ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 19 Nov, 2018
  • 39 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

हड़प्पा सभ्यता और जलवायु परिवर्तन

संदर्भ

हाल ही में किये गए एक अध्ययन में यह खुलासा किया गया है कि हड़प्पा सभ्यता के नष्ट होने की वज़ह जलवायु परिवर्तन हो सकता है। अध्ययन के मुताबिक, लगभग 3000-4500 वर्ष पहले वायु तथा वर्षा के पैटर्न में बदलाव की वज़ह से तीक्ष्ण शीतकालीन मानसून का ह्रास होना शुरू हुआ होगा। सबसे पहले नमीयुक्त शीतकालीन मानसून ने शहरी हड़प्पाई समाज को ग्रामीण समाज में बदल दिया होगा, जिसके परिणामस्वरूप हड़प्पा वासियों ने घाटी से हिमालय के मैदानी क्षेत्रों में पलायन करना शुरू कर दिया होगा। इसके बाद शीतकालीन मानसून का और अधिक ह्रास ग्रामीण हड़प्पा सभ्यता के नष्ट होने की वज़ह बना होगा।

महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष

  • वैज्ञानिकों के एक अंतर्राष्ट्रीय समूह द्वारा किये गए इस अध्ययन का शीर्षक ‘नियोग्लेशियल क्लाइमेट एनॉमलीज़ एंड हड़प्पाई मेटामॉरफोसिस (Neoglacial climate anomalies and the Harappan metamorphosis)’ था।
  • वैज्ञानिकों ने अरब सागर के पाकिस्तान के महाद्वीपीय मार्जिन से तलछट इकठ्ठा किया, पिछले 6,000 वर्षों के भारतीय शीतकालीन मानसून जैसा वातावरण पुनर्निर्मित किया और समुद्री जीवाश्म तथा समुद्री डीएनए की जाँच की।
  • सिंधु घाटी के तापमान तथा मौसम के पैटर्न में बदलाव की वज़ह से ग्रीष्मकालीन मानसूनी बारिश में धीरे-धीरे कमी आने लगी जिस वज़ह से हड़प्पाई शहरों के आस-पास कृषि कार्य किया जाना मुश्किल या असंभव हो गया।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, सिंधु तथा उसकी सहायक नदियों में बाढ़ की तीव्रता और संभाव्यता लगातार कम होती गई जिससे कृषि पर बुरा प्रभाव पड़ा। सरस्वती का जलमार्ग, घग्गर-हकरा संभवतः उस दौरान ही शुष्क हुआ होगा।
  • जलवायु में इस प्रकार के परिवर्तनों की वज़ह से ही हड़प्पा सभ्यता के विनाश की शुरुआत हुई होगी।
  • जलवायु से संबंधित इन विसंगतियों की समाप्ति के बाद 3000-3300 वर्ष के दौरान शीतकालीन मानसून के ह्रास की शुरुआत हुई।

सिंधु घाटी और मानसून

  • यह सभ्यता सिंधु नदी के जलोढ़ मैदानों तथा उसके आसन्न क्षेत्रों पर विकसित हुई थी।
  • अध्ययन के अनुसार, हड़प्पा सभ्यता में शहरों के नज़दीक बड़े पैमाने पर नहरों द्वारा सिंचाई के माध्यम से जल संसाधनों को नियंत्रित करने के लिये बहुत कम प्रयास किये गए थे। हड़प्पावासी मुख्य रूप से सर्दियों की फसलों के लिये नदियों पर तथा गर्मियों की फसलों के लिये बारिश पर निर्भर रहते थे।
  • यद्यपि शहरी हड़प्पाई सभ्यता के विनाश की वज़ह ग्रीष्मकालीन मानसून था, अध्ययन इस ओर भी इंगित करता है कि हड़प्पा की कृषि अर्थव्यवस्था जल-उपलब्धता पर बहुत ज़्यादा निर्भर थी।
  • हालाँकि उत्तर हड़प्पाई सभ्यता की दीर्घकालिक उत्तरजीविता अब भी अध्ययन का विषय है।

साक्ष्य

  • शोधकर्त्ताओं की टीम सिंधु नदी के उद्गम स्थल के पास समुद्र तल की तलछट पर केंद्रित थी, जहाँ ऑक्सीजन की बहुत कम मात्रा होने की वज़ह से उत्पन्न या मृत होने वाली चीज़ें तलछटों में बहुत अच्छी तरह से संरक्षित होती हैं।
  • नमूने या साक्ष्य का संग्रह सामरिक स्थानों पर कोरिंग (किसी भी वस्तु का केंद्रीय भाग काटकर निकालना) के माध्यम से किया गया था जिन्हें चर्प (ध्वनि) का उपयोग करके चुना गया था। चर्प एक ध्वनिक उप-तल प्रोफाइलर होता है जो समुद्री शैवाल पर तलछट का चित्रण करता है।
  • कोरिंग करने वाले पिस्टन की सहायता से सागर की तली से तलछट का एक बेलन निकाला गया। वैज्ञानिक तली से निकाले गए ऐसे ही नमूनों से कैल्शियम कार्बोनेट के छोटे शेल निकालकर उनकी गिनती करते हुए यह अवलोकन करते हैं कि उनमें से कितने शीतकालीन मानसून की स्थितियों हेतु विशिष्ट हैं।

कार्य-क्षेत्र और सीमाएँ

  • हालाँकि यह अध्ययन हड़प्पाई बस्तियों में गर्मी और सर्दियों की वर्षा में विविधता के व्यापक स्थानिक और लौकिक पैटर्न प्रदर्शित करता है लेकिन साथ ही यह भी स्वीकार करता है कि इसमें ‘स्थानीय हाइड्रोक्लाइमेट पहलुओं’ पर पूरी तरह से विचार नहीं किया गया है।
  • सिंधु सभ्यता की कहानी आज इसलिये महत्त्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि यह जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से संबंधित विभिन्न ज्वलंत उदाहरण प्रस्तुत करती है। सिंधु घटी सभ्यता के लोग बुद्धिमान थे और जलवायु परिवर्तन से निपट सकते थे। लेकिन वे विस्थापित हो गए और नई परिस्थितियों के अनुरूप ढल गए। एक बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिरकार उन्होंने यह कुर्बानी किसलिये दी?

शासन व्यवस्था

CBI और राज्य (Why CBI Needs Consent)

संदर्भ

हाल ही में आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल की सरकारों ने राज्य के किसी भी मामले की CBI जाँच पर ‘सामान्य सहमति’ वापस ले ली। दोनों राज्यों ने यह कहते हुए सहमति वापस ली है कि हाल ही में CBI में शीर्ष अधिकारियों के बीच खुले मतभेद को देखते हुए उन्हें इस शीर्ष जाँच एजेंसी में कोई विश्वास नहीं है। इसके अलावा, समय-समय पर कुछ ऐसे आरोप भी सामने आते रहते हैं जिनमें कहा जाता है कि केंद्र सरकार विपक्षी दलों को लक्षित करने के लिये CBI का दुरुपयोग कर रही है।

क्या होती है सामान्य सहमति?

  • राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) जो अपने स्वयं के NIA अधिनियम द्वारा शासित है और जिसका अधिकार क्षेत्र पूरा देश है के विपरीत, CBI दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम द्वारा शासित है जो राज्य सरकार की उस राज्य में जाँच करने के लिये अनिवार्य है।
  • सहमति दो प्रकार की होती है- एक केस-विशिष्ट सहमति और दूसरी, सामान्य सहमति। हालाँकि CBI का अधिकार क्षेत्र केवल सरकारी विभागों और कर्मचारियों तक सीमित है लेकिन राज्य सरकार की सहमति मिलने के बाद यह राज्य सरकार के कर्मचारियों या हिंसक अपराध से जुड़े मामलों की जाँच भी कर सकती है।
  • ‘सामान्य सहमति’ आमतौर पर CBI को संबंधित राज्य में केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच करने में मदद के लिये दी जाती है। और लगभग सभी राज्यों द्वारा ऐसी सहमति दी गई है। यदि राज्यों द्वारा सहमति नहीं दी गई है तो CBI को हर एक मामले में जाँच करने से पहले राज्य सरकार से सहमति लेना आवश्यक होगा। उदाहरण के लिये यदि CBI मुंबई में पश्चिमी रेलवे के क्लर्क के खिलाफ रिश्वत के मामले की जाँच करनी चाहती है, तो उस क्लर्क पर मामला दर्ज करने से पहले CBI को महाराष्ट्र सरकार के पास सहमति के लिये आवेदन करना होगा।

सहमति वापस लेने से क्या तात्पर्य है?

  • सहमति वापस लेने का तात्पर्य यह है कि CBI इन दोनों राज्यों की केस-विशिष्ट सहमति के बिना इन राज्यों में केंद्र सरकार के किसी भी कर्मचारी या राज्य में रह रहे किसी भी गैर-सरकारी व्यक्ति के खिलाफ नए मामले दर्ज नहीं कर सकेगी।
  • स्पष्टतः यह कहा जा सकता है कि राज्य सरकार की अनुमति के बिना इन राज्यों में प्रवेश करते ही किसी भी CBI अधिकारी के पुलिस अधिकारी के रूप में सभी अधिकार समाप्त हो जाएंगे।

सामान्य सहमति वापस लेने का प्रावधान

  • दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम की धारा 6 के अनुसार, राज्यों (केंद्रशासित प्रदेशों को छोड़कर) की सहमति के बिना दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम, 1946 की धारा 5 (जो कि CBI के अधिकार क्षेत्र से संबंधित है) में निहित किसी भी अधिकार का प्रयोग राज्य में नहीं किया जा सकेगा।

आगे की राह

  • ‘सामान्य सहमति’ वापस लेने के बाद भी CBI उन पुराने मामलों की जाँच कर सकेगी जिन्हें उस समय दर्ज किया गया था जब CBI को इन राज्यों में आम सहमति प्राप्त थी। इसके अलावा, CBI को ऐसे मामलों में भी जाँच करने को अनुमति होगी जो देश में किसी अन्य स्थान पर पंजीकृत हुए हों लेकिन आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल के लोगों से संबंधित हों ।
  • राज्य सरकार की सहमति के बिना पुराने मामलों के संबंध में एजेंसी दोनों राज्यों में से किसी में भी जाँच कर सकती है अथवा नहीं, इस पर अभी तक अस्पष्टता है।
  • हालाँकि इसके साथ-साथ कानूनी उपचार भी हैं। CBI हमेशा राज्य में स्थानीय अदालत से सर्च वारंट प्राप्त कर सकती है और संबंधित राज्य में तलाशी कर सकती है।
  • यदि जाँच के दौरान अचानक तलाशी की आवश्यकता होती है, तो इसके लिये CrPc की धारा 166 उपलब्ध है जिसके अनुसार, एक क्षेत्राधिकार का पुलिस अधिकारी दूसरे क्षेत्राधिकार के अधिकारी को अपनी ओर से तलाशी करने के लिये कह सकता है।
  • यदि पहले अधिकारी को लगता है कि दूसरे अधिकारी की तलाशी से साक्ष्यों को नुकसान पहुँच सकता है तो उपरोक्त धारा के अनुसार, पहला अधिकारी दूसरे अधिकारी को नोटिस देने के बाद स्वयं ही जाँच कर सकता है।

वर्तमान परिदृश्य

  • सहमति वापस लेने से CBI केवल आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल के अधिकार क्षेत्र में मामला दर्ज नहीं कर सकेगी। परंतु CBI अब भी दिल्ली में मामला दर्ज कर सकती है और दोनों राज्यों में लोगों की जाँच का कार्य जारी रख सकती है।
  • 11 अक्तूबर, 2018 को दिये गए दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश ने यह स्पष्ट कर दिया था कि अगर उस राज्य में, जिसने ‘सामान्य सहमति’ वापस ले ली है और वहाँ मामला दर्ज नहीं किया गया है तो CBI वहाँ जाँच कर सकती है।
  • यह आदेश छत्तीसगढ़ (जोकि हर बार मामले के आधार पर सहमति देता है) में भ्रष्टाचार के मामले पर दिया गया था। अदालत ने आदेश दिया था कि CBI छत्तीसगढ़ सरकार की पूर्व सहमति के बिना किसी भी मामले में जाँच कर सकती है क्योंकि यह मामला दिल्ली में पंजीकृत था।
  • CBI अभी भी दिल्ली में मामला दर्ज कर सकती है, बशर्ते ऐसे मामलों के कुछ हिस्से दिल्ली से जुड़े हुए हों और इन मामलों के आधार पर CBI मंत्रियों या सांसदों को गिरफ्तार कर उन पर मुक़दमा चला सकती है।

निष्कर्ष

ऐसा पहली बार नहीं हुआ जब किसी राज्य सरकार ने CBI संबंधी ‘सामान्य सहमति’ वापस ली है। पिछले कुछ वर्षों में सिक्किम, नगालैंड, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक समेत कई राज्यों ने ऐसा किया है। लेकिन यदि किसी राज्य सरकार को ऐसा लगता है कि राज्य में सत्तारूढ़ दल के मंत्रियों या सदस्यों को केंद्र सरकार के आदेश पर CBI द्वारा लक्षित किया जा सकता है और सामान्य सहमति को वापस लेकर वे सुरक्षित रह सकेंगे तो शायद यह एक गलत धारणा है।


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत का ज़ोर चीन के साथ कृषि रणनीति बढ़ाने पर

संदर्भ

ज्ञातव्य है कि संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ चीन का व्यापार युद्ध जारी है, अतः उसके प्रभाव को कम करने के लिये चीन गैर-यू.एस. आयात के लिये उदारता प्रदर्शित कर रहा है। चूँकि इस बात की अत्यंत कम संभावना है कि दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ संभावित संघर्ष विराम पर सहमत हों। अतः इस क्षेत्र में बेहतर निर्यात अवसर की संभावना को देखते हुए भारत का ज़ोर चीन में अपने कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ाने पर है।

प्रमुख बिंदु

  • यह समझते हुए कि चीन व्यापार युद्ध के मद्देनज़र अपने आयातों को विविधता प्रदान कर अपनी खाद्य सुरक्षा को पहली प्राथमिकता देगा, अतः नई दिल्ली ने बीज़िंग के साथ अपनी कृषि-कूटनीति को बढ़ा दिया है।
  • इसी संदर्भ में पिछले दो महीनों से भारतीय खाद्य और पेय उत्पादकों द्वारा चीन की राजधानी में संगोष्ठियों और रोड-शो का आयोजन किया जा रहा है।
  • असम की चाय के लिये विशेष रूप से चीन में अच्छी संभावनाएँ हैं क्योंकि यह दूध के साथ अच्छी तरह से घुल जाती है। चीन परंपरागत रूप से ग्रीन टी का बाज़ार रहा है लेकिन अब युवाओं में ब्लैक टी को पीने का चलन तेज़ी से बढ़ रहा है।
  • इस वर्ष जून में चीन को शुरू किये गए चीनी निर्यात से भारत को भी लाभांश का भुगतान प्राप्त हुआ।
  • इस महीने की शुरुआत में वाणिज्य मंत्रालय के एक बयान में कहा गया था कि भारतीय चीनी मिल्स एसोसिएशन ने कॉफ्को (COFCO) के साथ 50,000 टन के पहले चीनी निर्यात अनुबंध पर हस्ताक्षर किये थे।
  • चीन ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के क़िंगदाओ शिखर सम्मेलन के दौरान जून में भारत से गैर-बासमती चावल का आयात भी शुरू किया है। अधिकारियों का कहना है कि चीन भारतीय चावल के लिये5- 2 बिलियन डॉलर का एक आकर्षक बाज़ार है।
  • इस वर्ष अक्तूबर में भारतीय चावल व्यापारियों के एक प्रतिनिधिमंडल की बीजिंग यात्रा के बाद चीन ने भारत स्थित 24 चावल मिलों के लिये अपने दरवाज़े खोल दिये। ये प्रयास चीन-यू.एस. के बीच जारी व्यापार युद्ध को देखते हुए चीन के कृषि बाज़ार का लाभ उठाने के लिये किये जा रहे हैं।

सोया स्रोत

  • यद्यपि भारतीय सोयाबीन का निर्यात स्पष्ट रूप से प्राथमिकता में है, चीन द्वारा विशेष रूप से अमेरिकी आयात पर 25% शुल्क लगाए जाने के बाद भी चीन के बड़े सोयाबीन बाज़ार में अभी तक पूर्ण रूप से सफलता नहीं प्राप्त हुई है, हालाँकि वार्ताओं के माध्यम से इसमें कुछ प्रगति देखी जा सकती है।
  • हालाँकि अन्य कृषि उत्पाद चीनी बाज़ार में अपना स्थान बनाने में सोयाबीन से आगे निकल सकते हैं। हाल ही में जय श्री टी एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने चीन सरकार के स्वामित्व वाली कॉफ़्को (COFCO) के साथ ब्लैक टी निर्यात के लिये 1 मिलियन डॉलर के अनुबंध पर हस्ताक्षर किये।

व्यापार असंतुलन

  • वृद्धिशील प्रगति के संकेतों के बावजूद भारत का चीन के साथ 63 अरब डॉलर का व्यापार असंतुलन खतरनाक है। फार्मास्यूटिकल्स, सूचना प्रौद्योगिकी सेवाएँ और पर्यटन के क्षेत्र में भारत का एक महत्त्वपूर्ण वैश्विक पदचिह्न है, लेकिन चीन में इनकी "कमज़ोर उपस्थिति" देखी गई है।
  • इस साल की शुरुआत में भारत ने डब्ल्यूटीओ में चीन की व्यापार नीति समीक्षा के दौरान अपने प्रतिकूल व्यापार संतुलन के बारे में चिंता व्यक्त की और विशेष रूप से उन बाधाओं का हवाला दिया जिसके कारण चावल, माँस, फार्मास्यूटिकल्स और आईटी उत्पादों के भारतीय निर्यातकों को चीनी बाज़ार तक पहुँचने में प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा था।

भारतीय अर्थव्यवस्था

वित्त मंत्रालय एवं आरबीआई के मध्य विवाद

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार ने केंद्रीय बैंक, रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की करीबी तौर से निगरानी के लिये नियमों में परिवर्तन हेतु एक प्रस्ताव पेश किया है। मोदी प्रशासन ने अनुशंसा की है कि रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया का बोर्ड, पैनल की स्थापना के लिये विनियमन मसौदे (draft regulation) का निर्माण करेगा। यह पैनल वित्तीय स्थिरता (Financial stability), मौद्रिक नीति हस्तांतरण (monetary policy transmission), विदेशी विनिमय प्रबंधन (Foreign Exchange Management) संबंधित पर्यवेक्षण कार्यों को करेगा।

उद्देश्य

सरकार द्वारा यह कदम उठाने के पीछे नीहित उद्देश्य है, आरबीआई के नियामक बोर्ड को सशक्त करना जिसमें सरकार के उम्मीदवार शामिल होते हैं; और साथ ही इसे पर्यवेक्षी की भूमिक प्रदान करना।

संभावित विवाद

  • नवीनतम प्रस्ताव, भारत के वित्त मंत्रालय और केंद्रीय बैंक के बीच तनाव को बढ़ा सकता है। इस संबंध में 19 नवंबर को होने वाली मीटिंग में चर्चा किये जाने वाले विभिन्न मुद्दों पर आपस में टकराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इन मुद्दों में सरकार को अधिशेष कोष का स्थानांतरण (Transfer of Surplus Funds), खराब ऋण मानदंडों (Bad Loan Norms) को आसान बनाना, शैडो बैंकिंग सेक्टर (Shadow Banking Sector) की तरलता को सुनिश्चित करना आदि शामिल होंगे।
  • रिज़र्व ट्रांसफर (Reserve Transfer) के अलावा पूंजी पर्याप्तता अनुपात (Cash Adequacy Ratio), जो कि वर्तमान में 9% है, को भी सरकार और आरबीआई के मध्य टकराव का मुद्दा माना जा रहा है। सरकार का मानना है कि वैश्विक मानदण्डों (बैंक ऑफ इंटरनेशनल सेप्लमेंट 8% है) की तुलना में यहाँ के मानदंड काफी कठोर हैं।

सरकार एवं आरबीआई के तर्क

  • हाल में अधिशेष भंडार (Surplus Reserve) का हस्तांतरण, सरकार और केंद्रीय बैंक के मध्य विवाद का मुद्दा बना हुआ है। सरकार अतिरिक्त फंड (Additional Fund) पर अधिकार प्राप्त करना चाह रही है ताकि सड़क, पोर्ट एवं देश के गरीबों पर होने वाले व्यय में वृद्धि की जा सके।
  • वहीं आरबीआई का कहना है कि सरकार को फंड का ट्रांसफर, RBI की स्वतंत्रता को कमज़ोर कर देगा एवं बाज़ार को भी नुकसान पहुँचाएगा।
  • 19 नवंबर, 2018 को होने वाली बैठक में सरकार एवं आरबीआई के मध्य सरकार को फंड हस्तांतरण करने संबंधी नियमों को आसान बनाने की बात होगी। साथ ही, कमज़ोर बॉण्ड्स (Weak bonds) के मानदण्डों को उदार बनाना भी शामिल होगा ताकि अर्थव्यवस्था में ऋण को बढ़ावा दिया जा सके।

अन्य बिंदु

  • अनुशंसा में कुछ कमेटियों की स्थापना की बात कही गई है जिसमें प्रत्येक का निर्माण 2 से 3 बोर्ड सदस्यों को शामिल कर, किया जाएगा। निकाय को अधिकार है कि वह RBI एक्ट, 1934 की धारा 58 के तहत नियमों का निर्माण कर सकता है और इसके लिये किसी विधायी परिवर्तन की आवश्यकता नहीं होगी।
  • भारत का RBI भी भारतीय बैंकों के लिये जोखिम भार और पूंजी संबंधित नियमों की समीक्षा करेगा जो कि बेसल दिशा निर्देशों की तुलना में अधिक कड़े माने जाते हैं।
  • एजेंडा के अन्य प्रस्तावों में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों द्वारा प्राप्त 250 मिलियन रुपए तक के ऋणों का पुनर्गठन भी शामिल है।
  • आरबीआई, बैंकिंग क्षेत्र में प्रचलित तंग वित्तीय स्थिति को आसान बनाने के मुद्दे पर भी समने आ सकता है जिसमें बॉण्ड की खुली बाज़ार खरीद के माध्यम से नकद की आपूर्ति शामिल होगी।

शैडो बैंकिंग (Shadow Banking)

  • शैडो बैंकिंग का तात्पर्य उन सभी गैर-बैंक वित्तीय मध्यवर्ती संस्थानों (Non-bank financial intermediaries) से है जो पारंपरिक वाणिज्यिक बैंकों की तरह सेवाएँ प्रदान करते हैं।
  • सामान्यत: ये पारंपरिक बैंकिंग क्रियाकलाप को करते हैं परंतु ऐसा वे विनियमित डिपॉजिटरी संस्थानों की पारंपरिक प्रणाली से अलग हटकर करते हैं।
    शैडो बैंकिंग, 2007-2008 के सब-प्राइम मार्टग़ेज (Sub-prime mortgage) संकट और वैश्विक मंदी का एक प्रमुख कारण रहा था।
  • शैडो बैंक शब्द का प्रयोग 2007 में पॉल मैकक्यूली द्वारा किया गया था जिसका तात्पर्य उन अमेरिकी गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों से था जो लंबी अवधि के ऋणों के लिये शार्ट-टर्म डिपॉजिट्स (short term deposits) का प्रयोग करते थे।
  • शैडो बैंकिंग के कार्यों में शामिल हैं- ऋण मध्यस्थता (Credit intermediation), तरलता रूपांतरण (Liquidity transformation) एवं परिपक्वता रूपांतरण (Maturity transformation) आदि।

भारतीय अर्थव्यवस्था

केरल में खाद्य पदार्थों में ट्रांस फैटी एसिड्स पर नियंत्रण की पहल

विश्व बैंक, विश्व स्वास्थ्य संगठन और FSSAI की तकनीकी सहायता से केरल सरकार का स्वास्थ्य विभाग और खाद्य सुरक्षा विभाग एक नई पहल शुरू करने जा रहा है। इसके तहत खाद्य पदार्थों के लिये दिशा-निर्देश लागू किये जाएंगे। इनमें राज्य में व्यावसायिक रूप से उपलब्ध खाद्य पदार्थों में ट्रांस फैट एसिड्स, नमक और चीनी की मात्रा कम करने की योजना है। यह पहल राज्य में अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों से मेटाबोलिज्म सिंड्रोम में होने वाली बढ़ोतरी तथा असंक्रामक बीमारियों के कारण समय से पहले होने वाली मौतों के बढ़ते आँकड़ों के मद्देनज़र की जा रही है।

नवीनतम अनुमानों से पता चलता है कि 24 से 33 फीसदी केरलवासियों में मेटाबोलिज्म सिंड्रोम होने की संभावना है। अर्थात् प्रत्येक तीन या चार लोगों में से एक में यह सिंड्रोम पाया जा सकता है। महिलाओं में यह समस्या अधिक देखने को मिलती है।

क्या है मेटाबोलिज्म सिंड्रोम (Metabolism Syndrome)?

मेटाबोलिक असामान्यताओं के समूह को मेटाबोलिज्म सिंड्रोम कहते हैं। इन असामान्याताओं में हाई ब्लड प्रेशर, हाई ब्लड सुगर, पेट निकलना और  कोलेस्ट्रॉल या ट्राइग्लिसराइड का असामान्य स्तर शामिल है। ये सभी मिलकर हृदय रोग, स्ट्रोक और डायबिटीज होने का खतरा बढ़ा देते हैं।

केरल में चिंताजनक बात जो देखने में आई वह है ट्राइग्लिसराइडेमिया। यानी रक्त में ट्राइग्लिसराइड का अधिक होना। यह स्तर 45 फीसदी तक देखने को मिला है। इसका एक बड़ा कारण खाद्य पदार्थों में फैट्स और कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा का अधिक होना है। इन हालातों में असंक्रामक बीमारियों के असर को कम करने के लिए आहार में बदलाव की ज़रूरत महसूस की गई। दरअसल, पके हुए खाद्य पदार्थों, फ्राइड चिकन, केले के चिप्स आदि में इस्तेमाल हो रहे इंडस्ट्रियल ट्रांस फैटी एसिड्स और नमक की अधिक मात्रा केरल में मेटाबोलिक सिंड्रोम को बढ़ाने का काम कर रहे हैं।

फैक्ट शीट (ट्रांस फैटी एसिड्स)

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का पैमाना

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय पैमानों के अनुसार Total Energy Intake में ट्रांस फैट्स की मात्रा 1 फीसदी से भी कम होनी चाहिये। इसके अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2023 तक वैश्विक खाद्य आपूर्ति से ट्रांस फैटी एसिड्स को खत्म करने की अपील की है। देश में FSSAI  ने खाद्य पदार्थों में ट्रांस फैटी एसिड्स की मात्रा को 2 फीसदी तक सीमित करने और 2022 तक खाद्य पदार्थों से ट्रांस फैट्स खत्म करने का प्रस्ताव रखा है।

हालात की गंभीरता के मद्देनज़र खाद्य पदार्थों में ट्रांस फैटी एसिड्स की जाँच करने के लिये केरल सरकार का खाद्य सुरक्षा विभाग राज्य भर से सैंपल एकत्र करने की तैयारी कर रहा है। इसके तहत बाज़ार से लोकप्रिय खाद्य वस्तुओं के कम-से-कम 300 सैंपल उठाकर उनमें मौजूद ट्रांस फैटी एसिड्स की मात्रा लेबोरेटरी में जाँची जाएगी।

राज्य के स्वास्थ्य विभाग को उम्मीद है कि आधारभूत जानकारी (Baseline Information) मिल जाने के बाद फूड इंडस्ट्री और असंगठित खाद्य क्षेत्र को ट्रांस फैटी एसिड्स का स्तर कानूनी सीमाओं के भीतर रखने को कहा जाएगा। इसके अलावा इस मुद्दे पर लोगों में जागरूकता उत्पन्न करने के लिये विशेष अभियान चलाने की भी योजना है।


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (19 November)

  • 19 नवंबर: World Toilet Day  का आयोजन;  ‘When Nature Calls’ है इस वर्ष की थीम
  • 19 नवंबर: पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 101वीं जयंती
  • 19 नवंबर: झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की जयंती
  • वर्ल्ड कस्टम ऑर्गेनाईजेशन की क्षेत्रीय बैठक जयपुर में हुई संपन्न; 33 एशियाई देशों ने लिया हिस्सा  
  • पपुआ न्यू गिनी की राजधानी पोर्ट मोर्सबी में संपन्न हुआ एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC) सम्मेलन
  • आठवीं ‘नेशनल कांफ्रेंस ऑफ वीमेन इन पुलिस’ का रांची में आयोजन; गृह मंत्रालय के तहत आने वाला पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो करता है आयोजन 
  • केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु ने लॉन्च किया AieSewa 2.0 वेब पोर्टल और मोबाइल एप का एडवांस वर्ज़न
  • महाराष्ट्र विधानसभा ने पारित किया मराठा आरक्षण विधेयक; सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा नाम की नई कैटेगरी बनी  
  • दिल्ली पुलिस ने अपने कर्मियों को ऑनलाइन प्रशिक्षण और जानकारी देने के लिये लॉन्च किया ई-पोर्टल NIPUN
  • डेयरी किसानों को सब्सिडी पर बीमा कवरेज देने के लिये केरल सरकार ने लॉन्च की ‘गौ समृद्धि योजना’
  • भारत में हाथियों की देखरेख और इलाज के लिये उत्तर प्रदेश के मथुरा में खुला पहला अस्पताल
  • IndusInd Bank ने लॉन्च किया देश का पहला इंटरैक्टिव क्रेडिट कार्ड
  • प्रधानमंत्री ने किया KMP एक्सप्रेस वे का उद्घाटन; दिल्ली में कम होगा वाहनों से होने वाला प्रदूषण  
  • देशभर में 19 से 25 नवंबर तक हो रहा है कौमी एकता सप्ताह का आयोजन
  • ब्लू बेल्स ग्रुप ऑफ स्कूल्स की डायरेक्टर डॉ. सरोज सुमन गुलाटी को मिला ग्लोबल एजुकेशन अवॉर्ड 2018
  • संजय कुमार सेठ मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के 24वें चीफ जस्टिस बने; जबलपुर में है हाई कोर्ट की मुख्य बेंच
  • गुजरात के कच्छ में वैज्ञानिकों को मिला मनुष्य का 1 करोड़ 10 लाख साल पुराना जीवाश्म 
  • पद्मश्री से सम्मानित एड गुरु और थियेटर पर्सनैलिटी अलेक पदमसी का निधन

प्रारंभिक परीक्षा

प्रीलिम्स फैक्ट्स : 19 नवंबर, 2018

भाप इंजन संचालित ट्रेन

17 नवंबर, 2018 को कम-से-कम दो दशकों के बाद भाप इंजन द्वारा संचालित ट्रेन हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा घाटी रेलवे की नैरो गेज लाइन पर वाणिज्यिक रूप से दौड़ी।

    • इस ट्रेन में ब्रिटिश यात्रियों का एक समूह था जो भारतीय रेलवे की विरासत का अनुभव प्राप्त करने के लिये यहाँ आया है।
    • इस ट्रेन के लिये रेलवे ने ZB 66 स्टीम लोकोमोटिव को तैयार किया और इसमें दो कोच जोड़े। ZB श्रेणी के भाप इंजनों को 1950 के दशक में डिज़ाइन किया गया था।
    • ट्रेन ने पालमपुर और बैजनाथ पपरोला के बीच 14 किलोमीटर की दूरी तय की। उल्लेखनीय है कि इस ट्रेन से यात्रा करने के लिये रेलवे ने प्रत्येक यात्री से लगभग 1.5 लाख रुपए वसूले।

कौमी एकता सप्ताह

सांप्रदायिक सद्भाव और राष्ट्रीय एकता तथा मिली-जुली संस्कृति एवं राष्ट्रीय भावना के प्रति गर्व प्रकट करने के लिये पूरे देश में 19-25 नवंबर, 2018 तक कौमी एकता सप्ताह का आयोजन किया जा रहा है।

  • कौमी एकता सप्ताह सहिष्णुता, सह-अस्तित्व तथा भाईचारे के मूल्यों और सदियों पुरानी परंपराओं के प्रति संकल्प व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है।
  • कौमी एकता सप्ताह मनाने से देश को वास्तविक और संभावित खतरों से निपटने में अपनी अंतर्निहित दृढ़ता उज़ागर करने का अवसर मिलता है, देश का धर्मनिरपेक्ष ताना-बाना मज़बूत होता है और सांप्रदायिक सदभाव की भावना बढ़ती है।
  • सांप्रदायिक सौहार्द्र बनाए रखने के लिये गृह मंत्रालय का स्वशासी संगठन नेशनल फाउण्डेशन फॉर कम्युनल हॉरमोनी (NFCH) कौमी एकता सप्ताह के दौरान सांप्रदायिक सौहार्द्र अभियान का आयोजन करता है और 25 नवंबर को सांप्रदायिक सौहार्द्र झंडा दिवस मनाता है।
  • NFCH सांप्रदायिक सौहार्द्र बनाए रखने के लिये प्रोत्साहित करता है और राष्ट्रीय एकता को मज़बूत बनाता है।

‘पुलिस संचार व्यवस्था का आधुनिकीकरण और उसकी चुनौतियाँ'

‘पुलिस संचार व्यवस्था का आधुनिकीकरण और उसकी चुनौतियाँ’ विषय पर 19-20 नवंबर, 2018 को दो दिवसीय सम्मेलन का आयोजन नई दिल्ली में किया जा रहा है।

  • इस सम्मेलन का आयोजन समन्वय पुलिस वायरलेस (DCPW) निदेशालय (देश में पुलिस संचार व्यवस्था के लिये गृह मंत्रालय का एक नोडल सलाहकार निकाय) कर रहा है। सम्मेलन का उद्देश्य देश में पुलिस संचार व्यवस्था के विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श करने और इसे प्रौद्योगिकी विकास के साथ आधुनिक बनाने के लिये एक मंच उपलब्ध कराना है।
  • सम्मेलन में राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों की पुलिस और CAPF के सामने आ रही संचार चुनौतियों के बारे में विचार-विमर्श किया जाएगा।
  • पुलिस संचार व्यवस्था के लिये आवर्ती स्पेक्ट्रम संबंधी मुद्दों, पुलिस संचार व्यवस्था में एन्क्रिप्शन, पुलिस सुरक्षा के लिये अगली पीढ़ी/भविष्य की प्रौद्योगिकी, पुलिस दूरसंचार व्यवस्था में विभिन्न अनुप्रयोगों के लिये सॉफ्टवेयर डिफाइन्ड रेडियो को शामिल करने के बारे में भी इस सम्मेलन में चर्चा की जाएगी।
  • इस सम्मेलन में सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों और CAPF के प्रमुख भाग लेंगे। गृह मंत्रालय, दूरसंचार विभाग का वायरलेस योजना आयोग, भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स एंड अप्लाइड प्रयोगशाला और अन्य प्रतिष्ठित संगठनों के वरिष्ठ अधिकारी भी इस सम्मेलन में शामिल होंगे।

DCPW के बारे में

  • यह विभाग 19 फरवरी, 1946 को अस्तित्व में आया था। शुरुआत में इसे 'वायरलेस इंस्पेक्टरेट' के रूप में और 1950 में गृह मंत्रालय के अधीनस्थ संगठन समन्वय निदेशालय (पुलिस वायरलेस) का दर्जा दिया गया था।

फुटपाथ एंड कंप्यूटेशनल एप्रोच

केंद्रीय सड़क‍ अनुसंधान संस्‍थान ने 16-17 नवंबर, 2018 को ‘फुटपाथ एंड कंप्यूटेशनल एप्रोच’ विषय पर अंतर्राष्‍ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया।

  • इस सम्‍मेलन का उद्देश्य विकासशील देशों की ज़रूरतों पर विशेष ध्‍यान देते हुए दुनिया भर में फुटपाथ प्रौद्योगिकी और सड़क बुनियादी ढाँचा इंजीनियरिंग में हुई प्रगति पर विचार करना था।

परंबिकुलम टाइगर रिज़र्व

परंबिकुलम टाइगर रिजर्व में किये गए एक हालिया सर्वेक्षण में इस रिज़र्व में तितलियों की 221 किस्में पाई गईं, इनमें से 11  किस्में इस क्षेत्र के लिये स्थानिक थीं।

  • बुद्ध पीकॉक या बुद्ध मयूरी केरल की राज्य तितली है।
  • परंबिकुलम टाइगर रिज़र्व दक्षिण-पश्चिमी घाटों की अन्नामलाई और नैल्लीयम्पैथी पहाड़ियों के बीच केरल के पलक्कड़ (Palakkad) ज़िले में स्थित है।


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow