भारतीय राजव्यवस्था
समान नागरिक संहिता (UCC)
प्रीलिम्स के लिये:समान नागरिक संहिता संबंधी प्रावधान मेन्स के लिये:समान नागरिक संहिता संबंधी विवाद और उसका आलोचनात्मक परीक्षण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक गोवा निवासी की संपत्ति से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए गोवा को ‘समान नागरिक संहिता’ (Uniform Civil Code) लागू करने के संदर्भ में एक बेहतरीन उदाहरण के रूप में वर्णित किया है।
मुख्य बिंदु:
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संविधान निर्माताओं ने भारत के लिये एक समान नागरिक संहिता की ‘आशा और अपेक्षा’ की थी, लेकिन इसे लागू करने का कोई प्रयास नहीं किया गया है।
समान नागरिक संहिता क्या है?
- समान नागरिक संहिता वह संहिता है जो पूरे देश के लिये एक समान कानून और सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि संबंधी कानूनों में भी एकरूपता प्रदान करने का प्रावधान करती है।
- संविधान के अनुच्छेद 44 में वर्णित है कि राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।
- अनुच्छेद 44 संविधान के भाग-4 में वर्णित राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों (Directive Principles of State Policy-DPSP) में से एक है।
- अनुच्छेद 37 में परिभाषित है कि राज्य के नीति निदेशक तत्त्व संबंधी प्रावधानों को किसी भी न्यायालय द्वारा प्रवर्तित नहीं किया जा सकता है लेकिन इसमें निहित सिद्धांत शासन व्यवस्था में मौलिक प्रकृति के होंगे।
- मौलिक अधिकार न्यायालय में प्रवर्तन के योग्य हैं।
- अनुच्छेद 44 में ‘राज्य प्रयास करेगा’ जैसे शब्दों का उपयोग किया गया है, परंतु इस अध्याय के अन्य अनुच्छेदों में ‘विशेष रूप से प्रयास में’, ‘विशेष रूप से अपनी नीति को निर्देशित करेगा’, ‘राज्य की बाध्यता होगी’ आदि शब्दों का उपयोग किया गया है।
- अनुच्छेद 43 में उल्लेख किया गया है कि ‘राज्य उपयुक्त कानून द्वारा प्रयास करेगा’ जबकि वाक्यांश ‘उपयुक्त कानून द्वारा’ अनुच्छेद 44 में अनुपस्थित है।
- इसका तात्पर्य यह है कि किसी भी राज्य की DPSP को लागू करने की ज़िम्मेदारी अनुच्छेद 44 की तुलना में अन्य अनुच्छेदों के लिये अधिक है।
मूल अधिकार और राज्य के नीति निदेशक तत्त्व:
- इसमें कोई संदेह नहीं है कि मौलिक अधिकार DPSP से अधिक महत्वपूर्ण हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने मिनर्वा मिल्स मामले (1980) में वर्णित किया था कि भारतीय संविधान की स्थापना भाग-III (मौलिक अधिकार) और भाग-IV (DPSP) के बीच संतुलन के आधार पर की गई है। इनमें से किसी एक को दूसरे पर पूर्ण अधिकार देना संविधान के सामंजस्य को बिगाड़ना है
- अनुच्छेद 31(C) जिसे वर्ष 1976 के 42वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया है, इस बात की पुष्टि करता है कि यदि किसी भी निदेशक सिद्धांत को लागू करने के लिये कोई कानून बनाया जाता है, तो उसे अनुच्छेद 14 और 19 के तहत मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है।
वर्तमान में समान नागरिक संहिता की स्थिति:
- वर्तमान में अधिकांश भारतीय कानून, कई सिविल मामलों में एक समान नागरिक संहिता का पालन करते हैं, जैसे- भारतीय अनुबंध अधिनियम, नागरिक प्रक्रिया संहिता, माल बिक्री अधिनियम, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, भागीदारी अधिनियम, साक्ष्य अधिनियम आदि।
- हालाँकि राज्यों ने कई कानूनों में सैकड़ों संशोधन किये हैं परंतु धर्मनिरपेक्षता संबंधी कानूनों में अभी भी विविधता है।
- यह तर्क दिया जाता है कि यदि संविधान निर्माताओं ने समान नागरिक संहिता लागू करने की आशा की होती, तो उन्होंने इस विषय को संघ सूची में शामिल करके व्यक्तिगत कानूनों के संबंध में संसद को विशेष अधिकार दिया होता। जबकि इसे समवर्ती सूची में शामिल किया गया है।
- वर्ष 2019 में भी विधि आयोग ने कहा था कि एक समान नागरिक संहिता न तो संभव है और न ही वांछनीय है।
क्या सभी धार्मिक समुदायों के लिये अपने सभी सदस्यों को नियंत्रित करने वाला एक सामान्य व्यक्तिगत कानून है?
- देश के न तो सभी हिंदू, न सभी मुसलमान और न ही सभी ईसाई एक कानून द्वारा शासित हैं।
- भारत के अलग-अलग हिस्सों में न केवल ब्रिटिश कानूनी परंपराएँ, यहाँ तक कि पुर्तगाली और फ्राँसीसी भी कुछ हिस्सों में सक्रिय हैं।
- जम्मू-कश्मीर में 5 अगस्त, 2019 तक स्थानीय हिंदू कानून केंद्रीय अधिनियमों से भिन्न थे।
- वर्ष 1937 के शरीयत अधिनियम को कुछ वर्ष पहले जम्मू-कश्मीर तक विस्तारित किया गया था लेकिन अब इसे निरस्त कर दिया गया है।
- इस प्रकार कश्मीर के मुसलमान एक प्रथागत कानून द्वारा शासित थे, परंतु देश के बाकी हिस्सों में मुस्लिम पर्सनल लॉ लागू था जो हिंदू कानून के करीब था।
- यहाँ तक कि मुसलमानों के बीच विवाह के पंजीकरण संबंधी कानून अलग-अलग स्थानों पर भिन्न होते हैं।
- पूर्वोत्तर में 200 से अधिक जनजातियाँ अपने स्वयं के विविध प्रथागत कानूनों को मानती हैं।
- संविधान नगालैंड, मेघालय और मिज़ोरम के स्थानीय रीति-रिवाजों की रक्षा का प्रावधान करता है।
समान नागरिक संहिता का धर्म संबंधी मौलिक अधिकारों से संबंध:
- अनुच्छेद 25 धर्म के संबंध में व्यक्ति के मौलिक अधिकार को समाप्त करता है; अनुच्छेद 26 (B) प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी भी वर्ग के अधिकार को ‘धर्म के मामलों में प्रबंधन’ करने का अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 29 विशिष्ट संस्कृति के संरक्षण के अधिकार को परिभाषित करता है।
- अनुच्छेद 25 के तहत किसी व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता ‘सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य, नैतिकता’ और मौलिक अधिकारों से संबंधित अन्य प्रतिबंधों के अधीन है, लेकिन अनुच्छेद 26 के तहत एक धार्मिक समूह की स्वतंत्रता अन्य मौलिक अधिकारों के अधीन नहीं है।
- संविधान सभा में समान नागरिक संहिता संबंधी मौलिक अधिकार को इस अध्याय में रखने के मुद्दे पर विभाजन था। यह मामला एक वोट से तय हुआ।
- सरदार वल्लभभाई पटेल की अध्यक्षता में मौलिक अधिकार उप-समिति ने 5: 4 के बहुमत से माना कि यह प्रावधान मौलिक अधिकारों के दायरे से बाहर था, इसलिये समान नागरिक संहिता को धार्मिक स्वतंत्रता से कम महत्त्वपूर्ण बताया गया।
समान नागरिक संहिता पर संविधान सभा के मुस्लिम सदस्यों का विचार:
- मोहम्मद इस्माइल नामक सदस्य जिन्होंने तीन बार मुस्लिम पर्सनल लॉ को अनुच्छेद 44 से मुक्त करने का असफल प्रयास किया था, ने कहा कि एक धर्मनिरपेक्ष राज्य को लोगों के व्यक्तिगत कानून में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये।
- बी पोकर साहब नामक अन्य एक सदस्य ने कहा कि उन्हें विभिन्न संगठनों से एक समान नागरिक संहिता के खिलाफ प्रतिनिधित्व मिला है, जिसमें हिंदू संगठन भी शामिल हैं।
- डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा कि कोई भी सरकार अपने प्रावधानों का प्रयोग इस तरह से नहीं कर सकती है जो मुसलमानों को विद्रोह करने के लिये मजबूर करे।
- अल्लादी कृष्णस्वामी, जो एक समान नागरिक संहिता के पक्ष में थे, ने माना कि किसी भी समुदाय के मज़बूत विरोध की अनदेखी करते हुए समान नागरिक संहिता को लागू करना नासमझी होगी।
- इन बहसों में लैंगिक न्याय का उल्लेख नहीं किया गया था।
समान नागरिक संहिता पर संविधान सभा के हिंदू सदस्यों का विचार:
- जून 1948 में संविधान सभा के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद ने कहा था कि व्यक्तिगत कानून में बुनियादी परिवर्तन प्रारंभ करना पूरे हिंदू धर्म पर ‘सूक्ष्म अल्पसंख्यक’ संबंधी ‘प्रगतिशील विचारों’ को लागू करना था।
- हिंदू कानून में सुधार के विरोध में शामिल लोगों में सरदार पटेल, पट्टाभि सीतारमैय्या, एम ए अयंगार, एम एम मालवीय और कैलाश नाथ काटजू शामिल थे।
- दिसंबर 1949 में जब हिंदू कोड बिल पर बहस शुरू हुई तो 28 में से 23 वक्ताओं ने इसका विरोध किया।
- 15 सितंबर, 1951 को राष्ट्रपति ने हिंदू कोड बिल को संसद में वापस करने या इसे वीटो करने की अपनी शक्तियों का उपयोग करने की धमकी दी।
- जवाहर लाल नेहरू ने संहिता को अलग-अलग अधिनियमों में विभाजित करने पर सहमति व्यक्त की थी।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अफ्रीकी संघ की बैठक
प्रीलिम्स के लियेअफ्रीकी संघ के बारे में मेन्स के लियेभारत पर पड़ने वाले प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
9-10 फरवरी, 2020 को इथोपिया के आदिस अबाबा (Addis Ababa) में अफ्रीकी संघ की 33वीं बैठक का आयोजन किया गया।
प्रमुख बिंदु:
- अफ्रीकी संघ की 33वीं बैठक की थीम- साइलेंसिंग द गन्स: क्रिएटिंग कंडक्टिव कंडीशंस फाॅर अफ्रीकाज़ डेवलपमेंट (Silencing the Guns: Creating conducive conditions for Africa’s development) है।
- इसकी अध्यक्षता दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा (Cyril Ramaphosa) द्वारा की गई।
- अपने उद्घाटन भाषण में अफ्रीकी संघ के नवनिर्वाचित अध्यक्ष सिरिल रामफोसा ने एजेंडा 2063 (Agenda 2063) की रूपरेखा सहित उन प्राथमिकताओं को रेखांकित किया, जिसके अंतर्गत अफ्रीका के विकास पथ में हो रही प्रगति को बढ़ावा देने के लिये यूनियन का ध्यान केंद्रित करना होगा।
- जुलाई 2020 में प्रारंभ होने वाले अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र (African Continental Free Trade Area-AfCFTA) पर रामफोसा ने कहा कि यह औद्योगीकरण का एक प्रमुख चालक होगा जो वैश्विक अर्थव्यवस्था में अफ्रीका के एकीकरण का मार्ग प्रशस्त करेगा।
- अफ्रीका में महिलाओं और बालिकाओं के सशक्तिकरण के मुद्दे पर रामफोसा ने योजनाओं को धरातल पर उतारने तथा व्यावहारिक समाधान प्राप्त करने की दिशा में काम करने की आवश्यकता पर बल दिया।
- अफ्रीका के विकास एजेंडा में महिलाओं को शामिल करने के लिये अफ्रीकी संघ द्वारा किये जा रहे प्रयासों के अनुरूप महासभा ने वर्ष 2020 से 2030 के दशक को महिलाओं के लिये वित्तीय समावेशन का दशक घोषित किया है।
एजेंडा 2063
- यह संकल्प मई 2013 में अफ्रीकी संघ की महासभा द्वारा पारित किया गया।
- यह अफ्रीका महाद्वीप का एक रणनीतिक ढाँचा है जिसका उद्देश्य समावेशी और संवहनीय विकास लक्ष्य को प्राप्त करन है और एकता, आत्मनिर्णय, स्वतंत्रता, उन्नति तथा सामूहिक समृद्धि के लिये पैन-अफ्रीकन अभियान की ठोस अभिव्यक्ति है।
- इसका उद्देश्य अगले 50 वर्षो (वर्ष 2013-2063) में अफ्रीका महाद्वीप को पावर हाउस के रूप में स्थापित करना है।
- एजेंडा 2063 भविष्य के लिये न केवल अफ्रीका की आकांक्षाओं को कूटबद्ध करता है, बल्कि प्रमुख फ्लैगशिप कार्यक्रमों की भी पहचान करता है जो अफ्रीका के आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकते हैं और परिवर्तित हो रही वैश्विक भूमिका में महाद्वीप का नेतृत्व कर सकते हैं।
अफ्रीकी संघ
- अफ्रीकी संघ एक महाद्वीपीय निकाय है जिसमें अफ्रीका महाद्वीप के 55 सदस्य देश शामिल हैं।
- इसे वर्ष 1963 में स्थापित अफ्रीकी एकता संगठन (Organisation of African Unity) के स्थान पर आधिकारिक रूप से जुलाई 2002 में दक्षिण अफ्रीका के डरबन में गठित किया गया।
- अफ्रीकी संघ का सचिवालय आदिस अबाबा में स्थित है।
उद्देश्य
- अफ्रीकी देशों और उनके लोगों के बीच अधिक एकता और एकजुटता हासिल करना।
- अपने सदस्य देशों की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और स्वतंत्रता की रक्षा करना।
- महाद्वीप के राजनीतिक और सामाजिक-आर्थिक एकीकरण का प्रयास करना।
- महाद्वीप और उसके लोगों के हित के मुद्दों को बढ़ावा देना तथा उनका बचाव करना।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करना।
- महाद्वीप में शांति, सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ावा देना।
- लोकतांत्रिक सिद्धांतों और संस्थानों, लोकप्रिय भागीदारी और सुशासन को बढ़ावा देना।
- संघ के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये मौजूदा और भविष्य के क्षेत्रीय आर्थिक समुदायों के बीच नीतियों का समन्वय करना।
- व्यापार, रक्षा और विदेशी संबंधों पर सामान्य नीतियों को विकसित करना और बढ़ावा देना, ताकि महाद्वीप की रक्षा और इसकी वार्ता की स्थिति को मजबूत किया जा सके।
- अफ्रीका के युवाओं को विकास की मुख्य धारा में शामिल करने के लिये कौशल विकास संस्थानों के निर्माण पर बल दिया जा रहा है।
- इस बैठक में एजेंडा 2063 के कार्यान्वयन पर पहली महाद्वीपीय रिपोर्ट (First Continental Report) लॉन्च की गई है।
स्रोत: अफ्रीकी संघ की वेबसाइट
जैव विविधता और पर्यावरण
आर्सेनिक: जल प्रदूषण का एक अदृश्य कारक
प्रीलिम्स के लियेकेंद्रीय भूमि जल बोर्ड मेन्स के लियेखाद्य शृंखला में आर्सेनिक का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
भूमिगत जल में आर्सेनिक संदूषण (Arseic Contamination) भारत के पेयजल परिदृश्य में सबसे गंभीर मुद्दों में से एक है।
प्रमुख बिंदु
- केंद्रीय भूमि जल बोर्ड (Central Ground Water Board-CGWB) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, 21 राज्यों में आर्सेनिक का स्तर भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards-BIS) द्वारा निर्धारित 0.01 मिलीग्राम प्रति लीटर की अनुमन्य सीमा से अधिक हो गया है।
- गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना नदी बेसिन के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और असम इस मानव-प्रवर्तित भू-गर्भीय घटना से सबसे अधिक प्रभावित हैं।
- भारत में आर्सेनिक संदूषण की आधिकारिक तौर पर पुष्टि पहली बार वर्ष 1983 में पश्चिम बंगाल में की गई थी। इसके चार दशक बाद यह परिदृश्य और भी गंभीर हो गया है।
- जल शक्ति मंत्रालय के राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (National Rural Drinking Water Programme-NRDWP) द्वारा प्रकाशित नवीनतम आँकड़ो के अनुसार, पश्चिम बंगाल में लगभग 9.6 मिलियन, असम में 1.6 मिलियन, बिहार में 1.2 मिलियन, उत्तर प्रदेश में 0.5 मिलियन और झारखंड में 0.013 मिलियन लोग भूमिगत जल में आर्सेनिक संदूषण से प्रभावित हैं।
केंद्रीय भूमि जल बोर्ड
- केंद्रीय भूमि जल बोर्ड जल संसाधन मंत्रालय (जल शक्ति मंत्रालय), भारत सरकार का एक अधीनस्थ कार्यालय है।
- वर्ष 1970 में कृषि मंत्रालय के तहत समन्वेषी नलकूप संगठन को पुन:नामित कर केंद्रीय भूमि जल बोर्ड की स्थापना की गई थी। वर्ष 1972 के दौरान इसका आमेलन भू-विज्ञान सर्वेक्षण के भूजल स्कंध के साथ कर दिया गया था।
- केंद्रीय भूमि जल बोर्ड एक बहु संकाय वैज्ञानिक संगठन है जिसमें भूजल वैज्ञानिक, भूभौतिकविद्, रसायनज्ञ, जल वैज्ञानिक, जल मौसमवैज्ञानिक तथा अभियंता कार्यरत हैं ।
- इसका मुख्यालय फरीदाबाद में स्थित है।
- उद्देश्य
- यह भूजल संसाधनों की आयोजना और प्रबंधन पर राज्यों तथा अन्य प्रयोक्ता अभिकरणों को सुझाव देने के अतिरिक्त विभिन्न हितधारकों को वैज्ञानिक भूजल अन्वेषण, विकास एवं प्रबंधन की दिशा में तकनीकी जानकारी भी उपलब्ध कराता है।
- बोर्ड विभिन्न अनुसंधानों के माध्यम से उत्सर्जित आँकड़ो के आधार पर नियमित रूप से वैज्ञानिक रिपोर्ट का प्रकाशन करता है तथा दावाधारकों के मध्य इसका प्रचार-प्रसार करता है।
- केंद्रीय भूमि जल बोर्ड का कार्य वैज्ञानिक अध्ययन, ड्रिलिंग द्वारा अन्वेषण करना, भूमिजल प्रणाली की निगरानी करना, आकलन, संवर्धन, प्रबंधन और देश के भूमिगत जल संसाधनों का विनिर्माण करना है।
राज्यों की स्थिति
- गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना नदी बेसिन में प्रभावित राज्यों में से प्रत्येक के लिये विभिन्न स्रोतों द्वारा निर्दिष्ट आर्सेनिक संदूषण (प्रदूषण) की उपस्थिति एक हैरान करने वाली स्थिति निर्मित करती है। उदाहरण के लिये, बिहार में वर्ष 2016 से राज्य लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (Public Health Engineering Department-PHED) के आँकड़ो का दावा है कि 13 ज़िलों के भूमिगत जल में आर्सेनिक का प्रदूषण है। जबकि वर्ष 2018 में CGWB द्वारा प्रकाशित डेटा राज्य लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के आँकड़ो का खंडन करता है, इसके अनुसार बिहार में 18 ज़िले खतरे में हैं। हालाँकि, उसी वर्ष NRDWP द्वारा प्रकाशित डेटा 11 ज़िलों के आर्सेनिक प्रभावित होने का दावा करता है।
- पश्चिम बंगाल में वर्ष 2014 में राज्य PHED द्वारा प्रकाशित आंकड़ों का दावा था कि 11 ज़िले आर्सेनिक संदूषण का सामना कर रहे थे। लेकिन CGWB द्वारा प्रकाशित वर्ष 2018 के आँकड़ो के अनुसार प्रभावित ज़िलों की संख्या 8 है, जबकि NRDWP द्वारा प्रकाशित वर्ष 2018 के आँकड़ो के अनुसार यह संख्या बढ़कर 9 हो जाती है।
- असम में NRDWP के वर्ष 2018 के आँकड़ो के अनुसार 18 ज़िले प्रभावित हैं, तो वहीं CGWB के वर्ष 2018 के आँकड़ो के अनुसार प्रभावित ज़िलों की संख्या 8 है। राज्य PHED द्वारा वर्ष 2017 में प्रकाशित आँकड़े 17 ज़िलों को आर्सेनिक प्रदूषण से प्रभावित बताते हैं।
- CGWB द्वारा प्रकाशित वर्ष 2018 के आँकड़ो के अनुसार उत्तर प्रदेश में प्रभावित ज़िलों की संख्या 12 है, जबकि वर्ष 2018 में प्रकाशित NRDWP की रिपोर्ट के अनुसार प्रभावित ज़िलों की संख्या 17 है। इसी प्रकार झारखंड में CGWB द्वारा प्रकाशित वर्ष 2018 के आँकड़ो के अनुसार 2 ज़िले प्रभावित हैं तो वहीं वर्ष 2018 में प्रकाशित NRDWP की रिपोर्ट में तीन ज़िलों को शामिल किया गया है।
संदूषण शृंखला
- हाल ही में प्रकाशित कुछ शोधपत्रों में बताया गया है कि भूमिगत जल में आर्सेनिक संदूषण खाद्य शृंखला में प्रवेश कर गया है।
- किसानों द्वारा सिंचाई के लिये दूषित जल का उपयोग करने से जल के माध्यम से भोजन में आर्सेनिक के स्थानांतरण के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ निर्मित हो जाती हैं।
- वर्ष 2008 में फूड एंड केमिकल टॉक्सिकोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, उबले हुए चावल, सब्जियों और दालों में आर्सेनिक की अत्यधिक मात्रा पाई गई। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि उबले या पके हुए चावल में आर्सेनिक की मात्रा कच्चे चावल के दानों की तुलना में लगभग 2.1 गुना अधिक थी।
- संयोगवश गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना नदी बेसिन के मैदान कृषि के लिये अनुकूल हैं, यही कारण है कि इन राज्यों की खाद्य फसलों जैसे चावल, मक्का, मसूर और गेहूं तथा बागवानी फसलों में व्यापक रूप से आर्सेनिक की मात्रा पाई जाती है।
- खाद्य शृंखला में आर्सेनिक के प्रवेश से मानव समुदाय को त्वचा कैंसर व त्वचा संबंधी गंभीर क्षति का सामना करना पड़ता है।
उपाय
- सरकार को कृषि उपज के लिये इस्तेमाल होने वाले जल में आर्सेनिक की जाँच करनी चाहिये।
- सरकार व गैर सरकारी संगठनों को पेयजल और कृषि उत्पादों के लिये आर्सेनिक मुक्त जल सुनिश्चित करने के लिये अधिक व्यापक दृष्टिकोण अपनाना चाहिये।
- केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को इस विषय पर अनुसंधान को सुगम बनाने की दिशा में काम करना चाहिये जो फसलों में आर्सेनिक के संचय की जाँच कर सके और प्रभावित क्षेत्रों की कृषि चिंताओं को दूर कर सके।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 13 फरवरी, 2020
हेल्थ एंड वैलनेस एम्बेसडर
केंद्र सरकार ने आयुष्मान भारत के तहत स्कूल ‘हेल्थ एंड वैलनेस एम्बेसडर’ पहल लॉन्च की है, इस पहल के तहत प्रत्येक सरकारी स्कूल में दो अध्यापकों को ‘हेल्थ एंड वैलनेस एम्बेसडर’ के रूप में चुना जाएगा। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने संयुक्त रूप से 12 फरवरी, 2020 को नई दिल्ली में स्कूल ‘हेल्थ एंड वैलनेस एम्बेसडर’ पहल के लिये पाठ्यक्रम जारी किया। यह कार्यक्रम केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से संचालित किया जाएगा। स्कूल हेल्थ एंड वैलनेस एम्बेसडर पहल का उद्देश्य स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने के माध्यम से स्कूल जाने वाले बच्चों के विकास और शैक्षिक उपलब्धियों को प्रोत्साहन देना है। इस पहल को ईट राईट अभियान, फिट इंडिया मूवमेंट और पोषण अभियान इत्यादि से भी जोड़ा जाएगा।
महाराष्ट्र में 5 दिवसीय कार्य सप्ताह
महाराष्ट्र सरकार ने अपने अधिकारियों और कर्मचारियों के लिये पाँच दिवसीय कार्य सप्ताह की घोषणा की है। महाराष्ट्र में यह व्यवस्था 29 फरवरी, 2020 से लागू होगी। आँकड़ों के अनुसार, राज्य में सरकारी अर्द्धसरकारी और स्थानीय निकायों में कुल 20 लाख से अधिक कर्मचारी नियुक्त हैं। केंद्र सरकार के कर्मचारियों के अलावा 5 दिवसीय कार्य सप्ताह राजस्थान, बिहार, पंजाब, दिल्ली, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के कर्मचारियों पर भी लागू है। मौजूदा व्यवस्था के तहत मुंबई में सरकारी कर्मचारियों के लिये कार्य के घंटे प्रातः 9.45 से शाम 5.30 बजे तक हैं। वहीं शेष महाराष्ट्र में यह समयावधि प्रातः 10 बजे से शाम 5.45 बजे तक की है। इसमें 30 मिनट का लंच टाइम भी शामिल है। कर्मचारियों को अभी हर दूसरे और चौथे शनिवार को छुट्टी मिलती है। नई व्यवस्था के तहत कार्यावधि प्रातः 9.45 से शाम 6.15 बजे तक रहेगी और लंच ब्रेक दोपहर 1 से 2 बजे तक होगा। आधिकारिक सूचना के अनुसार, नई व्यवस्था संपूर्ण राज्य पर लागू होगी।
अतुल कुमार गुप्ता
CA अतुल कुमार गुप्ता को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट (ICAI) का नया अध्यक्ष चुना गया है। ज्ञात हो कि इससे पूर्व वह संस्थान के उपाध्यक्ष थे। ICAI द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार, CA निहार निरंजन जंबूसारिया को संस्थान का नया उपाध्यक्ष चुना गया है। दोनों सदस्यों का चयन इन पदों पर वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिये किया गया है। अतुल कुमार गुप्ता ICAI की केंद्रीय परिषद में वर्ष 2013 में शामिल हुए थे। वे लगातार दो कार्यकाल के लिये परिषद से जुड़े रहे और बीते वर्ष उन्हें संस्थान का उपाध्यक्ष चुना गया था।
राष्ट्रीय उत्पादकता दिवस
12 फरवरी, 2020 को देश भर में राष्ट्रीय उत्पादकता दिवस का आयोजन किया गया। इसका आयोजन देश भर में उत्पादकता संस्कृति को बढावा देने के लिये राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद (National Productivity Council-NPC) द्वारा किया जाता है। राष्ट्रीय उत्पादकता दिवस का उद्देश्य उत्पादकता, गुणवत्ता, प्रतिस्पर्द्धा और दक्षता का प्रचार करना है। NPC की स्थापना वर्ष 1958 में की गई थी। NPC टोक्यो स्थित एशियाई उत्पादकता संगठन (APC) का एक घटक है। NPC सरकार और सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के संगठनों को कृषि-व्यवसाय, गुणवत्ता प्रबंधन, औद्योगिक इंजीनियरिंग, आर्थिक सेवा, मानव संसाधन प्रबंधन, सूचना प्रौद्योगिकी, प्रौद्योगिकी प्रबंधन, ऊर्जा प्रबंधन, पर्यावरण प्रबंधन आदि के क्षेत्रों में परामर्श और प्रशिक्षण सेवाएँ प्रदान करता है।