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डेली न्यूज़

  • 15 Apr, 2024
  • 40 min read
शासन व्यवस्था

सरकार द्वारा RERA के कामकाज की समीक्षा

प्रिलिम्स के लिये:

सरकार ने RERA कार्यप्रणाली, रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम (Real Estate (Regulation and Development) Act) 2016 राज्य स्तरीय नियामक प्राधिकरण, रियल एस्टेट अपीलीय न्यायाधिकरण की समीक्षा की।

मेन्स के लिये:

सरकार द्वारा RERA के कामकाज की समीक्षा, विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, नीतियों के निर्माण तथा कार्यान्वयन से उत्पन्न मुद्दे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम (Real Estate (Regulation and Development) Act) 2016  के कामकाज की समीक्षा करने की प्रक्रिया में है।

रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम (RERA) क्या है?

  • परिचय:
    • रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम (RERA), 2016 में भारत सरकार द्वारा अधिनियमित एक महत्त्वपूर्ण कानून है।
    • इसका प्राथमिक उद्देश्य रियल एस्टेट क्षेत्र को विनियमित करना और रियल एस्टेट लेन-देन में पारदर्शिता, जवाबदेही तथा दक्षता को बढ़ावा देना है।
    • RERA का लक्ष्य घर खरीदारों के हितों की रक्षा करना और रियल एस्टेट उद्योग में निष्पक्ष व्यवहार को बढ़ावा देना है।
  • आवश्यकता:
    • सबसे बड़े निवेश क्षेत्र को सुरक्षित करना: रियल एस्टेट क्षेत्र का विनियमन वर्ष 2013 से चर्चा में था और RERA अधिनियम अंततः वर्ष 2016 में अस्तित्व में आया। डेटा से पता चलता है कि एक औसत भारतीय परिवार की कुल संपत्ति का 77% से अधिक रियल एस्टेट में होता है और यह किसी व्यक्ति का उसके जीवनकाल में सबसे बड़ा निवेश है।
    • जवाबदेहिता सुनिश्चित करना: कानून निर्माण से पहले रियल एस्टेट और हाउसिंग सेक्टर काफी हद तक अनियंत्रित था, जिसके परिणामस्वरूप उपभोक्ता बिल्डर्स तथा डेवलपर्स को जवाबदेह ठहराने में असमर्थ थे।
      • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 घर खरीदारों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये अपर्याप्त था।
      • रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम को उपभोक्ताओं के प्रति अधिक जवाबदेही सुनिश्चित करने, धोखाधड़ी और विलंबता को कम करने तथा एक फास्ट ट्रैक विवाद समाधान तंत्र स्थापित करने के उद्देश्य से पारित किया गया था।
  • मुख्य प्रावधान:
    • राज्य स्तरीय नियामक प्राधिकरणों की स्थापना- रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (RERA) अधिनियम राज्य सरकारों को निम्नलिखित अधिदेश के साथ एक से अधिक नियामक प्राधिकरण स्थापित करने का प्रावधान करता है:
      • अचल संपत्ति परियोजनाओं का एक पंजीकृत डेटाबेस और उसे बनाए रखना; इसे जनता के देखने के लिये अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करना
      • प्रमोटर्स, खरीदारों और रियल एस्टेट एजेंटों के हितों की सुरक्षा।
      • सतत् और किफायती आवासों का विकास।
      • सरकार को सलाह देना और उसके विनियमों एवं अधिनियम का अनुपालन सुनिश्चित करना।
    • राज्य स्तरीय नियामक प्राधिकरणों की स्थापना- रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (RERA) अधिनियम राज्य सरकारों को निम्नलिखित अधिदेश के साथ एक से अधिक नियामक प्राधिकरण स्थापित करने का प्रावधान करता है:
    • अनिवार्य पंजीकरण: कम-से-कम 500 वर्ग मीटर या आठ अपार्टमेंट के प्लॉट आकार वाली सभी परियोजनाओं को नियामक प्राधिकरणों के साथ पंजीकृत करने की आवश्यकता है।
    • जमा: खरीदारों से एकत्र किये गए धन का 70% केवल उस परियोजना के निर्माण हेतु एक अलग ‘एस्क्रो बैंक खाते’ में जमा करना।
    • दायित्व: पाँच वर्ष के लिये संरचनात्मक दोषों की मरम्मत के लिये डेवलपर का दायित्व।
    • चूक के मामले में दंडात्मक ब्याज: दोनों पक्षों से किसी भी चूक के मामले में प्रमोटर और खरीदार दोनों समान ब्याज दर का भुगतान करने के लिये उत्तरदायी हैं।
    • अग्रिम भुगतान सीमा: एक प्रमोटर पहले बिक्री के लिये समझौता किये बिना किसी व्यक्ति से अग्रिम भुगतान या आवेदन शुल्क के रूप में भूखंड, अपार्टमेंट या भवन की लागत का 10% से अधिक स्वीकार नहीं कर सकता है।
    • कार्पेट एरिया: कार्पेट एरिया को फ्लैट के ‘नेट यूज़ेबल फ्लोर एरिया’ के रूप में परिभाषित किया जाता है। खरीदारों से कार्पेट एरिया के लिये शुल्क लिया जाएगा, न कि सुपर बिल्ट-अप एरिया के लिये।
      • निर्मित क्षेत्र एक इमारत के कुल फर्श क्षेत्र को संदर्भित करता है, जिसमें सभी आंतरिक और बाहरी स्थान जैसे दीवारें, बालकनी, सामान्य क्षेत्र तथा सुविधाएँ शामिल होती हैं।
    • सज़ा: अपीलीय न्यायाधिकरणों और नियामक प्राधिकरणों के आदेशों के उल्लंघन पर डेवलपर्स के लिये तीन वर्ष तक तथा एजेंटों एवं खरीदारों के मामले में एक वर्ष तक की कैद।
  • कार्यान्वयन:
    • नगालैंड राज्य को छोड़कर सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने RERA के तहत नियम अधिसूचित कर दिये हैं। 
    • 32 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने एक रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण की स्थापना की है और 28 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने एक रियल एस्टेट अपीलीय न्यायाधिकरण की स्थापना की है।
    • 1,01,304 रियल एस्टेट परियोजनाएँ और 72,012 रियल एस्टेट एजेंट RERA के प्रावधानों के तहत पंजीकृत किये गए हैं तथा देश भर में रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरणों द्वारा 1,06,657 शिकायतों का सफलतापूर्वक निपटान किया गया है।

IBC के तहत घरों के खरीदारों और बिल्डरों की स्थिति

  • दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) के तहत, घर खरीदारों को कुछ अधिकार तथा प्रावधान मुख्य रूप से पिछले कुछ वर्षों में कोड में किये गए संशोधनों के माध्यम से, दिये गए हैं। IBC के तहत घर खरीदारों के लिये कानूनी प्रावधान हैं:
    • वित्तीय ऋणदाताओं के रूप में वर्गीकरण: संशोधनों के माध्यम से, विशेष रूप से वर्ष 2018 संशोधन अधिनियम में, घर खरीदारों को वित्तीय ऋणदाताओं के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इसका अर्थ यह है कि घर खरीदार द्वारा रियल एस्टेट प्रोजेक्ट के लिये दिया गया पैसा वित्तीय ऋण माना जाता है, जिससे उन्हें IBC के तहत ऋणदाता का दर्जा मिल जाता है।
    • दिवाला प्रक्रिया शुरू करने का अधिकार: घर खरीदारों को IBC के तहत डिफॉल्ट करने वाली बिल्डर कंपनी के विरुद्ध दिवाला कार्यवाही शुरू करने का अधिकार है।
      • हालाँकि इस प्रक्रिया में कुछ शर्तें शामिल हैं। वर्ष 2020 के संशोधन के अनुसार घर खरीदारों को एक ही रियल एस्टेट परियोजना में कम-से-कम 100 घर खरीदारों या न्यूनतम 10% घर खरीदारों के साथ कॉर्पोरेट दिवालियापन की शुरुआत के लिये संयुक्त रूप से आवेदन दाखिल करना होगा।
    • परिसमापन चरण (Liquidation Stage) में स्थिति: यदि दिवाला प्रक्रिया विफल हो जाती है और कंपनी को परिसमापन की ओर धकेला जाता है, ऐसे में घर खरीदारों को असुरक्षित वित्तीय ऋणदाता माना जाता है।
      • यह उन्हें IBC की धारा 53 के जलप्रपात तंत्र के तहत चौथे स्थान पर रखता है।
      • दिवाला प्रक्रिया लागत, सुरक्षित लेनदारों, कामगारों और कर्मचारियों के बकाया से संतुष्ट होने के बाद घर खरीदारों के दावों पर विचार किया जाता है।

सरकार RERA की समीक्षा क्यों कर रही है?

  • प्रभावशीलता का आकलन:
    • सरकार अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में RERA की प्रभावशीलता का आकलन करना चाहती है।
    • इसमें रियल एस्टेट क्षेत्र में पारदर्शिता, जवाबदेही, सूचना प्रसार और शिकायत निवारण पर इसके प्रभाव का मूल्यांकन करना शामिल है।
    • घर खरीदारों और अन्य हितधारकों के साथ नियमित बैठकें आयोजित करके, सरकार का लक्ष्य RERA के साथ उनके अनुभवों पर प्रतिक्रिया एकत्रित करना है।
      • यह फीडबैक अधिनियम के कार्यान्वयन में सुधार हेतु किसी भी कमियों या क्षेत्रों की पहचान करने में सहायक हो सकता है।
  • आँकड़ों का संग्रह:
    • मंत्रालय पिछले कुछ वर्षों में RERA के कामकाज पर आँकड़े एकत्रित करने के लिये एक डेटा संग्रह इकाई स्थापित कर रहा है।
    • यह आँकड़े स्वीकृत परियोजनाओं की संख्या, उनकी प्रगति, विलंब और अन्य प्रासंगिक जानकारी प्रदान करेगा, जिससे RERA के समग्र प्रभाव का आकलन करने में मदद मिलेगी।
  • एकरूपता और अनुपालन:
    • सरकार विभिन्न राज्यों में RERA वेबसाइटों पर उपलब्ध जानकारी में एकरूपता सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
    • यह अधिनियम के प्रावधानों के अधिक अनुपालन पर ज़ोर देने का संकेत देता है, जैसे बिल्डरों की वार्षिक रिपोर्ट और त्रैमासिक प्रगति रिपोर्ट का अनिवार्य प्रकाशन, आदि।
      • बैठक के दौरान RERA वेबसाइटों पर जानकारी की कमी का मुद्दा उठाया गया, जिसमें अधिनियम के अनुसार बिल्डरों की वार्षिक रिपोर्ट और त्रैमासिक प्रगति रिपोर्ट का होना आवश्यक है।
      • यह भी पाया गया कि ऐसे कि कई उदाहरण मिले, जहाँ RERA ने दस्तावेज़ों के सत्यापन के बिना परियोजनाओं को पंजीकृत किया था।
  • संभावित संशोधन:
    • सरकार की समीक्षा प्रक्रिया भविष्य में किसी भी बदलाव के लिये आधार तैयार करती है।
    • यह समीक्षा प्रक्रिया के दौरान पहचानी गई किसी भी कमियों को दूर करने और RERA की प्रभावशीलता में सुधार करने की दिशा में एक सक्रिय दृष्टिकोण का सुझाव प्रदान करता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. RERA के प्रमुख प्रावधानों का विश्लेषण कीजिये और रियल एस्टेट उद्योग में पारदर्शिता, जवाबदेही तथा उपभोक्ता संरक्षण प्राप्त करने में इसकी प्रभावशीलता का आकलन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. "आईटी हब के रूप में शहरी विकास ने रोज़गार के नए रास्ते खोले हैं, लेकिन नई समस्याएँ भी उत्पन्न की हैं"। इस कथन को उदाहरण सहित सिद्ध कीजिये। (2020)

प्रश्न. भारत में तीव्र शहरीकरण की प्रक्रिया ने जिन विभिन्न सामाजिक समस्याओं को जन्म दिया, उनकी विवेचना कीजिये। (2013)


भारतीय राजनीति

उपचारात्मक याचिका

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का सर्वोच्च न्यायालय, उपचारात्मक याचिका, न्यायालय की अवमानना, भारतीय संविधान का अनुच्छेद 145

मेन्स के लिये:

भारतीय सर्वोच्च न्यायालय की विशेष शक्तियाँ, उपचारात्मक याचिका और उसका महत्त्व।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाते हुए भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2021 के अपने पुराने फैसले को परिवर्तित  करने के लिये एक उपचारात्मक याचिका के माध्यम से अपनी "असाधारण शक्तियों" का प्रयोग किया है। 

  • इस फैसले ने दिल्ली मेट्रो रेल निगम (DMRC) को रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड-कंसोर्टियम के नेतृत्व वाली दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो एक्सप्रेस प्राइवेट लिमिटेड (DAMEPL) को लगभग 8,000 करोड़ रुपए का भुगतान करने का आदेश दिया था।  

दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो एक्सप्रेस प्राइवेट लिमिटेड मामला, 2024 क्या है?

  • पृष्ठभूमि:
    • वर्ष 2008 में DMRC ने दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो एक्सप्रेस के निर्माण, संचालन और रखरखाव के लिये DAMEPL के साथ भागीदारी की।
    • विवादों के कारण सुरक्षा चिंताओं और परिचालन संबंधी मुद्दों का हवाला देते हुए वर्ष 2013 में DAMEPL द्वारा समझौते को समाप्त कर दिया गया।
    • कानूनी लड़ाई शुरू हुई, जिसके परिणामस्वरूप मध्यस्थता पैनल ने DAMEPL के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसके परिणामस्वरूप DMRC को लगभग 8,000 करोड़ रुपए का भुगतान करने का आदेश दिया। हालाँकि दिल्ली उच्च न्यायालय ने DMRC को 75% राशि एस्क्रो खाते में जमा करने का निर्देश दिया। सरकार ने अपील की और वर्ष 2019 में उच्च न्यायालय के फैसले को DMRC के पक्ष में परिवर्तित कर दिया गया।
    • DAMEPL ने फिर सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया, जिसने शुरुआत में वर्ष 2021 में माध्यस्थम पंचाट (Arbitral Award) को बरकरार रखा।
  • निर्णय:
    • सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले ने अपने पुराने फैसले में "मौलिक त्रुटि" का हवाला देते हुए DMRC के पक्ष में फैसला सुनाया।
    • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह उपचारात्मक याचिकाओं के महत्त्व पर प्रकाश डालता है, बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में सार्वजनिक-निजी भागीदारी हेतु कानूनी ढाँचे पर स्पष्टता प्रदान करता है साथ ही अंतिम फैसले के वर्षों बाद भी त्रुटियों को सुधारने और न्याय सुनिश्चित करने की न्यायालय की सदिच्छा (willingness) को प्रदर्शित करता है।

उपचारात्मक याचिका:

  • परिचय: जब अंतिम दोषसिद्धि के विरुद्ध समीक्षा याचिका खारिज़ होती है, उसके बाद उपचारात्मक याचिका एक कानूनी उपाय बन जाती है।
    • संवैधानिक रूप से सर्वोच्च न्यायालय के अंतिम निर्णय को आमतौर पर केवल समीक्षा याचिका के माध्यम से और उसके बाद भी संकीर्ण प्रक्रियात्मक आधारों पर चुनौती दी जा सकती है।
      • हालाँकि उपचारात्मक याचिका न्यायिक विफलता को सुधारने हेतु एक संयमित न्यायिक नवाचार के रूप में कार्य करती है।
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य न्यायिक विफलता को रोकने के साथ-साथ कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग को भी रोकना है।
  • निर्णय प्रक्रिया: उपचारात्मक याचिकाओं पर निर्णय आमतौर पर न्यायाधीशों द्वारा चैंबर में लिया जाता है, हालाँकि विशिष्ट अनुरोध पर खुले न्यायालय में सुनवाई की अनुमति दी जा सकती है।
  • कानूनी आधार: उपचारात्मक याचिकाओं को नियंत्रित करने वाले सिद्धांत सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रूपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा एवं अन्य मामले, 2002 के मामले में स्थापित किये गए थे।
  • उपचारात्मक याचिका पर विचार करने के लिये मानदंड:
    • नैसर्गिक न्याय का उल्लंघन: यह प्रदर्शित किया जाना चाहिये कि नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है, जैसे न्यायालय द्वारा आदेश पारित करने से पहले याचिकाकर्त्ता को नहीं सुना जाना।
    • पूर्वाग्रह की आशंका: यदि न्यायाधीश की ओर से पूर्वाग्रह का संदेह करने के आधार हैं, जैसे कि प्रासंगिक तथ्यों का खुलासा करने में विफलता, तो इसे स्वीकार किया जा सकता है।
  • उपचारात्मक याचिका दायर करने के लिये दिशानिर्देश:
    • वरिष्ठ अधिवक्ता द्वारा प्रमाणीकरण: याचिका के साथ किसी वरिष्ठ अधिवक्ता का प्रमाणीकरण होना चाहिये, जिसमें इस पर विचार करने के लिये पर्याप्त आधारों पर प्रकाश डाला गया हो।
    • प्रारंभिक समीक्षा: इसे सबसे पहले तीन वरिष्ठतम न्यायाधीशों की एक पीठ में प्रसारित किया जाता है, साथ ही यदि उपलब्ध हो तो मूल निर्णय पारित करने वाले न्यायाधीशों के साथ भी।
    • सुनवाई: केवल यदि न्यायाधीशों का बहुमत इसे सुनवाई के लिये आवश्यक समझता है, तो इसे विचार के लिये सूचीबद्ध किया जाता है, अधिमानतः उसी पीठ के समक्ष जिसने प्रारंभिक निर्णय पारित किया था।
  • न्याय-मित्र की भूमिका: पीठ उपचारात्मक याचिका पर विचार के किसी भी चरण में न्याय-मित्र के रूप में सहायता के लिये एक वरिष्ठ अधिवक्ता को नियुक्त कर सकती है।
  • लागत निहितार्थ: यदि पीठ यह निर्धारित करती है कि याचिका तर्कराहित है और यह कष्टप्रद है, तो वह याचिकाकर्त्ता पर अनुकरणीय शुल्क लगा सकती है।
  • न्यायिक विवेक: सर्वोच्च न्यायालय इस बात पर ज़ोर देता है कि न्यायिक प्रक्रिया की अखंडता बनाए रखने के लिये उपचारात्मक याचिकाएँ दुर्लभ होनी चाहिये और उनकी समीक्षा सावधानीपूर्वक की जानी चाहिये।

उपचारात्मक याचिका से संबंधित अन्य मामले:

  • भारत संघ बनाम यूनियन कार्बाइड मामला (भोपाल गैस त्रासदी):
    • संघ सरकार भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों के लिये अधिक मुआवज़े के लिये वर्ष 2010 में एक उपचारात्मक याचिका दायर की। वर्ष 2023 में 5 न्यायाधीशों की पीठ ने यह कहते हुए याचिका खारिज़ कर दी कि पहले निर्धारित किया गया मुआवज़ा पर्याप्त था।
    • पीठ ने इस बात पर ज़ोर दिया कि उपचारात्मक याचिका पर केवल न्याय के दुरुपयोग, धोखाधड़ी, या भौतिक तथ्यों को दबाने के मामलों में ही विचार किया जा सकता है, जिनमें से कोई भी तथ्य इस मामले में मौजूद नहीं था।
  • नवनीत कौर बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य मामला, 2014: 
    • इस मामले ने मृत्युदंड के मामलों में बदलाव को चिह्नित किया। मृत्युदंड पाने वाले याचिकाकर्त्ता ने उपचारात्मक याचिका के माध्यम से सफलतापूर्वक तर्क दिया कि मानसिक बीमारी और दया याचिका के लिये अनुचित रूप से विलंब सज़ा को आजीवन कारावास में बदलने का आधार बनता है।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय की विशेष शक्तियाँ क्या हैं?

  • विवादों का समाधान: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 131 सर्वोच्च न्यायालय को भारत सरकार और एक या अधिक राज्यों के बीच या स्वयं राज्यों के बीच कानूनी अधिकारों से जुड़े विवादों में विशेष मौलिक क्षेत्राधिकार का वर्णन करता है।
  • विवेकाधीन क्षेत्राधिकार: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 136 सर्वोच्च न्यायालय को भारत में किसी भी न्यायालय या न्यायाधिकरण द्वारा दिये गए किसी भी निर्णय, डिक्री या आदेश के विरुद्ध अपील करने की विशेष अनुमति देने की शक्ति प्रदान करता है।
    • यह शक्ति सैन्य न्यायाधिकरणों और कोर्ट-मार्शल पर लागू नहीं होती है।
  • सलाहकारी क्षेत्राधिकार: संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत सर्वोच्च न्यायालय के पास सलाहकार क्षेत्राधिकार है, जहाँ भारत के राष्ट्रपति अपनी राय के लिये विशिष्ट मामलों को न्यायालय में भेज सकते हैं।
  • अवमानना की कार्यवाही: संविधान के अनुच्छेद 129 और 142 के तहत, सर्वोच्च न्यायालय को अदालत की अवमानना के लिये दंडित करने का अधिकार है, जिसमें स्वत: संज्ञान या महान्यायवादी, सॉलिसिटर जनरल या किसी व्यक्ति द्वारा याचिका सहित स्वयं की अवमानना भी शामिल है।
  • समीक्षा और उपचारात्मक शक्तियाँ: 
    • अनुच्छेद 145 सर्वोच्च न्यायालय को, राष्ट्रपति की मंज़ूरी से, न्यायालय के अभ्यास और प्रक्रिया को विनियमित करने के लिये नियम बनाने का अधिकार देता है, जिसमें न्यायालय के समक्ष अभ्यास करने वाले व्यक्तियों के लिये नियम, अपील की सुनवाई, अधिकारों को लागू करना तथा अपीलों पर विचार करना शामिल है।
    • इसमें निर्णयों की समीक्षा करने, लागत निर्धारित करने, ज़मानत देने, कार्यवाही पर रोक लगाने और पूछताछ करने के नियम भी शामिल हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की सुरक्षा में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका पर चर्चा कीजिये, न्यायिक त्रुटियों को सुधारने में उपचारात्मक याचिकाओं की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. भारत के राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से भारत के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा उच्चतम न्यायालय से सेवानिवृत्त किसी न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर बैठने और कार्य करने हेतु बुलाया जा सकता है।
  2.  भारत में किसी भी उच्च न्यायालय को अपने निर्णय के पुनर्विलोकन की शक्ति प्राप्त है, जैसा कि उच्चतम न्यायालय के पास है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1                       
(b)  केवल 2
(c)  1 और 2 दोनों 
(d)  न तो 1 और न ही 2


मेन्स:

प्रश्न. भारत में उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2017)


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

एशिया डेवलपमेंट आउटलुक रिपोर्ट 2024

प्रिलिम्स के लिये:

एशियाई विकास बैंक, भारत का सकल घरेलू उत्पाद, पूंजीगत व्यय, चालू खाता घाटा, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी, एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक, अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप गलियारा, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन

मेन्स के लिये:

एशिया के विकास को संचालित करने वाले क्षेत्र, एशिया के विकास में भारत का योगदान। 

स्रोत: ए.डी.बी

चर्चा में क्यों? 

एशियाई विकास बैंक (ADB) ने हाल ही में अप्रैल, 2024 में एशिया डेवलपमेंट आउटलुक रिपोर्ट जारी की तथा इस आशावादी दृष्टिकोण में योगदान देने वाले विभिन्न कारकों का हवाला देते हुए वित्तीय वर्ष 2024 और 2025 के लिये भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के विकास पूर्वानुमान को संशोधित किया।

एशिया डेवलपमेंट आउटलुक रिपोर्ट, 2024 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? 

  • एशिया का विकास आउटलुक: 
    • परिचय: अनिश्चित बाह्य संभावनाओं के बावजूद, एशिया में आने वाले वर्षों में विकास प्रक्रिया को लचीला बनाए रखने का अनुमान है।
      • अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं में ब्याज दर में बढ़ोतरी के चक्र का समापन और विशेष रूप से सेमीकंडक्टर मांग में सुधार से प्रेरित माल निर्यात में निरंतर सुधार जैसे कारक, क्षेत्र के व्यापक सकारात्मक दृष्टिकोण में योगदान करते हैं।
    • GDP वृद्धि पूर्वानुमान: वर्ष 2024 के लिये एशिया की GDP वृद्धि का पूर्वानुमान 4.9% है, वर्ष 2025 के लिये भी इसी तरह का अनुमान रखा गया है।
      • यह स्थिर विकास पथ बाहरी चुनौतियों से निपटने और आर्थिक गति को बनाए रखने की क्षेत्र की क्षमता को दर्शाता है।
    • मुद्रास्फीति के रुझान: एशिया में मुद्रास्फीति कम होने की उम्मीद है, वर्ष 2024 के लिये 3.2% और वर्ष 2025 में 3.0% की कमी का अनुमान है।
      • यह प्रवृत्ति अपेक्षाकृत स्थिर मूल्य निर्धारण वातावरण का संकेत देती है, जो उपभोक्ता विश्वास और खर्च का समर्थन कर सकती है।
  • भारत की वृद्धि का पूर्वानुमान:
    • वृद्धि का पूर्वानुमान: भारत की निवेश-संचालित वृद्धि को देश को एशिया के भीतर एक प्रमुख आर्थिक इंजन के रूप में स्थापित करने में एक महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में उजागर किया गया है।
      • ADB का अनुमान है कि भारत की जीडीपी वृद्धि वित्त वर्ष 2024 में 7% और वित्त वर्ष 2025 में 7.2% तक पहुँच जाएगी, जो वित्त वर्ष 2024 के लिये 6.7% के पिछले पूर्वानुमान से अधिक है।
    • वित्त वर्ष 2024 में विकास को बढ़ावा देने वाले कारक: 
      • केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा बुनियादी ढाँचे के विकास पर उच्च पूंजी व्यय विकास का एक प्रमुख चालक है।
      • स्थिर ब्याज दरों और उपभोक्ताओं के विश्वास में वृद्धि के कारण निजी कॉर्पोरेट निवेश बढ़ने का अनुमान है।
      • वित्तीय, रियल एस्टेट और पेशेवर सेवाओं सहित सेवा क्षेत्र का प्रदर्शन आर्थिक विस्तार में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहा है।
    • वित्त वर्ष 2025 में विकास में वृद्धि:  वित्त वर्ष 2025 में बेहतर माल निर्यात, बढ़ी हुई विनिर्माण उत्पादकता और उच्च कृषि उत्पादन के कारण विकास की गति बढ़ने की उम्मीद है।
      • यह पूर्वानुमान मज़बूत घरेलू मांग और सहायक नीतियों से उत्साहित भारत की अर्थव्यवस्था के लिये सकारात्मक दृष्टिकोण को दर्शाता है।
    • जोखिम और चुनौतियाँ: सकारात्मक पूर्वानुमान के बावजूद, कच्चे तेल के बाज़ारों में आपूर्ति में व्यवधान और कृषि पर मौसम संबंधी प्रभाव जैसे अप्रत्याशित वैश्विक संकट प्रमुख जोखिम बना हुआ है।
      • घरेलू मांग को पूरा करने के लिये बढ़ते आयात के कारण चालू खाता घाटा (CAD) मामूली रूप से बढ़ने का अनुमान है।
      • हालाँकि RBI के हालिया आँकड़ों के अनुसार, चालू खाता घाटा (CAD) तिमाही 2 FY24 में सकल घरेलू उत्पाद के 1.3% से क्रमिक रूप से घटकर तिमाही 3 FY24 में 1.2% हो गया।

एशियाई विकास बैंक क्या है?

  • परिचय: ADB एक क्षेत्रीय विकास बैंक है जिसकी स्थापना वर्ष 1966 में एशिया और प्रशांत क्षेत्र में सामाजिक एवं आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी।
    • ADB सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये ऋण, तकनीकी सहायता, अनुदान एवं इक्विटी निवेश प्रदान करके अपने सदस्यों तथा भागीदारों की सहायता करता है।
  • मुख्यालय: मनीला, फिलीपींस
  • सदस्य: वर्तमान में इसके 68 सदस्य हैं जिनमें से 49 एशिया एवं प्रशांत क्षेत्र के भीतर और 19 अन्य क्षेत्रों से हैं।
  • ADB और भारत: भारत ADB का संस्थापक सदस्य और बैंक का चौथा सबसे बड़ा शेयरधारक है।
    • ADB की रणनीति 2030 और देश की साझेदारी रणनीति, 2023-2027 के अनुरूप मज़बूत, जलवायु लचीले एवं समावेशी विकास के लिये भारत की प्राथमिकताओं का समर्थन करता है।

एशिया के विकास को गति देने वाले क्षेत्र कौन-से हैं?

  • आर्थिक महाशक्ति: एशिया दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से कई का घर है। चीन, जापान और भारत विश्व की शीर्ष 5 अर्थव्यवस्थाओं में हैं।
    • आर्थिक विकास से प्रेरित होकर, पूरे एशिया में एक बढ़ता हुआ मध्यम वर्ग उपभोक्ताओं का एक विशाल समूह तैयार कर रहा है, जिससे वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ रही है।
      • उदाहरण: वियतनाम को 2030 तक अपने मध्यम वर्ग में 36 मिलियन लोगों को जोड़ने की उम्मीद है।
  • मुख्य विनिर्माण केंद्र: दशकों से एशिया एक प्रमुख विनिर्माण केंद्र रहा है। इलेक्ट्रॉनिक्स में चीन के प्रभुत्व से लेकर वियतनाम के फुटवियर उत्पादन में वृद्धि तक, एशियाई देशों को कुशल श्रम बलों और कुशल बुनियादी ढाँचे से लाभ होता है, जो उन्हें लागत-प्रतिस्पर्धी एवं वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के लिये महत्त्वपूर्ण बनाता है।
  • बढ़ता व्यापार एवं निवेश:  एशियाई राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में सक्रिय रूप से शामिल हैं। क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी ( Regional Comprehensive Economic Partnership - RCEP) जैसे क्षेत्रीय व्यापार समझौते महत्त्वपूर्ण व्यापार ब्लॉक बनाते हैं, जिससे अंतर-एशियाई व्यापार और विदेशी निवेश को बढ़ावा मिलता है।
  • उभरते वित्तीय केंद्र: टोक्यो, हॉन्गकॉन्ग और सिंगापुर जैसे एशियाई शहर प्रमुख वित्तीय केंद्रों के रूप में उभरे हैं, जो निवेश आकर्षित कर रहे हैं, उद्यमशीलता को बढ़ावा दे रहे हैं तथा सीमा पार पूंजी प्रवाह को सुविधाजनक बना रहे हैं।
    • एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (Asian Infrastructure Investment Bank - AIIB) जैसे एशियाई वित्तीय संस्थानों का बढ़ता प्रभाव वैश्विक आर्थिक नीतियों को आकार देने में क्षेत्र की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है।

एशिया के विकास में भारत का क्या योगदान है? 

  • क्षेत्रीय कनेक्टिविटी: भारत अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) और भारत-मध्य पूर्व-यूरोप गलियारा जैसी पहलों के माध्यम से एशिया में क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने में एक प्रमुख अभिकर्त्ता रहा है।
    • इन परियोजनाओं का उद्देश्य एशिया, अफ्रीका और यूरोप के बीच परिवहन नेटवर्क, व्यापार मार्गों और आर्थिक सहयोग में सुधार करना है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा: नवीकरणीय ऊर्जा पहल को बढ़ावा देते हुए एशिया में सतत् विकास में भारत की सक्रिय भूमिका रही है।
    • भारत और फ्राँस द्वारा शुरू किये गए अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) का उद्देश्य विश्व स्तर पर, विशेष रूप से एशिया एवं अफ्रीका जैसे देशों में सौर ऊर्जा के प्रयोग को बढ़ावा देना है ताकि ऊर्जा सुरक्षा व जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का समाधान किया जा सके।
  • क्षमता निर्माण: भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) कार्यक्रम जैसी पहलों के माध्यम से भारत ने एशिया में क्षमता निर्माण के प्रयासों में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
    • यह एशियाई देशों के पेशेवरों और छात्रों को प्रशिक्षण, शिक्षा एवं कौशल विकास के अवसर प्रदान करता है, साथ ही, मानव संसाधन विकास व सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देता है।
  • एशिया को UPI के साथ एकीकृत करना: डिजिटल लेनदेन में प्रदान की जाने वाली सुविधाओं और दक्षता के कारण भारत की UPI (यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस) सेवाएँ एशिया में तेज़ी से लोकप्रिय हो रही हैं।
    • श्रीलंका और मॉरीशस में UPI सेवाएँ पहले ही लॉन्च की जा चुकी हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. एशिया-प्रशांत देशों विशेषकर भारत में आर्थिक वृद्धि एवं विकास को बढ़ावा देने में एशियाई विकास बैंक (ADB) की भूमिका पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. पिछले दशक में भारत-श्रीलंका व्यापार के मूल्य में सतत् वृद्धि हुई है।
  2. भारत और बांग्लादेश के बीच होने वाले व्यापार में "कपड़े और कपड़े से बनी चीज़ों" का व्यापार प्रमुख है।
  3. पिछले पाँच वर्षों में, दक्षिण एशिया में भारत के व्यापार का सबसे बड़ा भागीदार नेपाल रहा है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


प्रश्न. निम्नलिखित दक्षिण एशियाई देशों में से किस देश का जनसंख्या घनत्व सबसे अधिक है? (2009)

(a) भारत
(b) नेपाल
(c) पाकिस्तान
(d) श्रीलंका 

उत्तर: (a)


प्रश्न. ‘रीज़नल कॉम्प्रिहेन्सिव इकॉनॉमिक पार्टनरशिप (Regional Comprehensive Economic Partnership)’ पद प्रायः समाचारों में देशों के एक समूह के मामलों के संदर्भ में आता है। देशों के उस समूह को क्या कहा जाता है? (2016)

(a) G20
(b) ASEAN
(c) SCO
(d) SAARC

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. शीतयुद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के संदर्भ में, भारत की पूर्वोंमूखी नीति के आर्थिक और सामरिक आयामों का मूल्यांकन कीजिये। (2016)


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