इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


शासन व्यवस्था

बांध सुरक्षा विधेयक और उसका विरोध

  • 13 Aug 2019
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोकसभा में पारित हुए बांध सुरक्षा विधेयक का उद्देश्य देश भर के सभी बांधों के लिये एक समान सुरक्षा प्रक्रिया का निर्धारण करना है। इस विधेयक के पारित होने से यह उम्मीद की जा रही है कि इसके माध्यम से देश में बांध संबंधी आपदाओं को रोकने के लिये बांधों की निगरानी, निरीक्षण, संचालन तथा रखरखाव और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी।

क्या कहता है यह विधेयक?

  • यह विधेयक आपदाओं को रोकने के उद्देश्य से बांधों की निगरानी, ​​निरीक्षण, संचालन, रखरखाव और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये संस्थागत तंत्र प्रदान करता है।
  • यह देश भर के उन सभी बांधों पर लागू होता है जिनकी ऊँचाई 10 मीटर से अधिक है या जिनके पास एक विशेष डिज़ाइन तथा संरचनात्मक स्थिति है।
  • यह विधेयक बांध सुरक्षा पर राष्ट्रीय समिति (National Committee on Dam Safety-NCDS) के गठन की भी सिफारिश करता है। समिति के निम्नलिखित कार्य होंगे :
    • बांध सुरक्षा मानकों और बांधों में होने वाली घटनाओं की रोकथाम के संबंध में नीतियाँ और नियम तैयार करना।
    • बांधों की विफलता के प्रमुख कारणों का विश्लेषण करना और बांध सुरक्षा के संदर्भ में अपनाई जा रही प्रक्रिया में परिवर्तन का सुझाव देना।
  • इसके अलावा NCDS द्वारा की गई सिफारिशों को लागू करने के लिये राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण (National Dam Safety Authority) के गठन का भी प्रावधान किया गया है।
  • राज्य स्तर पर बांधों के रखरखाव और उनकी सुरक्षा के लिये राज्य बांध सुरक्षा संगठन के निर्माण का प्रावधान किया गया है। साथ ही इसके काम की समीक्षा के लिये बांध सुरक्षा पर एक राज्य समिति का भी गठन किया जाएगा।

क्यों जरूरी है विधेयक?

  • केंद्र द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, वर्तमान में देश में कुल 5,344 बड़े बांध मौजूद हैं जिसमें से 293 से अधिक बांध 100 साल से भी ज़्यादा पुराने हैं और 1,041 बांध 50-100 पुराने हैं।
  • इन बांधों में से लगभग 92 प्रतिशत बांध अंतर-राज्यीय नदियों पर बने हैं और इनमें से कई पर दुर्घटनाओं के चलते उनके रखरखाव की चिंता पैदा हुई है। उदाहरण के लिये कुछ ही दिनों पहले कोंकण क्षेत्र में रत्नागिरी (महाराष्ट्र) में एक बांध के टूटने के बाद 23 लोगों के मारे जाने की आशंका जताई गई।

बांध सुरक्षा विधेयक का इतिहास?

इस विधेयक को पहली बार वर्ष 2010 में संसद में पेश किया गया था, उस समय इस विधेयक को समीक्षा के लिये स्थायी समिति के पास भेज दिया गया था। स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट वर्ष 2011 में सौंपी, जिसके बाद यह विधेयक दो बार- 15वीं लोकसभा और 16वीं लोकसभा में विपक्ष के विरोध के चलते पारित नहीं हो पाया।

क्यों हो रहा है इस विधेयक का विरोध?

  • इस संबंध में कई राज्यों का तर्क है कि ‘पानी’ राज्य सूची का विषय है और केंद्र सरकार द्वारा लिया गया यह निर्णय एक असंवैधानिक कदम है जिसे किसी भी आधार पर उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
  • तमिलनाडु सहित कई अन्य राज्यों जैसे- कर्नाटक, केरल और ओडिशा इस विधेयक का पुरज़ोर विरोध कर रहे हैं। इन राज्यों का कहना है कि यह विधेयक राज्यों की संप्रभुता का अतिक्रमण करता है और संविधान में लिखित संघवाद के सिद्धांतों का भी उल्लंघन करता है।
  • विधेयक के प्रावधानों के अनुसार, NCDS के अंतर्गत केंद्रीय जल आयोग (Central Water Commission-CWC) का भी एक प्रतिनिधि होगा, जिसका स्पष्ट अर्थ है कि CWC सलाहकार और विनियामक दोनों की भूमिका में होगा और सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, यह अनुचित है।
  • तमिलनाडु की मुख्य चिंता विधेयक की धारा 23(1) से जुड़ी है, जिसके अनुसार यदि किसी राज्य के बांध दूसरे राज्य के क्षेत्राधिकार में आते हैं, तो इस स्थिति में राज्य बांध सुरक्षा संगठन का स्थान राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण द्वारा ले लिया जाएगा ताकि अंतर-राज्य संघर्ष को समाप्त किया जा सके।
  • तमिलनाडु को मुख्यतः अपने चार बांधों- मुल्लापेरियार, परम्बिकुलम, थुनक्कडवु और पेरुवरिपल्लम की चिंता है, इन चारों का मालिकाना हक़ तो तमिलनाडु के पास है परंतु ये उसके पड़ोसी राज्य केरल में स्थित हैं।
  • गौरतलब है कि वर्तमान में तमिलनाडु के इन बांधों का प्रशासन पहले से मौजूद दीर्घकालिक समझौतों के माध्यम से किया जा रहा है।

स्रोत: द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2