अंतर्राष्ट्रीय संबंध
13वाँ पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (East Asia Summit)
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा सिंगापुर में संपन्न हुए 13वें पूर्वी-एशिया शिखर सम्मेलन (East Asia Summit) में सदस्य देशों के मध्य बहुपक्षीय सहयोग एवं आर्थिक और सांस्कृतिक गठबंधन को बढ़ाने पर चर्चा की गई। इसके साथ ही उन्होंने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को शांतिपूर्ण, समावेशी एवं समृद्ध बनाने के लिये भारत की प्रतिबद्धता को भी स्पष्ट किया।
मुख्य बिंदु
- भारतीय प्रधानमंत्री मोदी का यह 5वाँ पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन था। 2005 में इसकी शुरुआत से ही भारत इस सम्मेलन में भाग ले रहा है।
- सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने शांतिपूर्ण, खुले और समावेशी इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के निर्माण, समुद्री सहयोग को मज़बूत करने एवं एक संतुलित रीज़नल कांप्रीहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (Regional Comprehensive Economic Partnership-RCEP) पैक्ट के लिये भारत के दृष्टिकोण को स्पष्ट किया।
पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (EAS)
- यह एशिया-पैसिफिक क्षेत्र के 18 देशों के नेताओं द्वारा संचालित एक अनूठा मंच है जिसका गठन क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा और समृद्धि के उद्देश्य से किया गया था।
- इसे आम क्षेत्रीय चिंता वाले राजनीतिक, सुरक्षा और आर्थिक मुद्दों पर सामरिक वार्ता और सहयोग के लिये एक मंच के रूप में विकसित किया गया है जो क्षेत्रीय निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- East Asia Grouping की अवधारणा पहली बार 1991 में मलेशिया के प्रधानमंत्री महाथिर-बिन-मोहम्मद द्वारा लाई गई थी परंतु इसकी स्थापना 2005 में की गई।
- EAS के सदस्य देशों में आसियान के 10 देशों (इंडोनेशिया, थाईलैंड, सिंगापुर, मलेशिया, फिलीपींस, वियतनाम, म्याँमार, कंबोडिया, ब्रुनेई और लाओस) के अलावा ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया और यूएस शामिल हैं।
- EAS के प्रेमवर्क के अधीन क्षेत्रीय सहयोग के ये 6 प्राथमिक क्षेत्र आते हैं- पर्यावरण और ऊर्जा, शिक्षा, वित्त, वैश्विक स्वास्थ्य संबंधित मुद्दे एवं विश्वव्यापी रोग, प्राकृतिक आपदा प्रबंधन तथा आसियान कनेक्टिविटी।
- भारत इन सभी 6 प्राथमिक क्षेत्रों में क्षेत्रीय सहयोग का समर्थन करता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत और ADB के बीच समझौता (Agreement between India and ADB)
संदर्भ
एशियाई विकास बैंक और भारत सरकार ने तमिलनाडु राज्य के कम-से-कम दस शहरों में जलवायु-सुदृढ़ जलापूर्ति, सीवरेज और जल निकासी संबंधी बुनियादी ढाँचागत सुविधाओं के विकास से जुड़े 500 मिलियन डॉलर के वित्तपोषण की पहली किस्त के रूप में 169 मिलियन डॉलर के ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किये।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- ADB की ओर से मिलने वाले इस सहयोग से अभिनव एवं जलवायु-सुदृढ़ निवेश के साथ-साथ व्यापक संस्थागत सहयोग के ज़रिये इन जटिल शहरी चुनौतियों से निपटने में मदद मिलेगी।
- ADB का यह कार्यक्रम तमिलनाडु राज्य के विज़न ‘तमिलनाडु 2023’ के लिये उसके द्वारा दिये जाने वाले सहयोग का एक हिस्सा है जिसका उद्देश्य सभी की पहुँच जल एवं स्वच्छता तक सुनिश्चित करना और उच्च कार्य निष्पादन वाले औद्योगिक गलियारों में विश्वस्तरीय शहरों का विकास करना है।
- पहली किस्त में प्राप्त ऋण राशि से चेन्नई, कोयम्बटूर, राजपालयम, तिरुचिरापल्ली, तिरुनेलवेली और वेल्लोर का विकास किया जाएगा।
- जापान सरकार द्वारा बनाए गए एशियाई स्वच्छ ऊर्जा कोष से प्राप्त 2 मिलियन डॉलर के अनुदान से सौर ऊर्जा से जुड़ी प्रायोगिक (पायलट) परियोजना का वित्त पोषण किया जाएगा।
- इसी तरह ADB से एक मिलियन डॉलर का तकनीकी सहायता अनुदान भी इस कार्यक्रम के लिये मिलेगा, ताकि क्षमता निर्माण में सहयोग दिया जा सके।
जैव विविधता और पर्यावरण
संरक्षण हेतु पक्षियों का चुनाव (selection of Birds for conservation)
संदर्भ
ट्रेंड के तौर पर महाराष्ट्र के कुछ शहरों में लोगों ने पक्षियों को आइकॉन के रूप में चुनना शुरू किया है ताकि उन्हें संरक्षित करने हेतु उचित कदम उठाया जा सके। इस प्रकार पूरे शहर द्वारा सबसे ज़्यादा पसंद किया गया पक्षी उस शहर का प्रतिनिधित्व करेगा।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- 54 दिनों के अथक अभियान के बाद इसी वर्ष स्वतंत्रता दिवस के मौके पर महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में वर्धा के लोगों ने नीलपंख या इंडियन रोलर को अपने शहर का आइकॉन चुना।
- चयन की प्रक्रिया बहर नेचर फाउंडेशन और वर्धा नगर निगम द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित की गई थी जिसे मतदान द्वारा संपन्न किया गया।
- यहाँ तक कि वर्धा से बाहर रहने वाले 3,621 प्रवासियों द्वारा ऑनलाइन मतदान भी किया गया था।
- इस दावेदारी हेतु अन्य पक्षी इस प्रकार हैं-
- श्वेतकण्ठ कौड़िल्ला (White-Throated Kingfisher)
- ब्लैक-विंग काइट (The Black-Winged Kite)
- स्पॉटेड आउलेट (The Spotted Owlet)
- कॉपरस्मिथ बार्बेट (the coppersmith barbet)
- कुल मिलाकर 51,267 मत डाले गए थे जिसमें से 29,865 मतों के साथ नीलपंख स्पष्ट रूप से विजेता रहा। श्वेतकण्ठ को 6,950 मत, ब्लैक-विंग काइट को 4,886 मत, जबकि स्पॉटेड आउलेट और कॉपरस्मिथ बार्बेट दोनों में प्रत्येक को 4,805 मत मिले।
- प्रसिद्घ पक्षी विज्ञानी और वन्यजीवन संरक्षणवादी मारुती चितम्पल्ली ने विजेता की घोषणा की।
- शहर का बर्ड आइकॉन चुनने वाला वर्धा महाराष्ट्र का दूसरा, जबकि विदर्भ क्षेत्र में पहला शहर है।
- सबसे पहले कोंकण के सतवंतवाड़ी शहर ने दो साल पहले अपना बर्ड आइकॉन चुना था।
- महाराष्ट्र के अन्य शहर जैसे-जलगाँव और उमरखेड़ भी इसी राह पर आगे बढ़ रहे हैं।
- इस नए प्रयोग ने प्रकृति, पक्षियों और उन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता के प्रति बहुत ज़्यादा रुचि पैदा की है।
- अद्वितीय चुनाव, वाल पेंटिंग, पक्षी विहार, फोटो प्रदर्शनी, साइकिल रैली और ‘नो योर सिटी बर्ड्स’ जैसे अनूठे कार्यक्रमों के माध्यम से जोर-शोर से प्रचार प्रसार किया गया था।
- वर्धा के सांसद, महापौर, कलेक्टर और शीर्ष पुलिस अधिकारियों ने भी इस कार्यक्रम को प्रोत्साहन दिया था।
- खास बात यह है कि शहर के सुविधाजनक स्थान पर नीलपंख पक्षी की एक मूर्ति स्थापित किये जाने का प्रस्ताव भी है।
निष्कर्ष
भारत पक्षियों की सुरक्षा तथा संरक्षण की दिशा में आज भी दुनिया के कई देशों से बहुत पीछे है। जिस भूखंड का वातावरण तथा जलवायु जीवन के अनुकूल हो और वहाँ हरे-भरे पेड़ पौधे तथा वनस्पतियाँ पाई जाती हों, वहाँ पक्षियों के साथ-साथ अन्य जीव−जंतुओं का पाया जाना सुखद होता है। किसी भी क्षेत्र विशेष में पक्षियों और जीव−जंतुओं की उपस्थिति से वहाँ की जलवायु का ठीक-ठाक अनुमान लगाया जा सकता है।
भारत जैसे देश में ऐसे नए प्रयासों का स्वागत किया जाना चाहिये तथा पक्षियों के संरक्षण हेतु शुरू किये गए इस प्रयोग को पूरे भारत में बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
शासन व्यवस्था
सर्वोच्च न्यायालय एवं शिक्षा का अधिकार (Supreme and RTE)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम को लागू करने की मांग वाली एक जनहित याचिका पर आगे सुनवाई से इनकार कर दिया।
प्रमुख बिंदु
- मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, "चमत्कार की उम्मीद मत करो। भारत एक विशाल देश है, यहाँ बहुत सी प्राथमिकताएँ हैं और निश्चित रूप से शिक्षा उन प्राथमिकताओं में से एक है। लेकिन न्यायालय इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।"
- शीर्ष अदालत ने इससे पहले याचिकाकर्त्ता एवं पंजीकृत सोसायटी ‘अखिल दिल्ली प्राथमिक शिक्षक संघ’ से बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम के क्रियान्वयन पर केंद्र सरकार को ज्ञापन सौंपने को कहा था।
- रंजन गोगोई के अतिरिक्त इस पीठ में न्यायमूर्ति एस.के. कौल और न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ शामिल थे। इस पीठ ने याचिकाकर्ता को बताया कि केंद्र ने इस प्रस्ताव के जवाब में कहा था कि वह इस मामले पर ज़रूरी काम कर रहा है।
- आगे हस्तक्षेप से इनकार करते हुए न्यायालय ने आदेश दिया, "हमने याचिकाकर्त्ता के वकील को सुना और प्रासंगिक मामले को समझ लिया है। हम हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं। तद्नुसार रिट याचिका खारिज की जाती है।"
- अखिल दिल्ली प्राथमिक शिक्षक संघ नामक सोसायटी ने 6-14 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों की शिक्षा के अधिकार के कार्यान्वयन की मांग की थी।
- सोसायटी द्वारा दायर की गई याचिका में कहा गया था कि सरकारी स्कूलों के बंद रहने और इन स्कूलों में लगभग 9.5 लाख शिक्षकों के पद खाली होने की वज़ह से बच्चों को कष्ट उठाना पड़ता है।
- इस जनहित याचिका ने कई रिपोर्टों को संदर्भित किया जिसमें देश भर में बच्चों के लिये नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम, 2009 के अधिकारों की कई विशिष्ट आवश्यकताओं की अनदेखी सहित शिक्षा हेतु बच्चों के अधिकारों के व्यवस्थित और व्यापक उल्लंघन दर्शाए गए हैं।
- आँकड़ों का हवाला देते हुए इस याचिका में यह भी बताया गया कि 14,45,807 सरकारी और पंजीकृत निजी स्कूल देश में प्राथमिक शिक्षा प्रदान करते हैं और 2015-16 के आँकड़ों के अनुसार, लगभग 3.68 करोड़ बच्चे ऐसे हैं जो स्कूल नहीं जाते।
- इस सोसायटी ने न्यायालय से अनुरोध किया कि सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को छह महीने के भीतर इन बच्चों की पहचान करने के लिये निर्देश दिया जाए ताकि यह पता लगाया जा सके कि उनमें से कितने बच्चों को औपचारिक स्कूली शिक्षा प्रणाली में शामिल किया जाए।
- इसके अतिरिक्त राज्य और केंद्रशासित प्रदेश उन सभी सरकारी, निजी, सहायता प्राप्त या अवैतनिक स्कूलों की पहचान करें जिनमें बाधा रहित पहुँच, लड़कों और लड़कियों के लिये अलग शौचालय, शिक्षण स्टाफ और शिक्षण संबंधी सामग्री, प्रत्येक शिक्षक के लिये कम-से-कम एक कक्षा के साथ सभी मौसमों के अनुकूल इमारत जैसी उचित आधारभूत संरचना नहीं है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
किलोग्राम की नई परिभाषा (New definition of kilogram)
चर्चा में क्यों?
वैज्ञानिकों ने किलोग्राम की परिभाषा को परिवर्तित कर दिया है और इस नई परिभाषा को 50 से ज़्यादा देशों ने अपनी मंज़ूरी भी दे दी है।
कैसे परिभाषित किया गया है किलोग्राम को?
- वर्तमान में किलोग्राम को प्लेटिनम से बनी एक सिल जिसे 'ली ग्रैंड के' कहा जाता है, के वज़न द्वारा परिभाषित किया जाता है। इस प्रकार की एक सिल पश्चिमी पेरिस में इंटरनेशनल ब्यूरो ऑफ़ वेट्स एंड मीज़र्स के वॉल्ट में वर्ष 1889 से सुरक्षित है।
- लंदन में निर्मित 'ली ग्रैंड के' 90% प्लेटिनम और 10% इरिडियम का बना 4 सेंटीमीटर का एक सिलेंडर है।
'वेट एंड मीज़र्स पर आयोजित सम्मेलन में लिया गया फैसला
- हाल ही में फ्राँस के वर्साइल्स में 'वेट एंड मीज़र्स' पर एक बड़े सम्मलेन का आयोजन किया गया और इस सम्मेलन में किलोग्राम की परिभाषा बदलने के लिये मतदान किया गया और मतदान के बाद किलोग्राम की परिभाषा को बदलने के फ़ैसले पर मुहर लगा दी गई।
- सम्मेलन के दौरान अधिकांश वैज्ञानिकों का मानना था कि किलोग्राम को यांत्रिक और विद्युत चुंबकीय ऊर्जा के आधार पर परिभाषित किया जाए।
किलोग्राम के बदलाव से क्या प्रभाव पड़ेगा?
- किलोग्राम की परिभाषा में बदलाव होने से लोगों का दैनिक जीवन प्रभावित नहीं होगा बल्कि उद्योग और विज्ञान में इसका व्यावहारिक प्रयोग होगा क्योंकि ये ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ सटीक माप की आवश्यकता होती है।
बदलाव की आवश्यकता
- अंतर्राष्ट्रीय मात्रक प्रणाली में किलोग्राम सात मूल इकाइयों में से एक है। सात मूल इकाइयाँ हैं- मीटर, किलोग्राम, सेकंड, एम्पियर, कैल्विन, मोल, कैन्डेला, कूलम्ब या कूलाम)। किलोग्राम अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में अंतिम मूल इकाई है जिसे अभी तक एक भौतिक वस्तु (physical Object) द्वारा परिभाषित किया जाता रहा है।
- चूँकि भौतिक वस्तुओं से परमाणु का ह्रास आसानी से हो सकता है या ये वस्तुएँ हवा से अणुओं को अवशोषित कर सकती हैं इसलिये इसकी मात्रा माइक्रोग्राम में कई बार बदली गई थी।
- इसका तात्पर्य यह है कि किलोग्राम को मापने के लिये दुनिया भर में एक प्रतिमान (prototype) का उपयोग किया जाता है और यह प्रतिमान अशुद्ध माप बताता है।
- सामान्यतः जीवन में इस तरह के मामूली बदलाव को महसूस नहीं किया जा सकता लेकिन एकदम सटीक वैज्ञानिक गणनाओं के लिये यह हमेशा से एक बड़ी समस्या रही है।
आगे की राह
- आने वाले समय में किलोग्राम की माप किब्बल या वाट बैलेंस (एक ऐसा उपकरण जो यांत्रिक और विद्युत चुंबकीय ऊर्जा का उपयोग करके सटीक गणना करता है) की सहायता से की जाएगी।
- नई परिभाषा लागू होने के बाद किलोग्राम की परिभाषा को न तो बदला जा सकेगा और न ही इसे किसी प्रकार की क्षति पहुँचाई जा सकेगी।
- किब्बल केवल फ्राँस में ही नहीं बल्कि दुनिया में कहीं भी वैज्ञानिकों को एक किलोग्राम की सटीक माप उपलब्ध करवाएगा।
जैव विविधता और पर्यावरण
एसी यूनिट्स में वृद्धि से जलवायु को खतरा
एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में एयर कंडीशनिंग यूनिट्स (AC units) की संख्या जितनी तेज़ी से बढ़ रही है उससे वर्ष 2022 तक भारत में प्रयोग की जा रही एयर कंडीशनिंग यूनिट्स की संख्या पूरी दुनिया में उपयोग की जा रही एयर कंडीशनिंग यूनिट्स की संख्या का चौथाई हिस्सा हो सकती है तथा इसके चलते जलवायु को और अधिक खतरा हो सकता है।
प्रमुख बिंदु
- शीतलक (refrigerants) जिनका प्रयोग कूलिंग के लिये किया जाता है, ग्लोबल वार्मिंग के लिये प्रमुख कारकों में से एक है और यदि इन्हें नियंत्रित नहीं किया गया तो ये वैश्विक तापमान में 0.5 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि कर सकते हैं।
- रॉकी माउंटेन इंस्टीट्यूट द्वारा तैयार की गई ‘सॉल्विंग द ग्लोबल कूलिंग चैलेंज’ नामक रिपोर्ट के अनुसार, एक ऐसे तकनीकी समाधान की आवश्यकता है जो इस प्रभाव को 1/5 हिस्से तक कम करने में मदद करे और एयर कंडीशनिंग इकाइयों के संचालन के लिये आवश्यक बिजली की मात्रा में 75% तक कमी सुनिश्चित कर सके।
- रिपोर्ट के मुताबिक, उभरती अर्थव्यवस्थाओं में पाँच गुना वृद्धि के साथ-साथ वर्ष 2050 तक लगभग 50 बिलियन रूम एयर कंडीशनर लगाए जाने का अनुमान है जो वर्तमान में स्थापित यूनिट्स की संख्या का लगभग चार गुना होगा।
- एक तकनीकी समाधान न केवल बिजली ग्रिड पर पड़ने वाले बोझ को कम करेगा बल्कि 109 ट्रिलियन रुपए (1.5 ट्रिलियन डॉलर) की बचत करेगा।
हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs) को हटाना
- भारत उन 107 देशों में से एक है जिन्होंने वर्ष 2016 में उस समझौते पर हस्ताक्षर किये थे जिसका उद्देश्य वर्ष 2045 तक हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC) नामक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस को काफी हद तक कम करना और वर्ष 2050 तक वैश्विक तापमान में होने वाली 0.5 डिग्री सेल्सियस की संभावित वृद्धि को रोकने के लिये कदम उठाना था।
- HFCs गैसों का एक परिवार है जिसका उपयोग मुख्यतः घरों और कारों में प्रयोग किये जाने वाले एयर कंडीशनर में रेफ्रिजरेंट्स के रूप में किया जाता है। HFCs ग्लोबल वार्मिंग में लगातार योगदान देती हैं। भारत, चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप HFCs के उपयोग में 2045 तक 85% तक कमी लाने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
क्या प्रयास किये जा रहे हैं?
- हाल ही में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग तथा ऊर्जा मंत्रालय समेत भारत में कई विभागों ने एक अमेरिकी संस्थान रॉकी माउंटेन इंस्टीट्यूट और प्रौद्योगिकी पर समाधान उपलब्ध कराने वाली कंपनी कंज़र्वेशन एक्स लैब्स के साथ साझेदारी की घोषणा की। इस साझेदारी के ज़रिये वैश्विक शीतलन पुरस्कार का गठन किया जाएगा जिसका उद्देश्य दुनिया भर की शोध प्रयोगशालाओं को अत्यधिक कुशल शीतलन प्रौद्योगिकियाँ विकसित करने हेतु प्रेरित करना है।
- दो साल की प्रतियोगिता अवधि के दौरान 21 करोड़ रुपए (3 मिलियन डॉलर) पुरस्कार के रूप में आवंटित किये जाएंगे। अंतिम सूची में शामिल 10 प्रतिस्पर्द्धी प्रौद्योगिकियों में से प्रत्येक प्रौद्योगिकी को उनके अभिनव आवासीय शीतलन प्रौद्योगिकी डिज़ाइनों और प्रोटोटाइप के विकास का समर्थन करने के लिये मध्यवर्ती पुरस्कारों के रूप में 1.4 करोड़ रुपए (2,00,000 डॉलर) तक की राशि प्रदान की जाएगी।
शासन व्यवस्था
मातृत्व अवकाश प्रोत्साहन योजना (Maternity Leave Incentive Scheme)
चर्चा में क्यों?
विशेष रूप से निजी क्षेत्र के नियोक्ताओं को, विस्तारित किये गए 26 सप्ताह के मातृत्व अवकाश नियम को लागू करने के संबंध में प्रोत्साहित करने हेतु श्रम मंत्रालय उन नियोक्ताओं को 7 हफ्तों का पारिश्रमिक वापस करने के लिये प्रोत्साहन योजना पर कार्य कर रहा है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- श्रम एवं रोजगार मंत्रालय एक ऐसी प्रोत्साहन योजना पर काम कर रहा है, जिसके तहत 15,000/- रुपए तक की वेतन सीमा वाली महिला कर्मचारियों को अपने यहाँ नौकरी पर रखने वाले और 26 हफ्तों का सवेतन मातृत्व अवकाश देने वाले नियोक्ताओं को 7 हफ्तों का पारिश्रमिक वापस कर दिया जाएगा।
- इसके लिये कुछ शर्तें भी तय की गई हैं और यह अनुमान लगाया गया है कि प्रस्तावित प्रोत्साहन योजना पर अमल करने से भारत सरकार, श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय को लगभग 400 करोड़ रुपए का वित्तीय बोझ वहन करना पड़ेगा।
प्रोत्साहन योजना का उद्देश्य
- 26 सप्ताह के विस्तारित मातृत्व अवकाश नियम पर अमल करना, सार्वजनिक क्षेत्र के संदर्भ में अच्छा साबित हो रहा है लेकिन रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि यह निजी क्षेत्र के साथ-साथ अनुबंध या ठेके (Contract) पर काम करने वाली महिलाओं के लिये सही साबित नहीं हो रहा।
- आमतौर पर यह धारणा है कि निजी क्षेत्र के निकाय महिला कर्मचारियों को प्रोत्साहित नहीं करते हैं, क्योंकि यदि महिलाओं को रोज़गार पर रखा जाता है तो उन्हें विशेषकर 26 हफ्तों के वेतन के साथ मातृत्व अवकाश देना पड़ता है।
- साथ ही श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय को इस आशय की भी शिकायतें मिल रही हैं कि जब नियोक्ता को यह जानकारी मिलती है कि उनकी कोई महिला कर्मचारी गर्भवती है अथवा वह जब मातृत्व अवकाश के लिये आवेदन करती है तो बिना किसी ठोस आधार के ही उसके साथ किये गए अनुबंध को निरस्त कर दिया जाता है।
- श्रम मंत्रालय को इस संबंध में कई ज्ञापन मिले हैं जिनमें बताया गया है कि किस तरह से मातृत्व अवकाश की बढ़ी हुई अवधि महिला कर्मचारियों के लिये नुकसानदेह साबित हो रही है, क्योंकि मातृत्व अवकाश पर जाने से पहले ही किसी ठोस आधार के बिना ही उन्हें या तो इस्तीफा देने को कहा जाता है अथवा उनकी छँटनी कर दी जाती है।
- इसलिये श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय को इस प्रकार के प्रोत्साहन योजना को लाने की आवश्यकता पड़ी।
प्रोत्साहन योजना का प्रभाव
- प्रस्तावित योजना यदि स्वीकृत और कार्यान्वित कर दी जाती है तो वह इस देश की महिलाओं को पर्याप्त सुरक्षा एवं सुरक्षित परिवेश सुनिश्चित कराने के साथ-साथ रोज़गार एवं अन्य स्वीकृत लाभों तक उनकी समान पहुँच भी सुनिश्चित करेगी।
- इसके अलावा महिलाएँ शिशु की देखभाल के साथ-साथ घरेलू कार्य भी अच्छे ढंग से निपटा सकेंगी।
- श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय फिलहाल आवश्यक बजटीय अनुदान प्राप्त करने और सक्षम प्राधिकरणों से मंज़ूरियाँ प्राप्त करने की प्रव्रिया में है, परंतु फिलहाल मंत्रालय में श्रम कल्याण उपकर (Less) जैसा कोई भी उपकर उपलब्ध नहीं है।
अधिनियम की पृष्ठभूमि
- मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के दायरे में वे कारखाने, खदानें, बागान, दुकानें एवं प्रतिष्ठान और अन्य निकाय आते हैं, जहाँ 10 अथवा उससे अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं।
- इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य कुछ विशेष प्रतिष्ठानों में शिशु के जन्म से पहले और उसके बाद की कुछ विशेष अवधि के लिये वहाँ कार्यरत महिलाओं के रोज़गार का नियमन करना और उन्हें मातृत्व लाभ के साथ-साथ कुछ अन्य फायदे भी मुहैया कराना है।
- मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017 के ज़रिये इस अधिनियम में संशोधन किया गया, जिसके तहत अन्य बातों के अलावा महिला कर्मचारियों के लिये वेतन सहित मातृत्व अवकाश की अवधि 12 हफ्तों से बढ़ाकर 26 हफ्ते कर दी गई है।
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
ब्रेक्जिट डील मसौदा
चर्चा में क्यों?
ब्रिटेन के ब्रेक्जिट सेक्रेटरी डोमिनिक राब एवं अन्य मंत्रियों द्वारा ब्रेक्जिट समझौते के ड्राफ्ट के विरोध में त्यागपत्र देने से ब्रिटिश प्रधानमंत्री थेरेसा मे की ब्रेक्जिट रणनीति की मुश्किलें बढ़ गई हैं। इस्तीफा देने वालों में कार्य व पेंशन मंत्री इस्टर मैकवे और एक अन्य मंत्री भी शामिल हैं। इससे थेरेसा मे के नेतृत्व पर भी सवाल उठने लगे है और उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की संभावना जताई जा रही है।
मुख्य बिंदु
- यूरोपीय यूनियन (EU) से ब्रिटेन के अलग होने संबंधी समझौते के मसौदे (Draft) के विरोध में इस्तीफा देने की शुरुआत उत्तरी आयरलैंड मामलों के भारतीय मूल के मंत्री शैलेष वारा ने की। इसके तुरंत बाद ब्रेक्जिट मंत्री राब ने यह कहते हुए इस्तीफे की घोषणा की कि प्रस्तावित समझौता ब्रिटेन की संप्रभुता के लिये खतरा है और यह देशहित में नहीं है।
- इस घटना के थोड़े समय बाद ही ब्रेक्जिट समर्थक जैकब रीस-मांग ने संसद के निचले सदन में थेरेसा मे के नेतृत्व में अविश्वास जताते हुए उन्हें चुनौती दी।
- थेरेसा सरकार को समर्थन दे रही उत्तरी आयरलैंड की डेमोव्रेटिक यूनियनिस्ट पार्टी (डीयूपी) पहले ही चेतावनी दे चुकी है कि समझौते में उत्तरी आयरलैण्ड के साथ किसी भी प्रकार के भेदभाव की स्थिति में सरकार से समर्थन वापस ले लिया जाएगा।
- यूरोपीय संघ के अध्यक्ष डोनाल्ड टस्क ने ब्रसेल्स में कहा कि ब्रिटेन के साथ ब्रेक्जिट समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिये यूरोपीय संघ द्वारा 25 नवंबर को विशेष सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा।
- इस बीच फ्राँस ने प्रस्तावित ब्रेक्जिट समझौते को की फ्राँस अर्थव्यवस्था के लिये अच्छा बताया है।
ब्रेक्जिट
- यह मुख्यत: दो शब्दों Britain और Exit से मिलकर बना है जिसका अर्थ है ब्रिटेन का यूरोपीय संघ से बाहर निकलना।
- जून 2016 में इसके लिये ब्रिटेन में जनमत संग्रह कराया गया था। इसमें 71 प्रतिशत मतदान के साथ 30 मिलियन से अधिक लोगों ने मतदान किया था और 52 फीसदी के साथ Brexit के पक्ष में लोगों ने मतदान किया।
- ब्रिटेन की जनता ने ब्रिटेन की पहचान, आज़ादी और संस्कृति को बनाए रखने के उद्देश्य से यूरोपीय संघ से बाहर जाने का फैसला लिया।
- यूरोपीय संघ (निकासी) विधेयक के कानून बन जाने के उपरांत इसने 2017 के यूरोपीय समुदाय अधिनियम का स्थान ले लिया है।
- 29 मार्च, 2019 तक ब्रिटेन को यूरोपीय संघ छोड़ देना है। ब्रेक्जिट डे यानी 29 मार्च, 2019 से ब्रिटिश कानून ही मान्य होंगे। 29 मार्च, 2019 से 21 महीने का संक्रमण चरण (Transition phase) शुरू होगा और यह दिसंबर 2020 के अंतिम दिन खत्म होगा।
- यूरोपीय यूनियन से ब्रिटेन के अलग होने के समझौते के लिये मसौदा तैयार किया गया है जिसे ब्रेक्जिट ड्राफ्ट डील कहा जा रहा है।
आगे की वस्तुस्थिति
- 14 नवंबर को ब्रितानी कैबिनेट ने ब्रेक्जिट ड्राफ्ट डील को मंज़ूरी दे दी।
- इस मसौदे पर सहमति के बाद यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के बीच बैठकों का एक और लंबा दौर चलेगा तथा नवंबर के आखिर में ड्राफ्ट डील मंज़ूरी के लिये 25 नवंबर को एक बैठक का आयोजन किया जाएगा जहाँ यूरोपीय संघ द्वारा ब्रेक्जिट समझौते को मंज़ूरी दिये जाने की संभावना है। इसके लिये ज़रूरी है कि यूरोपीय संघ के सभी 27 सदस्य देश इस समझौते को मंज़ूरी दे।
- तदुपरांत इस समझौता प्रस्ताव को ब्रिटेन की संसद में पेश किया जाएगा।
- अगर संसद द्वारा प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया जाता है तो अगले साल की शुरुआत में यूरोपीय संघ से अलग हटने का बिल पेश किया जाएगा। लेकिन संसद द्वारा अस्वीकृत किये जाने की स्थिति में सरकार को 21 दिनों के भीतर नया प्रस्ताव लाना होगा।
- ब्रिटिश संसद से इस प्रस्ताव को मंज़ूरी मिलने के बाद यूरोपीय यूनियन संसद को इसे सामान्य बहुमत से मंज़ूरी देनी होगी। हालाँकि इस संबंध में यूरोपीय संघ और ब्रिटेन को लंबा सफर तय करना है।
मसौदे पर टकराव का मुद्दा
- ब्रेक्जिट मुद्दे पर थेरेसा मे को मंत्रिमंडल का सहयोग प्राप्त हुआ है लेकिन संसद में इस समझौते पर सबको राज़ी करना मुश्किल होगा।
- इसका संकेत ब्रेक्जिट सचिव डोमिनिक राब एवं अन्य के इस्तीफे से मिलता है।
- इस समझौते में आयरलैंड के साथ सीमा मुद्दा सबसे बड़ा चिंता का विषय है।
- यूनाइटेड किंगडम और यूरोपीय संघ को ‘एक ही कर क्षेत्र’ के रूप में देखा जाएगा जहाँ सीमाओं पर शुल्क नहीं लगाए जाएंगे।
- उत्तरी आयरलैंड को यूरोपीय संघ के एक-बाज़ार नियमों के तहत ही रखने की बात चल रही है ताकि सीमाओं के संबंध में और मुश्किलें उत्पन्न न हों।
- ड्राफ्ट एग्रीमेंट यह छूट देता है कि अगर यह तय समय-सीमा तक पूरा न हो पाया तो इसे आगे बढ़ाया जा सकता है परंतु यह सिर्फ एक बार और सीमित समय के लिये होगा।
- इस्टर मैकवे का इस्तीफा देने के पीछे तर्क था कि यह ज़रूरी है कि उनके पैसे, उनके बार्डर और कानूनों पर उनका नियंत्रण हो एवं स्वयं की स्वतंत्र व्यापार नीति हो परंतु यह समझौता ऐसा करने में असफल रहा।
- वहीं प्रधानमंत्री थेरेसा मे का कहना है कि यह समझौता उनके पैसे, कानूनों और बार्डर पर उनके नियंत्रण को वापस दिलाएगा एवं मुक्त आवागमन को बंद करते हुए नौकरियों, सुरक्षा और उनके संघ का बचाव करेगा।
यूरोपीय संघ (EU)
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प्रारंभिक परीक्षा
प्रीलिम्स फैक्ट्स : 17 नवंबर, 2018
फिच रेटिंग
फिच रेटिंग एजेंसी ने बड़े आर्थिक मोर्चे पर जोखिमों को देखते हुए भारत की रेटिंग को फिलहाल स्थिर परिदृश्य के साथ BBB जो कि निवेश की श्रेणी में सबसे निम्न स्तर है, पर बनाए रखने की घोषणा की।
- यह लगातार 12वाँ साल है जब फिच रेटिंग ने भारत की रेटिंग को अपग्रेड करने से इनकार किया है।
- रेटिंग एजेंसी के अनुसार, भारत का वृहत् आर्थिक परिदृश्य बहुत अधिक जोखिम से भरा हुआ है और भारत की रेटिंग में सुधार न होने का कारण देश की कमज़ोर राजकोषीय स्थिति है।
- उल्लेखनीय है कि फिच रेटिंग एजेंसी की प्रतिद्वंदी एजेंसी मूडीज ने नवंबर 2017 में भारत की रेटिंग में सुधार किया था। उसके बाद से भारत सरकार फिच रेटिंग एजेंसी द्वारा भी भारत को बेहतर रैंकिंग देने की वकालत कर रही है।
- रेटिंग एजेंसी का मानना है कि कर्ज कारोबार में निम्न वृद्धि के कारण बैंकिंग और गैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र के लिये अधिक परेशानी होगी।
- सरकारी क़र्ज़ सकल घरेलू उत्पाद के 70% के स्तर पर पहुँच गया है।
- वित्तीय वर्ष 2018-19 की पहली छमाही में GST का संग्रह कम होने और आगामी चुनावों के कारण खर्च को नियंत्रित रखना आसान नहीं होगा और इस कारण से राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद अर्थात् GDP के 3.3% पर रखने के लक्ष्य को हासिल करने में कठिनाई होगी।
- फिच का अनुमान है कि भारत की वास्तविक आर्थिक वृद्धि 2017-18 के 6.7 प्रतिशत से बढ़कर 2018-19 में 7.8 प्रतिशत हो सकती है। लेकिन अगले दो वित्तीय वर्षों में वृद्धि दर घटेगी।
- वित्त वर्ष 2019-20 और 2020-21 में वृद्धि दर घटकर 7.3% के स्तर पर पहुँचने का अनुमान भी लगाया गया है।
स्टार्ट-अप इंडिया निवेश गोष्ठी
हाल ही में चीन स्थित भारतीय दूतावास ने स्टार्ट-अप इंडिया संघ और वेंचर गुरुकुल के सहयोग से पेईचिंग में दूसरी स्टार्ट-अप इंडिया निवेश गोष्ठी का आयोजन किया।
- इसका उद्देश्य भारतीय युवाओं में नवाचार और उद्यमशीलता को प्रोत्साहन देना है।
- पहली बार स्टार्ट-अप इंडिया निवेश कार्यक्रम का आयोजन नवंबर 2017 में किया गया था।
- इस आयोजन के तहत चीन की उद्यम पूंजी और निवेशकों को भारत के स्टार्ट-अप से परिचित कराने का लक्ष्य निर्धारित किया जाता है ताकि भारतीय स्टार्ट-अप को अपनी कंपनियों के लिये चीन के निवेशकों तक पहुँचने का अवसर मिल सके।
- इस निवेश गोष्ठी में 20 भारतीय स्टार्ट-अप से जुड़े 42 भारतीय उद्यमियों ने हिस्सा लिया और चीन के निवेशकों से अपनी कंपनियों में निवेश करने के लिये संपर्क किया। उल्लेखनीय है कि पहली स्टार्ट-अप इंडिया निवेश गोष्ठी में 12 भारतीय स्टार्ट-अप ने हिस्सा लिया था, जिनमें से 4 स्टार्ट-अप को चीन की उद्यम पूंजी की तरफ से 15 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश प्राप्त हुआ था।
- वर्तमान गोष्ठी और परिचय सत्रों में चीन के 350 से अधिक उद्यम पूंजी निधियों और निजी निवेशकों ने हिस्सा लिया।