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दिव्यांगजनों के सशक्तीकरण के लिये भारत का रोडमैप

  • 06 Dec 2025
  • 80 min read

चर्चा में क्यों?

अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस (3 दिसंबर) हमें एक समावेशी समाज की आवश्यकता की याद दिलाता है, भारत दिव्यांगजनों (PwDs) के लिये समावेशन की दिशा में प्रगति कर रहा है, जिसे प्रमुख कानूनी और नीतिगत सुधारों, सरकारी पहलों और पर्पल फेस्ट 2025 जैसी महत्त्वपूर्ण घटनाओं द्वारा प्रेरित किया जा रहा है।

भारत में दिव्यांगजनों के अधिकारों के लिये प्रमुख कानूनी ढाँचा और सरकारी पहल क्या हैं?

कानूनी ढाँचा: 

  • दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016: यह आधारशिला कानून है, यह दिव्यांगता की 21 श्रेणियों को मान्यता देता है, शिक्षा और रोज़गार में आरक्षण को अनिवार्य करता है, तथा कानूनी रूप से सरकारों को सुलभता और पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये बाध्य करता है।
    • इसके अलावा, भारत ने वर्ष 2007 में दिव्यांगजनों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCRPD) का अनुसमर्थन किया तथा अपने कानूनों और नीतियों को इन सिद्धांतों के अनुरूप बनाने की प्रतिबद्धता व्यक्त की।
  • राष्ट्रीय न्यास अधिनियम, 1999: ऑटिज्म, सेरेब्रल पाल्सी, मानसिक मंदता और बहु दिव्यांगजन वाले व्यक्तियों के कल्याण पर केंद्रित है।
  • भारतीय पुनर्वास परिषद (RCI) अधिनियम, 1992: पुनर्वास प्रशिक्षण कार्यक्रमों का विनियमन और निगरानी करता है। योग्य पेशेवरों का केंद्रीय पुनर्वास रजिस्टर रखता है।
  • दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के कार्यान्वयन हेतु योजना (SIPDA): दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम की परियोजनाओं के कार्यान्वयन हेतु वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करती है। यह सुगम्यता, जागरूकता, समावेशन और कौशल विकास को बढ़ावा देती है।

सरकारी पहल

  • सुगम्य भारत अभियान (सुगम्य भारत अभियान): इसका उद्देश्य 3 प्रमुख क्षेत्रों- निर्मित बुनियादी ढाँचे, परिवहन प्रणालियों और ICT- में सार्वभौमिक पहुँच प्राप्त करना है, ताकि सभी के लिये समान पहुँच और भागीदारी सुनिश्चित हो सके।
  • दिव्यांगजन सहायता (ADIP) योजना: दिव्यांग व्यक्तियों के भौतिक और आर्थिक पुनर्वास का समर्थन करने के लिये आधुनिक सहायक उपकरण, यंत्र और कॉक्लियर इम्प्लांट सर्जरी प्रदान करती है।
  • दिव्यांगजनों के लिये विशिष्ट पहचान पत्र (UDID): लाभों के वितरण को आसान बनाने और डुप्लिकेट रिकॉर्ड को समाप्त करने के लिये एक राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार किया जाएगा और प्रत्येक दिव्यांग व्यक्ति को विशिष्ट पहचान पत्र प्रदान किया जाएगा।
  • दीनदयाल दिव्यांगजन पुनर्वास योजना (DDRS): दिव्यांगजनों की शिक्षा, प्रशिक्षण और पुनर्वास के लिये स्वैच्छिक संगठनों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
    • PRASHAST ऐप छात्रों में प्रारंभिक रूप से विकलांगता की पहचान के लिये स्क्रीनिंग करता है।
  • राष्ट्रीय दिव्यांगजन वित्त एवं विकास निगम (NDFDC): स्वरोज़गार के लिये दिव्यांगजन स्वावलंबन योजना जैसी योजनाओं के माध्यम से रियायती ऋण के माध्यम से आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा देता है।
  • पीएम-दक्ष-दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग पोर्टल: दो मॉड्यूल वाला एक वन-स्टॉप डिजिटल प्लेटफॉर्म: कौशल प्रशिक्षण के लिये 'दिव्यांगजन कौशल विकास' और साझेदार कंपनियों से नौकरी के अवसरों के साथ दिव्यांगजनों को जोड़ने के लिये 'दिव्यांगजन रोज़गार सेतु'।
  • दिव्य कला मेला: दिव्यांगजन उद्यमियों और कारीगरों के लिये अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने और बेचने हेतु एक राष्ट्रीय मंच, जो ‘वोकल फॉर लोकल’ पहल के साथ संरेखित है तथा आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा देता है।
  • आर्टिफिशियल लिम्ब्स मैन्युफ़ैक्चरिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (ALIMCO): एक गैर-लाभकारी CPSU जो किफायती सहायक उपकरणों का निर्माण और वितरण करता है तथा प्रधानमंत्री दिव्याशा केंद्रों के माध्यम से अपनी पहुँच का विस्तार कर रहा है ।
  • भारतीय सांकेतिक भाषा (ISL) को बढ़ावा देना: भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र (ISLRTC) एक नोडल निकाय है, जो 10,000 से अधिक शब्दों और शैक्षणिक वीडियो का एक विशाल डिजिटल भंडार विकसित कर रहा है।

भारत में दिव्यांगजनों (PwD) के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • सुगम्यता संबंधी चुनौतियाँ: अधिकांश सार्वजनिक स्थानों में रैम्प, रेलिंग, स्पर्शनीय मार्ग और सुलभ संकेतों की कमी होती है, जबकि कई डिजिटल प्लेटफॉर्म स्क्रीन रीडर, कैप्शन या अन्य सुलभता सुविधाओं का समर्थन नहीं करते हैं।
    • वर्ष 2018 की एक सरकारी रिपोर्ट में पाया गया कि केवल 3% भवन ही दिव्यांगजनों के लिये पूरी तरह से सुलभ थे।
  • समावेशी शिक्षा अंतराल: प्रशिक्षित शिक्षकों, सुलभ बुनियादी ढाँचे, उचित शिक्षण सामग्री और व्यक्तिगत सहायता की अनुपस्थिति, साथ ही मनोवृत्ति संबंधी बाधाओं के कारण विकलांग बच्चों में स्कूल छोड़ने की दर अधिक होती है।
    • परिणामस्वरूप, 15 वर्ष से अधिक आयु के केवल 19.3% व्यक्ति ही माध्यमिक स्तर की शिक्षा या उससे उच्चतर शिक्षा प्राप्त कर पाते हैं।
  • रोज़गार और आर्थिक बहिष्कार: दिव्यांग व्यक्तियों के लिये रोज़गार दर काफी कम है, क्योंकि निजी क्षेत्र में भय, उत्पादकता को लेकर गलत धारणाएँ और सीमित सुविधाएँ उनकी नियुक्तियों में बाधा डालती हैं।
    • परिणामस्वरूप, 1.3 करोड़ रोज़गार योग्य दिव्यांगजनों में से केवल 34 लाख ही रोज़गार प्राप्त कर पाए हैं।
  • उच्च स्वास्थ्य देखभाल लागत: सहायक उपकरणों, उपचारों और दीर्घकालिक देखभाल के लिये उच्च स्वास्थ्य देखभाल लागत तथा खराब बीमा कवरेज के कारण, कई दिव्यांगजनों के लिये आवश्यक सेवाएँ दुर्गम हो जाती हैं। 
    • प्रशिक्षित पेशेवरों की कमी और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं, खासकर मनोसामाजिक दिव्यांगजनों के प्रति गंभीर उपेक्षा ने इस स्थिति को और भी खराब कर दिया है।

भारत में दिव्यांगजनों के लिये समावेशिता और सुगम्यता को आगे बढ़ाने के लिये और क्या कदम आवश्यक हैं?

  • शासन संबंधी कमी को पूरा करना: RPWD अधिनियम, 2016 को सख्त समय-सीमा के साथ लागू करके अनुपालन अंतराल को समाप्त किया जाना चाहिये।
    • दिव्यांगजनों के मुख्य आयुक्त जैसे नियामक निकायों को अधिक अधिकार देकर उल्लंघनों पर दंड लगाने और शिकायतों का प्रभावी समाधान करने में सक्षम बनाया जाना चाहिये।
  • सुलभता को सार्वभौमिक बनाना: सुगम्य भारत अभियान के तहत सभी मौजूदा सार्वजनिक संसाधनों का व्यवस्थित रूप से रीट्रॉफिटिंग लागू किया जाए, सख्त ऑडिट और समय-सीमाओं के साथ, जो UNCRPD दायित्वों के अनुरूप हों।
  • कौशल विकास के माध्यम से आर्थिक सशक्तिकरण: PM-DAKSH योजना को स्किल इंडिया के तहत बढ़ाया और एकीकृत किया जाए, जिसमें बाज़ार-संरेखित व्यावसायिक प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित किया जाए ताकि रोज़गार परिणामों को रोज़गार सेतु पोर्टल के माध्यम से बेहतर बनाया जा सके।
  • सुलभ प्रौद्योगिकी में नवाचार को बढ़ावा देना: उन्नत AI-आधारित समाधान और सुलभ प्रौद्योगिकियों के लिये अनुसंधान एवं विकास में निवेश किया जाए, ताकि शहरी प्रशासन और डिजिटल साक्षरता में PwDs की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके। इसके लिये ALIMCO जैसी संस्थाओं और समर्पित स्टार्ट-अप इन्क्यूबेशन का समर्थन किया जाए।

मुख्य परीक्षा के लिये संबंधित कीवर्ड

सामाजिक-आर्थिक विकास:

  • "अक्षमता पर क्षमता": कौशल और क्षमता पर ध्यान केंद्रित करना, सीमाओं पर नहीं।
  • "निर्भरता से गरिमा तक" - आर्थिक सशक्तीकरण और आत्मनिर्भरता
  • "समावेश ही नया विकास है" - विकास के चालक के रूप में समावेशी नीतियाँ।

नैतिकता और अखंडता

  • "गरिमा से समझौता नहीं किया जा सकता" - दिव्यांगजनों के अधिकारों की रक्षा करना और उनका सम्मान करना नैतिक कर्त्तव्य है।
  • "आकृति से परे निष्पक्षता" - वास्तविक समानता, न कि केवल औपचारिक समानता।
  • "सेवा सबसे मज़बूत कानून है" - हाशिये पर पड़े नागरिकों को प्राथमिकता देने वाली सार्वजनिक सेवा।

सामाजिक न्याय और अधिकार

  • बिना किसी अपवाद के सशक्तीकरण” – समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचना।
  • "हाशिये से मुख्यधारा तक" - दिव्यांगजनों को जीवन के सभी क्षेत्रों में एकीकृत करना।
  • " पहुँच नई समानता है  - भौतिक, सामाजिक और डिजिटल समावेशन।

निष्कर्ष:

भारत का दिव्यांग अधिकार ढाँचा, जो RPwD अधिनियम 2016, जो RPwD अधिनियम 2016 और सुगम्य भारत अभियान द्वारा समर्थित है,  को पूरी तरह प्रभावी बनाने के लिये सख्त निगरानी, व्यापक आर्थिक अवसरों का सृजन और सुलभ प्रौद्योगिकी में नवाचार आवश्यक है, ताकि दिव्यांगजनों को विकसित भारत के दृष्टिकोण में पूर्ण रूप से शामिल किया जा सके।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: दिव्यांगजनों को प्रभावी ढंग से सशक्त बनाने के लिये कानूनी सुरक्षा, प्रौद्योगिकी और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को शामिल करते हुए एक बहुआयामी दृष्टिकोण का उपयोग किस प्रकार किया जा सकता है?

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. RPwD अधिनियम, 2016 क्या है?
यह भारत का प्रमुख अधिनियम है जो 21 दिव्यांगजनों को मान्यता प्रदान करता है, शिक्षा और रोज़गार में आरक्षण को अनिवार्य बनाता है तथा दिव्यांगजनों के लिये सुगम्यता और पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करता है।

2. सुगम्य भारत अभियान का उद्देश्य क्या है?
इसका उद्देश्य बुनियादी ढाँचे, परिवहन और आईसीटी में सार्वभौमिक पहुँच प्राप्त करना है, तथा सभी दिव्यांगजनों के लिये समान पहुँच और भागीदारी सुनिश्चित करना है।

3. UDID ​​परियोजना दिव्यांगजनों को किस प्रकार लाभ पहुंचाती है?
UDID ​​एक राष्ट्रीय डाटाबेस तैयार करता है और एक विशिष्ट विकलांगता पहचान पत्र जारी करता है, जिससे लाभ वितरण सुव्यवस्थित होता है जिससे अभिलेखों के दोहराव को रोका जा सकता है।

सारांश

  • भारत में 2.68 करोड़ दिव्यांगजन हैं , जिन्हें आरपीडब्ल्यूडी अधिनियम, 2016 सहित एक मजबूत कानूनी ढांचे द्वारा समर्थित किया जाता है। 
  • सुगम्य भारत अभियान, पीएम-दक्ष, एडीआईपी, यूडीआईडी ​​और दिव्य कला मेला जैसी प्रमुख पहलें सुगम्यता, कौशल विकास और आर्थिक सशक्तिकरण सुनिश्चित करती हैं। 
  • सुगम्य भारत ऐप और प्रशस्त जैसे डिजिटल उपकरण वास्तविक समय पर पहुंच और शीघ्र हस्तक्षेप की सुविधा प्रदान करते हैं। 
  • समावेशी और सशक्त समाज के लिए शासन को मजबूत करना, सार्वभौमिक पहुंच और सहायक प्रौद्योगिकी को अपनाना महत्वपूर्ण है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत लाखों विकलांग व्यक्तियों का घर है। कानून के तहत उन्हें क्या लाभ उपलब्ध हैं? (2011)

  1. सरकारी स्कूलों में 18 साल की उम्र तक मुफ्त स्कूली शिक्षा। 
  2. व्यवसाय स्थापित करने के लिए भूमि का अधिमान्य आवंटन। सार्वजनिक भवनों में रैंप।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(A) केवल 1

(B) केवल 2 और 3

(C) केवल 1 और 3

(D) 1, 2 और 3

उत्तर: (D)


मेन्स

प्रश्न: क्या विकलांग व्यक्तियों का अधिकार अधिनियम, 2016 समाज में इच्छित लाभार्थियों के सशक्तीकरण और समावेशन हेतु प्रभावी तंत्र सुनिश्चित करता है? चर्चा कीजिये। (2017)

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