सामाजिक न्याय
विश्व बैंक की गरीबी और समानता पर संक्षिप्त रिपोर्ट
- 13 May 2025
- 15 min read
प्रारंभिक परीक्षा:पॉवर्टी और इक्विटी ब्रीफ (PEB), अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), विश्व बैंक, बहुआयामी गरीबी, गिनी सूचकांक। मुख्य परीक्षा:भारत में गरीबी-कारक, संबंधित योजनाएँ और आगे की राह। |
चर्चा में क्यों?
विश्व बैंक द्वारा अप्रैल 2025 में जारी भारत की गरीबी और समानता पर रिपोर्ट (PEB) के अनुसार,भारत ने 17.1 करोड़ लोगों को अत्यधिक गरीबी से बाहर निकालने में सफलता प्राप्त की है।
- रिपोर्ट के अनुसार, प्रतिदिन 2.15 अमेरिकी डॉलर से कम पर जीवन यापन करने वाले लोगों का अनुपात, जो कि अत्यधिक गरीबी का अंतर्राष्ट्रीय मानक है, वर्ष 2011-12 में 16.2% से गिरकर वर्ष 2022-23 में मात्र 2.3% रह गया है।
पॉवर्टी और इक्विटी ब्रीफ (PEB) क्या है?
- परिचय: पॉवर्टी और इक्विटी ब्रीफ (PEB) 100 से अधिक विकासशील देशों में गरीबी, असमानता और साझा समृद्धि से जुड़ी प्रवृत्तियों को दर्शाती है।
- इस रिपोर्ट को विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की वसंत तथा वार्षिक (Spring and Annual) बैठकों के दौरान वर्ष में दो बार जारी किया जाता है।
- प्रमुख संकेतक और माप: इन ब्रीफ्स में गरीबी दर और गरीबों की कुल संख्या जैसे प्रमुख विकास संकेतकों से जुड़ा नवीनतम आँकड़ा प्रस्तुत किया जाता है। इसका मापन राष्ट्रीय गरीबी रेखाओं और अंतर्राष्ट्रीय मानकों दोनों के आधार पर किया जाता है:
- अंतर्राष्ट्रीय अत्यधिक गरीबी रेखा: प्रति दिन 2.15 अमेरिकी डॉलर
- निम्न-मध्यम आय स्तर की रेखा: प्रति दिन 3.65 अमेरिकी डॉलर
- उच्च-मध्यम आय स्तर की रेखा: प्रति दिन 6.85 अमेरिकी डॉलर
- भारत के लिए कार्यप्रणाली: भारत के लिये विश्व बैंक का गरीबी अनुमान, वर्ष 2011–12 के उपभोग व्यय सर्वेक्षण (CES) तथा वर्ष 2022–23 के घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण पर आधारित हैं।
विश्व बैंक की गरीबी और समानता पर संक्षिप्त रिपोर्ट के निष्कर्ष क्या हैं?
- ग्रामीण एवं शहरी गरीबी में कमी: ग्रामीण क्षेत्रों में, अत्यधिक गरीबी वर्ष 2011-12 में 18.4% से गिरकर वर्ष 2022-23 में 2.8% हो गई।
- इसी अवधि में शहरी केंद्रों में अत्यधिक गरीबी 10.7% से गिरकर 1.1% रह गई।
- ग्रामीण और शहरी गरीबी के बीच का अंतर 7.7 प्रतिशत अंक से गिरकर 1.7 प्रतिशत अंक रह गया, वर्ष 2011-12 से वर्ष 2022-23 के बीच औसतन 16% की वार्षिक गिरावट दर्ज की गई।
- निम्न-मध्यम-आय स्तर: 3.65 अमेरिकी डॉलर प्रतिदिन की रेखा पर भारत की गरीबी दर वर्ष 2011-12 में 61.8% से गिरकर वर्ष 2022-23 में 28.1% हो गई, जिससे 378 मिलियन लोग गरीबी से बाहर आ गए।
- ग्रामीण गरीबी 69% से गिरकर 32.5% हो गई, जबकि शहरी गरीबी 43.5% से गिरकर 17.2% हो गई।
- राज्यवार योगदान:
- वर्ष 2011-12 में पाँच सर्वाधिक जनसंख्या वाले राज्यों (उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और मध्यप्रदेश) में 65% अत्यंत गरीब लोग थे।
- इन्हीं राज्यों ने वर्ष 2022-23 तक गरीबी में कमी का दो-तिहाई योगदान भी दिया।
- हालाँकि वर्ष 2022-23 में अत्यधिक गरीबों का 54% हिस्सा अब भी इन राज्यों से आता है,
- साथ ही वर्ष 2019–21 में बहुआयामी गरीबों का 51% हिस्सा भी इन्हीं राज्यों में पाया गया।
- वर्ष 2011-12 में पाँच सर्वाधिक जनसंख्या वाले राज्यों (उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और मध्यप्रदेश) में 65% अत्यंत गरीब लोग थे।
- बहुआयामी गरीबी में कमी:
- विश्व बैंक का बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI), जिसमें अत्यधिक गरीबी शामिल है, इसमें पोषण और स्वास्थ्य से जुड़ी वंचनाओं को शामिल नहीं किया गया है, यह दर्शाता है कि गैर-आर्थिक गरीबी (शिक्षा और बुनियादी सेवा) वर्ष 2005–06 में 53.8% से गिरकर वर्ष 2019–21 में 16.4% हो गई, जो वर्ष 2022–23 में और गिरकर 15.5% रह गई।
- भारत का उपभोग आधारित गिनी सूचकांक वर्ष 2011-12 में 28.8 से सुधरकर वर्ष 2022-23 में 25.5 हो गया, जो आय असमानता में कमी को दर्शाता है।
- विश्व बैंक का बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI), जिसमें अत्यधिक गरीबी शामिल है, इसमें पोषण और स्वास्थ्य से जुड़ी वंचनाओं को शामिल नहीं किया गया है, यह दर्शाता है कि गैर-आर्थिक गरीबी (शिक्षा और बुनियादी सेवा) वर्ष 2005–06 में 53.8% से गिरकर वर्ष 2019–21 में 16.4% हो गई, जो वर्ष 2022–23 में और गिरकर 15.5% रह गई।
- रोज़गार और श्रम रुझान:
- वित्त वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही में शहरी बेरोज़गारी घटकर 6.6% पर आ गई है, जो वर्ष 2017-18 के बाद से सबसे निम्न स्तर है। वहीं ग्रामीण महिलाओं की कृषि क्षेत्र में भागीदारी में वृद्धि दर्ज़ की गई है।
- स्वरोज़गार में वृद्धि हो रही है, विशेष रूप से ग्रामीण श्रमिकों और महिलाओं के बीच। हालाँकि महिलाओं की रोज़गार दर 31% है, फिर भी लैंगिक असमानता बनी हुई है, क्योंकि पुरुषों की तुलना में 23.4 करोड़ अधिक पुरुष वेतनभोगी कार्यों में शामिल हैं।
- युवा बेरोज़गारी दर 13.3% है, जो स्नातकों के बीच बढ़कर 29% तक हो गई है।
- गैर-कृषि क्षेत्र में केवल 23% वेतनभोगी नौकरियाँ औपचारिक हैं, जबकि अधिकांश कृषि क्षेत्र का रोज़गार अब भी अनौपचारिक है।
टिप्पणी:
- गिनी सूचकांक यह मापता है कि किसी अर्थव्यवस्था में व्यक्तियों या परिवारों के बीच आय या उपभोग का वितरण किस हद तक पूर्णतः समान वितरण से विचलित होता है।
- गिनी सूचकांक का मान 0 होने का अर्थ है पूर्ण समानता, जबकि 100 का अर्थ है पूर्ण असमानता।
भारत में गरीबी में योगदान देने वाले कारक क्या हैं?
- बढ़ती असमानता: संसाधनों का असमान वितरण सापेक्ष गरीबी को जन्म देता है, जहाँ समग्र आर्थिक प्रगति के बावज़ूद कुछ व्यक्ति और समूह वंचित रह जाते हैं।
- विश्व असमानता रिपोर्ट (2022-23) के अनुसार, सबसे अमीर 1% लोगों के पास वैश्विक संपत्ति का 45% हिस्सा है, जबकि 3.6 बिलियन लोग अभी भी प्रतिदिन 6.85 अमेरिकी डॉलर (क्रय शक्ति समता (PPP)) से कम पर जीवन यापन कर रहे हैं, विश्व में 10 में से 1 महिला अत्यधिक गरीबी में रह रही है।
- सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार: कुछ वर्ग, जैसे महिलाएँ, वंचित समुदाय और विकलांग व्यक्ति, भेदभाव और संसाधनों तथा अवसरों तक पहुँच में बाधाओं का सामना करते हैं, जिससे गरीबी और गहराती है।
- लैंगिक असमानता: महिलाएँ और लड़कियाँ अक्सर भेदभाव और सीमित अवसरों का सामना करती हैं, जिससे उनके लिये गरीबी से बाहर निकलना और कठिन हो जाता है।
- विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के अनुमान के अनुसार, भारत में पुरुष कुल श्रम आय का 82% अर्जित करते हैं, जबकि महिलाएँ केवल 18%।
- युवा बेरोज़गारी: बेरोज़गार युवाओं की उच्च संख्या, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, गरीबी और सामाजिक अशांति का कारण बन सकती है।
- नवीनतम उपलब्ध वार्षिक आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023-24 में देश में 15-29 वर्ष की आयु के युवाओं के लिये सामान्य स्थिति पर अनुमानित बेरोज़गारी दर (UR) 10.2% थी, जो वैश्विक स्तर से कम है।
- खराब बुनियादी ढाँचा: बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वच्छ जल, स्वच्छता और पर्याप्त परिवहन प्रणाली जैसी बुनियादी आवश्यकताओं तक पहुँच का अभाव व्यक्तियों को गरीबी के चक्र में फँसा सकता है, जिससे उनके आर्थिक अवसर और जीवन की समग्र गुणवत्ता सीमित हो सकती है।
भारत में गरीबी उन्मूलन से संबंधित योजनाएँ
- दीनदयाल अंत्योदय योजना -राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (DAY-NULM)
- प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (PMAY-G)
- प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (PMGKY)
- प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना
- राष्ट्रीय पोषण मिशन (पोषण अभियान)
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA योजना)
भारत में गरीबी कम करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- लैंगिक समानता और सशक्तीकरण को बढ़ावा देना: समान कार्य के लिये समान वेतन सुनिश्चित करने हेतु समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 जैसे कानूनों को सुदृढ़ करने से लैंगिक वेतन अंतर को दूर करने में सहायता मिल सकती है।
- इसके अतिरिक्त महिलाओं के लिये व्यावसायिक प्रशिक्षण और कौशल विकास कार्यक्रम, जैसे कि कौशल भारत मिशन, महिलाओं को आर्थिक रूप से और अधिक सशक्त बना सकते हैं, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में।
- हाशिये पर पड़े समुदायों के लिये समावेशी विकास नीतियाँ: अनुसूचित जनजातियों के लिये सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को दूर करने के लिये प्रधानमंत्री आदि आदर्श ग्राम योजना जैसे लक्षित कार्यक्रमों को मज़बूत करना।
- हाशिये पर पड़े समुदायों के लिये छात्रवृत्ति और कौशल निर्माण कार्यक्रमों के माध्यम से उच्च शिक्षा तक पहुँच का विस्तार करने से समावेशिता को बढ़ावा मिल सकता है।
- ग्रामीण रोज़गार और कौशल विकास में निवेश: युवाओं, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार क्षमता में सुधार हेतु PMKVY (प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना) जैसे कौशल विकास कार्यक्रमों का विस्तार करना।
- इसके अतिरिक्त स्टैंड अप इंडिया योजना के तहत ग्रामीण उद्यमिता पहल से स्थानीय स्तर पर अधिक रोजगार के अवसर उत्पन्न हो सकते हैं।
- वंचित क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे का विकास: राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना जैसी परियोजनाओं में निवेश और अटल कायाकल्प और शहरी परिवर्तन मिशन (अमृत) के माध्यम से स्वच्छ पेयजल तक पहुँच का विस्तार करके यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि देश के सभी कोनों तक बुनियादी ढाँचे की पहुँच हो।
- परिवहन और डिजिटल बुनियादी ढाँचे में सुधार के लिये सार्वजनिक-निज़ी भागीदारी बढ़ाने से आर्थिक अवसरों तक व्यापक पहुँच भी सुगम हो सकती है।
निष्कर्ष
भारत ने आर्थिक और बहुआयामी दोनों प्रकार की गरीबी को कम करने में उल्लेखनीय प्रगति की है, लेकिन असमानता, युवा रोज़गार और आँकड़ों की तुलनात्मकता अब भी ऐसी मुख्य चुनौतियाँ हैं जिन पर नीतिगत ध्यान आवश्यक है। समावेशी विकास को सतत् बनाए रखने के लिये, नियमित सर्वेक्षण, व्यापक गरीबी संकेतक और लैंगिक संवेदनशील हस्तक्षेप अनिवार्य हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रारंभिकप्रश्न. UNDP के समर्थन से ‘ऑक्सफोर्ड निर्धनता एवं मानव विकास नेतृत्व’ द्वारा विकसित ‘बहुआयामी निर्धनता सूचकांक’ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से सम्मिलित है/हैं? (2012)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्सQ. लगातार उच्च विकास के बावजूद मानव विकास सूचकांक में भारत अभी भी सबसे कम अंकों के साथ है। उन मुद्दों की पहचान कीजिये जो संतुलित और समावेशी विकास को सुनिश्चित करते हैं। (2016) Q. प्रोफेसर अमर्त्य सेन ने प्राथमिक शिक्षा तथा प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में प्रमुख सुधारों पर बल दिया है। इन क्षेत्रों की स्थिति तथा प्रदर्शन में सुधार हेतु आपके क्या सुझाव हैं? (2016) Q. निर्धनता और कुपोषण एक विषाक्त चक्र का निर्माण करते हैं जो मानव पूंजी निर्माण पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। इस चक्र को तोड़ने के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं? ( 2024) |