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कच्चे तेल का मूल्य और भारत

  • 07 Jun 2023
  • 18 min read

यह एडिटोरियल 06/06/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘Eye on oil: on oil prices and India’’ लेख पर आधारित है। इसमें ओपेक प्लस देशों द्वारा कच्चे तेल के उत्पादन में की जाने वाली कमी और उत्पन्न चुनौती के संदर्भ में भारत के लिये आगे की राह के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स:

OPEC, OPEC+

मेन्स:

OPEC+, कच्चे तेल के उत्पादन में की जाने वाली कमी के कारण, भारत पर प्रभाव और आगे की राह 

कच्चे तेल उत्पादकों का विश्व का सबसे बड़ा समूह (जिसे आमतौर पर ओपेक प्लस (OPEC+) के रूप में जाना जाता है) तेल उत्पादन में की जाने वाली कटौती को वर्ष 2024 तक बढ़ाने पर सहमत हुआ है क्योंकि यह वैश्विक आर्थिक मंदी को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच तेल मूल्यों में होने वाली गिरावट को रोकने हेतु समर्पित हैं। ओपेक के प्रमुख एवं अग्रणी उत्पादकसऊदी अरब ने भी जुलाई 2023 में अतिरिक्त 1 मिलियन बैरल प्रतिदिन (bpd) की उत्पादन कटौती करने की स्वैच्छिक प्रतिज्ञा की है।

20 से अधिक सदस्य देशों के ओपेक प्लस समूह (जो बढ़ती मांग की स्थिति में मूल्यों की स्थिरता हेतु आपूर्ति को कम करने का प्रयास कर रहा है) ने अप्रैल में आश्चर्यजनक रूप से 1.66 मिलियन bpd की अतिरिक्त उत्पादन कटौती की घोषणा की थी। भारत के लिये (जो कच्चे तेल की अपनी आवश्यकताओं के 80% से अधिक की पूर्ति आयात से करता है) सऊदी अरब एवं ओपेक प्लस द्वारा की गई कटौती की घोषणा से कुछ चिंता उत्पन्न हुई है क्योंकि इससे वैश्विक तेल मूल्यों में वृद्धि हो सकती है। यद्यपि भारत द्वारा रूस से कच्चे तेल की खरीद में तेज़ी से वृद्धि के साथ भारत द्वारा तेल के आयातित बैरल के लिये भुगतान की जाने वाली कीमत में भी लगातार गिरावट आ रही है।

ओपेक प्लस:

  • ओपेक प्लस (OPEC+) 23 तेल निर्यातक देशों का एक समूह है जो नियमित रूप से यह तय करने के लिये बैठकें करता है कि विश्व बाज़ार में कितने कच्चे तेल की बिक्री की जाएगी।
    • इस समूह मेंमूल रूप से पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन/ओपेक (Organization of the Petroleum Exporting Countries- OPEC) के रूप में 13 सदस्यदेश शामिल थे जो मुख्यतः मध्य-पूर्वी देश और अफ्रीकी देश हैं।
  • ओपेक का गठन वर्ष 1960 में किया गया था, जिसका उद्देश्य विश्व भर में तेल की आपूर्ति और इसका मूल्य तय करना था।
    • वर्ष 2016 में जब तेल की कीमतें निम्न स्तर पर थीं तब ओपेक समूह ने 10 अन्य तेल उत्पादकों के साथ मिलकर ओपेक प्लस का गठन किया था।
    • इस विस्तारित समूह के सदस्यों में रूस भी शामिल है जो विश्व का तीसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है, जो प्रतिदिन 10 मिलियन बैरल से अधिक तेल का उत्पादन करता है।
  • ओपेक प्लस देश संयुक्त रूप से विश्व के कुल कच्चे तेल के लगभग 40% भाग का उत्पादन करते हैं।
    • उल्लेखनीय है कि ओपेक देशविश्व के कच्चे तेल के लगभग 30% भाग का उत्पादन करते हैं।
    • सऊदी अरब इस समूह का सबसे बड़ा एकल तेल आपूर्तिकर्ता है, जो प्रतिदिन 10 मिलियन बैरल से अधिक तेल का उत्पादन करता है।
  • ओपेक प्लस बाज़ार को संतुलित करने के लिये आपूर्ति और मांग में हस्तक्षेप करता है। जब तेल की मांग कम होती है तो यह आपूर्ति कम करके मूल्यों को उच्च बनाए रखता है। यह बाज़ार में तेल की आपूर्ति को बढ़ाकर कीमतों को कम भी कर सकता है ।

ओपेक प्लस समूह द्वारा तेल उत्पादन में की जाने वाली कटौती के कारण:

  • वैश्विक मांग में कमी से संबंधित चिंताएँ:
    • कोविड-19 लॉकडाउन के बाद चीन की आर्थिक सुधार की गति मंद पड़ रही है जिससे और भी चिंताएँ बढ़ गई हैं। चूँकि चीन, विश्व का दूसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है इससे वैश्विक स्तर पर तेल की मांग एवं मूल्यों पर प्रभाव पड़ सकता है।
    • बाज़ार गतिशीलता में हस्तक्षेप (रूसी तेल की कीमतों पर पश्चिमी देशों द्वारा नियंत्रण लगाना)
    • हाल के महीनों में एक और बैंकिंग संकट की आशंका ने निवेशकों को जोखिमपूर्ण परिसंपत्तियों जैसे कि तेल मूल्यों से संबद्ध स्टॉक को बेचने के लिये प्रेरित किया है।
    • विकसित देशों में विकास की मंद गति और कम मांग तथा वैश्विक मंदी के भय से तेल की कीमतें कम हो सकती हैं।
    • अमेरिका में ऋण सीमा संबंधी वार्ताओं (debt ceiling negotiations) ने भी इसे प्रभावित किया है। निवेशकों को भय है कि इससे तेल की मांग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है और कीमतें गिर सकती हैं, जिससे बाज़ार में अनिश्चितता उत्पन्न हो सकती है।
  • सटोरियों को दंडित करना:
    • नियोजित कटौती से तेल की कीमतों में गिरावट पर दाँव लगाने वाले तेल के सटोरियों/शॉर्ट सेलर (short sellers) पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
    • सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री ने व्यापारियों को तेल बाज़ार पर भारी सट्टेबाजी में लिप्त होने के विरुद्ध चेतावनी दी है। कुछ निवेशकों ने इसे संभावित उत्पादन कटौती के संकेत के रूप में देखा है।
  • अमेरिका द्वारा तेल उत्पादन में वृद्धि:
    • प्रौद्योगिकी उन्नति के कारण अमेरिकी में कच्चे तेल का उत्पादन वर्ष 2023 में 5.1% और वर्ष 2024 में 1.3% तक बढ़ने का अनुमान है। इससे वैश्विक तेल आपूर्ति और मूल्यों पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ सकता है।
  • अमेरिका के साथ तनाव:
    • अमेरिका NOPEC (No Oil Producing and Exporting Cartels Act) पारित करने पर विचार कर रहा है जिससे बाज़ार में इसका अधिक हस्तक्षेप साबित होने पर अमेरिकी क्षेत्र में ओपेक की संपत्ति को जब्त किया जा सकेगा। इसका उद्देश्य मूल्य हेरफेर पर रोक लगाना और निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना है लेकिन इसे संभावित प्रतिशोध के रूप में देखते हुए ओपेक द्वारा इसकी आलोचना की जा रही है।
    • ओपेक प्लस ने पिछले वर्ष अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IAE) द्वारा तेल स्टॉक जारी करने की वकालत करने की आलोचना की है, जहाँ वह इसे राजनीतिक रूप से प्रेरित कदम मानता है क्योंकि अमेरिका IAE का सबसे बड़ा वित्तीय दाता है ।
      • IEA का तर्क था कि तेल मूल्यों को कम करने के लिये ये आवश्यक थे लेकिन कीमतों में मज़बूती का IAE का पूर्वानुमान सार्थक साबित नहीं हुआ।
      • इसके अलावा संयुक्त राज्य अमेरिका (जिसने अधिकांश स्टॉक जारी किये) ने कहा था कि वह वर्ष 2023 में कुछ तेल वापस खरीदेगा, लेकिन बाद में उसने इससे मना कर दिया।
  • अपने मुख्य निर्यात मूल्य को बनाए रखना:
    • ओपेक पर्यवेक्षकों का यह भी कहना है कि मुद्रास्फीति और मुद्रा अवमूल्यन की स्थिति में तेल के मुख्य निर्यात मूल्य को बनाए रखने के लिये समूह को सांकेतिक तेल मूल्यों (nominal oil prices) की आवश्यकता है।
      • हाल के वर्षों में पश्चिमीं देशों द्वारा अपनी मुद्रा का प्रसार करने के कारण अमेरिकी डॉलर (जिस मुद्रा में तेल का कारोबार होता है) के मूल्य में कमी आई है।

इस उत्पादन कटौती का भारत पर प्रभाव:

भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है और यह कच्चे तेल की अपनी कुल आवश्यकता के 80% से अधिक का आयात करता है। भारत अपने कच्चे तेल आयात का लगभग 70%ओपेक सदस्यों से प्राप्त करता है।दशकीय तुलना करें तो ओपेक से तेल आयात में भारी कमी आई हैजहाँ यह पूर्व के 87% से घटकर वर्ष 2021-22 में 70% रह गया है। हालाँकि ओपेक की अभी भी भारत के तेल आयात में प्रमुख हिस्सेदारी है। इस स्थिति में ओपेक प्लस द्वारा कम उत्पादन का भारत पर निश्चित ही नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इसके कुछ संभावित प्रभाव निम्नलिखित होंगे:

  • आयातित मुद्रास्फीति (Higher Imported Inflation) का उच्च होना: उत्पादन में कटौती से कच्चे तेल की कीमतें बढ़ेंगी जिससे भारत के आयात मूल्य में वृद्धि होगी और चालू खाता घाटे (current account deficit) की स्थिति सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के स्तर पर 0.4% तक प्रभावित होगी। इसका असर पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों पर भी पड़ेगा, जो पहले से ही देश भर में रिकॉर्ड उच्च स्तर पर हैं। पेट्रोल एवं डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी से घरेलू वस्तुओं की कीमतों में और भी वृद्धि होगी।
  • आर्थिक विकास (Lower Economic Growth) में कमी आना: तेल के अधिक मूल्य से विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन एवं परिवहन की लागत में वृद्धि होगी जिससे उनकी लाभप्रदता एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता प्रभावित होगी। इससे उपभोक्ताओं के प्रयोज्य/उपभोज्य आय (disposable income) में भी कमी आएगी, जिससे वस्तुओं एवं सेवाओं की उनकी मांग प्रभावित होगी। उच्च मुद्रास्फीति और निम्न आर्थिक वृद्धि की स्थिति से मौद्रिक नीति के लिये भी चुनौती उत्पन्न होगी।
  • राजकोषीय घाटा (Higher Fiscal Deficit) का उच्च होना: तेल की कीमतों में वृद्धि से सरकार पर सब्सिडी का बोझ बढ़ेगा। इससे राजकोषीय घाटे में और भी वृद्धि होगी तथा आधारभूत संरचना एवं सामाजिक कल्याण पर सार्वजनिक व्यय में कमी आएगी।
  • बाह्य निर्भरता के प्रति भेद्यता (Higher External Vulnerability): तेल के उच्च मूल्य से विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आने के साथ बाह्य उधारी पर भारत की निर्भरता को बढ़ावा मिलेगा। इससे भारत मुद्रा में उतार-चढ़ाव के साथ वैश्विक वित्तीय असंतुलन के प्रति संवेदनशील होगा। तेल के उच्च मूल्य से व्यापार संतुलन (trade balance) तथा अन्य देशों के साथ भारत की आयात-निर्यात स्थिति (terms of trade) भी प्रभावित होगी।

भारत के लिये आगे की राह:

  • ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाना: भारत वैकल्पिक एवं नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने और इसमें निवेश करने के रूप में अपने ऊर्जा मिश्रण में विविधता लाने पर ध्यान केंद्रित कर सकता है। इसमें सौर, पवन, पनबिजली और परमाणु ऊर्जा के उपयोग का विस्तार करना शामिल है। जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता कम करके भारत तेल आयात के लिये ओपेक पर अपनी निर्भरता कम कर सकता है।
  • घरेलू तेल एवं गैस उत्पादन को बढ़ावा देना: भारत के पास तेल और गैस के पर्याप्त भंडार मौजूद हैं। सरकार घरेलू एवं विदेशी तेल कंपनियों को तटवर्ती और अपतटीय दोनों तरह की अन्वेषण एवं उत्पादन गतिविधियों में संलग्न होने के लिये प्रोत्साहित कर सकती है।
    • कर प्रोत्साहन और सुव्यवस्थित नियामक प्रक्रियाओं जैसी अनुकूल नीतियों को कार्यान्वित करने से निवेश में वृद्धि को बढ़ावा मिल सकता है और घरेलू उत्पादन में वृद्धि हो सकती है।
  • ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना: भारत परिवहन, औद्योगिक प्रक्रियाओं और भवनों सहित विभिन्न क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता उपायों को प्राथमिकता दे सकता है। इसमें ऊर्जा-कुशल तकनीकों को अपनाना, औद्योगिक प्रक्रियाओं का अनुकूलन करना और मजबूत ऊर्जा संरक्षण उपायों को लागू करना शामिल है।
  • अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी को सुदृढ़ करना: भारत तेल के वैकल्पिक स्रोतों को सुरक्षित करने के लिये ओपेक से इतर तेल उत्पादक देशों के साथ रणनीतिक समन्वय को बढ़ावा दे सकता है। इसके साथ ही रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा एवं अन्य ऐसे देशों के साथ संबंधों को सुदृढ़ करने से आयात स्रोतों में विविधता लाने और अनुकूल आपूर्ति समझौतों पर वार्ता करने के अवसर मिल सकते हैं।
  • रणनीतिक तेल भंडार विकसित करना: पर्याप्त रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार (Strategic Oil Reserves) बनाए रखना, आपूर्ति में व्यवधान या मूल्य में उतार-चढ़ाव के दौरान बफ़र के रूप में कार्य कर सकता है। भारत को आपात स्थिति के दौरान तेल की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करने और ओपेक के निर्णयों पर निर्भर भेद्यता को कम करने के लिये अपने रणनीतिक तेल भंडार का निर्माण एवं विस्तार करना जारी रखना चाहिये।
  • अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना: उन्नत ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के संबंध में अनुसंधान एवं विकास (R&D) में निवेश करने से ऊर्जा भंडारण, इलेक्ट्रिक वाहन और अन्य वैकल्पिक ईंधन के क्षेत्रों में सफलता मिल सकती है। यह भारत को दीर्घावधि में ओपेक पर निर्भरता कम करने और स्वच्छ एवं अधिक सतत ऊर्जा स्रोतों की ओर अपने संक्रमण को तीव्र करने में मदद कर सकता है।
  • सार्वजनिक परिवहन और इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहित करना: सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों और इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) के उपयोग को बढ़ावा देने से भारत की तेल खपत में पर्याप्त कमी आ सकती है। चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार करने के साथ EVs अपनाने के लिये प्रोत्साहन देने से सतत परिवहन विकल्पों की ओर तेज़ी से आगे बढ़ने में मदद मिल सकती है।
  • ऊर्जा कूटनीति में संलग्नता: भारत ऊर्जा कूटनीति में सक्रिय रूप से संलग्न हो सकता है और निष्पक्ष एवं स्थिर तेल मूल्यों की वकालत करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय मंचों में भागीदारी कर सकता है। अन्य तेल आयातक देशों के साथ सहयोगात्मक प्रयास, ओपेक की निर्णयन प्रक्रिया को प्रभावित करने एवं अधिक संतुलित एवं पारदर्शी वैश्विक ऊर्जा बाज़ार का सृजन करने में मदद कर सकते हैं।

अभ्यास प्रश्न: भारत कच्चे तेल की अपनी मांग की पूर्ति के लिये ओपेक देशों पर अत्यधिक निर्भर है। ओपेक कच्चे तेल के अपने उत्पादन को कम कर रहा है और उसने उत्पादन में आगे और कटौती करने का निर्णय लिया है। इस कटौती के निहितार्थ की चर्चा कीजिये और इसके प्रभाव को न्यूनतम करने हेतु कुछ सुझाव दीजिये।

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