प्रयागराज शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 10 जून से शुरू :   संपर्क करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 07 Oct, 2023
  • 38 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

माइक्रोबायोम अनुसंधान के संबंध में मिथक

प्रिलिम्स के लिये:

माइक्रोबायोम अनुसंधान, सूक्ष्मजीव, फर्मिक्यूट्स और बैक्टेरोइडेट्स, फ़ाइलम के संबंध में मिथक

मेन्स के लिये:

माइक्रोबायोम अनुसंधान के संबंध में मिथक, शारीरिक कार्यों के साथ माइक्रोबायोम का संबंध, विज्ञान और प्रौद्योगिकी- विकास और रोज़मर्रा की जिंदगी में उनके अनुप्रयोग और प्रभाव नैनो-प्रौद्योगिकी, जैव-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जागरूकता

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

विगत दो दशकों में, माइक्रोबायोम रिसर्च एक 'स्थानीय विषय' से 'पूरे विज्ञान में सबसे चर्चित विषयों में से एक' बन गया है।

  • मानव आंत के भीतर माइक्रोबियल इंटरैक्शन और उसकी गतिविधियाँ व्यापक शोध और चर्चा का विषय रही हैं।
  • प्रचलित मिथक धारणाओं के विपरीत, हाल के आकलन ने मानव माइक्रोबायोम की जटिलता पर प्रकाश डाला है, जो कुछ व्यापक रूप से माने जाने वाले दावों को चुनौती देता है।

नोट

  • केंद्रीय बजट 2021-22 के तहत, सरकार ने जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान और विकास के लिये 1,660 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है।

माइक्रोबायोम 

  • परिचय:
    • माइक्रोबायोम सूक्ष्मजीवों (जैसे कवक, बैक्टीरिया और विषाणु) का समुदाय है जो एक विशेष वातावरण में मौज़ूद होता है।
    • मनुष्यों में, इस शब्द का प्रयोग अक्सर उन सूक्ष्मजीवों का वर्णन करने के लिये किया जाता है, जो शरीर के किसी विशेष भाग, जैसे त्वचा या जठरांत्र संबंधी मार्ग, में रहते हैं।
    • सूक्ष्मजीवों के ये समूह गतिशील होते हैं और व्यायाम, आहार, दवा एवं अन्य जोखिम जैसे कई पर्यावरणीय कारकों की प्रतिक्रिया द्वारा इनमें बदलाव होता है।
  • मानव शरीर में माइक्रोबायोम के संबंध में मिथक:
    • क्षेत्र की आयु: 
      • एक भ्रम यह है कि माइक्रोबायोम अनुसंधान एक अपेक्षाकृत नया विषय है। वैज्ञानिकों ने 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में ही आंत में मौज़ूद एस्केरिचिया कोली तथा बिफीडोबैक्टीरिया जैसे बैक्टीरिया के लाभों का वर्णन एवं अनुमान लगाया था।
    • उत्पत्ति:
      • आधुनिक रूप में "माइक्रोबायोम" शब्द का उपयोग वर्ष 2001 में इसके लोकप्रिय होने से पहले किया गया था
        • जोशुआ लेडरबर्ग चिकित्सा क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार विजेता हैं, इस क्षेत्र का नामकरण वर्ष 2001 में किया गया था।
      • इस शब्द का प्रयोग वर्ष 1988 में रोगाणुओं के एक समुदाय का वर्णन करने के लिये किया गया था।
    • सूक्ष्मजीवों की संख्या और द्रव्यमान:
      • कुछ अधिक प्रचलित और अधिक हानिकारक मिथक माइक्रोबायोम के आकार से संबंधित हैं।
        • मानव अपशिष्ट में माइक्रोबियल कोशिकाओं की वास्तविक संख्या लगभग 1010 से 1012 प्रति ग्राम है और मानव माइक्रोबायोटा का वज़न लगभग 200 ग्राम है
    • माँ से शिशु तक प्रसार:
      • कुछ विचारों के विपरीत, जन्म के समय माताएँ अपने माइक्रोबायोम अपने बच्चों को नहीं देती हैं।
      •  कुछ सूक्ष्मजीव जन्म के दौरान माँ से सीधे शिशु में स्थानांतरित हो जाते हैं लेकिन वे मानव माइक्रोबायोटा का एक छोटे से अंश का निर्माण करते हैं और इन रोगाणुओं का केवल एक छोटा सा अंश ही जीवित रहता है तथा बच्चे के जीवनकाल तक बना रहता है।
      • प्रत्येक वयस्क में एक विशिष्ट माइक्रोबायोटा विन्यास होता है, यहाँ तक कि एक जैसे जुड़वाँ बच्चों में भी, जो एक ही घर में पले-बढ़े होते हैं।
    • सूक्ष्मजीव खतरनाक होते हैं:
      • कुछ शोधकर्त्ताओं ने सुझाव दिया है कि बीमारियाँ सूक्ष्मजीवों और हमारी कोशिकाओं के बीच अवांछनीय अंतःक्रिया के कारण होती हैं।
      • लेकिन कोई सूक्ष्म जीव और उसका मेटाबोलाइट 'अच्छा' है या 'बुरा', यह उसके संदर्भ पर निर्भर करता है।
        • उदाहरण के लिये, क्लोस्ट्रीडियम डिफिसाइल नामक बैक्टीरिया की एक प्रजाति अधिकांश मनुष्यों में आजीवन उनके शरीर में बिना किसी रोग संक्रमण के विद्यमान रहती है। यह बैक्टीरिया केवल बुजुर्गों या दुर्बल प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों में समस्या उत्पन्न करता है।
    • फर्मिक्यूट्स-बैक्टेरोइडेट्स अनुपात:
      • एक मिथक यह भी है कि मोटापा बैक्टीरिया के दो फाइला- फर्मिक्यूट्स और बैक्टेरोइडेट्स के अनुपात के कारण होता है। 
      • इस मिथक के साथ समस्या यह है कि इसके प्रभावों पर विश्वास के साथ टिप्पणी करना जटिल है क्योंकि फाइला का स्तर बहुत व्यापक है।
        • फाइलम किसी सजीव में पाया जाने वाला एक समूह है। जीवों को वर्गीकृत करने के अवरोही क्रम में, जीव जगत में विभिन्न संघ शामिल होते हैं; एक फाइलम में कई वर्ग होते हैं, फिर क्रम, परिवार, वंश और अंततः प्रजातियाँ आती हैं।
        • यहाँ तक कि एक जीवाणु की प्रजाति में भी कई उपभेद अलग-अलग व्यवहार करते हैं, जिससे मेज़बान जीव में अलग-अलग नैदानिक लक्षण प्रकट होते हैं।
    • सूक्ष्मजीवों की कार्यक्षमता और अतिरेक: 
      • सभी रोगाणु कार्यात्मक रूप से अनावश्यक नहीं हैं; माइक्रोबायोम के भीतर कई कार्य कुछ प्रजातियों के लिये विशिष्ट होते हैं।
      • कुछ शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि विभिन्न रोगाणु वास्तव में कार्यात्मक रूप से अनावश्यक होते हैं।
      • हालाँकि मानव माइक्रोबायोम में विभिन्न बैक्टीरिया कुछ सामान्य किन्तु महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं, कई कार्य कुछ प्रजातियों के संरक्षण हैं।
    • अनुक्रमण में पूर्वाग्रह:
      • माइक्रोबायोम अनुसंधान में अनुक्रमण पूरी तरह से निष्पक्ष नहीं है; पूर्वाग्रहों को विभिन्न चरणों में प्रस्तुत किया जा सकता है, जो परिणामों और निष्कर्षों को प्रभावित करते हैं।
      • माइक्रोबायोम अनुसंधान में मानकीकृत तरीके:
      • जबकि सभी अध्ययनों में निष्कर्षों की तुलना करने के लिये मानकीकृत विधियाँ महत्त्वपूर्ण हैं, किंतु कोई भी पद्धति परिपूर्ण नहीं है और चुनी गई विधि की सीमाओं को स्वीकार करना आवश्यक है।
    • माइक्रोबायोम का संवर्धन:
      • हालाँकि प्रयोगशाला में मानव माइक्रोबायोम से रोगाणुओं को विकसित करना चुनौतीपूर्ण है, अतीत में ऐसे सफल प्रयास हुए हैं, जो दर्शाता है कि संस्कृति संग्रह में वर्तमान अंतराल पूर्व प्रयासों की कमी के कारण है।

मानव माइक्रोबायोम का शारीरिक कार्यों से जुड़ाव: 

  • पाचन स्वास्थ्य और पोषक तत्त्वों का अवशोषण:
    • आँत माइक्रोबायोम मुख्य रूप से आँतों में, जटिल कार्बोहाइड्रेट, फाइबर और अन्य अपचनीय यौगिकों को तोड़ने में सहायता करता है जिन्हें मानव शरीर अपने आप संसाधित नहीं कर सकता है।
    • सूक्ष्मजीव किण्वन प्रक्रिया में सहायता करते हैं, विटामिन (जैसे, विटामिन बी. और के.) जैसे आवश्यक पोषक तत्त्व उत्पन्न करते हैं जिन्हें शरीर अवशोषित और उपयोग कर सकता है।
  • प्रतिरक्षा प्रणाली विनियमन:
    • माइक्रोबायोम प्रतिरक्षा प्रणाली के साथ निकटता से संपर्क करता है, इसके विकास, प्रशिक्षण और प्रतिक्रियाओं को प्रभावित करता है।
    • एक अच्छी तरह से संतुलित माइक्रोबायोम प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं को विनियमित करने, अनुचित प्रतिक्रियाओं को रोकने तथा संक्रमण से लड़ने की क्षमता को बढ़ाने में सहायता प्रदान करता है।
  • चयापचय स्वास्थ्य एवं वज़न विनियमन:
    • आँत माइक्रोबायोम की संरचना मोटापे के साथ टाइप 2 मधुमेह जैसे चयापचय संबंधी विकारों से जुड़ी हुई है।
    • कुछ रोगाणु भोजन के चयापचय के द्वारा ऊर्जा निष्कर्षण तथा वसा के भंडारण को प्रभावित कर सकते हैं, अंततः इससे शरीर का वज़न और स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
  • मानसिक स्वास्थ्य और मस्तिष्क कार्य:
    • आँत मस्तिष्क अक्ष तंत्रिका, हार्मोनल तथा रोग प्रतिरक्षण मार्गों के माध्यम से आँत और मस्तिष्क के बीच द्विदिशिक संचार का प्रतिनिधित्व करती है।
    • आँत माइक्रोबायोम तंत्रिका संचारक का उत्पादन करके तथा केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के साथ संपर्क स्थापित करके मस्तिष्क के कार्य, व्यवहार एवं चिंता, अवसाद और तनाव जैसी मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों को प्रभावित कर सकती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स: 

प्रश्न. अनुप्रयुक्त जैव-प्रौद्योगिकी में अनुसंधान और विकासात्मक उपलब्धियाँ क्या हैं? ये उपलब्धियाँ समाज के गरीब वर्गों के उत्थान में किस प्रकार मदद करेंगी? (2021)

प्रश्न. जैव-प्रौद्योगिकी किसानों के जीवन स्तर को सुधारने में किस प्रकार मदद कर सकती है? (2019)


शासन व्यवस्था

हेट स्पीच

प्रिलिम्स के लिये:

भाषण की स्वतंत्रता, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RPA), हेट स्पीच

मेन्स के लिये:

संसद और राज्य विधानमंडलों की संरचना, कामकाज, कामकाज़ का संचालन, शक्तियाँ और विशेषाधिकार तथा इनसे उत्पन्न होने वाले मुद्दे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) और नेशनल इलेक्शन वॉच (NEW) के हालिया विश्लेषण से पता चलता है कि भारत में बड़ी संख्या में सांसदों के खिलाफ नफरत फैलाने वाले भाषण के मामले दर्ज हैं।

  • कुल 107 संसद सदस्यों (सांसदों) और विधान सभा सदस्यों (विधायकों) के खिलाफ नफरत फैलाने वाले भाषण के मामले दर्ज हैं।
  • ऐसे निष्कर्ष सत्ता के पदों पर बैठे लोगों के बीच नैतिक आचरण की आवश्यकता को उजागर करते हैं।

टिप्पणी:

  • NEW वर्ष 2002 से शुरू एक राष्ट्रव्यापी अभियान है जिसमें 1200 से अधिक गैर-सरकारी संगठन (NGO) और अन्य नागरिक-नेतृत्व वाले संगठन शामिल हैं जो भारत में चुनाव सुधार, लोकतंत्र एवं शासन में सुधार पर एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं।
  • ADR एक भारतीय गैर सरकारी संगठन (NGO) है जिसकी स्थापना 1999 में नई दिल्ली में हुई थी।

हेट स्पीच

  • परिचय:
    • भारत के विधि आयोग की 267वीं रिपोर्ट में घृणास्पद भाषण को मुख्य रूप से नस्ल, जातीयता, लिंग, यौन अभिविन्यास, धार्मिक विश्वास और इसी तरह के संदर्भ में परिभाषित व्यक्तियों के एक समूह के खिलाफ नफरत को उकसाने वाला बताया गया है।
      • भाषण का संदर्भ यह निर्धारित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है कि यह नफरत फैलाने वाला भाषण है या नहीं।
    • यह नफरत, हिंसा, भेदभाव और असहिष्णुता को उकसाकर लक्षित व्यक्तियों एवं समूहों के साथ-साथ बड़े पैमाने पर समाज को नुकसान पहुंचा सकता है।
  • भारत में हेट स्पीच की कानूनी स्थिति:
    • भाषण की स्वतंत्रता और हेट स्पीच:
      • अनुच्छेद 19(2) इस अधिकार पर उचित प्रतिबंध लगाता है, इसके उपयोग और दुरुपयोग को संतुलित करता है। 
        • संप्रभुता, अखंडता, सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, गरिमा, नैतिकता, न्यायालय की अवमानना, मानहानि अथवा किसी अपराध को भड़काने के हित में प्रतिबंधों की अनुमति है।
    • भारतीय दंड संहिता:
      • IPC की धारा 153A तथा 153B:
        • समूहों के बीच शत्रुता और घृणा उत्पन्न करने वालों को दंडित करना।
      • IPC की धारा 295A: 
        • दंडात्मक कृत्यों से संबंधित है जो जानबूझकर अथवा दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य से एक वर्ग के व्यक्तियों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाते हैं।
      • धारा 505(1) तथा 505(2): 
        • ऐसी सामग्री के प्रकाशन और प्रसार को अपराध मानना जो विभिन्न समूहों के बीच दुर्भावना या घृणा उत्पन्न कर सकती है।
    • जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951:
      • RPA, 1951 की धारा 8: 
        • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अवैध उपयोग के लिये दोषी ठहराए गए व्यक्ति को चुनाव लड़ने से रोकता है।
      • RPA की धारा 123(3A) तथा 125:
        • चुनावों के संदर्भ में नस्ल, धर्म, समुदाय, जाति या भाषा के आधार पर भारत के नागरिकों के विभिन्न वर्गों के बीच शत्रुता अथवा घृणा की भावनाओं को बढ़ावा देने पर रोक लगाता है और साथ ही इसे भ्रष्ट चुनावी प्रथाओं के अंतर्गत शामिल करता है।
    • अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989:
    •  नागरिक अधिकारों का संरक्षण अधिनियम, 1955:
      • यह मौखिक अथवा लिखित शब्दों के माध्यम से या संकेतों एवं दृश्य प्रस्तुतियों द्वारा अथवा अस्पृश्यता को उकसाने एवं प्रोत्साहित करने पर दंड का प्रावधान करता है।

घृणास्पद भाषण से संबंधित न्यायिक मामले: 

  • शाहीन अब्दुल्ला बनाम भारत संघ और अन्य, 2022:
    • भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने कहा कि जब तक विभिन्न धार्मिक समुदाय सद्भाव से रहने के लिये सक्षम नहीं होंगे, तब तक बंधुत्व स्थापित नहीं हो सकता।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने देश में नफरत फैलाने वाले भाषणों की बढ़ती घटनाओं पर चिंता व्यक्त की है और सरकारों एवं पुलिस अधिकारियों को औपचारिक शिकायत दर्ज होने की प्रतीक्षा किये बिना ऐसे मामलों में स्वत: कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।
  • प्रवासी भलाई संगठन बनाम भारत संघ, 2014 मामला:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने नफरत हेट स्पीच को दंडित नहीं किया क्योंकि यह भारत में किसी भी कानून में मौज़ूद नहीं है। इसके बजाय सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायिक अतिरेक के विवाद से बचने के लिये विधि आयोग से इस मुद्दे का समाधान करने का अनुरोध किया।
  • श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ, 2015:
    • संविधान के अनुच्छेद 19(1)(A) द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार से संबंधित सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66 A के बारे में मुद्दे उठाए गए थे, जहाँ न्यायालय ने चर्चा, वकालत तथा उत्तेजना के बीच अंतर किया और माना कि पहले दो अनुच्छेद 19(1) का सार थे।

हेट स्पीच के मुद्दों को प्रभावी ढंग से उजागर करना:

  • हेट स्पीच के परिणामों के बारे में शिक्षा और जागरूकता को बढ़ावा देना, साथ ही व्यक्तियों एवं समाज पर इसके हानिकारक प्रभावों को उजागर करना।
  • मौज़ूदा कानूनों को मज़बूत करना या विशेष रूप से नफरत फैलाने वाले भाषण को लक्षित करने वाले नए कानून स्थापित करना, जो मीडिया साक्षरता, संवाद, जवाबी भाषण, स्व-नियमन एवं नागरिक समाज की भागीदारी जैसे अन्य उपायों से पूरक हों।
    • ये उपाय हेट स्पीच को फैलने से रोकने, इसके आख्यानों को चुनौती देने, वैकल्पिक आवाज़ों को बढ़ावा देने और सहिष्णुता एवं सम्मान की संस्कृति को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं।
  • विधायकों के लिये आचार संहिता स्थापित करना और लागू करना, हेट स्पीच हेतु सांसदों एवं राजनीतिक दलों को ज़िम्मेदार ठहराना तथा इसके प्रसार को हतोत्साहित करने के लिये मीडिया नैतिकता को बढ़ावा देना आवश्यक है।

निष्कर्ष:

सत्ता के पदों पर बैठे लोगों के बीच नैतिक आचरण की तत्काल आवश्यकता है। हेट स्पीच के दूरगामी परिणाम होते हैं, जो सामाजिक सद्भाव और व्यक्तिगत कल्याण के लिये खतरा उत्पन्न करते हैं। इस मुद्दे को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिये, शिक्षा को बढ़ावा देना, कानून को मज़बूत करना और आचार संहिता लागू करना देश में सहिष्णुता, सम्मान एवं ज़िम्मेदार शासन की संस्कृति को बढ़ावा देने में आवश्यक कदम हैं।


भूगोल

हिमनद झील के फटने से सिक्किम में बाढ़

प्रिलिम्स के लिये:

हिमनद झील के फटने से बाढ़, तीस्ता नदी, भारतीय हिमालयी क्षेत्र, जलवायु परिवर्तन, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, हिमस्खलन

मेन्स के लिये:

GOF के लिये ज़िम्मेदार कारक और जोखिम को कम करने के उपाय, महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

सिक्किम ने हाल ही में हिमनद झील के फटने से बाढ़ (Glacial Lake Outburst Flood -GLOF)  का अनुभव किया। राज्य के उत्तर-पश्चिम में 17,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित दक्षिण लोनाक झील, एक हिमनदी झील है, जो लगातार बारिश के परिणामस्वरूप अनियंत्रित होकर बाढ़ का करण बनी।

  • नतीजतन, जल को निचले इलाकों में छोड़ दिया गया, जिससे तीस्ता नदी में बाढ़ आ गई, और सिक्किम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SSDMA) की रिपोर्ट के अनुसार चार ज़िले: मंगन, गंगटोक, पाकयोंग और नामची प्रभावित हुए हैं।
  • इस बाढ़ के कारण सिक्किम में चुंगथांग हाइड्रो-बांध (तीस्ता नदी पर) भी टूट गया, जिससे समग्र स्थिति प्रभावित हुई।

ग्लेशियल झील विस्फोट बाढ़:

  • परिचय: 
    • GLOF (ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड) एक अचानक तथा संभावित रूप से विनाशकारी बाढ़ है जो ग्लेशियर अथवा मोरेन (बर्फ, रेत, कंकड़ और मलबे का प्राकृतिक संचय) के पीछे एकत्रित जल के तेज़ी से छोड़े जाने के कारण आती है।
      • मज़बूत मिट्टी के बांधों के विपरीत, ये मोराइन बांध अचानक विफल हो सकते हैं, जिससे अल्पकाल से लेकर कई दिनों तक बड़ी मात्रा में जल छोड़ा जा सकता है, जिससे निचले क्षेत्रों में विनाशकारी बाढ़ आ सकती है।
    • हिमालय क्षेत्र, अपने ऊँचे पहाड़ों के साथ, विशेष रूप से GLOFs के प्रति संवेदनशील है।
      • बढ़ते वैश्विक तापमान के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन ने सिक्किम हिमालय में ग्लेशियरों के पिघलने की प्रक्रिया को तेज़ कर दिया है।
        • इस क्षेत्र में अब 300 से अधिक हिमनद झीलें हैं, जिनमें से दस को बाढ़ के प्रति संवेदनशील माना गया है।
    •   GLOF कई कारणों से शुरू हो सकता है, जिनमें भूकंप, अत्यधिक भारी वर्षा और बर्फीले हिमस्खलन शामिल हैं।
  • प्रभाव: 
    • GLOF के परिणामस्वरूप विनाशकारी डाउनस्ट्रीम बाढ़ आ सकती है। इनमें कम समय में लाखों घन मीटर पानी छोड़ने की क्षमता है।

दक्षिण लोनाक झील GLOFs के लिये संवेदनशील:

  • उत्तरी सिक्किम में दक्षिण ल्होनक झील समुद्र तल से लगभग 5,200 मीटर ऊपर स्थित है।
    • वैज्ञानिकों ने पहले चेतावनी दी थी कि झील का विस्तार वर्षों से हो रहा है, संभवतः इसके सिर पर बर्फ के पिघलने से।
    • विशेष रूप से वर्ष 2011 में 6.9 तीव्रता वाले भूकंप सहित भूकंपीय गतिविधियों ने क्षेत्र में GLOF जोखिम को बढ़ा दिया। 
  • वर्ष 2016 में सिक्किम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और अन्य हितधारकों ने दक्षिण ल्होनक झील से अतिरिक्त जल निष्काषित करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण योजना शुरू की।
    • दूरदर्शी नवप्रवर्तक सोनम वांगचुक ने इस प्रयास का नेतृत्व किया और झील से जल निष्काषित करने के लिये उच्च घनत्व वाले पॉलीथीन (HDPE) पाइप का उपयोग किया।
    • इस पहल ने सफलतापूर्वक झील के पानी की मात्रा को लगभग 50% कम कर दिया, जिससे जोखिम कुछ हद तक कम हो गया।
  • हालाँकि माना जाता है कि हालिया त्रासदी झील के आसपास के हिमाच्छादित क्षेत्र से उत्पन्न हिमस्खलन के कारण हुई थी।

भारत में हाल की अन्य GLOF घटनाएँ:

  • जून 2013 में उत्तराखंड में असामान्य मात्रा में वर्षा हुई थी, जिससे चोराबाड़ी ग्लेशियर पिघल गया और मंदाकिनी नदी में विस्फोट हुआ। 
  • अगस्त 2014 में लद्दाख के ग्या गाँव में हिमानी झील के आवेग से आई बाढ़ ने तबाही मचाई।
  • फरवरी 2021 में उत्तराखंड के चमोली ज़िले में अचानक आने वाली बाढ़ का कारण GLOFs को माना गया।

GLOFs के जोखिम को कम करने के लिये आवश्यक कदम:

  • हिमनद झील की निगरानी: संवेदनशील क्षेत्रों में हिमनद झीलों की वृद्धि और स्थिरता पर नज़र रखने के लिये एक व्यापक निगरानी प्रणाली की स्थापना करना।
    • उपग्रह इमेजरी, रिमोट सेंसिंग तकनीक और ड्रोन के माध्यम से हिमनद झीलों एवं उनके संबंधित बाँधों में परिवर्तन का नियमित आकलन किया जा सकता है।
  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ: प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों से GLOF की स्थिति में डाउनस्ट्रीम समुदायों को समय पर अलर्ट दिया जा सकता है।
    • इसके अलावा इसे बाढ़ सुरक्षा उपायों के साथ पूरक करने की आवश्यकता है, जैसे कि बाढ़ के जल को आबादी वाले क्षेत्रों से दूर प्रवाहित करने के लिये सुरक्षात्मक अवरोधों, तटबंधों या डायवर्ज़न चैनलों का निर्माण करना।
  • लोक जागरूकता और शिक्षा: GLOF से संबंधित NDMA के दिशानिर्देशों के अनुसार, GLOF के जोखिमों के बारे में लोक जागरूकता बढ़ाने एवं निचले प्रवाह क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों को निकासी प्रक्रियाओं एवं सुरक्षा उपायों के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है।
    • यह सुनिश्चित करने के लिये अभ्यास और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना आवश्यक है कि निवासियों को पता चल सके कि GLOF के मामले में कैसे प्रतिक्रिया देनी है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: भारत हिमालय क्षेत्र में पड़ोसी देशों के साथ सहयोग कर सकता है, क्योंकि GLOFs का सीमा पार प्रभाव हो सकता है।
    • पड़ोसी देशों के साथ GLOFs जोखिम में कमी एवं प्रबंधन के लिये जानकारी और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने से जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।


सामाजिक न्याय

जाति-आधारित भेदभाव संबंधी चिंताएँ

प्रिलिम्स के लिये:

उचित मूल्य की दुकानें, आत्महत्या, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013, नैतिकता, मूल्य

मेन्स के लिये:

शासन और प्रशासन में नैतिकता पर समाज में प्रचलित विभिन्न जाति-आधारित भेदभावपूर्ण प्रथाओं का प्रभाव

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

पाटन ज़िला कलेक्टर का हालिया निर्देश जिसमें कानोसन गाँव में दलित द्वारा संचालित उचित मूल्य की दुकान (FPS) से सभी राशन कार्डों को पड़ोसी गाँव में स्थानांतरित करने का आदेश दिया गया है, महत्त्वपूर्ण नैतिक और संवैधानिक प्रश्न उठाता है।

उचित मूल्य की दुकान (FPS):

  • FPS भारत में सरकार द्वारा संचालित एक विनियमित रिटेल आउटलेट या स्टोर है।
    • उचित मूल्य की दुकानों का प्राथमिक उद्देश्य जनता को आवश्यक वस्तुओं जैसे खाद्यान्न, खाद्य तेल, चीनी और अन्य बुनियादी आवश्यकताओं को रियायती या उचित मूल्य पर वितरित करना है।
    • ये दुकानें आमतौर पर सरकारी कल्याण कार्यक्रमों का हिस्सा हैं जिनका उद्देश्य खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना और कम आय वाले परिवारों पर आर्थिक बोझ को कम करना है।
      • इस प्रणाली में आधार प्रमाणीकरण के माध्यम से लाभार्थियों के सत्यापन के लिये एक मज़बूत तंत्र मौज़ूद है और इसमें इलेक्ट्रॉनिक प्वाइंट ऑफ सेल (e-POS) मशीनों की सहायता से ऑनलाइन लेनदेन की निगरानी करने की सुविधा है।
      • लाभार्थियों को सही मात्रा में राशन मिले यह सुनिश्चित करने के लिये e-PoS उपकरणों को इलेक्ट्रॉनिक वज़न मशीनों के साथ एकीकृत किया गया है।
      • ये FPS और ePOS मशीनें वन नेशन वन राशन कार्ड योजना (ONORC) के कार्यान्वयन एवं निर्बाध कार्यान्वयन में सहायक साबित हुई हैं।

घटना में शामिल विभिन्न नैतिक पहलू:

  • नैतिक मुद्दों:
    • भेदभाव और सामाजिक समानता:
      • इस मामले में मुख्य नैतिक मुद्दा राशन कार्डों के हस्तांतरण के कारण जाति के आधार पर भेदभाव है।
    • कर्तव्य की उपक्षा:
      • राशन कार्डों को स्थानांतरित करने के ज़िला कलेक्टर के निर्देश को कर्तव्य की उपेक्षा के रूप में देखा जा सकता है।
      • सार्वजनिक प्राधिकारियों को सत्यनिष्ठा की नैतिक अवधारणा के अनुसार निष्पक्ष रूप से और सभी नागरिकों के सर्वोत्तम हित में कार्य करना आवश्यक है।
    • मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण:
      •  जाति-आधारित भेदभाव के शिकार व्यक्ति द्वारा अनुभव किया गया मानसिक आघात, जिसके कारण आत्महत्या का प्रयास और शरीर पर चोट लगना एक महत्त्वपूर्ण नैतिक चिंता का विषय है।
      • करुणा, सहानुभूति और व्यक्तियों के कल्याण की रक्षा करने का कर्तव्य महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
    • कानूनी ढाँचे का प्रयोग:
      • भोजन का अधिकार अभियान के संयोजक SC/ST अधिनियम और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम जैसे कानूनी ढाँचे को लागू करने का आह्वान करते हैं।
      • विधि के शासन को कायम रखने और संविधान का सम्मान करने के नैतिक सिद्धांत का पालन किया जाना चाहिये।
    • हाशिये पर रहने वाले समुदायों का सशक्तिकरण:
      • हाशिये पर रहने वाले समुदायों के सशक्तिकरण से संबंधित अनिवार्य सिद्धांतों का उल्लंघन एक प्रमुख नैतिक चिंता का विषय है।
      • निष्पक्षता, समता और गैर-भेदभाव, न्याय एवं समानता के नैतिक सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिये। 
    • नैतिक दायित्व:
      • अपने कार्यों के परिणामों का हल करने में ज़िला कलेक्टर और अभिजात वर्ग के परिवारों का नैतिक दायित्व बढ़ जाता है।

घटना के अन्य परिप्रेक्ष्य:

  • संवैधानिक आदेशों का उल्लंघन:
    • भारतीय संविधान समानता, न्याय और गैर-भेदभाव के मौलिक मूल्यों को स्थापित करता है जैसा कि संविधान के भाग-III (अनुच्छेद 17) में मौलिक अधिकारों के तहत निहित है।
    • जाति के आधार पर की जाने वाली भेदभावपूर्ण कार्रवाइयाँ इन संवैधानिक सिद्धांतों का खंडन करती हैं।
  • वैधानिक आदेशों का उल्लंघन:
    • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (संशोधित 2015) का कार्यान्वयन न करना:
      • अनुसूचित जाति के व्यक्ति के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार SC/ST अधिनियम, 1989 के दायरे में आता है जिसका उद्देश्य हाशिये पर रहने वाले समुदायों के खिलाफ अत्याचारों को रोकना और दंडित करना है।
      • यह जाति-आधारित भेदभाव और हिंसा के खिलाफ सख्त कार्रवाई की आवश्यकता पर ज़ोर देता है।
    • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम:
      • यह अधिनियम गाँवों में FPS के लोकतांत्रिक सशक्तीकरण को कायम रखता है तथा हाशिये पर रहने वाले समुदायों के वितरण नियंत्रण की वकालत करता है।
      • राशन की दुकानों को दूसरे FPS में स्थानांतरित करना इस कानून की भावना का उल्लंघन है।

समान स्थितियों में की जाने वाली कार्रवाईयाँ: 

  • निवारक कदम:
    • जागरूकता स्थापित करना:
      • जाति-कलंक और भेदभाव के मिथकों को तोड़ने के लिये मध्याह्न भोजन योजना के कार्यान्वयन के मॉडल को अपनाया जा सकता है जहाँ गणमान्य लोग पका हुआ भोजन ग्रहण करते हैं।
  • दंडात्मक कार्रवाई:
    • जाति-आधारित भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिये आगे की कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिये।
      • ऐसी गलत गतिविधियों को नौकरशाहों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्टों से जोड़ना ताकि यह भविष्य में एक निवारक के रूप में कार्य करें।
    • लाइसेंस निरस्तीकरण:
      • दलित FPS डीलरों का लाइसेंस रद्द होने से आर्थिक प्रभाव और आजीविका को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
  • स्वत: संज्ञान लेना:
    • भोजन का अधिकार, अभियान उच्च न्यायालयों अथवा सरकार के मुख्यमंत्री कार्यालय से भेदभावपूर्ण राशन कार्ड हस्तांतरण पर स्वत: संज्ञान लेने का आग्रह करता है।
    • कानून के शासन और संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने के लिये ऐसी कार्रवाईयाँ आवश्यक हैं।
  • लोकतांत्रिक सशक्तिकरण तथा समावेशिता:
    • उचित मूल्य दुकानों की भूमिका (FPSs):
      • FPSs हाशिये पर रहने वाले समुदायों के लिये खाद्य सुरक्षा और आवश्यक वस्तुओं तक पहुँच सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
      • समावेशिता और आर्थिक कल्याण को बढ़ावा देने के लिये FPSs का लोकतांत्रिक सशक्तीकरण महत्त्वपूर्ण है।

निष्कर्ष:

  • जाति-आधारित भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार द्वारा दुकान मालिकों को गंभीर हानि पहुंची है, जो न्याय एवं जवाबदेही की तत्काल आवश्यकता पर बल देता है। सामाजिक समानता, न्याय तथा समावेशिता के मूल्यों को कायम रखना न केवल एक कानूनी दायित्व है बल्कि एक लोकतांत्रिक और विविध समाज के लिये एक नैतिक अनिवार्यता भी है।
  • यह घटना भारत में जाति-आधारित भेदभाव को समाप्त करने और संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने में आ रही चुनौतियों की एक स्पष्ट याद दिलाती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न 1. आधुनिक समय में नैतिक मूल्यों का संकट अच्छे जीवन की संकीर्ण धारणा से उत्पन्न होता है। चर्चा कीजिये (2017)

प्रश्न 2. लोक प्रशासन में नैतिक दुविधाओं को हल करने की प्रक्रिया की व्याख्या कीजिये। (2018)


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2