका पोषण, उस क्षेत्र विशेष की जलवायु तथा उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को स्थिर मानना होगा।
- अर्थशास्त्रियों का मानना है कि RCT तकनीक सरकारों के लिये उनके द्वारा लागू की गई योजनाओं के मापन और मूल्यांकन में मददगार साबित होगी।
RCT की आलोचना:
- वर्ष 2015 में अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार विजेता और RCT तकनीक के प्रमुख आलोचकों में से एक एंगस डेटन (Angus Deaton) का मानना है कि RCT तकनीक में प्रयोग हेतु यादृच्छिक तरीके से जो भी सैंपल समूह चुने जाते हैं वे कई विशेषताओं में एक समान नहीं होते।
- कई अन्य आलोचकों ने यह भी तर्क दिया है कि RCT तकनीक का प्रयोग भौतिक विज्ञान के विषयों में अधिक प्रभावी है जहाँ प्रयोग को नियंत्रित करना आसान होता है। उनका कहना है कि सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में यह प्रयोग सफल नहीं हो सकता, क्योंकि समाज को प्रभावित करने वाले कई कारकों को नियंत्रित करना असंभव होता है।
आगे की राह
आगामी वर्षों में अर्थशास्त्र तथा सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में RCT निश्चित तौर पर एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा साथ ही गरीबी उन्मूलन, सामाजिक-आर्थिक असमानता को कम करने में उपयोगी साबित होगा। इसमें निहित चुनौतियों को दूर करने के लिये इसके आलोचकों से विचार-विमर्श किया जाना चाहिये तथा यथासंभव परिवर्तन कर इसे और अधिक उपयोगी बनाने का प्रयास किया जाना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस
विविध
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (21 October)
1. दोगुनी हुई अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के लिये संचित धनराशि
विश्व के विभिन्न देशों के वित्त मंत्रियों ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF) के लिये संचित धनराशि दुगुना किये जाने पर सहमति व्यक्त की है ताकि इसका उपयोग संकटग्रस्त देशों की मदद में किया जा सके। लेकिन बड़े देशों के वित्त मंत्रियों ने उभरती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को अधिक वोट वेटेज देने से इनकार किया है।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष चीन, भारत और ब्राज़ील जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं को अधिक महत्त्व देने के लिये अपने वोट शेयर निर्धारण में बदलाव का प्रयास कर रहा है।
- कुछ बड़े देशों ने इसका विरोध किया है क्योंकि इससे उन्हें संस्था में अपना प्रभाव कम होने की आशंका है।
- नए मत प्रारूप के प्रति पूर्व-प्रतिबद्धता के बावजूद इस सप्ताह अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के सदस्यों की वार्षिक बैठकों में इस पर सहमति नहीं बन सकी।
IMF
IMF 187 देशों का संगठन है, जो विश्व में मौद्रिक सहयोग बढ़ाने, वित्तीय स्थिरता लाने, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में मदद करने, अधिक रोज़गार तथा सतत् आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहन देने और विश्वभर में गरीबी कम करने के लिये काम करता है। भारत में IMF की मौजूदगी वर्ष 1991 से रही है। IMF का बुनियादी मिशन अंतर्राष्ट्रीय तंत्र में स्थिरता रखने में मदद करना है। IMF यह काम तीन तरीके से करता है:
1. वैश्विक अर्थव्यवस्था और सदस्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर निगरानी रखकर; 2. भुगतान संतुलन में कठिनाई वाले देशों को ऋण देकर तथा 3, सदस्यों को व्यावहारिक सहायता देकर। भारत में अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष का काम, भारत सरकार, रिज़र्व बैंक तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के बीच सूचना के प्रवाह में मदद देने तथा रिज़र्व बैंक और राष्ट्रीय तथा राज्य सरकारों के अधिकारियों को प्रशिक्षण देने का है।
2. NSG के नए डायरेक्टर जनरल
- 1985 बैच के गुजरात कैडर के वरिष्ठ IPS अधिकारी अनूप कुमार सिंह को राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) का महानिदेशक (Director General) नियुक्त किया गया है। वे इस पद पर 30 सितंबर, 2020 तक रहेंगे।
- NSG की स्थापना 1984 में आतंकवाद तथा हाइजैकिंग जैसी घटनाओं से निपटने में विशेष प्रतिक्रिया यूनिट के तौर पर हुई थी।
- इस बल के कमांडो के देशभर में पाँच केंद्र (Hubs) हैं तथा इसका मुख्यालय गुरुग्राम के मानेसर में है।
- ये कुछ हाई प्रोफाइल VVIP लोगों की सुरक्षा में तैनात रहते हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड को ब्लैक कैट कमांडो भी कहा जाता है।
NSG भारत की एक विशेष प्रतिक्रिया यूनिट है जिसका मुख्य रूप से आतंकवाद विरोधी गतिविधियों के लिये उपयोग किया जाता है। इसका गठन भारतीय संसद के राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड अधिनियम के तहत कैबिनेट सचिवालय द्वारा 1986 में किया गया था। यह पूरी तरह से केंद्रीय अर्द्धसैनिक बल के ढाँचे के भीतर काम करता है। NSG में भर्ती भारत के केन्द्रीय अर्द्धसैनिक बलों और भारतीय सशस्त्र बलों से की जाती है।
3. नासा ने रचा नया इतिहास
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की 2 महिला अंतरिक्ष यात्रियों ने 18 अक्तूबर को अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के बाहर पहली बार पुरुष सहयोगियों के बिना स्पेसवॉक की।
- गौरतलब है कि इससे पहले जिन 15 महिलाओं ने अंतरिक्ष में चहलकदमी की है, उनके साथ एक पुरुष साथी भी रहा है इसलिये क्रिस्टिना कोच (Christina Koch) और जेसिका मीर (Jessica Ulrika Meir) ने इस बार अंतरिक्ष केंद्र से बाहर निकलकर इतिहास रच दिया। कोच का यह चौथा, जबकि मीर का पहला स्पेसवॉक था।
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन
(International Space Station- ISS)
- इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (International Space Station- ISS) कार्यक्रम सबसे बड़ी मानवीय उपलब्धि है।
- इसे 1998 में शुरू किया गया।
- इसके गठन के दौरान इसमें मुख्य रूप से यू.एस., रूस, कनाडा, जापान और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के भाग लेने वाले देश शामिल थे।
- इसके तहत कार्यक्रम के कई संगठनों की विभिन्न गतिविधियों की योजना, समन्वय और निगरानी की जाती है।