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डेली न्यूज़

  • 13 Aug, 2019
  • 55 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

नेमाटोड्स

चर्चा में क्यों? 

नेमाटोड (Nematodes) पर किये गए पहले वैश्विक विश्लेषण के अनुसार, बहुत थोड़ी सी मृदा (लगभग एक चुटकी) में 100 से भी अधिक नेमाटोड्स पाए जाते हैं।

नेमाटोड्स (Nematodes): 

  • ये राउंडवॉर्म होते हैं इनका आकार 0.2 मिलीमीटर से लेकर कुछ मीटर तक (भिन्न-भिन्न) हो सकता है।
  • नेमाटोड्स (सूत्रकृमि) की लगभग 15 प्रतिशत प्रजातियाँ पादप परजीवी होती हैं, जो भारत सहित विश्व के अधिकांश देशों में विभिन्न फसलों को गंभीर हानि पहुँचाती हैं और पूरे विश्व को पादप परजीवी सूत्र कृमियों के कारण लगभग 4500 करोड़ रुपए की हानि होती है। 
  • ये चीड़, साइट्रस ट्री, नारियल, धान, मकई, मूँगफली, सोयाबीन, शकरकंद, चुकन्दर, आलू, केला इत्यादि को विशेष रूप से प्रभावित करते हैं। 
  • नेमाटोड्स मृदा से पौधों की जड़ों में प्रवेश कर पौधों की जड़ तने, पत्ती, फूल व बीज को संक्रमित करते हैं। 
  • पौधों में इनका संक्रमण नेमाटोड्स की द्वितीय डिम्भक (लार्वा) अवस्था (2nd Juvenile Larval Stage) द्वारा होता है।
  • नेमाटोड्स एक स्थान से दूसरे स्थान तक संक्रमित मृदा लगे खेती के औज़ारों, हल, जूतों, पानी के प्रवाह, संक्रमित पौधों व कृषि उत्पादों के द्वारा फैलते हैं। इनका नियंत्रण मृदा के धूम्रीकरण, रसायनों व नेमाटोड्स परभक्षियों द्वारा किया जा सकता है।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, पृथ्वी पर प्रत्येक इंसान के सापेक्ष लगभग 57 बिलियन नेमाटोड्स पाए जाते हैं।50 से अधिक शोधकर्त्ताओं की एक टीम ने दुनिया के सभी सात महाद्वीपों से मिट्टी के 6,500 से अधिक नमूने एकत्र किये और उसका विश्लेषण किया। 
  • नेचर में प्रकाशित जर्नल के अनुसार, वर्तमान में नेमाटोड के कारण मिट्टी से होने वाला कार्बन उत्सर्जन लगभग 2.2% है, अतः जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये वैश्विक कार्बन और पोषक चक्रों को समझना अत्यंत आवश्यक है। 
  • वर्तमान में हमारे पृथ्वी की भौतिकी एवं रसायन विज्ञान के बारे में हमारी बहुत अच्छी समझ है, लेकिन इन चक्रों को चलाने वाले जैविक जीवों के बारे में बहुत कम जानकारी प्राप्त की गई है। अतः जलवायु परिवर्तन को समझने एवं उसका समाधान करने के लिये इन जीवों के बारे में अध्ययन करना आवश्यक है। 
  • अध्ययन के अनुसार, कुल नेमेटोड्स का 38% उप-आर्कटिक क्षेत्रों में पाया जाता है। उसके बाद समशीतोष्ण क्षेत्र में इनकी प्रचुरता है। ठंडे क्षेत्रों में इनकी प्रचुरता का प्रमुख कारण यह है कि ठंडे प्रदेशों की मिट्टी के कार्बनिक पदार्थ नेमाटोड के लिये अनुकूल होते है। 
  • उप-आर्कटिक क्षेत्रों में कम तापमान एवं उच्च नमी कार्बनिक पदार्थों के अपघटन दर को कम करती है। इससे कार्बनिक पदार्थ जमा होते हैं जो नेमेटोड के विकास के लिये उचित वातावरण का निर्माण करते हैं। 

भारतीय मृदा 

  • इस अध्ययन के लिये भारत के पश्चिमी एवं पूर्वी घाट तथा हिमालयी मिट्टी का इस्तेमाल किया गया था।
  • हालाँकि भारत में वर्ष 1992 के पृथ्वी शिखर सम्मेलन के बाद से ही जैव विविधता पर ध्यान देना शुरू कर दिया गया था लेकिन यहाँ भूमि के उपर की जैव विविधता पर फोकस किया गया था नीचे की जैव विविधता पर नहीं।
  • अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में जूलॉजी विभाग के प्रोफेसर के अनुसार, नेमाटोड पर्यावरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि वे मिट्टी के लगभग 19% अमोनिया के उत्पादन के लिये ज़िम्मेदार हैं। यह मृदा पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य की महत्त्वपूर्ण जैवसूचक भी है।
  • विभिन्न प्रकार के बैक्टीरिया, कवक, आर्थ्रोपॉड और नेमाटोड मिट्टी में उपस्थित रहते हैं जो मिट्टी में संपूर्ण खाद्य जाल का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं।

स्रोत: द हिंदू


भारत-विश्व

भारत और चीन

चर्चा में क्यों?

भारत और चीन ने सांस्कृतिक तथा पीपल-टू-पीपल (People-to-People) संबंधों को मज़बूत बनाने के लिये चार समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं।

4 समझौते इस प्रकार हैं:

  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान: अमूर्त सांस्कृतिक विरासतों के संरक्षण, सांस्कृतिक गतिविधियों के संगठन और पुरातात्विक विरासत स्थलों के प्रबंधन के लिये सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिये।
  • स्वास्थ्य: पारंपरिक चिकित्सा, जिसमें भारत और चीन के बीच सदियों से संचित ज्ञान शामिल है, के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देने के लिये।
  • खेल: अंतर्राष्ट्रीय खेल आयोजनों के मामले में सहयोग को मज़बूत करने के लिये राष्ट्रीय खेल संघों, खिलाड़ियों और युवाओं के बीच आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिये।
  • संग्रहालय प्रबंधन में सहयोग: वुहान स्थित हुबेई प्रांतीय संग्रहालय और नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में प्रदर्शनियों, संग्रहणों/संकलनों एवं पुरातात्विक उत्खनन से प्राप्त वस्तुओं के संरक्षण तथा पुनर्स्थापन में सहयोग को बढ़ावा देने के लिये।
    • हुबेई प्रांतीय संग्रहालय (Hubei Provincial Museum) चीन के सबसे प्रसिद्ध संग्रहालयों में से एक है, जहाँ बड़ी मात्रा में राज्य-स्तरीय ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अवशेष मौजूद हैं।
    • राष्ट्रीय संग्रहालय भारत के सबसे बड़े संग्रहालयों में से एक है। वर्ष 1949 में स्थापित इस संग्रहालय में प्रागैतिहासिक युग से लेकर कला के आधुनिक कार्यों तक के विभिन्न लेख उपलब्ध हैं।

कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) में चीन की पहल

  • कैलाश मानसरोवर की तीर्थयात्रियों को बेहतर सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिये चीन की सरकार ने तीर्थयात्रा के विभिन्न पड़ावों पर ठहरने की सुविधा उपलब्ध कराई है अर्थात् स्वागत केंद्र बनाए गए हैं।
  • चीन की सरकार ने इन केंद्रों के निर्माण में 5.21 मिलियन डॉलर खर्च किये हैं।

लद्दाख और वास्तविक नियंत्रण रेखा

Ladakh and Line of Actual Control

  • भारतीय विदेश मंत्री ने चीन को आश्वासन दिया है कि भारत के लद्दाख पर अधिक-से-अधिक प्रशासनिक नियंत्रण करने के निर्णय का भारत की बाहरी सीमाओं या चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control-LAC) पर कोई प्रभाव नहीं होगा।
  • LAC एक 4,057 किलोमीटर लंबी सरंध्र सीमा है जो ग्लेशियरों, बर्फ के रेगिस्तानों, पहाड़ों और नदियों से होकर गुजरती है तथा भारत और चीन को अलग करती है।
  • LAC के तीन क्षेत्र हैं- पश्चिमी (लद्दाख, कश्मीर), मध्य (उत्तराखंड, हिमाचल) और पूर्वी (सिक्किम, अरुणाचल)।
  • वर्ष 1993 में भारत और चीन ने अपनी सीमा पर तनाव को कम करने और LAC का पालन करने के लिये समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। 
  • अक्तूबर 2013 में दोनों पक्षों ने सीमा रक्षा सहयोग समझौते (Border Defence Cooperation Agreement) पर हस्ताक्षर किये, जो कि सीमांकित सीमा के साथ किसी भी विवाद को रोकने के लिये था। इसमें सैन्य और राजनयिक स्तर के संवाद तंत्र को शामिल किया गया।

स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड


भारतीय अर्थव्यवस्था

कर और भारत का पूंजी बाज़ार

चर्चा में क्यों?

व्यापार लागत को कम करने के उद्देश्य से भारतीय राष्ट्रीय एक्सचेंज सदस्यों के संघ (Association of National Exchanges Members of India-ANMI) ने भारत सरकार से दीर्घकालीन पूंजी लाभ कर (Long Term Capital Gains Tax) और प्रतिभूति लेन-देन कर (Securities Transaction Tax-STT) को वापस लेने का आग्रह किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • गौरतलब है कि भारत एकमात्र देश है जो STT के रूप में इक्विटी ट्रेडिंग पर कर लगाता है।
  • इसके अतिरिक्त वर्तमान में भारत के अंतर्गत कंपनियों द्वारा कमाए गए लाभांश (Dividends) पर तीन बार कर लगाया जाता है। सर्वप्रथम निगम कर (Corporate Tax) के रूप में फिर लाभांश वितरण कर (Dividend Distribution Tax) के रूप में और अंत में निवेशक स्तर (जैसे- STT) पर। 
  • ANMI के अनुसार, भारतीय कर व्यवस्था के उपरोक्त तथ्य भारतीय पूंजी बाजार को वैश्विक स्तर पर अनाकर्षक बनाते हैं।

पूंजीगत लाभ कर 

(Capital Gains Tax)

  • किसी ‘पूंजीगत परिसंपत्ति’ की बिक्री से हमें जो भी लाभ प्राप्त होता है उसे ‘पूंजीगत लाभ’ कहा जाता है। आयकर अधिनियम, 1961 के अनुसार, इस लाभ को ‘आय’ के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
  • इसीलिये संपत्ति हस्तांतरित करने वाले व्यक्ति को अपने द्वारा कमाए गए लाभ पर आय के रूप में कर देना होता है जिसे ‘पूंजीगत लाभ कर’ कहा जाता है।
  • ‘पूंजीगत लाभ कर’ अल्पकाल तथा दीर्घकाल दोनों प्रकार का हो सकता है।
  • दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ कर: यह कर उन परिसंपत्तियों पर लगाया जाता जिन्हें एक साल या उससे अधिक समयावधि के लिये रखा गया हो। इसके लिये दरें 0%, 15% और 20% हैं।
  • अल्पकालिक पूंजीगत लाभ कर: यह कर उन परिसंपत्तियों पर लगाया जाता जिन्हें एक साल से कम समयावधि के लिये रखा गया हो। इस पर सामान्य आयकर की दरें ही लागू होती हैं।

निगम कर 

(Corporate Tax)

  • यह कर सरकार द्वारा एक फर्म के लाभ पर लगाया जाता है।
  • आय में से खर्चों को घटाने के बाद शेष बची आय पर यह कर लगाया जाता है।
  • भारत में निगम कर की दर किसी कंपनी के स्वरूप के आधार पर निर्धारित की जाती है यानी घरेलू निगम और विदेशी निगम अलग-अलग दरों पर कर का भुगतान करते हैं।

प्रतिभूति लेन-देन कर 

(Securities Transaction Tax-STT)

  • यह कर भारत के स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध प्रतिभूतियों की खरीद और बिक्री के समय लगाया जाता है।
  • क्रेता और विक्रेता दोनों को STT के रूप में शेयर मूल्य का 0.1% भुगतान करना होता है।

लाभांश वितरण कर

(Dividend Distribution Tax)

  • लाभांश वितरण कर वह कर है जो कॉर्पोरेट द्वारा अपने शेयरधारकों को दिये गए लाभांश पर देय होता है।
  • एक कॉर्पोरेट इकाई के लिये उच्च लाभांश का मतलब होता है कर का अधिक बोझ।
  • वर्तमान में यह सकल लाभांश के रूप में वितरित राशि का 15% है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

गोगाबील सामुदायिक रिज़र्व

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में गोगाबील को बिहार का पहला सामुदायिक रिज़र्व घोषित किया गया है जो बिहार का 15वाँ संरक्षित क्षेत्र (Protected Area) भी है।

Gogabeel

प्रमुख बिंदु: 

  • गोगाबील बिहार के कटिहार ज़िलें में स्थित है जिसके उत्तर में महानंदा और कनखर तथा  दक्षिण एवं पूर्व में गंगा नदी है।
  • बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के इंडियन बर्ड कंज़र्वेशन नेटवर्क द्वारा गोगाबील को वर्ष 1990 में एक बंद क्षेत्र (Closed Area) के रूप में अधिसूचित किया गया था। 
  • इस बंद क्षेत्र (Closed Area) की स्थिति को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 2000 के तहत संरक्षित क्षेत्र में बदल दिया गया। 
  • इंडियन बर्ड कंज़र्वेशन नेटवर्क द्वारा वर्ष 2004 में गोगाबील को बाघार बील और बलदिया चौर सहित भारत का महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र घोषित किया गया था।
  • गोगाबील एक स्थायी जल निकाय है, हालाँकि यह गर्मियों में कुछ हद तक सिकुड़ती है लेकिन कभी पूरी तरह से सूखती नहीं है।
  • इस स्थल पर 90 से अधिक पक्षी प्रजातियों को दर्ज किया गया है, जिनमें से लगभग 30 प्रवासी हैं। इस स्थल पर ब्लैक इबिस, एश्ली स्वॉल श्रीके, जंगल बब्बलर, बैंक मैना, रेड मुनिया, उत्तरी लापविंग और स्पॉटबिल डक जैसी अन्य प्रजातियांँ मिलती हैं।
  • IUCN द्वारा लेसर एडजुटेंट स्टॉर्क (Lesser Adjutant Stork) को सुभेद्य (Vulnerable) घोषित किया गया है, वहीं ब्लैक नेक्ड स्टॉर्क, व्हाइट इबिस और व्हाइट-आईड पोचर्ड को संकटापन्न (Near Threatened) श्रेणी में रखा गया है।  

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भूगोल

पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र फ्लिप

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में जर्नल साइंस एडवांस (Journal Science Advances) द्वारा यह खोज की गई कि पृथ्वी के अंतिम चुंबकीय क्षेत्र का उत्क्रमण लगभग 770,000 वर्ष पहले हुआ था जिसको वैज्ञानिकों ने मटुआमा-ब्रुनेश (Matuyama-Brunhes) नाम दिया है।

प्रमुख बिंदु: 

  • मटुआमा-ब्रुनेश (Matuyama-Brunhes) नामक अंतिम घटना  4,000 वर्षों तक चली लेकिन अस्थिरता की विस्तारित अवधि लगभग 18,000 वर्षों तक बनी रही।
  • नया विश्लेषण लावा के प्रवाह, महासागर तलछट और अंटार्कटिका के बेरिलियम निक्षेपण के  समग्र अध्ययन के बाद प्रकाशित किया गया है।
  • विश्लेषण में चिली, ताहिती, हवाई, कैरिबियन और कनारी द्वीपसमूह के लावा प्रवाह के नमूनों   को संयुक्त चुंबकीय रीडिंग (Combined Magnetic Readings) और विकिरण समस्थानिक (Radioisotope) के लिये संग्रहीत किया गया था।
  • इन लावा प्रवाहों की समयावधि जानने के लिये चट्टानों में पोटैशियम के रेडियोधर्मी क्षय से उत्पन्न आर्गन का प्रयोग किया गया था। समुद्री तलछट पर चुंबकीय रीडिंग के साथ डेटा की जो पुष्टि की गई, वह लावा चट्टानों की तुलना में अधिक निरंतर परन्तु कम सटीक स्रोत है।
  • अध्ययन में अंटार्कटिक के आस-पास के बेरिलियम निक्षेपण का उपयोग किया गया, जो वायुमंडल से टकराकर ब्रह्मांडीय विकिरण द्वारा निर्मित होता है। चुंबकीय क्षेत्र के उत्क्रमण के दौरान विकिरण की वातावरण पर प्रभावशीलता बढ़ जाती है, जिससे अधिक बेरिलियम का उत्पादन होने लगता है।

पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र:

  • पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र बाहरी कोर में पाया जाता है, बाहरी कोर तरल अवस्था में है। 
  • पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूमने के कारण तरल बाहरी कोर के अंदर का लोहा चारों ओर घूमकर एक चुंबकीय क्षेत्र का निर्माण करता है।
  • कई प्रकार की चट्टानों में लोहे के समान गुणधर्म वाले  खनिज होते हैं जो छोटे चुंबकों की तरह कार्य करते हैं।
  • मैग्मा या लावा के शांत होने के बाद यह खनिज चुंबकीय क्षेत्र के साथ संरेखित होकर चट्टानों को संरक्षित करता है। लावा प्रवाह चुंबकीय क्षेत्र के आदर्श परिचायक होते हैं। 
  • पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र नाटकीय रूप से लंबी कालावधि के दौरान अपनी ध्रुवीयता को बदलता रहता है।
  • वर्तमान में उत्तरी चुंबकीय ध्रुव साइबेरिया के आसपास है इसके कारण हाल ही में GPS को सटीक नेविगेशन हेतु अपने सॉफ़्टवेयर को अपडेट करना पड़ा ।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

प्रधानमंत्री किसान मान-धन योजना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने किसानों के लिये पेंशन योजना अर्थात् प्रधानमंत्री किसान मान-धन योजना [Pradhan Mantri Kisan Maan-Dhan Yojana (PM-KMY)] के तहत लाभार्थियों का पंजीकरण शुरू किया है।

प्रमुख बिंदु

  • यह योजना स्‍वैच्छिक और योगदान आधारित है। 
  • पति और पत्‍नी इस योजना का लाभ अलग-अलग भी उठा सकते हैं। 
  • यह योजना केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित है।

योजना की प्रमुख विशेषताएँ

पात्रता

  • 18 से 40 आयु वर्ग के किसान इस योजना का लाभ उठा सकते हैं। 

निश्चित पेंशन राशि

  • 60 साल की आयु के पश्चात् किसानों को प्रति माह 3000 रुपए पेंशन देने का प्रावधान है। 

अभिदाता/योगदानकर्त्ता का अंशदान

  • इस योजना का लाभ प्राप्त करने के लिये किसानों को 55 रुपए से 200 रुपए प्रति माह का योगदान देना होगा। उनके द्वारा किये जाने वाले योगदान की धनराशि का निर्धारण योजना से जुड़ने के समय उनकी आयु के आधार पर किया जाएगा
    • किसान द्वारा जितनी राशि का योगदान किया जाएगा केंद्र सरकार भी उसके बराबर धनराशि का योगदान करेगी। 
    • पीएम-किसान (PM-KISAN) योजना के तहत मिलने वाली धनराशि का किसान सीधे पेंशन योजना की योगदान राशि के रूप में भुगतान कर सकते हैं।

उल्लेखनीय है कि लघु और सीमांत किसानों (Small and Marginal Farmers- SMF) की आय में वृद्धि करने के लिये, सरकार ने हाल ही में केंद्रीय क्षेत्र की एक नई योजनाप्रधानमंत्री किसान निधि’ [Pradhan Mantri Kisan Samman Nidhi (PM-KISAN)] की शुरुआत की है।


पारिवारिक पेंशन:
योगदानकर्त्ता की मृत्‍यु होने पर उसका/उसकी पति/पत्‍नी शेष योगदान देकर योजना को जारी रख सकते हैं और पेंशन का लाभ प्राप्‍त कर सकते हैं।  

  • यदि पति/पत्‍नी योजना को जारी नहीं रखना चाहते हैं तो ब्‍याज सहित कुल योगदान राशि का भुगतान कर दिया जाएगा। 
  • यदि पति या पत्‍नी नहीं है तो नामित व्‍यक्ति को ब्‍याज सहित योगदान राशि का भुगतान कर दिया जाएगा। 
  • यदि अवकाश प्राप्ति की तारीख के पश्चात् लाभार्थी की मृत्‍यु हो जाती है तो उसकी पत्‍नी को पेंशन धनराशि का 50 प्रतिशत परिवार पेंशन के रूप में दिया जाएगा। 

पेंशन कोष का प्रबंधक

  • भारतीय जीवन बीमा निगम (Life Insurance Corporation of India-LIC) को पेंशन कोष का फंड प्रबंधक नियुक्‍त किया गया है। निगम पेंशन भुगतान के लिये जवाबदेह होगा।

योजना से बाहर निकलना तथा वापसी 

  • यदि लाभार्थी कम-से-कम 5 साल तक नियमित योगदान देते हैं और इसके बाद योजना को छोड़ना चाहते हैं तो ऐसी स्थिति में भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) बैंक की बचत खाता ब्‍याज दर के आधार पर ब्‍याज सहित धनराशि का भुगतान करेगी।
  • यदि नियमित भुगतान में विलंब होता है या अल्‍प समय के लिये भुगतान रूक जाता है तो किसान ब्‍याज के साथ संपूर्ण पिछले बकाए का भुगतान कर सकते हैं। 

साझा सेवा केंद्र

  • इस योजना का पंजीकरण साझा सेवा केंद्रों के ज़रिये किया जा रहा है। पंजीयन नि:शुल्‍क है। सरकार साझा सेवा केंद्रों को प्रति पंजीयन 30 रुपए का भुगतान करेगी। 

शिकायत निवारण प्रणाली

  • इस योजना के तहत शिकायतों के निवारण हेतु एक शिकायत निवारण व्‍यवस्‍था भी बनाई जाएगी जिसमें भारतीय जीवन बीमा निगम, बैंक और सरकार के प्रतिनिधि शामिल होंगे।

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

पश्चिमी आंचलिक परिषद

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय गृह मंत्री की अध्यक्षता में होने वाली पश्चिमी आंचलिक परिषद (Western Zonal Council) की 24वीं बैठक 22 अगस्त, 2019 को पंजिम (गोवा) में आयोजित होगी।

प्रमुख बिंदु

  • इस बैठक के एजेंडे में यौन उत्पीड़न के मामलों में तीव्र जाँच, एक व्यापक सुरक्षा योजना और रेलवे स्टेशनों पर बेहतर सुरक्षा व्यवस्था जैसे मुद्दे शामिल हैं।
  • गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs) के तत्त्वावधान में कार्य करने वाली अंतर-राज्य परिषद के सचिवालय में गोवा, गुजरात, महाराष्ट्र और केंद्र शासित प्रदेश दमन एवं दीव तथा दादरा और नगर हवेली शामिल हैं।
  • परिषद की पिछली बैठक अप्रैल, 2018 में गांधीनगर (गुजरात) में तत्कालीन गृह मंत्री की अध्यक्षता में हुई थी।
  • पश्चिमी आंचलिक परिषद की 23वीं बैठक का आयोजन गांधीनगर, गुजरात में किया गया था। 

आंचलि‍क परिषद

  • राज्‍यों के बीच और केंद्र एवं राज्‍यों के बीच मिलकर काम करने की संस्कृति विकसित करने के उद्देश्‍य से राज्‍य पुनर्गठन कानून (States Reorganisation Act), 1956 के अंतर्गत आंचलिक परिषदों का गठन किया गया था।
  • आंचलिक परिषदों को यह अधिकार दिया गया कि वे आर्थिक और सामाजिक योजना के क्षेत्र में आपसी हित से जुड़े किसी भी मसले पर विचार-विमर्श करें और सिफारिशें दें।
  • ये परिषदें आर्थिक और सामाजिक आयोजना, भाषायी अल्‍पसंख्‍यकों, अंतर्राज्‍य परिवहन जैसे साझा हित के मुद्दों के बारे में केंद्र और राज्‍य सरकारों को सलाह दे सकती है।

पाँच आंचलिक परिषदें

राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के भाग-।।। के तहत पाँच आंचलिक परिषदें स्थापित की गई। इन आंचलिक परिषदों का वर्तमान गठन निम्नवत है:

  • उत्तरी आंचलिक परिषद: इसमें हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, पंजाब, राजस्थान राज्य, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और संघ राज्य क्षेत्र चंडीगढ़ शामिल हैं।
  • मध्य आंचलिक परिषद: इसमें छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्य हैं।
  • पूर्वी आंचलिक परिषद: इसमें बिहार, झारखंड, उड़ीसा, सिक्किम और पश्चिम बंगाल राज्य हैं।
  • पश्चिमी आंचलिक परिषद: इसमें गोवा, गुजरात, महाराष्ट्र राज्य और संघ राज्य क्षेत्र दमन और दीव और दादरा और नगर हवेली है।
  • दक्षिणी आंचलिक परिषद: इसमें आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलाडु, राज्य और संघ राज्य क्षेत्र पुद्दुचेरी शामिल हैं।

पूर्वोत्तर राज्य अर्थात् (i) असम (ii) अरुणाचल प्रदेश (iii) मणिपुर (iv) त्रिपुरा (v) मिज़ोरम (vi) मेघालय और (vii) नगालैंड को आंचलिक परिषदों में शामिल नहीं किया गया है और उनकी विशेष समस्याओं को पूर्वोत्तर परिषद अधिनियम (North Eastern Council Act), 1972 के तहत गठित पूर्वोत्तर परिषद द्वारा हल किया जाता है।

  • सिक्किम राज्य को दिनांक 23 दिसंबर, 2002 में अधिसूचित पूर्वोत्तर परिषद (संशोधन) अधिनियम, 2002 के तहत पूर्वोत्तर परिषद में भी शामिल किया गया है। इसके परिणामस्वरूप सिक्किम को पूर्वी आंचलिक परिषद के सदस्य के रूप में हटाए जाने के लिये गृह मंत्रालय द्वारा कार्रवाई शुरु की गई है।

आंचलिक परिषदों का संगठनात्मक ढाँचा

  • अध्यक्ष- केंद्रीय गृह मंत्री।
  • उपाध्यक्ष– प्रत्येक आंचलिक परिषद में शामिल किये गए राज्यों के मुख्यमंत्री, रोटेशन से एक समय में एक वर्ष की अवधि के लिये उस अंचल के आंचलिक परिषद के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं।
  • सदस्य– मुख्यमंत्री और प्रत्येक राज्य से राज्यपाल द्वारा यथा नामित दो अन्य मंत्री और अंचल में शामिल किये गए संघ राज्य क्षेत्रों से दो सदस्य।
  • सलाहकार- प्रत्येक क्षेत्रीय परिषदों के लिये योजना आयोग द्वारा एक व्यक्ति को नामित किया गया, क्षेत्र में शामिल किये गए प्रत्येक राज्यों द्वारा मुख्य सचिवों एवं अन्य अधिकारी/विकास आयुक्त को नामित किया गया।
  • आवश्यकता पड़ने पर क्षेत्रीय परिषदों की बैठकों में भाग लेने के लिये केंद्रीय मंत्रियों को भी आमंत्रित किया जाता है।

क्षेत्रीय परिषदों की स्थापना का उद्देश्य

  • राष्ट्रीय एकीकरण को साकार करना।
  • तीव्र राज्यक संचेतना, क्षेत्रवाद तथा विशेष प्रकार की प्रवृत्तियों के विकास को रोकना।
  • केंद्र एवं राज्यों को विचारों एवं अनुभवों का आदान-प्रदान करने तथा सहयोग करने के लिये सक्षम बनाना।
  • विकास परियोजनाओं के सफल एवं तीव्र निष्पादन के लिये राज्यों के बीच सहयोग के वातावरण की स्थापना करना।

परिषदों के कार्य

  • प्रत्येक क्षेत्रीय परिषद की एक सलाहकारी निकाय होती है और यह किसी भी मामले पर विचार कर सकती है जिसमें उस परिषद में भागीदारी करने वाले कुछेक अथवा समस्त राज्यों या केंद्र एवं उस परिषद में भागीदारी करने वाले एक अथवा अधिक राज्यों का सामान्य हित होता है। 
  • यह केंद्र सरकार तथा प्रत्येक संबंधित राज्य सरकार को सलाह देती है कि ऐसे प्रत्येक मामले पर क्या कार्रवाई की जानी चाहिये।

विशेष रूप से एक क्षेत्रीय परिषद निम्नलिखित के संबंध में विचार कर सकती है और अपनी सिफारिशें प्रस्तुत कर सकती है:

  • आर्थिक एवं सामाजिक आयोजना के क्षेत्र में सामान्य हित का कोई मामला।
  • सीमा विवादों, भाषायी अल्पसंख्यकों अथवा अंतर-राज्यीय परिवहन से संबंधित कोई मामला।
  • राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अंतर्गत राज्यों के पुनर्गठन से संबंधित अथवा उसके संबंध में उठने वाला कोई मामला।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

कृष्णा वन्यजीव अभयारण्य

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वन विभाग ने कृष्णा वन्यजीव अभयारण्य (Krishna Wildlife Sanctuary-KWS) में शामिल करने के लिये लगभग 300 हेक्टेयर भूमि की पहचान की है।

प्रमुख बिंदु :

  • KWS को मिलने वाले इस नए क्षेत्र को रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation-DRDO) द्वारा ली गई भूमि के मुआवज़े के रूप में देखा जा रहा है।
  • चिह्नित गई भूमि को कृष्णा वन्यजीव अभयारण्य में शामिल करने की सिफारिश राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (National Board for Wildlife-NBWL) द्वारा की गई थी।

कृष्णा वन्यजीव अभयारण्य

(Krishna Wildlife Sanctuary-KWS):

  • कृष्णा वन्यजीव अभयारण्य आंध्र प्रदेश (भारत) में स्थित है।
  • यह अभयारण्य आंध्र प्रदेश में मैंग्रोव वेटलैंड का एक हिस्सा है और कृष्णा डेल्टा के तटीय मैदान में स्थित है तथा आंध्र प्रदेश के कृष्णा और गुंटूर जिलों में फैला हुआ है।
  • कृष्णा नदी का मुहाना कृष्णा वन्यजीव अभयारण्य से होकर गुजरता है।
  • यह माना जाता है कि इस क्षेत्र में संभवतः मछली पकड़ने वाली बिल्लियों (Fishing Cats) की सबसे ज़्यादा आबादी है।

मछली पकड़ने वाली बिल्लियाँ 

(Fishing Cats):

  • मछली पकड़ने वाली बिल्लियाँ दक्षिण और दक्षिण पूर्व-एशिया की एक मध्यम आकार की जंगली बिल्ली होती है।
  • इसका वैज्ञानिक नाम प्रियनैलुरस विवरिनस (Prionailurus Viverrinus) है।
  • इनकी संख्या में पिछले एक दशक में काफी ज़्यादा गिरावट देखने को मिली है।
  • इसे IUCN की रेड लिस्ट में लुप्त हो चुके जानवर के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
  • भारत में इन बिल्लियों को भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I में शामिल किया गया है, जिसके कारण भारत में इनके शिकार पर रोक है।

राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड

(National Board for Wildlife-NBWL):

  • नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ एक वैधानिक बोर्ड है जिसका गठन वर्ष 2003 में वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत आधिकारिक तौर पर किया गया था।
  • NBWL की अध्यक्षता प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है।
  • यह एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण निकाय है क्योंकि यह वन्यजीव संबंधी सभी मामलों की समीक्षा करने और राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों में तथा आस-पास की परियोजनाओं को स्वीकृति देने के लिये सर्वोच्च निकाय के रूप में कार्य करता है।
  • वर्तमान में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की संरचना के तहत इसमें 15 अनिवार्य सदस्य और तीन गैर-सरकारी सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

बांध सुरक्षा विधेयक और उसका विरोध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोकसभा में पारित हुए बांध सुरक्षा विधेयक का उद्देश्य देश भर के सभी बांधों के लिये एक समान सुरक्षा प्रक्रिया का निर्धारण करना है। इस विधेयक के पारित होने से यह उम्मीद की जा रही है कि इसके माध्यम से देश में बांध संबंधी आपदाओं को रोकने के लिये बांधों की निगरानी, निरीक्षण, संचालन तथा रखरखाव और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी।

क्या कहता है यह विधेयक?

  • यह विधेयक आपदाओं को रोकने के उद्देश्य से बांधों की निगरानी, ​​निरीक्षण, संचालन, रखरखाव और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये संस्थागत तंत्र प्रदान करता है।
  • यह देश भर के उन सभी बांधों पर लागू होता है जिनकी ऊँचाई 10 मीटर से अधिक है या जिनके पास एक विशेष डिज़ाइन तथा संरचनात्मक स्थिति है।
  • यह विधेयक बांध सुरक्षा पर राष्ट्रीय समिति (National Committee on Dam Safety-NCDS) के गठन की भी सिफारिश करता है। समिति के निम्नलिखित कार्य होंगे :
    • बांध सुरक्षा मानकों और बांधों में होने वाली घटनाओं की रोकथाम के संबंध में नीतियाँ और नियम तैयार करना।
    • बांधों की विफलता के प्रमुख कारणों का विश्लेषण करना और बांध सुरक्षा के संदर्भ में अपनाई जा रही प्रक्रिया में परिवर्तन का सुझाव देना।
  • इसके अलावा NCDS द्वारा की गई सिफारिशों को लागू करने के लिये राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण (National Dam Safety Authority) के गठन का भी प्रावधान किया गया है।
  • राज्य स्तर पर बांधों के रखरखाव और उनकी सुरक्षा के लिये राज्य बांध सुरक्षा संगठन के निर्माण का प्रावधान किया गया है। साथ ही इसके काम की समीक्षा के लिये बांध सुरक्षा पर एक राज्य समिति का भी गठन किया जाएगा।

क्यों जरूरी है विधेयक?

  • केंद्र द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, वर्तमान में देश में कुल 5,344 बड़े बांध मौजूद हैं जिसमें से 293 से अधिक बांध 100 साल से भी ज़्यादा पुराने हैं और 1,041 बांध 50-100 पुराने हैं।
  • इन बांधों में से लगभग 92 प्रतिशत बांध अंतर-राज्यीय नदियों पर बने हैं और इनमें से कई पर दुर्घटनाओं के चलते उनके रखरखाव की चिंता पैदा हुई है। उदाहरण के लिये कुछ ही दिनों पहले कोंकण क्षेत्र में रत्नागिरी (महाराष्ट्र) में एक बांध के टूटने के बाद 23 लोगों के मारे जाने की आशंका जताई गई।

बांध सुरक्षा विधेयक का इतिहास?

इस विधेयक को पहली बार वर्ष 2010 में संसद में पेश किया गया था, उस समय इस विधेयक को समीक्षा के लिये स्थायी समिति के पास भेज दिया गया था। स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट वर्ष 2011 में सौंपी, जिसके बाद यह विधेयक दो बार- 15वीं लोकसभा और 16वीं लोकसभा में विपक्ष के विरोध के चलते पारित नहीं हो पाया।

क्यों हो रहा है इस विधेयक का विरोध?

  • इस संबंध में कई राज्यों का तर्क है कि ‘पानी’ राज्य सूची का विषय है और केंद्र सरकार द्वारा लिया गया यह निर्णय एक असंवैधानिक कदम है जिसे किसी भी आधार पर उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
  • तमिलनाडु सहित कई अन्य राज्यों जैसे- कर्नाटक, केरल और ओडिशा इस विधेयक का पुरज़ोर विरोध कर रहे हैं। इन राज्यों का कहना है कि यह विधेयक राज्यों की संप्रभुता का अतिक्रमण करता है और संविधान में लिखित संघवाद के सिद्धांतों का भी उल्लंघन करता है।
  • विधेयक के प्रावधानों के अनुसार, NCDS के अंतर्गत केंद्रीय जल आयोग (Central Water Commission-CWC) का भी एक प्रतिनिधि होगा, जिसका स्पष्ट अर्थ है कि CWC सलाहकार और विनियामक दोनों की भूमिका में होगा और सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, यह अनुचित है।
  • तमिलनाडु की मुख्य चिंता विधेयक की धारा 23(1) से जुड़ी है, जिसके अनुसार यदि किसी राज्य के बांध दूसरे राज्य के क्षेत्राधिकार में आते हैं, तो इस स्थिति में राज्य बांध सुरक्षा संगठन का स्थान राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण द्वारा ले लिया जाएगा ताकि अंतर-राज्य संघर्ष को समाप्त किया जा सके।
  • तमिलनाडु को मुख्यतः अपने चार बांधों- मुल्लापेरियार, परम्बिकुलम, थुनक्कडवु और पेरुवरिपल्लम की चिंता है, इन चारों का मालिकाना हक़ तो तमिलनाडु के पास है परंतु ये उसके पड़ोसी राज्य केरल में स्थित हैं।
  • गौरतलब है कि वर्तमान में तमिलनाडु के इन बांधों का प्रशासन पहले से मौजूद दीर्घकालिक समझौतों के माध्यम से किया जा रहा है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

सिटी नॉलेज एंड इनोवेशन क्लस्टर

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार ने ऐसे छह शहरों - भुवनेश्वर, चंडीगढ़, जोधपुर, पुणे, अहमदाबाद और हैदराबाद की पहचान की है जिन्हें सिटी नॉलेज एंड इनोवेशन क्लस्टर (City Knowledge and Innovation Clusters) के रूप में विकसित किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु :

  • इस परियोजना का उद्देश्य देश में स्थित तमाम संस्थाओं और शहर या राज्य में स्थित विभिन्न उद्योगों के अंतर्गत अनुसंधान और ज्ञान के लिये संपर्क स्थापित करना है।
  • इसका नेतृत्व मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार (Principal Scientific Advisor-PSA) द्वारा किया जाएगा।
  • इस कार्य के लिये सभी शहरों से संबंधित रूपरेखा तैयार कर ली गई है और कुछ राज्यों में इसकी बैठकें भी शुरू हो चुकी हैं।
  • परियोजना के लिये अब तक भुवनेश्वर में लगभग 20 राष्ट्रीय स्तर की प्रयोगशालाओं को और पुणे में 30 अलग-अलग व्यावसायिक उद्यमों को जोड़ा गया है।

महत्त्व :

  • भारत के शहरों और विभिन्न क्षेत्रों में ज्ञान और राजकोषीय संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं और यदि इन सभी स्वतंत्र संस्थाओं को एक मंच प्रदान किया जाए तो हम संसाधनों का कुशल प्रयोग करने में सक्षम हो जाएंगे और साथ ही सभी क्षेत्र एक साझेदार के रूप में कार्य कर पाएंगे।
  • उदाहरण के लिये यदि किसी एक विशेष उद्योग में कोई समस्या है जिसे वैज्ञानिकों या किसी प्रयोगशाला में रखे उपकरण के माध्यम से हल किया जा सकता है तो यह परियोजना उस समस्या के निवारण हेतु एक सरल मंच प्रदान करेगी।
  • इसके अतिरिक्त यह परियोजना मौजूदा प्रौद्योगिकी तक पहुँच प्राप्त करने में उद्योगों और शैक्षणिक संस्थानों की सहायता करेगी।
  • इस कार्य के लिये सभी शहरों में एक नोडल कार्यालय स्थापित किया जाएगा और इस कार्यालय का मुखिया एक सीईओ या मुख्य कार्यकारी अधिकारी होगा, जिसका चुनाव सभी हितधारकों द्वारा मिलकर किया जाएगा।
  • इस संदर्भ में सरकार I-Stemm के नाम से एक वेब पोर्टल की शुरुआत करने की योजना बना रही है। इस पोर्टल में उद्योगों को सभी सार्वजनिक वित्तपोषित संस्थानों की राष्ट्रव्यापी सूची प्राप्त हो सकेगी। अधिकारियों के मुताबिक, अब तक कुल 350 संस्थानों ने पंजीकरण किया है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

आयरन आयन बैटरी

चर्चा में क्यों?

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास के शोधकर्त्ताओं ने पहली बार एनोड के रूप में हल्के स्टील का प्रयोग करके रिचार्जेबल आयरन आयन बैटरी का निर्माण किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • वैश्विक स्तर पर इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़ती मांग को देखते हुए सस्ती बैटरी विकसित करने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
  • भारत और विश्व में लिथियम भंडार की कमी के कारण अन्य सामग्रियों के प्रयोग का प्रयास किया जा रहा है जो लिथियम की तरह कार्य कर सके।
  • जहाँ लिथियम आयन बैटरी में लिथियम आयन आवेश वाहक होते हैं, वहीं आयरन आयन बैटरी में लौह आयन (Ferrous Ion- Fe2+) आवेश वाहक का कार्य करते हैं।
  • आयरन आयन बैटरी का सामान्य परिस्थितियों में ऊर्जा घनत्व 350 वाॅट घंटे/किलोग्राम रहा, वहीं लिथियम आयन बैटरी का ऊर्जा घनत्व 220 वाॅट घंटे/किलोग्राम होता है।
  • आयरन धातु में लिथियम जैसे भौतिक-रासायनिक गुण होते है, साथ ही आयरन आयन की रेडॉक्स क्षमता लिथियम आयन से अधिक होती है और आयरन आयन की त्रिज्या लिथियम आयन के लगभग समान होती है। लोहे के इन दो अनुकूल गुणों के माध्यम से रिचार्जेबल बैटरी बनाई जा सकती है।

रेडॉक्स क्षमता किसी रसायन की इलेक्ट्रॉनों की पकड़ने या छोड़ने की क्षमता है, इसे वोल्ट या मिलिवोल्ट्स में मापा जाता है।

  • शुद्ध लोहे में एनोड हेतु लौह आयनों का निष्कासन आसान नही है, इसलिये इसके लिये स्टील में मौजूद कार्बन की कम मात्रा का प्रयोग किया जा रहा है।
  • आयरन में अधिक स्थिरता के गुण के कारण चार्जिंग प्रक्रिया के दौरान शॉर्ट-सर्किट की बहुत कम संभावना होती है।
  • आयरन आयन बैटरी में परतों के बीच बड़े अंतर के साथ ही स्तरित संरचना के कारण वैनेडियम पेंटोक्साइड (Vanadium Pentoxide) का प्रयोग कैथोड के रूप में किया जा रहा है।
  • वैनेडियम पेंटोक्साइड में स्तरित संरचना के कारण आयरन आयन आसानी से अंदर जाते हैं और कैथोड के साथ अंतःक्रिया कर पाते हैं।
  • ईथर आधारित इलेक्ट्रोलाइट का प्रयोग किया जाएगा जिसमें विघटित आयरन पेरोक्लोरेट शामिल होंगे। आयरन पेरोक्लोरेट, एनोड और कैथोड के बीच आयन माध्यम का कार्य करेगा।

आयरन आयन बैटरी की ऊर्जा संग्रहण क्षमता अधिक है लेकिन यह लागत प्रभावी है। आयरन आयन बैटरी के प्रदर्शन को और बेहतर करने पर ध्यान दिया जा रहा है, चूँकि इलेक्ट्रोलाइट को बदला नहीं जा सकता है, इसलिये शोधकर्त्ता कैथोड हेतु अलग-अलग सामग्री की खोज कर रहे हैं।

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स 13 अगस्त

  • विश्वभर में 12 अगस्त का दिन अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का प्रमुख उद्देश्य युवाओं के मुद्दों पर समाज और सरकारों का ध्यान आकर्षित करना है। इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस की थीम ट्रांसफॉर्मिंग एजुकेशन (Transforming Education) रखी गई है। यह थीम युवाओं द्वारा स्वयं के प्रयासों सहित सभी युवाओं के लिये शिक्षा को अधिक प्रासंगिक, न्यायसंगत और समावेशी बनाने के प्रयासों पर प्रकाश डालती है। विदित हो कि संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 17 दिसम्बर 1999 को युवा विश्व सम्मलेन के दौरान की गई सिफारिशों को मानते हुए पहली बार वर्ष 2000 में अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस का आयोजन किया गया था। वर्ष 2015 में सुरक्षा परिषद द्वारा पारित संकल्प को अपनाने के बाद से इस मान्यता को बल मिला कि परिवर्तन के एजेंट के रूप में युवा संघर्षों को रोकने और शांति बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1985 को अंतर्राष्ट्रीय युवा वर्ष घोषित किया गया था। भारत में प्रतिवर्ष 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। विश्व में भारत को युवाओं का देश कहा जाता है, यहाँ 35 वर्ष की आयु तक के 65 करोड़ युवा हैं।
  • 8 और 9 अगस्त को मेघालय की राजधानी शिलॉन्ग में भारत सरकार तथा मेघालय सरकार के सहयोग से प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग ने ई-शासन पर 22वें राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन का आयोजन किया। सम्‍मेलन का विषय था– डिजिटल इंडिया: सफलता से उत्‍कृष्‍टता। सम्मेलन में व्‍यापक विचार-विमर्श के पश्‍चात ई-शासन पर शिलॉन्ग घोषणापत्र को स्वीकार किया गया। सम्‍मेलन के दौरान 6 उपविषयों पर चर्चा हुई, जिनमें भारत उद्यम वास्‍तुशास्‍त्र, डिजिटल अवसंरचना, समावेश और क्षमता निर्माण, सचिवालय सुधार, उपयोगकर्त्ताओं के लिये उभरती तकनीक, राष्‍ट्रीय ई-शासन सेवा का आकलन करना शामिल था। इसके अलावा चार अन्‍य विषयों पर भी चर्चा हुई, जिनमें एक राष्‍ट्र एक प्‍लेटफार्म, नवोन्मेषियों तथा उद्योग जगत के साथ जुड़ना, राज्‍य सरकारों की आईटी पहल शामिल थे। इस दौरान ई-शासन के क्षेत्र में भारत के योगदान विषय पर एक प्रदर्शनी भी आयोजित की गई।
  • उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में गोवंश की रक्षा के लिये गौ कल्याण योजना की शुरुआत की है। इसका नाम मुख्यमंत्री बेसहारा गौवंश सहभागिता योजना रखा गया है। विदित हो कि उत्तर प्रदेश में आवारा तथा छुट्टा पशुओं की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है, जिससे किसान परेशान हैं क्योंकि ये उनकी फसल को नष्ट कर देते हैं। अब राज्य सरकार ने जो योजना पेश की है उससे आवारा पशुओं पर तो रोक लगेगी ही, साथ ही गाँव के बेरोज़गार नौजवानों को रोज़गार भी मिलेगा। सरकार ने इस नई योजना के पहले चरण के लिये 109 करोड़ रुपए खर्च करने का प्रावधान किया है। इस योजना के पहले चरण में सरकार, सरकारी गोशालाओं की एक लाख गायों को उन किसानों या ऐसे लोगों को सौंपेगी, जो इनकी देखभाल करने के लिये तैयार हैं। जो व्यक्ति इन गौवंश की देखभाल करेगा, उसे एक गाय के लिये प्रतिदिन 30 रुपए दिये जाएंगे यानी प्रदेश सरकार हर महीने ऐसे व्यक्ति के बैंक खाते में 900 रुपए जमा करेगी। अभी तीन महीने का पैसा एक साथ दिया जाएगा तथा उसके बाद हर महीने 900 रुपए खाते में डाले जाएंगे। वर्ष 2012 की पशु गणना के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में 205.66 लाख पशु हैं, जिनमें से 10-12 लाख आवारा पशु हैं। राज्य में 523 पंजीकृत गौशालाएँ हैं तथा कई अन्य को बनाने की प्रक्रिया चल रही है। वर्ष 2019-20 के बजट में राज्य सरकार ने पशु कल्याण के लिये कुल 600 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है, जिसमें से गाँवों में पशु आश्रय स्थलों को तैयार करने और रखरखाव के लिये 250 करोड़ रुपए रखे गए हैं, जबकि शहरों में इसी काम के लिये 200 करोड़ रुपए दिये जाने हैं।
  • 10 अगस्त को उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने झारखंड सरकार की मुख्यमंत्री कृषि आशीर्वाद योजना लॉन्च की। झारखंड सरकार ने प्रदेश के किसानों की आमदनी बढ़ाने हेतु इस योजना की शुरुआत की है। इस योजना के तहत राज्य के सभी लघु एवं सीमांत किसान, जिनके पास अधिकतम 5 एकड़ तक कृषि योग्य भूमि है, उन्हें 5000 रुपए प्रति एकड़ प्रतिवर्ष की दर से सहायता अनुदान दिया जाएगा, जिससे उनकी ऋण पर निर्भरता कम होगी। यह राशि दो किस्तों में दी जाएगी। इस योजना से सभी योग्य किसानों को प्रतिवर्ष न्यूनतम 5000 तथा अधिकतम 25 हज़ार रुपए मिलेंगे। यह राशि प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) के माध्यम से सीधे किसानों के बैंक खातों में भेजी जाएगी। इस वर्ष राज्य के लगभग 35 लाख किसानों को लाभ पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया है, जिसके प्रथम चरण में लगभग 10 लाख किसानों के बैंक खातों में लगभग 380 करोड़ रुपए हस्तांतरित करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। गौरतलब है कि भारत सरकार ने किसानों की आय को वर्ष 2022 तक दोगुना करने का संकल्प लिया है। इसी क्रम में सरकार ने 23 अनाजों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में लगातार वृद्धि की है तथा वनवासियों के लिये वन उत्पादों का भी न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया है।

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