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डेली न्यूज़

  • 14 Aug, 2019
  • 42 min read
शासन व्यवस्था

दूसरे राज्यों के लिये विशेष उपबंध

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार ने संविधान के माध्यम से जम्मू और कश्मीर के विशेष राज्य के दर्ज़े को समाप्त कर दिया है। हालाँकि 11 अन्य राज्यों के लिये ‘विशेष उपबंधों’ की एक शृंखला संविधान का हिस्सा बनी हुई है।

संविधान का भाग XXI

  • यह भाग 'अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध' वाले अनुच्छेद 370 (जम्मू और कश्मीर राज्य के संबंध में अस्थायी प्रावधान) के अलावा, अनुच्छेद 371, 371A, 371B, 371C, 371D, 371E, 371F, 371G, 371H, 371J को शामिल करता है।
  • यह भारतीय संघ के अन्य राज्यों के संबंध में विशेष उपबंधों को परिभाषित करता है।

विशेष उपबंध लेकिन विशेष उपचार नहीं

  • ये सभी उपबंध अलग-अलग राज्यों की विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए बनाए गए हैं तथा विशिष्ट सुरक्षा उपायों की एक विस्तृत शृंखला पर आधारित हैं जिन्हें इन राज्यों के लिये महत्त्वपूर्ण समझा जाता है।
  • 371 से 371J अनुच्छेदों की इस शृंखला में अनुच्छेद 371I जो गोवा से संबंधित है, इसका आधार यह है कि इसमें ऐसा कोई उपबंध नहीं है जिसे ‘विशेष’ कहा जा सके। 
  • अनुच्छेद 371E, जो आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से संबंधित है, भी ‘विशेष’ नहीं है।
  • अनुच्छेद 370 में संशोधन से पूर्व जो विशेष उपबंध थे, स्पष्टतया वे अनुच्छेद 371, 371A से 371H तथा 371J में वर्णित अन्य राज्यों के विशेष उपबंधों की तुलना में बहुत अधिक थे।

जम्मू और कश्मीर के अलावा संविधान द्वारा अन्य राज्यों को निम्नलिखित विशेष प्रावधानों की गारंटी दी गई है:

महाराष्ट्र और गुजरात (Article 371)

राज्यपाल का विशेष उत्तरदायित्व है-

  • विदर्भ, मराठवाड़ा और शेष महाराष्ट्र तथा गुजरात में सौराष्ट्र एवं कच्छ के लिये ‘पृथक् विकास बोर्ड’ स्थापित करना।
  • उक्त क्षेत्रों में विकासात्मक व्यय के लिये धन का समान आवंटन और राज्य सरकार के तहत तकनीकी शिक्षा तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण हेतु पर्याप्त सुविधाएँ एवं रोज़गार के पर्याप्त अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से समान व्यवस्था सुनिश्चित करना।

नगालैंड (Article 371B, 13th Amendment Act, 1962)

  • नगा धर्म या सामाजिक प्रथाओं, नगा प्रथागत कानून एवं प्रक्रिया, नगा प्रथागत कानून के अनुसार दीवानी और आपराधिक न्यायिक प्रशासन के निर्णयों के मामलों में संसद कानून नहीं बना सकती है।
  • संसद राज्य विधानसभा की सहमति के बिना भूमि और संसाधनों के स्वामित्व और हस्तांतरण में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है।
  • वर्ष 1960 में केंद्र और नगा पीपुल्स कन्वेंशन के मध्य 16 बिंदुओं के समझौते के बाद संविधान में यह प्रावधान किया गया था जिसके फलस्वरूप वर्ष 1963 में नगालैंड का निर्माण हुआ।
  • इसमें त्वेनसांग (Tuensang) ज़िले के लिये 35 सदस्यीय एक क्षेत्रीय परिषद की स्थापना का प्रावधान था जो विधानसभा में त्वेनसांग सदस्यों का चयन करेगी। 
  • त्वेनसांग ज़िले का एक सदस्य त्वेंनसांग मामलों का मंत्री होता है। त्वेनसांग ज़िले के संबंध में अंतिम निर्णय राज्यपाल अपने विवेकानुसार ही लेगा।

Special Provision Other state

असम (Article 371B, 22nd Amendment Act, 1969)

  • इसके अंतर्गत भारत का राष्ट्रपति राज्य विधानसभा के जनजातीय क्षेत्रों से चुने गए सदस्यों से या ऐसे सदस्यों से जिन्हें वह उचित समझता है, एक समिति का गठन कर सकता है।

मणिपुर (Article 371C, 27th Amendment Act, 1971)

  • राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि यदि वह चाहे तो राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों से मणिपुर विधानसभा के लिये चुने गए सदस्यों से एक समिति का गठन कर सकता है एवं इस समिति का उचित संचालन सुनिश्चित करने हेतु राज्यपाल को विशेष उत्तरदायित्व सौंप सकता है। 
  • राज्यपाल, राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में प्रतिवर्ष राष्ट्रपति को रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना (अनुच्छेद 371-D, 32वाँ संशोधन अधिनियम, 1973 के स्थान पर आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014)। 

  • राष्ट्रपति को राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में निवास करने वाले लोगों के लिये शिक्षा एवं रोज़गार के समान अवसर सुनिश्चित करने होंगे।
  • राष्ट्रपति को राज्य सरकार के सहयोग की आवश्यकता होती है, जिससे राज्य के विभिन्न भागों में स्थानीय काडर के लिये लोक सेवाओं को संगठित किया जा सके तथा किसी भी स्थानीय काडर में आवश्यकतानुसार सीधी भर्ती की जा सके।
  • किसी भी शैक्षिक संस्थान में राज्य के किस भाग के छात्रों को प्रवेश में वरीयता दी जाएगी, यह निर्धारित करने की शक्ति भी राष्ट्रपति के पास है।
  • राष्ट्रपति, राज्य में सिविल सेवा के पदों पर कार्यरत अधिकारियों की शिकायतों एवं विवादों के निपटान हेतु विशेष प्रशासनिक अधिकरण की स्थापना कर सकता है। यह अधिकरण लोक सेवाओं में भर्ती, आवंटन, पदोन्नति आदि से संबंधित शिकायतों एवं विवादों की सुनवाई करेगा। 
  • अनुच्छेद 371E संसद को आंध्र प्रदेश राज्य में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना करने का अधिकार देता है लेकिन वास्तव में यह संविधान के इस भाग में अन्य उपबंधों के अर्थ में एक 'विशेष उपबंध' नहीं है।

सिक्किम (Article 371F, 36th Amendment Act, 1975)

  • सिक्किम विधानसभा के सदस्य लोकसभा में सिक्किम के प्रतिनिधियों का चयन करेंगे।
  • सिक्किम की जनसंख्या के विभिन्न अनुभागों के अधिकार एवं हितों की रक्षा के लिये संसद को यह अधिकार दिया गया है कि सिक्किम विधानसभा में कुछ सीटें इन्हीं अनुभागों से आने वाले व्यक्तियों द्वारा भरी जाएँ, ऐसा प्रावधान कर सके। 
  • राज्य के राज्यपाल का विशेष दायित्व है कि वह सिक्किम में शांति स्थापित करने की व्यवस्था करे तथा राज्य की जनसंख्या के समान सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिये संसाधनों एवं अवसरों का उचित आवंटन सुनिश्चित करे।
  • पूर्व के सभी कानून जिनसे सिक्किम का गठन हुआ, जारी रहेंगे और किसी भी अदालत में किसी भी रूपांतरण या संशोधन के प्रति जवाबदेह नहीं होंगे।

मिज़ोरम (Article 371G, 53rd Amendment Act, 1986)

  • इस प्रावधान के अनुसार, संसद ‘मिज़ो’, मिज़ो प्रथागत कानून और प्रक्रिया, धार्मिक एवं सामाजिक न्याय के कानून, मिज़ो प्रथागत कानून के अनुसार दीवानी और आपराधिक न्यायिक प्रशासन के निर्णयों के मामलों में, भूमि के स्वामित्व एवं हस्तांतरण संबंधी मुद्दों पर कानून नहीं बना सकती जब तक कि राज्य विधानसभा ऐसा करने हेतु प्रस्ताव न दे।

अरुणाचल प्रदेश (Article 371H, 55th Amendment Act, 1986)

  • अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल पर राज्य में कानून एवं व्यवस्था सुनिश्चित करने का विशेष दायित्व है। अपने इस दायित्व का निर्वहन करने में राज्यपाल, राज्य मंत्री परिषद से परामर्श कर व्यक्तिगत निर्णय ले सकता है तथा उसका निर्णय ही अंतिम निर्णय माना जाएगा और इसके प्रति वह जवाबदेह नहीं होगा।

कर्नाटक (Article 371J, 98th Amendment Act, 2012)

  • हैदरबाद-कर्नाटक क्षेत्र हेतु पृथक् विकास बोर्ड की स्थापना करने का प्रावधान है, जिसकी कार्यप्रणाली से संबंधित रिपोर्ट प्रतिवर्ष राज्य विधानसभा के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी। 
  • उक्त क्षेत्रों में विकासात्मक व्यय हेतु समान मात्रा में धन आवंटित किया जाएगा और सरकारी नौकरियों एवं शिक्षा में इस क्षेत्र के लोगों को समान अवसर तथा सुविधाएँ प्रदान की जाएंगी।
  • हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र में नौकरियों और शैक्षिक एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों तथा राज्य सरकार के संगठनों में संबंधित व्यक्तियों के लिये जो जन्म या मूल-निवास के संदर्भ में उस क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं, आनुपातिक आधार पर सीटें आरक्षित करने हेतु एक आदेश दिया जा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

भारत में विदेशी कैदी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को भारतीय जेलों में बंद विदेशी कैदियों को संबंधित देशों के दूतावास के साथ संचार के लिये त्वरित माध्यम स्थापित करने का आदेश दिया है।

  • हालिया आँकड़ों के अनुसार, दिल्ली की जेलों में बंद 75 प्रतिशत विदेशी कैदियों (Foreign Nationals Prisoners-FNPs) को गिरफ्तारी के बाद अपने दूतावास से संपर्क स्थापित करने के लिये मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

विदेशी कैदी 

(Foreign National Prisoners-FNPs):

  • विदेशी कैदी (FNPs) का अभिप्राय उन कैदियों से है जिनके पास उस देश का पासपोर्ट नहीं होता जिसमें वे कैद हैं।
  • भारतीय जेल संबंधी आँकड़ों के अनुसार, भारत में कुल 6,185 FNPs हैं।
  • हालाँकि कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (Commonwealth Human Rights Initiative-CHRI) द्वारा ‘स्ट्रेंजर्स टू जस्टिस’ (Strangers to Justice) शीर्षक से जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के 22 राज्यों और 4 केंद्रशासित प्रदेशों में कुल FNPs की संख्या तकरीबन 3,908 के आस-पास है।
  • यद्यपि भारत की जेलों में बंद विदेशी कैदी भारतीय संविधान में निहित न्यूनतम गारंटी के हक़दार हैं, परंतु फिर भी उनको कई बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • भाषा, संस्कृति, रीति-रिवाज़ों और धर्म में अंतर के कारण वे अक्सर कठिनाइयों का सामना करते हैं।
    • 90 प्रतिशत FNPs ने यह माना है कि उन्हें विदेशी होने के कारण जमानत हासिल करने में कठिनाई का सामना करना पड़ा है, क्योंकि प्रशासन का मानना है कि अगर वे जमानत पर बाहर निकलते हैं तो उनका पता लगाने में मुश्किलें आ सकती हैं।
    • भारत में सिर्फ 5.7 प्रतिशत विदेशी कैदियों (3,908 में से 222) को ही कांसुलर एक्सेस (Consular Access) की सुविधा मिल पाती है।
  • भारतीय कानून प्रणाली खासकर जमानत के विषय में भारतीय कैदियों और विदेशी कैदियों के बीच कोई अंतर नहीं करती है। 

सुझाव:

  • यदि FNPs को जमानत नहीं दी जाती है तो यह व्यवस्था की जानी चाहिये कि उनके मामले की जल्द-से-जल्द सुनवाई हो।
  • जैसे ही किसी विदेशी नागरिक को किसी बड़े अपराध में गिरफ्तार किया जाता है, संबंधित राज्य सरकार के माध्यम से विदेश मंत्रालय को इसकी सूचना तुरंत दी जानी चाहिये।
  • विदेश मंत्रालय वियना कन्वेंशन के तहत अपने कर्त्तव्यों के निर्वहन हेतु ऐसे विदेशी कैदियों के साथ बातचीत करने के लिये उनके वाणिज्य दूतावासों से अनुरोध कर सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

CBI को अधिक स्वायत्तता मिले: मुख्य न्यायाधीश

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation-CBI) के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए भारत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने CBI को एक कुशल और निष्पक्ष जाँच एजेंसी के रूप में कार्यात्मक बनाने के लिये एक व्यापक कानून के निर्माण के प्रयास किये जाने पर जोर दिया।

मुख्य न्यायाधीश के अनुसार, 

  • नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller & Auditor General) के समतुल्य कानून के माध्यम से CBI को भी वैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिये।
  • संगठनात्मक संरचना, कार्यों का चार्टर, शक्तियों की सीमा, संचालन और निरीक्षण से संबंधित कमियों को दूर करने के लिये एक व्यापक कानून के माध्यम से CBI के कानूनी जनादेश को मज़बूत किया जाना चाहिये।
  • इसके अलावा अंतर-राज्यीय अपराधों की बढ़ती घटनाओं का पता लगाने के लिये 'सार्वजनिक व्यवस्था' को समवर्ती सूची में शामिल किया जाना चाहिये।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने सदैव अपने संवैधानिक अधिकारों के उपयोग से यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि CBI बिना किसी भय या पक्षपात के जनहित में कार्य करे।
  • फिर भी कई हाई-प्रोफाइल और राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों में एजेंसी न्यायिक जाँच के मानकों को पूरा नहीं कर पाती है।
  • दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 के अनुसार, CBI को जाँच करने के लिये संबंधित राज्य सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता होती है, परंतु कभी-कभी निहित स्वार्थ और नौकरशाही की सुस्ती के कारण इस तरह की सहमति को या तो नकार दिया जाता है या फिर काफी देर कर दी जाती है जिसके कारण जाँच नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है।

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो 

(Central Bureau of Investigation-CBI):

  • CBI, कार्मिक विभाग, कार्मिक पेंशन तथा लोक शिकायत मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन कार्यरत एक प्रमुख अन्वेषण पुलिस एजेंसी है।
  • यह नोडल पुलिस एजेंसी भी है, जो इंटरपोल के सदस्य-राष्ट्रों के अन्वेषण का समन्वयन करती है। 
  • एक भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी से हटकर CBI एक बहुआयामी, बहु-अनुशासनात्मक केंद्रीय पुलिस, क्षमता, विश्वसनीयता और विधि के शासनादेश का पालन करते हुए जाँच करने वाली एक विधि प्रवर्तन एजेंसी है।

CBI का अधिकार क्षेत्र क्या है?

  • 1946 के अधिनियम की धारा (2) के तहत केवल केंद्रशासित प्रदेशों में अपराधों की जाँच के लिये CBI को शक्ति प्राप्त है। हालाँकि केंद्र द्वारा रेलवे तथा राज्यों जैसे अन्य क्षेत्रों में उनके अनुरोध पर इसके अधिकार क्षेत्र को बढ़ाया जा सकता है। वैसे CBI केवल केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित मामलों की जाँच के लिये अधिकृत है। 
  • कोई भी व्यक्ति केंद्र सरकार, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और राष्ट्रीयकृत बैंकों में भ्रष्टाचार के मामले की शिकायत CBI से कर सकता है।
  • इसके अलावा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामलों में CBI स्वयं कार्रवाई कर सकती है। जब कोई राज्य केंद्र से CBI की मदद के लिये अनुरोध करता है तो यह आपराधिक मामलों की जाँच करती है या तब जब सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय इसे किसी अपराध या मामले की जाँच करने का निर्देश देते हैं।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

फिनटेक हेतु RBI का सैंडबॉक्स विनियामक

चर्चा में क्यों? 

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने वित्तीय प्रौद्योगिकी (Financial Technology- FINTECH) के क्षेत्र में नवाचारों को सक्षम बनाने के लिये सैंडबॉक्स विनियामक की अंतिम रूपरेखा जारी की है।

सैंडबॉक्स विनियामक

सैंडबॉक्स विनियामक, नियंत्रित परिस्थितियों में नए उत्पादों या सेवाओं के परीक्षण को संदर्भित करता है। इस परीक्षण के सफल होने के बाद उन उत्पादों और सेवाओं को व्यापक स्तर पर लागू किया जाता है। सैंडबॉक्स विनियामक परीक्षण के दौरान उत्पादों और सेवाओं पर कुछ छूट भी प्रदान की जा सकती है।

  • RBI ने कहा कि विनियामक का उद्देश्य वित्तीय सेवाओं में नवाचार और दक्षता को बढ़ावा देना है जिससे उपभोक्ताओं को अधिक लाभ पहुंँच सके।
  • RBI के अनुसार, प्रस्तावित सैंडबॉक्स विनियामक का उद्देश्य फिनटेक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करना है, साथ ही इसके माध्यम से कंपनियों और उपभोक्ताओं को एक सहज वातावरण भी प्रदान करना है।
  • RBI केवल उन संस्थाओं के लिये सैंडबॉक्स लॉन्च करेगा, जिनकी नवीनतम संपादित बैलेंस शीट 25 लाख रुपए की है साथ ही कंपनी को देश में पंजीकृत होना चाहिये।
  • विनियामक के तहत मनी ट्रांसफर सेवाएँ, डिजिटल नो योर कस्टमर (digital know-your customer), वित्तीय समावेशन और साइबर सुरक्षा उत्पाद को शामिल किया गया हैं, जबकि क्रिप्टोकरेंसी, क्रेडिट रजिस्ट्री और क्रेडिट इनफाॅर्मेशन को इसमें शामिल नहीं किया गया है।

फिनटेक क्या है?

  • फिनटेक (FinTech) Financial Technology का संक्षिप्त रूप है। वित्तीय कार्यों में प्रौद्योगिकी के उपयोग को फिनटेक कहा जा सकता है।
  • दूसरे शब्दों में यह पारंपरिक वित्तीय सेवाओं और विभिन्न कंपनियों तथा व्यापार में वित्तीय पहलुओं के प्रबंधन में आधुनिक तकनीक का कार्यान्वयन है।
  • पहले बैंक में किसी विवरण को रजिस्टर पर लिखा जाता था जिसमें काफी समय भी लगता था। वर्तमान में अब बैंकिंग प्रणाली में प्रौद्योगिकी के प्रयोग से कोर बैंकिंग सिस्टम प्रचलन में आ गया है और इससे बैंकिंग प्रणाली आसान हो गई है। इस प्रकार की वित्तीय प्रौद्योगिकी को फिनटेक कहा जाता है। 
  • बैंकों द्वारा फिनटेक के माध्यम से मोबाइल वॉलेट सर्विस तथा UPI और भीम एप लॉन्च करके बैंकिंग प्रणाली को आसान बनाया जा रहा है।
  • फिनटेक बैंकों के लिये भुगतान, नगद हस्तांतरण जैसी सेवाओं में काफी मददगार साबित हो रहा है, साथ ही ये देश के दूरदराज़ के इलाकों तक बैंकिंग सेवाएँ भी उपलब्ध करा रहा है।
  • देश में आज पेटीएम, मोबीक्विक और फ्रीचार्ज जैसी कंपनियाँ तेज़ी से आगे बढ़ रही हैं तथा बैंकों के साथ समन्वय से छोटी कंपनियों को भी अपने नए आइडिया पर काम करने का मौका मिल रहा है।
  • सरकार द्वारा देश की अर्थव्यवस्था को कैशलेस बनाने का प्रयास किया जा रहा है। फिनटेक कैशलेस अर्थव्यवस्था के प्रयासों में भी महत्त्वपूर्ण का भूमिका का निर्वहन करेगी।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

57.3% एलोपैथिक चिकित्सक अयोग्य

चर्चा में क्यों? 

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आँकड़ों में कहा गया है कि वर्तमान में 57.3% एलोपैथिक चिकित्सकों (Allopathic Practitioners) के पास पर्याप्त योग्यता नहीं है। 

प्रमुख बिंदु: 

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) ने चिकित्सक और जनसंख्या का 1:1000 के अनुपात को मानक निर्धारित किया है। लेकिन वर्तमान में भारत का चिकित्सक-जनसंख्या अनुपात 1:1456 है। इसके अतिरिक्त चिकित्सक घनत्व भी शहरों के 3.8 की अपेक्षा गांँवों में केवल 1 है। 
  • शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत चिकित्सकों के वितरण में कमी के कारण ग्रामीण क्षेत्र की गरीब जनसंख्या अच्छी गुणवत्ता वाली चिकित्सा देखभाल से वंचित है।
  • भारतीय चिकित्सा अधिनियम, 1956 की धारा 15 के अनुसार राज्य चिकित्सा रजिस्टर (State Medical Register) पर नामांकित चिकित्सक के अतिरिक्त राज्य में अन्य किसी अयोग्य व्यक्ति को चिकित्सा कार्यों हेतु प्रतिबंधित किया गया है।
  • स्वास्थ्य, राज्य सूची का विषय है इसलिये ऐसे मामलों से निपटने की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होती है।
  • सरकारी रिकार्ड के अनुसार 31 दिसंबर, 2018 तक कुल 11,46,044 एलोपैथिक चिकित्सक मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ( Medical Council of India) के साथ पंजीकृत थे।
  • भारत में 7.63 लाख आयुर्वेद, यूनानी और होम्योपैथी चिकित्सक हैं, जिनमें से लगभग 80% चिकित्सक चिकित्सा हेतु उपलब्ध हैं जिनकी संख्या लगभग 6.1 लाख है। 
  • एलोपैथिक चिकित्सकों को आयुर्वेद, यूनानी और होम्योपैथी चिकित्सकों के साथ सम्मिलित करने   पर नया चिकित्सक-जनसंख्या अनुपात 1: 884 का हो जाएगा।
  • थाईलैंड, यूनाइटेड किंगडम और चीन आदि देशों तथा न्यूयॉर्क जैसे शहरों ने सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं के माध्यम से बेहतर स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान की है।
  • भारत में भी छत्तीसगढ़ और असम राज्य ने सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं के माध्यम से सामुदायिक स्वास्थ्य क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन किया है और हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ (Harvard School of Public Health) द्वारा कराए गए स्वतंत्र मूल्यांकन के अनुसार उनका प्रदर्शन भी बहुत अच्छा रहा है।

प्राथमिक देखभाल के लिये दक्ष चिकित्सकों के प्रशिक्षण में निवेश किया जाना चाहिये लेकिन सामुदायिक स्वास्थ्य को सुगम बनाने के लिये सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं की क्षमता को भी नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

जम्मू और कश्मीर का परिसीमन

चर्चा में क्यों? 

चुनाव आयोग ने जम्मू और कश्मीर के नया केंद्रशासित प्रदेश बनने के बाद चुनाव से पहले इसके निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन पर आंतरिक चर्चा की।

प्रमुख बिंदु: 

  • वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर 7 अतिरिक्त निर्वाचन क्षेत्रों की बात कही गई थी।
  • चुनाव आयोग ने कहा कि निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या में वृद्धि का मुद्दा एक राजनीतिक निर्णय है लेकिन इसकी प्रक्रिया को परिसीमन आयोग विधि के अनुसार ही पूरा करेगा।
  • प्रति निर्वाचन क्षेत्र की औसत निर्वाचक संख्या प्राप्त करने के लिये कुल जनसंख्या को 114 सीटों से  विभाजित किया जाएगा। प्रशासनिक इकाइयों के विभाजन के बाद निर्वाचन क्षेत्रों की भी सीमा सुनिश्चित की जाएगी। 
  • जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के अनुसार जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश की विधानसभा सीटों की संख्या को 107 से बढ़ाकर 114 कर दिया जाएगा। 
  • अधिनियम यह भी निर्दिष्ट करता है कि परिसीमन वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर वर्ष 2026 तक प्रभावी रहेगा।

भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission Of India): 

  • भारत निर्वाचन आयोग, जिसे चुनाव आयोग के नाम से भी जाना जाता है, एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है जो भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं का संचालन करता है।
  • यह देश में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव का संचालन करता है।
  • भारतीय संविधान का भाग 15 चुनावों से संबंधित है जिसमें चुनावों के संचालन के लिये एक आयोग की स्थापना करने की बात कही गई है।
  • चुनाव आयोग की स्थापना संविधान के अनुसार 25 जनवरी, 1950 में की गई थी।
  • संविधान के अनुच्छेद 324 से 329 तक चुनाव आयोग और सदस्यों की शक्तियों, कार्य, कार्यकाल, पात्रता आदि से संबंधित हैं।
  • निर्वाचन आयोग में मूलतः केवल एक चुनाव आयुक्त का प्रावधान था, लेकिन राष्ट्रपति की एक अधिसूचना के ज़रिये 16 अक्तूबर, 1989 को इसे तीन सदस्यीय बना दिया गया।
  • इसके बाद कुछ समय के लिये इसे एक सदस्यीय आयोग बना दिया गया और 1 अक्तूबर, 1993 को इसका तीन सदस्यीय आयोग वाला स्वरूप फिर से बहाल कर दिया गया। तब से निर्वाचन आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त होते हैं।
  • इनका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु (दोनों में से जो भी पहले हो) तक होता है।
  • इन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समकक्ष दर्जा प्राप्त होता है और उसके समान ही वेतन एवं भत्ते मिलते हैं।
  • मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया के समान ही पद से हटाया जा सकता है।
  • निर्वाचन आयोग का सचिवालय नई दिल्ली में स्थित है।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

स्तनपान पर जागरूकता बढ़ाने हेतु अभियान

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ (Unicef) ने संयुक्त रूप से प्रारंभिक स्तनपान पर जागरूकता बढ़ाने के लिये एक नया 10 सूत्रीय मार्गदर्शन जारी किया है।

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children’s Fund)-यूनिसेफ:

  • यूनिसेफ का गठन वर्ष 1946 में संयुक्त राष्ट्र के एक अंग के रूप में किया गया था।
  • वस्तुतः इसका गठन द्वितीय विश्वयुद्ध से प्रभावित हुए बच्चों के स्वास्थ्य की रक्षा करने तथा उन तक खाना और दवाएँ पहुँचाने के उद्देश्य से किया गया था।
  • इसका मुख्यालय जिनेवा में है। ध्यातव्य है कि वर्तमान में 190 देश इसके सदस्य हैं।

प्रमुख बिंदु: 

  • शिशु मृत्यु दर भारत की स्वास्थ्य चिंताओं में से एक है साथ ही यह एक स्थापित तथ्य है कि स्तनपान बाल मृत्यु दर को कम करता है। 
  • WHO की एक रिपोर्ट के अनुसार पहले दो वर्षों तक स्तनपान कराने से सालाना 8,20,000 से अधिक शिशुओं की जान बचाई जा सकती है। 
  • जन्म के बाद पहले स्तनपान के माध्यम से शिशु को कोलोस्ट्रम प्राप्त होता है।
  • कोलोस्ट्रम में एंटीबॉडी का उच्च स्तर पाया जाता है, साथ ही यह हाइपोथर्मिया (Hypothermia) से मृत्यु के जोखिम को कम करता है और बच्चों को संक्रामक रोगों से भी बचाता है।
  • स्तनपान करने वाले शिशुओं में दस्त, निमोनिया और अन्य संक्रामक रोगों का खतरा कम होता है साथ ही स्तनपान के माध्यम शिशुओं की आँत भी तेज़ी से परिपक्व हो जाती हैं।
  • राष्ट्रीय स्तर पर शिशु मृत्यु दर में कमी के बावजूद भी भारत के कुछ राज्यों में शिशु मृत्यु दर अभी भी अधिक है। शिशु मृत्यु दर के कारकों में स्तनपान न कराया जाना एक प्रमुख कारण है।
  • स्तनपान की अपर्याप्तता से दस्त और श्वसन संक्रमण जैसी बीमारियाँ होती हैं जो अंततः शिशु मृत्यु दर का कारण बनती हैं।
  • भारत में स्तनपान दर में सुधार के लिये महिलाओं और स्वास्थ्य प्रदाताओं को शिक्षित करने पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ही एक बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है।    
  • प्रत्येक माँ को स्तनपान हेतु उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये। इस प्रशिक्षण में डॉक्टर और चिकित्सा पेशेवर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
  • शिशु के जीवन के पहले 24 घंटों को एक महत्त्वपूर्ण अवधि माना जाता है। यदि बच्चे को स्तनपान नहीं कराया जाता है तो उसके अस्थमा, मधुमेह, बचपन के ल्यूकेमिया, मोटापे और एलर्जी जैसी विभिन्न बीमारियों से पीड़ित होने की अधिक संभावना होती है।

दुर्भाग्य से समाज का एक बड़ा हिस्सा अभी भी जागरूकता की कमी से प्रभावित है जिसके कारण वह स्तनपान के फायदे को समझने और इसका उपयोग करने में असमर्थ है। इसलिये स्वास्थ्य मंत्रालय जागरूकता कार्यक्रमों के साथ साथ देश भर में मानव दुग्ध बैंकों (Human Milk Banks) के नेटवर्क को बढ़ाने की भी योजना बना रहा है।

मानव दुग्ध बैंक

(Human Milk Banks):

  • मानव दुग्ध बैंकों में स्तनपान कराने वाली माताओं द्वारा दान किये गए दुग्ध को एकत्रित किया जाता है।
  • ये बैंक उन माताओं के लिये एक समाधान प्रदान करते हैं जो अपने शिशु को किसी कारणवश अपना दुग्ध नहीं पिला पाती हैं।

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स 14 अगस्त

  • भारत सरकार,  त्रिपुरा सरकार और साबिर कुमार देबबर्मा के नेतृत्‍व में नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (NLFT-SD) के बीच हाल ही में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए। इस समझौते के तहत NLFT-SD हिंसा छोड़ने, मुख्यधारा में शामिल होने और भारत के संविधान का पालन करने के लिये सहमत हो गया है। इस संगठन ने अपने 88 सदस्‍यों के हथियार सहित आत्मसमर्पण करने पर भी सहमति जताई है। आत्मसमर्पण करने वाले सदस्यों को गृह मंत्रालय की आत्मसमर्पण-सह-पुनर्वास योजना, 2018 के अनुसार आत्मसमर्पण लाभ दिया जाएगा। साथ ही त्रिपुरा सरकार आत्मसमर्पण करने वाले सदस्यों को आवास, भर्ती और शिक्षा जैसी सुविधाएँ उपलब्‍ध कराने में मदद करेगी। इसके लिये भारत सरकार त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों के आर्थिक विकास के संबंध में त्रिपुरा सरकार के प्रस्तावों पर गौर करेगी। ज्ञातव्य है कि इस संगठन पर वर्ष 1997 से गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत प्रतिबंध लगा हुआ है। यह संगठन अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार स्थित अपने शिविरों से हिंसा फैलाने जैसी गतिविधियों में शामिल रहा है। NLFT ने वर्ष 2005 से 2015 की अवधि के दौरान 317 उग्रवादी घटनाओं को अंजाम देते हुए हिंसक कार्रवाई की,  जिसमें 28 सुरक्षा बलों और 62 नागरिकों को अपनी जान गँवानी पड़ी। लेकिन NFLT के साथ वर्ष 2015 में प्रारंभ हुई शांति वार्ता के बाद से इस संगठन ने वर्ष 2016 के बाद कोई हिंसक कार्रवाई नहीं की है। 
  • भारत सरकार के प्रमुख थिंक टैंक नीति आयोग ने संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से वीमेन ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (WTI) पुरस्कारों का चौथा संस्करण आरंभ किया है। भारत में संयुक्त राष्ट्र की रेजीडेंट कोऑर्डिनेटर रेनाटा लोक-डेसालियन ने नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत के साथ मिलकर WTI पुरस्कार 2019 के लिये नामांकन प्रक्रिया आरंभ की। यह नामांकन व्यक्ति विशेषों की तरफ से या स्वयं व्यक्ति विशेष द्वारा किये जा सकते हैं। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2016 में शुरू हुए WTI पुरस्कार का उद्देश्य पूरे भारत की अनुकरणीय महिलाओं के कार्यों को सम्मानित करना है। WTI पुरस्कार 2019 की थीम महिला एवं उद्यमशीलता रखी गई है जो पिछले संस्करण की थीम की निरंतरता में है। WTI के तहत ऐसी महिला उद्यमियों को सम्मानित किया जाता है जो व्यवसायों और उद्यमों के माध्यम से रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ती रही हैं और एक गतिशील नवीन भारत के निर्माण में नवोन्मेषी विकास संबंधी समाधान उपलब्ध कराती रहीं हैं। Whatsapp ने WTI पुरस्कार 2019 के लिये WEP के साथ समझौता किया है और वह विजेताओं को 100,000 डॉलर के बराबर की सहायता प्रदान करेगा। यह अभियान पिछले तीन वर्षों के दौरान WTI पुरस्कारों की सफलता पर आधारित है। इसके वर्ष  2018 के संस्करण में 2300 से अधिक नामांकन प्राप्त हुए थे और सख्त चयन प्रक्रिया के माध्यम से नवीकरणीय ऊर्जा, शिक्षा, स्वच्छता, कला एवं संस्कृति, सामाजिक नवोन्मेषण एवं प्रभाव जैसे विभिन्न क्षेत्रों में प्रेरक कार्य करने वाली 15 महिला उद्यमियों को सम्मानित किया गया था। WTI पुरस्कारों के पहले दो संस्करणों में असाधारण कार्य करने वाली 12 महिलाओं को सम्मानित किया गया था, जिसमें से प्रत्येक महिला ने भारत के नगरों, शहरों एवं गाँवों में समाजों को रूपांतरित करने तथा स्वयं को एवं अपने समुदायों को अधिकार संपन्न बनाने के लिये उल्लेखनीय कार्य किया था।
  • सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों- इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिन्दुस्तान पेट्रोलियम ने देश के 100 शहरों में इस्तेमाल हो चुके खाना पकाने के तेल से बने बॉयो-डीज़ल को खरीदने के लिए एक कार्यक्रम की शुरुआत की। इस कार्यक्रम के तहत तीनों तेल विपणन कंपनियाँ इस्तेमाल हो चुके खाद्य तेल से बॉयो-डीज़ल बनाने के लिये संयंत्रों की स्थापना हेतु निजी इकाइयों से अभिरुचि पत्र आमंत्रित करेंगी। प्रारंभ में तेल विपणन कंपनियाँ इस प्रकार से बने बायो-डीज़ल को 51 रुपए प्रति लीटर की तय दर से खरीदेंगी। दूसरे साल में इसे बढ़ाकर 52.70 रुपए एवं तीसरे वर्ष में 54.50 रुपए प्रति लीटर कर दिया जाएगा। इसके अलावा खाद्य तेल के पुन: इस्तेमाल का स्टिकर एवं इस्तेमाल हो चुके खाना पकाने के तेल को एकत्र करने को लेकर एक मोबाइल एप भी शुरू किया गया है। होटल और रेस्तराँ अपने परिसरों में ऐसे स्टिकर लगाएंगे कि वे बॉयो-डीज़ल उत्पादन के लिये इस्तेमाल हो चुके खाना पकाने के तेल की आपूर्ति करते हैं। भारत में विश्व जैव ईंधन को वैकल्पिक ऊर्जा दिवस के रूप में मनाने पर विचार चल रहा है। गौरतलब है कि खाना पकाने में इस्तेमाल हो चुके तेल के बार-बार उपयोग से उच्च रक्तचाप, एथेरोस्क्लेरोसिस, अल्जाइमर और यकृत से जुड़ी बीमारियों का खतरा हो सकता है। 
  • 12 अगस्त को दुनियाभर में विश्व हाथी दिवस का आयोजन किया जाता है। इस दिवस को मनाने का प्रमुख उद्देश्य हाथियों की रक्षा और सम्मान करने और उनके सामने आने वाले गंभीर खतरों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिये दुनिया को एक साथ लाना है। एशियाई और अफ्रीकी हाथियों की दुर्दशा पर ध्यान देने और पालतू/बंधक और जंगली हाथियों की बेहतर देखभाल और प्रबंधन के लिये ज्ञान और सकारात्मक समाधान साझा करने हेतु भी यह दिन मनाया जाता है। आधिकारिक रूप से पहला विश्व हाथी दिवस 12 अगस्त, 2012 को आयोजित किया गया था। हाथियों के संरक्षण के लिये वर्ष 1992 में भारत में प्रोजेक्ट एलीफैंट की शुरुआत की गई थी। हाथी भारत का राष्ट्रीय विरासत पशु भी है, एशियाई हाथी की महत्ता को रेखांकित करने के लिये वर्ष 2010 में इसे यह दर्जा दिया गया था।

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