भूगोल
उत्तर-पूर्वी मानसून
प्रीलिम्स के लिये:
उत्तर-पूर्वी मानसून, दक्षिण-पश्चिम मानसून, अल नीनो, ITCZ
मेन्स के लिये:
उत्तर-पूर्वी और दक्षिण-पश्चिम मानसून को प्रभावित करने वाले कारक; भारत के मानसून पर अल नीनो का प्रभाव; भारत के मानसून मॉडल, उनके विश्लेषण मानक तथा उनमें विद्यमान सीमाएँ; ITCZ और व्यापारिक पवनों का भारतीय जलवायु पर प्रभाव
चर्चा में क्यों?
भारत में इस बार मानसून वर्ष 1961 के पश्चात् सबसे देरी से लौटा है लेकिन इसका उत्तर-पूर्वी (North-East) मानसूनी वर्षा की मात्रा और अवधि पर कोई प्रभाव नहीं देखा गया है।
प्रमुख बिंदु:
- उत्तर-पूर्वी मानसून की वर्षा भारत की वार्षिक वर्षा में अक्तूबर से दिसंबर के बीच लगभग 20% योगदान करती है। दक्षिण- पश्चिम मानसून की अपेक्षा उत्तर-पूर्वी मानसून कम वर्षा करता है लेकिन यह वर्षा दक्षिण भारत में विशेष रूप से तमिलनाडु के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- उत्तर-पूर्वी मानसून की सक्रियता अक्तूबर, नवंबर और दिसंबर के महीनों में होती है, हालाँकि इस मानसून की शुरुआत की सामान्य तिथि 20 अक्तूबर के आसपास होती है।
- उत्तर-पूर्वी मानसून देश के 36 मौसम प्रभागों में से केवल 5 प्रभागों- तमिलनाडु (जिसमें पुद्दुचेरी भी शामिल है), केरल, तटीय आंध्र प्रदेश, रायलसीमा और दक्षिण कर्नाटक में ही वर्षा करता है।
- दक्षिण-पश्चिम मानसून को प्रभावित करने वाले कई मानकों जैसे- मध्य प्रशांत में तापमान, उत्तरी-पश्चिमी यूरोप में भूमि की सतह के तापमान के साथ भारत में मानसूनी वर्षा की मात्रा और वितरण का काफी समय से अवलोकन किया गया है लेकिन इसके विपरीत उत्तर-पूर्वी मानसून से संबंधित कोई मानक नहीं बनाए गए हैं।
- इस वर्ष उत्तर-पूर्वी मानसून के कारण दक्षिण भारत में वर्षा सामान्य से 15% अधिक हो रही है। इसलिये केंद्रीय जल आयोग आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में 30 से अधिक जलाशयों की निगरानी कर रहा है। इस प्रकार वर्षा की बढ़ती मात्रा दक्षिण भारत में बाढ़ का एक कारण बन जाएगी।
- इंटर ट्रॉपिकल कन्वर्ज़ेंस ज़ोन (Inter Tropical Convergence Zone- ITCZ) भूमध्य रेखा के पास एक गतिशील क्षेत्र है जहाँ उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध से आने वाली व्यापारिक हवाएँ मिलती हैं। गर्मियों में ITCZ भूमध्य रेखा से उत्तरी गोलार्द्ध की तरफ सरक (Shift) जाता है जिसका भारत के दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- देश के कई अन्य भागों जैसे- गंगा के मैदान और उत्तरी राज्यों में भी नवंबर-दिसंबर में कुछ वर्षा होती है लेकिन ऐसा उत्तर-पूर्वी मानसून की बजाय पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances) के कारण होता है। पश्चिमी विक्षोभ भूमध्य सागर और अटलांटिक महासागर से चलने वाली नम हवाएँ हैं जो ईरान एवं अफगानिस्तान से होते हुए भारत में आकर वर्षा करती हैं।
उत्तर-पूर्वी मानसून का नामकरण:
- उत्तर-पूर्वी मानसून का देश के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है, हालाँकि इस मानसून प्रणाली का एक हिस्सा उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के ऊपर उत्पन्न होता है।
- उत्तर-पूर्वी मानसून का नामकरण इसके उत्तर-पूर्व दिशा से दक्षिण-पश्चिम की ओर जाने के कारण किया गया है।
- उत्तर-पूर्वी मानसून की दिशा के विपरीत दक्षिण-पश्चिम मानसून का प्रवेश भारत में अरब सागर के मार्ग से होता है। दक्षिण-पश्चिम मानसून की एक शाखा बंगाल की खाड़ी के माध्यम से उत्तर और उत्तर-पूर्वी भारत में वर्षा करती है।
भारत की वर्षा पर अल नीनो का प्रभाव:
- अल नीनो के प्रभाव वाले वर्षों में दक्षिण-पश्चिम मानसून की वर्षा की मात्रा कम हो जाती है, हालांँकि शोधकर्त्ताओं ने वर्षों से यह अवलोकन किया है कि इसके विपरीत उत्तर-पूर्वी मानसून पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा और सर्दियों में विशेष रूप से दक्षिण भारत में अधिक वर्षा हुई।
- भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department- IMD) ने विश्व की अन्य मौसम संबंधी एजेंसियों के साथ मिलकर यह संभावना व्यक्त की थी कि अल नीनो के प्रभावों की वज़ह से इस वर्ष वर्षा कम होगी।
- अलनीनो के प्रभावों के बावज़ूद भी हिंद महासागर में स्थितियाँ अनुकूल हो जाने के कारण इस वर्ष मानसून की अत्यधिक सक्रियता देखी गई। इससे पता चलता है कि मौसम विभाग हिंद महासागर के व्यवहार और मानसून पर इसके प्रभाव को अब तक ठीक से नहीं विश्लेषित कर पाया है।
आगे की राह:
- भारत को इन पूर्वानुमान मॉडलों के प्रदर्शन को सुधारने के लिये अनुसंधान को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण भारत के आसपास के तापमान में उल्लेखनीय रूप से परिवर्तन होता है। इस प्रकार की घटनाओं के विश्लेषण के पश्चात् उत्तर-पूर्वी मानसून की प्रवृत्ति को समझने में सहायता मिलेगी, अतः इस प्रकार के अनुसंधान कार्य को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस और द हिंदू
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अंतर्राष्ट्रीय संबंध
कैटेलोनियन अशांति
प्रीलिम्स के लिये:
कैटेलोनिया, आईबेरियन प्रायद्वीप की मानचित्रण स्थिति
चर्चा में क्यों?
कैटेलोनिया (Catalonia) में अलगाववादी नेताओं की गिरफ्तारी के कारण हुए विवाद में लगभग 100 से अधिक लोगों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है।
पृष्ठभूमि
- कैटेलोनिया (Catalonia) का इतिहास लगभग 1,000 वर्ष पुराना है तथा इसकी अपनी भाषा, संसद, झंडा और राष्ट्रगान है
- यह उत्तर-पूर्वी स्पेन में आईबेरियन प्रायद्वीप में एक अर्द्ध-स्वायत्त क्षेत्र है।
- स्पैनिश गृह युद्ध (1936-1939) से पहले, कैटेलोनिया स्वायत्त था।
- वर्ष 1939-1975 तक फ्रांसिस्को फ्रैंको की सैन्य सरकार के तहत कैटलन संस्कृति को दबा दिया गया था।
- कैटलन (Catalan) की पहचान जैसे कि कैस्टल या मानव टावरों को प्रतिबंधित कर दिया गया और वहाँ के क्षेत्रों को उनके बच्चों के लिये स्पैनिश नाम चुनने हेतु मजबूर किया गया।
- फ्रेंको की मृत्यु के बाद इस क्षेत्र को वर्ष 1978 में संविधान के तहत फिर से स्वायत्तता दे दी गई और नए लोकतांत्रिक स्पेन के हिस्से के रूप में समृद्ध किया गया।
- वर्ष 2006 के एक कानून के तहत कैटेलोनिया को और अधिक शक्तियाँ प्रदान कर इसकी वित्तीय ताकत को बढ़ा दिया और इसे "राष्ट्र" के रूप में वर्णित किया गया, लेकिन स्पेन की संवैधानिक अदालत ने वर्ष 2010 में इसमें फिर से उलटफेर कर दिया।
स्वतंत्रता की मांग
- कैटलन (Catalan) क्षेत्र लंबे समय से अपनी समुद्री शक्ति, वस्त्रों के व्यापार आदि के लिये स्पेन का औद्योगिक क्षेत्र रहा है, वही वर्तमान में यह अपनी वित्तीय सेवाओं और उच्च तकनीकी कंपनियों के कारण स्पेन के लिये एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र बना हुआ है।
- कैटलन राष्ट्रवादियों (Catalan Nationalists) की लंबे समय से यही शिकायत रही है कि स्पेन के गरीब हिस्सों में उनका क्षेत्र बहुत अधिक धन भेजता है, जबकि स्पेन से बहुत कम धन प्राप्त होता है।
- वे इस बात का दावा भी करते हैं कि वर्ष 2010 में स्पेन की स्वायत्त स्थिति में परिवर्तन ने कैटलन (Catalan) की पहचान को भी कम कर दिया है।
वर्ष 2017 का कैटेलोनियन जनमत संग्रह
- जनमत संग्रह अक्टूबर 2017 में किया गया था जिसमें 43% मतदान हुआ, इसमें से कैटेलोनियन ने स्वतंत्रता के लिये 90% मतदान किया था।
- उस समय यह आरोप लगाया गया कि स्पैनिश राष्ट्रीय पुलिस ने लोगों को मतदान करने से रोकने की कोशिश की जिसके कारण व्यापक हिंसा हुई।
- स्पेन की केंद्र सरकार द्वारा जनमत संग्रह को इस आधार पर अवैध घोषित कर दिया गया कि यह व्यापक पैमाने पर हिंसा का कारण बना।
- जनमत संग्रह ने देश को एक बड़े संवैधानिक संकट में डाल दिया है।
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
11वाँ परमाणु ऊर्जा सम्मेलन
प्रीलिम्स के लिये:
11वें परमाणु ऊर्जा सम्मेलन की विशेषताएँ
मेन्स के लिये:
परमाणु ऊर्जा का विविध क्षेत्रों में अनुप्रयोग
चर्चा में क्यों?
18 अक्तूबर, 2019 को नई दिल्ली में 11वें परमाणु ऊर्जा सम्मेलन का आयोजन किया गया।
प्रमुख बिंदु:
- इस सम्मलेन का विषय ‘परमाणु ऊर्जा का अर्थशास्त्र’ (Economics of Nuclear Power) था।
- सम्मेलन में सरकार द्वारा विभिन्न सामाजिक क्षेत्रों में परमाणु ऊर्जा के अनुप्रयोगों में विविधता लाने की बात कही गई जिससे सुरक्षित और किफायती प्रौद्योगिकियों की दिशा में नवाचार को बढ़ावा दिया जा सकता है।
- परमाणु ऊर्जा विभाग कई प्रमुख सरकारी योजनाओं को लागू करने में भी बड़ी भूमिका निभा सकता है।
- सम्मेलन में परमाणु ऊर्जा के लिये संयुक्त उपक्रम लगाने और बजट बढ़ाने जैसे सरकारी उपायों को अपनाने की बात कही गई।
- बीमारियों और विशेषकर कैंसर के इलाज में परमाणु ऊर्जा के उपयोग पर प्रकाश डाला गया।
- परमाणु ऊर्जा को लेकर लोगों के मन में पैदा भ्रांतियों को दूर करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा गया कि देश की बढ़ती ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए परमाणु ऊर्जा एक बड़ा स्रोत बन सकता है। इस दिशा में छात्रों और आम जनता को परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल के बारे में जानकारी देने के लिये दिल्ली के प्रगति मैदान में ‘हॉल ऑफ न्यूक्लिर एनर्जी’ (Hall of Nuclear Energy) खोला गया।
- बढ़ते वैश्विक तापमान को रोकने के लिये परमाणु ऊर्जा का प्रयोग सबसे बेहतर विकल्प बन सकता है।
- सम्मेलन के दौरान परमाणु ऊर्जा उद्योग के समक्ष अवसर और चुनौतियों, शहरी कचरे के निस्तारण और स्वास्थ्य सेवाओं में परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल तथा परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा के लिये उभरती प्रौद्योगिकी जैसे विषयों पर तीन तकनीकी सत्र भी आयोजित किये गए:
- आधारभूत मांगों को पूरा करने के लिये परमाणु ऊर्जा का विकास: विनिर्माण उद्योग हेतु अवसर और चुनौतियाँ।
- स्वास्थ्य देखभाल और नगरपालिका अपशिष्ट उपचार में परमाणु ऊर्जा का उपयोग।
- अर्थव्यवस्था तथा सुरक्षा के लिये उभरती हुई प्रौद्योगिकी।
स्रोत: पीआईबी
आंतरिक सुरक्षा
वित्तीय कार्रवाई कार्य बल और पाकिस्तान
प्रीलिम्स के लिये :
वित्तीय कार्र्रवाई कार्य बल (Financial Action Task Force)
मेन्स के लिये:
आतंकी फंडिंग से संबंधित मुद्दे
चर्चा में क्यों:
हाल ही में आतंकवाद के प्रसार के लिये मुहैया कराए जाने वाले धन की निगरानी करने वाली अंतर्राष्ट्रीय निगरानी संस्था वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (Financial Action Task Force-FATF) ने पाकिस्तान को फरवरी 2020 तक ‘ग्रे’ लिस्ट में बरकरार रखा है।
मुख्य बिंदु:
- FATF ने पेरिस में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग समीक्षा समूह (International Co-operation Review Group) की बैठक में पाकिस्तान को कठोर चेतावनी देते हुए कहा कि उसे फरवरी 2020 तक वैश्विक मानकों को अपनाते हुए आतंकवाद के लिये धन मुहैया कराना रोकना होगा अन्यथा उसे FATF की ‘ग्रे’ लिस्ट से निकालकर ‘ब्लैक’ लिस्ट में डाल दिया जाएगा।
- पाकिस्तान जून 2018 से मनी लॉड्रिंग और आतंकवाद के लिये धन मुहैया कराने के संदर्भ में FATF की ‘ग्रे लिस्ट’ में अर्थात् FATF की कड़ी निगरानी में है।
- FATF के अनुसार, पाकिस्तान ने आतंकवाद के लिये धन मुहैया कराने और मनी लॉड्रिंग जैसी कमज़ोरियों को दूर करने की प्रतिबद्धता नहीं दिखाई है, हालाँकि पाकिस्तान की नई सरकार द्वार उठाए गए कुछ स्पष्ट कदमों का FATF ने स्वागत किया है।
- FATF के अनुसार, आतंकवाद के लिये धन मुहैया कराने और मनी लॉड्रिंग के खिलाफ पाकिस्तान की अधिकांश कार्य योजनाएँ अधूरी हैं, पाकिस्तान को इन विषयों पर और अधिक कार्य करने की आवश्यकता है। FATF के वैश्विक मानकों को पूरा करने में पाकिस्तान की विफलता एक ऐसा मुद्दा है जिसे बहुत गंभीरता से लिया जाना चाहिये।
- चूँकि पाकिस्तान FATF की 'ग्रे लिस्ट' में बना हुआ है, इसलिये पाकिस्तान के लिये अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक और यूरोपीय संघ से वित्तीय सहायता प्राप्त करना मुश्किल होगा।
- FATF ने उल्लेख किया कि पाकिस्तान ने लश्करे-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिद्दीन जैसे आतंकवादी समूहों को धन मुहैया कराने से रोकने के लिये FATF द्वारा दिये गए 27 कार्यों में से केवल 5 कार्यों पर ध्यान दिया।
वित्तीय कार्रवाई कार्य बल
(Financial Action Task Force-FATF)
- FATF की स्थापना वर्ष 1989 में एक अंतर-सरकारी निकाय के रूप में हुई थी।
- FATF का उद्देश्य मनी लॉड्रिंग, आतंकवादी वित्तपोषण जैसे खतरों से निपटना और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली की अखंडता के लिये अन्य कानूनी, विनियामक और परिचालन उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन को बढ़ावा देना है।
- FATF की सिफारिशों को वर्ष 1990 में पहली बार लागू किया गया था। उसके बाद 1996, 2001, 2003 और 2012 में FATF की सिफारिशों को संशोधित किया गया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे प्रासंगिक और अद्यतन रहें, तथा उनका उद्देश्य सार्वभौमिक बना रहे।
- किसी भी देश का FATF की ‘ग्रे’ लिस्ट में शामिल होने का अर्थ होता है कि वह देश आतंकवादी फंडिंग और मनी लॉड्रिंग पर अंकुश लगाने में विफल रहा है।
- किसी भी देश का FATF की ‘ब्लैक’ लिस्ट में शामिल होने का अर्थ होता है कि उस देश को अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं द्वारा वित्तीय सहायता मिलनी बंद हो जाएगी।
- वर्तमान में FATF में भारत समेत 39 सदस्य देश हैं। भारत FATF का 2010 से सदस्य है।
- पाकिस्तान FATF का सदस्य नहीं है।
निष्कर्ष:
FATF द्वारा पाकिस्तान को फरवरी 2020 तक आतंकवादी फंडिंग और मनी लॉड्रिंग जैसे कार्यों पर अंकुश लगाने की कठोर चेतावनी दी गई है अन्यथा उसे FATF की ‘ब्लैक’ लिस्ट में शामिल किया जाएगा। इससे अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं से पाकिस्तान के लिये वित्तीय सहायता के दरवाजे बंद हो जाएंगे।
स्रोत- द हिंदू
आंतरिक सुरक्षा
आतंकवाद पर मीडिया का कवरेज़
प्रीलिम्स के लिये:
महत्त्वपूर्ण नहीं
मेन्स के लिये:
आतंकवाद को नियंत्रित करने में मीडिया तथा सोशल मीडिया की भूमिका
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एंटी टेररिस्ट स्क्वाड के प्रमुखों की एक बैठक को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने आतंकवाद पर मीडिया कवरेज को लेकर पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्ग्रेट थैचर (Margret Thatcher) के बयान का उल्लेख किया।
मार्ग्रेट थैचर के कथन का तत्कालीन संदर्भ
जून 1985 में हिज़बुल्लाह के आतंकवादियों ने ट्रांस वर्ल्ड एयरलाइन्स के एक हवाईजहाज को अगवा कर लिया था जिसमे 150 यात्री सवार थे। इस प्रकरण में अगवा किये गए यात्रियों को इजराइल की जेलों में बंद आतंकवादियों के बदले में छोड़ा गया। इस घटना को पूरी दुनिया की मीडिया ने कवर किया था।
क्या कहा था मार्ग्रेट थैचर ने ?
मार्ग्रेट थैचर ने कहा था, “आतंकवाद से लड़ने में मीडिया की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है, यदि आतंकवादी किसी घटना को अंजाम देते हैं और मीडिया शांत है तो आतंकवाद समाप्त हो जायेगा। आतंकवादी लोगों में दहशत पैदा करते हैं। यदि मीडिया इसे नहीं लिखेगा तो किसी को पता नहीं चलेगा।”
मार्ग्रेट थैचर के अनुसार, आतंकवाद से निपटने में मीडिया की भूमिका
- हमारा समाज मीडिया की स्वतंत्रता को नियंत्रित करने में यकीन नहीं रखता लेकिन मीडिया को स्वयं एक ऐसे आचार सहिंता पर सहमत होना चाहिये जहाँ वो कुछ भी ऐसा ना दिखाए जिससे किसी आतंकवादी के हितों या लक्ष्यों की प्राप्ति हो।
- आतंकवादी अपनी लोकप्रियता चाहते हैं; इसके बिना उनका महत्त्व कम हो जाता है। वे देखते हैं कि किस तरह हिंसा व आतंक, अखबारों तथा टीवी चैनलों की स्क्रीन पर पूरी दुनिया को दिखाया जाता है। इस प्रकार की खबरें घटना के शिकार लोगों के पक्ष में सहानुभूति तथा सरकार पर दबाव बनाती हैं कि हिंसा के शिकार लोगों की दुर्दशा को समाप्त किया जाये भले ही उसका परिणाम जो भी हो। आतंकवादी इसका दुरुपयोग करते हैं क्योंकि हिंसा व अत्याचार से उन्हें लोकप्रियता मिलती है।
- आतंकवादी बल प्रयोग करते रहते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि लोकतांत्रिक तरीके से उन्हें न्याय नहीं मिल सकता। इसलिये उनका उद्देश्य लोगों में भय पैदा करना तथा उनके खिलाफ होने वाले प्रतिरोध को शिथिल करना होता है।
वर्तमान स्थिति
- वर्तमान में हो रहीं आतंकवादी गतिविधियों के प्रसार के संदर्भ में देखें तो दृष्टिगोचर होता है कि मीडिया तथा सोशल मीडिया का एक बड़ा भाग आतंकवादी गतिविधियों को परोक्ष रूप से लाभान्वित कर रहा है।
- मीडिया आज भी आतंकी गतिविधियों को प्रसारित कर रहा है। प्रौद्योगिकी के उन्नयन से उनकी पहुँच और भी व्यापक हुई है। फलतः लोगों में बढ़ती हिंसा तथा आतंक के कारण असुरक्षा का भाव बना रहता है।
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे कि फेसबुक व यूटयूब ने आतंकियों को अपना प्रभाव बढ़ाने के लिये एक वैकल्पिक स्रोत के रूप में कार्य किया है। इन प्लेटफॉर्म की सहायता से वे समाज में कट्टरता तथा धार्मिक हठधर्मिता का प्रसार करते हैं।
निष्कर्ष
आतंकवाद को नियंत्रित करने के लिये मीडिया तथा सरकार दोनों को ही मिलकर व्यापक नीति निर्माण करने की आवश्यकता है। इस प्रकार की नीतियों के निर्माण से मीडिया आतंकवादी गतिविधियों के नियंत्रण के लिये सरकार के साथ सहयोगात्मक रवैया अपनाएगा। साथ ही सोशल मीडिया कंपनियों को भी सरकार के साथ ताल-मेल बिठाते हुए यह सुनिश्चित करना चाहिये कि हिंसा तथा कट्टरता को बढ़ावा देने वाली सामग्रियों को नियंत्रित किया जाए।
स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस
आंतरिक सुरक्षा
नगा और कुकी समुदाय के बीच बढ़ता तनाव
प्रीलिम्स के लिये:
कुकी जनजाति
मेन्स के लिये:
आंग्ल-कुकी युद्ध
चर्चा में क्यों?
कुकी उग्रवादियों के कुछ समूहों ने मणिपुर में कुकी और नगाओं के बीच बढ़ते तनाव को खत्म करने के लिये प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप की मांग की है।
वर्तमान तनाव का कारण
- कुकी और नगा समुदायों के बीच तनाव कोई नई बात नहीं है। दरअसल, कुकी नामक गाँव में दोनों समुदायों के बीच अपने-अपने पूर्वजों की स्मृति में पत्थर के स्मारक स्थापित करने को लेकर विवाद चल रहा है। दोनों समुदायों के बीच तनाव को देखते हुए मणिपुर सरकार ने स्मारकों को हटाने का आदेश दे दिया है।
- कुकी इंपी चुराचंदपुर (Kuki Inpi Churachandpur-KIC) के तत्त्वावधान में एक समिति द्वारा आंग्ल-कुकी युद्ध की शताब्दी मनाई गई। KIC जो कि विभिन्न पूर्वोत्तर राज्यों में कुकी समुदाय की सर्वोच्च संस्था है, ने सभी कुकी गाँवों को शिलालेख के साथ पत्थर के स्मारक स्थापित करने के लिये कहा था। लेकिन नगा समुदाय के लोगों ने नगाओं की पैतृक भूमि पर इन पत्थरों को स्थापित करने का विरोध किया।
आंग्ल-कुकी युद्ध
- (The Anglo-Kuki War)
- अंग्रेजों के आगमन से पहले, मणिपुर के महाराजाओं के शासन के दौरान कुकी इम्फाल के पहाड़ी क्षेत्रों की प्रमुख जनजातियों में से एक थे।
- उस समय कुकी जनजाति के लोगों ने अपने क्षेत्र पर पूर्ण नियंत्रण बनाए रखा।
- अतः आंग्ल-कुकी युद्ध निश्चित रूप से साम्राज्यवादियों से कुकी समुदाय के लोगों की स्वतंत्रता और मुक्ति के लिये लड़ा गया युद्ध था।
- इस युद्ध ने पूर्वोत्तर भारत, म्याँमार और बांग्लादेश में रहने वाले कुकी समुदाय को एकीकृत किया था।
- एंग्लो-कूकी युद्ध की शुरुआत तब हुई जब अंग्रेजों ने कुकी समुदाय के लोगों को फ्राँस में अपने श्रम समूहों में शामिल होने को कहा और कुकी समुदाय द्वारा इसका विरोध किया गया।
- “The Anglo-Kuki War, 1917–1919: A Frontier Uprising against Imperialism during the First World War” नामक पुस्तक के अनुसार, इस यूद्ध को तीन चरणों में विभाजित किया जा सकता है:
- पहला चरण (मार्च-अक्तूबर 1917) निष्क्रिय प्रतिरोध का चरण
- दूसरा चरण (अक्तूबर 1917-अप्रैल 1919) सशस्त्र प्रतिरोध की अवधि थी
- तीसरा चरण (अप्रैल 1919 से आगे) मुकदमों और आपत्तियों की अवधि थी।
क्या कहते हैं नगा?
- नगा लोगों का दावा है की वर्ष 1917 में “आंग्ल-कुकी युद्ध” नहीं बल्कि “कुकी विद्रोह" हुआ था।
- मणिपुर के नागा समुदायों की शीर्ष संस्था यूनाइटेड नगा काउंसिल (United Naga Council-UNC) का दृढ़तापूर्वक यह कहना है कि अंग्रेजों के खिलाफ कुकी विद्रोह श्रमिक वाहिनी योजना के तहत श्रमिक भर्ती अभियान के विरुद्ध था।
- इसके बाद, नगा समुदायों ने राज्य सरकार को उचित कदम उठाने के लिये कहा, ताकि मणिपुर का इतिहास विकृत न हो।
अतीत में कुकी-नगा संघर्षों के कारण
1. मणिपुर का पुनर्गठन
- वर्ष 1919 में आंग्ल-कुकी युद्ध के समापन के बाद, प्रशासनिक और लोजिस्टिक्स सुगमता की दृष्टि से मणिपुर राज्य को चार क्षेत्रों में विभाजित किया गया था।
- इसमें इम्फाल, चुराचंदपुर, तमेंगलोंग (जो कि कुकी, कबुई नगा और कत्था नगा थे) और उखरुल (जो कुकी और तंगखुल नागा द्वारा बसा हुआ था) जैसे क्षेत्र शामिल थे।
- मणिपुर के पुनर्गठन को युद्ध का सबसे प्रमुख परिणाम बताया गया है।
- कुकी प्रमुख जिन्हें पहले किसी नौकरशाही नियंत्रण के अधीन कार्य नहीं किया गया था, अब उन्हें नौकरशाही के तहत कार्य करना था।
पहचान
- यह माना जाता है कि कुकी समुदाय के लोग 18वीं शताब्दी के अंत/19वीं शताब्दी की शुरुआत में पड़ोसी देश म्याँमार से मणिपुर आए थे।
- एक और जहाँ इस समुदाय के कुछ लोग म्याँमार सीमा के आस-पास बसे, वहीँ कुछ अन्य लोग नगा समुदाय वाले गाँवों में बस गए, जो अंततः दोनों समुदायों के बीच विवाद का कारण बना।
- औपनिवेशिक काल के दौरान दोनों के बीच संबंध और अधिक खराब हो गए और आंग्ल-कुकी युद्ध के समय यह चरम पर पहुँच गया, जिसे तांगखुल नगाओं के मौखिक इतिहास में "अँधेरे की अवधि" (Dark Period) कहा जाता है।
- निश्चित रूप से इन दोनों समुदायों के बीच जातीय संघर्ष का कारण पहचान और भूमि हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विविध
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (19 October)
1. भारतीय रिज़र्व बैंक ने 'ऑन टैप' भुगतान प्रणालियों को अधिकृत किया
भारतीय रिज़र्व बैंक ने नवाचार और प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने के लिये 'ऑन टैप' भुगतान प्रणालियों को अधिकृत करने के दिशा-निर्देश जारी किये हैं। इनके लिये अनिवार्य न्यूनतम राशि की भी घोषणा की गई है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक ने भारत बिल भुगतान प्रचालन ईकाई- BBPOU, व्यापार प्राप्य छूट प्रणाली- TReDS और व्हाइट लेबल एटीएम को ऑन टैप अधिकार देने का फैसला किया है।
- इस क्षेत्र में आने या BBPOU के लिये प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराने की इच्छुक कंपनियों को एक अरब रुपए की न्यूनतम राशि रखनी होगी और यह स्तर हर समय बनाए रखना होगा।
- TReDS के लिये न्यूनतम इक्विटी पूंजी 25 करोड़ रुपए निर्धारित की गई है।
- व्हाइट लेबल एटीएम क्षेत्र में आने वाली कंपनियों को भी न्यूनतम एक करोड़ रुपए की पूंजी रखनी होगी।
- लाइसेंस देने का निर्णय प्रस्ताव के गुण और इस क्षेत्र में अतिरिक्त इकाइयों के लिये कारोबार की संभावनाओं के बारे में केंद्रीय बैंक के आकलन के आधार पर दिया जाएगा।
- विदित हो कि इस वर्ष जनवरी में रिज़र्व बैंक ने नई खुदरा भुगतान प्रणालियों को अधिकृत करने के बारे में नीति पत्र जारी किया था।
BBPOU और TREDS क्या है?
भारत बिल भुगतान ऑपरेटिंग यूनिट (BBPOU) BBPCU भारत बिल भुगतान के माध्यम से लेन-देन से संबंधित समाशोधन और निपटान गतिविधियों को पूर्ण करता है।
TReDS, व्यापार प्राप्य बट्टाकरण/छूट प्रणाली (Trade Receivable Discounting System-TReDS) MSME को कॉर्पोरेट से मिलने वाले प्राप्यों के भुगतान के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) द्वारा शुरू की गई एक पहल है। इसका गठन RBI द्वारा भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम 2007 (Payment and Settlement Systems Act 2007) के तहत स्थापित नियामक ढाँचे के तहत किया गया है।
2. ब्रिटेन और ईयू के वार्ताकारों के बीच ब्रेग्जिट समझौते पर सहमति
- ब्रसेल्स में ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और यूरोपीय नेताओं की बैठक से पहले वार्ताकारों के बीच ब्रेग्जिट समझौते पर सहमति बन गई है।
- ईयू आयोग के अध्यक्ष ज्यां क्लोद जुंके ने भी करार पर सहमति बनने की पुष्टि करते हुए कहा कि अब इसे यूरोपीय नेताओं के समक्ष चर्चा के लिये रखा जाएगा।
- ईयू सम्मेलन में शामिल होने के लिये ब्रसेल्स पहुँचे जॉनसन ने कहा, ''हम एक बेहतरीन करार पर सहमति बनाने में सफल हुए हैं। यह ईयू और ब्रिटेन के लिये निष्पक्ष और संतुलित है एवं यह समस्या का हल निकालने के लिये हमारी प्रतिबद्धता के अनुरूप है। उन्होंने यूरोपीय परिषद से करार को समर्थन देने की अनुशंसा की।''
- ब्रिटेन और ईयू करार के कानूनी मसौदे पर काम कर रहे हैं, लेकिन इसे लागू करने के लिये ब्रिटेन और ईयू की संसदों से मंजूरी लेनी होगी।
- उत्तरी आयरलैंड की डेमोक्रेटिक यूनियनिस्ट पार्टी (DUP) ने यह कहकर आशंका पैदा कर दी है कि वह अब भी इस करार का समर्थन नहीं करेगी।
- उल्लेखनीय है कि ब्रिटेन को 31 अक्तूबर तक ईयू से अलग होना है और जॉनसन इस समय-सीमा में किसी करार पर पहुँचना चाहते।
- ब्रिटेन की ओर से वार्ता टीम का नेतृत्व ईयू से अलग होने के मामले के राज्यमंत्री स्टीफन बर्कले और ईयू वार्ता टीम का नेतृत्व माइकल बरनिये ने किया
- बहरहाल, अब भी यूरोपीय संघ, आयरलैंड और ब्रिटेन के बीच सीमा शुल्क एवं कर व्यवस्था को लेकर गतिरोध बना हुआ है।
3. डॉ. वाई.एस.आर. नवोदयम योजना
- आंध्र प्रदेश की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी ने राजधानी अमरावती में डॉ. वाई.एस.आर. नवोदयम योजना लॉन्च की।
- इस आउटरीच योजना के अंतर्गत छोटे और मध्यम उद्योगों (MSME) को बढ़ावा दिया जाएगा।
- इस योजना से लगभग 80,000 इकाइयों को लाभ मिलेगा तथा लाखों लोगों को रोज़गार के अवसर मिलेंगे।
- इस योजना के तहत महाप्रबंधक की अध्यक्षता में प्रत्येक ज़िला उद्योग केंद्र में एक विशेष प्रकोष्ठ बनाया जा रहा है, जिससे खातों को स्थिर करने के लिये सभी पुनर्गठित MSME को छह महीने के लिये सहायता प्रदान की जा सके।
4. IFFI का स्वर्ण जयंती संस्करण (Curtain Raiser)
- भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (IFFI) के 50वें संस्करण का आयोजन 20 से 28 नवंबर के बीच गोवा में आयोजित किया जाएगा, जिसमें विभिन्न देशों की 200 से अधिक फिल्में दिखाई जाएंगी।
- IFFI के स्वर्ण जयंती संस्करण में प्रतिष्ठित गोल्डन पीकॉक पुरस्कार पाने के लिये 20 देशों का प्रतिनिधित्त्व करने वाली 15 फिल्मों के बीच कड़ा मुकाबला होगा। इन फिल्मों चयन 700 से अधिक फिल्मों के बीच से किया गया है।
इनमें पेमा सिदान की बलून (चीन), अली आईदिन की क्रोनोलाजी (तुर्की), एंड्रेस होर्वाथ की लिलियन (आस्ट्रिया), वेगनर मौरा की मैरीघेला (ब्राजील), हंस पीटर मोलंद की आउट स्टीलिंग हॉर्सेज़ (नार्वे, स्वीडन, डेनमार्क), बेल्ज हेरीसन की पार्टिकल (फ्राँस/स्विट्ज़ररलैंड), ग्रेगोर बोजिक की स्टोरीज़ फ्रॉम चेस्टनट वुड्स (स्लोवेनिया), योसेप अंजी नोइन की द साइंस आफ फिक्शन (इंडोनेशिया, मलेशिया और फ्राँस), इरडिनबिलेग गनबोल्ड की स्टीड (मंगोलिया) क्रिस्तोफ डेक की केप्टिव (हंगरी) और बेन रेखी की वाच लिस्ट (फिलीपींस) प्रतियोगिता में हैं। प्रतियोगिता खंड में महिला फिल्म निर्माता सोफी डेरेस्पे की एंटीगोन और महनाज मोहम्मदी की सन-मदर शामिल हैं।
50वें IFFI में भारत का प्रतिनिधित्त्व अनंत नारायण महादेवन के निर्देशन में बनी मराठी फिल्म माई घाट: क्राइम नं 103/2005 और लिजो जॉस पेल्लीसेरी द्वारा निर्देशित मलयालम फिल्म जलीकट्टू करेंगी।
- इस फिल्म महोत्सव में सिनेमेटोग्राफर और एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्टस एंड साइंस के पूर्व अध्यक्ष जॉन बैले अंतर्राष्ट्रीय ज्यूरी की अध्यक्षता करेंगे।
- कान अंतर्राष्ट्रीय ज्यूरी 2019 के सदस्य और फ्राँस के फिल्म निर्माता रॉबिन काम्पिलो, चीन के प्रसिद्ध फिल्म निर्माता जांग यांग और ब्रिटिश सिनेमा की लायने रॉमसे सह-ज्यूरी होंगे।
- प्रसिद्ध फिल्म निर्माता रमेश सिप्पी अंतर्राष्ट्रीय ज्यूरी में भारतीय सदस्य होंगे।