इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

दृष्टि आईएएस ब्लॉग

कश्मीर : एक यात्री ने जैसा देखा-जैसा समझा

कश्मीर। नाम सुनते ही कई तरह की छवियाँ मस्तिष्क में उभरती हैं,जिनमें दो सबसे आमफ़हम हैं। पहली जिसमें अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य से ओत प्रोत एक ऐसा भू प्रदेश जिसके लिये मुग़ल बादशाह जहांगीर ने 'धरती पर जन्नत' जैसी उपमा गढ़ी थी, वहीं दूसरी छवि पहली के ठीक विपरीत एक ऐसे असुरक्षित स्थान की है जो आतंकवाद और अलगाववाद से ग्रस्त है, त्रस्त है। एक तरफ जहाँ खूबसूरत डल झील, उसके चारों तरफ फैले ज़बरवान पर्वत श्रृंखला की खूबसूरत हरी भरी और बर्फ से ढँकी चोटियॉं, झील में चलते सैकड़ों शिकारे और बरसों से एक ही जगह खड़े सैकडों की तादाद में ही खूबसूरत हाउसबोट हमें कश्मीर आने की दावत देते हैं, वहीं दूसरी तरफ वहाँ से आने वाली ख़बरों में अक्सर दहशतगर्दी, पत्थरबाजी, इनकाउंटर, भारत विरोधी नारों का ही ज़िक्र होता है जो मन को कश्मीर के प्रति उतना ही भयाक्रांत कर देता है।

दुख से बचाती है यात्रा

ऐसे ही एक दूसरे से बिल्कुल विपरीत मनोभावों के साथ मैंने अपनी पहली कश्मीर यात्रा 2018 की गर्मियों में की थी। कश्मीर जाना तय नहीं था सो कोई तैयारी भी नहीं थी। पर संयोग ऐसा बना कि कश्मीर पहुँच ही गया। वे दिन कड़ी आजमाइश के थे, निजी जिंदगी में काफी उथल-पुथल थी, हर तरफ से निराशा घेर रही थी और मैं अवसाद ग्रस्त होने को था। जून महीने का कोई दिन रहा होगा, शायद पहला सप्ताह अभी खत्म नहीं हुआ था। वर्ष था 2018। बिना किसी रिजर्वेशन के बेगमपुरा एक्सप्रेस के सामान्य डिब्बे में बैठकर मैं जम्मू को निकला। एक बेहद दुखदाई ट्रेन यात्रा समाप्त कर अगले दिन मैं बस से श्रीनगर पहुँचा। कश्मीर मेरा 'एस्केप ट्रिप' था मैंने दुख से बचने के लिये पलायन किया था।

सूर्योदय से कुछ पहले का समय था जब मैं श्रीनगर के टूरिस्ट रिसेप्शन सेंटर(TRC) पर उतरा। उतरते ही मुझे होटलों और हाउसबोटों के एजेंटों ने घेर लिया। मेरी (फटेहाल) अवस्था और अकेले होने को ध्यान में रखते हुए एक अनुभवी एजेंट ने मुझे ₹500 रोजाना पर हाउसबोट में एक कमरा ऑफर किया जिसे मैं ठुकरा ना पाया। यह एक 2 कमरों का हाउसबोट था जिसमें एक कॉमन बाथरूम था। वहाँ जाकर पता चला कि दूसरा कमरा किसी और ने लिया हुआ है। अब जाकर मुझे इतने किफ़ायती कमरे का रहस्य समझ में आया लेकिन उन दिनों मेरी जेहनी कैफियत ऐसी हो गई थी कि ठगा जाना बिल्कुल भी आश्चर्यचकित नहीं करता था।

हाउसबोट डल झील के बिल्कुल बीच में था। सामने का नज़ारा स्वर्गिक था। आबोहवा ऐसी की जिसकी कल्पना जून के महीने में हम उत्तर भारत वाले खयालों में भी नही कर सकते। मसलन अधिकतम तापमान 22 डिग्री। अचानक बारिश के होते ही ठिठुरा देने वाली ठण्ड। ऐसे शांत सुहावने मौसम ने मुझमें सकारात्मकता भर दी थी और मन के अंदर उठ रहे विक्षोभ धीरे धीरे शांत होने लगे थे।

मैने श्रीनगर को दो तरह से 'एक्सप्लोर' किया। पहला एक सामान्य सैलानी की तरह, जिसमें इस शहर के लगभग सारे मशहूर पॉइंट्स जैसे शालीमार बाग़,निशात बाग़,चश्मे शाही,चार चिनार, शंकराचार्य मन्दिर,फ्लोटिंग वेजिटेबल मार्केट आदि थे और दूसरा बतौर 'डार्क टूरिस्ट'। डार्क टूरिस्ट से मुराद ऐसे सैलानियों से होती है जो उन जगहों पर जाना पसंद करते हैं जो किन्ही कारणों से विवादों में होती हैं,जहाँ तबाही हुई हो आपदा आई हो अन्यथा तनाव चल रहा हो, जैसे- चर्नोबिल,हिरोशिमा, नागासाकी, गाज़ा जैसी जगहों पर कई डार्क टूरिस्ट जाते हैं। श्रीनगर का डाउनटाउन इलाका अपने अलगाववादी विचारों, पत्थरबाजी, सेना से संघर्ष आदि कारणों से हमेशा खबरों में रहता है,कहने वाले तो इसे कश्मीर का 'गाज़ा' भी कहते हैं.

श्रीनगर के लोकप्रिय स्थलों पर इतना कुछ लिखा गया है कि उनके बारे में कुछ भी नया लिखने को बचा नहीं है मसलन शालीमार और निशात बाग स्वर्ग के उद्यान सरीखे लगते हैं, चश्माशाही से निकलने वाला पानी बड़ा तिलिस्मी होता है, लेकिन एक स्थान जिसने अपनी खूबसूरती से मुझे बेहद आश्चर्यचकित किया वह है शंकराचार्य पहाड़ी पर स्थित शिव मंदिर। यह लगभग 1000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। 9 वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने यहाँ की यात्रा की थी तभी से इसे शंकराचार्य मंदिर कहा जाने लगा है। 5 किलोमीटर लंबी सड़क से आप पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस शिव मंदिर तक जा सकते हैं। रास्ते में कई जगह सुंदर व्यूपॉइंट्स है जहॉं से श्रीनगर शहर का विहंगम दृश्य देखने को मिलता है। डल और नगीन झीलों से घिरा श्रीनगर सच में किसी दूसरी दुनिया का शहर लगता है। पूरा रास्ता चिनार और देवदार के पेड़ों से घिरा हुआ है जहॉं जगह-जगह जंगली जानवरों से सावधान रहने की हिदायतें भी लिखी हुई होती हैं। मुझे इस पहाड़ी पर चढ़ते हुए विभिन्न प्रकार के कीट पतंगों और पंछियों की आवाज सुनना ताउम्र याद रहेगा।

खानकाह ए मौला, जामा मस्जिद और बेबी जीसस

यात्रा के अंतिम दिनों में मैं डाउनटाउन के विवादित इलाकों में गया। तब तक दो कश्मीरी युवकों से मेरी दोस्ती हो चुकी थी. वे दोनों इस बात से बेहद विस्मित हुए कि मैं जामा मस्जिद और नौहट्टा चौक जैसे तनावग्रस्त इलाकों में जाना चाहता हूँ। इनमें से एक रफ़ीक़ भाई मुझे अपनी स्कूटी पर बिठाकर इन सारे इलाकों में ले गए। ये इलाके पुराने श्रीनगर में स्थित हैं। शहर का यह हिस्सा आज भी सैकड़ों साल पहले बनी लकड़ी, मिट्टी और पत्थर से बने मकानों से घिरा हुआ है। यहाँ की 3 इमारतें मुझे विशेष रूप से उल्लेखनीय लगती हैं। पहली है ख़ानकाह ए मौला अथवा शाह ए हमदान मस्ज़िद। यह लगभग सवा 600 साल पहले लकड़ी से बनी एक बेहद खूबसूरत इमारत है जिसे पेपरमेशी से सजाया गया है,यह झेलम नदी के किनारे स्थित है। कहते हैं कि यहॉं पहले काली मंदिर हुआ करता था जिसे तुड़वा कर इस मस्ज़िद को बनाया गया था। रफ़ीक़ भाई मुझे मस्ज़िद के पीछे स्थित झेलम के घाट पर भी ले गए जहाँ मस्ज़िद की दीवार पर ही भगवा रंग का एक बड़ा सा बिंदीनुमा टीका लगा हुआ था जहॉं हिंदू श्रद्धालु काली मंदिर के याद में मत्था टेकने जाते हैं।

दूसरी तारीख़ी इमारत है श्रीनगर का जामा मस्जिद, जिसका ज़िक्र अक्सर अलगाववादी विचारों के प्रसार केंद्र के रूप में होता है। यह भी 600 साल पुरानी लाल पत्थर से बनी इमारत है जिस पर ईरानी और बौद्ध पैगोडा शैली का प्रभाव दिखता है। यह एक आलीशान मस्जिद है।

तीसरा स्थान उपरोक्त दोनों स्थानों की तुलना में कम तारीख़ी है लेकिन अपने विचित्र नाम की वजह से मेरी सूची शामिल है। यह है बेबी जीसस की दरगाह। कहते हैं कि अपने अज्ञातवास के दिनों में ईसा मसीह भारत आए थे। मैंने एक किताब भी देखी थी जिसका उनवान था 'जीसस इन इंडिया' हालाँकि पढ़ने की हिम्मत मैं जुटा नहीं पाया। इसका नाम बेबी जीसस की दरगाह क्यों है इस बारे में मैंने आसपास के लोगों से खूब पूछताछ की लेकिन कुछ भी ठोस पता नहीं चला। यहॉं आने वाले ईसाई श्रद्धालु इस स्थान पर सज़दा करने जरूर जाते हैं।

कश्मीर खानपान का भी एक विशिष्ट केंद्र है। मांसाहारी भोजन के लिए यहाँ का '7 कोर्स मील' सारी दुनिया में जाना जाता है, जिसे वाज़वान कहते हैं। इसमें भेड़ के गोश्त को 7 तरीकों से पका कर पेश किया जाता है। वहीं शाकाहारियों के लिये यहाँ का पालक का साग और नदरू(कमल ककड़ी) की सब्ज़ी सौगात सरीखी है। श्रीनगर में मिलने वाली मटका कुल्फी जैसी कुल्फी मैंने आज तक कहीं नहीं खाई।

यहॉं के लोगों का दिल प्यार से लबरेज़ होता है। इनसे बड़ा मेहमान नवाज़ मिलना मुश्किल है। आप किसी से रास्ता पूछ कर देखिये, वह आपको उस स्थान तक छोड़ आएगा। बड़ी खूबसूरत जगह है, मिलनसार लोग हैं। पूर्वाग्रहों के पार एक सुंदर दुनिया दोनों तरफ बसती है। संदेहों का बर्फ पिघले तो रिश्तों की गर्माहट बढ़ेगी। बहरहाल, श्रीनगर की इस छोटी सी यात्रा ने मुझ पर जादू सा असर किया। व्यक्तिगत जीवन में आए तमाम झंझावात नियंत्रित हो गए। जिंदगी में सकारात्मकता लौट आई। कौन कहता है कि पलायन बुरा है! हमें कभी-कभी पलायनवादी भी हो जाना चाहिये। अपनी ज़िंदगी से कुछ समय अपने लिये भी निकाल लेना चाहिये। जिंदगी सहल हो जाती है। मैंने आज़माया है इसे। शुक्रिया कश्मीर। शुक्रिया श्रीनगर।

Anup Mishra

[अनूप मिश्र]

(लेखक पेशे से इतिहास के व्याख्याता तथा स्वभाव से यात्री हैं।)

-->
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow