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दृष्टि आईएएस ब्लॉग

मानसिक जीवटता, जो आस्ट्रेलियाई क्रिकेटर्स को दूसरों से अलग करती है।

अमूमन ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम अगर किसी बड़ी प्रतियोगिता के फाइनल में पहुँचती है तो किसी भी तरह से और किसी भी हालत में जीत का वरण भी कर ही लेती है। भारत में हुई वर्ल्ड कप क्रिकेट प्रतियोगिता इसका साफ उदाहरण है। लीग मैचों में ये टीम दो मैच हारी। शुरू में बेरंग नज़र आ रही थी लेकिन उतार-चढ़ाव भरे सफर के बाद जब फाइनल में पहुँची तो अलग ही टीम बन चुकी थी। फाइनल मैच में वह हर लिहाज़ से भारतीय टीम पर भारी पड़ी और छठी बार वर्ल्ड कप जीतकर ले गई। बेशक वो दुनिया की अच्छी टीमों में हैं लेकिन अक्सर ये कहा जाता रहा है कि आस्ट्रेलिया की तमाम जीतों के पीछे 80 फीसदी भूमिका उनकी मानसिक दृढ़ता की है, जो आस्ट्रेलियाई क्रिकेटरों के उस कल्चर की ओर भी संकेत करता है, जिसमें उन्हें तैयार किया जाता है।

इसमें कोई शक नहीं कि आस्ट्रेलिया की टीम पिछले तीन दशकों से लगातार दुनिया की सबसे बेहतरीन टीम बनी हुई है। चाहे टेस्ट हो वन-डे या फिर टी-20 क्रिकेट, उसके खेल में एक जबरदस्त स्थायित्व होता है। ऐसा नहीं कि ये टीम मैच नहीं हारती या इसके खिलाड़ी खराब प्रदर्शन नहीं करते लेकिन मोटे तौर पर वो इन सबसे उबरकर ज़्यादातर बढ़िया खेल दिखाते हैं। ये बात उन्होंने इतनी बार साबित की है कि क्रिकेट की दुनिया में उनकी एक अलग साख है।

हालाँकि ये बात भी पक्की है कि चाहे क्रिकेट का मैदान या जीवन का मैदान दोनों ही जगह मानसिक जीवटता और मानसिक मज़बूती बड़ी लकीर खींचती है। हालाँकि कई बार ये व्यक्तिगत विशेषता होती है तो कई बार एक खास सिस्टम या कल्चर से निकले हुए लोग इसे खुद-ब-खुद आत्मसात कर लेते हैं।

आगे बढ़ने से पहले एक बार आस्ट्रेलिया कप्तान पैट कमिंस की क्रिकेट टीम पर फिर नज़र दौड़ा लेते हैं। वर्ल्ड कप में आस्ट्रेलिया ने अपना पहला मैच चेन्नई में भारत के खिलाफ खेला। पूरी टीम 199 पर सिमट गई और टीम इंडिया ने ये मैच आसानी से 06 विकेट से जीत लिया। दूसरा मैच उन्होंने लखनऊ में साउथ अफ्रीका के खिलाफ खेला। आस्ट्रेलिया ने इस मैच में भी घुटने टेक दिया। ना तो उसकी बैटिंग चली और ना ही बॉलिंग। लखनऊ में ही फिर आस्ट्रेलिया ने फिर श्रीलंका के खिलाफ मैच खेला। इसमें आस्ट्रेलिया को पहली जीत मिली लेकिन 05 विकेट खोकर जूझने के बाद।

फिर बेंगुलुरु के चौथे मैच में आस्ट्रेलिया ने वार्नर के 164 रनों की मदद से 367 रनों का पहाड़ खड़ा किया और पाकिस्तान मैच हार गया। मैच-दर-मैच आस्ट्रेलियाई रंग में आ रही थी। इसके बाद आस्ट्रेलिया ने मैच तो ज़रूर जीते लेकिन आस्ट्रेलिया की टीम असली रंग में आई आठवें मैच में मुंबई में अफगानिस्तान के खिलाफ। जहाँ अफगानिस्तान ने 05 विकेट पर 291 बनाए तो जवाब में इस टीम ने 91 रन पर 07 विकेट खो दिए थे लेकिन इसके बाद मैक्सवेल ने 201 की जो ऐतिहासिक पारी खेली, उसने आस्ट्रेलिया के उस कैरेक्टर को दिखाया, जिसके लिए वो जानी जाती है। असल में आप ये कह सकते हैं कि ये ऐसा मैच था, जिसने पूरी टीम को आत्मविश्वास से भरकर रख दिया। जैसा वर्ष 1983 के वर्ल्ड कप में कपिलदेव ने जिम्बाब्वे के खिलाफ 175 रनों की पारी खेलकर टीम इंडिया के लिए किया था। ऐसी पारियाँ टीम को गज़ब के आत्मविश्वास से भरती हैं।

संयोग की बात ये है कि आस्ट्रेलिया की टीम ने सेमीफाइनल और फाइनल में उन टीमों को हराया, जिनसे वो पहले ही दो लीग मैचों में हारे थे।

आस्ट्रेलिया टीम के बारे में कहते हैं कि वो जितना मैच मैदान पर खेलती है, उतना ही मैदान से बाहर भी। इन दोनों मैचों में हार के बाद जब आस्ट्रेलिया को इन्हीं टीमों से सेमीफाइनल और फाइनल में भिड़ना था तो उसने अपनी हार से सबके लेते हुए कमज़ोरियाँ देखीं और पूरी रणनीति बनाई।

टीम ने जब सेमीफाइनल में दक्षिण अफ्रीका को हरा दिया तो ये विश्वास की राह पर और मज़बूती से बढ़ी तथा खुद को खेल पर पूरी तरह से फोकस कर दिया। आस्ट्रेलिया टीम आमतौर पर दबाव में कम आती है। जब दबाव में होते हैं तो ज़्यादा तेज़ और आक्रामक बैटिंग शुरू कर देते हैं। खेल में खुद को झोंकने में पूरी तरह फोकस कर देते हैं। अगर गेंदबाज़ी कर रहे होते हैं तो बिल्कुल बेसिक्स अपनाते हुए सटीक विकेट पर सधी लेंग्थ-लाइन की गेंदबाज़ी शुरू कर देते हैं तो फील्डिंग और चौकस हो जाती है। मूलमंत्र ये होता है कि किसी भी स्थिति में घबराओ मत बल्कि सकारात्मक बने रहो, जैस- जैसे वो बड़े मैचों की ओर बढ़ते हैं, वैसे-वैसे ज़्यादा सधे और तपे हुए लगने लगते हैं।

टीम हमेशा एक टीम के तौर पर काम करती दिखती है, इसमें बड़ी भूमिका कोच और कप्तान के साथ सहयोगी कोचों और सीनियर प्लेयर्स की होती है। टीम मैच के पहले वातावरण, मौसम, विकेट, मैदान, प्रतिद्वंद्वी टीम की ताकत सबकुछ बहुत बारीकी से आँकती है, उनके एनालिस्ट हर तरह के बारीक विश्लेषण उन्हें उपलब्ध कराता है।

अगर ये सब नहीं होता तो ऑस्ट्रेलिया छह वर्ल्ड कप फाइनल मैच नहीं जीते होते। अब तक 13 वर्ल्ड कप हो चुके हैं और आस्ट्रेलिया की टीम 08 बार इसके फाइनल में पहुँची है, इसमें वर्ष 1975 और 1996 में वह फाइनल में पहुँचकर भी हार गई। वर्ष 1975 के पहले वर्ल्ड कप के फाइनल में वेस्टइंडीज़ की ताकतवर टीम ने उन्हें शिकस्त दी तो वर्ष 1996 में श्रीलंका ने मैच पलट दिया। इसके अलावा वर्ल्ड कप के इतिहास में तीन बार ही ये टीम शुरुआती दौर से आगे नहीं बढ़ पाई तो एक-एक बार सेमीफाइनल और क्वार्टरफाइनल तक जाकर रुक गई। तो इस हिसाब देखें तो वर्ल्ड कप के फाइनल में पहुँचने का उनका प्रतिशत 70-75 फीसदी है, जो किसी भी टीम से बहुत आगे है। आस्ट्रेलिया ने वर्ष 1987, 1999, 2003, 2007, 2015 और 2023 में वर्ल्ड कप जीता। ऑस्ट्रेलिया ने विश्व कप में 85 मैच खेले, जो किसी भी टीम से सबसे अधिक हैं। उनका जीत-हार का रिकॉर्ड 61-21 है, जो किसी भी टीम का सबसे अधिक जीत प्रतिशत है। अकेली टीम जिसने लगातार तीन वर्ल्ड कप जीते।

मौजूदा वर्ल्ड क्रिकेट में कम-से-कम चार टीमें ऐसी हैं, जिनकी क्षमताएँ एक जैसी मानी जाती हैं, जिसमें आस्ट्रेलिया, भारत, न्यूज़ीलैंड और साउथ अफ्रीका शामिल हैं, लेकिन आस्ट्रेलिया इन सबमें सबसे अलग इसलिए होता है क्योंकि वो मानसिक जीवटता के चलते इन चार टीमों में मौको को बखूबी भुनाना और हर बाज़ी को अपने पक्ष में ले जाने की क्षमता सबसे ज़्यादा रखता है। ये तभी होता है जबकि आप किसी खास मेंटल ट्रेनिंग के तहत सिस्टम में खिलाड़ी के तौर पर शुरुआती स्टेज से तैयार किए गए हों। आस्ट्रेलिया में क्रिकेट को कंट्रोल करने वाला क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया छोटे लेवल के क्रिकेटर्स के स्टेज से इस पर ध्यान देने लगता है। कहा जा सकता है कि वर्ल्ड क्रिकेट की इकोनामी पर अगर भारत राज करता है तो मैदान पर ज़्यादातर आस्ट्रेलियाई टीम का वर्चस्व है। इसलिए वो अमूमन वन-डे से लेकर टेस्ट क्रिकेट तक नंबर एक टीम बनी रहती है।

इस देश में क्रिकेट और क्रिकेटरों के लिए पिछले कुछ दशकों में एक संस्कृति पैदा हुई है। आस्ट्रेलिया ने अपना पहला टेस्ट वर्ष 1877 में खेला था, तब से उनके क्रिकेटरों में जीवटपन की एक मानसिक स्थिति भी विकसित होती चली गई। आस्ट्रेलिया में घरेलू स्तर पर जूनियर से लेकर सीनियर स्तर तक कई नामी प्रतियोगिताएँ होती हैं, जिनका स्तर काफी ज़बरदस्त होता है।

आस्ट्रेलिया टीम ने क्रिकेट में मनोवैज्ञानिक की सेवाएँ लेने का काम सबसे पहले शुरू किया। क्योंकि वो ये मानते थे कि जब हम मैदान पर खेल खेलते हैं तो असल खेल दिमाग में ही चल रहा होता है, जो हमारी मानसिक मज़बूती का हर पल इम्तिहान लेता है। कुछ बातें जो उन्हें एक खास मानसिक दृढ़ता देती हैं, वो ये हैं–

आत्मविश्वास– वे जानते हैं कि आत्मविश्वास उन्हें बहुत दूर तक ले जा सकता है।

कभी समर्पण नहीं करना– उनमें कभी हार नहीं मानने की प्रवृत्ति होती है।

सकारात्मक दृष्टिकोण– वे जीतने के लिए खेलते हैं, सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं।

मानसिक बुनावट– वे मानसिक दृढ़ता, लचीलेपन और महत्वपूर्ण मौकों खुद को संतुलित बनाए रखने की ट्रेनिंग लेते हैं।

कुछ और बातें हैं जो टीम की मानसिक दृढ़ता में योगदान देती हैं, मसलन दिनचर्या, रोज़ योगा और आप हैरान भी हो सकते हैं कि वो रोज़ ध्यान को भी कुछ मिनट देते हैं।

ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम का 7 मिनट का सुबह का योगा स्ट्रेच वीडियो पिछले दिनों आया, जो शायद यूट्यूब पर भी देखने को मिल जाएगा। योगा उन्हें उनकी मूल शक्ति, लचीलेपन और समग्र एथलेटिज्मि को बेहतर बनाने में मदद करता। चोटों में भी मदद कर सकता है। हाल के दिनों में उनके बैटिंग कोच ने उन्हें 05 से 10 मिनट ध्यान या सांस लेने की एक्सरसाइज भी सिखाईं। इससे मदद मिलती है। अगर क्रिकेट की बात करें तो ध्यान लगाना कुछ बातों में ज़रूर मदद करता है। मसलन–

- मन को एकाग्र करें
- तनावपूर्ण विचारों से पीछे हटें
- प्रदर्शन को लेकर आशंकाओं से निपटें
- गेंद की टाइमिंग का आकलन करें
- उसी के अनुसार रन लें
- सुनिश्चित करें कि रन आउट नहीं हों

कुल मिलाकर उनकी दिनचर्या ऐसी होती है जो उन्हें मानसिक और शारीरिक तौर पर मज़बूत बनाती है। प्री-सीज़न में खिलाड़ी जिम और रनिंग ट्रैक पर कसरत करते हैं। जब क्रिकेट खेल रहे होते हैं तो नियमित ट्रेनिंग सेशन में हिस्सा लेते हैं। वो बाइसेप कर्ल, हैमर रो, क्लोज़-ग्रिप पुल-अप, ओवरहेड प्रेस, ट्राइसेप एक्सटेंशन में ज़रूर शामिल होते हैं। उनके खाने का भी मैन्युअल है, जिसका वो पालन करते हैं। हर क्रिकेटर के लिए उनकी स्पोर्ट्स लाइफ जितनी ज़रूरी मानी जाती है, उतनी ही ज़रूरी फैमिली लाइफ भी।

अब ये भी जान लेते हैं कि किस तरह क्रिकेट का जादू आस्ट्रेलिया में भी सिर चढ़कर बोलता है। वर्ष 2007 में आस्ट्रेलियाई अखबार द एज ने एक रायशुमारी की, जिसमें ये पाया गया कि 59 फीसदी ऑस्ट्रेलियाई जनता की क्रिकेट में दिलचस्पी है। देश के सभी हिस्सों में लोकप्रिय होने के कारण क्रिकेट को ऑस्ट्रेलिया का राष्ट्रीय खेल माना जाता है। हर साल आस्ट्रेलिया में कई लाख खिलाड़ी अलग-अलग स्तर की क्रिकेट प्रतियोगिताओं में शिरकत करते हैं, जिसमें बड़े पैमाने पर महिला क्रिकेटर्स भी हैं। वर्ष 2015-16 में, रिकॉर्ड 13 लाख ऑस्ट्रेलियाई लोगों ने क्रिकेट खेला और आगे समय में ये तादाद बढ़ी ही है।

इस धारणा को दर्शाते हुए तीन ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट कप्तानों को नेशनल ऑस्ट्रेलिया डे काउंसिल द्वारा ऑस्ट्रेलियन ऑफ द ईयर के रूप में नामित किया गया। वर्ष 1989 में एलन बॉर्डर, वर्ष 1999 में मार्क टेलर और वर्ष 2004 में स्टीव वॉ को साल का सबसे खास शख्स माना गया। स्टीव वॉ को ऑस्ट्रेलिया के नेशनल ट्रस्ट द्वारा ऑस्ट्रेलियाई लिविंग ट्रेजर के रूप में नामांकित किया गया। अपनी मृत्यु से पहले डॉन ब्रैडमैन भी आस्ट्रेलिया में उसके जीवंत खजाना माने जाते थे।

आधिकारिक डेटा बताते हैं कि आस्ट्रेलियाई लोग टी.वी. पर सबसे ज़्यादा क्रिकेट देखते हैं, ये करीब 93.6 फीसदी के आसपास रहता है, तो इसे दीवानगी ही कहेंगे। मौजूदा वर्ल्ड कप के फाइनल को भी आस्ट्रेलिया में रिकॉर्ड संख्या में देखा गया। महान ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटरों की तीन कहानियों ने उन दिनचर्या को रेखांकित किया जिसने उन्हें दुनिया के सबसे मानसिक रूप से मज़बूत क्रिकेटरों में से कुछ बना दिया, जिसका अर्थ है कि खेल की प्रकृति के कारण, वे मानसिक रूप से सबसे मज़बूत वैश्विक एथलीटों में से एक हैं।

एक ज़माने में आस्ट्रेलियाई टीम के कोच रहे जान बुचनन मुख्यतौर पर स्पोर्ट्स मनोवैज्ञानिक ही थे। जब वह 90 के दशक में कोच बने तो इस टीम को अलग धरातल पर खड़ा कर दिया। उनका मूलमंत्र होता था एक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर के रूप में सफल होना एक सुंदर कवर ड्राइव, ज़बरदस्त पुल शॉट या जुझारू बालिंग की क्षमता से परे होता है। वो ना केवल शारीरिक रूप से फिट और तकनीकी रूप से मज़बूत होते हैं, बल्कि मानसिक रूप से भी बेहद मज़बूत होते हैं।

यह सुनने में भले ही सरल लगे लेकिन एकाग्रता अक्सर खेल का सबसे कठिन हिस्सा होता है। आस्ट्रेलियन क्रिकेट सिस्टम अब इसी पर विश्वास करता है। यानि जितनी ज़बरदस्त खेल क्षमता, उतनी ही शानदार मानसिक क्षमता और एकाग्रता।

  संजय श्रीवास्तव  

संजय श्रीवास्तव सीनियर जर्नलिस्ट हैं। इन्हें प्रिंट, टी.वी. और डिजिटल पत्रकारिता का 30 सालों से ज़्यादा का अनुभव है। ये कुल 4 किताबों का लेखन कर चुके हैं।

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