कुलभूषण जाधव मामले पर ICJ का फैसला

चर्चा में क्यों?

17 जुलाई, 2019 को हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने कुलभूषण जाधव को पाकिस्तान में मिली मौत की सज़ा पर रोक लगाते हुए पाकिस्तान को एक बार फिर से इस फैसले पर विचार करने को कहा है।

प्रमुख बिंदु

  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में इस मामले की सुनवाई करने वाले कुल 16 न्यायाधीशों में एक भारतीय और एक पाकिस्तानी न्यायाधीश भी शामिल थे। उल्लेखनीय है कि 16 में से 15 न्यायाधीशों ने भारत के पक्ष में फैसला दिया जबकि केवल एक न्यायाधीश (पाकिस्तान से) द्वारा इसका विरोध किया गया।
  • मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने भी माना कि कुलभूषण जाधव को इतने दिनों तक कानूनी सहायता उपलब्ध नहीं कराना वियना संधि के अनुच्छेद 36 (1B) का उल्लंघन है।
  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में भारत का पक्ष अधिवक्ता हरीश साल्वे ने जबकि पाकिस्तान का पक्ष खावर कुरैशी ने रखा।

न्यायालय का आदेश

  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने पाकिस्तान को यह आदेश जारी किया है कि वह जाधव को कांसुलर एक्सेस (भारतीय राजनयिकों से मिलने की इज़ाजत) दे।
  • न्यायालय ने पाकिस्तान को यह आदेश भी दिया है कि वह जाधव को दी गई सज़ा की समीक्षा करे।

कितना बाध्यकारी है अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का फैसला?

  • संयुक्त राष्ट्र चार्टर (United Nations Charter) के अनुच्छेद 94 के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश न्यायालय के उस फैसले को स्वीकार करेंगे जिसमें वह स्वयं पक्षकार (Party) हैं। ऐसी स्थिति में न्यायालय का फैसला अंतिम होगा और इस पर कोई अपील नहीं की जा सकेगी। लेकिन अगर निर्णय की किसी पंक्ति या शब्द के अर्थ को लेकर किसी प्रकार की आशंका हो या उसके एक से अधिक अर्थ संभव हों तो संबंधित पक्ष द्वारा न्यायालय के समक्ष उसकी पुनः व्याख्या की अपील की जा सकती है।
  • मामले से संबंधित देशों/देश अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय द्वारा दिये गए फैसले को लागू करने के लिये बाध्य हैं लेकिन ऐसे भी मामले देखे गए हैं जब देशों ने न्यायालय के फैसले कू मानने से इनकार किया है। उदाहरण के लिये वर्ष 1991 में निकारागुआ ने अमेरिका के खिलाफ ICJ में शिकायत की थी कि अमेरिका ने एक विद्रोही संगठन की मदद कर उसके खिलाफ छद्म युद्ध छेड़ दिया है। हालाँकि अंतर्राष्ट्रीय न्यायलय ने इस मामले पर निकारागुआ के पक्ष में फैसला दिया था लेकिन अमेरिका ने वीटो पॉवर का इस्तेमाल करते हुए इसके फैसले को मानने से इनकार कर दिया था।
  • ICJ के पास अपने फैसलों को लागू करने के लिये कोई प्रत्यक्ष शक्ति नहीं है ऐसे में इसके फैसले को मानने के संबंध में आशंका और भी बढ़ जाती है।

पाकिस्तान द्वारा ICJ का फैसला न मानने पर भारत के लिये विकल्प

  • यदि पकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के इस फैसले को लागू करने के मामले में अनिच्छा व्यक्त करता है या फैसले को मानने से इनकार करता है तो ऐसी स्थिति में भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council-UNSC) से अपील कर सकता है कि वह पकिस्तान से इस फैसले को लागू करने को कहे।
  • लेकिन चीन UNSC का स्थायी सदस्य है और भारत तथा चीन के बीच संबंधों एवं पाकिस्तान के साथ चीन की निकटता को देखते हुए ऐसा संभव है कि चीन पाकिस्तान द्वारा इस फैसले को मानने के संदर्भ में अपनी वीटो पॉवर का प्रयोग करे जैसा कि अमेरिका द्वारा निकारागुआ मामले में किया गया था।

जाधव मामले में फैसला देने वाले न्यायाधीश

न्यायाधीश का नाम देश
पीटर टॉमका स्लोवाकिया
अब्दुलकवी अहमद यूसुफ (ICJ अध्यक्ष) सोमालिया
शू हानकिन, (ICJ उपाध्यक्ष) चीन
रॉनी अब्राहम फ्राँस
दलवीर भंडारी भारत
एंटोनियो ऑगस्टो ट्रिनडाडे ब्राज़ील
जेम्ल रिचर्ड क्रॉफोर्ड ऑस्ट्रेलिया
मोहम्मद बेनौना मोरक्को
जोआन ई. डोनोह्यू अमेरिका
जॉर्जिओ गजा इटली
पैट्रिक लिप्टन रॉबिंसन जमैका
जूलिया सेबुटिंडे युगांडा
किरिल गेवोर्जिअन रूसी संघ
तस्सदुक हुसैन गिलानी (एड-हॉक न्यायाधीश) पाकिस्तान
नवाज़ सलाम लेबनॉन
यूजी इवसावा जापान

पृष्ठभूमि

  • कुलभूषण जाधव महाराष्ट्र के सांगली के निवासी हैं। 3 मार्च, 2016 को पाकिस्तान ने इस बात का खुलासा किया कि उसने भारतीय नौसेना के सेवानिवृत्त अधिकारी को जासूसी के मामले में पाकिस्तान के बलूचिस्तान से गिरफ्तार किया है। इसके बाद भारत ने यह तो स्वीकार किया कि कुलभूषण भारतीय नागरिक हैं लेकिन उनके जासूस होने की बात से इनकार किया। भारत सरकार के अनुसार, कुलभूषण ईरान से कानूनी तरीके से अपना कारोबार चला रहे थे और भारत द्वारा उनके अपहरण की आशंका जताई गई।
  • 25 मार्च, 2016 को पकिस्तान ने भारतीय प्रशासन को प्रेस रिलीज़ के ज़रिये जाधव की गिरफ़्तारी के बारे में सूचित किया। पाकिस्तान ने एक वीडियो जारी किया जिसमें कुलभूषण को यह कहते हुए दिखाया गया कि वो वर्ष 1991 में भारतीय नौसेना में शामिल हुए थे और वर्ष 2013 से रॉ के लिये काम कर रहे हैं।
  • 30 मार्च, 2016 को भारतीय विदेश मंत्रालय का जवाब आया कि कुलभूषण जाधव को प्रताड़ित किया जा रहा है। 26 अप्रैल 2017 को पाकिस्तान ने जाधव को कॉन्सुलर एक्सेस का भारत का निवेदन 16वीं बार खारिज कर दिया।
  • 10 अप्रैल, 2017 को पाकिस्तानी सेना के जनसंपर्क विभाग (ISPR) ने एक प्रेस रिलीज़ के ज़रिये सूचित किया कि जाधव को एक सैन्य अदालत ने मौत की सज़ा सुनाई है।
  • कॉन्सुलर एक्सेस के 16 बार निवेदन ठुकराए जाने के बाद 8 मई, 2017 को भारत ने संयुक्त राष्ट्र में याचिका दाखिल की। भारत ने इसे विएना संधि का उल्लंघन बताया।
  • 9 मई, 2017 को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने जाधव की मौत की सज़ा पर सुनवाई पूरी होने तक रोक लगा दी। 17 जुलाई, 2018 को पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने अपना जवाब अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय को सौंपा। 17 अप्रैल, 2018 को ही भारत ने भी दूसरे दौर का जवाब अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय को सौंपा।

वियना संधि (Vienna Convention)

  • स्वतंत्र और संप्रभु देशों के बीच आपसी राजनयिक संबंधों के विषय पर सर्वप्रथम वर्ष 1961 में वियना अभिसमय/कन्वेंशन हुआ। इस अभिसमय में एक ऐसी अंतर्राष्ट्रीय संधि का प्रावधान किया गया जिसमें राजनियकों को विशेष अधिकार दिये जा सकें। इसी के आधार पर राजनियकों की सुरक्षा के लिये अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का प्रावधान किया गया।
  • इस संधि के तहत कोई भी मेज़बान देश अपने यहाँ रहने वाले दूसरे देशों के राजनयिकों को खास दर्जा देता है। इस संधि का ड्राफ्ट इंटरनेशनल लॉ कमीशन (International Law Commission) द्वारा तैयार किया गया था और वर्ष 1964 में यह संधि लागू हुई।
  • फरवरी 2017 तक इस संधि पर विश्व के कुल 191 देश हस्ताक्षर कर चुके हैं।
  • इस संधि में कुल 54 अनुच्छेद हैं।
  • इस संधि में किये गए प्रमुख प्रावधानों के अनुसार कोई भी देश दूसरे देश के राजनयिकों को किसी भी कानूनी मामले में गिरफ्तार नहीं कर सकता है। साथ ही राजनयिक के ऊपर मेज़बान देश में किसी तरह का कस्टम टैक्स भी नहीं लगाया जा सकता है।
  • वर्ष 1963 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस संधि के समान ही एक और संधि का प्रावधान किया जिसे ‘वियना कन्वेंशन ऑन कॉन्सुलर रिलेशंस’ (Vienna Convention on Consular Relations) के नाम से जाना जाता है।
  • इस संधि के अनुच्छेद 31 के तहत मेज़बान देश किसी दूतावास में नहीं घुस सकता है तथा उसे दूतावास की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी भी उठानी होती है।
  • संधि के अनुच्छेद 36 के तहत अगर किसी विदेशी नागरिक को कोई देश अपनी सीमा के भीतर गिरफ्तार करता है तो संबंधित देश के दूतावास को बिना किसी देरी के तुरंत इसकी सूचना देनी होगी।
  • गिरफ्तार किये गए विदेशी नागरिक के आग्रह पर पुलिस को भी संबंधित दूतावास या राजनयिक को फैक्स करके इसकी सूचना देनी होगी।
  • इस फैक्स में पुलिस को गिरफ्तार व्यक्ति का नाम, गिरफ्तारी की जगह और गिरफ्तारी की वजह भी बतानी होगी। यानी गिरफ्तार विदेशी नागरिक को राजनयिक पहुँच देनी होगी।
  • भारत ने वियना कन्वेंशन के अनुच्छेद 36 के प्रावधानों का हवाला देते हुए जाधव का मामला अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में उठाया था।

पकिस्तान द्वारा जाधव को कॉन्सुलर एक्सेस न देने के पीछे तर्क

  • उपर्युक्त प्रावधानों के अलावा वियना संधि में एक प्रावधान यह भी है कि जासूसी या आतंकवाद आदि जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में गिरफ्तार किये गए विदेशी नागरिक को राजनयिक पहुँच नहीं भी दी जा सकती है। विशेष रूप से उस स्थिति में जब दो देशों ने इस मामले पर आपस में कोई समझौता किया हो।
  • भारत और पाकिस्तान ने वर्ष 2008 में इसी तरह का एक समझौता किया था और पाकिस्तान जाधव मामले में बार-बार इसका हवाला दे रहा है। इसी समझौते हवाला देते हुए पाकिस्तान ने जाधव को राजनयिक पहुँच देने से इनकार किया था

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय

(International Court of Justice)

  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय संयुक्त राष्ट्र का प्रधान न्यायिक अंग है।
  • इसकी स्थापना संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा 1945 में की गई थी और अप्रैल 1946 में इसने कार्य करना प्रारंभ किया था।
  • इसका मुख्यालय (पीस पैलेस) हेग (नीदरलैंड) में स्थित है।
  • इसके प्रशासनिक व्यय का भार संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वहन किया जाता है।
  • इसकी आधिकारिक भाषाएँ अंग्रेज़ी और फ्रेंच हैं।
  • ICJ में 15 जज होते हैं, जो संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद् द्वारा नौ वर्षों के लिये चुने जाते हैं। इसकी गणपूर्ति संख्या (कोरम) 9 है।
  • ICJ में न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति पाने के लिये प्रत्याशी को महासभा और सुरक्षा परिषद् दोनों में ही बहुमत प्राप्त करना होता है।
  • इन न्यायाधीशों की नियुक्ति उनकी राष्ट्रीयता के आधार पर न होकर उच्च नैतिक चरित्र, योग्यता और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों पर उनकी समझ के आधार पर होती है।
  • एक ही देश से दो न्यायाधीश नहीं चुने जा सकते हैं।
  • ICJ में प्रथम भारतीय मुख्य न्यायाधीश डा.नगेन्द्र सिंह थे।
  • संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार इसके सभी 193 सदस्य देश इस न्यायालय से न्याय पाने का अधिकार रखते हैं। हालाँकि जो देश संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य नहीं है वे भी यहाँ न्याय पाने के लिये अपील कर सकते हैं।
  • न्यायालय द्वारा सभापति तथा उप-सभापति का निर्वाचन और रजिस्ट्रार की नियुक्ति होती है।
  • मामलों पर निर्णय न्यायाधीशों के बहुमत से होता है। सभापति को निर्णायक मत देने का अधिकार है। न्यायालय का निर्णय अंतिम होता है तथा इस पर पुनः अपील नहीं की जा सकती है, परंतु कुछ मामलों में पुनर्विचार किया जा सकता है।

स्रोत: द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस, बी.बी.सी.