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शांति एवं भाईचारा: वर्तमान विश्व की आवश्यकता

वर्तमान दौर में हम एक वैश्वीकृत दुनिया में रह रहे हैं। यह दुनिया एक गाँव के रूप में तब्दील हो गई है जिसे मैकलुहान ने “ग्लोबल विलेज” की संज्ञा दी है। एक प्रक्रिया और प्रवाह के रूप में वैश्वीकरण ने दुनिया को एक दूसरे से जोड़ते हुए अंतरनिर्भरता को बढ़ावा दिया है। वैश्वीकरण के इस दौर में युद्ध, असंतोष, अवसाद, पलायन, पर्यावरणीय असंतुलन संपूर्ण विश्व के समक्ष प्रमुख चुनौती है। इसलिए वर्तमान विश्व की एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता शांति एवं भाईचारे की स्थापना करना है।

वैश्विक शांति की स्थापना हेतु प्रतिवर्ष 21 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस या ‛विश्व शांति दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा इसकी घोषणा 1981 में की गई तथा 1982 में पहली बार ‛अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस’ मनाया गया। 1982 से 2001 तक अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस सितंबर माह के तीसरे मंगलवार को मनाया जाता था लेकिन सन 2002 से 21 सितंबर को ‛अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस’ मनाने की तारीख निर्धारित की गई। इसका प्रमुख उद्देश्य है अहिंसा और संघर्ष विराम का अवलोकन करते हुए शांति के आदर्शों को मजबूत करना। संयुक्त राष्ट्र संघ कला, साहित्य, सिनेमा संगीत एवं खेल जैसे क्षेत्रों से अंतर्राष्ट्रीय शांति को बढ़ावा देने के लिए शांति दूतों की नियुक्ति भी करता है। इस दिवस को सफेद कबूतर उड़ाकर शांति का पैगाम भी दिया जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस की इस वर्ष (2022) की थीम “नस्लवाद समाप्त करें, शांति का निर्माण करें (End racism. Build peace.)” है। दुनिया भर में नस्लीय भेदभाव और उत्पीड़न को देखते हुए उपरोक्त थीम का निर्धारण किया गया है। आज दुनिया भर में संघर्ष जारी है, जिससे लोग पलायन कर रहे हैं, हमने सीमाओं पर नस्ल-आधारित भेदभाव देखा है। आज हमें नस्लीय अल्पसंख्यकों पर निर्देशित अभद्र भाषा और हिंसा देखने को मिलती है। चूँकि शांति को बढ़ावा देने में सबकी भूमिका है इसलिए नस्लवाद से निपटना अंतर्राष्ट्रीय शांति स्थापित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। आज वैश्विक समाज उन ढांचों को तोड़ने के लिए काम कर सकता है जो हमारे बीच में नस्लवाद की जड़ें जमाती हैं। आज विश्व के किसी भी कोने से समानता और मानवाधिकारों के लिए आ रही आवाज आंदोलनों का समर्थन करने की आवश्यकता है। लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के इस दौर में हम शिक्षा और सुधारात्मक न्याय के माध्यम से नस्लवाद विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा दे सकते हैं। जैसा कि महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा है : "नस्लवाद हर समाज में संस्थाओं, सामाजिक संरचनाओं और रोजमर्रा की जिंदगी में जहर घोल रहा है। यह लगातार असमानता का वाहक बना हुआ है। यह लोगों को उनके मौलिक मानवाधिकारों से वंचित करना जारी रखता है। यह समाजों को अस्थिर करता है, लोकतंत्रों को कमजोर करता है और सरकारों की वैधता को नष्ट करता है… नस्लवाद और लैंगिक असमानता के बीच संबंध अचूक है। ”

वैश्विक अशांति के कारण-

वर्तमान विश्व युद्ध, संघर्ष, पलायन, महामारी एवं पर्यावरण संकट जैसी अनगिनत समस्याओं का सामना कर रहा है। वर्तमान विश्व को सशंकित दृष्टि से देखते हुए इतिहासकार युवाल नोआ हरारी अपनी पुस्तक ‛21 Lessons for the 21st Century’ में कहते हैं कि, “अपनी प्रजाति को संगठित करने के लिए हमने मिथक रचे। खुद को शक्तिशाली बनाने के लिए हमने प्रकृति को वश में किया। अपने विचित्र उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हम जीवन की पुनर्रचना कर रहे हैं। लेकिन क्या हम अब भी खुद को जान पाए हैं या हमारे आविष्कार हमें अप्रासंगिक बना देंगे?”

लंबे उपनिवेशवादी दौर से मुक्त हुई दुनिया के समक्ष आज भी साम्राज्यवाद, बाजारवाद एवं उपभोक्तावाद की गंभीर चुनौती है जिसने गहरे असंतोष को जन्म दिया है। हथियारों की होड़ ने सम्पूर्ण विश्व को अब बारूद के मकान के रूप में तब्दील कर दिया है। हथियार निर्माण अब एक उद्योग का रूप ले चुका है जिसका उद्देश्य वैश्विक तनाव निर्मित कर हथियार बेचना है। रूस-यूक्रेन युद्ध समकालीन दुनिया का एक नग्न यथार्थ है कि विज्ञान एवं तकनीकी विकास के साथ हम आज भी युद्धों में उलझे हुए हैं। युद्ध और आंतरिक विघटन से पलायन की समस्या उत्पन्न हो रही है जिससे शरणार्थी समस्या समस्त विश्व के समक्ष एक बड़ी चुनौती साबित हो रही है।

संप्रदायवाद एवं आतंकवाद वैश्विक शांति के समक्ष सबसे बड़े अवरोधक हैं। विविध प्रकार की आतंकी गतिविधियों से दुनिया के किसी न किसी कोने में हर रोज अस्थिरता देखने को मिलती है।

असंतुलित आर्थिक विकास भी संपूर्ण विश्व के समक्ष एक प्रमुख चुनौती है। अंधाधुंध औद्योगीकरण ने पर्यावरण असंतुलन को जन्म दिया है जोकि वैश्विक शांति की स्थापना में बाधक है।

विश्व शांति के उपाय-

वैश्विक शांति हेतु अब तक अनगिनत उपाय किए गए हैं। युद्ध की परिस्थितियों तथा हथियारों की होड़ को खत्म करने के लिए निशस्त्रीकरण तथा शस्त्र नियंत्रण जैसी अवधारणाएं काम कर रही हैं। दुनिया भर को परमाणु खतरों से बचाने के लिए अब तक पीटीबीटी(1963), एनपीटी(1968) तथा सीटीबीटी(1996) जैसी अनेक महत्त्वपूर्ण संधियाँ की गई हैं।

वैश्विक स्तर पर पर्यावरणीय संकट से निपटने के लिए अब तक अनगिनत प्रयास किए गए हैं। स्टॉकहोम सम्मेलन(1972) से लेकर ग्लासगो(2021) तक सतत प्रयास इसके प्रमुख उदाहरण हैं। धारणीय विकास पर्यावरण संतुलन की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है।

असंतोष के असंख्य कारणों को देखते हुए यह लगता है कि अब शांति प्राप्त करने के लिए हथियार डालने से कहीं अधिक की आवश्यकता है। इसके लिए ऐसे समाजों के निर्माण की आवश्यकता है जहां सभी सदस्यों को लगता है कि वे विकास कर सकते हैं। इसमें एक ऐसी दुनिया बनाना शामिल है जिसमें लोगों के साथ समान व्यवहार किया जाता है। आज विश्व के सभी धर्म, संप्रदाय, पंथ और आध्यात्मिक आस्था वाले समूहों में समन्वय की आवश्यकता है। अब परंपराओं और सिद्धांतों का सार लेकर रहन सहन के स्वस्थ तौर-तरीकों को विकसित करने की आवश्यकता है। आज सामाजिक संगठन की सबसे छोटी इकाई परिवार के पुनर्गठन की भी आवश्यकता है जोकि सदैव मानव की ‛प्रथम पाठशाला’ रही है।

विश्व शांति एवं भारत-

वैश्विक शांति स्थापित करने में भारत सदैव अग्रणी देशों में शामिल रहा है। प्राचीन काल से ही शांति एवं सद्भाव भारतीय संस्कृति की मूल विशेषताएं रही हैं। भारत अनेक धर्मो की जन्मस्थली है। इन धर्मों ने दुनिया भर में शांति एवं मानवता का संदेश दिया। “वसुधैव कुटुंबकम” की अवधारणा हिंदू धर्म की प्रभु प्रमुख विशेषता रही है। बौद्ध एवं जैन धर्म ने दुनिया भर में अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह का पाठ पढ़ाया। सल्तनत काल, मुगल काल एवं ब्रिटिश काल में भी भारत ने सहिष्णुता को ही बढ़ावा दिया। भारत ने बाहर से आयी संस्कृतियों को भी अपने में समाहित किया। विभिन्न धर्मों के असंख्य संप्रदायों ने भी सदैव शांति एवं सद्भाव स्थापित करने की दिशा में न सिर्फ सैद्धांतिक विचारों का प्रतिपादन किया बल्कि सक्रियतापूर्वक आम जनमानस में उसका प्रचार प्रसार भी किया। उपनिवेशवाद के दौर में भी भारत ने रचनात्मक तरीके से संपूर्ण विश्व को शांति का संदेश दिया। स्वामी विवेकानंद का शिकागो में दिया गया भाषण आखिर कौन भूल सकता है? पराधीनता की स्थिति में भी यहां के विद्वानों ने न सिर्फ भारतीय समाज को जागृत किया बल्कि उनका असर पूरी दुनिया पर पड़ा। महात्मा गाँधी और उनका चिंतन मुख्य रूप से सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह के तरीके पूरी दुनिया में लोकप्रिय हैं। महात्मा गाँधी के अहिंसक आंदोलन ने कई पराधीन देशों में स्वतंत्रता की अभिलाषा उत्पन्न की और उनके साधन अनेक देशों को स्वाधीनता प्राप्ति में सहायक साबित हुए। नेल्सन मंडेला जैसे लोगों को स्वाधीनता प्राप्ति की प्रेरणा और आत्मबल गाँधी से ही मिला। आज गाँधी की ‛सर्वोदय’ की अवधारणा समस्त विश्व के समक्ष विकास का एक समावेशी मॉडल है। महात्मा गांधी के विचारों की उपयोगिता और प्रभाव देखते हुए ही प्रतिवर्ष 2 अक्टूबर उनके जन्मदिन को ‛अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात शीत युद्ध के दौर में जब पूरी दुनिया एक अदृश्य युद्धकालीन परिस्थिति का सामना कर रही थी तब भारत ने पूरी दुनिया को शांति एवं भाईचारे का संदेश दिया। गुटनिरपेक्षता की नीति ने आजाद हुए नए मुल्कों को नई राह दिखाई वहीं पंचशील सिद्धांतों की निम्नलिखित बातों ने समस्त विश्व को शांतिपूर्ण बनाने में योगदान दिया। पंचशील के ये 5 सिद्धांत, जैसा कि चीन-भारतीय समझौते 1954 में कहा गया है,समस्त विश्व को सद्भावना का संदेश देते हैं-

(1) एक दूसरे की प्रादेशिक अखंडता और प्रभुसत्ता का सम्मान करना
(2) एक दूसरे के विरुद्ध आक्रामक कार्रवाई न करना
(3) एक दूसरे के आंतरिक विषयों में हस्तक्षेप न करना
(4) समानता और परस्पर लाभ की नीति का पालन करना तथा
(5) शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की नीति में विश्वास रखना।

वर्तमान में भी भारत दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में लोकतांत्रिक व्यवस्था के विस्तार और समावेशी विकास के लिए प्रयत्नशील है। 21वीं शताब्दी में एक महाशक्ति के रूप में उभरने की दिशा में प्रयत्नशील भारत लगातार वैश्विक शांति स्थापित करने की दिशा में प्रयासरत है।

निष्कर्ष-

आज वैश्विक शांति संपूर्ण विश्व की आवश्यकता है। यह एक दिन में संभव नहीं हो सकता। इसके लिए संपूर्ण विश्व को अपने निजी स्वार्थों का त्याग करते हुए मानवता को साध्य बनाना होगा। ‛विश्व नागरिकता’ की अवधारणा को साकार करते हुए मानव हितों के साथ-साथ प्रकृति का भी संरक्षण करना होगा।

इस प्रकार से सभी पक्षों का अवलोकन करते हुए हम कह सकते हैं कि आज संपूर्ण विश्व को पुनर्विचार की आवश्यकता है कि कैसे आपस में शांति एवं भाईचारे को कायम किया जाए। अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस एक विशेष अवसर है जब हम वैश्विक शांति स्थापित करने की दिशा में नवीन पहल कर सकते हैं।

विमल कुमार

विमल कुमार, राजनीति विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। अध्ययन-अध्यापन के साथ विमल विभिन्न अखबारों और पत्रिकाओं में समसामयिक सामाजिक और राजनीतिक विषयों पर स्वतंत्र लेखन और व्याख्यान के लिए चर्चित हैं। इनकी अभिरुचियाँ पढ़ना, लिखना और यात्राएं करना है।

  स्रोत-  

  • हरारी, युवाल नोआ(2018): 21वीं सदी के लिए 21 सबक, मंजुल पब्लिशिंग हॉउस।
  • पंत, पुष्पेश(2021): 21 वीं शताब्दी में अंतरराष्ट्रीय संबंध, मैक्ग्रा हिल एजुकेशन।
  • पारेख, भीखू(2019): गाँधी एक परिचय, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस।
  • www.un.org 
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