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डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

23वाँ भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन

प्रीलिम्स के लिये: मुक्त व्यापार समझौता, यूरेशियन आर्थिक संघ, अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC), चेन्नई-व्लादिवोस्तोक समुद्री मार्ग,  उत्तरी समुद्री मार्ग (NSR)

मेन्स के लिये: भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी, सुदूर पूर्व और आर्कटिक में भारत की भागीदारी,

स्रोत: AIR

चर्चा में क्यों? 

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 23वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिये भारत आए, जिसके दौरान दोनों देशों ने रक्षा, व्यापार, अर्थव्यवस्था, संस्कृति, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा के क्षेत्र में समझौतों पर हस्ताक्षर किये, जिससे उनकी दीर्घकालिक भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी की पुष्टि हुई।

23वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन के मुख्य परिणाम क्या हैं ?

  • सामरिक साझेदारी को मज़बूत करना: भारत और रूस ने भारत-रूस सामरिक साझेदारी घोषणा (2000) की 25वीं वर्षगाँठ पर अपनी विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त सामरिक साझेदारी की पुष्टि की तथा रक्षा, स्वास्थ्य सेवा, व्यापार और संस्कृति के क्षेत्र में 16 समझौतों पर हस्ताक्षर किये। 
    • भारत और रूस ने यूरेशियन आर्थिक संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को तेजी से आगे बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की, रणनीतिक आर्थिक सहयोग का विस्तार करने के लिये कार्यक्रम 2030 को अपनाया और वर्ष 2030 तक 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार का लक्ष्य निर्धारित किया। 
  • दोनों पक्षों ने भुगतान प्रणालियों पर सहयोग को मज़बूत करने, लंबित निवेश मुद्दों को सुलझाने पर सहमति व्यक्त की तथा ऊर्जा को अपनी साझेदारी के प्रमुख स्तंभ के रूप में पुनः स्थापित किया।
  • कनेक्टिविटी और परिवहन पहल: भारत और रूस ने अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC), चेन्नई-व्लादिवोस्तोक समुद्री मार्ग और उत्तरी समुद्री मार्ग (NSR) सहित प्रमुख कनेक्टिविटी गलियारों पर सहयोग को गहरा करने के साथ-साथ ध्रुवीय-जल नेविगेशन के लिये विशेषज्ञों को प्रशिक्षण देने पर सहमति व्यक्त की। 
  • दोनों पक्षों ने प्रौद्योगिकी के आदान-प्रदान को बढ़ावा देने तथा परिवहन संपर्कों को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से अपने रेलवे के बीच जारी सहयोग पर भी विशेष ज़ोर दिया।
  • रूसी सुदूर पूर्व और आर्कटिक में सहयोग:  भारत और रूस ने 2024–2029 सहयोग ढाँचे के तहत ऊर्जा, खनन, कृषि और समुद्री परिवहन जैसे क्षेत्रों में सुदूर पूर्व और आर्कटिक क्षेत्र में व्यापार तथा निवेश सहयोग को और मज़बूत करने पर सहमति जताई।
    • दोनों पक्षों ने उत्तरी समुद्री मार्ग (NSR) पर बढ़ते सहयोग को रेखांकित किया और नियमित आर्कटिक परामर्श जारी रखने की पुष्टि की, जिसमें भारत आर्कटिक परिषद में पर्यवेक्षक के रूप में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने के लिये तत्पर है।
  • असैन्य परमाणु एवं अंतरिक्ष सहयोग:  भारत और रूस ने परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की, जिसमें पूर्ण ईंधन चक्र, कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिये समर्थन तथा भविष्य में उच्च प्रौद्योगिकी अनुप्रयोगों को शामिल किया जाएगा, जो वर्ष 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु क्षमता तक पहुँचने के भारत के लक्ष्य के अनुरूप है।
    • दोनों पक्षों ने शांतिपूर्ण अंतरिक्ष सहयोग के अंतर्गत सुदृढ़ हुई इसरो–रोस्कोस्मोस साझेदारी का स्वागत किया, जिसमें मानव अंतरिक्ष उड़ान, उपग्रह नेविगेशन और ग्रह अन्वेषण जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
  • सैन्य सहयोग: रक्षा संबंधों की पुष्टि की गई तथा साझेदारी अब उन्नत सैन्य प्रणालियों के संयुक्त अनुसंधान एवं विकास, सह-विकास और सह-उत्पादन की ओर बढ़ रही है। 
  • दोनों पक्षों ने सैन्य एवं सैन्य-तकनीकी सहयोग पर भारत–रूस अंतर-सरकारी आयोग (IRIGC-M&MTC) के परिणामों का स्वागत किया और मित्र देशों को निर्यात सहित रूसी मूल के प्लेटफॉर्मों के लिये स्पेयर पार्ट्स तथा उपकरणों के ‘मेक इन इंडिया’ अधीन विनिर्माण को प्रोत्साहित करने पर सहमति जताई।
  • बहुपक्षीय सहयोग: रूस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिये भारत की मांग का समर्थन किया तथा वर्ष 2026 में भारत की ब्रिक्स अध्यक्षता के लिये पूर्ण समर्थन का आश्वासन दिया।
  • आतंकवाद विरोधी प्रतिबद्धताएँ:  दोनों पक्षों ने पहलगाम (2025) और क्रोकस सिटी हॉल (2024) में हाल के हमलों की निंदा की, सभी संयुक्त राष्ट्र-सूचीबद्ध आतंकवादी समूहों के खिलाफ कार्रवाई का आह्वान किया तथा अंतर्राष्ट्रीय कानून में निहित शून्य-सहिष्णुता दृष्टिकोण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। 
    • उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय को अंतिम रूप देने का समर्थन किया तथा संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के सख्त और प्रभावी कार्यान्वयन पर ज़ोर दिया।

भारत और रूस के बीच सहयोग के प्रमुख क्षेत्र कौन से हैं?

  • आर्थिक सहयोग: वित्त वर्ष 2024-25 में द्विपक्षीय व्यापार 68.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जो मुख्य रूप से भारत द्वारा ऊर्जा आयात द्वारा संचालित होगा।
  • दोनों देशों का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार तथा वर्ष 2025 तक 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर का पारस्परिक निवेश हासिल करना है। 
    • भारतीय निर्यात मुख्य रूप से फार्मास्यूटिकल्स, रसायन, लोहा और इस्पात तथा समुद्री उत्पाद हैं। 
    • रूस से भारत के आयात में मुख्य रूप से कच्चा तेल एवं पेट्रोलियम उत्पाद, सूरजमुखी तेल, उर्वरक, कोकिंग कोयला तथा कीमती पत्थर और धातुएँ शामिल हैं।
  • राजनयिक सहयोग: भारत और रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन, व्यापार-आर्थिक-वैज्ञानिक-तकनीकी-सांस्कृतिक सहयोग पर अंतर-सरकारी आयोग (IRIGC-TEC), IRIGC-M&MTC तथा 2+2 संवाद जैसे तंत्रों के माध्यम से निरंतर और सघन राजनयिक संपर्क बनाए रखते हैं, जिससे उच्च-स्तरीय समन्वय लगातार सुनिश्चित होता है।
    • दोनों देश G-20, ब्रिक्स और SCO जैसे बहुपक्षीय मंचों पर भी मिलकर कार्य करते हैं, जिससे उनकी वैश्विक साझेदारी मज़बूत होती है।
  • रक्षा सहयोग: यह साझेदारी की आधारशिला है, जो वर्ष 2021-2031 सैन्य-तकनीकी सहयोग समझौते द्वारा निर्देशित है।
    • यह संबंध अब केवल क्रेता–विक्रेता मॉडल तक सीमित न रहकर ब्रह्मोस, SU-30MKI, T-90 टैंक तथा AK-203 राइफल जैसी प्रणालियों के संयुक्त विकास और उत्पादन के स्तर तक विकसित हो चुका है।
    • इंद्रा और जैपद-2025 जैसे नियमित सैन्य अभ्यास अंतर-संचालन क्षमता को सुदृढ़ करते हैं, जबकि पनडुब्बी, फ्रिगेट और S-400 प्रणाली जैसे प्रमुख प्लेटफॉर्म दोनों देशों के बीच निरंतर विश्वास को प्रतिबिंबित करते हैं।

हथियार प्रणाली

विवरण

ब्रह्मोस मिसाइल

ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल प्रणाली जिसे भारत की DRDO और रूस की NPO Mashinostroyeniya (NPOM) ने संयुक्त रूप से विकसित किया, जो भारत–रूस की मिसाइल तकनीक सहयोग का प्रमुख प्रतीक बनी हुई है।

सुखोई Su-30MKI

भारत में हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा बहु-भूमिका वाले फाइटर विमान का लाइसेंस के तहत उत्पादन।

T-90 टैंक

भारत में T-90S भिश्म मुख्य युद्धक टैंकों का लाइसेंस के तहत उत्पादन।

S-400 ट्रायम्फ

भारत द्वारा उन्नत लंबी दूरी की सतह से वायु मिसाइल रक्षा प्रणाली (SAM) की खरीद। यह संयुक्त रूप से उत्पादित नहीं है, बल्कि खरीदी गई है।

INS विक्रमादित्य

पूर्व रूसी एयरक्राफ्ट कैरियर एडमिरल गॉर्शकोव का नवीनीकरण और भारतीय नौसेना को हस्तांतरण। भारत की अधिकांश पारंपरिक और परमाणु-संचालित पनडुब्बियाँ रूसी मूल की हैं।

AK-203 राइफल

इंडो-रशिया राइफल्स प्राइवेट लिमिटेड (IRRPL) के तहत कोरवा, भारत में "मेक इन इंडिया" पहल के तहत उत्पादन।

  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी: गगनयान प्रशिक्षण पर भारत-रूस सहयोग गहन अंतरिक्ष साझेदारी को दर्शाता है, जबकि कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र विदेशी समर्थन के साथ भारत की सबसे बड़ी असैन्य परमाणु परियोजना बनी हुई है। 
    • वर्ष 2021 में हस्ताक्षरित विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार रोडमैप का उद्देश्य दोनों देशों के बीच नवाचार और व्यावसायीकरण को बढ़ावा देना है।
  • शिक्षा एवं सांस्कृतिक सहयोग: दोनों देशों के बीच शैक्षणिक संबंध सुदृढ़ हैं, जहाँ लगभग 20,000 भारतीय छात्र, मुख्यतः चिकित्सा विश्वविद्यालयों में, रूस में अध्ययन कर रहे हैं।
    • मॉस्को में भारत उत्सव 2025 और कई रूसी शहरों में आयोजित भारतीय फिल्म महोत्सव जैसे बड़े पैमाने के आयोजन भारत के प्रति बढ़ते सांस्कृतिक उत्साह को दर्शाते हैं।

RUSSIA

भारत–रूस संबंधों के समक्ष चुनौतियाँ और समाधान:

चुनौतियाँ

समाधान

यूक्रेन युद्ध के कारण S-400 प्रणाली और अकुला पनडुब्बियों की आपूर्ति में देरी, जिससे भारत की रक्षा तैयारी प्रभावित हो रही है।

‘मेक इन इंडिया’, ‘आत्मनिर्भर भारत’ और iDEX के माध्यम से स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देना। IRIGC-M&MTC के तहत संयुक्त स्पेयर सपोर्ट का विस्तार करना।

वित्त वर्ष 2024–25 में भारत का रूस से आयात 63 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक है, जबकि निर्यात 5 अरब डॉलर से भी कम है, जिससे व्यापार संरचना असंतुलित है।

भारत–EAEU मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की वार्ताओं के माध्यम से बाज़ार तक बेहतर पहुँच सुनिश्चित करना। ट्रेड प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया के माध्यम से मेडिसिन, आईटी और इंजीनियरिंग निर्यात को बढ़ावा देना।

बीजिंग पर मॉस्को की बढ़ती निर्भरता, भारत–चीन तनाव के संदर्भ में उसकी तटस्थ भूमिका को सीमित करती है।

क्वाड, यूरोप और मध्य एशिया के साथ संबंधों को मज़बूत कर रूस की घटती रणनीतिक उपयोगिता की भरपाई करना।

प्रतिबंधों के कारण सामान्य बैंकिंग चैनल अवरुद्ध हो गए हैं, जिससे बड़ी राशि का भुगतान नहीं हो पा रहा है।

स्पेशल रूपी वोस्ट्रो अकाउं, RBI की INR निपटान व्यवस्था तथा गैर-प्रतिबंधित बैंकों के माध्यम से एस्क्रो प्रणालियों का उपयोग कर वैकल्पिक भुगतान मार्ग विकसित करना।

रूसी सेना में भारतीय नागरिकों की भर्ती, अक्सर फर्जी नौकरी प्रस्तावों के माध्यम से, के परिणामस्वरूप भारत में जनहानि हुई है तथा व्यापक जनाक्रोश फैला है।

MADAD पोर्टल, eMigrate प्रणाली तथा रूस के साथ वाणिज्य दूतावास संवाद मंचों के अंतर्गत निगरानीयुक्त प्रत्यावर्तन के लिये द्विपक्षीय तंत्रों के माध्यम से प्रवासी सुरक्षा को सुदृढ़ करना।

निष्कर्ष:

भारत–रूस साझेदारी स्थिर बनी हुई है, जिसमें व्यापार में वृद्धि हो रही है और रक्षा क्षेत्र से आगे सहयोग के विस्तार के प्रयास किए जा रहे हैं। विशेष रूप से रूसी सुदूर पूर्व के साथ नए निर्यात अवसरों और गहरे क्षेत्रीय जुड़ाव की संभावनाओं पर काम किया जा रहा है। INSTC और चेन्नई–व्लादिवोस्तोक कॉरिडोर जैसी संपर्क परियोजनाएँ रूस के पूर्वोन्मुखी रुख और भारत के आत्मनिर्भर भारत के उद्देश्यों को मजबूती प्रदान करती हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्र. आर्कटिक और रूसी सुदूर पूर्व (रशियन फार ईस्ट) के साथ भारत की संलग्नता एक आर्थिक आवश्यकता है। अवसरों और बाधाओं की आलोचनात्मक चर्चा कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. भारत-रूस आर्थिक सहयोग का मार्गदर्शन कौन-सा तंत्र करता है?
व्यापार, आर्थिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक सहयोग पर भारत-रूस अंतर-सरकारी आयोग (IRIGC-TEC)।

2. 23वें भारत-रूस शिखर सम्मेलन में किन प्रमुख संपर्क गलियारों पर प्रकाश डाला गया?
आईएनएसटीसी, चेन्नई-व्लादिवोस्तोक समुद्री गलियारा और उत्तरी समुद्री मार्ग।

3. कौन-सी परमाणु परियोजना भारत-रूस असैन्य परमाणु सहयोग का प्रतिनिधित्व करती है?
तमिलनाडु में कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र।

4. कौन-से रक्षा प्लेटफॉर्म भारत-रूस संयुक्त विकास या लाइसेंस प्राप्त उत्पादन को दर्शाते हैं?
ब्रह्मोस मिसाइल, Su-30MKI विमान, T-90 टैंक और AK-203 राइफलें।

सारांश

  • 23वें भारत-रूस शिखर सम्मेलन ने रक्षा, व्यापार, ऊर्जा, परमाणु और अंतरिक्ष सहयोग में नए समझौतों के माध्यम से अपनी विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत किया।
  • दोनों पक्षों ने वर्ष 2030 तक 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार लक्ष्य निर्धारित किया तथा INSTC, चेन्नई-व्लादिवोस्तोक कॉरिडोर और उत्तरी समुद्री मार्ग जैसी प्रमुख संपर्क परियोजनाओं को आगे बढ़ाया।
  • रूसी सुदूर पूर्व, आर्कटिक, डिजिटल भुगतान और कुडनकुलम जैसी असैन्य परमाणु परियोजनाओं में सहयोग का विस्तार हुआ।
  • चर्चा में रक्षा आपूर्ति में देरी, व्यापार असंतुलन, भुगतान संबंधी मुद्दे और रूसी सेना में भारतीय नागरिकों से संबंधित चिंताओं सहित प्रमुख चुनौतियों पर भी चर्चा की गई।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रीलिम्स

प्रश्न. हाल ही में भारत ने निम्नलिखित में से किस देश के साथ 'परमाणु क्षेत्र में सहयोग की प्राथमिकता और कार्यान्वयन के लिये कार्ययोजना' नामक एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं? (2019)

(a) जापान
(b) रूस
(c) यूनाइटेड किंगडम
(d) संयुक्त राज्य अमेरिका

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न. भारत-रूस रक्षा समझौते पर भारत-अमेरिका रक्षा समझौते का क्या महत्त्व है? हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता के संदर्भ में चर्चा कीजिये। (2020)


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय रुपये का मूल्यह्रास

प्रिलिम्स के लिये: भारतीय रुपये का मूल्यह्रास, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक, चालू खाता घाटा, मुद्रा अवमूल्यन, विशेष रुपए वोस्ट्रो खाते

मुख्य परीक्षा के लिये: विकासशील अर्थव्यवस्था में मुद्रा अवमूल्यन के कारण और इसके मैक्रोइकॉनॉमिक प्रभाव, रुपये आधारित निपटान तंत्र की प्रभावशीलता

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

विदेशी फंड निकासी और भारत-US व्यापार समझौते की अनिश्चितता के कारण भारतीय रुपये का मूल्य 90.43 प्रति अमेरिकी डॉलर के रिकॉर्ड निचले स्तर तक गिर गया। वर्ष 2025 में अब तक 5% की गिरावट के साथ रुपये को एशिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा बन गया है।

रुपये का अवमूल्यन क्या है?

  • परिचय: रुपये का अवमूल्यन उस स्थिति को कहते हैं जब भारतीय रुपया (INR) प्रमुख विदेशी मुद्राओं, विशेष रूप से अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने मूल्य में गिरावट करता है।

रुपये के मूल्यह्रास का प्रभाव:

  • सकारात्मक:
    • निर्यात को बढ़ावा: भारतीय वस्तुएँ विदेशों में सस्ती हो जाती हैं; यह IT, फार्मा और वस्त्र जैसे क्षेत्रों में मदद करता है।
    • प्रेषण का अधिक मूल्य: NRI को भेजे गए प्रति डॉलर पर अधिक रुपये मिलते हैं, जिससे प्रेषण प्रवाह में वृद्धि होती है।
    • घरेलू उत्पादन को बढ़ावा: महंगे आयात स्थानीय निर्माण को प्रोत्साहित कर सकते हैं।
  • नकारात्मक:
    • आयातित मुद्रास्फीति: कच्चा तेल, इलेक्ट्रॉनिक्स, उर्वरक जैसी आवश्यक आयातित वस्तुएँ महँगी हो जाती हैं, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ती है।
    • ऊँची कर्ज सेवा लागत: विदेशी मुद्रा में ऋण रखने वाले उधारकर्त्ताओं को समान डॉलर कर्ज चुकाने के लिये अधिक रुपये देने पड़ते हैं।
    • व्यापार और चालू खाता घाटे में वृद्धि: महंगे आयात बिल के कारण घाटा बढ़ जाता है, भले ही आयात की मात्रा बढ़ी न हो।
    • पूंजी पलायन का जोखिम: लगातार मूल्यह्रास विदेशी निवेशकों का विश्वास कमज़ोर करता है, जिससे शेयर और ऋण बाज़ारों से और अधिक निकासी होती है।
    • उपभोक्ता की क्रय शक्ति में कमी: महंगे आयात घरेलू मांग को कमज़ोर करते हैं।

मुद्रा का अवमूल्यन बनाम मूल्यह्रास

Devaluation vs Depreciation of Currency

अवमूल्यन

मूल्यह्रास

सरकार/RBI द्वारा मुद्रा के मूल्य में जानबूझकर की गई गिरावट

मांग और आपूर्ति की ताकतों के कारण बाज़ार द्वारा मुद्रा के मूल्य में गिरावट।

मुद्रा अवमूल्यन केवल स्थिर या पेग्ड विनिमय दर प्रणाली के अंतर्गत होता है।

मूल्यह्रास आमतौर पर तिरती या प्रबंधित-तिरती विनिमय दर प्रणाली (जैसे भारत की) के तहत होता है।

मुद्रा अवमूल्यन का उद्देश्य निर्यात बढ़ाना, व्यापार घाटा कम करना या आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहित करना होता है।

अवमूल्यन के कारणों में FPI निकासी, उच्च आयात, मुद्रास्फीति, बढ़ता हुआ चालू खाता घाटा (CAD), वैश्विक झटके आदि शामिल हैं।

रुपये के मूल्यह्रास के कारण कौन से हैं?

  • लगातार FPI निकासी: विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) ने जनवरी 2025 से अब तक 1.48 लाख करोड़ रुपये से अधिक की निकासी की है और अपने फंड को उन बाज़ारों में ले गए हैं जो बेहतर रिटर्न प्रदान करते हैं।
    • साथ ही वैश्विक भू-राजनीतिक जोखिमों के कारण अमेरिकी डॉलर की सुरक्षित निवेश (सेफ-हेवेन) संपत्ति के रूप में मांग बढ़ गई है।
  • US–भारत व्यापार समझौते की अनिश्चितता: व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने में देरी के कारण भविष्य के शुल्क और निर्यात प्रतिस्पर्द्धा को लेकर संदेह उत्पन्न हुई है, जिससे भारत के बाहरी क्षेत्र में विश्वास कमज़ोर हुआ है और रुपये पर दबाव बढ़ गया है।
  • आयातकों द्वारा बढ़ी हुई डॉलर की मांग: विशेष रूप से सोना, इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी के बढ़ते आयात के कारण आयातकों को अधिक डॉलर खरीदने पड़े, जिससे डॉलर की मांग बढ़ी और रुपये के अवमूल्यन में योगदान हुआ।
  • भारत का व्यापार घाटा: अक्तूबर 2025 में वस्तु निर्यात में 11.8% की गिरावट आई, जबकि आयात में 16.6% की वृद्धि हुई।
    • निर्यात कमज़ोर होने और आयात में तेज़ी से वृद्धि होने के कारण व्यापार घाटा बढ़ गया है, जिससे रुपये पर दबाव पड़ा है।
    • ब्रेंट क्रूड की उच्च कीमतें भारत के आयात बिल को बढ़ा देती हैं, जिससे व्यापार घाटा और बढ़ जाता है तथा रुपये को कमज़ोर करती है।
  • उच्च सोना आयात: अक्तूबर 2025 में सोने के आयात में लगभग 200% की वृद्धि हुई। घरेलू सोने की उच्च कीमतों ने आयात बिल को और बढ़ा दिया, हालाँकि बढ़ती कीमतों ने सोने के भंडार का मूल्य बढ़ाया, फिर भी कुल नुकसान को पूरा करने के लिये यह पर्याप्त नहीं था।
    • इन उच्च सोना आयातों ने चालू खाता घाटा बढ़ा दिया है तथा रुपये के मूल्यह्रास पर दबाव को और बढ़ा दिया है।

भारतीय रुपये को कैसे मज़बूत किया जा सकता है?

  • रुपया-आधारित व्यापार निपटान को बढ़ावा देना: डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिये अधिक देशों के साथ विशेष वोस्ट्रो रुपये खाते (SVRAs) का विस्तार करना।
    • स्थानीय मुद्रा निपटान (LCS) समझौतों को प्रोत्साहित करना, खासकर एशिया, अफ्रीका और गल्फ के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों के साथ।
    • रुपये-आधारित चालान और भुगतान के लिये द्विपक्षीय समझौते (MoUs) बढ़ाएँ, जिससे व्यापार में अमेरिकी डॉलर की मांग कम हो सके।
  • वैश्विक रुपये के बाज़ार को मज़बूत करना: ऐसा वैश्विक INR फॉरेक्स बाज़ार विकसित करना जिससे अंतर्राष्ट्रीय बैंक 24 घंटे रुपये का लेन-देन कर सकें।
    • भारतीय सरकारी प्रतिभूतियों (G-secs) को प्रमुख वैश्विक बॉण्ड सूचियों में शामिल करने का समर्थन करना, जिससे दीर्घकालिक निष्क्रिय विदेशी प्रवाह आकर्षित हों।
    • FPI और वैश्विक कस्टोडियंस के लिये KYC, दस्तावेज़ और ऑनबोर्डिंग नियमों को सरल बनाना। भारतीय बैंकों को गैर-निवासियों को रुपये में ऋण देने में सक्षम बनाना ताकि ऑफशोर रुपये का उपयोग बढ़े। वैश्विक स्तर पर रुपये के फंड जुटाने के लिये मसाला बॉण्ड को बढ़ावा दें।
  • बाहरी क्षेत्र की स्थिरता मज़बूत करना: उतार-चढ़ाव के दौरान तरलता समर्थन सुनिश्चित करने के लिये मुद्रा स्वैप समझौतों का विस्तार करना।
    • मज़बूत विदेशी मुद्रा भंडार बनाए रखना और अव्यवस्थित उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करने के लिये RBI द्वारा सावधानीपूर्वक हस्तक्षेप करना।
    • केवल अवमूल्यन पर निर्भर रहने के बजाय संरचनात्मक सुधारों के माध्यम से निर्यात प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना।
  • रुपये की वैश्विक स्वीकृति को बढ़ाना: UPI अंतर्राष्ट्रीय विस्तार को जारी रखना, जिससे रुपये से जुड़े डिजिटल भुगतान व्यापक रूप से उपलब्ध हों।
  • मज़बूत रुपये के समर्थन हेतु घरेलू सुधार: निर्यात बाज़ारों में विविधता लाकर और उच्च-मूल्य वाले निर्माण को बढ़ावा देकर व्यापार घाटा कम करना।
    • सोने के आयात को सोना मुद्रीकरण और डिजिटल गोल्ड विकल्प जैसी नीतियों के माध्यम से सीमित करना। स्थिर मुद्रास्फीति और सतर्क राजकोषीय नीति बनाए रखना ताकि स्थिर पूंजी प्रवाह आकर्षित हो सके।

निष्कर्ष

रुपये के मूल्य में गिरावट कमज़ोर निर्यात, उच्च आयात और लगातार पूंजी निर्गम के कारण हुई है। इसे सुदृढ़ करने के लिये निर्यात प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाना तथा आयात पर निर्भरता कम करना आवश्यक है। स्थिर मैक्रोइकॉनॉमिक नीतियाँ तथा व्यापक रूप से रुपये-आधारित व्यापार आत्मविश्वास बहाल करने में सहायक होंगे।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. हाल ही में रुपये के अवमूल्यन के मुख्य कारणों का विश्लेषण करें और इसके भारत पर मैक्रो‑आर्थिक प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. रुपये के रिकॉर्ड‑नीचे स्तर तक गिरने का कारण क्या था?
यह गिरावट भारी विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) बहिर्वाह, भारत‑अमेरिका व्यापार समझौते को लेकर अनिश्चितता और सुरक्षित परिसंपत्ति के रूप में अमेरिकी डॉलर की मज़बूत वैश्विक मांग के कारण हुई थी।

2. भारत व्यापार में अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिये कौन-सा तंत्र उपयोग कर रहा है?
भारत INR-आधारित चालान और भुगतानों की अनुमति देने के लिये विशेष वोस्ट्रो रुपये खाते (SVRA) और स्थानीय मुद्रा निपटान समझौतों का विस्तार कर रहा है

3. भारतीय सरकारी बॉण्ड (G-secs) को वैश्विक बॉण्ड सूचकांकों में शामिल करने से रुपये को कैसे मदद मिल सकती है?
यह वैश्विक फंडों से लगातार निष्क्रिय निवेश प्रवाह लाता है, जिससे विदेशी मुद्रा तरलता में सुधार होता है और रुपये की स्थिरता को समर्थन मिलता है।

4. भारत के संदर्भ में अवमूल्यन और मूल्यह्रास के बीच मुख्य अंतर क्या है?
भारत में मूल्यह्रास बाज़ार के कारण होता है, क्योंकि यह एक निश्चित विनिमय दर के बजाय एक तिरती/प्रबंधित तिरती विनिमय दर प्रणाली का पालन करता है।

सारांश

  • रुपया भारी FPI बहिर्वाह, भारत–अमेरिका व्यापार समझौते को लेकर अनिश्चितता और वैश्विक भू-राजनीतिक जोखिमों के बीच बढ़ती डॉलर मांग के कारण 90.43 रुपये प्रति डॉलर के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुँच गया।
  • घटते निर्यात, बढ़ते आयात, ऊँची सोने की आवक और महंगे कच्चे तेल से बढ़ते व्यापार घाटे ने रुपये पर भारी दबाव डाला है।
  • रुपये के मूल्यह्रास का मिश्रित  प्रभाव: यह निर्यात और प्रेषण को बढ़ाती है, लेकिन आयातित मुद्रास्फीति, कर्ज चुकाने की लागत और पूँजी के बाहर जाने के जोखिम को बढ़ा देती है।
  • रुपए को सुदृढ़ करने के लिये INR-आधारित व्यापार निपटान का विस्तार, पूँजी प्रवाह में सुधार, निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाना, सोने के आयात को नियंत्रित करना और मज़बूत मैक्रोइकॉनॉमिक स्थिरता बनाए रखना आवश्यक है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स

प्रश्न 1. भारतीय रुपए की गिरावट रोकने के लिये निम्नलिखित में से कौन-सा एक सरकार/भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किया जाने वाला सर्वाधिक संभावित उपाय नहीं है?  (2019)

(a) गैर-ज़रूरी वस्तुओं के आयात पर नियंत्रण और निर्यात को प्रोत्साहन

(b) भारतीय उधारकर्त्ताओं को रुपए मूल्यवर्ग के मसाला बॉण्ड जारी करने हेतु प्रोत्साहित करना

(c) विदेशी वाणिज्यिक उधारी से संबंधित दशाओं को आसान बनाना

(d) एक प्रसरणशील मौद्रिक नीति का अनुसरण करना

उत्तर: (d)


प्रश्न 2. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. किसी मुद्रा के अवमूल्यन का प्रभाव यह होता है कि वह आवश्यक रूप से:
  2. विदेशी बाज़ारों में घरेलू निर्यात की प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार करता है। 
  3. घरेलू मुद्रा के विदेशी मूल्य को बढ़ाता है। 
  4. व्यापार संतुलन में सुधार करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

   (a) केवल 1

  (b) केवल 1 और 2

  (c) केवल 3

  (d) केवल 2 और 3

उत्तर: (a) 


मेन्स

प्रश्न. विश्व व्यापार में संरक्षणवाद और मुद्रा चालबाज़ियो की हालिया परिघटनाएँ भारत की समष्टि-आर्थिक स्थिरता को किस प्रकार प्रभावित करेंगी? (2018)


मुख्य परीक्षा

दिव्यांगजनों के सशक्तीकरण के लिये भारत का रोडमैप

चर्चा में क्यों?

अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस (3 दिसंबर) हमें एक समावेशी समाज की आवश्यकता की याद दिलाता है, भारत दिव्यांगजनों (PwDs) के लिये समावेशन की दिशा में प्रगति कर रहा है, जिसे प्रमुख कानूनी और नीतिगत सुधारों, सरकारी पहलों और पर्पल फेस्ट 2025 जैसी महत्त्वपूर्ण घटनाओं द्वारा प्रेरित किया जा रहा है।

भारत में दिव्यांगजनों के अधिकारों के लिये प्रमुख कानूनी ढाँचा और सरकारी पहल क्या हैं?

कानूनी ढाँचा: 

  • दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016: यह आधारशिला कानून है, यह दिव्यांगता की 21 श्रेणियों को मान्यता देता है, शिक्षा और रोज़गार में आरक्षण को अनिवार्य करता है, तथा कानूनी रूप से सरकारों को सुलभता और पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये बाध्य करता है।
    • इसके अलावा, भारत ने वर्ष 2007 में दिव्यांगजनों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCRPD) का अनुसमर्थन किया तथा अपने कानूनों और नीतियों को इन सिद्धांतों के अनुरूप बनाने की प्रतिबद्धता व्यक्त की।
  • राष्ट्रीय न्यास अधिनियम, 1999: ऑटिज्म, सेरेब्रल पाल्सी, मानसिक मंदता और बहु दिव्यांगजन वाले व्यक्तियों के कल्याण पर केंद्रित है।
  • भारतीय पुनर्वास परिषद (RCI) अधिनियम, 1992: पुनर्वास प्रशिक्षण कार्यक्रमों का विनियमन और निगरानी करता है। योग्य पेशेवरों का केंद्रीय पुनर्वास रजिस्टर रखता है।
  • दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के कार्यान्वयन हेतु योजना (SIPDA): दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम की परियोजनाओं के कार्यान्वयन हेतु वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करती है। यह सुगम्यता, जागरूकता, समावेशन और कौशल विकास को बढ़ावा देती है।

सरकारी पहल

  • सुगम्य भारत अभियान (सुगम्य भारत अभियान): इसका उद्देश्य 3 प्रमुख क्षेत्रों- निर्मित बुनियादी ढाँचे, परिवहन प्रणालियों और ICT- में सार्वभौमिक पहुँच प्राप्त करना है, ताकि सभी के लिये समान पहुँच और भागीदारी सुनिश्चित हो सके।
  • दिव्यांगजन सहायता (ADIP) योजना: दिव्यांग व्यक्तियों के भौतिक और आर्थिक पुनर्वास का समर्थन करने के लिये आधुनिक सहायक उपकरण, यंत्र और कॉक्लियर इम्प्लांट सर्जरी प्रदान करती है।
  • दिव्यांगजनों के लिये विशिष्ट पहचान पत्र (UDID): लाभों के वितरण को आसान बनाने और डुप्लिकेट रिकॉर्ड को समाप्त करने के लिये एक राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार किया जाएगा और प्रत्येक दिव्यांग व्यक्ति को विशिष्ट पहचान पत्र प्रदान किया जाएगा।
  • दीनदयाल दिव्यांगजन पुनर्वास योजना (DDRS): दिव्यांगजनों की शिक्षा, प्रशिक्षण और पुनर्वास के लिये स्वैच्छिक संगठनों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
    • PRASHAST ऐप छात्रों में प्रारंभिक रूप से विकलांगता की पहचान के लिये स्क्रीनिंग करता है।
  • राष्ट्रीय दिव्यांगजन वित्त एवं विकास निगम (NDFDC): स्वरोज़गार के लिये दिव्यांगजन स्वावलंबन योजना जैसी योजनाओं के माध्यम से रियायती ऋण के माध्यम से आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा देता है।
  • पीएम-दक्ष-दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग पोर्टल: दो मॉड्यूल वाला एक वन-स्टॉप डिजिटल प्लेटफॉर्म: कौशल प्रशिक्षण के लिये 'दिव्यांगजन कौशल विकास' और साझेदार कंपनियों से नौकरी के अवसरों के साथ दिव्यांगजनों को जोड़ने के लिये 'दिव्यांगजन रोज़गार सेतु'।
  • दिव्य कला मेला: दिव्यांगजन उद्यमियों और कारीगरों के लिये अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने और बेचने हेतु एक राष्ट्रीय मंच, जो ‘वोकल फॉर लोकल’ पहल के साथ संरेखित है तथा आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा देता है।
  • आर्टिफिशियल लिम्ब्स मैन्युफ़ैक्चरिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (ALIMCO): एक गैर-लाभकारी CPSU जो किफायती सहायक उपकरणों का निर्माण और वितरण करता है तथा प्रधानमंत्री दिव्याशा केंद्रों के माध्यम से अपनी पहुँच का विस्तार कर रहा है ।
  • भारतीय सांकेतिक भाषा (ISL) को बढ़ावा देना: भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र (ISLRTC) एक नोडल निकाय है, जो 10,000 से अधिक शब्दों और शैक्षणिक वीडियो का एक विशाल डिजिटल भंडार विकसित कर रहा है।

भारत में दिव्यांगजनों (PwD) के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • सुगम्यता संबंधी चुनौतियाँ: अधिकांश सार्वजनिक स्थानों में रैम्प, रेलिंग, स्पर्शनीय मार्ग और सुलभ संकेतों की कमी होती है, जबकि कई डिजिटल प्लेटफॉर्म स्क्रीन रीडर, कैप्शन या अन्य सुलभता सुविधाओं का समर्थन नहीं करते हैं।
    • वर्ष 2018 की एक सरकारी रिपोर्ट में पाया गया कि केवल 3% भवन ही दिव्यांगजनों के लिये पूरी तरह से सुलभ थे।
  • समावेशी शिक्षा अंतराल: प्रशिक्षित शिक्षकों, सुलभ बुनियादी ढाँचे, उचित शिक्षण सामग्री और व्यक्तिगत सहायता की अनुपस्थिति, साथ ही मनोवृत्ति संबंधी बाधाओं के कारण विकलांग बच्चों में स्कूल छोड़ने की दर अधिक होती है।
    • परिणामस्वरूप, 15 वर्ष से अधिक आयु के केवल 19.3% व्यक्ति ही माध्यमिक स्तर की शिक्षा या उससे उच्चतर शिक्षा प्राप्त कर पाते हैं।
  • रोज़गार और आर्थिक बहिष्कार: दिव्यांग व्यक्तियों के लिये रोज़गार दर काफी कम है, क्योंकि निजी क्षेत्र में भय, उत्पादकता को लेकर गलत धारणाएँ और सीमित सुविधाएँ उनकी नियुक्तियों में बाधा डालती हैं।
    • परिणामस्वरूप, 1.3 करोड़ रोज़गार योग्य दिव्यांगजनों में से केवल 34 लाख ही रोज़गार प्राप्त कर पाए हैं।
  • उच्च स्वास्थ्य देखभाल लागत: सहायक उपकरणों, उपचारों और दीर्घकालिक देखभाल के लिये उच्च स्वास्थ्य देखभाल लागत तथा खराब बीमा कवरेज के कारण, कई दिव्यांगजनों के लिये आवश्यक सेवाएँ दुर्गम हो जाती हैं। 
    • प्रशिक्षित पेशेवरों की कमी और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं, खासकर मनोसामाजिक दिव्यांगजनों के प्रति गंभीर उपेक्षा ने इस स्थिति को और भी खराब कर दिया है।

भारत में दिव्यांगजनों के लिये समावेशिता और सुगम्यता को आगे बढ़ाने के लिये और क्या कदम आवश्यक हैं?

  • शासन संबंधी कमी को पूरा करना: RPWD अधिनियम, 2016 को सख्त समय-सीमा के साथ लागू करके अनुपालन अंतराल को समाप्त किया जाना चाहिये।
    • दिव्यांगजनों के मुख्य आयुक्त जैसे नियामक निकायों को अधिक अधिकार देकर उल्लंघनों पर दंड लगाने और शिकायतों का प्रभावी समाधान करने में सक्षम बनाया जाना चाहिये।
  • सुलभता को सार्वभौमिक बनाना: सुगम्य भारत अभियान के तहत सभी मौजूदा सार्वजनिक संसाधनों का व्यवस्थित रूप से रीट्रॉफिटिंग लागू किया जाए, सख्त ऑडिट और समय-सीमाओं के साथ, जो UNCRPD दायित्वों के अनुरूप हों।
  • कौशल विकास के माध्यम से आर्थिक सशक्तिकरण: PM-DAKSH योजना को स्किल इंडिया के तहत बढ़ाया और एकीकृत किया जाए, जिसमें बाज़ार-संरेखित व्यावसायिक प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित किया जाए ताकि रोज़गार परिणामों को रोज़गार सेतु पोर्टल के माध्यम से बेहतर बनाया जा सके।
  • सुलभ प्रौद्योगिकी में नवाचार को बढ़ावा देना: उन्नत AI-आधारित समाधान और सुलभ प्रौद्योगिकियों के लिये अनुसंधान एवं विकास में निवेश किया जाए, ताकि शहरी प्रशासन और डिजिटल साक्षरता में PwDs की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके। इसके लिये ALIMCO जैसी संस्थाओं और समर्पित स्टार्ट-अप इन्क्यूबेशन का समर्थन किया जाए।

मुख्य परीक्षा के लिये संबंधित कीवर्ड

सामाजिक-आर्थिक विकास:

  • "अक्षमता पर क्षमता": कौशल और क्षमता पर ध्यान केंद्रित करना, सीमाओं पर नहीं।
  • "निर्भरता से गरिमा तक" - आर्थिक सशक्तीकरण और आत्मनिर्भरता
  • "समावेश ही नया विकास है" - विकास के चालक के रूप में समावेशी नीतियाँ।

नैतिकता और अखंडता

  • "गरिमा से समझौता नहीं किया जा सकता" - दिव्यांगजनों के अधिकारों की रक्षा करना और उनका सम्मान करना नैतिक कर्त्तव्य है।
  • "आकृति से परे निष्पक्षता" - वास्तविक समानता, न कि केवल औपचारिक समानता।
  • "सेवा सबसे मज़बूत कानून है" - हाशिये पर पड़े नागरिकों को प्राथमिकता देने वाली सार्वजनिक सेवा।

सामाजिक न्याय और अधिकार

  • बिना किसी अपवाद के सशक्तीकरण” – समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचना।
  • "हाशिये से मुख्यधारा तक" - दिव्यांगजनों को जीवन के सभी क्षेत्रों में एकीकृत करना।
  • " पहुँच नई समानता है  - भौतिक, सामाजिक और डिजिटल समावेशन।

निष्कर्ष:

भारत का दिव्यांग अधिकार ढाँचा, जो RPwD अधिनियम 2016, जो RPwD अधिनियम 2016 और सुगम्य भारत अभियान द्वारा समर्थित है,  को पूरी तरह प्रभावी बनाने के लिये सख्त निगरानी, व्यापक आर्थिक अवसरों का सृजन और सुलभ प्रौद्योगिकी में नवाचार आवश्यक है, ताकि दिव्यांगजनों को विकसित भारत के दृष्टिकोण में पूर्ण रूप से शामिल किया जा सके।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: दिव्यांगजनों को प्रभावी ढंग से सशक्त बनाने के लिये कानूनी सुरक्षा, प्रौद्योगिकी और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को शामिल करते हुए एक बहुआयामी दृष्टिकोण का उपयोग किस प्रकार किया जा सकता है?

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. RPwD अधिनियम, 2016 क्या है?
यह भारत का प्रमुख अधिनियम है जो 21 दिव्यांगजनों को मान्यता प्रदान करता है, शिक्षा और रोज़गार में आरक्षण को अनिवार्य बनाता है तथा दिव्यांगजनों के लिये सुगम्यता और पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करता है।

2. सुगम्य भारत अभियान का उद्देश्य क्या है?
इसका उद्देश्य बुनियादी ढाँचे, परिवहन और आईसीटी में सार्वभौमिक पहुँच प्राप्त करना है, तथा सभी दिव्यांगजनों के लिये समान पहुँच और भागीदारी सुनिश्चित करना है।

3. UDID ​​परियोजना दिव्यांगजनों को किस प्रकार लाभ पहुंचाती है?
UDID ​​एक राष्ट्रीय डाटाबेस तैयार करता है और एक विशिष्ट विकलांगता पहचान पत्र जारी करता है, जिससे लाभ वितरण सुव्यवस्थित होता है जिससे अभिलेखों के दोहराव को रोका जा सकता है।

सारांश

  • भारत में 2.68 करोड़ दिव्यांगजन हैं , जिन्हें आरपीडब्ल्यूडी अधिनियम, 2016 सहित एक मजबूत कानूनी ढांचे द्वारा समर्थित किया जाता है। 
  • सुगम्य भारत अभियान, पीएम-दक्ष, एडीआईपी, यूडीआईडी ​​और दिव्य कला मेला जैसी प्रमुख पहलें सुगम्यता, कौशल विकास और आर्थिक सशक्तिकरण सुनिश्चित करती हैं। 
  • सुगम्य भारत ऐप और प्रशस्त जैसे डिजिटल उपकरण वास्तविक समय पर पहुंच और शीघ्र हस्तक्षेप की सुविधा प्रदान करते हैं। 
  • समावेशी और सशक्त समाज के लिए शासन को मजबूत करना, सार्वभौमिक पहुंच और सहायक प्रौद्योगिकी को अपनाना महत्वपूर्ण है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत लाखों विकलांग व्यक्तियों का घर है। कानून के तहत उन्हें क्या लाभ उपलब्ध हैं? (2011)

  1. सरकारी स्कूलों में 18 साल की उम्र तक मुफ्त स्कूली शिक्षा। 
  2. व्यवसाय स्थापित करने के लिए भूमि का अधिमान्य आवंटन। सार्वजनिक भवनों में रैंप।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(A) केवल 1

(B) केवल 2 और 3

(C) केवल 1 और 3

(D) 1, 2 और 3

उत्तर: (D)


मेन्स

प्रश्न: क्या विकलांग व्यक्तियों का अधिकार अधिनियम, 2016 समाज में इच्छित लाभार्थियों के सशक्तीकरण और समावेशन हेतु प्रभावी तंत्र सुनिश्चित करता है? चर्चा कीजिये। (2017)


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