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डेली न्यूज़

  • 11 Nov, 2019
  • 45 min read
शासन व्यवस्था

ओवरसीज़ सिटीज़नशिप ऑफ इंडिया

प्रीलिम्स के लिये:

ओवरसीज़ सिटीज़नशिप ऑफ इंडिया क्या है, NRIs व POIs कौन होते हैं, इनके मध्य क्या अंतर है, OCIs से संबंधित नियम

मेन्स के लिये:

ओवरसीज़ सिटीज़नशिप ऑफ इंडिया कार्ड धारण के लाभ और अयोग्यता, नागरिकता अधिनियम से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार ने ब्रिटिश पत्रकार और लेखक आतिश तासीर (Aatish Taseer) के ओवरसीज़ सिटीज़नशिप ऑफ इंडिया (OCI) कार्ड को निरस्त कर दिया है।

  • इस संदर्भ में गृह मंत्रालय का कहना है कि उनके OCI कार्ड को नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत निरस्त किया गया है, क्योंकि अपने आवेदन में उन्होंने इस बात का उल्लेख नहीं किया कि उनके पिता पाकिस्तानी मूल के नागरिक हैं, जो कि OCI कार्ड हेतु एक अयोग्यता है।

क्या है ओवरसीज़ सिटीज़नशिप ऑफ इंडिया?

  • ओवरसीज़ सिटीज़न ऑफ इंडिया या OCI की श्रेणी को भारत सरकार द्वारा वर्ष 2005 में शुरू किया गया था।
  • गृह मंत्रालय OCI को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है जो 26 जनवरी, 1950 को या उसके बाद भारत का नागरिक था; या उस तारीख पर भारत का नागरिक बनने योग्य था; या 15 अगस्त, 1947 के बाद भारत का हिस्सा बने किसी क्षेत्र से संबंधित था, या ऐसे व्यक्ति का बच्चा या पोता, जो अन्य पात्रता मानदंडों पूरे करता हो।
  • OCI कार्ड नियमों की धारा 7(A) के अनुसार, एक आवेदक OCI कार्ड के लिये पात्र नहीं होगा यदि वह या उसके माता-पिता या दादा-दादी, परदादा-परदादी कभी पाकिस्तान या बांग्लादेश या किसी ऐसे देश के नागरिक रहे हों, जिसे भारत सरकार द्वारा सरकारी राजपत्र में अधिसूचित किया गया है।

OCI कार्ड के लाभ

  • OCI कार्डधारक भारत में प्रवेश कर सकते हैं, भारत का दौरा करने के लिये बहुउद्देशीय आजीवन वीज़ा (Multipurpose Lifelong Visa) प्राप्त कर सकते हैं और इसके लिये विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (FRRO) के साथ पंजीकरण करने की आवश्यकता भी नहीं होती है।
  • यदि कोई व्यक्ति पाँच साल की अवधि के लिये OCI के रूप में पंजीकृत रहता है, तो वह भारतीय नागरिकता के लिये आवेदन का पात्र हो जाता है।
  • साथ ही OCI कार्डधारकों को अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों पर विशेष आव्रजन काउंटर (Special Immigration Counters) की सुविधा भी प्रदान की जाती है।
  • OCI कार्डधारक भारत में विशेष बैंक खाते खोल सकते हैं, वे गैर-कृषि संपत्ति (आवासीय व व्यावसायिक) खरीद सकते हैं, किंतु उन्हें कृषि योग्य भूमि (इसमें खेत/फार्म एवं किसी भी तरह की वृक्षारोपण संपत्ति शामिल है) की खरीद करने का अधिकार नहीं है और ड्राइविंग लाइसेंस एवं पैन कार्ड के लिये भी आवेदन कर सकते हैं।
  • हालाँकि OCI कार्डधारियों को मतदान एवं सरकारी नौकरी प्राप्त करने का अधिकार नहीं है।

OCI कार्ड की अयोग्यता

  • इस संबंध में गृह मंत्रालय प्रत्येक आवेदन की बारीकी से जाँच करता है और उसके पास किसी भी आवेदन को अस्वीकार करने का अधिकार है।
  • उल्लेखनीय है कि यदि कोई कार्ड धोखाधड़ी के माध्यम से या किसी जानकारी को छिपाकर प्राप्त किया गया हो तो गृह मंत्रालय द्वारा किसी भी OCI कार्ड को अयोग्य करार दिया जा सकता है या ब्लैकलिस्ट भी किया जा सकता है।
  • यदि कोई OCI कार्डधारक भारतीय संविधान का अपमान करता हुआ पाया जाता है, तो भी OCI कार्ड रद्द किया जा सकता है।

नागरिकता

  • चूँकि भारतीय संविधान दोहरी नागरिकता की अनुमति नहीं देता है, इसलिये कोई भी OCI कार्डधारक भारत का नागरिक नहीं होता है।
  • हालाँकि एक व्यक्ति जो OCI कार्डधारक के रूप में पंजीकृत है वह OCI का दर्जा दिये जाने के पाँच साल बाद भारतीय नागरिकता प्रदान करने के लिये आवेदन कर सकता है।
    • साथ ही नागरिकता के लिये आवेदन करने से पहले उस व्यक्ति को बारह महीनों के लिये भारत में निवासी होना चाहिये।

NRIs कौन होते हैं?

  • अनिवासी भारतीय (NRI) ऐसा भारतीय पासपोर्टधारक होता है जो किसी वित्तीय वर्ष में कम-से-कम 183 दिनों के लिये किसी अन्य देश में रहता है।
  • NRIs को वोट देने का अधिकार होता है और सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह कि उनकी केवल वही आय भारत में कर योग्य होती है, जो वे भारत में कमाते हैं।

PIOs कौन होते हैं?

  • भारतीय मूल का व्यक्ति (Persons of Indian Origin-PIO) एक ऐसा व्यक्ति होता है जो जन्म से या वंश से तो भारतीय है, परंतु वह भारत में रहता नहीं है।
  • PIOs जिनके पास बांग्लादेश, चीन, अफगानिस्तान, भूटान, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका के अलावा किसी अन्य देश का पासपोर्ट था, को पहले एक पहचान पत्र जारी किया जाता था, परंतु हालाँकि 15 जनवरी 2015 को भारत सरकार ने PIO कार्ड योजना को वापस ले लिया और इसे OCIs के साथ मिला दिया गया।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

जम्मू और कश्मीर का विभाजन

प्रीलिम्स के लिये

जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम

मेन्स के लिये:

जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के प्रावधान, विभाजन से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

31 अक्तूबर 2019 से जम्मू और कश्मीर राज्य को जम्मू कश्मीर और लद्दाख केंद्रशासित प्रदेशों (Union Territories-UT) में आधिकारिक रूप से विभाजित कर दिया गया।

  • सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती होने के कारण 31 अक्तूबर को का प्रतीकात्मक महत्व है, इसलिये इस दिन को दोनों नवगठित संघशासित प्रदेशों में नौकरशाही के स्तर पर कामकाज की शुरुआत के लिये चुना गया।
  • 5 अगस्त से 31 अक्तूबर के बीच की अवधि का उपयोग जम्मू-कश्मीर के राज्य के प्रशासन तथा गृह मंत्रालय द्वारा जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम (J&K Reorganization Act) को लागू करने के लिये नौकरशाही के बुनियादी ढांचे को स्थापित करने हेतु किया गया।

विभाजन के बाद परिवर्तन

31 अक्तूबर को क्या हुआ?

  • दोनो केंद्रशासित प्रदेशों के उप-राज्यपालों को जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय (Jammu and Kashmir High Court) के मुख्य न्यायाधीश द्वारा पद की शपथ दिलवाई गई।
  • केंद्र सरकार द्वारा गुजरात कैडर के सेवारत IAS अधिकारी गिरीश चंद्र मुर्मू को जम्मू-कश्मीर तथा त्रिपुरा कैडर के सेवानिवृत्त नौकरशाह राधा कृष्ण माथुर को लद्दाख का उप-राज्यपाल (Lt. Governors) नियुक्त किया गया है।
  • दोनों केंद्रशासित प्रदेशों में मुख्य सचिव, अन्य शीर्ष नौकरशाह, पुलिस प्रमुख तथा प्रमुख पर्यवेक्षक अधिकारी नियुक्त किये जायेंगे।
  • दिलबाग सिंह जम्मू-कश्मीर पुलिस के महानिदेशक होंगे जबकि एक आई.जी. स्तर का अधिकारी लद्दाख में पुलिस का प्रमुख होगा। दोनों UT की पुलिस जम्मू और कश्मीर कैडर का हिस्सा बनी रहेंगी एवं इनका विलय अंततः AUGMET कैडर में हो जाएगा।
  • पूर्ण रूप से विभाजन के लिये जम्मू और कश्मीर राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में एक वर्ष की अवधि का प्रावधान है।
  • राज्यों का पुनर्गठन एक धीमी प्रक्रिया है जिसमें कई वर्षों का समय लग जाता हैं। वर्ष 2013 में तत्कालीन आंध्र प्रदेश का आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में विभाजन किया गया जिसके पुनर्गठन से संबंधित मुद्दे अभी भी केंद्रीय गृह मंत्रालय के समक्ष समाधान के लिये विचाराधीन है।

अविभाजित राज्य में पहले से ही तैनात अन्य अधिकारियों का क्या होगा?

  • दोनों केंद्रशासित प्रदेशों में पदों की संख्या का विभाजन किया जा चुका है। जबकि राज्य प्रशासन के कर्मचारियों को विभाजित किया जाना अभी शेष है।
  • सरकार ने सभी कर्मचारियों को दोनो केंद्रशासित प्रदेशों में से किसी एक में अपनी नियुक्ति लिये आवेदन भेजने को कहा था, यह प्रक्रिया अभी जारी है।
  • कर्मचारियों की नियुक्ति में बुनियादी विचार यह है कि दोनों केंद्रशासित प्रदेशों के मध्य न्यूनतम विस्थापन हो एवं क्षेत्रीय घनिष्ठता को प्राथमिकता दी जाये।
  • सरकारी सेवा में कार्यरत लद्दाख के मूल निवासी इस क्षेत्र में तैनात रहना पसंद करते हैं जबकि कश्मीर और जम्मू के मूलनिवासी इस क्षेत्र में तैनात रहना चाहते हैं।
  • लद्दाख क्षेत्र के सभी पदों को भरने के लिये लद्दाख के स्थानीय कर्मचारी पर्याप्त संख्या में नहीं हैं। इसलिये जम्मू-कश्मीर के कुछ लोगों को वहाँ नियुक्त करने पर विचार किया जा सकता है।

जम्मू-कश्मीर राज्य को नियंत्रित करने वाले कानूनों का क्या होगा?

  • राज्य के विधायी पुनर्गठन का कार्य किया जा रहा है। इसके साथ ही राज्य के 153 कानूनों को निरस्त किया गया है और 166 कानूनों को यथावत रखा गया है।
  • इसके बाद ऐसे अधिनियमों को निरस्त करने का कार्य किया जायेगा जो संपूर्ण भारत में तो लागू होते है लेकिन जम्मू-कश्मीर राज्य में लागू नहीं होते थे।
  • राज्य प्रशासन ने राज्य पुनर्गठन अधिनियम में उल्लेखित सभी कानूनों को यथावत लागू कर दिया है।
  • लेकिन 108 केंद्रीय कानूनों में राज्य के विशिष्ट मुद्दों को शामिल करना बड़े पैमाने पर विधायी प्रक्रिया होगी जबकि ये कानून दोनो केंद्रशासित प्रदेशों पर लागू होंगे।

नए कानून

  • राज्य का अपनी आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code-CrPC) था जिसे अब केंद्रीय आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Central CrPC) द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा।
  • कश्मीर के CrPC में कई प्रावधान केंद्रीय CrPC से अलग हैं।
  • CrPC में संशोधन राज्य की आवश्यकता के अनुरूप किया जायेगा है लेकिन इन सभी पहलुओं पर अंतिम निर्णय केंद्र सरकार द्वारा लिया जायेगा।
  • केंद्र के यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम द्वारा (Protection of Children from Sexual Offences (POCSO) Act) प्रतिस्थापित महिलाओं और बच्चों के संरक्षण से संबंधित कानून में राज्य-विशिष्ट मुद्दों को शामिल किया जा सकता है।
  • यदपि आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिये आरक्षण के प्रावधान को पहले ही एक संशोधन के माध्यम से जोड़ा गया है परंतु केंद्र सरकार केंद्रीय अधिनियम से कुछ प्रावधान इसमें जोड़ सकता है।

वे कानून जो राज्य की विशिष्टता के आधार पर शामिल किये जा सकते है।

  • केंद्र और राज्य के किशोर न्याय अधिनियमों में किशोरों की उम्र सीमा का निर्धारण विवाद का प्रमुख बिंदु है।
  • केंद्रीय अधिनियम 16 वर्ष से अधिक आयु के किशोर को वयस्क मानता है जबकि राज्य अधिनियम में यह आयु सीमा 18 वर्ष है।
  • यह तर्क दिया गया है कि जम्मू-कश्मीर में विशेष स्थिति को देखते हुए जहाँ किशोरों को अक्सर हिंसक विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेते पाया जाता है इस स्थिति में केंद्रीय अधिनियम को जम्मू-कश्मीर में लागू करने पर वहां के बहुत से किशोरों का भविष्य ख़राब हो सकता है।
  • राज्य के आरक्षण कानून जाति के आधार पर आरक्षण को मान्यता नहीं देते हैं।
  • राज्य ने नियंत्रण रेखा (Line of Control-LoC) और अंतर्राष्ट्रीय सीमा के निकट रहने वाले तथा पिछड़े क्षेत्रों के नागरिकों के लिये क्षेत्र-वार आधार पर आरक्षण का प्रावधान किया है।
  • हालाँकि राज्य की आबादी में 8% अनुसूचित जाति और 10% अनुसूचित जनजाति शामिल हैं परंतु राज्य में क्षेत्रीय विभिन्नता विद्यमान है जैसे लद्दाख में अनुसूचित जाति की संख्या शून्य है परन्तु अनुसूचित जनजाति की आबादी अधिक है।

संपत्ति कैसे साझा की जाएगी?

  • राज्य की परिसंपत्तियों के बँटवारे की तुलना में राज्य का वित्तीय पुनर्गठन करना कहीं अधिक जटिल कार्य है।
  • अगस्त, 2019 में राज्य के विभाजन को संसद की अनुमति मिलने के कारण प्रशासन वर्ष के मध्य में वित्तीय पुनर्गठन की कार्यवाई में व्यस्त है जो कि एक जटिल प्रशासनिक गतिविधि है।
  • सरकार ने पूर्व रक्षा सचिव संजय मित्रा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय सलाहकार समिति का गठन किया है जो राज्य की संपत्तियों और देनदारियों को दो केंद्रशासित प्रदेशों के बीच विभाजित करने के लिये सुझाव देगी। इस समिति ने अभी अपनी रिपोर्ट नहीं सौंपी है।
  • पुनर्गठन के उद्देश्य से राज्य स्तर पर तीन और समितियों का गठन किया गया है जो राज्य के कर्मियों, वित्त एवं प्रशासनिक मामलों पर सुझाव देंगी।
  • तीन समितियों ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है लेकिन उनकी सिफारिशों को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है।
  • विशेष रूप से जबकि केंद्रशासित प्रदेशों के लिये कुल केंद्रीय बजट 7,500 करोड़ रुपए है, जम्मू और कश्मीर के लिये बजट 90,000 करोड़ रुपए से अधिक है।

उपरोक्त स्थितियों में गृह मंत्रालय कश्मीर के विभाजन की प्रक्रिया को लंबे समय से जारी रख सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

पुरुषों में बढ़ता एनीमिया

प्रीलिम्स के लिये

एनीमिया क्या है, एनीमिया प्रभावित राज्य

मेन्स के लिये

मानव स्वास्थ्य पर एनीमिया का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘द लांसेट ग्लोबल हेल्थ’ (The Lancet Global Health) द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन द्वारा यह पता चला कि देश के लगभग एक चौथाई पुरुष किसी न किसी प्रकार की एनीमिया से ग्रसित हैं।

मुख्य बिंदु :

  • अध्ययन में शामिल 1 लाख लोगों, जिनकी उम्र 15-54 वर्ष के बीच थी, में से लगभग 18 प्रतिशत पुरुषों में निम्न स्तर पर एनीमिया पाया गया, 5 प्रतिशत में मध्यम स्तर पर तथा 0.5 प्रतिशत में तीव्र स्तर पर एनीमिया पाया गया।
  • पुरुषों में एनिमिया की वजह से थकान, ध्यान केन्द्रित करने में कठिनाई, आलस आदि जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। पुरुषों में होने वाले एनीमिया से आगामी पीढ़ियों में अल्प-पोषण या एनीमिया की शिकायत तो नहीं होती है लेकिन इससे व्यक्ति की कुल उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • अध्ययन से यह भी पता चला कि पुरुषों में एनीमिया का प्रभाव अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है। यह आँकड़ा बिहार में सर्वाधिक, 32.9 प्रतिशत है तथा मणिपुर में न्यूनतम, 9 प्रतिशत है। अशिक्षित, ग़रीब तथा ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले पुरुषों में इसकी शिकायत अधिक है।
  • प्रायः यह माना जाता है कि एनीमिया शरीर में आयरन की कमी की वजह से होता है जिसे आयरन की दवाओं तथा फ़ूड-फोर्टीफिकेशन के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। इसके अलावा जागरूकता की कमी, अल्पपोषण जैसे अन्य कारण भी इसके लिये जिम्मेदार हैं।
  • वर्ष 2018 में सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत एनीमिया मुक्त भारत कार्यक्रम प्रारंभ किया, जिसका मुख्य उद्देश्य बच्चों, गर्भवती महिलाओं तथा पुरुष व महिला वयस्कों में एनीमिया की कमी को दूर करना है।

एनीमिया - विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, एनीमिया वह स्थिति है जब रक्त में उपस्थित लाल रुधिर कणिकाएँ (Red Blood Cells-RBCs) की संख्या में कमी हो जाए या उनमें ऑक्सीजन ढ़ोने की क्षमता कम हो जाए। यह शरीर के विकास को प्रभावित करता है।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस 


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ईरान का यूरेनियम संवर्द्धन कार्यक्रम

प्रीलिम्स के लिये:

IAEA, ईरान की भौगोलिक स्थिति, यूरेनियम संवर्द्धन

मेन्स के लिये:

यूरेनियम संवर्द्धन से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

ईरान ने पश्चिमी देशों के साथ वर्ष 2015 परमाणु समझौते के विपरीत जाकर तेहरान के दक्षिण में स्थित अपने भूमिगत यूरेनियम संवर्द्धन संयंत्र फोराड (Fordow) में दोबारा कार्य शुरु किया गया।

  • वर्ष 2015 परमाणु समझौते के तहत लंबे समय से भूमिगत यूरेनियम संवर्द्धन संयंत्र में यूरेनियम कार्यक्रम रोक दिया गया था।
  • ईरान अब यूरेनियम को 4.5% तक समृद्ध कर रहा है, जो वर्ष 2015 के समझौते के तहत निर्धारित 3.67% की सीमा से काफी अधिक है।
  • इस प्रकार की पहल से पश्चिमी देशों विशेष रुप से संयुक्त राज्य अमेरिका ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
  • ईरान ने सदैव अपने परमाणु कार्यक्रम के किसी भी सैन्य उद्देश्य से इनकार किया है।

यूरेनियम संवर्द्धन (Uranium Enrichment):

  • यूरेनियम संवर्द्धन एक संवेदनशील प्रक्रिया है जो परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के लिये ईंधन का उत्पादन करती है।
  • सामान्यतः इसमें यूरेनियम-235 और यूरेनियम-238 के आइसोटोप का प्रयोग किया जाता है। यूरेनियम संवर्द्धन के लिये सेंट्रीफ्यूज (Centrifuges) में गैसीय यूरेनियम को शामिल किया जाता है।
  • संवर्द्धन से पहले, पहले यूरेनियम ऑक्साइड को फ्लोराइड में बदलने के कम तापमान पर रखा जाता है।
  • परमाणु संयंत्रों में ऊर्जा का उत्पादन इन आइसोटोपों के विखंडन से होता है।

अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी

(International Atomic Energy Agency- IAEA)

  • IAEA परमाणु क्षेत्र में विश्व का सबसे बड़ा परमाणु सहयोग केंद्र है। इसे वर्ष 1957 में विश्व में स्थापित किया गया था।
  • यह संगठन परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देने और किसी भी सैन्य उद्देश्य के लिये परमाणु हथियारों के प्रयोग को रोकने का कार्य करता है।
  • IAEA विश्व भर में परमाणु प्रौद्योगिकी और परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग में वैज्ञानिक एवं तकनीकी सहयोग हेतु एक अंतर-सरकारी मंच के रूप में भी कार्य करता है।
  • हालाँकि एक अंतर्राष्ट्रीय संधि (International Treaty) के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र द्वारा इसकी स्थापना की गई थी लेकिन यह संगठन संयुक्त राष्ट्र के प्रत्यक्ष नियंत्रण में नहीं आता है।
  • IAEA, संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) और सुरक्षा परिषद (Security Council) दोनों को रिपोर्ट करता है।
  • इसका मुख्यालय ऑस्ट्रिया के विएना (Vienna) में है।

स्रोत: द हिंदू


आंतरिक सुरक्षा

ब्रू जनजाति समस्या

प्रीलिम्स के लिये

ब्रू जनजाति, उनका निवास।

मेन्स के लिये

ब्रू जनजाति के संदर्भ में नृजातीय संघर्ष से उत्पन्न आतंरिक सुरक्षा की समस्या

चर्चा में क्यों?

हाल ही में त्रिपुरा सरकार ने ब्रू जनजाति को दी जाने वाली खाद्य आपूर्ति को, जिसे केंद्र सरकार ने रोक दिया था, पुनः प्रारंभ कर दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • ब्रू समुदाय के साथ लगातार हुई पुनर्स्थापन की कोशिशों के विफल होने के बाद केंद्र सरकार ने शरणार्थी शिविर में होने वाली खाद्य आपूर्ति को 1 अक्तूबर 2019 से समाप्त कर दिया।
  • साथ ही केंद्र सरकार ने ब्रू समुदाय के समक्ष एक अंतिम प्रस्ताव रखा कि जो परिवार 30 नवंबर 2019 से पहले वापस मिज़ोरम (मूल स्थान) लौटने को तैयार हो जाएगा उसे 25,000 रुपए की सहयोग राशि दी जाएगी। इसके बावजूद भी इस समुदाय के लोग वापस जाने को तैयार नहीं हुए।
  • खाद्य आपूर्ति रोकने के बाद छः लोगों की मौत हो गई जिसमें चार नवजात बच्चे भी शामिल थे। इन मौतों की वजह भुखमरी को बताया गया। हालाँकि स्थानीय प्रशासन ने इसका खंडन किया है।
  • इस घटना के बाद इस समुदाय के लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। जिसके चलते त्रिपुरा सरकार ने अपनी ओर से खाद्य आपूर्ति पुनः प्रारंभ कर दी लेकिन यह केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित अंतिम तिथि 30 नवंबर 2019 तक ही जारी रहेगी।

कौन है ब्रू?

  • ब्रू या रेयांग (Bru or Reang) समुदाय पूर्वोत्तर भारत के मूल निवासी हैं जो मुख्यतः त्रिपुरा, मिज़ोरम तथा असम में रहते हैं। किवदंतियों के अनुसार, माना जाता है कि त्रिपुरा का एक राजकुमार, जिसे राज्य से निकाल दिया गया था वह, अपने समर्थकों के साथ मिज़ोरम में जाकर बस गया। वहाँ उसने एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। ब्रू समुदाय के पूर्वज उस राजकुमार के समर्थक थे। वर्तमान में संख्या में कम होने के कारण त्रिपुरा में इनकी पहचान एक सुभेद्य आदिवासी समूह की है।
  • वर्ष 1995 में मिज़ोरम की ‘मिज़ो’ तथा ‘ब्रू’ जनजातियों के बीच हुए आपसी झड़प के बाद ‘यंग मिज़ो एसोसिएशन’ (Young Mizo Association) तथा ‘मिज़ो स्टूडेंट्स एसोसिएशन’ (Mizo Students’ Association) ने यह मांग रखी कि ब्रू लोगों के नाम राज्य की मतदाता सूची से हटाए जाए क्योंकि वे मूल रूप से मिज़ोरम के निवासी नहीं हैं।
  • इसके बाद ब्रू समुदाय द्वारा समर्थित उग्रवादी समूह ब्रू नेशनल लिबरेशन फ्रंट (Bru National Liberation Front-BNLF) तथा एक राजनीतिक संगठन (Bru National Union-BNU) के नेतृत्व में वर्ष 1997 में मिज़ो जनजातियों के समूह से हिंसक नृजातीय संघर्ष हुआ। जिसके बाद लगभग 37,000 ब्रू लोगों को मिज़ोरम छोड़ना पड़ा।
  • उसके बाद उन्हें त्रिपुरा के शरणार्थी शिविरों में रखा गया। तब से अभी तक लगभग 5,000 ब्रू लोग वापस मिज़ोरम लौट सके हैं जबकि शेष 32,000 अभी भी त्रिपुरा के शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं।

उनके जीवन निर्वाह के साधन

  • केंद्र सरकार द्वारा दी जाने वाली राहत सामग्री के तहत एक वयस्क ब्रू व्यक्ति को रोज़मर्रा की ज़रूरतों में शामिल सभी वस्तुओं के अलावा प्रतिदिन 5 रुपए व 600 ग्राम चावल तथा किसी अल्पवयस्क को 2.5 रुपए व 300 ग्राम चावल दिया जाता है।
  • अधिकतर शरणार्थी राहत सामग्री के तौर पर प्राप्त होने वाले अनाजों तथा अन्य वस्तुओं को बेच देते हैं तथा उसके बदले में प्राप्त धन को दवा आदि खरीदने के लिये प्रयोग में लाते हैं।
  • एक स्थाई निवास न होने की वजह से उनके पास आधार कार्ड, वोटर आईडी तथा राशन कार्ड आदि नहीं हैं। इसकी वजह से उन्हें घर, बिजली, स्वच्छ पानी, अस्पताल तथा बच्चों के लिये स्कूल जैसी कई बुनियादी सुविधाओं से वंचित रहना पड़ता है।

उनके शरणार्थी बने रहने की वजह

  • वर्ष 2018 में ब्रू समुदाय के नेताओं ने केंद्रीय गृह मंत्रालय तथा दो राज्य सरकारों (त्रिपुरा व मिज़ोरम) के साथ दिल्ली में एक समझौता किया। इसके अनुसार, केंद्र सरकार ने ब्रू जनजातियों के पुनर्वास के लिये आर्थिक मदद तथा घर निर्माण के लिये ज़मीन देना स्वीकार किया। साथ ही इस समुदाय को झूम खेती करने की अनुमति, बैंक अकाउंट, राशन कार्ड, आधार कार्ड, अनुसूचित जनजाति प्रमाणपत्र आदि देना तय किया गया।
  • इसके बावजूद सिर्फ 5,000 लोग ही वापस मिज़ोरम जाने के लिये तैयार हुए तथा शेष 35,000 लोगों ने यह कहते हुए लौटने से मना कर दिया कि समझौते के प्रावधान उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये पर्याप्त नहीं हैं साथ ही उन लोगों ने यह माँग भी रखी कि उन्हें एक साथ समूहों (Clusters) में बसाया जाए।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

क्लॉबैक मैकेनिज़्म

प्रीलिम्स के लिये:

क्लॉबैक मैकेनिज़्म,मेलूस क्लाॅज़, NPA, RBI

मेन्स के लिये:

NPA, काॅर्पोरेट गवर्नेंस से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने गैर निष्पादित संपत्ति (Non Performing Asset- NPA) से निपटने के लिये निजी बैंकों से क्लॉबैक मैकेनिज़्म (Clawback mechanism) के प्रावधान को लागू करने का निर्देश दिया है।

वर्तमान स्थिति:

  • कई निजी बैंकों द्वारा अपनी गवर्नेंस से संबंधित रिपोर्ट में NPA से संबंधित आँकड़ो को ठीक प्रकार से स्पष्ट नहीं किया गया। बैंकों में NPA की स्थिति के बावज़ूद उनके CEO (Chief Executive Officer) और पूर्णकालिक निदेशकों को वर्ष दर वर्ष उच्च परिवर्तनीय भुगतान दिया गया।
  • इस प्रकार की काॅर्पोरेट गवर्नेंस की कुप्रबंधन की स्थिति से निपटने हेतु RBI द्वारा परिवर्तनीय भुगतान पर लागू होने वाले मेलूस क्लाॅज़ (Malus Clause) और क्लॉबैक मैकेनिज़्म की आवश्यकता पर बल दिया जा रहा है।

मेलूस क्लाॅज़ और क्लॉबैक मैकेनिज़्म:

  • कंपनियाँ मुख्य प्रबंधन कार्मिक (Key Management Personnel- KMP) और भागीदारों के हितों को आगे बढ़ाने तथा कंपनी के दीर्घकालिक हितों के साथ इनको समायोजित करने के लिये दो प्रकार की नीतियाँ- मेलूस क्लाॅज़ और क्लॉबैक मैकेनिज़्म बनाती है।
  • मेलूस क्लाॅज़ के तहत कंपनी के कर्मचारियों के आवश्यक पारिश्रमिक या परिवर्तनीय भुगतान में कटौती की जाती है। यह एक प्रकार की गैर-प्रोत्साहन व्यवस्था है, जहाँ कुछ या सभी प्रदर्शन आधारित पारिश्रमिक प्राप्त नहीं होते हैं।
  • RBI के अनुसार- मेलूस क्लाॅज़ के तहत बैंक को सभी को छूट देने वाले पारिश्रमिक की राशि के हिस्से को रोकने अर्थात् परिवर्तनीय भुगतान की राशि में कटौती की जाती है। इसी प्रकार क्लॉबैक मैकेनिज़्म के तहत कर्मचारी और बैंक के बीच एक संविदात्मक समझौता होता है, जिसमें कर्मचारी कुछ परिस्थितियों में बैंक को पहले भुगतान या निहित पारिश्रमिक वापस करने के लिए सहमत होता है।

उद्देश्य:

  • इस प्रकार के प्रावधान का उद्देश्य पूर्णकालिक निदेशकों और CEO के परिवर्तनीय भुगतान हेतु मानदंड निर्धारित करना है।

RBI के दिशा-निर्देश:

  • मूल्यांकित NPA या परिसंपत्ति वर्गीकरण सार्वजनिक प्रकटीकरण की निर्धारित सीमा से अधिक होने की स्थिति में, बैंक को उस मूल्यांकन वर्ष का परिवर्तनीय भुगतान (पूर्णकालिक निदेशकों और CEO का)मेलूस क्लाॅज़ के तहत रोक देना चाहिये।
  • यदि गारंटीकृत बोनस (Guaranteed Bonus) जोखिम प्रबंधन या भुगतानों आधारित प्रदर्शन (Pay for Performance) के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है तो उन्हें क्षतिपूर्ति योजना (Compensation Plan) का हिस्सा नहीं बनाना चाहिये। इसके अतिरिक्त गारंटीकृत बोनस केवल नए कर्मचारियों (केवल पहले वर्ष तक सीमित) को ही प्रदान किया जाना चाहिये।
  • परिवर्तनीय भुगतान के मानकों में से कम से कम 50%; वैयक्तिक (Individual), व्यवसाय-इकाई (Business-Unit) और फर्म-वाइड (Firm-Wide) जैसे मानकों का समावेश किया जाना चाहिये।
  • कुल परिवर्तनीय भुगतान निर्धारित वेतन के अधिकतम 300% तक सीमित किया जाना चाहिये।
  • परिवर्तनीय भुगतान निर्धारित भुगतान (Fixed Pay) से 200% से अधिक होने पर कम-से-कम 67% भुगतान नॉन-कैश इंस्ट्रूमेंट्स (Non-Cash Instrument) के जरिये दिया जाना चाहिये।
  • परिवर्तनीय भुगतान को 150% तक कैप किया जा सकता है लेकिन इसे निर्धारित वेतन से 50% से कम नहीं किया जा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

राष्ट्रीय राजमार्ग-766

प्रीलिम्स के लिये:

भारत में राष्ट्रीय राजमार्ग

मेन्स के लिये:

वन्यजीवों की सुरक्षा संबंधी मुद्दे

चर्चा में क्यों?

केरल विधानसभा ने केंद्र सरकार से राष्ट्रीय राजमार्ग-766 (NH-766) पर यात्रा प्रतिबंध हटाने की मांग करते हुए 8 नवंबर, 2019 को एक प्रस्ताव पारित किया है।

NH-766

प्रमुख बिंदु

  • विदित हो कि वन्यजीवों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान से गुजरने वाले NH-766 के वन क्षेत्र में रात्रि के समय यात्रा पर वर्ष 2009 में प्रतिबंध लगा दिया गया था।
  • वर्ष 1989 में इसे राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित किया गया और NH-212 नाम दिया गया जिसे बाद में बदलकर NH-766 कर दिया गया।
  • यह वायनाड के लोगों के लिये एक जीवित मार्ग के रूप में कार्य करता है, क्योंकि इस स्थान पर रेल और पानी की कनेक्टिविटी का अभाव है।

बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान

  • यह परस्पर जंगलों का हिस्सा है जिसमें मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य (तमिलनाडु), वायनाड वन्यजीव अभयारण्य (केरल) और नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान (कर्नाटक) शामिल हैं।
  • पेंच टाइगर रिजर्व (मध्य प्रदेश) के बाद भारत में इस स्थान पर बाघों की सबसे अधिक आबादी पाई जाती है।

स्रोत: द हिंदू


आंतरिक सुरक्षा

असम राइफल्स और ITBP के विलय का प्रस्ताव

प्रीलिम्स के लिये:

असम राइफल्स और ITBP

मेन्स के लिये:

सीमा प्रबंधन से संबंधित मुद्दे, विलय से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs- MHA) ने प्रस्ताव दिया कि असम राइफल्स (Assam Rifles) और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (Indo-Tibetan Border Police- ITBP) का विलय किया जाना चाहिये।

प्रमुख बिंदु

  • वर्तमान में असम राइफल्स का प्रशासनिक नियंत्रण गृह मंत्रालय और संचालन नियंत्रण रक्षा मंत्रालय के अधीन सेना द्वारा किया जाता है। इस प्रकार के दोहरे नियंत्रण के कारण इसके कार्य निष्पादन में समस्याएँ पैदा होती हैं।

असम राइफल्स का इतिहास:

  • असम राइफल्स का गठन वर्ष 1835 में कछार लेवी नामक एक एकल सैन्यबल के रूप में पूर्वोत्तर भारत में शांति स्थापित करने के उद्देश्य से किया गया था।
  • कुछ समय बाद इस सैन्य बल को वर्ष 1870 में कुछ अतिरिक्त बटालियनों के साथ असम सैन्य पुलिस बटालियन में परिवर्तित कर दिया गया। इसमें लुशाई हिल्स बटालियन, लखीमपुर बटालियन और नागा हिल्स बटालियन शामिल थे। प्रथम विश्वयुद्ध से ठीक पहले इसके तहत एक और बटालियन, डारंग बटालियन को जोड़ा गया था।
  • प्रथम विश्वयुद्ध के बाद इन बटालियनों का नाम बदलकर असम राइफल्स कर दिया गया।
  • वर्ष 1962 में चीनी आक्रमण के बाद असम राइफल्स बटालियन को सेना के संचालन नियंत्रण में रखा गया था।

इस कदम का निहितार्थ:

  • सेना असम राइफल्स को ITBP के साथ विलय के पक्ष में है।
  • वर्तमान में, असम राइफल्स के उच्च रैंकिंग अधिकारियों को सेना में प्रतिनियुक्ति पर भेजा जाता है (क्योंकि असम राइफल्स वर्तमान में रक्षा मंत्रालय के संचालन नियंत्रण में है)।
  • असम राइफल्स के ITBP के साथ विलय के बाद, यह MHA के नियंत्रण में आ जाएगा।
  • असम राइफल्स के परिचालन नियंत्रण को गृह मंत्रालय के तहत स्थानांतरित करने से चीन की सीमा पर सतर्कता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
असम राइफल्स भारत-तिब्बत सीमा पुलिस
वर्ष 1835 में असम राइफल्स अस्तित्व में आया। भारत-तिब्बत सीमा पुलिस को वर्ष 1962 में स्थापित किया गया था।
यह आंतरिक सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह आपातकाल के समय नागरिक सेवा (Civilian Aid) सहायता प्रदान करता है।
वर्ष 2002 से यह भारत-म्यांमार सीमा की भी सुरक्षा कर रहा है। ITBP को लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश के मध्य तैनात किया जाता है।
ITBP एक विशेष पर्वतीय बल है और अधिकांश अधिकारी और सैनिक पेशेवर रूप से प्रशिक्षित पर्वतारोही और स्कीयर होते हैं। प्राकृतिक आपदाओं के समय ITBP देशभर में बचाव और राहत अभियान चलाता है।
असम राइफल्स का मुख्यालय शिलांग में स्थित है। ITBP का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।

स्रोत: द हिंदू


विविध

RAPID FIRE करेंट अफेयर्स (11 नवंबर)

  • मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई: सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने गुवाहाटी में कोर्ट्स ऑफ इंडिया: पास्ट टु प्रेजेंट नामक पुस्तक के असमिया संस्करण का विमोचन किया। उन्होंने इसे न्याय के स्थापत्य की संज्ञा दी। सर्वोच्च न्यायालय के प्रकाशन डिविज़न की ओर से प्रकाशित इस पुस्तक का अनुवाद संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल सभी क्षेत्रीय भाषाओं में कराने का न्यायालय ने निर्णय लिया था। सबसे पहला अनुवाद असमिया भाषा में भारतबोर्षोर अदालतखोमूहः ओतीतोर पोरा बोर्तोमानोलोई शीर्षक से मुद्रित हुआ है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि पुस्तक में भारतीय न्यायिक पद्धति की बहुत शानदार ढंग से व्याख्या की गई है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि कानून के विद्यार्थियों को इसका अध्ययन अवश्य करना चाहिये।
  • भारत ने बांग्लादेश को हराकर सीरीज़ जीती: भारत और बांग्लादेश के बीच नागपुर के विदर्भ क्रिकेट एसोसिएशन स्टेडियम में तीन मैचों की टी20 सीरीज़ का आखिरी मुकाबला खेला गया, जिसे भारतीय टीम ने 30 रनों के अंतर से जीत लिया। मैच के साथ-साथ भारतीय टीम ने तीन मैचों की T20 सीरीज़ भी 2-1 से अपने नाम कर ली। टॉस हार कर बल्लेबाजी करने उतरी भारतीय टीम ने 20 ओवर में 5 विकेट खोकर 174 रन बनाए। इसके जवाब में बांग्लादेश की टीम 19.2 ओवर में सभी विकेट खोकर 144 रन बना सकी और मैच 30 रन से और सीरीज़ 2-1 से हार गई। भारत के लिये दीपक चाहर ने सात रन देकर छह विकेट लिये। इसी के साथ वह अंतर्राष्ट्रीय टी-20 में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले गेंदबाज बन गए हैं। इसके अलावा, वह एक मैच में पाँच या उससे ज्यादा विकेट लेने वाले चौथे भारतीय गेंदबाज भी बन गए हैं।
  • पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त टीएन शेषन: रविवार को देश के पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त टीएन शेषन का निधन हो गया। 87 वर्ष के शेषन ने कार्डियक अरेस्ट के बाद चेन्नई में अंतिम सांस ली। भारत के 10वें मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन का पूरा नाम तिरुनेलै नारायण अय्यर शेषन था। उल्लेखनीय है कि वे 12 दिसंबर, 1990 से 11 दिसंबर, 1996 तक इस पद पर रहे थे। टीएन शेषन का जन्म 15 दिसंबर 1932 को केरल के पलक्कड़ ज़िले में हुआ था। टीएन शेषन ने वर्ष 1990 से लेकर वर्ष 1996 तक मुख्य चुनाव आयुक्त का पद संभाला और इस दौरान उन्होंने भारतीय चुनाव प्रणाली में कई बदलाव किए। मतदाता पहचान पत्र की शुरुआत भी भारत में उन्हीं के द्वारा की गई थी। वर्ष 1996 में उन्हें रैमन मैग्सेसे अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया था।
  • सचिन के नाम पर मकड़ी की नई प्रजाति: भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर का नाम अब क्रिकेट के अलावा मकड़ी के नाम से भी जुड़ गया है। गुजरात इकोलॉजिकल एजुकेशन एंड रिसर्च फाउंडेशन के एक जूनियर शोधकर्त्ता ने सचिन के नाम पर मकड़ी की नई प्रजाति का नाम रखा है। शोधकर्त्ता ने मकड़ियों की दो नई प्रजातियों की खोज की है और उनमें से एक का नाम 'मारेंगो सचिन तेंदुलकर' रखा है। इसके अलावा अन्य मकड़ी को इंडोमारेंगो चवारापटेरा नाम दिया गया है। उल्लेखनीय है कि ‘मारेंगो सचिन तेंदुलकर’ प्रजाति की मकड़ी केरल, तमिलनाडु और गुजरात में पाई जाती है, जबकि इंडोमारेंगो चवारापटेरा प्रजाति की मकड़ी एक एशियाई जंपिंग स्पाइडर है तथा केरल में पाई जाती है।
  • 'केजीएमयू एफएम रेडियो': उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में स्थित किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज एवं यूनिवर्सिटी में फरवरी 2020 से FM रेडियो शुरू होने जा रहा है, जिसे 30 किलोमीटर के दायरे में सुना जा सकेगा। शुरू में शाम पाँच बजे से रात नौ बजे के बीच चलने वाले केजीएमयू के इस एफएम रेडियो से बाद में रोज़ाना 12 घंटे तक उपयोगी कार्यक्रमों का प्रसारण करने की योजना है। FM रेडियो के ज़रिये गंभीर बीमारियों के शिकार मरीज़ों को जल्द स्वस्थ होने का संदेश दिया जाएगा।

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