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विशेषताएँ जो बनाती हैं संसद भवन को खास

आप आजकल कभी संसद भवन के आसपास से गुजरें तो समझ आ जाएगा कि देश की नई संसद की इमारत के निर्माण का कार्य शुरू हो चुका है। संसद भवन परिसर को बड़े-विशाल बोर्डों से घेर दिया गया है पर अंदर से बाहर आने वाली आवाजें बताती हैं कि नई संसद बनाई जा रही है। हालॉंकि पुराना संसद भवन बना रहेगा। उसके उपयोग को लेकर भी सरकार जल्दी फैसला लेगी। निश्चित रूप से भारतीय लोकतंत्र का सबसे अहम प्रतीक रहा है हरबर्ट बेकर द्वारा डिजाइन किया गया संसद भवन।

बेकर ने अपने सीनियर और नई दिल्ली के चीफ टाउन प्लानर एडवर्ड लुटियंस के परामर्श से संसद भवन का डिजाइन तैयार किया था। इस निर्माण के वक्त दोनों में कई मुद्दों पर बहस होती रहती थी। बेकर इसके बड़े हॉल के ऊपर गुंबद बनवाना चाह रहे थे जबकि लुटियंस इसे गोलाकार रखने का पक्ष में थे। तब इसका नाम कौंसिल हाउस था।

संसद भवन का निर्माण 1921-1927 के दौरान किया गया था। इसका उद्घाटन 18 जनवरी 1927 को हुआ था। संसद भवन वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है। इसकी तुलना विश्व के सर्वोत्तम संसद भवनों के साथ की जा सकती है। यह एक विशाल वृत्ताकार भवन है। जिसका व्यास 560 फुट तथा जिसका घेरा 533 मीटर है। यह लगभग छह एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। भवन के 12 दरवाजे हैं, जिनमें से पाँच के सामने द्वार मंडप बने हुए हैं। पहली मंजिल पर खुला बरामदा हल्के पीले रंग के 144 खंभों की कतार से सुसज्जिजत है, जिनमें प्रत्येक की ऊँचाई 27 फुट है। इसमें लंबे-चौड़े लॉन, जलाशय, फव्वारे और सड़कें बनी हुई हैं। यह सारा परिसर सजावटी लाल पत्थर की दीवारों तथा लोहे के जंगलों और लोहे के ही विशाल दरवाजों से घिरा हुआ है। भले ही इसका डिजाइन विदेशी वास्तुकारों ने बनाया था किंतु इस भवन का निर्माण भारतीय सामग्री से तथा भारतीय श्रमिकों द्वारा किया गया था। तभी इसकी वास्तुतकला पर भारतीय परंपराओं की गहरी छाप है।

किसने तैयार किया था संसद भवन ?

संसद भवन के डिजाइनर हरबर्ट बेकर की बात हो जाती है और उनके बारे में बहुत कुछ सबको पता भी है। पर यह कम लोगों को पता है कि इसे ठेकेदार के रूप में खड़ा किया था सिंध (अब पाकिस्तान) से आए लछमन दास नाम के एक ठेकेदार ने। उनका भी सपना था कि वे नई बन रही नई दिल्ली में बतौर ठेकेदार बड़े-बड़े प्रोजेक्ट ले लें। खुशवंत सिंह ‘रोमांस ऑफ दिल्ली’ में लिखते हैं, ‘लछमन दास सच्चाई और नेक नीयती की मिसाल थे। उन्होंने संसद भवन के निर्माण में कभी घटिया सामग्री का इस्तेमाल नहीं किया। वे अपने मुलाजिमों को वक्त पर वेतन देते थे।’ खुशवंत सिंह ने इतनी प्रशंसा तो अपने पिता सोभा सिंह की या अन्य किसी ठेकेदार की भी नहीं की थी। सोभा सिंह ने कनॉट प्लेस के कुछ ब्लॉक, राष्ट्रपति भवन के कुछ भागों के साथ-साथ सिंधिया हाउस, रीगल बिल्डिंग, वार मेमोरियल वगैरह का निर्माण किया था। सोभा सिंह के अलावा, बैसाखा सिंह ( साउथ और नार्थ ब्लॉक), नारायण सिंह ( नई दिल्ली की प्रमुख सड़कें) अकबर अली (राष्ट्रीय अभिलेखागार) और नवाब अली (मुगल गार्डन ) भी पंजाब से यहॉं आए थे।

एक बार एडवर्ड लुटियन, हरबर्ट बेकर और उनके साथियों ने काउंसिल हाउस ( संसद भवन) और वायसराय हाउस ( राष्ट्रपति भवन) वगैरह का डिजाइन तैयार कर लिया तो अगला कदम था कि इन्हें कौन से ठेकेदार बनाएंगे। तब देश के चोटी के ठेकेदार इन खासमखास इमारतों को बनाने के लिये देश भर से आए। सब अपने कार्यों में अनुभव रखते थे। सबकी चाहत थी कि यहॉं पर बड़े प्रोजेक्ट ले लिए जाएँ। इससे उन्हें दो लाभ होने थे। पहला, तगड़ा मुनाफा। दूसरा, उनके प्रोफाइल में चार चांद लगते थे। उनमें लछमन दास भी थे। अपनी ईमानदारी के लिये मशहूर लछमन दास ने संसद भवन को इसके डिजाइनर हरबर्ट बेकर और सैकड़ों अनाम मजदूरों के साथ खड़ा किया।

लछमन दास के अलावा सिंध कराची के सेठ हारून अल राशिद राष्ट्रपति भवन के ठेकेदार थे। वे नई दिल्ली के निर्माण के बाद वापस कराची चले गए थे। धर्म सिंह को ठेका मिला था कि वे राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, साउथ और नार्थ ब्लॉक के लिये राजस्थान के धौलपुर तथा उत्तर प्रदेश के आगरा से पत्थरों की नियमित सप्लाई रखेंगे।

दरअसल लछमन दास बेहद मानवीय मनुष्य थे। वे संसद भवन के निर्माण में लगे मजदूरों के साथ घुल मिल कर रहते थे। लगभग सभी मजदूर राजस्थान के जयपुर,जोधपुर,भीलवाड़ा वगैरह से दिल्ली लाए गए थे। ये सपत्नीक आए थे। इन्हें शुरुआती दिनों में पहाड़ी धीरज में रहने की जगह मिली थी। ये सब अपने गांव-देहातों से पैदल ही दिल्ली आए थे। इन सीधे-सरल मजदूरों को रोज एक रुपए और महिला श्रमिकों को अठन्नी मजदूरी के लिये मिलते थे। अगर मजदूर मुख्य रूप से राजस्थान से यहॉं पर आए थे, तो संगतराश आगरा और मिर्जापुर से थे। कुछ भरतपुर से भी थे। ये सब पत्थरों पर नक्काशी और जालियों को बनाने के काम करने में उस्ताद थे। इनके पूर्वजों ने ही ताज महल, लाल किला, जामा मस्जिद जैसे
महत्त्वपूर्ण स्मारकों का निर्माण किया था।

संसद भवन का सेंट्रल हॉल

फिर से संसद भवन के डिजाइन की बात करते हैं। इसके केंद्र बिंदु केंद्रीय कक्ष (सेंट्रल हॉल) का विशाल वृत्ताकार ढॉंचा है। केंद्रीय कक्ष के गुबद का व्यास 98 फुट तथा इसकी ऊँचाई 118 फुट है। बेशक, यह विश्व के बहुत शानदार गुबंदों में से एक है। संसद भवन के केंद्रीय कक्ष के तीन तरफ लोक सभा, राज्य सभा और ग्रंथालय के तीन कक्ष हैं। उनके बीच सुंदर बग़ीचा है जिसमें घनी हरी घास के लॉन तथा फव्वारे हैं। इन तीनों कक्षों के चारों ओर एक चार मंजिला वृत्ताकार इमारत बनी हुई है। इसमें मंत्रियों, संसदीय समितियों के सभापतियों और पार्टी के कार्यालय हैं। लोक सभा तथा राज्यक सभा सचिवालयों के महत्त्वपूर्ण कार्यालय और संसदीय कार्य मंत्रालय के कार्यालय भी यहीं हैं। संसद भवन के भूमि-तल पर गलियारे की बाहरी दीवार को अनेक भित्ति-चित्रों से सजाया गया है। जिनमें प्राचीन काल से भारत के इतिहास तथा पड़ोसी देशों के साथ भारत के सांस्कृतिक संबंधों को प्रदर्शित किया गया है।

संसद भवन का समृद्ध पुस्तकालय

संसद भवन के निर्माण के बाद बहुत लंबे समय तक इसके परिसर में और किसी इमारत का निर्माण नहीं हुआ। पर फिर सरकार ने एक श्रेष्ठ पुस्तकालय के निर्माण का निर्णय लिया ताकि सांसद सदन में होने वाली बहसों से पहले पढ़ लिख कर भाग लें। इस लिहाज से पार्लियामेंट लाइब्रेरी का निर्माण सन 2002 में किया गया। इसका डिजाइन देश के चोटी के आर्किटेक्ट राज रावल ने बनाया। संसद भवन का केन्द्रीय कक्ष इस नए परिसर के करीब है। दस एकड़ में बनी लाइब्रेरी भारतीय परम्परा के अनुसार समसामियक है। इसका वृताकार डिजाइन दिल्ली की जलवायु को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया गया। इसके निर्माण में भी संसद भवन की तरह का लाल बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है। इसे संसदीय ज्ञानपीठ भी कहते हैं। इधर आप कई पुराने सांसदों को भी पढ़ते हुए देख सकते हैं। कुलदीप नैयर, सैयद शहबुद्दीन, खुशवंत सिंह इधर खासतौर पर पढ़ने के लिये आते रहते थे। इधर 15 लाख से अधिक पुस्तकें हैं।

क्या है पार्लियामेंट एनेक्सी ?

भारतीय संसद का अंग है पार्लियामेंट एनेक्सी। ये आकाशवाणी भवन के साथ संसद मार्ग पर है। इसकी आधारशिला भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति वी.वी.गिरी ने 3 अगस्त, 1970 को रखी थी। इसका उदघाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 24 अक्तूबर, 1975 को किया था। पार्लियामेंट एनेक्सी का डिजाइन केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग के मुख्य अभियंता जे.एम. बेंजामिन ने बनाया था। उन्होंने ही आंध्र भवन का डिजाइन बनाया था। अब तो इसकी एक्सटेंशन बिल्डिंग का भी निर्माण हो चुका है। जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2017 में किया था। एनेक्सी में सभी आधुनिकतम सुविधाएँ उपलब्ध हैं। इसके अंदर ही रेल बोर्ड की कैंटीन, स्टेट बैंक की शाखा, डाक घर, मेडिकल हॉल वगैरह हैं। इधर एक सभागार भी है। इसमें लगातार गोष्ठियॉं और अन्य कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं। पार्लियामेंट एनेक्सी तमाम अन्य सुविधाओं से सुसज्जित है। अब कुछ वर्षों के बाद देश को मिलेगा नया संसद भवन। देश उम्मीद करेगा कि वह पुराने की तरह ही शानदार और भव्य होगा।

[विवेक शुक्ला]

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं तथा ‘Gandhi’s Delhi’ पुस्तक के लेखक हैं।)

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