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डेली न्यूज़

  • 13 Apr, 2024
  • 40 min read
शासन व्यवस्था

केंद्र के खिलाफ राज्यों की बढ़ती अपील से सर्वोच्च न्यायालय चिंतित

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF), आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005, राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष

मेन्स के लिये:

आपदा प्रबंधन, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, राज्य उधार लेने की शक्ति, केंद्र-राज्य संबंध

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों द्वारा केंद्र के खिलाफ उसके पास जाने के लिये मजबूर होने की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की है।

किन मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने चेतावनी दी?

  • तमिलनाडु:
    • तमिलनाडु ने केंद्र पर लगभग 38,000 करोड़ रुपए की आपदा राहत निधि में देरी करके राज्य की ज़रूरतों की उपेक्षा करने का आरोप लगाया।
  • केरल:
    • केरल ने सीधे सर्वोच्च न्यायालय में एक मुकदमा दायर किया, जिसमें केंद्र पर उसकी 'नेट बॉरोइंग सीलिंग' (2023-24 के लिये अनुमानित सकल राज्य घरेलू उत्पाद के 3% के रूप में निर्धारित) में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया गया, जिससे राज्य को वित्तीय आपातकाल की ओर अग्रसर कर दिया गया।
  • कर्नाटक:
    • मानवीय संकट से निपटने के लिये राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (National Disaster Response Fund- NDRF) के तहत कर्नाटक का ₹18,171.44 करोड़ का अनुरोध छह महीने से अनुत्तरित है।
    • राज्य का तर्क है कि केंद्र की निष्क्रियता न केवल आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के वैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करती है, बल्कि भारत के संविधान के तहत गारंटीकृत राज्य के लोगों के मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करती है, जिसमें समानता और जीवन का अधिकार भी शामिल है।
      • राज्य गंभीर सूखे की स्थिति का सामना कर रहा है, जिससे वर्षा में भारी कमी हो रही है, जिससे लोगों का जीवन प्रभावित हो रहा है।

राज्यों द्वारा राजस्व उधार लेने और केंद्र के साथ विवाद निपटारे हेतु संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?

  • अनुच्छेद 293:
    • इस अनुच्छेद के प्रावधानों के अधीन, किसी राज्य की कार्यकारी शक्ति, भारत के क्षेत्र के अंतर्गत राज्य की संचित निधि की सुरक्षा पर ऐसी सीमाओं के भीतर, यदि कोई हो, ऋण लेने तक विस्तारित है, जो समय-समय पर विधायिका द्वारा तय की जा सकती हैं। 
    • भारत सरकार संसद द्वारा निर्धारित शर्तों के अधीन राज्यों को ऋण दे सकती है या गारंटी प्रदान कर सकती है।
    • यदि भारत सरकार के पिछले ऋण का कोई हिस्सा बकाया रहता है तो राज्य भारत सरकार की सहमति के बिना ऋण नहीं उठा सकते हैं।
      • यदि आवश्यक हो तो भारत सरकार द्वारा शर्तों के साथ उधार लेने की सहमति दी जा सकती है।
  • अनुच्छेद 131:
    • यह सर्वोच्च न्यायालय के मूल क्षेत्राधिकार से संबंधित है। इसका मतलब यह है कि यह सर्वोच्च न्यायालय को निम्नलिखित के बीच विवादों को सीधे सुनने और निर्णय लेने का अधिकार देता है:
      • केंद्र सरकार और एक या अधिक राज्य सरकारें।
      • दो या दो से अधिक राज्य सरकारें।
    • अनिवार्य रूप से यह केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच या स्वयं विभिन्न राज्य सरकारों के बीच असहमति में रेफरी/निर्णायक के रूप में कार्य करता है।

भारत की शासन व्यवस्था में केंद्र-राज्य संबंध

अवस्था

संवैधानिक प्रावधान

  प्रमुख विशेषताएँ

विधायी संबंध

अनुच्छेद 245 से 255


  • संसद के पास राज्य विधानमंडलों के लिये अत्यधिक विधायी शक्तियाँ होती हैं।
  • संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची में विषयों की रूपरेखा।
  • सूचियों में शामिल नहीं किये गए किसी भी विषय पर कानून बनाने का संसद का विशेष अधिकार।

प्रशासनिक संबंध

अनुच्छेद 256 से 263

  • राज्यों को संसद द्वारा बनाए गए कानूनों का पालन करना आवश्यक है।
  • प्रशासनिक मामलों में "सहकारी संघवाद" की अवधारणा।
  • कुछ मामलों पर राज्यों को निर्देश देने की केंद्र की शक्ति।

वित्तीय संबंध

अनुच्छेद 264 से 293

  • केंद्र और राज्यों के बीच कराधान शक्तियों का विभाजन।
  • कर लगाने और उसके विभाजन के नियम।
  • राज्यों को वित्तीय अनुदान और संसाधन अंतरण के प्रावधान।

राज्यों के लिये आपदा बहाली योजनाओं में केंद्र सरकार की क्या भूमिका है?

  • आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005:
    • आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 आपदा प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय, राज्य, ज़िला और स्थानीय स्तर पर संस्थागत, कानूनी, वित्तीय एवं समन्वय तंत्र निर्धारित करता है।
      • यह अधिनियम आपदा प्रबंधन प्रयासों की देखरेख और कार्यान्वयन के लिये राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) एवं राज्य तथा ज़िला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण जैसे विभिन्न प्राधिकरणों व समितियों की स्थापना को अनिवार्य करता है।
    • यह अधिनियम केंद्र सरकार को आपदा प्रबंधन में सुविधा या सहायता के लिये NDMA, राज्य सरकारों/SDMA, या उनके किसी भी अधिकारी/कर्मचारी को निर्देश जारी करने का अधिकार देता है।
    • वित्त आयोग आपदा प्रतिक्रिया के साथ-साथ आपदा शमन के लिये धन के निर्माण की सिफारिश करता है, जिसे अब एक साथ राष्ट्रीय आपदा जोखिम प्रबंधन कोष (NDRMF) और राज्य आपदा जोखिम प्रबंधन कोष (SDRMF) कहा जाएगा।
      • 15वें वित्त आयोग ने वर्ष 2021-26 की अवधि के लिये राष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण कोष (NDMF) की सिफारिश की, तथा NDMF के साथ-साथ राज्य DMF की स्थापना की गई है।
      • SDMF में केंद्र व राज्य दोनों सरकारों द्वारा योगदान दिया जाता है, सामान्य राज्यों के लिये 75:25 अनुपात और पूर्वोत्तर तथा हिमालयी राज्यों के लिये 90:10 अनुपात निर्धारित होता है।
  • राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF):
    • आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत गठित SDRF, अधिसूचित आपदाओं की प्रतिक्रिया के लिये राज्य सरकारों के पास उपलब्ध प्राथमिक निधि है।
      • केंद्र सरकार सामान्य श्रेणी के राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के लिये SDRF आवंटन का 75% तथा विशेष श्रेणी के राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों (पूर्वोत्तर राज्यों, सिक्किम, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर) के लिये 90% का योगदान करती है।
    • वित्त आयोग की सिफारिश के अनुसार वार्षिक केंद्रीय योगदान दो समान किश्तों में जारी किया जाता है।
    • SDRF का उपयोग केवल पीड़ितों को तत्काल राहत प्रदान करने के व्यय को पूरा करने के लिये किया जाएगा।
      • SDRF के अंतर्गत आने वाली आपदाएँ: चक्रवात, सूखा, भूकंप, आग, बाढ़, सुनामी, ओलावृष्टि, भूस्खलन, हिमस्खलन, बादल फटना, कीट हमला, ठंड और ठंडी लहरें।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF):
    • आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 46 के तहत स्थापित NDRF, खतरनाक स्थितियों या आपदाओं के दौरान आपातकालीन प्रतिक्रिया, राहत और पुनर्वास को संबोधित करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा प्रबंधित एक कोष है।
      • यह गंभीर प्रकृति की आपदा की स्थिति में राज्य के SDRF को पूरक बनाता है, बशर्ते SDRF में पर्याप्त धनराशि उपलब्ध न हो।
    • इस कोष को भारत सरकार के "सार्वजनिक खाते" में "ब्याज न देने वाली आरक्षित कोष" के अंतर्गत रखा जाता है, जिससे सरकार इसे संसदीय अनुमोदन के बिना उपयोग करने में सक्षम बनाती है।
      • NDRF को उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क के अधीन विशिष्ट वस्तुओं पर लगाए गए उपकर के माध्यम से वित्तपोषित किया जाता है, जिसे वित्त विधेयक के माध्यम से वार्षिक तौर पर मंज़ूरी दी जाती है।
    • NDRF आवंटन से परे अतिरिक्त कोषीय आवश्यकताओं को सामान्य बजटीय संसाधनों के माध्यम से पूर्ण किया जाता है, जिससे आपदा राहत प्रयासों के लिये निरंतर समर्थन सुनिश्चित होता है।
    • कोष के उपयोग की निगरानी NDMA की राष्ट्रीय कार्यकारी समिति (NEC) द्वारा की जाती है, जिसमें पारदर्शिता एवं जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा वार्षिक ऑडिट किया जाता है।

वित्तीय सहायता के संवितरण के संबंध में राज्यों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?

  • विलंबित एवं अपर्याप्त आपदा राहत:
    • आपदा प्रबंधन निधि (NDRF तथा SDRF) के वितरण में केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय का अभाव।
      • आपदा सहायता की मात्रा निर्धारित करने में केंद्र के एकतरफा निर्णय लेने पर चिंता
    • राज्यों को आपदा राहत एवं पुनर्वास सहायता की मात्रा निर्धारित करने के लिये केंद्र के पास स्पष्ट, पारदर्शी और उद्देश्यपूर्ण मानदंडों का अभाव।
    • आपदा सहायता पर केंद्र के निर्णयों को चुनौती देने के लिये राज्यों के पास पर्याप्त संस्थागत तंत्र का अभाव।
  • केंद्र-राज्य आपदा प्रबंधन ढाँचे में असंतुलन:
    • आपदा प्रबंधन शक्तियों एवं निर्णय लेने के अधिकार के संदर्भ में केंद्र के पास अति-केंद्रीकरण।
    • NDMA के केंद्र पर अत्यधिक निर्भर होने तथा राज्यों के प्रभावी प्रतिनिधित्व की कमी को लेकर चिंताएँ हैं।
    • राज्यों के पास अपने स्थानीय संदर्भों एवं प्राथमिकताओं के अनुसार, आपदा प्रतिक्रिया तथा शमन उपायों को अनुकूलित करने हेतु लचीलेपन का अभाव है।
  • केंद्रीकृत योजना:
    • केंद्रीकृत योजना हमेशा प्रत्येक राज्य की विशिष्ट आवश्यकताओं तथा परिस्थितियों को ध्यान में नहीं रख सकती है, जिससे आपदाओं अथवा सहायता की आवश्यकता वाली अन्य स्थितियों की प्रतिक्रिया में अक्षमताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • राजनीतिक गतिशीलता:
    • केंद्र सरकार तथा राज्यों के बीच राजनीतिक गतिशीलता एवं संबंधों में सहायता वितरण को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे कभी-कभी पूर्वाग्रह अथवा पक्षपात के आरोप भी लग सकते हैं।
  • परामर्श का अभाव:
    • केंद्र पर प्राय: नीतियों तथा योजनाओं को तैयार करते समय राज्यों से परामर्श नहीं करने का आरोप लगाया जाता है, जिससे योजनाओं के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
    • केंद्र द्वारा राज्यों की सहमति के बिना उन पर एकतरफा निर्णय थोपना भी उदाहरण टकराव का एक स्रोत रहे हैं।
    • केंद्र और राज्यों के बीच नियमित संवाद एवं विवाद समाधान हेतु प्रभावी संस्थागत मंचों का अभाव।
    • बढ़ती प्रतिस्पर्द्धात्मक एवं प्रतिकूल राजनीति के सामने संघीय भावना तथा सहयोगात्मक दृष्टिकोण का कमज़ोर होना।

आगे की राह

  • कराधान शक्तियों एवं राजस्व बँटवारे की समीक्षा करके, राजकोषीय असंतुलन को दूर करके राजकोषीय संघवाद को बढ़ावा देना।
  • केंद्र और राज्यों के बीच नियमित संवाद एवं आम सहमति बनाने के लिये संस्थागत मंचों को पुनर्जीवित करना। केंद्र-राज्य विवादों को संबोधित करने हेतु सहयोगात्मक नीति निर्धारण तथा प्रभावी विवाद समाधान तंत्र को बढ़ावा देना।
  • आपदा राहत निधि एवं सहायता उपयोग हेतु निर्णय लेने में पारदर्शिता में सुधार करना। निधि के गबन तथा भेदभाव को रोकने के लिये लेखापरीक्षा एवं निरीक्षण बढ़ाना
  • एक ऐसी राजनीतिक संस्कृति को बढ़ावा देना जो पक्षपातपूर्ण एजेंडे पर राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देती है तथा केंद्र और राज्य स्तरों के बीच सहयोग एवं पारस्परिक सम्मान बढ़ाने को प्रोत्साहित करती है। प्रभावी शासन तथा न्यायसंगत विकास के लिये सहकारी संघवाद के महत्त्व के बारे में नागरिकों को शिक्षित करती है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न. राजनीतिक गतिशीलता एवं अपर्याप्त परामर्श संकट के समय केंद्र-राज्य को सहयोग करने से कैसे रोकते हैं, और अधिक सहकारी संघवाद को प्रोत्साहित करने के लिये क्या बदलाव किये जाने चाहिये?

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी एक भारतीय संघराज्य पद्धति की विशेषता नहीं  है? (2017)

(a) भारत में स्वतंत्र न्यायपालिका है।
(b) केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन किया गया है।
(c)  संघबद्ध होने वाली इकाइयों को राज्य सभा में असमान प्रतिनिधित्व दिया गया है।
(d) यह संघबद्ध होने वाली इकाइयों के बीच एक सहमति का परिणाम है।

उत्तर: (d)


प्रश्न. स्थानीय स्वशासन की सर्वोत्तम व्याख्या यह की जा सकती है कि यह एक प्रयोग है: (2017)

(a) संघवाद का
(b) लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का 
(c) प्रशासनिक प्रत्यायोजन का
(d) प्रत्यक्ष लोकतंत्र का

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. पहले के प्रतिक्रियाशील दृष्टिकोण से हटकर भारत सरकार द्वारा आपदा प्रबंधन हेतु शुरू किये गए हालिया उपायों की चर्चा कीजिये। (2020)

प्रश्न. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के दिशा-निर्देशों के संदर्भ में उत्तराखंड के कई स्थानों पर हाल ही में बादल फटने की घटनाओं के प्रभाव को कम करने के लिये अपनाए जाने वाले उपायों पर चर्चा कीजिये। (2016) 


शासन व्यवस्था

चुनाव उम्मीदवार की निजता का अधिकार

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, निर्वाचन आयोग, निजता का अधिकार, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951 

मेन्स के लिये:

चुनावी प्रक्रिया में निजता के अधिकार एवं पारदर्शिता के बीच संतुलन, चुनावी सुधार, चुनावों को अधिक निष्पक्ष और पारदर्शी बनाना।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया है कि चुनाव लड़ने वाले प्रत्येक उम्मीदवार को उसके पास मौजूद प्रत्येक चल संपत्ति की घोषणा करने की आवश्यकता नहीं है।

  • न्यायालय ने निर्णय दिया कि उम्मीदवार अपने जीवन के प्रत्येक विवरण को जाँच के लिये उजागर नहीं कर सकते हैं और उनके पास भी मतदाताओं के समान ही निजता का भी अधिकार है।

मामले से जुड़े मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • सर्वोच्च न्यायालय, अरुणाचल प्रदेश के एक विधायक द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें वर्ष 2023 के गुवाहाटी उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती दी गई थी, जिसमें 1961 के चुनाव संचालन नियमों के साथ संलग्न फॉर्म में दायर अपने हलफनामे में तीन वाहनों को अपनी संपत्ति के रूप में घोषित नहीं करने के कारण उनके चुनाव को अमान्य घोषित कर दिया गया था। 
  • याचिका में कहा गया है कि चुनावी उम्मीदवार ने उक्त वाहनों के स्वामित्व की घोषणा नहीं की जिस कारण उसे जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951 की धारा 123 के तहत "भ्रष्ट आचरण" का माना गया।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि किसी उम्मीदवार द्वारा उन मामलों पर अपनी गोपनीयता बनाए रखने का विकल्प जो मतदाताओं के लिये कोई चिंता का विषय नहीं थे अथवा सार्वजनिक पद हेतु उसकी उम्मीदवारी के लिये अप्रासंगिक थे, RRA, 1951 की धारा 123 के तहत "भ्रष्ट आचरण" नहीं है।
    • साथ ही इस तरह का गैर-प्रकटीकरण 1951 अधिनियम की धारा 36(4) के तहत "महत्त्वपूर्ण प्रकृति का दोष" नहीं माना जाएगा।
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि मतदाताओं को उस जानकारी का खुलासा करने का अधिकार है जो उस उम्मीदवार को चुनने के लिये आवश्यक है जिसके लिये वोट डाला जाना चाहिये।

निजता का अधिकार क्या है?

  • निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, जो व्यक्ति को राज्य और गैर-राज्य दोनों तत्त्वों के हस्तक्षेप से बचाता है तथा व्यक्ति को स्वायत्त जीवन विकल्प चुनने की अनुमति देता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2017 में के.एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ के ऐतिहासिक निर्णय में निजता एवं उसके महत्त्व का वर्णन करते हुए कहा कि निजता का अधिकार एक मौलिक व अविभाज्य अधिकार है और यह उस व्यक्ति से जुड़ा है जिसमें उस व्यक्ति तथा उसके द्वारा चुने गए विकल्पों के बारे में संपूर्ण जानकारी शामिल है।
  • निजता का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के आंतरिक भाग के रूप में संरक्षित है।

RPA 1951 और अधिनियम के तहत भ्रष्ट आचरण क्या है?

  • परिचय: 
    • वर्ष 1951 का RPA निर्वाचन के संचालन और निर्वाचित प्रतिनिधियों की योग्यता व अयोग्यता को नियंत्रित करता है।
  • प्रावधान:
    • यह निर्वाचन के संचालन को नियंत्रित करता है।
    • यह संसद के विधायी सदनों की सदस्यता के लिये योग्यता और अयोग्यताएँ निर्दिष्ट करता है,
    • यह भ्रष्ट आचरण और अन्य अपराधों पर अंकुश लगाने का भी प्रावधान करता है।
    • यह निर्वाचन से उत्पन्न होने वाले संदेहों और विवादों को निपटाने की प्रक्रिया निर्धारित करता है।
    • 1951 के अधिनियम की धारा 36(4) में उल्लेख है कि रिटर्निंग अधिकारी किसी भी दोष के आधार पर किसी भी नामांकन पत्र को अस्वीकार नहीं करेगा जो सही चरित्र का नहीं है।
  • RPA, 1951 के तहत भ्रष्ट आचरण:
    • भ्रष्ट आचरण: अधिनियम की धारा 123 'भ्रष्ट आचरण' को परिभाषित करती है जिसमें रिश्वतखोरी, अनुचित प्रभाव, गलत जानकारी और निर्वाचन में अपनी संभावनाओं को आगे बढ़ाने के लिये एक उम्मीदवार द्वारा "धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर भारत के नागरिकों के विभिन्न वर्गों के बीच शत्रुता या घृणा की भावनाओं" को बढ़ावा देना। 
      • अभिराम सिंह बनाम सी. डी. कॉमाचेन मामले (2017) में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि उम्मीदवारों को न केवल अपने धर्म के आधार पर बल्कि मतदाताओं के धर्म के आधार पर भी वोट की अपील करने से प्रतिबंधित किया गया है
    • अनुचित प्रभाव: यह धारा अनुचित प्रभाव को धमकियों सहित किसी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप के रूप में परिभाषित करती है, जो चुनावी अधिकारों के स्वतंत्र अभ्यास में बाधा डालती है।
    • अयोग्यता: धारा 123(4) कुछ अपराधों, भ्रष्ट आचरण, चुनावी खर्चों की घोषणा करने में विफलता, या सरकारी अनुबंधों या कार्यों में रुचि रखने के लिये एक निर्वाचित प्रतिनिधि को अयोग्य घोषित करने की अनुमति देती है।
  • महत्त्व:
    • यह अधिनियम भारतीय लोकतंत्र के सुचारू कामकाज के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों के प्रतिनिधि निकायों में प्रवेश पर रोक लगाता है, और इस प्रकार भारतीय राजनीति को अपराधमुक्त कर देता है।
    • अधिनियम के अनुसार प्रत्येक उम्मीदवार को अपनी संपत्ति और देनदारियों की घोषणा करनी होगी तथा चुनाव के खर्चों का लेखा-जोखा रखना होगा।
      • यह प्रावधान सार्वजनिक धन के उपयोग में उम्मीदवार की जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।
    • यह बूथ कैप्चरिंग, रिश्वतखोरी या शत्रुता को बढ़ावा देने आदि जैसी भ्रष्ट प्रथाओं पर रोक लगाता है, जो चुनावों की वैधता और स्वतंत्र व निष्पक्ष आचरण सुनिश्चित करती हैं।
    • अधिनियम में प्रावधान है कि केवल वे राजनीतिक दल जो RPA अधिनियम, 1951 की धारा 29A के तहत पंजीकृत हैं, चुनावी बॉण्ड प्राप्त करने के पात्र हैं, और चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता सुनिश्चित करते हैं।

दृष्टि मुख्य प्रश्न:

प्रश्न. संपत्ति के प्रकटीकरण के संबंध में चुनाव उम्मीदवारों की निजता के अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय के निहितार्थ पर चर्चा कीजिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 'निजता का अधिकार' भारत के संविधान के किस अनुच्छेद के तहत संरक्षित है?

(a) अनुच्छेद 15
(b) अनुच्छेद 19
(c) अनुच्छेद 21
(d) अनुच्छेद 29

उत्तर: (c)


प्रश्न 2. निजता के अधिकार को जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्भूत भाग के रूप में संरक्षित किया जाता है। भारत के संविधान में निम्नलिखित में से किससे उपर्युक्त कथन सही एवं समुचित ढंग से अर्थित होता है? (2018)

(a) अनुच्छेद 14 एवं संविधान के 42वें संशोधन के अधीन उपबंध।
(b) अनुच्छेद 17 एवं भाग IV में  दिये राज्य के नीति के निर्देशक तत्त्व।
(c) अनुच्छेद 21 एवं भाग III में गारंटी की गई स्वतंत्रताएँ।
(d) अनुच्छेद 24 एवं संविधान के 44वें संशोधन के अधीन उपबंध।

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. निजता के अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय के नवीनतम निर्णय के आलोक में मौलिक अधिकारों के विस्तार का परीक्षण कीजिये। (2017)

प्रश्न. "लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के अंतर्गत भ्रष्ट आचरण के दोषी व्यक्तियों को अयोग्य ठहराने की प्रक्रिया के सरलीकरण की आवश्यकता है"। टिप्पणी कीजिये। (2020)


भारतीय समाज

भारत का जनसांख्यिकीय संक्रमण

प्रिलिम्स के लिये:

जनसांख्यिकीय लाभांश , कुल प्रजनन दर (TFR) ,महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी (मनरेगा), एशिया 2050 रिपोर्ट।

मेन्स के लिये:

भारत में जनसांख्यिकीय परिवर्तन, भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश का महत्त्व, भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश से जुड़ी चुनौतियाँ।

स्रोत: इंडियन ऐक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या प्रभाग के अनुसार, भारत की जनसंख्या वृद्धि एक प्रमुख फोकस रही है, जिसके वर्ष 2065 तक 1.7 बिलियन तक पहुँचने का अनुमान है, जो भारत में जनसांख्यिकीय लाभांश के चल रहे संक्रमण को रेखांकित करता है।

  • यह एक महत्त्वपूर्ण लेकिन कम चर्चित पहलू पर ध्यान स्थानांतरित करता है, प्रजनन दर में गिरावट, जिसके लैंसेट रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2051 तक 1.29 तक जाने का अनुमान है।
  • वर्ष 2021-2025 (1.94) तथा वर्ष 2031-2035 (1.73) की अवधि के लिये सरकार की अनुमानित कुल प्रजनन दर (TFR) लैंसेट अध्ययन और NFHS 5 डेटा के अनुमान से अधिक है।
  • इससे पता चलता है कि भारत की जनसंख्या वर्ष 2065 से पहले 1.7 बिलियन से नीचे स्थिर हो सकती है।

जनसांख्यिकीय संक्रमण और जनसांख्यिकीय लाभांश क्या है?

  • जनसांख्यिकीय संक्रमण का तात्पर्य समय के साथ जनसंख्या की संरचना में परिवर्तन से है।
    • यह परिवर्तन विभिन्न कारकों के कारण हो सकता है जैसे जन्म दर तथा मृत्युदर में परिवर्तन, प्रवासन प्रक्रिया तथा सामाजिक एवं आर्थिक स्थितियों में परिवर्तन।
  • जनसांख्यिकीय लाभांश एक ऐसी घटना है जो तब होती है जब किसी देश की जनसंख्या संरचना आश्रितों (बच्चों और बुजुर्गों) के उच्च अनुपात से काम करने वाले वयस्कों के उच्च अनुपात के रूप में स्थानांतरित हो जाती है। 
    • यदि देश मानव पूंजी में निवेश और उत्पादक रोज़गार हेतु स्थितियों का निर्माण करता है, तो जनसंख्या संरचना में इस बदलाव का परिणाम आर्थिक वृद्धि और विकास का कारक हो सकता है।

भारत में जनसांख्यिकीय परिवर्तन के लिए कौन से कारक ज़िम्मेदार हैं?

  • तीव्र आर्थिक विकास:
    • आर्थिक विकास की गति, विशेष रूप से 21वीं सदी के शुरुआती वर्षों से, जनसांख्यिकीय परिवर्तन का एक महत्त्वपूर्ण चालक रही है।
    • आर्थिक विकास से जीवन स्तर में सुधार, बेहतर स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएँ और शिक्षा तक पहुँच में वृद्धि होती है, जो सामूहिक रूप से निम्न प्रजनन दर में योगदान करती है।
  • शिशु एवं बाल मृत्यु दर में कमी:
    • शिशुओं और बच्चों के बीच कम मृत्यु दर ने परिवारों को वृद्धावस्था में सहायता के लिये बड़ी संख्या में बच्चे रखने की आवश्यकता को कम कर दिया है।
    • जैसे-जैसे स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में सुधार हुआ है, वैसे ही बाल मृत्यु दर में कमी आई है।
  • महिला शिक्षा और कार्य भागीदारी दर में वृद्धि:
    • बढ़ती शिक्षा और कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
    • जैसे-जैसे महिलाएँ अधिक शिक्षित एवं आर्थिक रूप से स्वतंत्र होती जाती हैं, उनके कम बच्चे होते हैं और बच्चे के जन्म में देरी होती है, जिससे कुल प्रजनन दर में गिरावट आई है।
  • आवास स्थितियों में सुधार:
    • बेहतर आवास स्थितियाँ और बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच जीवन की गुणवत्ता में सुधार में योगदान करती है, जो बदले में परिवार नियोजन निर्णयों को प्रभावित करती है।
    • परिवार छोटे होने पर वह बेहतर तरीके से रहने की स्थिति का विकल्प भी चुन सकता है।

भारत में जनसांख्यिकीय परिवर्तन की चुनौतियाँ क्या हैं?

  • निर्भरता अनुपात परिवर्तन:
    • हालाँकि शुरुआत में TFR में गिरावट से निर्भरता अनुपात में गिरावट आती है और कामकाजी उम्र की आबादी में वृद्धि होती है, लेकिन अंततः इसके परिणामस्वरूप वृद्ध आश्रितों की हिस्सेदारी बढ़ जाती है।
    • यह चीन, जापान और यूरोपीय देशों में देखी गई स्थितियों के समान, स्वास्थ्य देखभाल एवं सामाजिक कल्याण के लिये संसाधनों पर दबाव डालता है।
  • राज्यों में असमान परिवर्तन:
    • भारत के सभी राज्यों में प्रजनन दर में कमी एक समान नहीं है। कुछ राज्यों, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे बड़े राज्यों को प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन क्षमता प्राप्त करने में अधिक समय लग सकता है।
    • इससे आर्थिक विकास और स्वास्थ्य देखभाल पहुँच में क्षेत्रीय असमानताएँ बढ़ सकती हैं।
  • श्रम उत्पादकता और आर्थिक विकास: 
    • जबकि जनसांख्यिकीय परिवर्तन संभावित रूप से श्रम उत्पादकता बढ़ा सकता है और आर्थिक विकास को गति दे सकता है, यह उम्रदराज़ कार्यबल के प्रबंधन तथा युवा आबादी के लिये पर्याप्त कौशल विकास सुनिश्चित करने के मामले में भी चुनौतियाँ उत्पन्न करता है।

भारत में जनसांख्यिकीय परिवर्तन की क्या संभावनाएँ हैं?

  • बढ़ी हुई श्रम उत्पादकता: 
    • जनसांख्यिकीय परिवर्तन से जनसंख्या वृद्धि में गिरावट आ सकती है।
    • इसके परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति आधार पर पूंजीगत संसाधनों और बुनियादी ढाँचे की अधिक उपलब्धता हो सकती है, जिससे अंततः श्रम उत्पादकता में वृद्धि होगी।
  • संसाधनों का पुनर्आवंटन:
    • घटती प्रजनन दर शिक्षा और कौशल विकास के लिये संसाधनों के पुन: आवंटन को सक्षम बनाती है, जिससे मानव पूंजी व कार्यबल उत्पादकता में सुधार हो सकता है।
      • TFR में गिरावट से ऐसी स्थिति उत्पन्न होगी जहाँ स्कूलों में दाखिला लेने वाले बच्चों की संख्या में कमी आएगी, जैसा कि केरल जैसे राज्यों में पहले से ही हो रहा है।
      • इससे राज्य द्वारा अतिरिक्त संसाधन खर्च किये बिना शैक्षिक परिणामों में सुधार हो सकता है।
  • कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि: 
    • कार्यबल में महिलाओं की निम्न भागीदारी के लिये ज़िम्मेदार एक प्रमुख कारक उस आयु में बच्चों की देखभाल में उनकी व्यस्तता है जब उन्हें श्रम बल में संलग्न होना चाहिये।
    • बच्चों की देखभाल के लिये कम समय की आवश्यकता के साथ, आने वाले दशकों में अधिक महिलाओं के श्रम बल में शामिल होने का अनुमान लगाया जा सकता है।
  • श्रम का स्थानिक पुनर्वितरण: 
    • अधिशेष श्रम वाले क्षेत्रों से बढ़ते उद्योगों वाले क्षेत्रों में श्रमिकों की आवाजाही श्रम बाज़ार में स्थानिक संतुलन बना सकती है।
    • इससे दक्षिणी राज्यों और गुजरात व महाराष्ट्र में आधुनिक क्षेत्रों को प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे उत्तरी राज्यों से सस्ते श्रम की मांग होगी।
    • पिछले कुछ वर्षों में, इसके परिणामस्वरूप कामकाज़ी परिस्थितियों में सुधार, प्रवासी श्रमिकों के लिये वेतन भेदभाव का उन्मूलन और संस्थागत सुरक्षा उपायों के माध्यम से प्राप्त राज्यों में सुरक्षा चिंताओं का शमन होना चाहिये।

आगे की राह

  • जैसा कि एशिया 2050 रिपोर्ट में बताया गया है, यदि भारत कार्यबल के क्षेत्रीय और स्थानिक पुनर्वितरण, कौशल विकास तथा कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाकर इन अवसरों का लाभ उठाता है, तो यह 21वीं सदी में एक प्रमुख आर्थिक खिलाड़ी के रूप में उभर सकता है।
  • यदि भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाए, तो यह वैश्विक आर्थिक प्रतिस्पर्द्धात्मकता में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है।
  • जनसंख्या की बदलती गतिशीलता का नीति निर्माण पर गंभीर प्रभाव पड़ता है, विशेष रूप से स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा तथा कौशल विकास के संबंध में।
  • ऐसी नीतियों की आवश्यकता है जो महिलाओं एवं हाशिये पर रहने वाले अन्य समूहों की विशिष्ट आवश्यकताओं को संबोधित करें, और साथ ही समावेशी वृद्धि तथा विकास भी सुनिश्चित करें।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न. संभावित आर्थिक विकास तथा वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता के संदर्भ में भारत के जनसांख्यिकीय परिवर्तन के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। प्रजनन दर में गिरावट, कार्यबल में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी एवं श्रम के स्थानिक पुनर्वितरण द्वारा प्रस्तुत अवसरों पर प्रकाश डालिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. किसी भी देश के संदर्भ में निम्नलिखित में से किसे उस देश की सामाजिक पूंजी (सोशल कैपिटल) के भाग के रूप समझा जाएगा? (2019) 

(a) जनसंख्या में साक्षरों का अनुपात।
(b) इसके भवनों, अन्य आधारित संरचना और मशीनों का स्टॉक।
(c) कार्यशील आयु समूह में जनसंख्या का आकार। 
(d) समाज में आपसी भरोसे और सामंजस्य का स्तर।

उत्तर: (d)


प्रश्न. भारत को "जनसांख्यिकीय लाभांश" वाला देश माना जाता है। इसकी वज़ह है: (2011) 

(a) इसकी 15 वर्ष से कम आयु वर्ग में उच्च जनसंख्या।
(b) इसकी 15-64 वर्ष के आयु वर्ग की उच्च जनसंख्या।
(c) इसकी 65 वर्ष से अधिक आयु वर्ग की उच्च जनसंख्या।
(d) इसकी कुल उच्च जनसंख्या। 

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों पर विस्तृत प्रकाश डालिये। (2021)

प्रश्न. ''महिला सशक्तीकरण जनसंख्या संवृद्धि को नियंत्रित करने की कुंजी है।'' चर्चा कीजिये। (2019)

प्रश्न. समालोचनापूर्वक परीक्षण कीजिये कि क्या बढ़ती हुई जनसंख्या निर्धनता का मुख्य कारण है या निर्धनता जनसंख्या वृद्धि का मुख्य कारण है। (2015)


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